Friday, 28 February 2025

Why Sir Chhoturam get Jats recruited in Jat Regiment for Britishers?

 Fandi स्पोंसर्ड एक "बर्बादीकिसान" ग्रुप "खाप-खेड़ा-खेत कल्चर-किनशिप" के महापुरुषों को शौर्यहीन करने पर लगा हुआ है व् इसी कड़ी में उन्होंने निशाना बना रखा है सर छोटूराम को| फैलाते फिर रहे हैं कि क्यों सर छोटूराम ने अंग्रेजों के लिए जाटों को उनकी फ़ौज में भर्ती करवाया था? व् इसी बिंदु का ओहड्डा ले के वह सर छोटूराम को अंग्रेजों का पिट्ठू बरगलाते फिर रहे हैं| 


इनको यह सलंगित वीडियो भेजें, इसमें प्रख्यात दार्शनिक डॉक्टर हिम्मत सिंह सिन्हा जी बता रहे हैं कि क्यों सर छोटूराम ने ऐसा किया था| डॉक्टर सिन्हा के अनुसार सर छोटूराम ने अगत भांप ली थी कि अगर अंग्रेजों की बजाए हिटलर का साथ दिया गया तो अंग्रेज जाएंगे व् नाजी यहाँ आ जाएंगे| जबकि अंग्रेजों की हालत वैसे ही पतली हुई पड़ी थी, उन दिनों|


वह तो शुक्र है कि हिटलर मारा गया, वरना इस बात से कौन इंकार कर देगा कि ऐसा नहीं हो सकता था अगर हिटलर जिन्दा रहता व् वह जीत भी जाता तो; इंडिया पर वह अपना कब्जा जमाता? 


इस बात से नेता जी सुभाषचंद्र बोस के निर्णय पर बात करना बनता है कि क्या फिर नेता जी सही थे, जो हिटलर का साथ दे रहे थे; या वह हिटलर को सिर्फ इस्तेमाल कर रहे थे; अंग्रेजों व् नाजियों की लड़ाई का फायदा उठा कर? खैर, ना तो उस वक्त नेता जी ही बचे व् हिटलर भी आत्महत्या कर गया; अन्यथा दोनों जिन्दा होते तो संभावना थी कि सर छोटूराम वाली बात ज्यादा सच साबित होती| 


Jai Yaudheya! - Phool Malik




और इस तरह ज़ेलेन्स्की, ट्रम्प व् वांस दोनों से दबा नहीं व् नहीं की मिनरल डील साइन!

यूक्रेन वाले ज़ेलेन्स्की के साथ ट्रम्प का पेंचा उसी मैटर पे फंसा है जिसपे अन्धभक्ताधिराज मोदी के साथ फंसा था| मोदी भी पहले इलेक्शन कैंपेन कर आया व् बाद में वहां गए-गवाए को ट्रम्प ने बुलाया लास्ट इलेक्शन के दौरान तो मिलने भी नहीं गया| यही ज़ेलेन्स्की ने किया, कमला हैरिस की इलेक्शन कैंपेन करके आया था पेंसिलवेनिया में सितंबर में| 


परन्तु मोदी व् ज़ेलेन्स्की में दिन रात का फर्क है; मोदी जहाँ चुपचाप जहाँ कहा वहां साइन कर आया व् ना ही ट्रम्प उसको ओवल हाउस (वाइट हाउस) के गेट पर लेने आया था, बल्कि उसकी एक कर्मचारी मात्र आई थी; ना मोदी को बुलाया गया था, बल्कि मोदी खुद अपॉइंटमेंट ले के गया था| 


जबकि ज़ेलेन्स्की को ट्रम्प ने बुलाया भी, गेट तक खुद लेने भी आया; भीतर अच्छी गर्मागर्म बहस हुई; खूब ज़ेलेन्स्की को दबाने की कोशिश की ट्रम्प व् वांस दोनों ने; परन्तु दबा नहीं ज़ेलेन्स्की व् ना ही मिनरल्स डील पे साइन किए| हार बेशक जाए बंदा, परन्तु दुनिया व् इतिहास उसको हार के भी जीता हुआ ही बताएगी; क्योंकि ट्रम्प व् वांस दोनों ने हाँगा लगा लिया वो भी अपने घर में बैठा के; परन्तु बंदा डील साइन नहीं करके आया!


शायद कल्चर का फर्क है यह; मोदी जहाँ एक फंडी-वर्णवादी कल्चर से आता है; जिसका अंत आप में दब्बूपन व् भीरुता का आना होता ही होता है; वहीँ उक्रेन का कल्चर एक दम विपरीत है| शायद उक्रेन के आसपास से ही खाप-खेड़ा-खेत कल्चर-किनशिप को मानने वाले समाजों जैसे की जाट का ओरिजिन बताया जाता है; इसके ऊपर ही तो है सीथियन रीजन; जहाँ से जाट का उदगम बताया जाता है; शायद उक्रेन भी इसका पार्ट ही हो| 


यही वो एथिकल गट्स हैं जिनको फंडियों से बचा के आगे अगली पीढ़ियों में बढ़ाने की बातें हम करते हैं| पिछले दस-ग्यारह सालों से खापलैंड व् मिसललैंड पर वर्णवादी फंडी लॉबी और क्या कर रही है, कभी 35 बनाम 1 तो कभी अग्निवीर तो कभी किसान आंदोलनों को दबाने या तोड़ने की कोशिशों के जरिए; परन्तु शाबाशी है इन खापों व् खालसा वालों की, कि मंदा तुर रहे हैं; परन्तु टूर रहे हैं; लेकिन इन फंडियों के आगे सरेंडर नहीं कर रहे| उम्मीद है कि हम इस डेमोक्रेटिक व् रिपब्लिकन बेबाकपन को ऐसे ही कायम रख के अगली पीढ़ियों दे पाएंगे| 


जय यौधेय! - फूल मलिक


https://www.youtube.com/watch?v=3YyaYuBsJQ0

Monday, 24 February 2025

'छावा' : हिंदुओं की 'हीनता बोध' पर नमक मलने की कहानी!

 14 फरवरी को विकी कौशल अभिनीत फिल्म 'छावा' महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और गोवा में टैक्स फ्री हो चुकी है। फिल्म की 'सफलता' और चर्चा के कारण लोग शिवाजी के बेटे संभा जी के बारे में और ज्यादा जानने के लिए उत्सुक हो रहे हैं। उनका पहला पड़ाव Wikipedia है।

