नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमें !!!
उनकी फिलॉसफी, दर्शन, कपड़े, टोपी, लाठी, कहां कहां से Control C और Control V करी गयी, ये तो मैं एक पूर्वर्वती पोस्ट में बता चुका हूँ।
इस सलामी का सोर्स बताना भूल गया था।
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तो दोस्तो, इस सलामी को दरअसल जोगिस्ट सलाम (Zogist Salute) कहते है।
इसे 1920 के दशक में अल्बानिया के मुस्लिम राजा, अहमद जोगू (Ahmet Zhogu) ने अविष्कार किया था।
जोगिस्ट सलाम एक सैन्य अभिवादन है। जिसमें दाहिना हाथ हृदय के पास रखा जाता है।कोहनी छाती के स्तर पर मुड़ी होती है, खुली हथेली नीचे की ओर होती है।
यह सबसे पहले जोगू की पर्सनल सिक्युरिटी वालो ने शुरू किया। इसके बाद यह रॉयल अल्बेनियाई सेना में भी यह सैल्यूट शुरु हुआ। आम अलबेनियन जनता भी सावर्जनिक स्थलों पर राजा के प्रति निष्ठा प्रदर्शन के लिए इनका उपयोग करती।
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आगे यह सलाम लैटिन अमेरिका के सैन्य बलों में, नेताओ- नागरिकों ने अपनाया। भारत मे अंग्रेजो की रॉयल सीक्रेट सर्विस (RSS) ने भी यह सैल्यूट अपना लिया।
बाद में जब उन्होंने अपना हिंदी नाम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ रखा, तो जोगिस्ट सेल्यूट को 1925 के बाद अपना लिया। इसे वे संघ प्रणाम कहते हैं।
इसका विशेष प्रयोग, शपथ ग्रहण या अभिवादन के दौरान होता है। शाखाओं में सभी सेल्फसेवक, इसी मुद्रा में "नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे..." गाकर शपथ लेते हैं।
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जोगिस्ट सलाम, आज भी अल्बानिया में लोकतन्त्र विरोधी, राजतंत्र वादियों द्वारा उपयोग किया जाता है।
RSS के संदर्भ में भी, कुछ इतिहासकारों जैसे क्रिस्टोफ जाफरलोट का मानना है कि 1920-30 के दशक में यूरोपीय राष्ट्रवादी आंदोलनों, विशेष रूप से फासीवादी संगठनों, का प्रभाव RSS की सैन्य-जैसी प्रथाओं, जैसे वर्दी, परेड और प्रणाम आदि पर पड़ा।
हालांकि RSS के समर्थक इस बात से इनकार करते हैं कि उनका प्रणाम नाजी या फासीवादी सलाम से प्रेरित है।
उनका कहना है कि यह भारतीय संस्कृति और हिंदुत्व से जुड़ा है, जो राष्ट्र के प्रति निष्ठा और सेवा का प्रतीक है।
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RSS भी इसे सनातन का हिस्सा मानता है। इस मुद्रा में, नरहरि नारायण भिड़े नामक कवि हृदय सेल्फसेवक की रचना गाई जाती है।
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