Wednesday, 17 January 2024

कोई 300 साल पुराना जाटो का इतिहास मांगे तो ये साझा कर देना।


1000 साल पहले अलबरुनी भारत आता है और कृष्णा को जाट लिखकर जाता है।
सिंध में कैकान की पहाड़ियों के जाट मोहम्द बिन कासिम से लड़ते है।
कर्नल टॉड को 5वी सदी के जाट राजा शैलेन्द्र का शिलालेख मिलता है।
5वी सदी के जाट राजा का बूंदी से शिलालेख मिलता है।
1हजार साल पहले रणथंभौर किले का निर्माण नागिल जाट करवाते है। जो अखबारों में भी कई बार आ चुका है ।
पृथ्वीराज की मौत 1192 में हुई है और 1206 में मोहम्मद गोरी की गर्दन काटकर खोखर जाट मारते है ।
रज़िया सुल्तान को जाटो में मारा था।कुतुबुद्दीन ऐबक के समय जाटवान मलिक लड़ रहा था।
पृथ्वीराज रासो में जाट राजा सारंगदेव का जिक्र है ।
महमूद ग़ज़नी जब सोमनाथ मंदिर लूटकर ले जा रहा था तो सिंध के जाटो में उसे लूट लिया था।जिस वजह से उसका आखरी हमला जाटो के खिलाफ ही था।
जिसमे महमूद ग़ज़नी के गवर्नर की गर्दन जाटो ने काट दी थी और इसके लिए जाटों ने 500,000 दिरम की सुपारी ली थी।
कासिम के हमले के बाद बगदाद में जाटों ने 6 महीने रास्ता बंद कर दिया था।
14वी सदी की कास्थानागर(काठा) जाटो की रियासत जो जमुना के किनारे थी। जिसका राज 300 साल तक चला । जिसका मुख्य केंद्र आज का काठा गांव बागपत में है। जहाँ किले के कुछ खंडर अभी भी दिख जाते है।
जांगल देश में 1488 तक जाट सत्ता कायम थी।
ये सब तो उस तथाकथित 300 साल से पुराना इतिहास है वो भी अभी पूरा नही बताया। अभी सिख और मौले जाट का रुतबा बाकि है ।
जो भी बात बताई है।उनके सबके सबूत मौजूद है।
बात यह है कि आप अपने इतिहास का जिक्र किसी को नीचा दिखाने के लिए न करे। बल्कि खुद को भरोसा दिलाए कि आप दुनिया का कोई भी मुश्किल काम करने की क्षमता रखते है।
और भविष्य बायोटेक्नोलॉजी का है। तो सारा इतिहास जेनेटिक पर शिफ्ट हो रहा है। दूसरे समूहों से ऐतिहासिक बहस करके टकराव न करे।हर फील्ड में वर्तमान को बेहतर करने के लिए मेहनत,लगन,मजबूत माइंडसेट से जुट जाए।
वास्तविक जट्ट - Dinesh Singh Behniwal

Tuesday, 16 January 2024

ANCIENT EGYPTIAN RELIGION AND INDIA'S CONSPIRATORIAL HISTORY: INDIAN INTELLECTUALS HAVE WRITTEN WRONG HISTORY

 

तु अभी रह गुज़र में है क़ैद मुक़ाम से गुज़र 

मिस्र व हेजाज़ से गुजर, पारस व शाम से गुज़र (इक़बाल) 

हेजाज़ किसी देश का नाम नहीं है बल्कि हेजाज़ सऊदी अरब के जद्दह, मक्का, मदीना और तायफ के एलाक़ा को कहते है।इसी हेजाज़ से सातवी (7वी) शताब्दी के इस्लाम की तारीख़ वाबिस्तह है। 

भारत मे सब से पहला मंदिर आठवी (8वी) शताब्दी मे बना जिस मे बोध गया का महाबोधी मंदिर (726 AD) है, जो आज नज़र आता है।अशोक के वक्त का वैशाली विरान है केवल "अशोक के लाट" के। अशोक के तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालय का खंढर नज़र आता है। 

जो भी पहला हिन्दू मंदिर भारत मे बना जैसे महाराष्ट्रा का अजंता-ऐलोरा (756-773) वह सब आठवीं शताब्दी के आखिर मे बना। उड़ीसा का कोणार्क या भुवनेश्वर का मंदिर जो आज नज़र आता है वह सब 12वी या 13वी शताब्दी मे बना। 

दुनिया का सब से पुराना मंदिर मिस्र में 7000-8000 साल पहले बना जो आज भी मौजूद है।मिस्र का सब से पुराना मंदिर 2000 साल तक बनता रहा, जो नया राजा बनता था वह मंदिर का विस्तार करवाता था। 

ईजिप्ट के राष्ट्रपति जमाल अबदूल नासीर ने जब 1956 मे मिस्र के आसवान मे नील नदी पर दुनिया का सब से बडा डैम बनाने का काम शुरू किया तो बनाते समय यह पता चला के 7,000 से भी पूराना कुछ संरचना (Structure) पानी मे चला जाये गा जिस मे सब से "विशाल संरचना" (huge structure) अबू सिम्बेल का मंदिर (Abu Simbel Temple) भी पानी के नज़र हो जाये गा। 

राष्ट्रपति नासीर ने ग्रीस और मिस्र के इंजीनियर को बोला कर कहा हम हर किमत पर इस मंदिर (Structure) को बचाना चाहते हैं। इंजीनियर लोगो ने इस को वहॉ से किसी दूसरी ऊँची जगह पर स्थानांतरित (relocate at higher place) करने की सलाह दी।

1964-68 मे करोड़ों डॉलर खर्च कर पूरी मंदिर को स्थानांतरित कर दिया गया जो आज भी "विशाल संरचना" के साथ आसवान डैम के करोड़ों विदेशी पर्यटक का मशहूर दार्शनिक जगह है (देखे नीचे पहली तसवीर)।
मुस्लिम मंदिर 20वी सदी मे भी नही तोडा तो मुग़ल कैसे 17वी शताब्दी मे मंदिर तोड़ता? यह सच्चाई शोध का विषय है न की आस्था का।

By: Mohammed Seemab Zaman

Sunday, 14 January 2024

100 facts about Jats

स्वयं को महान् कहने से कोई महान् नहीं बनता । महान् किसी भी व्यक्ति व कौम को उसके महान् कारनामे बनाते हैं और उन कारनामों को दूसरे लोगों को देर-सवेर स्वीकार करना ही पड़ता है। देव-संहिता को लिखने वाला कोई जाट नहीं था, बल्कि एक ब्राह्मणवादी था जिसके हृदय में इन्सानियत थी उसने इस सच्चाई को अपने हृदय की गहराई से शंकर और पार्वती के संवाद के रूप में बयान किया कि जब पार्वती ने शंकर जी से पूछा कि ये जाट कौन हैं, तो शंकर जी ने इसका उत्तर इस प्रकार दिया -

महाबला महावीर्या महासत्यपराक्रमाः |

सर्वांगे क्षत्रिया जट्टा देवकल्पा दृढ़व्रताः ||15||

(देव संहिता)


अर्थात् - जाट महाबली, अत्यन्त वीर्यवान् और प्रचण्ड पराक्रमी हैं । सभी क्षत्रियों में यही जाति सबसे पहले पृथ्वी पर शासक हुई । ये देवताओं की भांति दृढ़ निश्चयवाले हैं । इसके अतिरिक्त विदेशी व स्वदेशी विद्वानों व महान् कहलाए जाने वाले महापुरुषों की जाट कौम के प्रति समय-समय पर दी गई अपनी राय और टिप्पणियां हैं जिन्हें कई पुस्तकों से संग्रह किया गया है लेकिन अधिकतर टिप्पणियां अंग्रेजी की पुस्तक हिस्ट्री एण्ड स्टडी ऑफ दी जाट्स से ली गई है जो कनाडावासी प्रो० बी.एस. ढ़िल्लों ने विदेशी पुस्तकालयों की सहायता लेकर लिखी है -


1. इतिहासकार मिस्टर स्मिथ - राजा जयपाल एक महान् जाट राजा थे । इन्हीं का बेटा आनन्दपाल हुआ जिनके बेटे सुखपाल राजा हुए जिन्होंने मुस्लिम धर्म अपनाया और ‘नवासशाह’ कहलाये । (यही शाह मुस्लिम जाटों में एक पदवी प्रचलित हुई । भटिण्डा व अफगानिस्तान का शाह राज घराना इन्हीं के वंशज हैं - लेखक) ।


2. बंगला विश्वकोष - पूर्व सिंध देश में जाट गणेर प्रभुत्व थी । अर्थात् सिंध देश में जाटों का राज था ।


3. अरबी ग्रंथ सलासीलातुत तवारिख - भारत के नरेशों में जाट बल्हारा नरेश सर्वोच्च था । इसी सम्राट् से जाटों में बल्हारा गोत्र प्रचलित हुआ - लेखक ।


4. स्कैंडनेविया की धार्मिक पुस्तक एड्डा - यहां के आदि निवासी जाट (जिट्स) पहले आर्य कहे जाते थे जो असीगढ़ के निवासी थे ।


5. यात्री अल बेरूनी - इतिहासकार - मथुरा में वासुदेव से कंस की बहन से कृष्ण का जन्म हुआ । यह परिवार जाट था और गाय पालने का कार्य करता था ।


6. लेखक राजा लक्ष्मणसिंह - यह प्रमाणित सत्य है कि भरतपुर के जाट कृष्ण के वंशज हैं ।


इतिहास के संक्षिप्त अध्ययन से मेरा मानना है कि कालान्तर में यादव अपने को जाट कहलाये जिनमें एकजुट होकर लड़ने और काम करने की प्रवृत्ति थी और अहीर जाति का एक बड़ा भाग अपने को यादव कहने लगा । आज भी भारत में बहुत अहीर हैं जो अपने को यादव नहीं मानते और गवालावंशी मानते हैं ।


7. मिस्टर नैसफिल्ड - The Word Jat is nothing more than modern Hindi Pronunciation of Yadu or Jadu the tribe in which Krishna was born. अर्थात् जाट कुछ और नहीं है बल्कि आधुनिक हिन्दी यादू-जादु शब्द का उच्चारण है, जिस कबीले में श्रीकृष्ण पैदा हुए।


दूसरा बड़ा प्रमाण है कि कृष्ण जी के गांव नन्दगांव व वृन्दावन आज भी जाटों के गांव हैं । ये सबसे बड़ा भौगोलिक और सामाजिक प्रमाण है । (इस सच्चाई को लेखक ने स्वयं वहां जाकर ज्ञात किया ।)


8. इतिहासकार डॉ० रणजीतसिंह - जाट तो उन योद्धाओं के वंशज हैं जो एक हाथ में रोटी और दूसरे हाथ में शत्रु का खून से सना हुआ मुण्ड थामते रहे ।


9. इतिहासकार डॉ० धर्मचन्द्र विद्यालंकार - आज जाटों का दुर्भाग्य है कि सारे संसार की संस्कृति को झकझोर कर देने वाले जाट आज अपनी ही संस्कृति को भूल रहे हैं ।


10. इतिहासकार डॉ० गिरीशचन्द्र द्विवेदी - मेरा निष्कर्ष है कि जाट संभवतः प्राचीन सिंध तथा पंजाब के वैदिक वंशज प्रसिद्ध लोकतान्त्रिक लोगों की संतान हैं । ये लोग महाभारत के युद्ध में भी विख्यात थे और आज भी हैं ।


11. स्वामी दयानन्द महाराज आर्यसमाज के संस्थापक ने जाट को जाट देवता कहकर अपने प्रसिद्ध ग्रंथ सत्यार्थप्रकाश में सम्बोधन किया है । देवता का अर्थ है देनेवाला । उन्होंने कहा कि संसार में जाट जैसे पुरुष हों तो ठग रोने लग जाएं ।


12. प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ तथा हिन्दू विश्वविद्यालय बनारस के संस्थापक महामहिम मदन मोहन मालवीय ने कहा - जाट जाति हमारे राष्ट्र की रीढ़ है । भारत माता को इस वीरजाति से बड़ी आशाएँ हैं । भारत का भविष्य जाट जाति पर निर्भर है ।