संभाजी के बारे में Wikipedia में शुरू में ही जो जानकारी दी गई है वह फिल्म के 'नैरेटिव' में सेंध लगा कर उसे तहस नहस कर देती है।
Wikipedia कहता है कि एक बार शिवाजी ने ही अपने बेटे संभा जी को कैद कर लिया था क्योंकि उसने किसी ब्राह्मण महिला की अस्मत से खिलवाड़ किया था। बाद में शिवाजी की कैद से भागकर वह मुगलों से जा मिला। और दिलेर खान के नेतृत्व में शिवाजी के खिलाफ ही लड़ाई छेड़ दी। (लिंक कमेंट बॉक्स में)
अंततः 19 फरवरी को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री फडणवीस ने Wikipedia को नोटिस भिजवाई और इस 'आपत्तिजनक' हिस्से को हटाने को कहा।
यह इसका एक उदाहरण है कि फासीवादी दौर में पहले कहानी या नैरेटिव तैयार किया जाता है, फिर उसके हिसाब से इतिहास की मरम्मत की जाती है।
फिल्म के अंतिम दृश्य में औरंगजेब संभा जी से कहता है कि धर्म परिर्वतन कर लो और हमारे साथ आ जाओ। जवाब में संभा जी कहता है कि तुम मेरे साथ आ जाओ और इसके लिए तुम्हे अपना धर्म भी नहीं बदलना पड़ेगा। (पिक्चर हाल में तालियों की गड़गड़ाहट)
अब इस तथ्य से उन्हें क्या लेना देना कि औरंगजेब के दरबार में सबसे ज्यादा हिंदू थे। औरंगजेब का वित्त विभाग राजा रघुनाथ संभाल रहे थे और उनकी सेना की कमान जय सिंह और जसवंत सिंह संभाल रहे थे। दूसरी ओर संभाजी के पिता छत्रपति शिवा जी की सेना में करीब 60 हजार मुस्लिम थे जिनकी कमान इब्राहीम खान के हाथ में थी।
जिस तरह से सिगरेट की डिब्बी पर 'धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है' लिखा रहता है, उसी तरह इस बेहद गलीच सांप्रदायिक फिल्म में संभा जी से एक लाइन कहलवा दिया गया है कि हमारा संघर्ष किसी धर्म विशेष से नहीं है। लेकिन पूरी फिल्म में जो जहर उगला गया है वह हमारे विशेषकर हिंदुओं के मानसिक स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा है, बिल्कुल किसी कैंसर की तरह है।
इसलिए इसे महज 'प्रोपेगंडा फिल्म' कहकर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यह BJP/RSS के हिंदुत्व फासीवाद प्रोजेक्ट के तहत बनाई गई फिल्म है। 'हिंदुओं' पर इसके खतरनाक असर को इसी तथ्य से समझा जा सकता है कि फिल्म देखने के बाद दिल्ली में कई नौजवानों ने अकबर, बाबर, हुमायूं रोड के चिन्हों पर पेशाब किया और नारे लगाए। इनके दिलों में मुस्लिमों के प्रति कितनी नफ़रत होगी, आप समझ सकते हैं।
फिल्म के अंत में आधे घंटे सिर्फ संभाजी के टार्चर का ग्राफिक चित्रण किया गया है, जिसका एक मात्र उद्देश्य हिंदुओं की 'हीनता बोध' के ज़ख्म पर नमक मलना और हिंदुओं की कृत्रिम नफरत को मुस्लिमों की तरफ मोड़ना है। फिल्म में सचमुच में संभा जी की चोटों पर नमक मला जाता है। फिर पर्दे पर संभा जी की आंख निकालना और जीभ काटना। उफ्फ...
आश्चर्य है कि इसके बाद भी इसे A सर्टिफिकेट न देकर U/A सर्टिफिकेट दिया गया है। पिक्चर हाल से निकलते हुए मैने देखा कि परिवारों के साथ 3-4 साल तक के बच्चे भी हैं। इनके कोमल दिलों दिमाग पर क्या असर हो रहा होगा। किस तरह की नफरत लिए हुए ये बड़े होंगे?
फिल्म की शुरुआत में एक युद्ध के बीच मुस्लिम बच्चे को संभा जी द्वारा बचाकर उसकी मां को सौंपना और फिल्म के अंत में औरंगजेब की सेना द्वारा एक हिन्दू बच्ची को आग में जला कर मार देना, और पर्दे पर उसका ग्राफिक चित्रण बीजेपी के 'ओपन एजेंडे' को पूरा करने के लिए ही है।
ऐसी फिल्मों की महिला पात्र महज पुरुष के 'इगो' को सहलाने के लिए ही होती हैं। इसलिए उनकी चर्चा ही यहां बेमानी है।
विक्की कौशल के अभिनय की बहुत प्रशंसा हो रही है। लेकिन ऐसी नफरत भरी लाउड फिल्म में एक्टिंग की नहीं बल्कि ओवर एक्टिंग की जरूरत होती है। और विक्की कौशल ने यह काम बखूबी किया है।
अब वे बॉलीवुड के नए 'हिंदू हृदय सम्राट' हैं, मनुवादी फासीवादी सांस्कृतिक फैक्ट्री का एक नया उत्पाद.....

Friday, 7 February 2025

सातवीं सदी से तो हम देखते-पढ़ते-सुनते आ रहे हैं कि अंतत: "इंडिया में पाई जाने वाली फंडी पॉलिटिक्स" का हश्र यही होता है जैसा "ट्रम्प ने मोदी व् बीजेपी पॉलिटिक्स" के साथ किया है!

Chronological आर्डर में समझिए:

1) चच-दाहिर ने धोखे से एक किसानी कौम से आने वाले राजा को सत्ता से हटाकर सत्ता हथियाई; तो मुहम्मद बिन कासिम चढ़ आया व् उस राजा को इतनी बुरी तरह से हराया कि उसकी बेटी तक को बंधी बना के ले गया| सुनते हैं कि मुस्लिम इतिहासकारों ने उस वक्त में किसी ने उनके इस हमले या कृत्य का विरोध कर मुस्लिम सेना के सिंध के मैदानों में 5 हजार सैनिक मारे तो वह खापों वाले जाट बताए जाते हैं| फंडी ही कहते हैं कि श्राप नाम की कोई बला होती है, लग जाए तो मलियामेट कर देती है, किसानी कौम को सताने का श्राप झेला; क्योंकि उस वक्त के इतिहासकार यह भी लिखते हैं कि चच व् दाहिर जाटों से इतने डरते थे कि उन्होंने जाटों का हथियार ले के चलना व् घोड़ों पर चलना दोनों बंद कर रखे थे|


2) सन 1025 में गज़नी गुजरातियों का सोमनाथ लूट के ले गया व् सभी फंडियों को ठीक ऐसे ही संताप लग गया था, जैसे अभी मोदी व् बीजेपी को ट्रम्प के कृत्यों से लगा हुआ है; काटो तो खून नहीं| जबकि जब तक हमला ना हुआ था तो घस्से इतने बड़े कि सेना सोमनाथ में घुसते ही अंधी हो जाएगी| इतिहासकार बताते हैं कि उस ग़ज़नी को सिंध-पंजाब के जाटों ने ही लूटा था; सर जयप्रकाश घुसकानी की लिखी "कौन कह था जाट लुटेरे" वाली रागणी में इस बात का जिक्र भी है| यानि फंडी सत्ता फिर चित्त हुई| 


3) 1193 में आया मोहम्मद घोरी, फंडियों की व् उनकी सत्ता की क्या हालत करके गया; सभी को मालूम है| यहाँ भी खापों-जाटों के दादा रायसाल खोखर ने ही उसको मारा बताते हैं| कोई फंडियों को ऐसे ही संताप लगा हुआ था, जैसे आज ट्रम्प के आगे मोदी-बीजेपी को लगा हुआ है| 


4) 1398 में तैमूर लंग चढ़ा आया था, बहुतेरे फंडी मोहम्मद बिन तुगलक के दरबारी बन उनके आगे अपनी कूटनीतियों की शेखियां बघार-बघार धन बटोरते थे; परन्तु जब असली तूफ़ान सर चढ़ा आया तो रोका उसको भी फिर से जाट राजा देवराज जी की बुलाई खाप पंचायत से गठित हुई सेना ने; जिससे कि उसके सेनापति दादा योगराज गुज्जर व् तैमूर को भाला मार घायल कर भागने को मजबूर करने वाले दादा हरवीर सिंह गुलिया जी जाने जाते हैं| 


