Friday, 21 May 2021

फंडी कैसे किसी को उसके साइकोलॉजिकल ट्रैप (जाल) में लेता है!

ग्रीक फिलोसोफर Aristotle की theory of convincing के अनुसार तीन तरीकों से एक इंसान को प्रभाव में लिया जा सकता है:


1) Ethos (Authority) यानि अधिकृत विषेशज्ञ 

2) Logos (Logics) यानि तार्किकता 

3) Pathos (Emotions) यानि भावुकता, भावनात्मकता


एक संसार को स्वस्थ तरीके से चलाने हेतु इन तीनों का बराबर से इस्तेमाल ही सर्वश्रेष्ठ मार्ग है| परन्तु फंडी, इनमें से सिर्फ इमोशंस को आप पर इस्तेमाल करता है यानि भावना| 


और भावना किस से पैदा होती है? Ekman, Paul; Davidson, Richard J. (1994) के अनुसार "कोई भी ऐसी चीज/अनुभव/विचार/व्यवहार जो आपको दुःख या ख़ुशी की, जुड़ाव या अलगाव की तरंगे दे; वह आप में उस वस्तु/व्यक्ति आदि के प्रति नकारात्मक या सकारात्मक भावना पैदा करता है| 


और फंडी हर उस बाह्य वस्तु/विचार को आप पर अपनी भावनाएं थोंपने के लिए इस्तेमाल करता है जो आप में सकारात्मकता व् जुड़ाव, कहिये कि आदर भाव पैदा करती होती हैं| 


जब आंतरिक तौर पर आप पर हमला करना होगा तो आपकी नकारात्मकता को फंडी सबसे ज्यादा कुरेदता है| 


इस तरीके से जब उसने आपकी रग पकड़ ली, फिर वह आप पर साम-दाम-दंड-भेद आजमाता है| 


जय यौद्धेय! - फूल मलिक  


Thursday, 20 May 2021

फंडी, ना साइंस से चलता है और ना लॉजिक से; वह चलता है साइकोलॉजिकल ट्रैपिंग से!

फंडी को समझने के लिए साइंस या लॉजिक्स ना पढ़ें अपितु साइकोलॉजी यानि मनौविज्ञान के ज्ञाता बनें| जिस दिन इनका मनौविज्ञान से चलना समझ गए, उस दिन इन बातों पर आश्चर्य करना छोड़ दोगे कि, "हाय-हाय फलाना-धकड़ा या फलानी-धकडी इतना पढ़ा-लिखा हो के भी फंड-आडंबर में डूबा हुआ या हुई है"| या कहो कि "इतना बड़ा असफर-साइंटिस्ट हो के भी आकंठ आडंबर में डूबा निकला", आदि-आदि|

अब यही देख लो: मैं तो बड़ा हैरान होता था बचपन में कुछ ज्यादा ही आधुनिक अथवा पढ़ा-लिखा होने का दावा ठोंकनें वालों की सुन के, जो कहते थे कि, "अजी, मुझे तो गोबर-मूत से एलर्जी है"| कई गिरकाणी लुगाई तो चाहे उनको गोबर-मूत का काम भी नहीं करना होता था परन्तु अपने गाम वाली देवरानी-जेठानी के आगे ऊँचा थोबड़ा रखने को ही गोबर के आगे से नांक-मुंह सिकोड़ के निकलती थी| एक वक्त वह भी आया जब रिश्ते वालों ने भी ऐसी शर्तें रखी कि म्हारी छोरी गोबर-खेत का नहीं करेगी| ना और थारी छोरी साँप पकड़ेगी, ल्या देवें सपेरे वाली एक बीन और पिटारा?
और आज देख रहा हूँ कि सबसे ज्यादा यही गिरकाने गोबर-मूत में नहाते-लेटते फिर रहे हैं; और इनमें क्या साइंस पढ़े हुए, क्या आर्ट व् कॉमर्स पढ़े हुए; पट्ठे सब पटे पे चढ़ा रखे हैं फंडियों ने| फंडियों ने ऐसे ब्रैनवॉश कर दिए इनके कि इनको सारी साइंस गोबर-मूत में ही नजर आती है|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Tuesday, 18 May 2021

बावन बुद्धि आणिया, छप्पन बुद्धि जाट!

सुनी थी छप्पन बुद्धि जब महाराजा सूरजमल ने चलाई तो नागपुर-पुणे के चितपावनी पेशवे भी दिल्ली पर राज करने के सपनों का मन-मसोसवा के व् हाथ-मलवा के वापिस पुणे छुड़वा दिए गए थे| क्यों पड़े हो फिर से इनके चक्कर में, यह इतने भले होते तो तुम्हारा यह पुरखा इनको वापिस जाने की हालत में लाता क्या?