13. दीनबन्धु सर छोटूराम ने कहा - हे ईश्वर, जब भी कभी मुझे दोबारा से इंसान जाति में जन्म दे तो मुझे इसी महान् जाट जाति के जाट के घर जन्म देना ।


14. मुस्लिमों के पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब ने कहा - ये बहादुर जाट हवा का रुख देख लड़ाई का रुख पलट देते हैं । (सलमान सेनापतियों ने भी इनकी खूब प्रतिष्ठा की इसका वर्णन मुसलमानों की धर्मपुस्तक हदीस में भी है - लेखक) ।


15. हिटलर (जो स्वयं एक जाट थे), ने कहा - मेरे शरीर में शुद्ध आर्य नस्ल का खून बहता है । (ये वही जाट थे जो वैदिक संस्कृति के स्वस्तिक चिन्ह (卐) को जर्मनी ले गये थे - लेखक)।


16. कर्नल जेम्स टॉड राजस्थान इतिहास के रचयिता ।

(i): उत्तरी भारत में आज जो जाट किसान खेती करते पाये जाते हैं ये उन्हीं जाटों के वंशज हैं जिन्होंने एक समय मध्य एशिया और यूरोप को हिलाकर रख दिया था ।

(ii): राजस्थान में राजपूतों का राज आने से पहले जाटों का राज था ।

(iii): युद्ध के मैदान में जाटों को अंग्रेज पराजित नहीं कर सके ।

(iv): ईसा से 500 वर्ष पूर्व जाटों के नेता ओडिन ने स्कैण्डेनेविया में प्रवेश किया।

(v): एक समय राजपूत जाटों को खिराज (टैक्स) देते थे ।


17. यूनानी इतिहासकार हैरोडोटस ने लिखा है

(i) There was no nation in the world equal to the jats in bravery provided they had unity अर्थात्- संसार में जाटों जैसा बहादुर कोई नहीं बशर्ते इनमें एकता हो । (यह इस प्रसिद्ध यूनानी इतिहासकार ने लगभग 2500 वर्ष पूर्व में कहा था । इन दो लाइनों में बहुत कुछ है । पाठक कृपया इसे फिर एक बार पढें । यह जाटों के लिए मूलमंत्र भी है – लेखक )

(ii) जाट बहादुर रानी तोमरिश ने प्रशिया के महान राजा सायरस को धूल चटाई थी ।

(iii) जाटों ने कभी निहत्थों पर वार नहीं किया ।


18. महान् सम्राट् सिकन्दर जब जाटों के बार-बार आक्रमणों से तंग आकर वापिस लौटने लगे तो कहा- इन खतरनाक जाटों से बचो ।


19. एक पम्पोनियस नाम के प्राचीन इतिहासकार ने कहा - जाट युद्ध तथा शत्रु की हत्या से प्यार करते हैं ।


20. हमलावर तैमूरलंग ने कहा - जाट एक बहुत ही ताकतवर जाति है, शत्रु पर टिड्डियों की तरह टूट पड़ती है, इन्होंने मुसलमानों के हृदय में भय उत्पन्न कर दिया।


21. हमलावर अहमदशाह अब्दाली ने कहा - जितनी बार मैंने भारत पर आक्रमण किया, पंजाब में खतरनाक जाटों ने मेरा मुकाबला किया । आगरा, मथुरा व भरतपुर के जाट तो नुकीले काटों की तरह हैं ।


22. एक प्रसिद्ध अंग्रेज मि. नेशफील्ड ने कहा - जाट एक बुद्धिमान् और ईमानदार जाति है ।


23. इतिहासकार सी.वी. वैद ने लिखा है - जाट जाति ने अपनी लड़ाकू प्रवृत्ति को अभी तक कायम रखा है । (जाटों को इस प्रवृत्ति को छोड़ना भी नहीं चाहिए, यही भविष्य में बुरे वक्त में काम भी आयेगी - लेखक)


24. भारतीय इतिहासकार शिवदास गुप्ता - जाटों ने तिब्बत,यूनान, अरब, ईरान, तुर्कीस्तान, जर्मनी, साईबेरिया, स्कैण्डिनोविया, इंग्लैंड, ग्रीक, रोम व मिश्र आदि में कुशलता, दृढ़ता और साहस के साथ राज किया । और वहाँ की भूमि को विकासवादी उत्पादन के योग्य बनाया था । (प्राचीन भारत के उपनिवेश पत्रिका अंक 4.5 1976)


25. महर्षि पाणिनि के धातुपाठ (अष्टाध्यायी) में - जट झट संघाते - अर्थात् जाट जल्दी से संघ बनाते हैं । (प्राचीनकाल में खेती व लड़ाई का कार्य अकेले व्यक्ति का कार्य नहीं था इसलिए यह जाटों का एक स्वाभाविक गुण बन गया - लेखक)


26. चान्द्र व्याकरण में - अजयज्जट्टो हूणान् अर्थात् जाटों ने हूणों पर विजय पाई ।


27. महर्षि यास्क - निरुक्त में - जागर्ति इति जाट्यम् - जो जागरूक होते हैं वे जाट कहलाते हैं ।

जटायते इति जाट्यम् - जो जटांए रखते हैं वे जाट कहलाते हैं ।


28. अंग्रेजी पुस्तक Rise of Islam - गणित में शून्य का प्रयोग जाट ही अरब से यूरोप लाये थे । यूरोप के स्पेन तथा इटली की संस्कृति मोर जाटों की देन थी ।


29. अंग्रेजी पुस्तक Rise of Christianity - यूरोप के चर्च नियमों में जितने भी सुधार हुए वे सभी मोर जाटों के कथोलिक धर्म अपनाये जाने के बाद हुए, जैसे कि पहले विधवा को पुनः विवाह करने की अनुमति नहीं थी आदि-आदि । मोर जाटों को आज यूरोप में ‘मूर बोला जाता है – लेखक ।


30. दूसरे विश्वयुद्ध में जर्मनी की हार पर जर्मन जनरल रोमेल ने कहा- काश, जाट सेना मेरे साथ होती । (वैसे जाट उनके साथ भी थे, लेकिन सहयोगी देशों की सेना की तुलना में बहुत कम थे

- लेखक)


31. सुप्रसिद्ध अंग्रेज योद्धा जनरल एफ.एस. यांग - जाट सच्चे क्षत्रिय हैं । ये बहादुरी के साथ-साथ सच्चे, ईमानदार और बात के धनी हैं ।


32. महाराजा कृष्णसिंह भरतपुर नरेश ने सन् 1925 में पुष्कर में कहा - मुझे इस बात पर अभिमान है कि मेरा जन्म संसार की एक महान् और बहादुर जाति में हुआ ।


33. महाराजा उदयभानुसिंह धोलपुर नरेश ने सन् 1930 में कहा- मुझे पूरा अभिमान है कि मेरा जन्म उस महान् जाट जाति में हुआ जो सदा बहादुर, उन्नत एवं उदार विचारों वाली है । मैं अपनी प्यारी जाति की जितनी भी सेवा करूँगा उतना ही मुझे सच्चा आनन्द आयेगा ।

34. डॉ. विटरेशन ने कहा - जाटों में चालाकी और धूर्तता,योग्यता की अपेक्षा बहुत कम होती है ।


35. मेजर जनरल सर जॉन स्टॉन (मणिपुर रजिडेंट) ने अपने एक जाट रक्षक के बारे में कहा था - ये जाट लोग पता नहीं किस मिट्टी से बने हैं, थकना तो जानते ही नहीं ।


36. अंग्रेज हर प्रकार की कोशिशों के बावजूद चार महीने लड़ाई लड़कर भी भरतपुर को विजय नहीं कर पाये तो लार्ड लेकेक ने लिखा है - हमारी स्थिति यह है कि मार करने वाली सभी तोपें बेकार हो गई हैं और भारी गोलियाँ पूर्णतः समाप्त हो गई हैं । हमारे एक तिहाई अधिकारी व सैनिक मारे जा चुके हैं । जाटों को जीतना असम्भव लगता है ।

उस समय वहाँ की जनता में यह दोहा गाया जाता था-


यही भरतपुर दुर्ग है, दूसह दीह भयंकार |

जहाँ जटन के छोकरे, दीह सुभट पछार ||


37. बूंदी रियासत के महाकवि ने महाराजा सूरजमल के बारे में एक बार यह दोहा गाया था -

सहयो भले ही जटनी जाय अरिष्ट अरिष्ट |

जापर तस रविमल्ल हुवे आमेरन को इष्ट ||

अर्थात् जाटनी की प्रसव पीड़ा बेकार नहीं गई, उसने ऐसे प्रतापी राजा तक को जन्म दिया जिसने आमेर व जयपुर वालों की भी रक्षा की (यह बात महाराजा सूरजमल के बारे में कही गई थी जब उन्होंने आमेर व जयपुर राजपूत राजाओं की रक्षा की) ।


38. इतिहासकार डॉ० जे. एन. सरकार ने सूरजमल के बारे में लिखा है - यह जाटवंश का अफलातून राजा था ।


39. इतिहासकार डी.सी. वर्मा:- महाराजा सूरजमल जाटों के प्लेटो थे।


40. बादशाह आलमगीर द्वितीय ने महाराजा सूरजमल के बारे में अब्दाली को लिखा था - जाट जाति जो भारत में रहती है, वह और उसका राजा इतना शक्तिशाली हो गया है कि उसकी खुली खुलती है और बंधी बंधती है ।


41. कर्नल अल्कोट - हमें यह कहने का अधिकार है कि 4000 ईसा पूर्व भारत से आने वाले जाटों ने ही मिश्र (इजिप्ट) का निर्माण किया ।


42. यूरोपीयन इतिहासकार मि० टसीटस ने लिखा है - जर्मन लोगों को प्रातः उठकर स्नान करने की आदत जाटों ने डाली । घोड़ों की पूजा भी जाटों ने स्थानीय जर्मन लोगों को सिखलाई । घोड़ों की सवारी जाटों की मनपसंद सवारी है ।


43. तैमूर लंग - घोड़े के बगैर जाट, बगैर शक्ति का हो जाता है । (हमें याद है आज से लगभग 50 वर्ष पहले तक हर गाँव में अनेक घोडे, घोड़ियाँ जाटों के घरों में होती थीं । अब भी पंजाब व हरयाणा में जाटों के अपने घोड़े पालने के फार्म हैं - लेखक)


44. भारतीय सेना के ले० जनरल के. पी. कैण्डेय ने सन् 1971 के युद्ध के बाद कहा था - अगर जाट न होते तो फाजिल्का का भारत के मानचित्र में नामोनिशान न रहता ।


45. इसी लड़ाई (सन् 1971) के बाद एक पाकिस्तानी मेजर जनरल ने कहा था - चौथी जाट बटालियन का आक्रमण भयंकर था जिसे रोकना उसकी सेना के बस की बात नहीं रही । (पूर्व कप्तान हवासिंह डागर गांव कमोद जिला भिवानी (हरयाणा) जो 4 बटालियन की इस लड़ाई में थे, ने बतलाया कि लड़ाई से पहले बटालियन कमाण्डर ने भरतपुर के जाटों का इतिहास दोहराया था जिसमें जाट मुगलों का सिहांसन और लाल किले के किवाड़ तक उखाड़ ले गये थे । पाकिस्तानी अफसर मेजर जनरल मुकीम खान पाकिस्तानी दसवें डिवीजन के कमांडर थे ।)


46. भूतपूर्व राष्ट्रपति जाकिर हुसैन ने जाट सेण्टर बरेली में भाषण दिया - जाटों का इतिहास भारत का इतिहास है और जाट रेजिमेंट का इतिहास भारतीय सेना का इतिहास है । पश्चिम में फ्रांस से पूर्व में चीन तक ‘जाट बलवान्-जय भगवान्’ का रणघोष गूंजता रहा है ।


