Saturday 10 December 2022

क्या 2024 लोकसभा चुनाव मोदी-शाह की जोड़ी आरएसएस को ऐसे ही दरकिनार करके लड़ेगी जैसे गुजरात लड़ा व् जीता?

सबसे पहले गुजरात जीतने के फैक्टर्स:

1) JNU में "ब्राह्मण-बनिया देश छोडो" नारों के पोस्टर्स लगवाना मोदी-शाह का प्लान था; इससे इनसे नाराज चल रहा यह तबका थोड़ा घबराया व् काफी हद तक इनसे आन जुड़ा!
2) आप पार्टी को वोट कटुवा के तौर पर ही गुजरात लाया गया था, जिसने कांग्रेस के 13% वोट्स छीन लिए; बदले में आप को MCD दी गई है (परन्तु इसका कण्ट्रोल भी काफी हद तक मोदी-शाह के हाथ में ही रहना है) व् गुजरात में 6% वोट्स शेयर का क्राइटेरिया पार करवा 13% करवा के इनको नेशनल पार्टी का दर्जा दिलवाने में मदद हुई है|
3) कांग्रेस का उग्र हो के गुजरात में ना उतरना, दलित-ओबीसी-मुस्लिम वोटर्स में विश्वास नहीं भर पाया व् वह काफी हद तक वोट देने ही नहीं निकले! इस अविश्वास को अमित शाह के "2002 दंगों बारे" आचार सहिंता तोड़ते हुए भड़काऊ बोलना और बढ़ा गया| कांग्रेस को इस बयान को तुरंत काउंटर करना था पर नहीं किया|
4) वोटिंग के दिन वोटिंग के बाद अचार सहिंता तोड़ते हुए मोदी का 2.5 घंटे का मार्चपास्ट वह भी टीवी से लाइव|
5) मोदी-शाह द्वारा आरएसएस को खुलकर दरकिनार करना, गुजरात में उन लोगों को रास आया जो हिन्दू तो हैं परन्तु आरएसएस को पसंद नहीं करते| साथ ही जैन तबका इसमें सबसे सक्रिय था| आरएसएस के लिए खतरे की घंटी है उसको ऐसे खुलकर दरकिनार किया जाना| ऊपर से मीडिया में व् भाजपा के पोलिटिकल गलियारों में कहीं भी आरएसएस के योगदान का जिक्र ना होना| क्योंकि मोदी-शाह की दर्किनारी के बाद भी "इनको नहीं तो किनको" के सूत्र पर आरएसएस ने वोट्स तो बीजेपी को ही डलवाये हैं|

2024 की शुरुवात जैन-युग की प्रारम्भ:
आरएसएस अब मोदी-शाह समेत जैनी लॉबी के उस दूरगामी प्लान में दरकिनार करने का सबसे मजबूत ध्येय बन चुका है जिसको "काबू सच्चा, झगड़ा झूठा" कहते हैं| जैनी, एक के बाद एक आरएसएस यानि सनातनियों (हिन्दू धर्म में मुख्यत: दो लॉबी तो हैं ही सनातनी व् आर्य समाजी) की मेहनत चट करते जा रहे हैं; जिससे अब वह एजेंडा साफ़ देखा जा रहा जो 2024 में जीत के बाद "जैन युग" से प्रारम्भ होगा व् सनातनी बुरी तरह से इस दिमागी लड़ाई में जैनियों से मात खाने जा रहे हैं|

हरयाणा की राह व् कांग्रेस:
"राहुल-गाँधी जी" की यात्रा को भुनाने का वक्त व् मौका दोनों हैं परन्तु अगर मुद्दों के साथ भुनाई गई तो, तो ही फायदा देगी| वरना गुजरात की तरह खाली बाई-पास दे दिया तो ज्यादा कुछ हासिल होगा इससे, इसमें संदेह है (गुजरात में कहाँ हुआ)| कांग्रेस को इस यात्रा के हरयाणा में एंटर होने से ले और आगामी लोकसभा व् विधानसभा चुनावों तक हर ब्लॉक लेवल तक अपना एजेंडा फिट करके उसको इतना पकाना होगा कि मोदी-शाह की तिगड़मबाजियां मंद पड़ जाएँ| इस यात्रा के तुरंत बाद ही बूथ-मैनेजमेंट, बूथ-कैडर ट्रेनिंग के निरंतर अभियान चलाने होंगे! बीजेपी-आरएसएस के भीतर के असंतोष बाहर लाने होंगे, मीडिया, सोशल मीडिया में उनपे चर्चे करवाने होंगे, ताकि इनका मानसिक बल तोडा जा सके! 35 बनाम 1 पर नब्ज टटोलनी होगी समाज की, जो कि अभी शांत है, परन्तु एलेक्शंस आते ही, बीजेपी इसको ऐसे उठाएगी, जैसे वेस्ट यूपी में किसान आंदोलन के बावजूद भी "मुस्लिम भय" उठाया व् उसके चलते इनसे नाराज होते हुए भी कुछ किसान बीजेपी को ही वोट दे गए; यह यही हरयाणा में करने वाले हैं , ऐन इलेक्शन के वक्त इस भूत को फिर भुनाने की कोशिश करेंगे| इससे निबटने के लिए लोगों की नब्ज टटोल के रखना होगा उनको मानसिक तौर पर उनके रोजगार-महंगाई-भलाई-हित-हितार्थ के मुद्दों से खिसक के इस नफरत की लाइन पे जा के वोट करने से रोकना होगा; जो बीजेपी ने भुनानी ही भुनानी है| असर कितना करेगी, कांग्रेस की सजगता व् ग्राउंड वर्क पर निर्भर करेगा|

फूल मलिक

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