Tuesday, 6 September 2016

दादी कहती थी कि गीता व्यवहारिक बात नहीं करती, इन मोडडों का क्या है यह तो ठाल्ली बैठे कुछ भी लिखते हैं!

एक-आध बार जब किसी बनिए की दूकान पर ग्राहकों को लुभाने के लिए लगे पोस्टरों से गीता का कोई श्लोक पढ़ के आता था और चाव से घर में सुनाता था तो दादी डाँटते हुए कहती थी कि घरों के मसले समझा-बुझा-सुलह करके दबाये जाते हैं, उनपर महाभारत नहीं रचाये जाते| यानी अगर घर के मसले इतने बड़े होने लगें जितने गीता ने दिखाए हैं तो शायद ही कोई घर साबुत बचे| हम जाट-जमींदार हैं, हर दूसरे घर में जमीन-जायदाद के झगड़े होते हैं तो क्या इसका मतलब हमें यही काम रह गया है कि गीता की मान के कुरुक्षेत्र रचाते फिरेंगे? या हमारी पंचायतों की बजाये इन ठाल्ली-निकम्मे और नकारा मोडडों से न्याय करवाते फिरेंगे?

दादी कहती थी कि जिस दिन जाट-जमींदारों के यहां जमीनों जैसे मसले भी युद्धों से हल होने लगे तो बस लिए हमारे गाँव-नगर-खेड़े| दूर रहो इन अतिरेक से भरी किताबों से| हमारे यहां ऐसे झगड़े बढ़ाये नहीं अपितु घटाए जाते हैं| कोई किसी की बहु-बेटी को छेड़ दे या तंज कस दे तो पंचायत उसको गधे पे बैठा के काला मुंह करके पूरे गांव में घुमाती है| हो गई थी जो दुर्योधन-दुशासन से द्रोपदी को छेड़ने और गन्दा बोलने की गलती तो क्यों नहीं उठा के गधे पे घुमा दिया था दोनों को; मामला वहीँ की वहीँ दब जाता|

मैं दादी का ऐसा ताबड़तोड़ न्याय करने वाला जवाब सुनके सन्न और अवाक् रह गया था, कि क्या ऐसा भी हो सकता है| तो दादी कहती है कि यही तो अतिरेक दिखाया गया है गीता में, राह लगती बात करी नहीं; बेवजह राई का पहाड़ बना के कहानी पाथ दी|

दादी की यह लाइन उस दिन से आजतक शिक्षा बनके मेरे साथ चल रही है और तब से गीता-रामायण-महाभारत (आरएसएस के स्कूल में था पहली से दसवीं तक) को मैंने पढ़ा जरूर, परन्तु सिर्फ माइथोलॉजी मान के, वास्तविकता नहीं|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

आज उन टीचर्स को याद कर लूँ जरा जिनके साथ मेरी जूतम-पजारी हुई!

सिर्फ किस्से बताऊंगा, नाम टीचर के रेस्पेक्ट के चलते गुप्त ही रखूँगा!

1) आठवीं क्लास में ड्राइंग के मास्टर जी से लफड़ा हो गया|
2) नौवीं में सामाजिक के मास्टर जी से अकबर की मृत्यु की तारीख पे लफड़ा हो गया| वो 1604 में हुई पे अटक रहा और मैं 1605 बताता रहा| गुस्सा आया उसको सुना दी तो क्लास से नाम काट के बाहर कर दिया|
3) नौवीं क्लास के इंचार्ज से लफड़ा हुआ तो उसने नाम काट के क्लास से चलता कर दिया|
4) नौवीं क्लास में ही स्कूल के मन्दिर के आगे सामाजिक वाले ने फिर लफड़ा किया तो रगड़ना पड़ा, मंदिर में ही| ऐसे टीचर्स पर मेरा हाथ उठ जाता था जो सिलेबस का कुछ जानते नहीं थे और मंदिर के आगे चले आते थे यह सिखाने की मूर्ती को हाथ कैसे जोड़ने हैं और कैसे झुकना है| मेरी आदत नहीं थी मूर्ती को हाथ जोड़ने की, बस हाय-हेल्लो स्टाइल में हाथ मारता हुआ निकल जाता था; उस दिन इन जनाब ने पकड़ लिया तो लफड़ा हो गया| मखा आ तुझे मैं बताता हूँ, अकबर की मौत कब हुई तक तो तुझे पता नहीं, सिखाएगा मुझे कि पूजा कैसे करते हैं|
5) दसवीं क्लास में कंप्यूटर वाले को कंप्यूटर का बढ़िया सा ड्राइंग डिजाईन बना के दिया, उन्होंने उसको लिया किसी और कार्य के लिए, प्रयोग कहीं और किया तो उनसे दो-चार हो गई|
6) दसवीं क्लास के आखिरी दिन पीटीआई के पास कम्प्यूटर वाले ने शिकायत कर दी, तो करार चमाट खाया, क्योंकि वो रिश्ते में फूफा लगते थे, .......... उस दिन हमारा फुल क्लास का हाफ-डे बंक मारने का प्लान था, सब चौपट हो गया|
7) ग्यारहवीं में स्कूल की ब्लैक-लिस्ट में शामिल हो के नाम रोशन किया| इस वजह से दो बार नाम कटे परन्तु ऐसी वापसी मारी कि स्कूल का मोस्ट सिंसियर स्टूडेंट का अवार्ड ले मरा|
8) बीएससी फर्स्ट ईयर में एक मैथ के प्रोफेसर से लफड़ा हुआ तो प्रोफेसर साहब से पूरे तीन साल के लिए मंडावली कर ली, उसके बाद उनके साथ सब सेट रहा|
9) फ्रेशर्स को वेलकम पार्टी देने बारे फिजिक्स के प्रोफेसर से लफड़ा हुआ तो मसला उनकी ओप्पोसिशन झेल के निबटाना पड़ा|
10) एमबीए में एक प्रोफेसर ने कल्चरल एक्टिविटीज के रिजल्ट्स में लफड़ा किया तो जूनियर्स ने उससे पढ़ने से ही मना कर दिया| यह प्रेम होता था मेरे जूनियर्स का मेरे प्रति| उस प्रोफेसर की या तो "कटी ऊँगली" तक पे मूतने जैसी इज्जत थी या फिर कॉलेज प्रेजिडेंट के सामने ही हड़का दिया|