47. विख्यात पत्रकार खुशवन्तसिंह ने लिखा है - (i) "The Jat was born worker and warrior. He tilled his land with his sword girded round his waist. He fought more battles for the defence for his homestead than other Khashtriyas" अर्थात् जाट जन्म से ही कर्मयोगी तथा लड़ाकू रहा है जो हल चलाते समय अपनी कमर से तलवार बांध कर रखता था। किसी भी अन्य क्षत्रिय से उसने मातृभूमि की ज्यादा रक्षा की है । (ii) पंचायती संस्था जाटों की देन है और हर जाटों का गांव एक छोटा गणतन्त्र है ।


48. जब 25 दिसम्बर 1763 को जाट प्रतापी राजा सूरजमल शाहदरा में धोखे से मारे गये तो मुगलों को विश्वास ही नहीं हुआ और बादशाह शाहआलम द्वितीय ने कहा - जाट मरा तब जानिये जब तेरहवीं हो जाये । (यह बात विद्वान् कुर्क ने भी कही थी ।)


49. टी.वी History Channel ने एक दिन द्वितीय विश्वयुद्ध के इतिहास को दोहराते हुए दिखलाया था कि जब सन् 1943 में फ्रांस पर जर्मनी का कब्जा था तो जुलाई 1943 में सहयोगी सेनाओं ने फ्रांस में जर्मन सेना पर जबरदस्त हमला बोल दिया तो जर्मन सेना के पैर उखड़ने लगे । एक जर्मन एरिया कमांडर ने अपने सैट से अपने बड़े अधिकारी को यह संदेश भेजा कि ज्यादा से ज्यादा गुट्ठा सैनिकों की टुकड़ियाँ भेजो । जब उसे यह मदद नहीं मिली तो वह अपनी गिरफ्तारी के डर में स्वास्तिक निशानवाले झण्डे को सेल्यूट करके स्वयं को गोली मार लेता है । याद रहे जर्मनी में जाटों को गुट्टा के उच्चारण से ही बोला जाता है । - (लेखक)


50. एक बार अलाउद्दीन ने देहली के कोतवाल से कहा था - इन जाटों को नहीं छेड़ना चाहिए । ये बहादुर लोग ततैये के छत्ते की तरह हैं, एक बार छिड़ने पर पीछा नहीं छोड़ते हैं ।


51. इतिहासकार मो० इलियट ने लिखा है - जाट वीर जाति सदैव से एकतंत्री शासन सत्ता की विरोधी रही है तथा ये प्रजातंत्री हैं ।


52. संत कवि गरीबदास - जाट सोई पांचों झटकै, खासी मन ज्यों निशदिन अटकै । (जो पाँचों इन्द्रियों का दमन करके, बुरे संकल्पों से दूर रहकर भक्ति करे, वास्तव में जाट है ।


53. महान् इतिहासकार कालिकारंजन कानूनगो -

(क) एक जाट वही करता है जो वह ठीक समझता है । (इसी कारण जाट अधिकारियों को अपने उच्च अधिकारियों से अनबन का सामना करना पड़ता है - लेखक)

(ख) जाट एक ऐसी जाति है जो इतनी अधिक व्यापक और संख्या की दृष्टि से इतनी अधिक है कि उसे एक राष्ट्र की संज्ञा प्रदान की जा सकती है ।

(ग) ऐतिहासिक काल से जाट बिरादरी हिन्दू समाज के अत्याचारों से भागकर निकलने वाले लोगों को शरण देती आई, उसने दलितों और अछूतों को ऊपर उठाया है । उनको समाज में सम्मानित स्थान प्रदान कराया है। (लेकिन ब्राह्मणवाद तो यह प्रचार करता रहा कि शूद्र वर्ग का शोषण जाटों ने किया - लेखक)

(घ) हिन्दुओं की तीनों बड़ी जातियों में जाट कौम वर्तमान में सबसे बेहतर पुराने आर्य हैं।


54. महान् इतिहासकार ठाकुर देशराज - जाटों को मुगलों ने परखा, पठानों ने इनकी चासनी ली, अंग्रेजों ने पैंतरे देखे और इन्होंने फ्रांस एवं जर्मनी की भूमि पर बाहदुरी दिखाकर सिद्ध किया कि जाट महान् क्षत्रिय हैं ।


55. पं० इन्द्र विद्यावाचस्पति- जाटों को प्रेम से वश में करना जैसा सरल है, आँख दिखाकर दबाना उतना ही कठिन है ।


56. कवि शिवकुमार प्रेमी -

जाट जाट को मारता यही है भारी खोट ||

ये सारे मिल जायें तो अजेय इनका कोट ||

(कोट का अर्थ किला)

इसीलिए तो कहा जाता है - जाटड़ा और काटड़ा अपने को मारता है । (लेखक)


57. विद्वान् विलियम क्रूक -

(i) जाट विभिन्न धार्मिक संगठनों व मतों के अनुयायी होने पर भी जातीय अभिमान से ओतप्रोत हैं । भूमि के सफल जोता, क्रान्तिकारी, मेहनती जमीदार तथा युद्ध योद्धा हैं ।

(इसीलिए तो जाटों या जट्टों के लड़के अपनी गाड़ियों के पीछे लिखवाते हैं - ‘जट्ट दी गड्डी’, ‘जाट की सवारी’ ‘जहाँ जाट वहाँ ठाठ’, ‘जाट के ठाठ’ तथा ‘Jat Boy’ आदि-आदि - लेखक ।


(ii) स्पेन, गाल, जटलैण्ड, स्काटलैण्ड और रोम पर जाटों ने फतेह कर बस्तियां बसाई ।


58. विद्वान् ए.एच. बिगले - जाट शब्द की व्याख्या करने की आवश्यकता नहीं है । यह ऋग्वेद, पुराण और मनुस्मृति आदि अत्यन्त प्राचीन ग्रन्थों से स्वतः सिद्ध है । यह तो वह वृक्ष है जिससे समय-समय पर जातियों की उत्पनि हुई ।


59. विद्वान् कनिंघम - प्रायः देखा गया है कि जाट के मुकाबले राजपूत विलासप्रिय, भूस्वामी गुजर और मीणा सुस्त अथवा गरीब, कास्तकार तथा पशुपालन के स्वाभाविक शोकीन, पशु चराने में सिद्धहस्त हैं, जबकि जाट मेहनती जमीदार तथा पशुपालक हैं ।


60. विख्यात इतिहासकार यदुनाथ सरकार - जाट समाज में जाटनियां परिश्रम करना अपना राष्ट्रीय धर्म समझती हैं, इसलिए वे सदैव जाटों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर कार्य करती हैं । वे आलसी जीवन के प्रति मोह नहीं रखती ।


61. प्राचीन इतिहासकार मनूची - जाटनियां राजनैतिक रंगमंच पर समान रूप से उत्तरदायित्व निभाती हैं । खेत में व रणक्षेत्र में अपने पति का साथ देती हैं और आपातकाल के समय अपने धर्म की रक्षा में प्रोणोर्त्सग (प्राणत्याग) करना अपना पवित्र धर्म समझती हैं ।


62. जैक्मो फ्रांसी इतिहासकार व यात्री लिखता है – महाराजा रणजीतसिंह पहला भारतीय है जो जिज्ञासावृत्ति में सम्पूर्ण राजाओं से बढ़ाचढ़ा है । वह इतना बड़ा जिज्ञासु कहा जाना चाहिए कि मानो अपनी सम्पूर्ण जाति की उदासीनता को वह पूरा करता है । वह असीम साहसी शूरवीर है । उसकी बातचीत से सदा भय सा लगता है। उन्होंने अपनी किसी विजययात्रा में कहीं भी निर्दयता का व्यवहार नहीं किया ।


63. यूरोपीय यात्री प्रिन्सेप - एक अकले आदमी द्वारा इतना विशाल राज्य इतने कम अत्याचारों से कभी स्थापित नहीं किया गया । अद्भुत वीरता, धीरता, शूरता में समकालीन सभी भारतीय नरेशों के शिरमौर थे । दूसरे शब्दों में पंजाबकेसरी महाराजा रणजीतसिंह भारत का नैपोलियन था।


64. महान् इतिहासकार उपेन्द्रनाथ शर्मा - जाट जाति करोड़ों की संख्या में प्रगितिशील उत्पादक और राष्ट्ररक्षक सैनिक के रूप में विशाल भूखण्ड पर बसी हुई है। इनकी उत्पदाक भूमि स्वयं एक विशाल राष्ट्र का प्रतीक है ।


65. विद्वान् सर डारलिंग - ‘‘सारे भारत में जाटों से अच्छी ऐसी कोई जाति नहीं है जिसके सदस्य एक साथ कर्मठ किसान और जीवंत जवान हों।’’


66. महान् इतिहासकार सर हर्बट रिसले - जाट और राजपूत ही वैदिक आर्यों के वास्तविक उत्तराधिकारी हैं ।


67. फील्ड मार्शल माउंट गुमरी - “Jat is true soldier. I will be happy to die with dignity amongst Jats Regt. My soul will be bless with peace.” अर्थात् ‘‘जाट एक सच्चा सैनिक है । मुझे खुशी होगी यदि मैं जाटों के बीच रहकर इज्जत से मर जांऊ ताकि मेरी आत्मा को शान्ति मिल सके ।”


68. अंग्रेज प्रमुख जनरल ओचिनलैक (बाद में फील्ड मार्शल) - ‘‘If things looked back and danger threatened I would ask nothing better than to have Jats beside me in the face of the enemy” अर्थात “हालात बिगड़ते हैं और खतरा आता है तो जाटों को साथ रखने से बेहतर और कुछ नहीं होगा ताकि मैं दुश्मन से लड़ सकूं ।”


69. क्रान्तिदर्शी राजा महेन्द्रप्रताप - “हमारी जाति बहादुर है । देश के लिए समर्पित कौम है । चाहे खेत हो या सीमा । धरतीपुत्र जाटों पर मुझे नाज़ है ।”


70. पं. जवाहरलाल नेहरू - ‘‘दिल्ली के आसपास चारों ओर जाट एक ऐसी महान् बहादुर कौम बसती है, वह यदि आपस में मिल जाये और चाहे तो दिल्ली पर कब्जा कर सकती है ।”

(यह पंडित नेहरू ने सन् 1947 से पहले कहा था, लेकिन पंडित जी देश आजाद होने के बाद जाटों को भूल गये और उन्होंने अपने जीते जी कभी किसी हिन्दू जाट को केन्द्रीय सरकार में किसी भी मंत्री पद पर फटकने नहीं दिया - लेखक)


71. स्वामी ओमानन्द सरस्वती तथा वेदव्रत्त शास्त्री - (देशभक्तों के बलिदान ग्रंथ में) - ‘‘ईरान से लेकर इलाहाबाद तक जाटों के वीरत्व व बलिदानों का इतिहास चप्पे-चप्पे पर बिखरा पड़ा है । क्या कभी कोई माई का लाल इनका संग्रह कर पाएगा ? काश ! जाट तलवार की तरह कलम का भी धनी होता।”


72. डॉ० बी.एस. दहिया ने अपनी पुस्तक Jats- The Ancient Rulers अर्थात्- ‘‘जाट प्राचीन शासक हैं’’ में लिखा है -‘‘There is no battle worth its name in The World History where the Jat Blood did not irrigate The Mother Earth’’ अर्थात्- ‘‘विश्व में ऐसी कोई भी लड़ाई नहीं हुई, जिसमें जाटों ने अपनी मातृभूमि के लिए खून न बहाया हो ।”

(काश ! यह देश और इस देश के इतिहासकार इसे समझ पाते- लेखक)


73. विद्वान् इतिहासकार डॉ० धर्मकीर्ति -

(i) आगरा के ताजमहल और लाल किले को लूट ले जाना, सिकन्दरा में अकबर की कब्र के भवन और एत्माद्दौला की कब्र के ऐतिहासिक भवन में भूसा भरकर आग लगा देना, जिसके परिणामस्वरूप इन भवनों के काले पड़े हुए पत्थर आज भी (बौद्ध) जाटों के शौर्य की वीरगाथा गा रहे हैं ।

