Thursday 21 December 2023

साक्षी मलिक बेबे वाली समस्या हो या उपराष्ट्रपति वाली बात हो!

यह दोनों ही तरह की समस्याएं तब हल होंगी जब जिस culture-kinship से यह दोनों आते हैं, वह कल्चर-किनशिप, इसके सबसे वृद्ध-समृद्ध 'Folk-culture' को अपने पुरखों की भांति 'Organized Culture' पर फिर से upgrade नहीं करेगी; इसके 'Folk-religion' को ही फिर से 'Organized religion' नहीं बनाएगी| यह कल्चर-किनशिप ऐतिहासिक तौर पर सबसे organized रही है, परन्तु इसके अपने लोगों के इन दोनों कार्यों पर इनके पुरखों की भांति निरंतर सरजोड़ करते रहने की परम्परा के विखंडित कर दिए जाने से या खुद की ही अति-उदारवादिता के आगे कर दी गई अनदेखियों से विखंडित होने दिए जाने से, एक ऐतिहासिक तौर पर सबसे socially professional कल्चर-किनशिप आज सबसे unorganized अवस्था में आई हुई है| 


हमारे जैसे कुछ लोग इसको फिर से दुरुस्त करने में शांतचित से लगे तो हुए हैं; परन्तु यह रास्ते अति-गहन व् अति-धैर्य से चलने वाले होते हैं, इसलिए काफी दुष्कर व् तप से भरे होते हैं| तो धैर्य धार मेरी बाहण, हम मुड़ेंगे जरूर; उसी पुरखों वाली अनख व् ठनक के साथ; जिसने इस सप्ताब की धरती को सबसे समृद्ध व् खुशहाल धरती बनाया है| 


आज जो इस धरती पर दावे ठोंकने चले आए हैं, वह तेरे पुरखों की मेहनत के निखार की रौनक के लुटेरे हैं; इसके पोषक नहीं| पोषक होते तो यहाँ की मिटटी के मिजाज को समझ कर चलते| बस इतना सा कर बेबे, तेरी पहलवान लॉबी का सरजोड़ करने का मिशन बना ले अब जिंदगी का, फुल-टाइम ना सही तो पार्ट-टाइम ही सही; व् उनको अपनी पुरख कल्चर-किनशिप पर वापिस जोड़ती जा| यही वह रास्ता है जो तेरी दुखी आत्मा को वह राह देगा; जिसकी अनख में तू इन वर्णवादी भेड़ियों से जा टकराई| 


जब किसी कौम के सबसे नाउम्मीद लोग ही उस कौम के मसीहा उछाले जाने लगें, व् बावजूद इसके उछाले जाने लगें कि खुद कौम ही उनको ऐसा ना मानती हो तो समझ लेना इसी को "किसी कल्चर-किनशिप-कौम-समाज के उल्टे लगना कहते हैं"| कम कहे में ज्यादा समझना; क्योंकि मैं अपनी ही कल्चर-किनशिप के व्यक्ति के क्रिटिक में न्यूनतम संदेश देने जितनी ही ड्योढ़ी छूता हूँ| 


जय यौधेय! - फूल मलिक

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