ऐसा नहीं है कि सिर्फ कड़वे ही एक्सपीरियंस रहे, अगर यह 10 कड़वे रहे तो कम-से-कम 100 अति-सुहाने भी रहे| इतने यादगार रहे कि आज भी वो टीचर्स दिलो-दिमाग पर राज करते हैं| जैसे कि एलकेजी के श्रीराम अत्रि जी, तीसरी कक्षा के दीनदयाल जी, पांचवीं क्लास के चन्द्रभान जी, और छटी से दसवीं तक में तो कई सारे एक तो खुद ड्राइंग टीचर जिनसे आठवीं में लफड़ा हुआ, हिंदी के रघुमहेन्द्र बंसल जी, संस्कृत के विवेक गर्ग जी|

ग्यारहवीं-बारहवीं के स्कूल में 95% मैडम थी तो लगभग हर मैडम से अच्छी बनी, जिनकी वजह से ब्लैक लिस्ट हुआ उनका भी फिर फेवरेट बना| ग्रेजुएशन में जो प्रोफेस्सोर्स ने विरोध किया उन्होंने खुद रोल-नंबर्स ढूंढ-ढूंढ के प्रैक्टिकल्स में नंबर लगवाए, जैसे कि फिजिक्स के प्रोफेसर जगबीर ढुल जी, हमारे आर्ट एंड कल्चरल टीम के इंचार्ज रोशनलाल जी ने तो बिना मांगे थिएटर और कल्चरल फील्ड में कार्य के लिए मेरिट सर्टिफिकेट ही हाथ में थमा दिया था| एमबीए के वक्त की नीति राणा मैडम ने तो फ्रांस में बैठे-बिठाये बैच का मोस्ट क्रिएटिव एंड इनोवेटिव स्टूडेंट अवार्ड दिलवा दिया था| इधर फ्रांस में भी कई प्रोफेस्सोर्स आजतक भी टच में हैं और जब चाहे मदद देते और लेते रहते हैं|

वो शरारतों वाले किस्से पॉइंट बना के इसलिए लिखे, क्योंकि इंडियन डीएनए को अच्छे से जानता हूँ, अधिकतर की रुचि उन्हीं को पढ़ने में रहेगी|

इसके अलावा इन्टरनेट और रिश्तेदारों का व्यहार भी सबसे बड़ा टीचर रहा| माँ-बाप तो फिर होते ही अल्टीमेट गुरु हैं|

तो यह थी मैं और मेरी जिंदगी के गुरुवों की एक झलक|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

सपना चौधरी, समझें कि किस वजह से लोग आपके साथ नहीं खड़े दिखे!

यह एक साइकोलॉजी की बात है|

सपना चौधरी ने जो जातीय आधारित रागनी गा के गलती की थी उसके लिए वो माफ़ी मांग चुकी थी, ज्यादा प्रेशर होता तो वो थाने में भी उपस्थित हो जाती| परन्तु जहर खाने तक की नौबत जरूर उस नोट की वजह से आई होगी, जिसमें उनके बारे ऐसी बातें थी जो कोई भी इंसान खुद तो कम-से-कम कहेगा नहीं| और वह बातें झूठी भी इसलिए सिद्ध होती हैं क्योंकि उस नोट वाले दावों के चरित्र पर चलने वाला कलाकार लगातार 4 साल तक मनोरंजन जगत पर ऐसे एकछत्र राज नहीं कर सकता, जैसे सपना हरयाणवी म्यूजिक व् डांस इंडस्ट्री में तहलका मचाये हुए थी| हरयाणवी कलाकारों को चाहिए कि वह फूहड़ता से ज्यादा अच्छे सिनेमा को बढ़ावा देवें|
ए, बी, सी ग्रेड फिल्म/प्रस्तुति हर कला इंडस्ट्री का हिस्सा होते आये हैं, फिर चाहे वो बॉलीवुड हो, हॉलीवुड या हरयाणा का हैरीवुड| बॉलीवुड और हॉलीवुड की सलफता बी या सी ग्रेड फ़िल्में नहीं अपितु ए ग्रेड फ़िल्में हैं; और इसी तरफ हैरीवुड को ज्यादा ध्यान देना चाहिए|

