खाप लैंड के लगभग हर गांव में दादा खेड़ा मिलेगा जो कि उस गांव की मुढ्ढी गाडने वाले यानी कि गांव को बसाने वाले हमारे पूर्वज तथा अभी तक हमारे जितने भी पूर्वज हुए हैं वो सब मृत्यु के बाद दादा खेड़ा में समाहित हो जाते हैं उन सबका सामुहिक स्वरूप होता है । शुरू से ही इसका स्वरूप बहुत साधारण रहा है । इसमें सफेद रंग होता है और सफेद ही इस पे चादरा चढ़ता है । इस के अलावा इस पर ना तो कोई घंटी लगी होती है , ना कोई दान पात्र होता है, ना इस पर कोई चढ़ावा चढ़ाया जाता है और न ही इसकी फेरी लगाई जाती है जो कि इसको मंदिरों से अलग दिखाती है। सभी जाति धर्म कि औरतें बिना किसी भेद भाव के रविवार के दिन इस पर धोक लगाती हैं या फिर जिसके घर में भैंस या गाय ब्या जाती है या कोई दुधारू पशु लेकर आता है तो एक कुल्ली में थोड़ा सा दुध इस पर चढ़ाती हैं । यही इसका वास्तविक स्वरूप है जिसको हमारे पूर्वज ऐसे का ऐसे ही बरकरार रखे हुए थे जिसका मकसद था कि हम सब फालतू के पाखंडों से दूर रहें और अपने कामों में लगे रहें ।
लेकिन पिछले कुछ वर्षों में लगभग हर गांव में दादा खेड़ा के नाम पर कमेटी बन गई हैं जो कि या तो अज्ञानता वश या किसी के गुप्त एजेंडे के चक्कर में फंसकर दादा खेड़ा के जिर्णोद्धार के नाम पर उसके वास्तविक स्वरूप को बदलने पर तुले हुए हैं और अगर इनको रोका या समझाया नहीं गया तो ये कुछ दिन में दादा खेड़ा को मंदिर बना के ही छोड़ेंगे। पहले उसपे घंटी लगाएंगे, फिर उसकी फेरी लगवानी शुरू करेंगे और फिर उसको उंचा करने के नाम पर उसके उपर ही मंदिर बनवा देंगे। दिल्ली में कयी जगह ऐसा हो चुका है ।
इसलिए समय रहते सचेत हो जाओ और ये देखो कि आपके गांव में दादा खेड़ा के स्वरूप में क्या बदलाव किए जा रहे हैं । मैं तो ऐसे भोले भाले लोगों से यही कहना चाहता हूं कि हमारे पुरखे बेवकूफ नहीं थे जो वो आजतक उसको वैसे का वैसा ही स्वरूप बरकरार रखे हुए हैं। लगभग हर गांव में दादा खेड़ा के नाम पर बनी हुई कमेटियों से अपील है कि अगर आपको गांव कि और दादा खेड़े कि जिर्णोद्धार कि थोड़ी सी भी चिंता है तो आप जो भी पैसे दादा खेड़ा के नाम पर इकट्ठा करो उससे दादा खेड़ा के नाम पर गांव में एक लाईब्रेरी बनवा दो और बच्चों को सुविधा उपलब्ध करवा दो और उन्हीं में से कुछ पैसे से प्रसाद के तौर पर खीर बनवाकर खिला दो फिर देखो गांव और दादा खेड़ा कैसे खुश हो जाएंगे। ये मेरे निजी विचार हैं और हो सकता है मैं ग़लत हूं। जिस भी गांव के लोग मुझसे जुड़े हैं वो इस पर ध्यान जरूर रखना।
धन्यवाद। - Post by Wazir Singh Dhull
No comments:
Post a Comment