(ii) “वर्तमान जाट जाति को इस बात का गर्व से अनुभव करना चाहिए कि उनके पूर्वज बौद्ध नरेश असुवर्मा नेपाल के प्रसिद्ध राजा हो चुके हैं।” (इन्हीं विद्वान् ने सम्राट् कनिष्क से लेकर सम्राट् विजयनाग तक 17 बौद्ध जाट राजाओं का उनके काल तथा संसार में उनके राज्य क्षेत्र का वर्णन किया है - लेखक)


74. विद्वान् मोरेरीसन - “The Jats and Rajputs of the Doab are descendents of the late Aryans” अर्थात् दोआबा के जाट और राजपूत आर्यों के वंशज हैं।


75. विद्वान् नेशफिल्ड - “जाटों से राजपूत हो सकते हैं परन्तु राजपूतों से जाट कभी नहीं हो सकते हैं ।”


76. प्रो० मैक्समूलर - “सारे भूमण्डल पर जाट रहते हैं और जर्मनी इन्हीं आर्य वीरों की भूमि है ।”


77. इतिहासकार बलिदबिन अब्दुल मलिक - “अरब की हिफाजत के लिए हमने जाटों का सहारा लिया ।”


78. सुल्तान मोहम्मद - “जाट कौम का डर मेरे ख्वाब में भी रहता है । इन्होंने मुझे कभी खिराज नहीं दिया ।”


79. प्रो० बी. एस. ढिल्लों - “मोहम्मद गजनी ने जाटों को खुश करने के लिए साहू जाटों से अपनी बहिन का विवाह किया था ।” (पुस्तक - ‘हिस्ट्री एण्ड स्टडी ऑफ दी जाट’- मूलस्रोत - सर ए. कनिंघम) ।


80. कैप्टन फॉलकॉन - (i) “The Jats are throughly independent in character and assert personal and indivisual freedom as against communal or tribal control more strongly than other people.” अर्थात् जाट चारित्रिक रूप से पूर्णतया आजाद होते हैं जो निजी तौर पर दूसरों की तुलना में साम्प्रदायिक विरोधी होते हैं । (ii) गोत्र प्रथा को कैनेडा, अमरीका व इंग्लैण्ड में बसने वाले जाट भी मानते हैं ।


81. प्रो० पी.टी. ग्रीव - “जाट केवल भगवान के सामने ही अपने घुटनों को झुकाता है क्योंकि वह नेता होता है, अनुयायी नहीं ।”


82. विद्वान् टॉलबोट राईस - “याद रहे चीन ने 1500 मील लम्बी और 35 फिट ऊंची दीवार जाटों से बचने के लिए ही बनाई थी ।”


83. इतिहासकार जे.सी. मोर - “जाट वास्तव में हिन्दुओं की जाति नहीं है, यह एक नस्ल है।”


84. विद्वान् डॉ० वाडिल - “गुट, गोट, गुट्टी, गुट्टा, गोटी और गोथ आदि जाटों के नाम के ही शाब्दिक उच्चारण के विभिन्न रूप हैं, जो मध्यपूर्व में महान् शासक हुए हैं ।”


85. विद्वान् जनरल सर मैकमन - (i) जाट बहुत ताकतवर और कठिन परिश्रमी किसान हैं जो हाथ में हल लेकर पैदा होता है । (ii) जाटों ने हमेशा अपनी लड़ने की योग्यता को कायम रखा, इसी कारण प्रथम विश्वयुद्ध में केवल जाटों की छटी रेजीमेंट को रॉयल की उपाधि मिली ।


86. विद्वान् लेनेन पूले - “गजनी ने अपने कमांडर नियालटगेन को पंजाब में तैनात किया तो जाट उसका सिर काट ले गए और वही सिर उन्होंने गजनी को चांदी के सैकड़ों-हजारों सिक्कों के बदले वापिस किया ।”


87. विद्वान् ब्री० सर साईक्स - “आठवीं सदी के आरम्भ में बसरा-बगदाद की लड़ाई में जाटों ने खलीफा को हराया तो वहां के प्रसिद्ध जाट कवि टाबारी ने पर्सियन भाषा में इस प्रकार गाया-

(अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद)

ओह ! बगदाद के लोग मर गए,

तुम्हारा साहस भी हमेशा के लिए ।

हम जाटों ने तुम्हें हराया,

हम तुम्हें लड़ने के लिए मैदान में घसीट लाए ।

हम जाट तुम्हें ऐसे खींच लाए,

जैसे पशुओं के झुंड से कमजोर पशु को ।


88. विद्वान् मेजर बरस्टो - “जाटों की विशेषता है कि वे अपने गोत्र में शादी नहीं करते चाहे वह हिन्दू जाट हो या पंजाबी । क्योंकि जाट इसे व्यभिचार मानते हैं ।”


89. डॉ० रिस्ले - “When Jat runs wild it needs God to hold him back अर्थात् यदि जाट बिगड़ जाए तो उसे भगवान ही काबू कर सकता है ।”


90. रूसी इतिहासकार के.एम. सेफकुदरात ने अगस्त 1964 में मास्को में एक भाषण दिया जो भारतीय समाचार पत्रों में भी छपा था और उसने कहा “I studied the histories of various sects before I visited India in 1957. It was found that Jats live in an area extending from India to Central Asia and Central Europe. They are known by different names in different countries and they speak different languages but they are all one as regards their origin.”

अर्थात् “मैंने 1967 से पहले भारत की यात्रा करने से पहले इतिहास के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन किया और पाया कि जाट भारत से मध्य एशिया और मध्य यूरोप तक रहते हैं वे अलग-अलग देशों में अलग-अलग नामों से जाने जाते हैं और वे भाषाएं भी अलग बोलते हैं । लेकिन उन सभी का निकास एक ही है ।” इसलिए जाट कौम एक ग्लोबल नस्ल है ।


91. इतिहासकार डॉ० सुखीराम रावत (पलवल) - “राजा गज ने गजनी के पास वर्तमान में अफगानिस्तान में बामियान के पास बुद्ध का विश्वप्रसिद्ध स्तूप बनवाया जिसे तालिबानियों ने सन् 2001 में संसार के सभी देशों की परवाह न करते हुए डाइनामाइट से उड़वा दिया ।”


92. इतिहासकार महीपाल आर्य (मतलौडा) - “चित्तौड़, उदयपुर, नेपाल तथा महाराष्ट्र में गहलौत जाटों का राज था । बप्पारावल, महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी तथा नेपाल के राणावंश नरेश सभी जाट योद्धा थे ।”


93. चौ० ओमप्रकाश पत्रकार (रोहतक) - “मकौड़ा, घोड़ा और जठोड़ा पकड़ने पर कभी छोड़ते नहीं ।”


94. चौ० ईश्वरसिंह गहलोत (विख्यात जाट गायक) - “आज भी काबुल चिल्ला रहा है, बंद करो फाटक रणजीत आ रहा है ।”


95. पंजाब केसरी पत्र ने अपने धारावाहिक सम्पादकीय दिनांक 25.09.2002 को झूठा इतिहास - झूठे लोग में लिखा - “जाटों का इतिहास देख लें ! बड़ा ही गौरवपूर्ण इतिहास है ! इतना गौरवपूर्ण कि वैसा इतिहास खोजना मुश्किल हो जाए । इतिहासकारों

ने इसे इतना तरोड़-मरोड़ कर लिखा है कि जिसे शब्दों में व्यक्त करना मुश्किल है । क्या यह सब महज इत्तिफाक है ?”

(यह इतिफाक नहीं था, जाटों के इतिहास के साथ इसलिए हुआ कि पहले जाट बौद्धधर्मी थे और भारत का ब्राह्मणवाद बौद्ध धर्म का दुश्मन रहा जो स्वयं इतिहासकार थे, इसलिए ऐसा करना ही था । क्योंकि यदि भारत का सच्चा इतिहास सामने आयेगा तो ऐसे लोगों का गर्व-खर्व होना निश्चित है - लेखक) ।


96. बी.बी.सी. लंदन (जयपुर संवाददाता) “जाट जब अपने असली रूप में आ जाये तो वह हिमालय को भी चीर सकता है । हिन्दमहासागर को भी पार कर सकता है । थार के रेगिस्तान में बसे करोड़ों धरतीपुत्रों ने रैली को रैला बनाकर हिन्दुस्तान की सत्ता को थर्रा दिया था और आज 20 अक्तूबर 1999 को राजस्थान सरकार को जाटों को ओ. बी. सी. का आरक्षण देना ही पड़ा ।” (क्या शेष भारत के जाट, जाट नहीं हैं ? रोजाना रैलियों में दौड़ते भागते रहते हैं अपने हक के लिए (आरक्षण के लिए) नहीं लड़ सकते हैं ? - लेखक)


97. राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुधंरा राजे सिधिंया ने दिनांक 07.05.2004 को हांसी में संसद चुनाव में वोट मांगते हुए कहा- “मैं बहादुर जाटों की बहू हूँ इसलिए उनसे वोट मांगने का मेरा अधिकार है ।”


98. गुर्जर इतिहास (पेज नं० 3, लेखक राणा अली हसन चौहान, पाकिस्तान) - “जाट शुद्ध आर्यों की जाति है ।”


99. विख्यात फिल्म अभिनेता धर्मेन्द्र ने सन् 2005 में बिजनौर (उत्तर प्रदेश) की एक जनसभा में कहा- “मैं जाट जाति में पैदा होकर गौरव का अनुभव करता हूँ ।”


100. लेखक - “जाट इतिहास कोई भंगेड़ियों, भगोड़ों व भाड़े का इतिहास नहीं, यह सच्चे वीरों का इतिहास है।” इन टिप्पणियों से यह स्पष्ट हो जाता है कि जाट जाति का चरित्र कैसा रहा है तथा यह कितनी महान् जाति रही ।


Saturday, 13 January 2024

लोहड़ी दी बधाई

 