कारण बताता हूँ कि ऐसा क्यों होना चाहिए, क्योंकि सपना चौधरी ने अधिकतर बी या सी ग्रेड डांस व् पेरफॉर्मन्सेस दे के पैसा तो कमा लिया था परन्तु पब्लिक के वो सेंटीमेंट्स नहीं कमा पाई जैसे जब अमिताभ बच्चन को कुली फिल्म के वक्त चोट लगी थी तो सारा देश उनके लिए दुआओं में खड़ा हो गया था| बस यही वजह रही कि इस कठिन वक़्त में सपना को उसका साथ देने वाले कम मिले| इसलिए कहीं-ना-कहीं बैलेंस जरूरी है|
इसीलिए कहा जाता है कि आनन्-फानन वाले काम करके आप पैसा तो कमा लोगे, परन्तु अगर आपको लोगों के सेंटीमेंट्स पर कब्ज़ा करना है तो ए ग्रेड के कार्य करने भी जरूरी हैं| क्योंकि अगर अमिताभ अकेले सिर्फ बी या सी ग्रेड अफेयर्स में ही रहते तो वो पब्लिक सेंटीमेंट्स कैच नहीं कर पाते| जी, हाँ अमिताभ बच्चन जितने अफेयर्स शायद ही किसी हीरो या हेरोइन के रहें हों, यहां तक कि उनको नेहरू का DNA तक बोला जाता है; परन्तु अन्तोत्गत्वा पब्लिक सेंटीमेंट्स को भी वो अच्छे से पकड़ पाए|

हमारा भोला समाज है, बाल्मीकि भी डाकू से ऋषि बने तो स्वीकार कर लेता है| मैं यह तो नहीं कहूंगा की सपना में कोई दोष है; परन्तु जिस हताशा से वो गुजर रही हैं; उससे निकलना चाहेंगी तो निसन्देह पब्लिक फिर से स्वीकारेगी| परन्तु सिर्फ पैसा कमाने वाली स्वीकार्यता चाहिए या सेंटीमेंट्स जीतने वाली, यह सपना खुद तय करके आवें|

Note: Thanks for sending this note to Sapna Chaudhary, if anyone can!

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

ताजा-ताजा आये HPSC के नतीजों पर कुछ नामचीनों की अनुमानित मनोस्थिति!

1) राजकुमार सैनी, कुरुक्षेत्र एमपी, बीजेपी - टॉपर तीनों जाट, कुल General Category पास का 70% पास जाट बता रहे हैं| यहां भी न्याय नहीं, पिछड़ों को न्याय दिलवाने के लिए नई पार्टी ही अंतिम विकल्प है| मुझे तो खामखा ही जाटों की भृकुटि पे बैठा रखा है|


2) 35 बनाम 1 की मति वाले - इनसे तो हुड्डा और चौटाला ही अच्छे थे, कम से कम सबसे ज्यादा हमारे बच्चों को पास करवा के लगाते तो थे|


3) कैप्टन अजय यादव - बिना आरक्षण ही टोटल General Category में 70% जाट HPSC पास कर गए, जो होता आरक्षण तो यह आगे किसको आने देते?


4) अश्वनी चोपड़ा, करनाल एमपी, बीजेपी - मैं वैसे ही थोड़े कह रहा था कि जाट दबा लेंगे सबको, 35 बिरादरी जाटों के खिलाफ लामबन्द हो जाओ|

5) एम.एल. खट्टर, CM Haryana - लगता है मेरे द्वारा हरयाणवियों को कन्धे से नीचे मजबूत और ऊपर कमजोर कहने को, जाटों ने सबसे ज्यादा अपनी अनख पे ले लिया; गजब का आत्म-सम्मान है|


6) प्रवीण तोगड़िया - टोटल General Category में 70% जाट उत्तीर्ण; यानि इतने जाट असफ़रों के होने से अब जाट की बेटी सबसे ज्यादा सुरक्षित, जाट की बेटी सुरक्षित तो हिन्दू की बेटी सुरक्षित| सही है जितने ज्यादा जाट अफसर होंगे, उतनी हिंदुओं की बेटियां सुरक्षित होंगी| क्योंकि जाट की ही बेटी सुरक्षित नहीं तो किसी भी हिन्दू की नहीं|


7) मोहन भागवत - लगता है इन सबका जोइनिंग से पहले आरएसएस कैंप लगवाना होगा| पर कोई फायदा नहीं, जाट हैं ये; इनके तो कैंप क्या पूरी कैंपेन भी इनपे चला दूँ तो काबू नहीं (मेरा मतलब कन्विंस नहीं होने के) आने के; खामखा मेरे सीक्रेट्स सीख के, मेरी और वाट लगा देंगे|

On serious note: ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है; हरयाणा HPSC में जाट इसी तरह से परीक्षाएं उत्तीर्ण करते रहे हैं लगभग इसी अनुपात में| जो लोग जनगणना के जातिगत आंकड़े सार्वजनिक नहीं करते, उन्होंने इतनी बड़ी नौकरी के जातिगत आंकड़े भी बता दिए; दाल में कुछ नहीं, बहुत कुछ काला है| देखने वाली बात यह रहेगी कि इन General Category 70% में से कितनों की कहाँ-कैसी प्लेसमेंट होने वाली हैं| और राजकुमार सैनी जैसों को इसके जरिये अब यह क्या नया बम थमाने वाले हैं जाट के खिलाफ|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

कुछ लोग युद्ध लाये, हम बुद्ध लाये! - पीएम मोदी वियतनाम में!

