Friday, 19 September 2025

सर छोटूराम ने अक्टूबर 1912 में रोहतक रोहतक में प्रैक्टिस शुरू की।

 सर छोटूराम ने अक्टूबर 1912 में रोहतक रोहतक में प्रैक्टिस शुरू की । रोहतक में इनसे पहले चौधरी रामचंद , चौधरी नवल सिंह और चौधरी लालचंद ये तीन जाट और वकालत करते थे और चौथे चौधरी छोटूराम थे जो देहाती अथवा ज़मींदार वर्ग से विशेष प्रेम रखते थे । सबसे पहले 1901 में चौधरी नवल सिंह ने रोहतक में वकालत की , चौधरी लालचंद ने जुलाई 1912 । चौधरी रामचन्द्र भी दिल्ली से प्रैक्टिस छोड़कर रोहतक में आए थे ।

चौधरी नवल सिंह के वकालत का काम शुरू करते ही ग़ैर ज़मींदार वकीलों में सनसनी फैल गई । उन्होंने उनके मार्ग में भाँति-भाँति की बाधाएँ खड़ी करनी शुरू की । जब ये चार जाट वक़ील इकट्ठा हो गए तब तो बक़ायदा विरोध सक्रिय हो गया । उन्होंने एक ओर तो मुवक्किलों को यह बहकाया कि जाट वकालत के काम के अयोग्य हैं , दूसरी ओर हाकिमों को भी , जिनके साथ इनके गहरे ताल्लुकात बने हुए थे , भड़काने की कोशिशें की । वक़ील लोग तो फिर भी शिष्टाचार की सीमा में ही रहकर विरोध करते थे , परंतु इनके मुंशीयो ने तो बहुत ही अनुचित तरीक़ों से विरोध का आंदोलन चलाया ।

चौधरी छोटूराम भी वैसे तो वक़ील ही थे पर चूँकि उनके हर काम के साथ उद्देश्य बँधा रहता था इसलिए वे जहाँ जाते लोगों की निगाहों में आ ही जाते । यहाँ रोहतक में आने पर भी उनका अनोखपन फूट ही पड़ा जो उनके व्यक्तित्व में ओतप्रोत था ।

उन दिनों वक़ील लोग अपने को हाकिमों जैसा ही समझते थे । हाकिमों और वकीलों की एक सॉसाययटी सी बनी हुई थी । गवर्नर , मिनिस्टर और कमिश्नरों के आगमन पर उनके सम्मान में किए जाने वाले भोज और समारोह में प्रायः वकीलों को ही आमंत्रित किया जाता था । स्थानीय सरकारी अधिकारी सलाह-मशविरों में भी उन्हें आमंत्रित करते थे । इस प्रकार वकीलों का ऐसा दिमाग़ बन गया था कि वे शेष जनता से और ख़ास तौर से देहातियों से अपने को बहुत ऊँचा समझते थे । इसलिए वे देहातियों और उनमें भी ज़मींदारों के साथ तनिक भी मानवीय व्यवहार नहीं करते थे । उन्हें बैठने के लिए कुर्सी-मूढ़े न देते थे ।