आज हम बात करते है #दुल्ला_भट्टी_जट्ट की
जिसे पंजाब के रॉबिनहुड्ड के नाम से जाना जाता है!
दुल्ला भट्टी न होते तो लाहौर, लाहौर न होता. सलीम कभी जहांगीर न हो पाता. अकबर को भांड न बनना पड़ता. मिर्जा-साहिबा के किस्सों में संदल बार न आता. पंजाब वाले दुल्ले दी वार न गाते और जानो कि लोहड़ी भी न होती.
वाघा बॉर्डर से लगभग 200 किलोमीटर पार, पाकिस्तान के पंजाब में पिंडी भट्टियां है. (पिंडी भट्टिया जट्ट-मुस्लमानों का गांव हैं) वहीं लद्दी और फरीद जट्ट के यहां 1547 में हुए राय अब्दुल्ला खान, जिन्हें दुनिया अब दुल्ला भट्टी बुलाती है. जट्ट दुल्ला भट्टी के पैदा होने से चार महीने पहले ही उनके दादा संदल भट्टी और बाप को हुमायूं ने मरवा दिया था. खाल में भूसा भरवा के गांव के बाहर लटकवा दिया. वजह ये कि मुगलों को लगान देने से मना कर दिया था.
आज भी पंजाब वाले हुमायूं की बर्बरता के किस्से कहते हैं.
तेरा सांदल दादा मारया,
दित्ता बोरे विच पा,
मुगलां पुट्ठियां खालां ला के,
भरया नाल हवा
संदल भट्टी वो जिनके नाम पर नाम पड़ा था, संदल बार का. संदल बार जिसका जिक्र मिर्जा-साहिबा के किस्सों में आता है, पंजाब के लोकगीतों में आता है.
सुलतान बलाया साहिबां
ऐ की कीती कार,
गरम रजाइयां छोड़ के
तूं मिली संदल बार
तूं आख जबानी साहिबां
तैनू मारां कहरे तकरार
दुल्ला भट्टी उस जमाने के रॉबिनहुड थे. अकबर उन्हें डकैत मानता था. वो अमीरों से, अकबर के जमीदारों से, सिपाहियों से सामान लूटते. गरीबों में बांटते. अकबर की आंख की किरकिरी थे. इतना सताया कि अकबर को आगरे से राजधानी लाहौर शिफ्ट करनी पड़ी. लाहौर तब से पनपा है, तो आज तक बढ़ता गया. पर सच तो ये रहा कि हिंदुस्तान का शहंशाह दहलता था जट्ट दुल्ला भट्टी से.
जब कम उम्र के थे तब दुल्ला भट्टी को बाप-दादा का हश्र न पता था, कुछ बड़े हुए तो पता चला. पता न चलने की दो वजह बताते हैं. पहली ये कि मां ने नहीं बताई. दूसरी ये कि अकबर का बेटा जब पैदा हुआ. तो मरचुग्घा सा था. अकबर ने नजूमी बुलाए, उसने कहा कि इसे ऐसी किसी औरत का दूध पिलाओ जिसका बेटा सलीम की पैदाइश के दिन पैदा हुआ हो. वो औरत थी जट्टी लद्दी. सलीम की परवरिश लद्दी करती, सलीम और दुल्ला साथ ही रहते, इसलिए तब नहीं बताया. जब वापस लौटी तब बताया.
एक बार सलीम थोड़े से सैनिकों के साथ भटक रहा था. दुल्ला भट्टी ने पकड़ लिया. पर कुछ किया नहीं यूं ही छोड़ दिया. ये कहकर कि दुश्मनी बाप से है, बेटे से नहीं.
पाकिस्तान के पंजाब में कहानियां चलती हैं कि पकड़ा तो दुल्ला ने अकबर को भी था. जब पकड़ा गया तो अकबर ने कहा ‘भईया मैं तो शहंशाह हूं ही नहीं, मैं तो भांड हूं जी भांड.’ दुल्ला भट्टी ने उसे भी छोड़ दिया ये कहकर कि भांड को क्या मारूं, और अगर अकबर होकर खुद को भांड बता रहा है, तो मारने का क्या फायदा?
लोहड़ी का किस्सा-
ब्राह्मण सुंदरदास किसान था, उस दौर में जब संदल बार में मुगल सरदारों का आतंक था. उसकी दो बेटियां थीं सुंदरी और मुंदरी. गांव के नंबरदार की नीयत लडकियों पर ठीक नहीं थी. वो सुंदरदास को धमकाता बेटियों की शादी खुद से कराने को. सुंदरदास ने दुल्ला भट्टी से बात कही . दुल्ला भट्टी नंबरदार के गांव जा पहुंचा. उसके खेत जला दिए. लडकियों की शादी वहां की जहां ब्राह्मण सुंदरदास चाहता था. शगुन में शक्कर दी. वो दिन है और आज का दिन, लोहड़ी की रात को आग जलाकर लोहड़ी मनाई जाती है. जब फसल कट कर घर आती है. गेंहू की बालियां आग में डालते हैं. गाते हैं.
सुन्दर मुंदरिए
तेरा कौन विचारा
दुल्ला भट्टीवाला
होये!
जट्ट दुल्ला भट्टीवाला
दुल्ले दी धी व्याही
सेर शक्कर पायी
कुड़ी दा लाल पताका
कुड़ी दा सालू पाटा
सालू कौन समेटे
मामे चूरी कुट्टी
जिमींदारां लुट्टी
जमींदार सुधाए
गिन गिन पोले लाए
इक पोला घट गया
ज़मींदार वोहटी ले के नस गया
इक पोला होर आया
ज़मींदार वोहटी ले के दौड़ आया
सिपाही फेर के ले गया
सिपाही नूं मारी इट्ट
भावें रो ते भावें पिट्ट
साहनूं दे लोहड़ी
तेरी जीवे जोड़ी
साहनूं दे दाणे तेरे जीण न्याणे
सुन्दर मुंदरिए
तेरा कौन विचारा
दुल्ला भट्टीवाला
होये!
जट्ट दुल्ला भट्टीवाला
आपको बता दुँ! अकबर दुल्ला भट्टी को नीचा दिखाना चाहता था, मारना चाहता था, एक बार दरबार में बुलाया. ये कहकर कि बातें करेंगे, पर साजिश ये थी कि दुल्ला भट्टी का सिर अकबर के सामने झुकवा सकें. दुल्ला के आने का रास्ता ऐसा बनाया कि सिर झुका कर आना पड़े. पर दुल्ला भट्टी सिर काहे को झुकाएं? जहां सिर घुसाना था, वहां पहले पैर डाल दिए. अकबर की जगहंसाई हुई अलग.
कहते हैं अकबर की 12 हजार की सेना दुल्ला भट्टी को न पकड़ पाई थी, तो सन 1599 में धोखे से पकड़वाया. लाहौर में दरबार बैठा. आनन-फानन फांसी दे दी गई. कोतवाली में पूरे शहर के सामने.
लोहड़ी तेहवार किसानों का प्रकृती खेत फसल के गुण गाये जाते है
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जाट "सिंताष्ता संस्कृति"

 1. जेनेटिक्स के अनुसार जाट "सिंताष्ता संस्कृति" (2200-1750 BCE) के लोगों के सबसे निकटस्थ समूह हैं।

2. आंजणा जाट, सीरवी जाट, कुर्मी जाट, पटेल जाट, धाकड़ जाट जैसी इस संसार में कभी कोई जातियां नहीं रही हैं।
3. ये देसी जातियां ब्रिटिश काल में अपने आपको जाटों से जोड़ने लगी, ताकि जाति व्यवस्था में ऊंचा स्थान प्राप्त कर सके।
4. इस संसार में "सिख जाट," "मुस्लिम जाट," "हिन्दू जाट," इत्यादि जैसा भी कोई एथनिक समूह नहीं हैं।
A) हिन्दू बनने के पश्चात, आप पांच वर्णों में से किसी एक वर्ण के सदस्य हो। आपका विवाह संबंध अन्य सवर्णियों के साथ ही होगा।
B) सिख बनने के पश्चात, आप जातिविहीन "ख़ालसा" के एक सदस्य हो। आपका विवाह संबंध अन्य सिखों के साथ ही होगा।
C) मुस्लिम बनने के पश्चात, आप जातिविहीन "उम्मत" के एक सदस्य हो। आपका विवाह संबंध अन्य मुस्लिमों के साथ ही होगा।

Sunday, 7 January 2024

हिंदी-उर्दू के जनक बाबा गिलगिट जी को सलाम!

भारत की स्थानीय बोलियों को समझने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी ने 4मई 1800 ईस्वी में कोलकाता में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना की थी।ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मचारी जॉन बोर्थोविक गिलक्रिस्ट(सर्जन) को इसका प्रभार सौंपा गया था।

गिलक्रिस्ट ने दक्षिण भारत मे बड़े भाषा समूहों को देखते हुए अंग्रेजी में कुछ स्थानीय कर्मचारी प्रशिक्षित किये व कुछ अंग्रेज कर्मचारियों को स्थानीय भाषा मे प्रशिक्षण दे दिया।
समस्या उत्तर भारत को लेकर खड़ी हो गई।उत्तर भारत मे बारह कोस पर बोली बदल जाती थी।इसे खड़ी बोली कहा जाता रहा है।गिलक्रिस्ट ने इसको "स्टर्लिंग"कहा था। सैंकड़ों स्थानीय बोलियों के बीच तालमेल बिठाने के लिए सभी बोलियों के कॉमन शब्दों को लेकर नई भाषा की जरूरत पड़ी ताकि बड़े इलाके पर शासन स्थापित करने में आसानी हो।
गिलक्रिस्ट के निर्देशन में गुजराती ब्राह्मण लल्लूलाल को सर्टिफिकेट मुंशी नियुक्ति दी व हिंदी व्याकरण तैयार करने का जिम्मा सौंपा।खुद लल्लूलाल ने अपने हिंदी के ग्रंथ "प्रेमसागर"में लिखा है.....
"श्रीयुत गुनगाहक गुनियन-सुखदायक जान गिलकिरिस्त महाशय की आज्ञा से सम्वत् 1860 (अर्थात् सन् 1803 ई0) में श्री लल्लू जी लाल कवि ब्राह्मन गुजराती सहस्र अवदीच आगरे वाले ने जिसका सार ले, यामिनी भाषा छोड़, दिल्ली आगरे की खड़ी बोली में कह, नाम ‘प्रेमसागर' धरा।"
इसी तरफ फ़ारसी-अरबी-ईरानी भाषा के लिए कॉमन उर्दू का निर्माण किया गया।
बाद में हिंदुओं के तुष्टिकरण के लिए हिंदी भाषा व उर्दू के तुष्टिकरण के लिए उर्दू भाषा का प्रयोग किया जाने लगा ताकि हिन्दू-मुस्लिम आपस मे लड़ते रहे।
मुसलमानों ने उर्दू को अपनी मातृभाषा मानते हुए पाकिस्तान में राजकीय भाषा घोषित कर दिया और हिंदुओं ने भारत मे हिंदी को।
वैसे उर्दू व हिंदी राजकीय कार्यों की भाषा तक ही सिमटी रही।कुछेक शहरी इलाकों को छोड़ दें सब जगह दैनिक भाषा स्थानीय बोलियां ही है।चाहे पाकिस्तान में बलूच,पंजाबी हो या भारत मे अवधि,मैथिली,मारवाड़ी, हरियाणवी आदि हो।
हिंदी व उर्दू राजकीय कार्यों व संचार के लिए अच्छी भाषा बनी है व इनका उपयोग जारी रहना चाहिए।त्रिस्तरीय भाषा सरंचना आज के समय मे जरूरी है।स्थानीय,हिंदी व अंग्रेजी।
मातृभाषा वही होती है जो बचपन मे हम घर-परिवार में बोलते-सीखते बड़े होते है।
दसवीं कक्षा में पढ़ते समय प्रधानाध्यापक जी ने कहा कि घर मे भी हिंदी बोलना शुरू करो।घर मे हिंदी भाषा बोलने लगा तो मां ने बहन को कहा "डंडों दे ओ अंग्रेज घणो बणे!"
हिंदी-उर्दू के जनक बाबा गिलगिट जी को सलाम!
प्रेमसिंह सियाग