सुनी थी छप्पन बुद्धि जब सर छोटूराम ने चलाई थी तो आज़ादी से पहले के "यूनाइटेड पंजाब" से गाम-के-गाम, ताखड़ी पे डंडी मारने व् चक्रवर्धी सूदखोरी करने वालों से खाली हो गए थे? उस एथिकल-कैपिटलिज्म (ethical capitalism) के धोतक ने, सारी बावन की बावन झाड़ ली थी|
अगला कौन आएगा इस क्रम में व् कब आएगा; यह इंतज़ार इतना लम्बा ना हो जाए कि किसान आंदोलन से, फंडियों के जुल्मों से मुक्ति पाने की आस जो किसान ही नहीं अपितु मजदूर, छोटे-मंझले व्यापारी व् वास्तविक धार्मिक प्रतिनिधियों की इससे जुडी हैं, वह टूट जाएं| क्या प्रकृति-परमात्मा-पुरखे इतने ज्यादा रूष्ट हुए खड़े हैं कि राह अभी हासिल नहीं? इनसे तो लड़ाई भी बुद्धि की है, तो धरनों पे यह रोज-रोज की दौड़-धूप किस ख़ुशी में करवाई जा रही है, जहाँ बैठे हैं वहां बैठ के सर-जोड़ के छप्पन बुद्धि से चलाने की जरूरत है इस आंदोलन को; बोहें-दाडें-भृकुटि दिखाने-दरडाने की नहीं|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

 हवन इतना कमजोर कब से हो गया कि उसको धूणी की पद्दी (पीठ) बिठाना पड़ रहा है?:

जिस बेहताशा से रोहतक जिले में धूणी के ऊपर हवन को बैठाया जा रहा है, लगता है हवन को जिन्दा रखने हेतु उसको धूणी की पद्दी बिठाया जा रहा हो? कहीं गए जमानों में हवन को, धूणी से ही तो नहीं निकाला गया था? यानि धूणी का पॉलिशड वर्जन बना के हवन नाम धर दिया हो? अन्यथा यह किस बात की बेचैनी है कि दिखती-दिखाती धूणी को हवन प्रचारित करवा रहे हैं? क्या हवन का अस्तित्व इतना सस्ता व् कमजोर है कि उसको धूणी पे ढंका जा रहा है? क्योंकि जिन अवस्थाओं में यह हो रहा है उसमें तो यही कहा जाता है कि भले वक्तों में गर्रा के अलग हुई या अलग की गई चीज, भीड़ में पड़ी जिससे अलग हुई थी या की गई थी; वापिस उसी की पद्दी बैठने की कोशिश करती है या बैठाई जाती है|
धूणी व् हवन में अंतर् समझें:
धूणी: जानवरों व् मौसमीय बिमारियों के कीटाणुओं को घर-ढोर के वातावरण से खत्म करने हेतु घर-घर घूम के दी जाती है| इसमें आग की बेदी नहीं जलाई जाती, सिर्फ सुलगाई जाती है ताकि अधिकतम धुआं बन सके| यह तो डांगरों के ठान के कोने में दो-चार गोस्से लगा के भी सुलगा दी जाती है|
हवन: मंत्रोचार का लेप लगा के, स्थाई कुंड में आग जला के (अंतर् नोट करें, धूणी में धुआं चाहिए, आग नहीं और धुंए से ही इसका नाम धूणी पड़ा है) एक क्रिया-अनुष्ठान किया जाता है, वह भी खुले वातावरण में; घर के अंदर हो तो खिड़की-दरवाजे खुले रख के|
तो इन परिभाषाओं के हिसाब से समझा जा सकता है कि रोहतक में गामों में जो दी जा रही है वह धूणी है, हवन नहीं|
धूणी को धूणी रहने दो, उसको हवन का नाम मत दो!
रिवाज को रिवाज रखो, उसको पाखंड का नाम मत दो|
धूणी भी एक रिवाज है, हवन भी एक रिवाज है; इनको मिक्स मत करो| मिक्सिंग को बुजुर्गों ने पाखंड कहा है इंग्लिस में बोले तो "manipulation"| जरूरत क्या पड़ी है जो सदियों से गामों में दी जाने वाली धूणी को हवन बता के प्रचारित किया जा रहा है? हवन की अपनी मर्याद है, उसको धूणी का सहारा लेने की क्या जरूरत? या कहीं किसी को कोई भय सता रहा है?
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Tuesday, 11 May 2021

"Disqualified दादा कल्चर" फ़ैलाने वालों से बचें!

