क्या भसड़ मचा के डाल दी है; खुद को कैसे वर्णशंकर साबित करने पे लगा हुआ है; होती जो इनकी माँ एक ही बिरादरी की तो इसके मुंह पे पहला रैह्पटा वही मारती! अब वाली जो माँ हैं, वो भी तो मार सकती हैं; आखिर वो क्यों नहीं डांट रही इसको? घर के सदस्यों में कोई मनमुटाव हैं तो इसका मतलब यह थोड़े ही होता होगा कि तुम अपनी जात-बिरादरी छोड़ के, किसी के दत्तक कहलाने को फिरो? तो क्या इसका मतलब यह मान लिया जाए कि माँ इतनी दूर जा चुकी अपने ससुर, दादा-ससुरों के कीर्तिमानों की आभा व् कांतियों से कि उनको यह तक नहीं दीखता कि उनका बिगड़ैल किधर ले के जाना चाहता है; खाप-परम्परा से उठ के बनी इस रियासत के गौरव को?
किसी से द्वेष व् मान-अपमान नहीं है यहाँ, बात उस स्वाभिमान की है जिसके चलते सरदार पटेल तक ने पूरी 565 रियासतों में से सिर्फ इसी रियासत का खुद का झंडा यह कहते हुए नहीं उतरवाया था कि, 'यह जाट रियासत अकेली ऐसी रियासत है पूरे भारत की जिसको ना मुग़ल जीत सके, ना अंग्रेज (और ना कोई और); तो जब इसका झंडा वही नहीं उतार सके तो ऐसे स्वाभिमान को चिरकाल के लिए प्रसस्त रखा जाए|
इस नादाँ को समझाया जाए कि तुझे शौक है कहीं और जा के किसी की दत्तक औलाद बनने या कहलवाने का तो शौक से जा; परन्तु इस रियासत को अपनी बपौती मत समझ; जिन पुरखों ने यह खड़ी की थी, वह शुद्ध खाप-खेड़ा-खेत कल्चर के लोग रहे हैं; यह चीज समझ ले अच्छे से| वरना भरतपुर का नाम तो यूँ ही चलेगा; परन्तु तुझे कोई पूछने वाला भी ना होगा; ऐसे इतिहास के पन्नों से मिट जाएगा!
कोई कह रहा था, कि इस सब के पीछे भी फंडी ही हैं, क्योंकि किसी रियासत को हड़प के उसके वारिस-होल्ली-सोल्ली-पिछोके-ब्योंक बदल देने के यही तो तरीके होते हैं इनके| ब्रज व् भरतपुर वालो जरा सम्भालो मसले को, संजीदगी व् शालीनता से सम्भलता हो तो उस तरीके से अन्यथा कोई और जाब्ता सही लगे तो उससे!
जय यौधेय! - फूल मलिक
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