Saturday, 6 January 2024

देवदासी की व्यथा


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देवदासियों के नाम पर पुजारियों की करतूत को पढ़िए….. कितना घिनोना काम करते हैं यह लोग नाबालिग बच्चियों के साथ…😢😢
देवदासियों की चीखों से गूंजते मंदिरों के गुम्बद……😢😢😢
देवदासी की व्यथा
यूँ तो मुझे आप सब देवदासी के नाम से पुकारते हैं जिसका अर्थ “देवता की दासी”
यानी ….. ईश्वर की सेवा करने वाली पत्नी होता है..!!
पर यह सच से कोसों दूर है। कुछ ऐसे जैसे दिन में तपते सूरज के नीचे बिना किसी आश्रय के बैठ कर आँखों को भींच(जोर से बंद करना) कर ये मानना कि “मैं चाँदनी की शीतलता महसूस कर रही हूँ“
इस झूठ को जीते हुए मुझे 30 साल से अधिक हो गए हैं पर मेरे जीवन की वह आखरी बदसूरत शाम मैं आज भी नहीं भूली हूँ।
“आई!!! कोई आया है बाबा से मिलने”
“अरे देवा!!!” माँ आने वाले के चरणों में लेट गई थी “आपने क्यूँ कष्ट किया??? संदेसा भिजवा देते, हम तुरंत हाजिर हो जाते”
तब तक बाबा भी आ गए थे। बाबा भी वही कह और कर रहे थेंं, जो माँ ने किया था।
आने वाले ने एक नज़र मुझे देखा और बोले ”बहुत भाग्यशाली हो। बड़े महंत ने तुम्हारी दूसरी बेटी को भी ईश्वर की पत्नी बनाने का सौभाग्य तुम्हें दिया है” यह सुन कर मैं भी प्रसन्न हो गई। इसका मतलब दीदी से मिलूँगी ! माँ और बाबा ने सारी तैयारी रात को ही कर ली जाने की।
अगली दोपहर हम मंदिर के बड़े से प्रांगण में थे। भव्य मंदिर और ऊपरी हिस्सा सोने से मढ़ा था।
माँ बाबा मुझे झूठ बोलकर छोड़ चुपके से चले गए थे। गर्भ गृह से एक विशालकाय शरीर और तोंद वाला निकला तो सभी लोग सिर झुका कर घुटने के बल थे। मुझे भी वैसा करने को कहा गया।
रात एक बूढ़ी के साथ रही मैं, अगली सुबह मुझे नहला कर दुल्हन जैसे कपड़े मिले पहनने को, जिसे उसी बूढ़ी अम्मा ने पहनाया जो रात मेरे पास थी।
अब मुझे अच्छा लग रहा था । सब मुझे ही देख रहे थे। मेरी खूबसूरती की बलाएँ ले रही थेेे। मेरा विवाह कर दिया गया भगवान की मूर्ति के साथ, जिसे दुनिया पूजती है, अब मै उसकी पत्नी!! सोच कर प्रसन्नता की लहर दौड़ जाती थी पूरे शरीर में।
मुझे रात दस बजे एक साफ सुथरे कमरे में। जहाँ पलंग पर सुगंधित खूल अपनी खुशबू बिखेर रहे थे। बंद कर दिया गया।
”आज ईश्वर खुद तेरी वरण करेंगे, ध्यान रखना!!! ईश्वर नाराज़ न होने पाएँ !!!” वही बूढ़ी अम्मा ने मेरे कमरे में झाँकते हुए कहा पर अंदर नहीं आई।
एक डेढ़ घंटे बाद दरवाजा बंद होने की आहट से मेरे नींद खुली। मैं तुरंत उठ कर बैठ गई। सामने वही बड़े शरीर वाला था।
लाल आँखें और सिर्फ एक धोती पहने और भी डरा रहा था मुझे।
“ये क्यूँ आया है???” मन ने सवाल किया!!!!!!
“मुझे तो भगवान के साथ सोने के लिए कहा गया था”
सवाल बहुत थे पर जवाब एक भी नहीं था
वो सीधा मेरे पास आ कर बैठ गया, और मैं खुद में सिकुड़ गई।
मेरे चेहरे को उठा कर बोला “मैं प्रधान महंत हूँ इस मंदिर का, ऊपर आसमान का भगवान ये है (कोने में रखी विष्णु की मूर्ति की तरफ इशारा करता हुआ बोला) और इस दुनिया का मैं”
यह कह कर मुझे पलंग से खड़ी कर दिया और मेरी साड़ी खोल दी। मेरी नन्हीं मुट्ठियों में इतनी पकड़ नहीं थी कि मैं उसे मेरे कपड़े उतारने, नहीं.. नोंचने से रोक पाती। एक ही मिनट में मैं पूरी तरह नग्न थी और खुद को महंत कहने वाला भी।
उसनें खींच कर मुझे पलंग पर पटक दिया मेरे हाथों को उसके हाथ ने दबा रखा थााा। उसके भारी शरीर के नीचे मैं दब गई थी।
मेरे मुँह के बहुत पास आ कर बोला।
“आज मैं तेरा और ईश्वर का मिलन कराऊँगा, ईश्वर के साथ आज तेरी सुहागरात है, और ये मिलन मेरे जरिए होगा, इसलिए चुपचाप मिलन होने देना, व्यवधान मत डालना”
मैंने बिना समझे सिर हिला दिया। महंत मुस्कुराया और फिर मेरी भयंकर चीख निकली। मैं दर्द से झटपटा रही थी। साँस नहीं लौटी बहुत देर तक। दुबारा चीख निकली तो महंत ने मेरा मुँह दबा दिया। बाहर ढोल मंजीरों की आवाजें आने लगीं। मैं एक हाथ जो छोड़ दिया था मुँह दबाने पर, मैं उस हाथ से पूरी ताकत लगा कर उस पहाड़ को अपने ऊपर से धकेल रही थी, पर सौ से भी ऊपर का भार क्या 11 साल की लड़की के एक हाथ से हटने वाला था ? मैं दर्द से बिलबिला रही थी पर वह रुकने का नाम नहीं ले रहा था। पूरी शिद्दत से भगवान को मुझसे मिला रहा था, पर उस समय और कुछ नहीं याद था सिर्फ दर्द, दर्द और बहुत दर्द था। मैंने नाखून से नोंचना शुरू कर दिया था। पर उसकी खाल पर कोई असर नहीं हो रहा था। मुझे अपने जाँघों के नीचे पहले गर्म गर्म महसूस हुआ और फिर ठंडा ठंडा , वो मेरी योनि के फटने की वजह से निकला खून का फौंव्वारा था।
पीड़ा जब असहनीय हो गई, मुझे मूर्छा आने लगी और कुछ देर बाद मैं पूरी तरह बेहोश हो गई।
मुझे नहीं पता वो कब तक मेरे शरीर के ऊपर रहा, कब तक ईश्वर से मेरे शरीर का मिलन कराता रहा।
चेहरे पर पानी के छींटों के साथ मेरी बेहोशी टूटी। मेरे ऊपर एक चादर थी और वही बूढ़ी अम्मा मेरे घाव को गर्म पानी से संभाल कर धो रही थीं।
”तुुुुने कल महंत को नाखूनों से नोंच लिया ? समझाया था न तुझे, फिर???
दुःख और पीड़ा की वजह से शब्द गले में ही अटक गए थे। सिर्फ इतना ही कह पाई।
“अम्मा मुझे बहुत लगा था”
“दो दिन से ज्यादा नहीं बचा पाऊँगी तुझे” अम्मा बोली। “महंत को नाराज नहीं कर सकते, न तुम और न मैं” कह कर अम्मा मेरे सिर पर हाथ फेर कर चली गई।
आज भी उस रात को सोच कर शरीर के रोंये खड़े हो जाते हैं दर्द और डर से।
मेरी आँखें इस बीच मेरी बहन को ढूँढती रहीं..पर वो नहीं मिली…किसी को उसका नाम भी नहीं पता था क्योंकि विवाह के समय एक नया नाम दिया जाता है और उसी नाम से सब बुलाते है फिर,
इसके बाद मैं जब भी किसी नई लड़की को देखती मंदिर प्रांगण में … तो मैं मेरी उस रात के दर्द से सिहर जाती थी….डर और दहशत की वजह से सो नहीं पाती थी।
मैंने इसी बीच नृत्य सीखा….और भगवान की मूर्ति के समक्ष खूब झूम झूम कर नृत्य करती….साल में एक बार माँ बाबा मिलने आते….क्या कहती उनसे…वे स्वयं भी मुझे अब भगवान की पत्नी के रूप में देखते थे।
मैंने भी अपनी नियति से समझौता कर लिया था।
हमारे गुजारे के लिए मंदिर में आए दान में हिस्सा नहीं लगता था हमारा। नृत्य करके ही कुछ रुपए पा जाती हैं मेरी जैसी तमाम देवदासियाँ…जिसमें हमें अपने लिए और अपने छोडे हुए परिवार का भी भरण पोषण करना पड़ता है।
मेरे बाद कई लड़कियों आईं….एक के माँ बाप अच्छा कमा लेते थे पर भाई अक्सर बीमार रहता था इसलिए पुजारी के कहने पर लड़की को मंदिर को दान कर दिया गया ताकि बहन भगवान के सीधे संपर्क में रहे और उसका भाई स्वस्थ हो जाए….
एक और लड़की का चेहरा नहीं भूलता….उसकी बड़ी और डरी हुई आँखों का ख़ौफ मुझे आज भी दिखाई दे जाता है मैं जब जब अतीत के पन्ने पलटती हूँ।
जिस शाम उसका और महंत के जरिए भगवान से मिलन होना था …बस तभी पहली और आखिरी बार देखा था….फिर कभी नज़र नहीं आई वो।बहुत दिनों बाद मुझे उसी बूढ़ी अम्मा ने बताया था(किसी को न बताने की शर्त पर) कि उस रात महंत को उसका ईश्वर से मिलन कराने के बाद नींद आ गई थी तो वह उसके ऊपर ही सो गए थे….और दम घुट जाने से वह मर गई थी।
सुन कर दो दिन एक निवाला नहीं उतरा हलक से….लगा शायद मुझे भी मर जाना चाहिए था उस दिन तो रोज रोज मरना नहीं पड़ता।
हमें पढ़ने की इजाजत नहीं है….हमें सिर्फ अच्छे से अच्छा नृत्य करना होता था और रात में महंत के बाद बाकी पंडों और पुजारियों की हवस को भगवान के नाम पर शांत करना होता था।
हमें समय समय पर गर्भ निरोध की गोलियाँ दी जाती है खाने के लिए ताकि हमारा खूबसूरत शरीर बदसूरत ना हो जाए। फिर भी, कभी कभी किसी को बच्चा रुक ही जाता था ऐसे में यदि वह कम उम्र की होती थी तो उसका वही मंदिर के पीछे बने कमरे में जबरन गर्भपात करा दिया जाता था। यह गर्भपात किसी दक्ष डॉक्टर के हाथों नहीं बल्कि किसी आई (दाई) के हाथ कराया जाता था…. किसी किसी के बारे में पता भी नहीं चल पाता था कभी न 3 महीने से ऊपर का समय हो जाने पर गर्भपात ना हो पाने की दशा में बच्चे को जन्म देने की इजाजत मिल जाती थी ……बच्चा यदि लड़की होती थी तो इस बात की खुशी मनाई जाती थी मंदिर में शायद उन्हें आने वाली देवदासी दिखाई देती थी उस मासूम में।
मेरी जैसी एक नहीं हज़ारों हैं। जब पुरी के प्रभू जगन्नाथ का रथ निकलता है तो मुझ जैसीे हज़ारों की संख्या में देवदासियाँ होती हैं जो ईश्वर के एक मंदिर से निकलकर दूसरे मंदिर जाने तक बिना रुके नृत्य करती हैं। हम सभी के दर्द एक हैं। सभी के घाव एक जैसे हैं, पर मूक और बघिर जैसे एक दूसरे को देखती हैं बस…..!
मैं उनकी आँखों का दर्द सुन लेती हूँ और वे मेरी आँखों से छलका दर्द बिन कहे समझ लेती हैं।
यहाँ से निकलने के बाद हमारे पास न तो परिवार होता है…न ही कोई बड़ी धनराशि…और न कोई ठौर-ठिकाना जहाँ दो वक्त की रोटी और सिर छुपाने की जगह मिल जाए….नतीजा…हम एक दलदल से निकलकर दूसरे दलदल में आ जाती हैं…वहाँ हमारा उपभोग ईश्वर के नाम पर महंत और पंडे करते थे….और यहाँ हर तरह का व्यक्ति हमारा कस्टमर होता है….न वहाँ सम्मान जैसा कुछ था…न यहाँ।
मुझ जैसी वहाँ ईश्वर के नाम की वेश्याएँ थीं…यहाँ सच की वेश्याएँ हैं….यहाँ पर 100 मे से 80 किसी समय देवदासियाँ ही थीं।
आज तमाम तरह के एनजीओ हैं पर किसी भी एन जी ओ की वजह से कोई भी लड़की इस नर्क से नहीं निकल पाई।
हजारों साल पहले धर्म के नाम पर चलाई गई ये रीति लड़कियों के शारीरिक शोषण का एक बहाना मात्र था जिसे भगवान और धर्म के नाम पर मुझ जैसियों को जबरन पहना दिया गया। एक ऐसी बेड़ी जिसको पहनाने के बाद कभी न खोली जा सकती है और न तोड़ी जा सकती है।
कहने को देवदासी प्रथा बंद कर दी गई है और यह अब कानून के खिलाफ है…पर ये प्रथा ठीक उसी प्रकार बंद है जैसे दहेज प्रथा कानूनन जुर्म है पर सब देते हैं…सब लेते हैं।
ये प्रथा वेश्यावृति को आगे बढ़ाने का पहला चरण है…दूसरे चरण वेश्यावृति में और कोई विकल्प न होने की वजह से मेरी जैसी खुद ही चुन लेती हैं।
यहाँ जवानी को स्वाहा करने के बाद बुढ़ापा बेहद कष्टमय गुजरता है देवदासियों का….दो वक्त का भोजन तक नसीब नहीं होता….जिस मंदिर में देव की ब्याहता कहलाती थीं उसी मंदिर की सीढ़ियों में भीख माँगने को मजबूर हैं….पेट की आग सिर्फ रोटी की भाषा समझती है….पर बुजुर्ग देवदासियाँ एड़ियाँ रगड़ कर मरने को लाचार हैं… कई बार भूख और बीमारी के चलते उन्हीं सीढ़ियों पर दम तोड़ देती हैं।
और हाँ….एक बात बतानी रह गई….वेश्याओं के बाज़ार में मुझे मेरी बड़ी बहन भी मिली….बहुत बीमार थी वो…पता चलने पर मैं लगभग भागती हुई गई थी उसकी खोली की तरफ…पर बहुत भीड़ थी उसके दरवाजे…” लक्ष्मी दीदी”.. कहते हुए मैं अंदर गई जो उसका निर्जीव अकड़ा हुआ शरीर पड़ा था
मर तो बहुत पहले ही गई थी वह भी बस साँसों ने आज साथ छोड़ा था।
छठीं सदी में शुरू यह प्रथा आज 21वीं सदी में कर्नाटक आंध्र प्रदेश तमिलनाडु महाराष्ट्र उड़ीसा में खूब फल-फूल रही है
अशम्मा जैसी 500 साहसी महिलाओं ने हैदराबाद के कोर्ट में इस बात के लिए रिट करी है कि ऐसे संबंधों से पैदा हुए बच्चों की शिक्षा का इंतजाम किया जाए और रहने के लिए हॉस्टल उपलब्ध कराया जाए अकेले महबूबनगर में ऐसे बच्चों की संख्या 5000 से 10000 के बीच है…. बच्चों का डीएनए टेस्ट करा कर पिता को खोजा जाए और उसकी संपत्ति में इन बच्चों को हिस्सा दिया जाए…….. पर जब तक कोर्ट का फैसला आएगा तब तक न जाने कितनी अशम्मा और न जाने कितनी मेरी जैसी इस दलदल में फँसी रहेंगी और घुट कर जीने के लिए मजबूर होती रहेंगी!!!!
(लेखिका पूनम लाल)

Friday, 29 December 2023

बहुत देर कर दी आते आते ...

श्री रामचंद्र जी भी सोचते होंगे कि ये कैसे भक्त हैं मेरे, जिन्होंने पांच सो साल लगा दिए? जबकि इस बीच मेरे इन संघि भक्तों के पूर्वजों (पेशवाओं) का दिल्ली पर राज भी रह लिया! और अब भी इन्होंने ये बनाया भी है तो वोटों के लिए, न कि आस्था के नाम पर। मेरे इन स्वार्थी संघी भक्तों ने पहले बनवाने के नाम पर वोट मांगे और अब 2024 में बनने के नाम पर वोट मांगेंगे! 

और एक वो खालसा बाबा बघेल सिंह ढिल्लों था, जिसने मुगलों के हलक में लठ देकर दिल्ली में न सिर्फ गुरुद्वारों के लिए जमीन ली, बल्कि इनके निर्माण के लिए खर्च भी मुगलों से ही लिया। और सिर्फ एक ही नहीं, बल्कि चार गुरद्वारों का निर्माण करवाया। क्योंकि उसकी नीयत सिर्फ आस्था की थी, सियासत की नहीं। जबकि मेरे इन भक्तों को सिर्फ एक मंदिर बनवाने में पांच सो साल लग गए, क्योंकि इनकी नियत सिर्फ सियासत की है!? 

By Rakesh Sangwan

Wednesday, 27 December 2023

साक्षी मलिक व् विनेश फौगाट बहनों के रूप में कल्चर व् किनशिप का अंतर् बड़ा स्पष्ट हो जाता है!

एक किनशिप से यह दोनों आती हैं, जिसकी मूल किनशिप में औरत को मुसीबत के आगे जोहर करना या सति होना नहीं सिखाया जाता अपितु महारानी किशोरी की भांति लड़ना सिखाया जाता है| जैसे महारानी किशोरी ने उनके बेटे महाराजा जवाहरमल को दिल्ली फतेह में लीड किया था ऐसे ही साक्षी मलिक बनी भाई बजरंग पूनिया व् भाई वीरेंद्र सिंह यादव द्वारा पद्मश्री त्याग देने की लीड| फिर आई विनेश बेबे, खेल रत्न व् अर्जुन अवार्ड त्याग देने वाली| यह उस किनशिप से आती हैं जिसने "गाम की बेटी 36 बिरादरी की बेटी" व् "गाम-गौत-गुहांड" के सिद्धांत पाले हैं| कम से कम इतने तो पाले ही हैं कि बलात्कारियों-मोलेस्ट्रो के पक्ष में जुलूस नहीं निकाले कभी|


यह बातें भी आज के दिन जो व्यवस्था में बैठे हैं इनको समझ क्यों नहीं आ रही? क्योंकि इनका कल्चर-किनशिप, औरत को सिद्धांत रूप से बलि की बेदी बनाये रखने का है| औरत का पति मर जाए तो उसके साथ औरत सती होगी या खुद को मनहूस मान काल-कोठरी में रहेगी या विधवा आश्रमों में चली जाएगी, औरत के पति पे मुसीबत आ जाए तो औरत लड़ने की बजाए जोहर करेगी| अछूत कही जाने वाली बिरादरी की बेटी हुई तो तथाकथितों द्वारा देवदासी बना ली जाएगी| व् इन किनशिप के समाजों के लोग उनके यहाँ के बलात्कारियों-मोलेस्ट्रो को गलत कहने की बजाए उनके पक्ष में जुलूस निकालते हैं| 2014 के बाद तो ऐसे नजारों की पूरी लिस्ट साक्षात् देख ही चुके हो?

और क्या इससे आगे, खुद को देवदासी बनाने के लेवल तक समझौते करती यह बेटियां?

नादाँ हैं वह तमाम भक्त, इन बिरादरियों व् इन जैसी बिरादरियों की कल्चर-किनशिप से जिससे साक्षी व् विनेश आती है; व् यह तमाम लोग यह मूल अंतर् नहीं समझ पा रहे; इनके कल्चर व् अपने कल्चर में| तुम्हारा तो कल्चर-किनशिप ऐसी है कि एक पल को मर्द कुछ एडजस्ट करने के मोड में जाते भी दिखेंगे तो तुम्हारी औरतें ही तुम्हें उधर नहीं जाने देंगी; उदाहरण साक्षी मलिक|

यह हमारे समाज का वह ग्लोबल चरित्र है जिसका सबसे बड़ा उदहारण फ्रांस की औरतें हैं| वसुधैव-कुटुम्ब्क की बक-बक बकने वालों को बताना यह बात कि जहाँ बदनीयती से हिटलर आता है परन्तु फ्रांस के मर्दों से पहले फ्रांस की औरतें ही उसको झुका देती हैं| इसीलिए फ्रांस में औरत को इतना सम्मान है व् यही बानगी आपकी कल्चर किनशिप की है; इसको पहचानों, वक्त रहते कि इससे पहले देर हो जाए व् तुम इस कल्चरल बुलंदी से नीचे गिर जाओ|

क्यों खामखा खुद को भी परेशान करते हो व् समाज को भी परेशान करके रखे हुए हो; इन छद्मों के चाटुकार हो के| वक्त रहते अपनी किनशिप की यह जिद्द, यह अनख पहचानों व् इन नादानियों से किनारे रहो| एक उत्तर है तो एक दक्षिण; एक पूर्व है तो एक पश्चिम| अत: अपने इस किनशिप के स्वभाव को समझो व् इसके अनुरूप चलने की लाइन पे रहो|

करने दो व् मानने दो जो औरत को विधवा-आश्रम में सड़ाना सही मानते हैं, उसको सती करना, जोहर करना सही मानते हैं; हमें क्या दिक्कत उनसे, उनका समाज, उनके मर्द-औरत वह जानें; आप बस अपने को बचाने व् कायम रखने पे फोकस रहो| बल्कि इनका आदरमान करो, इन बातों के लिए अगर यह खुश हैं तो; परन्तु इनको अपने अंदर या अपने ऊपर ओढ़ने की नादानी मत करो; क्योंकि तुम्हारा खून व् तुम्हारी औरतें तुम्हें ऐसा करने ही नहीं देंगी; उदहारण साक्षी मलिक व् विनेश फोगाट|

विशेष: वह गधे इस पोस्ट से दूर रहें, जिनको यह सब पॉलिटिक्स हेतु ड्रामा लगता है; क्योंकि यह पॉलिटिक्स थी भी तो तुम्हारे आकाओं को भी 11 महीने यह मौका दिया गया था कि इन बहनों के जरिये कोई पॉलिटिक्स का बहाना निकलता है तो मोदी-शाह लपक लें| परन्तु नहीं लपका; तो कहीं तो जा के अपना मान-सम्मान बचाएगा इंसान; या मोलेस्टेर्स को यूँ खुला सर पे नाचता देखता रहे? कोई तो बॉर्डर लाइन होगी, जुल्म की इंतहा को मात्र पॉलिटिक्स से आगे जा के देखने की या नहीं?

जय यौधेय! - फूल मलिक

बाकी उरै-परै की छोड़, अगर सिखी ना होती तो

 बाकी उरै-परै की छोड़, अगर सिखी ना होती तो किसान आंदोलन भी नहीं होता! हमारे वाले फंडियों से लड़ पाए क्योंकि सिखी पहले चढ़ के साथ आई| अकेले से आपसे 11 महीने चला पहलवान बेटियों का मसला हल ना हुआ; शुक्र मनाओ कि लोकसभा चुनाव सर पर हैं तो वोटों के डर से कुश्ती संघ ससपेंड कर दिया; वरना कौनसे और खून के आँसू चलवाते ये; दूसरों की बेटियों को देवदासियां बनाने की वासना व् हेय नजर रखने वाले, आपको समझ भी ना आती| 


किसी रोंदे-पिटदे आत्महीनता से ग्रस्त गैंडा सिंह का लिखा की अंतिम वाक्य हो जाएगा क्या? ऐसे-ऐसे नौसिखिये लेखक हमारी जूती पे व् ऐसे नौसिखियों की ऑथेंटिसिटी को मानने वाले उनके जैसे नौसिखिए नए-नए गैरअनुभवी विद्वान् बालक ही हो सकते हैं; कोई ऐसा विद्वान् नहीं जो पढ़ा व् कढ़ा दोनों ही हो| यहाँ मेरी इंटरप्रिटेशन यह है कि खुद को आपसे निम्न समझने की inferiority से भरा हुआ व्यक्ति यानि गैंडा सिंह ही आपको ऐसे लिखेगा| इतना पढ़ लिख गए हो और आज तक इतनी समझ नहीं बना पाए हो? इस लाइन पे बढ़ो अगर अभी इसपे कुछ नहीं सीखे हो तो| 


किसी कौम-कल्चर का किसी धर्म-जाति में उत्थान या पतन मापने का पैमाना क्या है तुम्हारा? 

मानसिक स्वछंदता है पैमाना है? - तो सिखी ज्यादा सरल है व् सुगम है| 

आर्थिक स्वछंदता पैमाना है? - तो किसान आंदोलन जो लड़ के अपनी जमीनें बचा ले, इससे बड़ी ताकत व् स्वछंदता और क्या होगी? एक 2019 का कोई सरकारी आंकड़ा उठा के तुम तरक्की दिखा रहे हो? उस रिपोर्ट को क्वोट करने से पहले जानते भी हो कि 60% हरयाणा NCR में आ चुका है? हरयाणा के वह आर्थिक आंकड़े, अकेले कृषि परवारों के नहीं होते, अपितु उन कंपनियों के भी होते हैं, जो 90% हरयाणा से बाहर वालों की हैं? खुद को विद्वान् बोलने लगे हो व् इतनी अक्ल नहीं ली अभी तक? एक जाति के स्तर पर जा के तुलना करने लगे हो या एक धंधे के आधार पर यानि कृषि के आधार पर तुलना करने लगे हो तो सिर्फ उसके आंकड़े देखो निकाल के| वरना हर दूसरा व्यक्ति यही कहेगा कि किसी संघी के हाथों में खेल रहे हो| 

सामाजिक सम्मान पैमाना है? - 35 बनाम 1 के दस-दस साल नफरत व् धुर्वीकरण के कुँए-खाई में कहाँ पड़े झेल रहे हो? 

आपसी सौहार्द पैमाना है? - तो फरवरी 2016 किधर झेले, मुज़फ्फरनगर 2013 किधर रहते हुए इस्तेमाल हुए? 

सोशल सिक्योरिटी? - इसपे भी सिखी को सबसे बढ़िया कहने में कोई हिचक है क्या किसी को? 

100% इस धरती पर कुछ नहीं है, तुम्हें चुनना होता है सबसे ज्यादा अच्छे व् सबसे ज्यादा बुरे में से| तमाम कमियों-खामियों के बाद तुलनात्मक पैमाने पे सिखी में वह बहुत कुछ है, जो वहां कभी हो भी नहीं सकता; जहाँ तुम बैठे हो| 


एक तो तुम्हारी यही समझ नहीं आती कि तुम जहाँ पड़े हो, उनसे भी तकलीफ व् जो इस लीचड़ व्यवस्था से पिंड छुड़ा गए या छुड़ा रहे हैं उनसे भी तकलीफ| तुम्हें यहाँ पड़ा रहना है तो पड़े रो ना; कौन क्या कह रहा है तुम्हें? दो किताबें, दो हर्फ़ क्या ज्यादा सीख लिए; सिखी में नुक्स निकाल रहे हो| इसको कोई ढंग से anthropology व् analogy सिखाओ यार; वरना ज्ञान इसने अर्जित किया है व् उसका इस्तेमाल फंडी करते रहेंगे| 


और मैं ना आज के दिन सिखी में हूँ, ना वहां जाने का हाल-फ़िलहाल कोई ईरादा| जो गए उनको भी सवाल किये थे, वह बिना जवाब दिए गए| परन्तु एक नीतिगत कौम-प्रेमी को चाहिए कि अपनों के खिलाफ खुद ही मोर्चे खोल के ना बैठे, इतना तो उन फंडियों से ही सीख लो, जिनकी तुम गाहे-बगाहे अनजाने में जस्टिफिकेशन करने लगे हुए हो? और मैं वो हूँ जो दिनरात खाप-खेड़ा-खेत पर काम करता है| 


और खुश हूँ जो सिखी में जा रहे हैं उनके लिए व् जो उदारवादी जमींदारी किनशिप को भी खड़ा कर रहे हैं, उनके लिए भी| 


हाँ, एक बात के लिए इस बच्चे को धन्यवाद बोल सकते हो, कि सिखी के "गुरु ग्रंथ साहिब" में अगर कहीं किसी जाति-बिरादरी के लिए कोई छोटा-माडा लिखा हुआ है तो उसको सुधार करवाया जाए| सुधार किसी भी धर्म के बढ़िया होने की निशानी है; जैसे बाईबल में निरंतर सुधार होते रहते हैं| यह तो मैंने इन उधर जाने वालों को शुरू दिन ही कही थी, कि देर-स्वर आपको इन सवालों पर घेरा जाएगा, परन्तु किसी अपने ही नादाँ से घिरवाने की कोशिश होगी, यह हास्यास्पद है| और आप लोग उसके आगे डिफेंसिव हो रहे हो, क्यों किस इज्जत या डर में? इस नादाँ से ही नहीं जिरह जीत पाए तो बाकियों को कैसे convince करोगे?   


जय यौधेय!

Monday, 25 December 2023

Periyar Ji’s speech as why he is burning the Constitution of India

Ladies and Gentlemen!


Can anybody say that India was one united nation before the British came? Was the Dravidian land ruled by anyone who was not a Dravidian? The British, for their own convenience tied together the various places he had won in his conquests together. He used the name that the Muslims gave him. One way or another this nation maybe a reality today, but how is it fair for you to exploit and rule this nation in a way that is worse than the Mughals and the British? You are imposing your language on us just like they imposed theirs.


You’ve made yourself this constitution. It is much like the Manu sashtra, a book of law that denies intervention or change by one and all. In the name of this book you have begun to control and oppress us. As per the constitution, one cannot oppose exploitation; we cannot ask for an independent nation, we cannot ask for reservations. You have made all of these efforts ‘punishable by law’.


Today, I would like to declare that we will not accept this constitution. This constitution affects us adversely. It has not been framed by our representatives. We will burn it.


With whose consent and with whom did you frame this constitution? You held elections maintaining the suffrage system as established by the British; for the rich and the educated alone. Those who won that election then made the constitution. Remember, you yourself boycotted all the laws that the British brought in using this suffragette system!


The two and a three fourth Brahmins, five rich people and their servants are to be the representatives of this nation? Was this constitution made with the participation of the poor of this country; the majority of the population? In 1946 you declared that the constitution will be made by the representatives elected after all people above the age of 21 can vote in this country. Did you do that?


Do you actually believe that you can get away with anything just because the British flung the country into your hands as they left in a hurry? You’ve established a constitution that will permanently oppress us and make it easy for you to exploit us. You then go ahead and impose this constitution on all of us? Did you tell the British you were going to do this when you asked for ‘independence’?


So, we will burn the constitution just like we burnt the Ramayana, Mahabharatham, Geethai, Prabandam etc. Just like how we declared and burnt all of those texts as being impractical and harmful for our everyday lives, we will do the same with this constitution that has been put in place to make it easy for those in power to enslave and exploit the people of this country. We will burn it. Yes, we will!


….


(Speech at Chennai beach, Triplicane, 03.08.1952. Viduthalai, 07.08.1952)

Friday, 22 December 2023

बृजभूषण दबदबा इसको कहते हैं!

 आड़ै दिन-रात सारे संघी, लोगों को यह कह के झूठा डराते हैं कि जाटों को वोट ना दियो ना तो यह थामने दबा लेंगे, थारा यह खोस लेंगे, वह खोस लेंगे; जाणूं जाट ना हो गए, शोले फिल्म आळा गब्बर हो गए कि सो जा बेटा ना तो गब्बर आ जाएगा| बता यह दबदबा है जाट-ब्रांड का और बृजभूषण के फिर भी यूं बहम है कि उसका दबदबा सै| यूं ज्युकर संघियों के जाट शब्द का ताप चढ़ा रहै, तेरा नाम ले के न्यू ताप चढ़ाने लायक जिस दिन संघी तेरा नाम इस्तेमाल करेंगे; उस दिन हम भी मान लेंगे बृजभूषण कि है तेरा दबदबा| मेरे बटों की सरकार आई को 9 साल हो लिए; पर "जाट-जाट-जाट का ताप ही नहीं टूट रहा इनका आज भी" कि हर संघी की बाकायदा ड्यूटी है "जाट का नाम ले के डराने की", म्हारे बीच की ही बिरादरियों को डराए रखने की| वरना यह सीधे मुंह एक वोट ही ले के दिखा देवें इनके बढ़िया काम समाज को गिनवा के? इतनी हस्ती बना बृजभूषण फिर कहता जचेगा कि है तेरा दबदबा| जाट का झूठा डर दिखाए बिना तो राजनीति नहीं चलती तेरे जैसों को सपोर्ट करने वालों की| जाट का तो झूठे में भी नाम ले के लोग वोट ले लेवें, इतना दबदबा सै इस नाम का|


दबदबा किसको कहते हैं वह मेवात एपिसोड जो अभी जुलाई 2023 में हो के हटा; जहाँ जाट व् खाप ने उल्टा हाथ क्या खींचा, तेरे जैसे मेवात चढ़ने की राह भूल गए थे; इसको दबदबा कहते हैं बृजभूषण| जिस दिन इतनी हस्ती हो जाए; उस दिन मान लेंगे कि है तेरा दबदबा

सत्यार्थ प्रकाश में एक ब्राह्मण दयानन्द सरस्वती ने जाट को "जाट जी" का सम्मान देते हुए जाट के बारे लिखा है कि, "जो सारी दुनिया जाट जी जैसी हो जाए तो पंडे-पाखंडी भूखे मर जाएँ"| दबदबा इसको कहते हैं बृजभूषण; तेरे बारे आज तक कहीं ऐसा लिखा गया हो ऐसा तो मानें तेरा दबदबा|

दबदबा इसको कहते हैं कि जब महाराजा सूरजमल ने पानीपत की तीसरी लड़ाई से हाथ खींच लिए थे तो सिर्फ इतने मात्र से पानीपत में घुटने टेक रोये थे पेशवे कि खुद चल के मदद देने आये जाट का किस मनहूस घड़ी में अपमान कर बैठे और तब समझ आई कि "बिन जाटां किसनें पानीपत जीते"| दबदबा इसको कहते हैं बृजभूषण| हम तो किसी को छिंटक देवें तो इतने से ही अगले की हार हो जाती है|

तू बाकी छोड़; जिस दिन तेरे पुरखों को 21 बार धरती से मिटा देने वालों की; शोभा यात्रा रोक देगा; उस दिन मान लेंगे तेरा दबदबा| तेरी छाती व् घरों के आगे से निकाल के ले जाते हैं, हर साल वो शोभा यात्रा|

"जाटड़ा और फोड़ा, जितना दबाया उतना उभरा" - राजी मत हो; तेरे ऐसे ब्यान तो जाट के लिए ट्रेनिंग का काम करते हैं|

जय यौधेय! - फूल मलिक

Thursday, 21 December 2023

साक्षी मलिक बेबे वाली समस्या हो या उपराष्ट्रपति वाली बात हो!

यह दोनों ही तरह की समस्याएं तब हल होंगी जब जिस culture-kinship से यह दोनों आते हैं, वह कल्चर-किनशिप, इसके सबसे वृद्ध-समृद्ध 'Folk-culture' को अपने पुरखों की भांति 'Organized Culture' पर फिर से upgrade नहीं करेगी; इसके 'Folk-religion' को ही फिर से 'Organized religion' नहीं बनाएगी| यह कल्चर-किनशिप ऐतिहासिक तौर पर सबसे organized रही है, परन्तु इसके अपने लोगों के इन दोनों कार्यों पर इनके पुरखों की भांति निरंतर सरजोड़ करते रहने की परम्परा के विखंडित कर दिए जाने से या खुद की ही अति-उदारवादिता के आगे कर दी गई अनदेखियों से विखंडित होने दिए जाने से, एक ऐतिहासिक तौर पर सबसे socially professional कल्चर-किनशिप आज सबसे unorganized अवस्था में आई हुई है| 


हमारे जैसे कुछ लोग इसको फिर से दुरुस्त करने में शांतचित से लगे तो हुए हैं; परन्तु यह रास्ते अति-गहन व् अति-धैर्य से चलने वाले होते हैं, इसलिए काफी दुष्कर व् तप से भरे होते हैं| तो धैर्य धार मेरी बाहण, हम मुड़ेंगे जरूर; उसी पुरखों वाली अनख व् ठनक के साथ; जिसने इस सप्ताब की धरती को सबसे समृद्ध व् खुशहाल धरती बनाया है| 


आज जो इस धरती पर दावे ठोंकने चले आए हैं, वह तेरे पुरखों की मेहनत के निखार की रौनक के लुटेरे हैं; इसके पोषक नहीं| पोषक होते तो यहाँ की मिटटी के मिजाज को समझ कर चलते| बस इतना सा कर बेबे, तेरी पहलवान लॉबी का सरजोड़ करने का मिशन बना ले अब जिंदगी का, फुल-टाइम ना सही तो पार्ट-टाइम ही सही; व् उनको अपनी पुरख कल्चर-किनशिप पर वापिस जोड़ती जा| यही वह रास्ता है जो तेरी दुखी आत्मा को वह राह देगा; जिसकी अनख में तू इन वर्णवादी भेड़ियों से जा टकराई| 


जब किसी कौम के सबसे नाउम्मीद लोग ही उस कौम के मसीहा उछाले जाने लगें, व् बावजूद इसके उछाले जाने लगें कि खुद कौम ही उनको ऐसा ना मानती हो तो समझ लेना इसी को "किसी कल्चर-किनशिप-कौम-समाज के उल्टे लगना कहते हैं"| कम कहे में ज्यादा समझना; क्योंकि मैं अपनी ही कल्चर-किनशिप के व्यक्ति के क्रिटिक में न्यूनतम संदेश देने जितनी ही ड्योढ़ी छूता हूँ| 


जय यौधेय! - फूल मलिक