मोदी महाशय, बुद्ध धर्म को बचाने के चक्कर में ही तो गठवाला जाट आज मलिक कहलाते हैं| किस्सा सुनना चाहेंगे पूरा? दूसरा बुद्ध इतने ही अच्छे लगते हैं तो देश के दलित जो बुद्ध को मानते हैं उनसे हिन्दू महासभाओं का 36 का आंकड़ा क्यों रहता है?

अब जरा थोड़ा विस्तार से: आपकी विचारधारा की हकीकत बता दूँ कि बुद्ध को भारत का हो के भी भारत में नहीं फैलने दिया गया; हरयाणा में तो इतना बड़ा नरसंहार (युद्ध) हुआ था कि आज भी किसी के यहां नुक्सान हो जाने पर लोक-कहावतें चलती हैं कि "मार दिया मठ", "हो गया मठ", "कर दिया मठ"। उस नर संहार की मानिद इतनी गहरी थी कि बुद्ध तपस्या में लीन निहत्थे जाटों को मारने के सिलसिले जब बढ़ते ही गए और अंतहीन प्रतीत हुए तो तब जा के जाटों ने अपनी भृकुटि खोली थी और मुंहतोड़ जवाब दे के लगाम लगाई गई थी|

जाने-माने इतिहासकार डॉक्टर के. सी. यादव की पुस्तक "हिस्ट्री ऑफ़ हरयाणा" में लिखा है कि कैसे मात्र 9 हजार गठवाले जाटों ने (क्योंकि इनके निशाने पर मुख्यत: गठवाले जाट ही थे) समस्त जाट-समाज का जिम्मा अपने ऊपर लेते हुए व् अपने भाईयों की रक्षा हेतु, इन आज बुद्ध के प्रति प्रेम दिखाने वालों की उस वक्त बुद्ध बने और तपस्या में लीन जाटों को मारने के लिए भेजी गई 1 लाख सेना को मात्र 1500 जाट खोते हुए काट दिया था और तब कहीं जा के इनके बुद्ध मठ व् बुद्धों को मारने के सिलसिले थमे थे| और यही वो वाकया है जब अरब के खलीफा को जाटों के इस शौर्य का पता चला तो गठवाला जाटों को "मलिक" की उपाधि ऑफर की| मुझे कहने की जरूरत नहीं कि अरब में मलिक का मतलब मालिक होता है और सर्वश्रेष्ठ उपाधि होती है; जिसको फिर गठवालों ने बराबरी के स्टेटस के साथ स्वीकार किया| इसीलिए मलिकों को अक्सर "मलिक साहब' भी कहा जाता है|

नौटंकी और भांडों को भी पीछे छोड़ दिया आपने तो| पीएम महोदय और नहीं तो जा के बालाजी जैसे मन्दिरों की मूर्तियां देख लो; बुद्ध की मूर्तियों को बालाजी का रूप दिया हुआ है| मंदिर तोड़ने वालों से भी खतरनाक खून की होली खेलने (मठ तोड़ने वाले) वालों में हैं आप की विचारधारा वाले|

फिर भी बुद्ध के बिना आपका काम नहीं चलता, कभी लन्दन में भारत को बुद्ध का देश बताते हैं तो आज वियतनाम में भी| वैसे बताने को तो बुद्ध को विष्णु का नौवां अवतार भी लिखे हुए हैं विष्णु-पुराण में? परन्तु बुद्ध को मानने वाले दलितों पर कैसे अत्याचार और कैसी हेय दृष्टि से देखते हैं; हर कोई वाकिफ है इससे| हो सके तो पहले अपने देश में इस बात को दुरुस्त कीजिये; वर्ना आपका यह अव्वल दर्जे का काइयाँपन विदेशी भी समझते हैं, भ्रम में ना रहें| यह विदेश-निति में चाणक्य जैसी मूलचूक गलतियाँ ना करें; वर्ना क्या वजह रही कि चाणक्य के साथ ही उनकी नीतियां भी मृतप्राय हो गई थी? उनके बाद किसी राजा ने उन (चाणक्य की) नीतियों को नहीं चलाया?

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

गलियों में उतरने से पहले हर यौद्धेय को, अपने घर-रिश्तेदारी से लड़ाई जीतनी होगी!

