Sunday, 28 September 2025

"हरयाणवी-साँझी" मनाने का पुरखाई-तरीका ऐसा अद्भुत रहा है कि हरयाणवी इसकी सीखों से बाकियों को तीज-त्यौहार पे नाम पर कूड़ा-कचरा कैसे मैनेज किया जाता है; वह सीखा सकते हैं; परन्तु!

 *"हरयाणवी-साँझी" मनाने का पुरखाई-तरीका ऐसा अद्भुत रहा है कि हरयाणवी इसकी सीखों से बाकियों को तीज-त्यौहार पे नाम पर कूड़ा-कचरा कैसे मैनेज किया जाता है; वह सीखा सकते हैं; परन्तु:*


परन्तु यह कि पहले तो खुद ऐसे लोगों को फॉलो करना बंद करो, जो तीज-त्यौहार के नाम पर नदी-नालों-गलियों में कचरा छोड़ना-फेंकना अपना धर्म व् कल्चर मानते हैं| 

अब बात "हरयाणवी-साँझी" मनाने का पुखराई तरीका: 

1) - बहते पानी में कभी भी हमारे पुरखे (1990-2000 तक को हमने खुद उनसे ही सीखा है) कचरा नहीं फेंकते थे और ना ही फेंकने देते थे!

2) सांझी उतार के जो कूड़ा होता था, उसमें गीला कूड़ा अलग व् सूखा अलग; दोनों को फेंकने की अलग कुरड़ियाँ होती थी!

3) - सांझी बहाने के लिए कभी गाम की फिरनी से बाहर जाना अलाउड नहीं था; गाम के जोहड़ों में ही सांझी तैराई जाती थी व् सुबह सबसे पहले जोहड़ों से ठीकरे-काकर-गत्ते-कागत जो भी होता था; लड़के तैर-तैर के उसको किनारे लाते व् जोहड़ों को साफ़ करते/रखते| 

4) - उनका थीम सिंपल था, त्यौहार तुम्हारा कचरा तुम्हारा प्रकृति तुम्हारी तो उसको साफ़ भी तुम ही रखोगे; स्वच्छता से मनाओगे| 

5) - हरयाणा में आज भी बहुतेरी जगह ऐसे ही सांझी मनाई जाती है| 


और हाँ, "हरयाणवी-सांझी" ब्याह के दस दिन बाद जिंदगी कैसी होगी, उसकी कल्चरल-नॉलेज व् टूम-ठेकरी के नाम-प्रकार बताने की वर्कशॉप रही है हरयाणवी कल्चर में", कहीं इसको कहीं और जोड़े टूल रहे हों!


और अगर ऐसा नहीं होता था तो जिसको संदेह हो वह आज जो 30 साल से ऊपर के सदस्य आपके घर-पड़ोस में हैं; उनसे पूछ लो!


ऐसे में हरयाणवी लोग, यहाँ आए माइग्रेंट्स को यह चीजें सीखा सकते हैं; व् इनको बेअक्लों को अक्ल दे सकते हैं कि त्यौहार मनाने हैं, समाज की साँस नहीं घोंटनी, कान नहीं फोड़ने!


उदारता व् बाहर से आए को अपनाने के नाम पर जरूरी नहीं कि उनकी कचरा सोच व् कचरा आदतें भी अपनाई जाएं; वरन उनपे उनको सीखा के, समझा के और इससे भी ना मानें तो जलील करके, उनकी बदबुद्धि की औकात दिखा के उनको अपने कलचर में आपके कल्चर की शुद्धता दिखाओ, जिम्मेदारी दिखाओ; यह नहीं कि उनके गोबर-मूत्र कल्चर में खुद समाहित होते जाओ; ताकि कल को वह तुम्हें बैठे-बिठाए 'कंधे से नीचे मजबूत, व् ऊपर कमजोर के ताने दे-दे, (वैसे कहने वाला इसमें खुद ही स्वीकार कर रहा है कि वह कंधे से नीचे कमजोर है) यह जाहिर सा करते दिखें कि तुम्हें सभ्यता उन्होंने सिखाई! Learning व् Unlearning का बैलेंस रखो; वरना अच्छी-खासी सभ्यता के पिछोके से होते हुए भी "वैचारिक वर्णशंकर" बन के हंसी के पात्र मात्र रह जाओगे!


जय यौधेय! - फूल मलिक

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