हरयाणवी कल्चर में दादा 

या तो गाम के खेड़े को कहा जाता है 

या तो पिता के पिता को 

या गाम के नेग से दादा लगने वाले 36 बिरादरी व् सर्वधर्म के व्यक्ति को 

या किसी खाप-तपे के चौधरी को कहा जाता है| 

इस परिधि से बाहर आने वाले हर बुजुर्ग को "ताऊ" कहा जाता है, जैसे "ताऊ देवीलाल"| 

विशेष: ऊपर लिखित परिधि से बाहर वाले को "ताऊ" कहने के साथ-साथ ताऊ, पिता का बड़ा भाई या गाम के नेग में ताऊ लगने वाले 36 बिरादरी व् सर्वधर्म के व्यक्ति को कहा जाता है| 

जय यौद्धेय! - फूल मलिक  

Monday, 10 May 2021

फ्रांस का लोकल आयुर्वेद!

1) साबूत अलसी (Lin), तिल, रागी का खाने में प्रचुर प्रयोग होता है| pave lin, baguette, में सबसे ज्यादा|

2) आंवला व् इसकी सिस्टर प्रजातियों जैसे "riene-claude" के मुरब्बे खूब खाये जाते हैं|
3) सरसों के तेल की स्पेशल सॉस होती हैं, फ्रांस का Dijon city - Ville de moutarde" यानि "सरसों का शहर" भी कहा जाता है|
4) तिल (sesame) का तेल, जैतून (olive) का तेल सबसे ज्यादा खाया जाता है|

और भी कई उदाहरण हैं| और यह सब इनके यहाँ लोकल ही पैदा होते हैं|

बस फर्क इनमें और हम में इतना है कि यह देशी खाने-दवाई का इन्हीं की बनाई अंग्रेजी खाने-दवाई से व्यर्थ का कम्पटीशन करके, लोगों को भड़क दिए नहीं रहते| और शायद यही इनके विकसित होने की सबसे बड़ी परन्तु मूक वजहों में से एक है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Friday, 7 May 2021

चौधरी अजित सिंह को उनकी मृत्यु पर सिर्फ जाट नेता कहने-लिखने वालो सुनो!

पहली तो बात:
1) कभी नरेंद्र मोदी को भी मोढ़ बनियों (जो तेल का व्यापार करते हैं) का नेता कह-लिख लिया करो? जिसने पिछले 7 साल से सारी ओबीसी पागल बना रखी कि वह तेलियों वाला ओबीसी है? जनाब धंधा तेल का होना व् तेल निकालने का काम करना दोनों अलग-अलग होते हैं| तेल निकालने वाला तेली होता है, बेचने-खरीदने वाला नहीं; अन्यथा मुकेश अम्बानी, मोदी से भी बड़ा तेली कहा जाना चाहिए| और गुड़ बनाने वाला किसान नहीं, व्यापारी कहा जाना चाहिए|
2) कभी अमितशाह को भी जैनियों का नेता कह-लिख लिया करो? जिसका कि दादा तो बताया भी मुस्लिम से कनवर्टेड|
3) कभी अटलबिहारी वाजपेई को भी ब्राह्मणों का नेता कह-लिख लिया करो?
4) कभी मनोहरलाल खटटर को भी खत्रियों मात्र का नेता कह-लिख लिया करो?
दूसरी बात:
अपनी यह आदत आगे के लिए सुधार लो| क्योंकि अब "के बिगड़ै सै", "जाण दो रै" वाले जमींदार-किसान गए बख्तों की बात हो ली| अब "तुम डाल-डाल, हम पात-पात" वाले तैयार हो रहे हैं; थारी तसल्ली से कलम थोब्बी जागी| और नहीं हुए हैं तो मेरे जैसे बहुतेरे दिन-रात इसी बिपदा में जीवैं सैं कि जब तक उदारवादी जमींदारों के अंतिम बालक तक को थारे "PRO" ना बना देंगे; हमनें चैन नहीं| अगर तुम हमारी कौमों मात्र से होने वाले सर्वसमाज द्वारा स्वीकृत नेताओं को भी सिर्फ हम में से जिस समाज से आते हैं उन तक सिमित करने की कुचेष्टाओं से बाज नहीं आए तो आने वाले वक्त में खुद के समाज के नेताओं के लिए इसी तरह के व्यापक स्तर के सम्बोधन पढ़ने-सुनने की आदतें अभी से डालनी शुरू कर लो|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

आईए फंडियों की एक और केटेगरी बारे जान लेते हैं!

