दादा-नाना से जब भी सामाजिकता बारे जिक्र हुए, इस पहलू पर हमेशा यही सुना-सीखा कि मुसीबत में फंडी व् मुस्लिम में मुस्लिम साथ खड़ा हो जाएगा परन्तु फंडी नहीं; चाहे तुम्हारे ऊपर मौत ही क्यों ना आन खड़ी होवे! मुस्लिम जहाँ मदद को दौड़ेगा; फंडी गिद्ध की भांति नजर गड़ाए खड़ा देखेगा कि कब मरा व् इसका बचा-खुचा मैंने कब्जाया; इस स्तर का नीच व् चांडाल होता है फंडी! सर छोटूराम के काल से जो यह लिगेसी बनी थी, उसको संभाले रखना; यही संदेश रहे उनके, चाहे परोक्ष रूप से कहे या प्रत्यक्ष!
देखो जरा मेवात से ले मुज़फ्फरनगर तक के गामों से मुस्लिम भाईयों के हजूम-के-हजूम कैसे जोश से पंजाब बाढ़ पीड़ितों के लिए रशद के लश्कर-रिसाले ले के पहुंच रहे हैं! ऐसा हुळीया सा चढ़ा आता है इनकी मदद का कि कई बार सोचने लगता हूँ कि पंजाब की मदद में जाट-जट्ट अभी तक ज्यादा पड़े, अन्य साथी बिरादरियां या मेव-मुस्लिम भाई!
कोई कह रहा है यह किसान आंदोलन का असर है, कोई कह रहा है यह जुलाई 2023 में जो जाट व् खापें मेवात के पक्ष में फंडियों को छिंटक, फंडियों के आगे दीवार बन के उतरी उसका असर है; परन्तु जिसका भी असर है, है बहुत सुखद व् आत्मीय!
फंडी कौन होता है: धर्म-जाति के नाम पे आपको अपना कह के फंड-पाखंड रच के तुम्हारा ब्रैनवॉश कर तुम्हें मानसिक व् आर्थिक तौर पर पंगु व् गुलाम बनाने की सोच रखने वाला; चाहे जिस किसी बिरादरी से आता हो! जैसे आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता; ऐसे ही इसकी भी कोई जाति नहीं होती!
जय यौधेय! - फूल मलिक
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