सार: जुलाई 2023 के हो सकने वाले मेवात-दंगों को रोकने के लिए जो जाट व् खापों को कोसते थे; वही फंडी आज उसी मेवात का पंजाब-हरयाणा की बाढ़ में मदद का जलवा देख के सकते में हैं! जाट-जट्ट-जट ही नहीं तमाम खाप-खेड़ा-खेत फिलॉसोफी की बिरादरियाँ जुटी खड़ी हैं, चाहे रोड़ हों, गुज्जर, यादव, दलित या ओबीसी भाईचारा!
विस्तार: फंडियों और अंधभक्तों ने इसीलिए तो मेवात व् मेवातियों को बदनाम रखा था कि इनकी अच्छाई समाज के सामने ना आ पाए, यह बदनामी ऐसे ही थी जैसे खापों को हॉनर-किलिंग के नाम पे बदनाम करके, खापों के शहरी तबके को ग्रामीण तबके से पाड़ने के टैंट्रमों की होती थी! यह तो पंजाब की बाढ़ में मेवात से टूट-के-पड़ी बाढ़-सहायता की बाढ़ ने मेवात को मानवता का सिरमौर बना के दिखाया; तब लोगों ने जाना कि क्यों वह जाट और खाप चौधरी सही थे, जो जुलाई 2023 में इन फंडियों के आगे अड़ ये मेवात जलाने के मंसूबों से उल्टे मोड़े थे! तब खापों व् जाटों को अपने मेवाती भाईयों के साथ खड़ा होने पे गालियां देने वाले उन्हीं फंडियों व् अंधभक्तों को आज काटो तो खून नहीं! और जिनका साथ नहीं देने पे यह जाट व् खापों को कोस रहे थे, जरा यह उनके एक ही दर के कुवाड़ ही खुलवा के दिखा देवें; गैर-धर्मी छोड़ो; अपने ही धर्म वालों की मदद हेतु खुलवा के दिखा दें|
खाप-खेड़ा-खेत का दर्शनशास्त्र इतना भी सहज नहीं जो तुम्हारे जैसे टटपुँजियों को इतना सरलता से पल्ले पड़ जाए; भले कितने पोथे व् स्वघोषित ज्ञान के बरोटे बांधे हांड जाओ; यह जाट-जट्ट-जट विधा इतनी आसान नहीं समझनी! वह कहावत यु ही नहीं चलती कि, "नटविधा आ जावै परन्तु जटविधा आणी ओखी"! सर छोटूराम के जमाने की वह लिगेसी जो उन्होंने पेशावर से पलवल तक जोड़ी थी; उसको आज भी कायम रखने, उसके विश्वास को दृढ रखने के इस मेवाती-अदा-ओ-अंदाज ने दुनिया लूट ली!
बाकी इस बाढ़ के काल में जाट-जट्ट-जट ही नहीं तमाम खाप-खेड़ा-खेत फिलॉसोफी की बिरादरियाँ जुटी खड़ी हैं, चाहे रोड़ हों, गुज्जर, यादव, दलित या ओबीसी भाईचारा!
जय यौधेय! - फूल मलिक
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