जातिवाद-वर्णवाद में अंधे कैसे हुआ जाता है इसकी एक बानगी देखनी है तो आज के अखबारों में कल चौधरी अजीत सिंह के निर्वाण पर हुई कवरेज देखिएगा| नोट कीजियेगा कि कितने अखबारों ने उनको सिर्फ किसान नेता लिखा और कितनों ने जाट नेता लिखा| साथ ही इन सब लिखने वालों के उपनाम भी नोट कीजिएगा| गारंटी देता हूँ सिर्फ "जाट नेता" कह के पूरा लेख लिखने वाले तमाम फंडी मिलेंगे| और यह वही मिलेंगे जो कभी इनकी बिरादरी से आने वाले किसी नेता के नाम के आगे-पीछे उसकी जाति-वर्ण कभी नहीं लिखते| उदाहरण के तौर पर कुछ कटिंग्स सलंगित भी किए दे रहा हूँ| इनको फर्क नहीं पड़ता कि तुम कितने महान बने, शहरी रहते हुए बने या ग्रामीण, अक्षरी ज्ञान वाली डिग्रियां होते हुए बने या जिंदगी के तजुर्बे वाली विद्वानी से; इनके लिए अगर तुम इनकी बिरादरी के नहीं हो तो सिर्फ तुम्हारी जाति के नेता और इन वाली के हो तो सर्वसमाज के नेता| 


यह मत समझिएगा कि वर्ण-जाति-आडंबर-पाखंड फैलाने वाला ही फंडी है; यह अखबार वाले फंडी "वर्ण-जाति-आडंबर-पाखंड फैलाने" वालों के भी फूफा होते हैं| 

 

जय यौद्धेय! - फूल मलिक 









Monday, 3 May 2021

अपने धर्म में दान के सदुपयोग बारे सिखी जैसे सुधार करवाईये!

क्योंकि दान में धन-अनाज आप भी इतना ही देते हैं, परन्तु सिखी में दिया उसी मकसद व् नियत में काम आता है जिसके लिए दिया जाता है; उदाहरणार्थ किसान आंदोलन व् कोरोना महामारी| जबकि धर्म के नाम पर आप जिन नर-पिशाचों को दान दे रहे हैं; यही आपकी सबसे बड़ी दुर्गति की वजहें हैं| ना आपके दान से आपका यश बढ़ता, ना मानवता की सेवा में ये उसको लगाते|

हाल-फ़िलहाल धर्म में सुधार की कोई मुहीम नहीं चला सकते हो तो कम-से-कम इतना तो कर सकते हो कि अपना दान अपने पुरखों की भांति अपने हाथों से लगाओ, इन फंडी-फलहरियों को मत इसके खसम बनाओ|
देख लो आपके पुरखे जब अपने हाथों में कण्ट्रोल रख के धर्म-दान करते थे तो हर दस कोस पर गुरुकुल बनाए थे, जाट एजुकेशन संस्थाओं की हर जिले में जाट कॉलेज, जाट स्कूलों के नाम से सिरिजें बनाई थी| परन्तु जब से आपने यह कमांड इन फंडियों के हाथों में सरकाई है, क्या लगा है एक नया टोरड़ा, इन सीरीजों में बढ़ोतरी हेतु? इन पुरखों की खड़ी की इमारतों की मरम्मत में ही लगा हो? सोधी में आईये और अपनी अधोगति के खुद दोषी होने को सबसे पहले करेक्ट कीजिए| कहाँ वो पुरखे थे जिन बारे कहा जाता था कि, "जाट रोटी खिलाएगा तो गले में रस्सा डाल के" और कहाँ तुम उन अक्षरी अनपढ़ ग्रामीण पुरखों की तुलना में ज्यादा पढ़े लिखे व् शहरी होते हुए व् उनसे ज्यादा दान-पुण्य करके भी 35 बनाम 1 झेल रहे हो| कमी सारी इस दान की दिशा व् कण्ट्रोल ढीली छोड़ देने में छुपी है; कण्ट्रोल में लीजिये इसको|
और यह नहीं कर सकते तो गुरुद्वारों में दान करना शुरू कर दो; पड़े बेशक वहीँ रहो धर्म के नाम के जहाँ पड़े हो, यह इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि फिर तुम में से भक्त टाइप स्याणा कहेगा कि देखो धर्म-परिवर्तन की बात कर रहा है| ना मैं सिर्फ दान की दिशा व् कण्ट्रोल को पुरखों की भाँति करेक्ट करने की बात कर रहा हूँ|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Sunday, 2 May 2021

2 मई के चुनाव नतीजों के बाद, किसानों पर ट्राई होगा धर्म की अफीम का इमोशनल कार्ड!