अपने-अपने घरों-रिश्तेरदारों के घर और दिमाग की दीवारों से अंधभक्ति और इसके प्रतीक मिटाने होंगे|
हर यौद्धेय को मिशनरी की तरह, बिना शोर मचाये अपने पास-पड़ोस में फैली पाखंड की स्याही मिटानी होगी।
किसी से लड़ो ना, झगड़ो ना, बस उनको समझाओ; समझो कि अगर उनको अपनी बात समझाने में कामयाब हो गए और आपके अपने आपके साथ हो गए तो दो तिहाई लड़ाई तो यूँ ही जीत ली जायेगी।

यह मत समझो कि मंडी-फंडी की तुम यौद्धेयों पर नजर नहीं है, उसकी नजर भी है और तुम्हारे घर-परिवार तक पहुँच भी। तुम्हें भान भी नहीं होगा कि किन-किन प्रपंचों से वो तुम्हें अपने घरवालों को अपनी बातें समझने/समझाने से रोक रहे होंगे, दिन-रात काम कर रहे होंगे।

बस इनकी यह पहुँच पहले अपने-अपने घरों से खत्म कर दो, फिर सड़कों पर उत्तर कर लड़ने की लड़ाई तो औपचारिकता मात्र रह जाएगी।

और इस पहुँच को खत्म करना है तो इसको बनाने के लिए प्रयोग किये जाने वाले भय-अविश्वास-लालच के इनके प्रपंच समझ के उनको काटना होगा। हर यौद्धेय को समझना होगा कि शस्त्र से ज्यादा बुद्धि की कुटिलता की लड़ाई है यह।

इसीलिए निरन्तर इन प्रपंचों की तहें उधेड़ने की ओर अग्रसर रहो। अपने-अपने घर-परिवार से इन पाखण्डों को उखेड़ने की कहानियां अपने यौद्धेय साथियों से साझी करते रहो।

दो तिहाई काम है ही यह, इसके बाद तो जो होगा, वो सड़कों पर होगा और सड़कों पर आने से पहले अपने-अपने घरों-रिश्तेदारियों-पड़ोसियों पर किया गया आपका यह होमवर्क ही आपको डिस्टिंक्शन के साथ सड़क वाली लड़ाई में उत्तीर्ण करेगा।

वैसे भी जब तक हमारे प्रमुख यौद्धेय साथी जेलों में हैं, तब तक अपने समय, सोच और ऊर्जा का इससे उचित उपयोग कुछ और शायद ही हो।

इंग्लिश सीखो, बोलो, समझो। उच्च-से-उच्च पढाई करो; जो यूनियनिस्ट से विपरीत विचारधारा का हो और अनजान हो उससे जिरह मत करो; बल्कि उसको पता भी मत लगने दो कि आप किस सोच का प्रतिनिधित्व करते हो। बस चुपचाप शांत चित से उसकी गतिविधियों और सोच को ऑब्जर्व करते रहो; ताकि फिर उसको सोच के इर्दगिर्द अपनी सोच की काट का जाल बुन उसको उसमें घेर सको।

कोई घरवाले या रिश्तेदार आपकी बात नहीं भी मानें तो उदास मत होना| एक मना पाए और दूसरा ना मना पाए तो आपस में उपहास मत उड़ाना; बल्कि उसकी परिस्तिथि और घरवालों की सोच को समझ के उसका मिलके हल निकालना।

समझ लेना जितने घर मंडी-फंडी की सोच और पहुँच से आज़ाद करा लिए, उतना ही सर छोटूराम जी की सोच वाली यूनियनिस्ट सत्ता की ओर कदम बढा लिए।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

जाट, खुद अपनी कौम से हुए नेता को जाट नेता ना कहें, और कोई कहें तो उनको भी समझाएं!

मंडी-फंडी जानता है कि अगर कोई उनकी हेकड़ी ढीली कर सकता है या इतिहास में कर पाया है तो वो सिर्फ और सिर्फ जाट हैं। इसीलिए इनका खेल चलता है कि जाट को मार लो, तोड़ लो, डरा लो, भ्रमा दो; बाकी तो राजपूत तक इनके 21 पीढ़ियों के पुरखों को मारने पर भी हमारे पैरों में पड़े रहते हैं; तो जाट के अलावा बाकी किसकी बिसात?

और सच भी है जाट के अलावा उत्तर-भारत में किसान (मजदूर व् दलित की भी) की आवाज उठा उसके लिए बेइंतहा कानून बनाने वाले कोई और जाति-समुदाय से (दलितों की आवाज बाबा साहेब व् कांशीराम जी को छोड़कर) विरले ही लीडर हुए हैं। इसीलिए यह लोग बार-बार ऐसा प्रोपगैंडा चलाते हैं कि जाट कौम में पैदा हुए लीडर्स बस जाट कौम के ही बता के प्रचारित करवा दिए जाएँ और यहां तक कि कई भोले जाट भी इस प्रचार के बहाव में बह के उनको किसानी-मजदूरी कौमों के नेता बताने की बजाये सिर्फ जाटों के नेता बताते देखे जाते हैं।
जबकि सर छोटूराम जी से ले के, सर फज़ले हुसैन, सर सिकन्दर हयात खान, सरदार भगत सिंह, सरदार प्रताप सिंह कैरों, चौधरी चरण सिंह, ताऊ देवीलाल, चौधरी बंसीलाल व् बाबा महेंद्र सिंह टिकैत तक कोई भी जाट नेता ऐसा नहीं हुआ जिसने कि सिर्फ जाट किसानों के लिए ही कानून बनवाएं हो, उनके हक़-हलूल की लड़ाई लड़ी हों। वो लड़े तो तमाम किसान-मजदूर-दलित बिरादरी के लिए लड़े।