5) बीच में ऐसे ही पांच-दस और छोटे-बड़े किस्सों से आगे बढ़ते हुए अब आते हैं सीधा पानीपत के तीसरे युद्ध पर| दम्भ व् वर्णवादी अहंकार में चूर पेशवे चढ़ आए पानीपत में अहमद शाह अब्दाली को ललकारने| जाट महाराजा सूरजमल को जीतने पे 'दिल्ली देनी मंजूर नहीं थी इनको' अपितु उनका उपहास व् अट्टाहस उड़ा के पानीपत जीतने चढ़े थे; 8 घंटों में पेशवा सदाशिव राव भाऊ (इसी के अपभृंश से हरयाणवी औरतों ने हाऊ शब्द बनाया था) पानीपत में घुटनों बैठ रोया था; रोया था उस पल को जिस पल को जब जाट का अट्ठास किया था| इनकी यह सत्ता यहाँ दम तोड़ी| पछतावा कुछ यूँ उतारा था कि जाट सेना के सैनिक जो पेशवा सेना छोड़ने गए थे, उनसे अपनी बेटियां ब्याह उनको वहीँ बसाया व् इसी युद्ध से दो कहावते चली कि "जाट को सताया को ब्राह्मण भी पछताया" व् "बिन जाटों किसने पानीपत जीते"| 


6) फिर से छोड़ दो बीच के कई फ़साने (ज्यादा लम्बा हो जाएगा लेख), सीधे आ जाओ किसान आंदोलन 2020-21 पर व् पहलवान आंदोलन 2023 पर| यहाँ भी इन्होनें उदारवादी किसानों की हर बेइज्जती व् तिरस्कार की हदें पार कर रखी हैं हुई हैं| क्योंकि इस किसान आंदोलन की सबसे बड़ी कौम जाट-जट्ट ही सेना में सबसे ज्यादा जाते हैं तो उसी चच-दाहिर की लाइन पे चलते हुए जनाब ने किसान आंदोलन का बदला "अग्निवीर" ला के लिया, कि इनको कम भर्ती करोगे तो सही रहेगा| अब ऐसे में ट्रम्प द्वारा इनके जबाड़े में हाथ फेर के देखना; सातवीं सदी से चली आ रही इनकी तथाकथित साम-दाम-दंड-भेद की दुर्गति ना तो और क्या है? श्राप-संताप तो नहीं लग रहा इनको अब फिर से?


कुछ नहीं बदला; वही पुनर्वृत हो रहा है, उदारवादी किसानी को दुर्गत कर, दम्भ में चढ़ते हैं व् होनी इनको फिर लपेटे लगा देती है| फंडी ही अक्सर श्राप-संताप आदि को मानते हैं तो यह कुत्ते की दुम की भांति और कितनी सदियां लगाएंगे खुद को सीधा करने में? कब समझेंगे कि तुम्हारी तथाकथित कूटनीति, राजनीति में जो यह manipulation व् polarisation का टेक्निकल लोचा है; इसको ठीक कर लो; वर्ण खुद को बर्बाद व् बदनाम रहोगे ही; साथ ही हम जैसों को भी लबेड़े रखोगे| 


चले हैं अंग्रेजों से राजनीति के दांव-पेंच लड़ाने; तुम सर छोटूराम थोड़े ही हो कि अंग्रेजों से गेहूं के दाम 6 रुपए से दस रुपए भी करवा ले व् 25 साल तक निष्कंटक यूनाइटेड पंजाब पे राज भी कर जाए| 


जय यौधेय! - फूल मलिक


Thursday, 30 January 2025

1960-1970 के दशक में रूस और अमेरिका में अंतरिक्ष में वर्चस्व को लेकर भयंकर जंग छिड़ी हुई थी!

 1960-1970 के दशक में रूस और अमेरिका में अंतरिक्ष में वर्चस्व को लेकर भयंकर जंग छिड़ी हुई थी कि - कौन चांद पर पहले अपना ' राकेट ' उतारेगा और अंतरिक्ष में अपना वर्चस्व स्थापित करेगा . उस वक्त भविष्य की संभावनाएं अंतरिक्ष में ढूंढी जा रही थी . 


                        उस 


वक्त भी भारत का आदमी तो दूसरों के ' राकेट ' में लदकर अंतरिक्ष में गया था . हम अपना खुद का कुछ नहीं कर पाए थे . अब जब दूसरे देशों ने मंगल ग्रह तथा दूसरे ग्रहों की यात्राएं शुरू कर दी हैं तो हम अब ' चांद-चांद ' खेल रहे हैं . 


                        लेकिन 


अब लड़ाई अंतरिक्ष की बजाए भविष्य की Technology को लेकर जमीन पर छिड़ गई है . अब इसमें अमेरिका को चुनौती देने के लिए रूस की बजाए चीन ने वो जगह ले ली है . दोनों देशों को अच्छी तरह से पता है कि - भविष्य की Technology ( Artificial Intelligence ) है और उस पर जिसका भी कब्जा होगा तो भविष्य में पूरी दुनिया में दबदबा भी उसी देश का होगा . 


                         इस 


भविष्य की लड़ाई में खुद को खुद ही ' विश्व गुरु ' का तमगा देने वाला भारत आज ' नां तीन में है और नां तेरह ' में है . हमने 2014 के बाद भविष्य की यात्राएं करनी छोड़ दी हैं . अब हमनें Reverse ' पीछे ' की यात्राएं करनी शुरू कर दी हैं . जो लोग, जो समाज और जो देश कुछ नहीं कर पाते, आप ध्यान देना - वो ' अध्यात्म ' के नाम पर भूतकाल की बातें और यात्राएं करना शुरू कर देते हैं . ऐसे देशों की युवा पीढ़ियों का भविष्य अंधकारमय होता है . 


                         आज 


अभी ' गूगल ' पर एक खबर पढ़ रहा था तो उसके अनुसार भारत की 62 Universities इलाहाबाद जाकर ' कुंभ ' मेले पर Research कर रही हैं . अब आप लोग अपनी आगे आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को लेकर सोच सकते हैं कि - वो क्या बनेंगी - ? आपको अपने बच्चों को भविष्य बचाना होगा . 


                     उसके 


 लिए आपको कठोर निर्णय लेने पड़ेंगे . अगर आपके बच्चे 10+2 में पढ़ रहे हैं या पढ़ चुके हैं तो आप उन्हें आगे की पढ़ाई बाहर से करवाना चाहते हैं लेकिन पश्चिमी के देशों में पढ़ाई मंहगी होने के कारण आप उन्हें वहां नहीं भेज पा रहे हैं तो आप Technical पढ़ाई के लिए चीन की किसी भी बढ़िया Engeneering University का चुनाव कर सकते हैं . जहां तक मुझे पता है, युरोपीयन देशों और अमेरिका से चीन में Engeneering की अंग्रेजी में भी पढ़ाई करना बहुत ज्यादा सस्ता है . 


                       दूसरे 


अगर आप का बच्चा या आप चीनी भाषा ' मन्दारिन ' सीख लेते हैं तो फिर वहां पढ़ाई का खर्चा नाममात्र का है बल्कि उसको चीन की सरकार एक अच्छी-खासी Scholarship भी देती है . ये देश की लकीरें नेताओं ने अपने स्वार्थ के लिए खींच रखी है ताकि आम आदमी को बेवकूफ बना कर और उसका देश के नाम पर भावनात्मक शोषण करके उस पर निर्बाध रूप से राज किया जा सके . बीजेपी के हर नेता का बच्चा अपने सुखद भविष्य के लिए इंग्लैंड और अमेरिका की युनिवर्सिटीओं में पढ़ रहा है . क्योंकि इनके पास पैसों की कमी नहीं है . भारत के विदेश मंत्री के बेटे ने तो अमेरिकी नागरिकता तक ले रखी है .