किसान नेताओं पर अब यह धर्म व् धर्मगुरुओं का इमोशनल ट्रैप फिंकवाने का पैंतरा चलने की ताक में रहेंगे; खासकर तथाकथित धर्म की अफीम सूंघे हुए, पीछे बीजेपी को वोट कर चुके व् संघी बैकग्राउंड के नेताओं के जरिए| ठोड्डी पकड़ते हुए, सत्यार्थ प्रकाश वाले "जाट जी" की स्तुति वाले ग्यारहवें सम्मुलास की भांति कहेंगे कि, "अगर सब संसार जाट जी जैसा मानवीय हो जाए तो संसार से पाखंडलीला खत्म हो जाए व् पंडे भूखे मर जाएँ"| अबकी ऐसी कोई बात आवे तो इनको बोलना कि "हम कौन होते हैं आपको खत्म करने वाले, "गीता ज्ञान" की घूंटी पियो-पढ़ो और कर्म करो; कर्म करने से कौन भूखा मरा भला"? तुम ही कहते हो ना कि "कर्म किए जा फल की चिंता ना कर रे इंसान, जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान; ये है गीता का ज्ञान"? तो लागू करो इसको पहले खुद पे|


और अगर कोई तुमको रघुवंशी या चंद्रवंशी बता के राम या कृष्ण की दुहाई देता आवे और किसान आंदोलन में कोई ऐसी दुहाई रखे कि, "एक कदम तुम पीछे हट लो, एक कदम सरकार हट लेगी" तो कहना कि आर्य-समाज के सत्यार्थ प्रकाश में ही इसके बारहवें सम्मुल्लास में रामायण व् महाभारत दोनों को ब्राह्मण मूल शंकर तिवारी उर्फ़ महर्षि दयानन्द बोगस-गपोड़ कथाएं बता के गए हैं तो उसके हिसाब से तो आपके यह दावे बोगस हुए?

और इन सबसे भी बड़ा लॉजिक: भाई जब कुछ हमारी जेब में छोड़ेगा यह 90 साल लगा के तुम लोगों का ही खड़ा किया विश्वगुरु यानि मोदी, तभी तो तुम पंडे-पुजारियों के पेट पालने लायक भी कुछ कर पाएंगे, हम? अब पिछले 5 महीने से बैठे हैं सड़कों-बॉर्डरों पर, तुमने तो 99% ने आ के आज तक ज्यात भी ना पूछी म्हारी? तो आज क्यों हिया निकला जाता है तुम्हारा?

तुम चिंता ना करो, यह तुम्हारे भी पेट पालने की लड़ाई है और शर्म बची हो कुछ तो हमारे साथ लगो अन्यथा हमें हमारे हाल पे छोड़ दो यानि हमारा पैंडा छोड़ दो| क्योंकि तुम्हें चिंता होगी तुम्हारे पेट-मात्र की, जैसे कि ऊपर कही; परन्तु हमें चिंता सिर्फ पेट की नहीं, फसल-नश्ल के साथ-साथ मानवता व् देश बिकने से बचाने की भी है| चिंता ना करो, धुर्र पुरखों के बख्तों से तुम्हारी "दो जून की रोटी व् साल का दो जोड़ी कपड़ा" यह कृषक समाज पुगाता आया व् पुगाता रहेगा बशर्ते हमें हमारे इस ब्योंत को कायम रखने की इस लड़ाई में साथ दो म्हारा ना कि इमोशनल ट्रैप खेलो हम पे|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Saturday, 1 May 2021

जिंद (जींद) रियासत की खापों के 19वीं सदी के अंग्रेजों को टैक्स नहीं देने के अनूठे किस्से!