तो जाट समुदाय मंडी-फ़ंडी के इस ट्रैप को समझें और अपनी कौम में पैदा हुए नेताओं के उन कार्यों बारे औरों को बतावें, जिससे समस्त किसान-मजदूर-दलित समाज के लिए कानून बने और भला हुआ।

उदाहरण के तौर पर सर छोटूराम जी द्वारा सैनी-छिम्बी-खात्ती जातियों को अंग्रेजों से जमीन के मालिकाना किसानी हक दिलवाने हेतु "मनसुखी" बिल पास करवाना। दलितों-महिलाओं-किसानों को भारतीय इतिहास में सर्वप्रथम रोजगार आरक्षण देना।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

भगवान् की डिग्रडेशन और अपग्रडेशन कैसे होती है, समझें और समझाएं!

Degradation:
जब तुम कहोगे कि राम को समुन्दर पर पुल बनवाने की क्या जरूरत थी, हनुमान अपना शरीर बढ़ा के उस पर लेट जाते; बन जाता पुल; तो वो कहेंगे कि भगवान् के जरिये एक साधारण आदमी की जिंदगी को चरितार्थ करने हेतु यह सब लिखा गया (ध्यान देना लिखा गया बोल के यह अपनी पोल खुद ही खोल जाते हैं कि यह वाकई में माइथोलॉजी यानी काल्पनिकता की रचनाएँ हैं)।

जब तुम कहोगे कि कृष्ण को अर्जुन का सारथी बनने की क्या जरूरत थी, कौरव सेना को अपने सुदर्शन चक्र से एक ही वार में खत्म कर सकते थे, तो भी यह भगवान् के जरिये एक साधारण आदमी की जिंदगी को चरितार्थ करने का तर्क आगे रखेंगे|

Upgradation:
परन्तु जब मैं कहूंगा कि उस साधारण आदमी यानी कृष्ण जी की भांति ही एक आप पार्टी का दलित नेता रासलीला रचा लेता है तो यह यकायक ही कृष्ण और राम का स्टेटस अपग्रेड कर देते हैं कि नहीं-नहीं वो तो भगवान् थे, कुछ भी कर सकते थे; सन्दीप की क्या तुलना उनसे?

भगवान ना हो गया इनके बाब्बू की फैक्ट्री का प्रोडक्ट हो गया|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

असली लड़ाई कब शुरू होगी?

1) तब तक नहीं होगी जब तक तुम मंडी-फंडी की आलोचना मात्र में उलझे रहोगे।
2) तब भी नहीं होगी जब तक इनके द्वारा घड़े गए झूठे व् काल्पनिक चरित्रों/आदर्शों का मजाक बनाते रहोगे।

बल्कि
1) तब होगी जब अपने वालों को गले लगाना व् गाना या प्रमोट करना शुरू करोगे।
2) तब होगी जब इनसे विमुख हो के अपनी सामाजिक थ्योरी को उठाओगे।
3) तब होगी जब अपने पुरखों की सोशल इंजीनियरिंग पर कार्य करना शुरू करोगे।

तब यह लोग जब आप द्वारा चुपचाप बिना इनकी आलोचना में उलझे भी अपनों पे और अपनी सभ्यता पे कार्य करने लगोगे; तो बन्दर की भाँति आपका सर खुजाने या आपको छेड़ने आएंगे।

इसलिए असली लड़ाई तो अभी प्रारंभ का आगाज ही ढूंढ रही है। और आगाज यही है कि अपनों (महापुरुषों-हुतात्माओं-यौद्धेयों) को गले लगाना, उनके कार्य-बलिदान को पहचानना व् मान देना शुरू करो। जैसे अपने घर की बुरी बात, घर का बुरा मानस घर में ही खपा लिया जाता है ऐसे ही अपने कौमी-नेताओं की बुराईयों को उसी स्तर तक उघाड़ो जिससे कौम रुपी घर भी बना रहे और घर में उसकी बुराई हावी भी ना हो।

जब आगाज करो तो इतिहास के इस अध्याय को जरूर आगे रखना कि जब इतिहास में आपके पुरखे बुद्ध-भिक्षु बनके चुपचाप शांति से मठों में तप किया करते थे और इन्होनें वो मठ भी तोड़े और आपके पुरखे भी मारे; इतना भयंकर हहाकार मचाया कि आज भी जनमानस में "मार दिया मठ", "हो गया मठ", "कर दिया मठ" जैसी कहावतें चलती हैं। उस वक्त आपके पुरखों ने तपस्या छोड़ इनको जब तक मुहतोड़ जवाब दे, इनके थोबड़े नहीं तोड़े थे तब तक यह रुके नहीं थे।

लेकिन अबकी बार की शुरुवात में कुछ ऐसा हो कि यह ऐसी कोई हरकत ही ना कर पाएं।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Tuesday, 23 August 2016

मुल्क़ का नाम लेकर भारतवर्ष में शहीद होने वाले वह पहले व्यक्ति राजा हसन खान मेवाती!