हमारे ये चार वक़ील भी उसी ज़मींदार समाज में पैदा हुए थे । किंतु उनमें चौधरी लालचंद जी का घराना पहले से सम्पन्न था और वे तहसीलदार भी रह चुके थे । इसलिए उनका भी मन वैसा ही बन चुका था जैसा अन्य शहरी वकीलों का था । चौधरी रामचन्द्र और नवल सिंह ढील-मिल से आदमी थे । चौधरी छोटूराम का अपने मुवक्किलों के साथ व्यवहार प्रचलित व्यवहार से एकदम विपरीत था । यह व्यवहार कोई क्रांति तो नहीं था किंतु रूढ़िवादियों को मामूली ढंग से सुधार भी अप्रिय लगता है और वे प्रत्येक नए सुधार से बिदक उठते है । यही अवस्था रोहतक के शहरी वकीलों की हुई । उनमें एक ख़ासी हलचल मच गई । कोई कहता ज़ाहिल देहातियों के दिमाग़ ख़राब कर रहा है । कोई कहता वह भी इन्हीं गवारों से आया है , कोई-कोई और भी आगे जाते और कहते कि एक दिन यह हमारे रुतबे को ही इन देहातियों के हाथ मिट्टी में मिला देगा । एक दिन ऐसा हुआ कि चौधरी साहब अपने गाँव के बड़े-बूढ़े लोगों के कहने पर जोकि किसी मुक़दमे के सिलसिले में कचहरियों पर आए थे , उनके साथ उन्हीं की बिछाई चादर पर बैठ गए और उनके साथ हुक्का पीने लग गए । इससे देखने वाले वक़ील तिलमिला उठें और उन्होंने चौधरी रामचन्द्र और मिस्टर बिसिया इन दो वकीलों को चौधरी छोटूराम को समझाने के लिए नियुक्त किया ।

चौधरी छोटूराम के पास जाकर दोनों प्रतिनिधि वक़ील बोले - चौधरी जी ! वकीलों का जो स्तर है आप उसे गिराएँ नहीं । ज़मीन पर ही देहातियों के साथ बैठ जाना और उनके हुक्के को गुड-ग़ुड़ाना तथा कभी-कभी एक देहाती को मूढ़े पर बैठा दिया ख़ुद उनके पास खड़ा होना , उचित नहीं है । और बिसिया साहब की इन बातों का समर्थन किया चौधरी रामचन्द्र जी ने । चौधरी रामचन्द्र जी को छोटूराम जी ने यह कहकर चुप कर दिया कि आप से तो बातें चाहे जब हो जाएँगी । बिसिया साहब को उन्होंने जवाब दिया - मुझे आश्चर्य है कि मज़दूर मालिक से अपने आपको ऊँचा मानता है ? मुवक्किल की अपेक्षा और भोलेपन से आप लोग नाजायज़ लाभ उठाते हैं । जिससे हम मुँह माँगी मज़दूरी लेते हैं उसके साथ अच्छा व्यवहार भी न करें और उसे अनादर का पात्र समझें , क्या यह अन्याय और अनर्थ नहीं है ? दूसरे आपका यह कहना कि मैं उनके साथ हुक्का पीता हूँ । हुक्का पीने की मुझे आदत है और हुक्का जब उनके साथ न पिऊँ जो मेरी जाति के हैं , गोत के हैं और समान समाज के हैं , तो किन के साथ पिऊ ? आप में जो कायस्थ हैं वे कायस्थों के साथ हुक्का पीते हैं और जो ब्राह्मण-बनिए हैं वे ब्राह्मण - बनियों के साथ हुक्का पीते हैं । मैं जाट हूँ तो जाटों के साथ हुक्का पीऊँगा मैं तो चाहता हूँ कि सबका हुक्का-पानी एक हो ; किंतु आप लोग तो बहुत ऊँचे मीनारों पर चढ़े बैठे हो । हाँ , अगर आप चाहते कि हुक्का पीने की आदत अच्छी नहीं है तो मैं समझता बात उचित है । चौधरी साहब की इन बातों का उनके पास क्या उत्तर हो सकता था ? दोनों प्रतिनिधि अपना सा मुँह लेकर चले गए और उन्होंने सभी वकीलों को उनकी ये स्पष्ट बातें कह दी ।

वकीलों ने समझ लिया कि जहाँ यह शख़्स क़ाबिल है वहाँ सिद्धांती भी है । वह निरी वकालत का ही उद्देश्य नहीं रखता है इसके इरादे में अपनी बिरादरी और हमपेशा लोगों को ऊँचा उठाने का प्रोग्राम भी शामिल है ।

#यूनियनिस्ट विक्की डबास -

#JaiYodddhey

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