किस्सा नंबर 1: "लजवाने वे तुवाडा नाश जावीं, तैनू वड्डे पुत्त खपाए"
यह कहावत पटियाला-नाभा रियासतों में तब चली थी जब जिंद रियासत का "सर्वखाप बनाम अंग्रेज" लजवाना कांड हुआ था| दलाल खाप ने लड़ाई शुरू की, गठवाला खाप ने मुंहअंधेरे झोटे पे गुड़ के कड़ाहे बाँध उनके नीचे छुपा छह महीने तक गोला-बारूद व् रशद पहुँचाई| अंत परिणाम यह हुआ कि जिंद महाराज को अपनी राजधानी जिंद से संगरूर स्थान्तरित करनी पड़ी|
किस्सा नंबर 2: जिंद रियासत का एक और गाम है धनाणा, जो आज के दिन जिला भिवानी में लगता है; मेरा नानका, जाटू खाप 84 का हेडक्वार्टर, ऐसी खाप जो अपनी तौब रखती थी; आज भी बंगला धनाना में रखी है| उसपे कहावत चलती है कि
"हरयाणे के बीच म्ह, एक बसै गाम धनाना,
सूही साधे पागड़ी, यौद्धेयों का बाणा!
नौ-सो नेजे भकडते, घुड़ियन का हिनहिनाणा,
तुरई-टामक बाजते, बुर्जों के दरमियाणां!
बापौड़ा मत जाणियों, है यु गाम धनाणा|"
अंग्रेज कभी इस गाम से टैक्स नहीं उगाह पाए, जबकि साथ लगते जनरल वीके सिंह के गाम बापौड़ा से उगाह लेते थे|
किस्सा नंबर 3: आज का जिला चरखी-दादरी, उस वक्त जिंद रियासत का हिस्सा होता था| सांगवान व् फौगाट खापों के गुस्से से अंग्रेजों को यहाँ भी 2-4 होना पड़ता था|
ये आज के राजनेता जरा इतिहास को भान में रख के बरतेवा करें अपनी जनता से| तुम ताकत पा के फ़ौराते होंगे, सर्वखाप वाले वो हैं जो अपनी आई में "धरती पर सूरज जिनके राज में नहीं छुपते" की कहावतों वाले अंग्रेजों तक को नहीं गोळा करते व् झुका लिया करते थे| ये अपनी 52 बुद्धियाँ अपने तक रखो, क्योंकि सर्वखाप 56 बुद्धि हैं; वह बात अलग है कि यह 4 बुद्धियों का इस्तेमाल करते सिर्फ एक्सेप्शनल अवस्था में हैं; तो यह अवस्था ना आने पाए|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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Friday, 30 April 2021

ब्राह्मण समाज की ऐसी बातों से सीखना चाहिए!

अक्सर सर्वसमाज के फंडियों के (सनद रहे सर्वसमाज लिखा है, कोई समाज या जाति विशेष नहीं) विरुद्ध रहने के चलते लोग मुझे यह मान लेते हैं कि यह तो ढोंग-पाखंड-आडंबर आदि के नहीं अपितु किसी जाति विशेष के ही खिलाफ है| अब इसमें या तो दोष ऐसे समाज का जो इन बातों का पर्याय माना जाता हो या समझने वाले की सोच ऐसी, वरना मैं सिर्फ फंड व् फंडी पर आक्रामक रहता हूँ| और इसमें मेरा कोई कसूर नहीं क्योंकि बचपन से मेरे सगे दादा से ले सारे चचेरे दादाओं, पड़दादाओं को फंडियों की रेल बनाते देखा है वो भी पिण्डियों पे लठ-कामची मार-मार के और बस इसीलिए इस फंडी शब्द से तो ऐसा बैर है जैसा बाजी-बाजी भैंस-गाय को लाल लत्ते से होता है| चलिए, आज के विषय पर आते हैं|

