Tuesday, 2 September 2025

SYL के भूतो, इस फ्यूज्ड मुद्दे के टेस्टिंग टूल मत बना करो!

पहली बात, यह आ भी गई तो ऐसी "मोरी-बंद" आएगी कि इसका 80-90% पानी एनसीआर (दिल्ली-गुड़गामा-फरीदाबाद) की वेलफेयर सोसाइटी वालों को, इंडस्ट्री वालों को व् बहुत सा इन्हीं शहरी क्षेत्रों का धरती का वाटर-लेवल सुधारने के नाम पे शहरी-धरती में डाल-डाल के बर्बाद कर दिया जाया करेगा; और बचा हुआ 10-20% यमुना में जा के गेर दिया जाएगा; थारे पल्ले आवेगी खाली इसकी पाछली धार; वह भी नाम-मात्र तुम्हें बहलाने को! इसलिए इसका जिसको असली फायदा होना है, यह भूत उनके लिए छोड़ दो, यानि एनसीआर के शहरियों के लिए! वहां बवाल काटो व् उनको निकालो बाहर कि लाएं खोद के इसको!


ऐसी बोळी-ख्यल्लो हैं ये इस मुद्दे को उठाने वाले, 99% को तो यही ना पता मिले कि "मोरी-बंद" क्या बला होवै! 


खैर, चाहे किसी के गाम-खेतों की दशकों की सेम ना गई हो आज तक भी, उन्नें भी टेस्ट करने लग जाते हैं कि SYL चाहिए? आहो चाहिए, पर उन गामां की सेम उतारने वाली चाहिए!


सबसे बड़ी बात, यह शुद्ध पावर-पॉलिटिक्स का मुद्दा है, तमाम नेताओं-पार्टियों के लिए; असलियत में यह आनी होती तो हर किसी की स्टेट-सेण्टर दोनों जगह कई-कई सरकारें आई और गई और अभी चल भी रही है| तुम्हें क्या लगता है इतना सब कुछ हाथ में होते हुए भी, यह मुद्दा पब्लिक के लिए कुछ करने का बचता है क्या? सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर्स तक आए पड़े हैं; तो इतना सब होने के बाद भी इसको तुम खोद के लाओगे या कोर्ट-कानून-सरकार को लाना है? और हरयाणा-पंजाब का बच्चा-बच्चा इस बारे जान चुका है, वह भी उन एरियाज का जहाँ तुम इसके जरिए कुछ रस चाहते हो कि यह भिड़ें और तुम्हें रस आवे! कोनी रह रह्या इस तिल में तेल!


आखिरी बात, किसान आंदोलन के वक्त ही इसको टेस्ट कर-कर बावले हो लिए थम; तभी इसकी फूंक लिकड़ गई थी और थम इसको अब बाढ़ के वक्त टेस्ट करने चले हो; आराम दो कुछ अपने सड़ांधले दिमाग व् सोच को! यह हरयाणा-पंजाब तो यूँ ही आपस में मदद करेंगे, व् एक कठ हुए चलेंगे!


जय यौधेय! - फूल मलिक

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