Thursday, 28 August 2025

आभीर (ग्वाला/अहीर) वर्ग से संस्कृत धर्म ग्रंथों के लेखकों को इतनी नफ़रत क्यों है?

1. मनुस्मृति चैप्टर 10, श्लोक 15 में आभीर को ब्राह्मण से वैश्या में उत्पन्न कन्या के पुत्र यानी वर्णसंकर बताया गया है ज़बकी उसी मनुस्मृति में वर्णसंकर संतानों को अत्यंत नीच कहा गया है।

2. इसी चैप्टर 10 के 92 श्लोक में दूध बेचने वाला 3 दिन में शूद्र हो जाता है कहकर दुध के व्यापार को नीचा दिखाया गया है शूद्र को तो ये मूर्ख और नीच कहते ही आये है।

3. नीचा दिखाने की होड़ में वाल्मीकि रामायण कैसे पीछे रहे वो भी युद्धकांड के 22 वे सर्ग में समुन्द्र को ब्राह्मण बना तथाकथित क्षत्रिय राम के हाथो आभीरो को मरवा डालता है यह कहते हुए की वो सबसे ज़्यादा पापी और लुटेरे होते है उनके जल छूने मात्र से समुन्द्र अपवित्र हो जाता है।
4. व्यासमृति में अन्य जातियो के साथ साथ ग्वाला को भी अंतयज़ यानी शूद्र से नीच बताया गया है।
5. तुलसी डूबे कैसे पीछे रहता उसने भी रामचरित मानस में आभीर भाईयो को नहीं बख़्शा।

अब अगर किसी को आभीर शब्द पर कन्फ़्यूशन हो तो संस्कृत की टॉप डिक्शनरी संस्कृत हिन्दी शब्दकोश by वामन शिवराय आप्टे का रिफरेन्स के साथ शेयर कर रहा हूँ आप ख़ुद पढ़िए। और अन्य धर्मग्रंथों में जहाँ कही आपको लगता है की नीचा दिखाया गया है उसे भी शेयर करे।

जातिवाद हटाना है तो जातिवाद की जड़े पहचानना ज़रूरी है।













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