जब से मेवात गया था तभी से हसन खान मेवाती के बारे मे जानने की जिज्ञासा थी आज एक मित्र के माध्यम से ये जानकारी प्राप्त हुई तो सांझा कर रहा हूं जब बाबर काबुल में था, तो कहा जाता है कि राणा सांगा का उससे यह समझौता हुआ कि वह इब्राहीम लोधी पर आगरा की ओर से और बाबर उत्तर की ओर से आक्रमण करे. जब आक्रमणकारी ने दिल्ली और आगरा को अधिकृत कर लिया, तब बाबर ने राणा पर अविश्वास का आरोप लगाया. उधर सांगा ने बाबर पर आरोप लगाया कि उसने कालपी, धौलपुर और बयाना पर अधिकार कर लिया जबकि समझौते की शर्तोँ के अनुसार ये स्थान सांगा को ही मिलने चाहिए थे. सांगा ने सभी राजपूत राजाओं को बाबर के विरुद्ध इकठ्ठा कर लिया और सन 1528 में खानवा के मैदान में बाबर और सांगा के बीच युद्ध हुआ. उस समय मेवात के राजा हसन खान मेवाती थे. हसन खान मेवाती की वीरता सम्पूर्ण भारत में प्रसिद्ध थी. बाबर ने राजा हसन खान मेवाती को पत्र लिखा और उस पत्र में लिखा "बाबर भी कलमा-गो है और हसन खान मेवाती भी कलमा-गो है, इस प्रकार एक कलमा-गो दूसरे कलमा-गो का भाई है इसलिए राजा हसन खान मेवाती को चाहिए की बाबर का साथ दे."
 
राजा हसन खान मेवाती ने बाबर को खत लिखा और उस खत में लिखा "बेशक़ हसन खान मेवाती कलमा-गो है और बाबर भी कलमा-गो है, मग़र मेरे लिए मेरा मुल्क(भारत) पहले है और यही मेरा ईमान है इसलिए हसन खान मेवाती राणा सांगा के साथ मिलकर बाबर के विरुद्ध युद्ध करेगा". सन 1528 में राजा हसन खान मेवाती 12000 हज़ार मेव घोड़ सवारों के साथ खानवा की मैदान में राणा सांगा के साथ लड़ते-लड़ते शहीद हो गये. मुल्क़ का नाम लेकर भारतवर्ष में शहीद होने वाले वह पहले व्यक्ति थे.
 
आज इतिहास की पन्नों में राजा हसन खान मेवाती को भुला दिया गया हुआ है. यदि ज्यादा विस्तृत रूप से पढ़ना चाहते है तो मेवात के ऊपर प्रसिद्ध लेखिका शैल मायाराम और इंजीनियर सिद्दीक़ मेव द्वारा लिखी पुस्तकों को अवश्य पढ़िये|
 
Courtesy: Pawan Poonia

Monday, 22 August 2016

यह देश के ही दोस्त नहीं, धर्म और जाट के तो तब होंगे!

Powder in daal-
NADA:- Member of rival Sushil Kumar’s entourage, Jithesh, spiked Narsingh’s daal
 *CAS:- Presence of substance because of methandienone tablets and not spiked daal

Drink spiked-
NADA:- Energy drink contaminated by Jithesh
CAS: Methandienone doesn’t dissolve, would have been visible.

Partner positive-
NADA:- Drinks of both athletes spiked similarly
CAS:- 12-20 hours difference between ingestion by Narsingh, his room-mate

*Court of Arbitration of Sport

Courtesy: Major Kulwant Singh

Clear Cut Conclusion: PM Modi and WFI President Brijbhushan to blame for thrashing India away from a Gold medal and its prospective like Sushil Kumar due to lopesided caste & vote politics.

थैंक गॉड, देश की झंडी तो पिटी मगर इन महामूर्खानंदों की डेड्सयानपट्टी की वजह से मामला CAS कोर्ट में पहुंचने की बदौलत भारतीय कुश्ती जगत के आदर्श भाई सुशील कुमार के ऊपर से इनके लगाए लांछन तो धत्ता साबित हुए| नहीं तो इन्होनें बना देना था अपने कोर्ट और अपने न्याय के साथ एक "भारत-रत्न" स्तर के खिलाडी को "भारत-कलंक"|

क्या ख़ाक बनाएंगे ये हिन्दू एकता और बराबरी का भारत या कहो हिंदुत्व; जाटोफोबिया और खापोफोबिया तो कभी दिमाग से उतरता नहीं इनके| अब भी वक्त है सम्भल जाओ, हिन्दू को मुस्लिम से नहीं बल्कि इन हिंदुओं के अंदर ही हिंदुओं के बैठे दुश्मन भेड़ियों से खतरा है| और इस दुश्मनी को निभाने के लिए यह किस तरह से देश के सम्मान तक को दांव पे लगा सकते हैं, अंतराष्ट्रीय मंच पर भारत की झंडी पिटवा सकते हैं, उसका इससे बेहतरीन उदाहरण नहीं होगा| कोई दोस्त ना हैं ये, यह देश के ही दोस्त नहीं, धर्म और जाट के तो तब होंगे|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

रियो ओलिंपिक हमें ढोंग-पाखंड में वक्त-ऊर्जा और पैसा ना फूंकने की भी शिक्षा देता है!

1) बहन पी.वी. सिंधु के फाइनल में पहुँचने से पहले कोई हवन-यज्ञ-मन्त्रोचारण नहीं हुआ था, फाइनल के लिए हुआ और वो हारी।

2) भाई योगेश्वर दत्त के लिए तो पहली बाउट शुरू होने से पहले से ही बताया जा रहा है कि इतना हवन-यज्ञ-मन्त्रोचारण हुआ कि भाई के परिजनों ने दो घी के पिप्पे हवनवेदी में झोंक दिए थे और नतीजा क्या निकला, शिफर। छोरा उससे भी हार गया, जिससे कोई सपनों में भी उम्मीद नहीं किया होगा।

इन उदाहरण का यह भी मतलब नहीं कि हवन-यज्ञ-मन्त्रोचारण हुए तो यह हारे, परन्तु हवन-यज्ञ-मन्त्रोचारण करने से जीते भी तो नहीं?

तो फिर यह हवन-यज्ञ-मन्त्रोचारण होते किस लिए हैं? यह होते हैं फंडी को रोजगार देने हेतु और फंडी के फ़ंडों के माध्यम से मंडी का सामान बिकवाने हेतु। सीधी और सपाट बात, समझ में आती हो तो थारे बुद्धि रुपी घर में जचा लो और नहीं तो हांडे जाओ इन मोडडों के यहां अपने घर धकाते।

और गज़ब की बात तो यह है कि यह लोग बाद में इस बात का अहसान और अहसास भी नहीं मानते कि आपने हवन-यज्ञ करके इनको रोजगार दिया तो इनका घर चला, अपितु उसको भी उल्टा आपपे ही अहसान दिखाया जाता है। यानी इनको रोजगार भी दो और फिर इनसे दबे भी रहो। इनकी पंडोकली में घर भी उड़ेलो और फिर इनसे यह अहसान भी ना धरवाओ कि तुमने इनका पेट भर दिया। बल्कि यह अहसान धरवाओगे तो यह तुम्हें उल्टी लात और मारने लगते हैं। तू तो दुष्ट है पापी है, यह है वह है आदि-आदि।

दूसरा जो कांसेप्ट यह फंड-पाखंड साधते हैं वह है चढ़ते हुए को सलूट मार उसके ऊपर अपना ठप्पा लगा अपना बनाने का या अपने वाले का गैरजरूरी प्रचार कर समाज में उसकी मिथ्या छवि बनाने का। यानी सिंधु गोल्ड ले आती, तो उसपे यह फंडी हमने हवन-यज्ञ से जितवाया का फटाक से ठप्पा लगा देते; योगी को तो यह पहले से उठाये फिर ही रहे थे।

सफलता-शौहरत हासिल करने का कोई शॉर्टकट नहीं। परन्तु हाँ प्रचार और सलूट जरूर मारो, लेकिन हार-जीत की हर परिस्तिथि में स्थिर रहते हुए। चढ़ते को सलाम करना और हारे को दुत्कारना, यह भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद की सबसे बड़ी जड़ें हैं।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Sunday, 21 August 2016

जाति, कौन नहीं ढूँढता इस देश में?

यह देखो जो खुद को सबसे अगड़े/सवर्ण बोलते हैं वो सबसे ज्यादा इस बीमारी से ग्रस्त हैं; यह देख लीजिये सबूत, नीचे सलंगित स्क्रीनशॉट्स में।

अब इनसे उत्साह और प्रेरणा पाकर मैं सच्चाई तो कह सकता हूँ ना कि साक्षी मलिक और पी.वी. सिंधु ही नहीं बल्कि इन दोनों के कोच क्रमश: कुलदीप मलिक जी / ईश्वर दहिया जी व् पुलेला गोपीचंद जी; पूरी टीम ही जाट है। साक्ष्य और तथ्य मैं पहले की पोस्टों में दे ही चुका। यार एक बात बताओ जब बहन पी.वी. सिंधु के ऑफिसियल फिजियो से सीधे-सीधे यह बातें कन्फर्म हो के आ चुकी हैं कि पीवी सिंधु और गोपीचंद पुलेला जी दोनों जाट (तेलुगु में कम्मा) हैं तो फिर कन्फ्यूजन कैसा?

खैर, बात इन दोनों स्क्रीनशॉट्स के कमैंट्स एंड क्लेम पे ही रखते हैं। तो इनको देखने के बावजूद भी जिसको प्रैक्टिकल और रियल समाज नहीं देखना; वो रहें आइडियलिज्म पे लेक्चर झाड़ते और आइडियल समाज का झुनझुना बजाते। भैया, समाज को जैसे अगड़े व् सवर्ण चलाते हैं उसको कम-से-कम ऐसी चीजों में तो इनके अनुसार (इनकी ऊंच-नीच वाले लीचड़ कीचड़ को छोड़ के) ही चलने दो; इससे पिछड़ों को अगड़ों में शामिल होने या उन जैसा बनने में आसानी रहेगी।

इसलिए जब यह खुलके सिंधु को क्लेम कर रहे, तो जाटों को सिंधु को जाट होते हुए भी जाट क्लेम करने में कैसा हर्ज और कैसा जातिवाद? किसी को नीचा तो नहीं दिखाया, किसी को गाली तो नहीं दी, जाट को जाट ही तो कहा है?

जय यौद्धेय! - फूल मलिक