                       तो 


आपको भी यह अधिकार है कि - आप भी अगर अपने बच्चे को या खुद मंहगी होने के चलते इंग्लैंड और अमेरिका की युनिवर्सिटीओं में नहीं पढ़ या पढ़ा सकते तो कम से कम खर्चे में अपने पड़ोसी देश चीन में उन्हें भेजकर सस्ते में उन्हें उच्च शिक्षा तो दिलवा ही सकते हैं . आगे जमाना उच्च शिक्षा का है और वो भी Technology के क्षेत्र का है . इसलिए अपने अच्छे भविष्य के लिए हमें कोई भी निर्णय लेने में हिचकिचाहट नहीं दिखानी चाहिए .

नाहर सिंह 


                        *****

Tuesday, 21 January 2025

धर्मगुरु इसको बोलते हैं

 कल ही ट्रम्प ने शरणार्थियों को अमेरिका से बाहर करने की बात कही व् आज ही इस ईसाई बिशप ने ट्रम्प को उसके आगे ही उसके इस निर्णय को गलत भी कह दिया व् इसको नहीं करने की भी कही| और एक तथाकथित ये हमारे यहाँ के धर्मगुरु हैं, दस-ग्यारह साल हो लिए मोदी-शाह-बीजेपी-आरएसएस ने देश में हिन्दू-मुस्लिम, इस बनाम उस आदि किए हुए; कहने की तो छोड़िये, बताईए ऐसे मोदी के सामने खड़ा हो के कौनसे ने उसको इन बातों पे फटकारा है जैसे यह लेडी बिशप फटकार रही है? बस इसीलिए यह देश विकसित हैं| 


हमारे यहाँ तो यह काम एक हमारे खाप-चौधरी ही करते हैं जैसे जुलाई 2023 में मेवात कांड नहीं होने दिया, इसका सबसे बड़ा उदाहरण दादा चौधरी ओमप्रकाश जी धनखड़ हैं; दादा चौधरी राजपाल जी कलकल हैं; व् इन्हीं जैसे कई और; या उत्तर-पश्चिम भारत की किसान-यूनियनें ऐसा करती हैं जैसे उसी वक्त सुरेश कोथ जी ने हाँसी मसले में फंडियों को फटकार के हड़का दिया था कि कोई हाथ लगा के दिखाए मुस्लिम भाइयों को और यही लोग किसानी के साथ-साथ इन मसलों पर स्टेट-सेंटर सरकारों को खुला सुनाते हैं| 


यानि इस वीडियो से एक अस्सेस्मेंट इस बात की ले लीजिये कि हमारे *खाप वाले* हों या *किसान यूनियन वाले* या फिर *उज़मा बैठक वाले*; वह इस नस्लीय मामले में अमेरिकन स्टैण्डर्ड की सोच के लोग हैं या कहिये कि ग्लोबल स्टैण्डर्ड के हैं| 


जय यौधेय! - फूल मलिक



Tuesday, 31 December 2024

मुजफ्फरनगर जाट हाई स्कूल में चौ० छोटूराम का भाषण!

(जाट गजट, 29 जनवरी 1941, पृष्ठ 6) 


.... मैं आर्य समाजी हूं। समाज में मैंने भी एक बात देखी कि उसके कार्यकर्ताओं ने जाटों की लीडरी उनके हाथ में नहीं दी। उनकी चोटी अपने हाथ में रखी। हम अपने हाथ में अपनी लीडरी चाहते हैं। चाहे अपना खद्दर खुरदाद है तो भी हमें जापान के रेशम से अच्छा है। हमने कह दिया कि चाहे अपना लीडर विद्वान भी कम हो लेकिन जाटों की अगुवाई की डोर हम अपने हाथों में चाहते हैं। अगर हम पंजाब में इस पर अमल न करते तो 90 लाख 92 हजार जाटों की आबादी में उनकी शान को किस तरह से बढ़ाते। यही उनकी शान बढ़ाने का सबसे बड़ा कारण है कि हमने अपनी लीडरी की बागडोर दूसरों के हाथ में नहीं दी। जब हमारे पुराोहित और पढ़ाने वाले हमारे अपने होंगे उस समय हमारी उन्नति होगी, यही हमारी उन्नति का असली रहस्य है।


मुजफ्फरनगर जाट हाई स्कूल में चौ० छोटूराम का भाषण 

(जाट गजट, 29 जनवरी 1941, पृष्ठ 6) 


.... कांग्रेस का दावा केवल कागज पर है और हमारी पार्टी ने उस पर पंजाब में अमल करके दिखाया है। आप रावलपिंडी से मुजफ्फरगढ़ और गुड़गांव तक, जाकर देहात में पता करें तो आपको इसकी वास्तविकता मालूम हो जाएगी कि हम इस प्रोग्राम को सफल बनाने के लिए कहां तक क्या कर रहें हैं? हमारे यहां जमींदार और किसान के बीच अंतर नहीं है। आपके यहां अंतर है, हमारे यहां एक बिसवां का भी जमींदार है और बीघे का मालिक भी जमींदार है। आप हमारे यहां किसी भी जमींदार कौम के व्यक्ति से मालूम करेंगे तो वह अपने आपको जमींदार कहेगा, और अगर किसी के यहां ब्याज में भी जमीन आ गई है और वह जमींदार कौम से नहीं है तो वह अपने आपको गैर जमींदार कहेगा चाहे उसके पास जमीन लिखत में भी हो। पंजाब में दो करोड़ 35 लाख की आबादी में चालीस लाख लोग जमीन के मालिक हैं, जबकि यू.पी में साढ़े चार करोड़ की आबादी में बारह लाख लोग जमीन के मालिक हैं। पंजाब में जमींदार कौम वाले को जमींदार कहेंगे। हमारे जमींदार शब्द कौमों के लिहाज से प्रयोग होता है, इसलिए मैं यहां जमींदार शब्द का प्रयोग करूं तो आप वही अर्थ निकालें जो मैने बताए हैं।


”राजपूत गजट और इत्तेहाद पार्टी”, लेख से ... 
(चौ० छोटूराम, जाट गजट, 22 जुलाई 1936, पृ. 6) 

.... अब नया कानून लागू होने वाला है और प्रश्न उठता है कि जमींदार आजाद होना चाहते हैं या गुलाम ही रहना चाहते हैं। सत्ताधारी बनना चाहते हैं या यह चाहते हैं कि उन पर शासन किया जाए।
अगर जमींदार राज चाहते हैं तो उन्हें इत्तेहाद पार्टी के झंडे के नीचे जमा होना चाहिए। अगर वह राजनीतिक और आर्थिक गुलामी चाहते हैं तो उसका सबसे आसान तरीका हिंदू महासभा पार्टी में सम्मिलित होना है। अगर जमींदार हुकूमत चाहते हैं तो उनको इत्तेहाद पार्टी की फौज में सम्मिलित हो जाना चाहिए और अगर वह यह चाहते हैं कि उन पर हुकूमत की जाए तो उन्हें राजा नरेंद्रनाथ और मास्टर तारा सिंह की कमान में चला जाना चाहिए। 
जमींदारों की आजादी की लड़ाई जल्द ही आरंभ होने वाली है। राजपूत गजट इस लड़ाई में काफी सहायता दे सकता है।


Thursday, 26 December 2024

डॉक्टर मनमोहन सिंह की नीतियां व् भारतीय किसान व् कारीगर की बदहाली!

 कल तक जो किसानों के लिए लङ रहे थे वो भी मनमोहन सिंह की मृत्यु पर उनको नमन कर रहे हैं। यही होता है अधकचरी रिसर्च व् स्ट्रैटेजियों पर चलने वालों के साथ; कि अपने ही कातिल को कब सलाम कर जाएं, इनको आजीवन इसकी अक्ल नहीं आती। किसी आदमी का तुम्हारे समाज, कम्युनिटी पर क्या इमपेक्ट पङा उससे कोई मतलब नहीं ना उसको समझने-जानने की ललक या कूबत रखनी बनानी बरतनी होती? ऐसे मूर्ख आदमी मरते ही उसे शहीद का दर्जा दे कंधों पर उठा लेते हैं। जबकि मनमोहन सिंह का आर्थिक विकास गांवों खेतों के लिए तो सबसे काला अध्याय है, पढ़ें व् समझें नीचे कि क्यों व् कैसे:


पहला फैसला: IMF व World Bank के दबाव में इकोनॉमी का उदारीकरण: नतीजा यह रहा कि छोटे और मध्यम स्तर के किसान और उद्योग सस्ते आयात के कारण बाजार में टिक नहीं पाए। सरसों तेल की जगह सोयाबीन तेल का रिप्लेसमेंट हो या चाइना से आता सस्ता लहसुन या और कोई फसल सब इसी का परिणाम थे।


दूसरा फैसला: सो-काल्ड अर्थशास्त्री जी के आर्थिक सुधारों का मुख्य फोकस सेवा और उद्योग क्षेत्र पर रहा, लेकिन कृषि क्षेत्र (गांवों व देश की 70% जनसंख्या की इकोनॉमी) को तो एकदम साईड लाइन कर दिया ना ध्यान दिया। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के बजाय बाजार आधारित मॉडल पर जोर दिया गया। स्थानीय बीज कंपनियों और पारंपरिक कृषि तरीकों को नजरअंदाज किया गया, जिससे Monsanto और अन्य GM कंपनियों को बढ़ावा मिला। यूरिया और अन्य रासायनिक खादों को प्रोत्साहन दिया गया, जबकि गोबर खाद और जैविक कृषि को उतनी तवज्जो नहीं मिली। इससे मिट्टी की गुणवत्ता खराब हुई और लंबे समय में किसानों की लागत बढ़ गई।


तीसरा फैसला: मनमोहन सिंह के कार्यकाल में GM (Genetically Modified) बीज कंपनियों (Monsanto जैसी) को भारत में लाने का रास्ता साफ हुआ। किसानों पर GM बीजों और महंगे कीटनाशकों की निर्भरता बढ़ी, जिससे खेती की लागत बढ़ी और प्राकृतिक बीजों का इस्तेमाल घटा। नतीजा किसानों की आत्महत्या दर में इजाफा हुआ, खासकर कपास के किसानों में।


चौथा फैसला: FTA (Free Trade Agreements) और सस्ते आयात - मनमोहन सरकार ने कई देशों के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) पर हस्ताक्षर किए, जिससे विदेशी सस्ता गेहूं, दाल, और अन्य कृषि उत्पाद भारतीय बाजार में आए। भारतीय किसानों को अपनी फसल के उचित दाम नहीं मिल पाए, जिससे वे आर्थिक रूप से कमजोर हुए। स्थानीय उत्पादन घटा, और भारत कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भरता खोने लगा। और इन्हीं नीतियों को मोदी ने तो अडानी के लिए ऐसा इस्तेमाल किया कि किसान आंदोलन पे आंदोलन कर रहा है 2020 से परन्तु राहत अभी तक नसीब नहीं।


पांचवां फैसला: WTO (World Trade Organization) के दबाव में फैसला लिया, WTO के नियमों के तहत भारतीय किसानों पर सब्सिडी घटाई गई, जबकि अमेरिका और यूरोप अपने किसानों को सब्सिडी देते रहे। आज भी इंडिया के मुकाबले यूरोप में 634 गुणा व् USA में करीब 850 गुणा सब्सिडी मिलती है।भारतीय किसान बाजार में प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाए और कई फसलों का उत्पादन घाटे में चला गया।


छठा फैसला: MSP (Minimum Support Price) का असंतुलन - आज किसान सङकों पर MSP के लिए मारे फिर रहे हैं, तो इसका असल जिम्मेदार तो मोदी है परन्तु जड़ जा के जुड़ती है तो महमोहन सिंह के लिए तथाकथित उदारवादी फैसलों से। अपने दस साल के कार्यकाल में मामूली बढ़ोतरी कर जो असंतुलन किया था वो आज किसान के लिए सबसे बुरा साबित हो रहा है।


सातवां फैसला: मजदूरों और स्थानीय कारीगरों को खत्म किया, जिसको मोदी ने तो प्रलय-पार ही पहुंचा छोड़ा है, परन्तु जड़ें गड़ी मनमोहन सिंह के वक्त जब बड़े पैमाने पर आयातित सामान ने स्थानीय कारीगरों, बुनकरों और हस्तशिल्प को प्रभावित किया। 


आठवां फैसला: कृषि उत्पादों का निर्यात घटाना - WTO के दबाव में मनमोहन सरकार ने कई कृषि उत्पादों के निर्यात पर रोक लगाई। इससे भारतीय किसानों को वैश्विक बाजार में अपने उत्पादों को बेचने का मौका नहीं मिला।


हाँ, मनमोहन सिंह की आर्थिक नीतियों ने शहरी और उद्योग क्षेत्र को लाभ पहुंचाया क्योंकि यह बनी ही इनके उद्दार के लिए थी; लेकिन ग्रामीण भारत, किसान और स्थानीय कारीगरों के लिए ये सबसे नुकसानदेह साबित हुईं। कृषि क्षेत्र को नजरअंदाज करना और अडानी-अम्बानी कंपनियों का बढ़ता प्रभाव, ये ऐसे मुद्दे हैं, जिनकी वजह से आज भी किसान संघर्ष कर रहे हैं। मोदी ने मनमोहन ने 'आर्थिक उदारीकरण' के नाम पर जो खड़ा किया; उसको आधार बना; अब इसको ऐसा नासूर बना दिया है कि एक हरयाणा-पंजाब व् ऊपरी वेस्ट-यूपी के किसान ही लड़ने लायक बचे हैं बाकी भारत तो कब का हथियार डाल चुका खेती-किसानी के नाम के।

सिक्ख इतिहास प्रश्नोत्तरी!

1. दस गुरु साहिबानों के नाम तरतीब वार लिखें

गुरु नानक देव जी (1469-1539)

गुरु अंगद देव जी (1504-1552)

गुरु अमर दास जी (1479-1574)

गुरु राम दास जी (1534-1581)

गुरु अरजन देव जी (1563-1606)

गुरु हरगोबिंद जी (1595-1644)

गुरु हरिराय जी (1630-1661)

गुरु हरिकृष्ण जी (1656-1664)

गुरु तेगबहादुर जी (1621-1675)

गुरु गोबिंद सिंह जी (1666-1708)

2. उन दो साहिबजादों के नाम बताईये जिन्हें जिन्दा नीवों में चिनवा दिया गया था

बाबा फ़तेह सिंह जी

बाबा जोरावर सिंह जी

3. उन दो साहिबजादों के नाम बताईये जो चमकोर की लड़ाई में शहीद हुए थे

बाबा अजीत सिंह जी

बाबा जुझार सिंह जी

4. सिक्ख पंथ के पहले पांच प्यारों के नाम बताईये

भाई दया सिंह जी

भाई धरम सिंह जी

भाई हिम्मत सिंह जी

भाई मोहकम सिंह जी

भाई साहिब सिंह जी

5. सिक्ख धर्म के पांच ककारों के नाम बताईये

केस

कंघा

किरपान

कड़ा

कछिहरा

6. खालसे के धरम पिता कौन हैं

गुरु गोबिंद सिंह जी

7. खालसे की धरम माता कौन हैं

माता साहिब कौर जी

8. खालसा पंथ की नींव कहाँ रखी गयी थी

आनंदपुर साहिब

9. जब सिक्ख आपस में मिलते हैं तो क्या कह कर एक दुसरे को संबोधित करते हैं

वाहेगुरु जी का खालसा

वाहेगुरु जी की फ़तेह

10. जैकारा क्या है

बोले सो  निहाल

सति श्री अकाल

11. ‘सिक्ख’ शब्द से आप क्या समझते हैं

शिष्य (सीखने वाला)

12. पांच तख्तों के नाम बताईये

श्री अकाल तख़्त साहिब, अंमृतसर, पंजाब

श्री हरिमंदिर साहिब, पटना, बिहार (पटना साहिब)

श्री केसगढ़ साहिब, आनंदपुर, पंजाब (आनंदपुर साहिब)

श्री हजूर साहिब, नांदेड़, महाराष्ट्र

श्री दमदमा साहिब, तलवंडी साबो, बठिंडा, पंजाब  

13. गुरमुखी लिपि पड़ाना सबसे पहले किसने शुरू किया था

गुरु अंगद देव जी

14. ‘गुरु का लंगर’ की प्रथा सबसे पहले किस ने शुरू की थी

गुरु अमरदास जी

15. आदि श्री गुरु ग्रन्थ साहिब (पोथी साहिब) सबसे पहले किसने लिखी थी

गुरु अरजन देव जी

16. श्री हरिमंदिर साहिब अंमृतसर में श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी का प्रकाश सबसे पहले कब हुआ था

सन 1604 में

17. श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी के पहले ग्रंथी कौन थे

बाबा बुड्डा जी

18. श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी के कितने अंग (पन्ने) हैं

1430

19. श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी में कितने गुरुओं की बाणी दर्ज है

कुल 6 गुरुओं की : पहले पांच एवं नोवें गुरु जी की

20. किस गुरु को ‘शहीदों के सरताज’ भी कहा जाता है

गुरु अरजन देव जी

21. किस गुरु को ‘मीरी-पीरी के मालिक’ भी कहा जाता है

गुरु हरिगोबिंद जी

22. किस गुरु का सिर धड से अलग किया गया था

गुरु तेगबहादुर जी

23. किस गुरु को ‘हिन्द-दी-चादर’ भी कहा जाता है

गुरु तेगबहादुर जी

24. सिमरन कैसे होता है

सर्वशक्तिमान सर्वव्यापक अकालपुरख नूं याद करना

25. सिक्ख धरम में शादी को क्या कहते हैं

आनन्द कारज

26. गुरु नानक देव जी की यात्राओं को क्या कहा जाता है

उदासी

27. गुरु नानक देव जी के साथ रबाब कौन बजाता था

भाई मरदाना जी

28. उस गुरुद्वारे का नाम बताईये जहाँ वली कंधारी का अहंकार टुटा था

पंजा साहिब

29. गुरु नानक देव जी कहाँ एवं कब ज्योति ज्योत समाये थे

1539, करतार पुर

30. गुरु अंगद देव जी का पहला नाम क्या था

भाई लहणा जी

31. गुरु अमरदास जी ने गुरु अंगद देव जी की सेवा कितने समय तक की

12 वर्ष

32. उस नदी का नाम बताईये जहाँ से गुरु अमरदास जी रोज पैदल जा कर गुरु अंगद देव जी के लिए पानी भर के लाया करते थे

ब्यास नदी

33. ‘मसंद’ प्रचारक किसने शुरू किये थे

गुरु अमरदास जी

34. गुरु अरजन देव जी के पुत्र का नाम बताईये

हरगोबिंद जी

35. गुरु रामदास जी का पहला नाम क्या था

भाई जेठा जी

36. वहां कौन सा गुरुदवारा है जहाँ गुरु अरजन देव जी को शहीद किया गया था

डेरा साहिब

37. गुरु हरिगोबिंद जी को कैदी की तरह क्या रखा गया था

ग्वालियर का किला

38. गुरु हरिगोबिंद जी को जब रिहा किया गया तब उनके साथ उनका चोला पकड़ के और कितने राजाओं को रिहा किया गया था

52 राजा

39. गुरु हरगोबिंद जी ने दो तलवारें धारण की थी, उनके नाम बताओ

मीरी पीरी

40. अकाल तख़्त की स्थापना किसने की थी

गुरु हरिगोबिंद जी

41. गुरु हरिगोबिंद जी को जपुजी साहिब के पाठ का शुद्ध उच्चारण किसने सुनाया था

भाई गोपाला जी

42. बाबा बुड्डा जी ने कितने गुरुओं की सेवा की

6

43. ओरंगजेब को गुरबाणी गलत पढ़ कर सुनाने के लिये किसे सजा मिली थी

राम राय, गुरु हरि राय जी के पुत्र  

44. गुरु हरि कृष्ण जी की कितनी उम्र थी जब उनको गुरुगद्दी मिली थी

5 साल

45. मिर्जा राजा जय सिंह के बंगले पर अब कौन सा गुरुद्वारा है जहाँ गुरु हरि कृष्ण जी ठहरे थे जब वह दिल्ली आये थे

गुरुद्वारा बंगला साहिब

46. गुरु हरि कृष्ण जी की कितनी उम्र थी जब वह ज्योति ज्योत समाये थे

8 साल

47. जहाँ गुरु हरि कृष्ण जी का अंतिम संस्कार हुआ वहां अब कौन सा गुरुद्वारा है

गुरुद्वारा बाला साहिब

48. गुरु हरि कृष्ण जी के अंतिम शब्द क्या थे जब वह अगले गुरु जी के बारे में बता रहे थे

‘बाबा बकाले’ इसका मतलब है की अगले गुरु बकाला नाम के गावं में मिलेंगे

49. सोढ़ी परिवार के कितने लोग अपने आप को गुरु कहते हुए बकाला में मिले

22

50. बकाला में गुरु तेगबहादुर जी को ढूंड कर दुनिया के सामने लाने वाले व्यक्ति कौन थे

भाई मक्खन शाह लुबाना

51. गुरु तेगबहादुर जी की पत्नी का क्या नाम था

माता गुजरी जी

52. गुरु तेगबहादुर जी के साथ शहीद होने वाले तीन सिक्ख कौन थे

भाई मती दास जी

भाई सती दास जी

भाई दयाला जी

 

53. गुरु तेगबहादुर जी के साथ शहीद होने वाले तीन सिक्खों को कैसे शहीद किया गया था

भाई मती दास जी (आरी से काट के शहीद किया गया)

भाई सती दास जी (रुई में लपेट कर आग लगा दी गई)

भाई दयाला जी (गर्म पानी में उबाला गया)

54. किसके नेतृत्व में 500 कश्मीरी पंडित गुरु तेगबहादुर जी के पास मदद मांगने के लिये आये थे

पंडित कृपा राम (जो की बाद में गुरु गोबिंद सिंह जी के संस्कृत के गुरु भी बने एवं फिर खालसा सजे  एवं अंत में चमकोर की लड़ाई में शहीद हो गए)

55. गोबिंद राय (गुरु गोबिंद सिंह जी की उस वक्त कितनी उम्र थी)

9 साल

56. जहाँ गुरु तेगबहादुर जी को शहीद किया गया वहां कौन सा गुरुद्वारा है

गुरुद्वारा सीस गंज, चांदनी चौंक दिल्ली

57. गुरु तेगबहादुर जी के शरीर का संस्कार किसने किया

भाई लक्खी शाह वणजारा

58. जहाँ गुरु तेगबहादुर जी के शरीर का संस्कार हुआ वहां कौन सा गुरुद्वारा है

गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब, दिल्ली

59. गुरु तेगबहादुर जी के सीस को आनंदपुर साहिब कौन ले के गया था

भाई जैता जी (भाई जीवन सिंह जी)

60. वहां कौन सा गुरुद्वारा है जहाँ श्री गुरु तेगबहादुर जी के सीस का संस्कार हुआ था

गुरुद्वारा सीस गंज साहिब, आनंदपुर

61. पीर बुद्धू शाह जी के कितने पुत्र थे और भंगानी के युद्ध में कितने शहीद हुए थे

4 पुत्र, भंगानी के युद्ध में 2 शहीद हुए

62. भंगानी के युद्ध में पीर बुद्धू शाह जी की सेवाओं के बदले में गुरु गोबिंद सिंह जी ने उन्हें क्या उपहार दिये थे

कंघा (कुछ टूटे हुए बालों सहित), किरपान एवं दस्तार

63. आनंदपुर की लड़ाई में शराब पिला कर मस्त किये हुए हाथी के साथ कौन से सिक्ख ने युद्ध किया था

भाई बच्चितर सिंह

64. आनंदपुर की लड़ाई के दौरान गंभीर रूप से घायल सिपाहियों को कौन पानी पिलाता था (इस बात की परवाह किये बिना की वो सिक्ख हैं या मुस्लिम)

भाई कन्हैया जी

65. माता गुजरी जी और दो छोटे साहिबजादों की खबर सिरहंद के नवाब को किसने दी थी

गंगू ब्राह्मण

66. चमकोर की लड़ाई के बाद गुरु गोबिंद सिंह जी नंगे पैर कौन से जंगलों में रहे

माछीवाड़ा

67. उन दो पठानों के नाम बताईये जिन्होंने गुरु गोबिंद सिंह जी को मुगलों से बचाया था

नबी खान और गनी खान

68. मुक्तसर की लड़ाई में शहीद होने वाले चालीस मुक्तों का नेतृत्व किसने किया था

भाई महा सिंह

69. अंमृतसर शहर के पांच सरोवरों के नाम बताईये

अंमृतसर

कौलसर

संतोखसर

बिबेकसर

रामसर

70. गुरु गोबिंद सिंह जी ने माधो दास को अमृत पान के बाद क्या नाम दिया

बंदा सिंह

71. बंदा सिंह ने पंजाब छोड़ने से पहले सिक्खों को क्या दिया

निशान साहिब एवं नगाड़ा

72. गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ का पहला जत्थेदार किसे बनाया था

बंदा सिंह

73. मिसल के समूह को क्या कहते थे

दल खालसा

74. पहले दल खालसा की स्थापना किसने की थी

नवाब कपूर सिंह

75. उस सिक्ख सिपाही का नाम बताईये जिसे सुल्तान उल कौम का ख़िताब मिला

जस्सा सिंह आहलूवालिया

76. दिल्ली की उस जगह का क्या नाम है जहाँ सरदार बघेल सिंह अपने 30,000 साथियों के साथ ठहरे थे

तीस हजारी

77. शेरे-ए-पंजाब का ख़िताब किसे प्राप्त है

महाराजा रणजीत सिंह

78. सरदार हरी सिंह नलवा ने कौन से प्रसिद्ध गुरुद्वारा की स्थापना की

गुरुद्वारा पंजा साहिब

79. मोदीखाना साखी कौन से गुरु जी से सम्बंधित है

गुरु नानक देव जी

80. सुखमनी साहिब के रचेता कौन है

गुरु अरजन देव जी

81. होला मोहल्ला का त्यौहार कौन से गुरु जी ने शुरू किया था

गुरु गोबिंद सिंह जी

82. गुरु गोबिंद सिंह जी के कौन से सिक्ख ने भंगानी की लड़ाई में अपना साथ दिया और अपने दो पुत्र भी शहीद करवाए

पीर बुद्धू शाह

83. सिक्खों के कैलेन्डर का क्या नाम है

नानकशाही कैलेन्डर

84. नानकशाही कैलेन्डर सूर्य या चन्द्र किसकी गति के हिसाब से चलता है

सूर्य

85. नानकशाही कैलेन्डर का पहला वर्ष कौन सा है

1469 (जब गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ था)

86. भाई लालो जी के घर गुरु नानक देव जी ने किस का भिजवाया हुआ लंगर वापिस कर दिया था

मालिक भागो

87. गुरु नानक देव  जी और सिद्धों के बीच मुलाकात (सिद्ध गोस्ट) कहाँ पर हुआ था

कैलाश पर्वत (सुमेर पर्वत)

88. माता खीवी जी कौन थी

माता खीवी जी गुरु अंगद देव जी की पत्नी थी और वह सिक्ख इतिहास में केवल एक स्त्री हैं जिनका नाम गुरु ग्रन्थ साहिब जी में दर्ज है

89. अकाल तख़्त का क्या मतलब होता है

सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक, अकाल पुरख का सिंहासन

90. गुरु तेग बहादुर जी को गुरु नानक देव जी की याद में एक बड़ा टीला क्या स्थापित मिला

डुबरी, आसाम

91. किस मुग़ल बादशाह ने गुरु तेगबहादुर जी का सिर धड से अलग करने का हुक्म दिया था

औरंगजेब

92. गुरु गोबिंद सिंह जी को अपनी रक्षा के लिये पंज प्यारों ने किस किले को छोड़ने का आदेश दिया था

चमकोर का किला

93. सुखमनी साहिब में कितनी अष्टपदीयां हैं

24

94. ‘सिंह’ शब्द से आप क्या समझते हैं

शेर

95. कौर शब्द से आप क्या समझते हैं

राजकुमारी

96. गुरु नानक देव जी संगल दीप विच किसनू मिले सी

राजा शिव नाथ

97. गुरु अमरदास जी ने कौन सा शहर बसाया था, जहाँ वह गुरु बनने के बाद रुक गये थे

गोइंदवाल

98. गुरु अरजन देव जी की पत्नी का क्या नाम था

माता गंगा जी

99. श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी में गुरबाणी कितने रागों में लिखी गयी है

31

100. श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी में मूल मंत्र कितनी बार आया है

33

🙏🙏🙏🙏🙏🙏

Friday, 20 December 2024

चौधरी ओमप्रकाश चौटाला, वह शेर जिसने नरेंद्र मोदी को चलती गाडी से उतार दिया था!

फंडियों की अक्ल ठिकाने लगाने का वही टशन व् अणख थी चौधरी ओमप्रकाश चौटाला में जो सर छोटूराम में थी!


2013 में रोहिणी कोर्ट में पेशी पे नहीं जाने का ऑप्शन था चौधरी ओमप्रकाश चौटाला जी के पास| पर पता नहीं किसने सलाह दी कि आगे इलेक्शन हैं जेल चले जाओगे तो वोटों की सिम्पथी मिलेगी| कहाँ 'ग्रीन-ब्रिगेड' वाला दबंग, अपनी इसी दबंगई पर कायम रहते हुए उस दिन कोर्ट न जाते तो सजा नहीं होनी थी व् 2014 में इलेक्शन जीत के या तो एकल दम पे सीएम बनते या अलायन्स में भी बनते तो सबसे बड़ी पार्टी के रूप में खुद ही सीएम बनते|


खैर, बात करते हैं उनकी सर छोटूराम जैसी अणख व् टशन की| जहाँ ताऊ देवीलाल को हरयाणा में बीजेपी की एंट्री करवाने बारे दोषी माना जाता है, जो कि सच भी है; वहीँ चौधरी ओमप्रकाश चौटाला को उसी बीजेपी को ठिकाने लगाने के लिए जाना जाएगा| ऐसा करके उन्होंने बीजेपी से 1990 में उनके पिता ताऊ देवीलाल जी के साथ बीजेपी द्वारा किए गए धोखे का बदला लिया था साल 1999 से ले 2005 तक जब उनकी सरकार रही तब| 