समाज में, जाति में, एकता सिर्फ "जाट एकता, गुज्जर एकता, राजपूत एकता दलित एकता, ओबीसी एकता" चिल्लाने भर से नहीं आया करती; उसके लिए ब्राह्मण की तरह आपको वजहें व् मंशाएं भी उतनी ही क्रिस्टल क्लियर होनी चाहियें जितनी इस लेटर में हैं| समाज में आपकी जाति आपकी कौम की एक ब्रांड कैसे कायम रखी जाए उसके लिए ब्राह्मण समाज से सीखिए कि "एक पंडित को थप्पड़ त्रिपुरा में लगता है और दर्द फरीदाबाद वाले को होता है"|
फिर भले ही इनमें आंतरिक कितना ही मतभेद हो; मतभेद इतना है कि महाराष्ट्र का चितपावनी ब्राह्मण, हरयाणा वाले को शूद्र तुल्य यानि ब्राह्मणों में सबसे न्यूतम श्रेणी का समझता है व् इनको हेय की दृष्टि से देखता है| और यही वजह है कि आरएसएस की सरकार होते हुए भी, हरयाणा में रामबिलास शर्मा जैसा सीएम योग्य ब्राह्मण चेहरा होते हुए भी इनको सीएमशिप नहीं दी गई| हालाँकि एक हरयाणवी होने के नाते इस मामले में मैं चितपावनी ब्राह्मण की बजाए हरयाणवी ब्राह्मण के साथ हूँ क्योंकि वह जाट के बाद हरयाणा की सबसे बड़ी कृषक जाति है|
विषय पर रहते हुए; आपकी आंतरिक एकता के, सौहार्द के, ब्रांड के पैमाने-सिद्धांत निःदेह सबके एक जैसे नहीं हो सकते; परन्तु इन बातों को कायम रखने के जो "वैल्यू-सेट" होते हैं, जिसको कि "KINSHIP" भी कहा जाता है; वह अगर आप अपनी अगली पीढ़ियों को पास नहीं कर रहे तो मानें कि आप बोझ हैं खुद पर और कौम-समाज पर भी; फिर चाहे आप कोई राजनेता हों, अभिशासक हों, कृषक हों, मजदूर हों, व्यापारी हों या चाहे धन के अंबार आपके यहाँ लगे हों; आप बिना "KINSHIP" समाज में कोई पहचान नहीं पा सकते| वो कहावत है ना कि, "धन तो वेश्या भी कमा लेती है, परन्तु इज्जत?"; यह कहावत समाज के धनी परन्तु "KINSHIP" से रहित लोगों पर भी इतनी ही सटीक होती है; किसी को इसकी व्याख्या चाहिए कि क्यों, तो फिर कभी बता दूंगा|
अपनी व्यक्तिगत व् प्रोफेशनल जिंदगी के अलावा मैंने मेरी सोशल जिंदगी, 2008 से इसीलिए "उदारवादी जमींदारी" की खाप-खेड़ा-खेत थ्योरी को समर्पित कर रखी है| फरवरी 2016 ने तो इस सोच में इतनी दृढ़ता ला दी कि जैसे यह उद्देश्य मेरा प्राण बन गए हों| निर्धारित है कि सोशल सर्विस के नाम पर कुछ करूँगा तो आजीवन पुरखों की "यौद्धेय" परम्परा को आगे ले कर जाऊंगा और इसको हर समय-बदलाव का फिट बना के ले के जाऊंगा| और जब-जब मुझे इसके लिए प्रेरणा की कमी महसूस होती है या अपने मार्ग की वजहें सुनिश्चितता से क्रॉस-चेक व् कन्फर्म करनी होती हैं तो "ब्राह्मण सभा" के ऐसे पत्रों व् मानकों को सामने रख के खुद को आश्वस्त करता हूँ; हालाँकि मैं खुद को प्रेरित करता हूँ सम्पूर्ण उदारवादी जमींदारी की थ्योरी के लिए जो कि इसके अग्रदूत समाज के साथ-साथ सर्वधर्म व् सर्वसमाज को ले कर चलती आई है| दूसरा ऐसा समाज है बनिया, वह तो ब्राह्मणों से भी महीन तरीके से सुलझा हुआ समाज है|
अत: अपने अंदर इतनी संवेदना, ललकता, दर्द जरूर रखिए कि थप्पड़ त्रिपुरा में लगे तो दर्द फरीदाबाद में हो, फरवरी 2016 का 35 बनाम 1 हरयाणा में हो तो दर्द फ्रांस तक हो या आप दुनियां के जहाँ जिस कोने में बैठे हों, वहां तक हो| और वह दर्द एक चिंगारी बन जानी चाहिए; उसमें हुए गलत-सही को समझ कर अपने समाज-कौम की आगे की राह सुदृढ़ करने हेतु|
काश, ब्राह्मण समाज पंडित हर्षवर्धन पर जब मनोहर लाल खट्टर ने फरसा चलाया था तब भी ऐसा लेटर पीएम को लिखने की हिम्मत कर पाता तो शायद आज हरयाणा का जो बेहाल हुआ पड़ा है यह होने से बच जाता| या ऐसी दरखास जाति देख के दी जाती है, पता नहीं|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक



आईये जानते हैं जिंद (जींद शहर) के नाम, रियासत-बसासत, फैलाव व् इसकी सम्पदा बारे!

पोस्ट में सलंगित यूट्यूब के गाने, "जिंद ले गया वो दिल का जानी, ये बुत बेजान रह गया" में जिंद का जो मतलब है वही मेरे होमटाउन जिंद यानि जींद का मतलब है|


जिंद यानी जान; शायद ही विश्व में किसी शहर का इतना सुंदर नाम हो!

