Tuesday, 9 September 2025

बाढ़ तो हर साल बिहार-बंगाल-झारखंड-ओडिसा में भी आती है; परन्तु वहां तो नहीं देखे मदद करने को ऐसे टूट के पड़ने वाले कभी, जैसे यहाँ पंजाब में देखे?

कल एक सवाल देखा था: बाढ़ तो हर साल बिहार-बंगाल-झारखंड-ओडिसा में भी आती है; परन्तु वहां तो नहीं देखे मदद करने को ऐसे टूट के पड़ने वाले कभी, जैसे यहाँ पंजाब में देखे?


जवाव: सामंती बनाम उदारवादी जमींदारी में छिपा है! सामंती वर्णवाद पर खड़ी की गई व्यवस्था है, जबकि उदारवादी जमींदारी सीरी-साझी वर्किंग व् किसानी-जजमानी कल्चर पर खड़ी हुई हैं? कभी सुने हैं क्या ये सीरी-साझी व् किसानी-जजमानी वर्किंग कल्चर शब्द बिहार-बंगाल-झारखंड-ओडिसा इन राज्यों में? बस यही वजह है कि वहां हर साल बाढ़ चढ़ने का पता होते हुए भी कभी इंतज़ामात क्यों ना हुए और पंजाब के साथ जहाँ-जहाँ तक (हरयाणा-वेस्ट यूपी, दिल्ली, उत्तरी राजस्थान) उदारवादी जमींदारी है वहां से बाढ़ सहायता की सुनामी क्यों उठी हुई है!


यह वर्किंग कल्चर ही बासिंदों की ऐसी साईकी (psyche) बनाता है कि किसी को कहने की जरूरत ही नहीं, बंदे खुद ही उठ चलते हैं जो बने वह सहायत ले कर| 


सप्ताब (पंजाब-हरयाणा-वेस्ट यूपी-दिल्ली-उत्तरी राजस्थान यानि मिसललैंड + खापलैंड) बेल्ट्स में भी जिनको उदारवादी जमींदारी व् सामंती जमींदारी के वर्किंग कल्चर का नहीं पता; वह पता करें; भेद स्वत: समझ आ जाएगा| बस इतना बता दूँ कि यह उदारवादी जमींदारा कल्चर या तो सप्ताब में मिलता है या यूरोप के देशों में; ऐसी ग्लोबल psyche है यह!


जय यौधेय! - फूल मलिक

No comments: