कुछ दिन पूर्व अध्यक्ष अनुराग दलाल ने पंजाब यूनिवर्सिटी का नाम बदलने का प्रस्ताव डाला था उसके बाद विरोध होने से से ये प्रस्ताव वापिस भी ले लिया था । सुनने में आ रहा है नाम बदलने का समर्थन दीपेंद्र हुड्डा ने भी किया था , पता नहीं ये बात सत्य है या नही । पर मैं हैरान हूं अनुराग दलाल की नॉलेज पर की अध्यक्ष तो बन गए पर अपनी ही यूनिवर्सिटी के इतिहास के बारे में नही पता ।
पंजाब यूनिवर्सिटी की स्थापना चंडीगढ़ में नही हुई थी और जब स्थापना हुई थी उस वक़्त चंडीगढ़ नाम का कोई शहर था ही और ना ही ये राजधानी थी । पंजाब यूनिवर्सिटी कि स्थापना 1882 में पंजाब की राजधानी लाहौर में हुई थी और ये भारत की बहुत बड़ी यूनिवर्सिटी थी । 1947 में जब पंजाब का बटवारा हुआ तो जिस तरह हर चीज का बटवारा हुआ उसी तरह शिक्षण संस्थानों का भी बटवारा हुआ , सभी रिकॉर्ड बांटे गए । बटवारे के ठीक बाद पंजाब यूनिवर्सिटी जो लौहार से आधी बंट कर आई थी वो सोलन में शिफ्ट की गई और जब पंजाब की राजधानी के रूप में चंडीगढ़ को बसाया गया तो पंजाब यूनिवर्सिटी को चंडीगढ़ शिफ्ट किया गया।
खाली पंजाब यूनिवर्सिटी बंटवारे के बाद शिफ्ट नही हुई बल्कि और भी कई शिक्षण संस्थान शिफ्ट हुए । आप ने करनाल और दिल्ली का दयाल सिंह कॉलेज का नाम सुना ही होगा ?? ये सरदार दयाल सिंह मजीठिया दुवारा शिक्षा के लिए लिये गए कार्यो की विरासत है । दयाल सिंह कॉलेज की स्थापना भी 1910 के आसपास लाहौर में हुई थी और बटवारे के बाद जो ईधर विरासत आई उसी में ये दयाल सिंह कॉलज भी शिफ्ट हुआ था । जलन्धर का लायलपुर खालसा कॉलेज का नाम तकरीबन हर युवक ने सुना ही हुआ है । अब ये हैं तो जलंधर में पर इस मे कभी सोचा नाम मे लायलपुर क्यू है ? लायलपुर शहर 1947 में पाकिस्तान के हिस्से आया था जिसका नाम बदल कर फैसलाबाद कर दिया था । इसी लायलपुर मे खालसा स्कूल की शुरुआत हुई थी और जिसे बाद में अपग्रेड कर के खालसा कॉलेज लायलपुर बना दिया गया था । इसे भी 1947 के बाद जालंधर शिफ्ट किया गया था ।
राजनेताओं को सोचना चाहिए की राजनीति जैसे मर्जी कर लो मगर किसी चीज का नाम बदल कर आप उसका अस्तित्व मिटाने का घोर पाप कर रहे हो । अब ये नाम शुरुआत से ही है इन्ही बदला जाना ठीक वैसे ही है जैसे हम अपने बाप दादा का नाम बदल रहे है । आजकल के बच्चे पढ़ते तो कम है राजनीति के चक्कर ये बाते करने लगते है ।
Palvinder Khaira
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