फुल्किया मिशल (सिख सरदार चौधरी फूल सिंह संधू के नाम से) की तीन सिख रियासतों में से एक रही है जिंद (अन्य दो पटियाला और नाभा रही हैं)| जिंद पंजाबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है जान|

वैसे इत्तेफाक से मेरा नाम भी फूल ही है| मेरे नाम से हमारे इलाके में बहुत बड़ी-बड़ी हस्तियां हुई हैं| जैसे एक तो यह तीन फुल्किया रियासतें ही, जिनके संस्थापक पुरखे सरदार चौधरी फूल सिंह संधू थे| और दूसरे उत्तर भारत में महिला शिक्षा जागृति-प्रचार-प्रसार के कालजयी मसीहा भगत चौधरी फूल सिंह मलिक, जिनके नाम से भगत फूल सिंह महिला यूनिवर्सिटी, खानपुर, गोहाना है| यह वही यूनिवर्सिटी है जहाँ से मिस वर्ल्ड 2018 मानुषी छिल्लर अपनी एमबीबीएस कर रही हैं|

रियासत बनने से पहले जिंद एक गाम होता था, जिसका "दादा नगर खेड़ा" आज भी सफीदों गेट के पास सब्जी मंडी वाले मोड़ पर है| इसके अलावा मैंने अभी तक किसी अन्य शहर में दादा नगर खेड़ा नहीं देखा और जिंद में दादा नगर खेड़ा का होना प्रमाणित है कि जिंद रियासत बनने से पहले एक गाम था| अठारहवीं सदी के मध्य के अड़गड़े यह रियासत बनी थी|

जिंद की नहर तरफ सब खेत या बाग़-जंगल थे| आज जहाँ जयंती देवी मंदिर व् सीनियर सेकेंडरी स्कूल है वहां भी खेत-बाग़ होते थे| यह सब इस रियासत के बसने के बाद लगभग एक सदी बाद बने हैं|

दड़े वाले मिलिट्री हेडक्वार्टर वाले किले और रानी तालाब के पास वाले दीवानी कचहरी गतिविधियों वाले किलों के बीच पहले कोई बसासत नहीं होती थी| यह सब आज़ादी के बाद बसे बाजार हैं; खासकर हनुमान गली से ले दड़े वाले किले के बीच तो दोनों तरफ बाग़ हुआ करते थे| गली के इधर सिटी थाना होता था और कुछ राजकर्मचारियों की रिहायशें| दुर्भाग्यवश आज के दिन दोनों किलों में से एक भी नहीं है| यह दोनों किले जितने विशाल और बड़े होते थे, पूरे उत्तरी भारत में ऐसे ऊँचे और मजबूत किले नहीं हुए कभी| कचहरी वाला किला1993 में गिरा दिया गया था तो दड़े वाला दूसरा 2002 में|

लेकिन जेहन में दोनों किलों की यादें कैनवास की तरह आज भी तरोताजा हैं| दड़े वाले किले में सरकारी क्वार्टर होते थे और मेरे फूफा जी को वहां क्वार्टर मिला हुआ था| पहली बार इस किले में 4-5 साल का था तब जाना हुआ था| और उसके बाद से 2002 तक (जब इसको ढहाया गया) इस किले से इतना लगाव रहा कि आज भी इसकी मीनारें-दर-दरवाजे और उनकी ऊचाईयां-चौडाईयाँ जेहन में ज्यों-की-त्यों तरोताजा धरी हुई हैं| कोई नक्शा बनाने की कहे तो ज्यों का त्यों आर्किटेक्ट डिजाईन खींच सकता हूँ|

जिंद में जब तक रहा (कक्षा पहली से दसवीं आरएसएस के एसडी स्कूल, जिंद से की है) तो जैसे ही फुरसत लगती, भाई या दोस्त कोई मिलता तो ठीक, नहीं तो अकेला ही इस किले में राउंड लगाने चला आता था| एक-एक मीनार से होते हुए पूरे किले का राउंड लगा, शहर को हर मीनार से देख-निहार के ही उतरता था| फिर भले एक घंटा लगो या दो| ग्यारहवीं में जिंद छूटा तो भी जब भी छुट्टियों में आता तो इस किले की हर दरों-दिवार को छू के आता, शायद बातें भी करता था| सबसे रोचक होता था पूर्व-दक्षिण की दीवार पर खड़ा हो के रानी तालाब से ले अर्बन-एस्टेट वाली पानी की टंकी और इधर सफीदों रोड वाले कुंदन सिनेमा से नजरें होते हुए नहर पार राजा की कोठी तक कैनवास स्टाइल में सब देखना| वह मनमोहक कैनवास देखते हुए फीलिंग होती थी "गुमनाम है कोई बदनाम है कोई" गाने वाली|

काश! उस वक्त इतनी समझ होती और उन किलों को तोड़े जाने से बचा पाता|

खैर आप गाना सुनिए और इस नाम की मधुरता का आनंद लीजिये!
जय यौद्धेय! - फूल मलिक