Sunday, 24 August 2025

दीनबंधु चौधरी छोटूराम ने दलितों के लिए क्या किया?

आइडेंटी पॉलिटिक्स के तगाजे और अपनी संकुचित सोच के चलते हमने महापुरुषों को एक जाति से बांधने का गुनाह करते हैं, हमने दीनबंधु चौधरी छोटूराम के साथ भी यही किया लेकिन अगर आप बहुत गहराई से अध्ययन करेंगे तो चौधरी छोटूराम असल में तमाम कमेरे वर्ग के प्रतिनिधि थे और अपना जीवन उन्हीं के नाम आहुत कर दिया। जब कुछ मूर्खों को चौधरी छोटूराम पर ही सवाल उठाते देखता हूं तो ये लाइन याद आ जाती है। 


जुगनूओं ने शराब पी ली है अब ये सूरज को गालियाँ देंगे । 


आइए आज चौधरी छोटूराम के अनुसूचित समाज के लिए किए गए कामों पर ही बात करते हैं। 13 अप्रैल, 1938 को पंजाब के कृषि मंत्री के रूप में चौधरी छोटूराम ने पंजाब के मुल्तान जिले की खाली पड़ी 4 लाख 54 हजार 625 एकड़ सरकारी कृषि-भूमि दलितों को 3 रुपये प्रति एकड़, जो 12 वर्षों में बिना ब्याज चार आने प्रति वर्ष किस्तों पर चुकाने की शर्त पर आवंटित की और भूमिहीन दलितों को भू-स्वामी बनाया। आज ये जमीन यहां के दलित किसानों के जीवन का आधार बनी हुई है।


चौधरी छोटूराम ने यह भी कहा कि 'दलित' शब्द को समाप्त करना जरुरी है, नहीं तो शोषित वर्ग समाज में बराबरी नहीं कर सकता। इसीलिए, 1 जुलाई, 1940 को चौधरी साहब ने 'छुआछात बुराई कानून' बनाकर इसे शक्ति से लागू करवाया।


छुआछूत-उन्मूलन के लिए चौधरी साहब ने एक कानून-पत्र जारी किया, जिसके अनुसार सभी सार्वजनिक कुएं सारी जातियों के लिए खोल दिए गए। इससे दलितों को वह कानूनी अधिकार मिल गया, जिससे वे सदियों से वंचित थे।


जाति-पाति के दुष्टचक्र को समाप्त करने के लिए बनाए गए इस ऐतिहासिक कानून के बाद भी कई गांवों में अज्ञानी और जातीय दंभ में लोगों ने दलितों को अपने कुओं पर चढ़ने से रोका, तो स्वयं चौधरी छोटूराम वहां गए और अपना हाथ पकडाकर दलितों को कुओं पर चढ़ाया तथा घड़ों में पानी भरवाकर खुद पानी से भरे घड़ों को उठवाया। इन घड़ों को खुद दलित महिलाओं के सिरों पर रखवा कर उनका मान-सम्मान बढ़ाया।


इसके अतिरिक्त, सरकारी आदेश जारी कर दिए कि कोई भी अधिकारी किसी दलित या पिछड़ी जाति के व्यक्ति से किसी प्रकार की बेगार नहीं लेगा, सरकारी दौरे पर किसी दलित से अपना सामान नहीं उठवाएगा। इस आदेश में यह भी हिदायत दी गई कि बेगार लेना कानूनी जुर्म है। इंसान की बेकद्री है।


दलितोद्धार के इन कानूनों के बाद दलित वर्ग के लोगों ने ही चौधरी छोटूराम को 'दीनबंधु' की उपाधि दी और उनका 'दीनबंधु' नामकरण करके दलितों ने उन्हें हाथी पर बैठाकर ढोल-नगाड़ों से जुलूस निकाला। इस जुलूस के बाद भारी जलसा किया गया। इस प्रकार, चौधरी छोटूराम का नाम 'दीनबंधु छोटूराम' हुआ।


कल आपके साथ चौधरी छोटूराम के OBC वर्ग पर उत्थान के लिए कामों पर चर्चा करेंगे। 


साभार: दीनबंधु छोटूराम की जीवन, लेखक: पदमश्री डॉ संतराम देशवाल

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