ठिकाने भी लगाया दो तरीके से: एक तो 2000 में जब इनेलो ने बीजेपी के साथ अलायन्स में चुनाव लड़े तो 60-30 के फार्मूला पर चुनाव हुआ| चौटाला साहब ने जिन 30 सीट पर बीजेपी के कैंडिडेट थे, हर एक पर अपने डमी उतारे व् बीजेपी के 24 उम्मीदवारों को तो वहीँ इलेक्शन में ही धूल चटवाई| अभी बीजेपी जो सूत्र सबसे ज्यादा प्रयोग में ला के हरयाणा में तीसरी बार आई है, वह यही चौधरी ओमप्रकाश चौटाला से सीखा हुआ सूत्र था, डमी कहें या बागी उम्मीदवार खड़े करवाने का; जिसको कांग्रेस जानते-बूझते हुए भी अपनी आपसी कलह में फंसे होने के चलते टैकल ही नहीं कर पाई| और उसके बाद फिर जो रगड़ा एक-एक को पकड़ के वह अपने आप में इतिहास है; इसमें क्या रामबिलास शर्मा थे, क्या मनोहरलाल खट्टर व् क्या नरेंद्र मोदी; सबको ठिकाने लगाया हरयाणा में| नरेंद्र मोदी को तो दबड़का के चलती गाडी से ही नीचे उतार दिया था| 


और इनकी भाषण देने की अविरल कला, भाषण की शैली व् भाषण में विषय की तीव्रता के तो विपक्षी भी इतने कायल थे कि आज भी इनकी भाषण शैली को देश के टॉप 1 प्रतिशत नेताओं की श्रेणी में रखा जाता है| 2014 के इलेक्शन में आप से तीन बार मुलाकात हुई, तीनो मुलकातें आजीवन जेहन में रहेंगी!


मेरा मानना है कि राजनीति में एक बार आपको जो छवि बन जाए, आप उससे हट कर दूसरा कोई एक्सपेरिमेंट करने चलते हैं तो फिर गाडी पटरी पर इतनी आसानी से नहीं आती: भले 'ग्रीन-ब्रिगेड' वाली, 'दबंगई' वाली छवि झूठी थी या सच्ची थी; उसको त्याग सहानुभूति वाली राजनीति की परिपाटी चढ़ने के चक्र में उस दिन रोहिणी कोर्ट ना गए होते तो; आज उनकी राजनीति कुछ और ही बुलंदी छू रही होती व् हरयाणा की यह दशा ना होती; जिससे हरयाणा आज गुजार रखा है बीजेपी ने| 'ग्रीन-ब्रिगेड' वाली, 'दबंगई' इन दोनों छवियों से खुद की छेड़छाड़ या इसमें बदलाव करना अपने मूल रूप को बदलने जैसा था; बदलाव जरूरी होते हैं, परन्तु आप बीज की सरंचना ही छेड़ बैठोगे तो भटकन बनेगी ही बनेगी| 


आज उनके निधन की दुखद बेला पर प्रार्थना है कि दादे नगर खेड़े चौधरी ओमप्रकाश चौटाला जी को उनकी शरण में लेवें व् उनका यह टशन व् अणख रहती दुनिया तक याद की जाए!


जय यौधेय! - फूल मलिक



Friday, 13 December 2024

दानवीर सेठ चौधरी सर छाजूराम जी and Hissar Gurudwara

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।। श्री वाहेगुरु जी की फतह।।


दानवीर सेठ चौधरी सर छाजूराम जी अलखपुरिया!!!


3 अक्तूबर 1925 को हिसार में गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा  की नींव रखी गई थी। इसके निर्माण में हिसार शहर के कई सेठों व कई गांवों ने सेवा दी थीं। इनमें गांव मंगाली, जोकि हिसार जिले का एक बड़ा गांव है, की तरफ से भी सेवा दी गई। उस समय जितने भी भेंटकर्ता थे सबके नाम पत्थर पर लिखे हुए हैं। भेतकताओं में सबसे पहले जो नाम लिखा है वह देख कर मुझे बड़ी हैरानी हुई। वह नाम है चौधरी सर छाजूराम जी शेखपुरा हिसार। 


चौधरी छाजूराम जी लांबा, जिनकी पहचान अब अलखपुरा गांव से है, बहुत बड़े दानदाता थे। उस समय में ब्रिटिश इंडिया में उनके बराबर का कोई दानदाता नहीं हुआ। आजतक कोई भी शोधकर्ता उनके द्वारा दिए गए दान की सूची नहीं बना पाया है। मैने अबतक यह तो पढ़ा था कि चौधरी छाजूराम जी ने जाट शिक्षण संस्थाओं, आर्य समाज गुरुकुलों, डीएवी शिक्षण संस्थाओं, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय आदि संस्थाओं में आर्थिक सहायत दी थी। इनके इलावा उस जमाने के क्रांतिकारियों व नेताओं, जैसे कि गांधी जी, मदन मोहन मालवीय, पंडित नेकीराम शर्मा, पंडित श्रीराम शर्मा, चौधरी छोटूराम आदि, सबकी आर्थिक सहायता की तथा सरदार भगत सिंह तो फरारी के वक्त कलकत्ता में उनकी कोठी पर ही ठहरे थे। उसके दर पर जो भी गया कभी खाली हाथ नहीं लौटा, बल्कि जो वह सोचकर गया उससे दुगना ही लेकर लौटा।


मेरे लिए ये एक नई जानकारी है कि चौधरी छाजूराम जी ने सन् 1925 में हिसार गुरुद्वारा के निर्माण में 2250/· रु की भेंट दो थी, जोकि तब सर्वाधिक भेंट थी। आप अनुमान लगा सकते हैं कि तब इस राशि की कितनी वैल्यू रही होगी! 


–राकेश सिंह सांगवान




Tuesday, 3 December 2024

आज 2024-25 में कैसे किसान आंदोलन का साथ दिया जाए व् कैसे आंदोलन किया जाए?

अब जब केंद्र में बीजेपी एनडीए के रूप में तीसरी बार सत्ता में है, गुजरात-महाराष्ट्र-मध्यप्रदेश लैंडस्लाइडिंग मेजोरिटी से जीत चुकी है; हरयाणा बॉर्डर मेजोरिटी से आ गई है, राजस्थान में भी ठीक-ठाक बहुमत से है; यूपी उपचुनाव में 9 में से 7 सीट निकाल ली है तो किसान यूनियनों व् नेताओं को सबसे पहले यह समझना होगा कि जब 2020-21 वाले आंदोलन में पूरा SKM एक था तब ही जा के 13 महीने में यह माने थे; तो अब सुन लेंगे ये आपकी? और वह भी यूँ गुटों में बंट के आंदोलन करने से?


या तो पहले आपस में बैठ के अपनी आपसी ईगो-क्लेश-द्वेष, प्रत्यक्ष-hidden तमाम तरह के एजेंडा बतला के अपनी भड़ास निकाल के एक हो जाईए; अन्यथा घर बैठ जाइए| कम से कम पहले से ही गरीबी की मार खा रहे किसान के ट्रेक्टर-ट्रॉली तुड़वाने, तेल-पानी-राशन फुंकवाने, सड़कों पे सोना व् टेंशन में रहने से तो पिंड छूट जाएगा बेचारों का| हासिल कुछ है नहीं, ऐसे सालों-साल बिना आपसी एकता के 'अपनी-अपनी डफली, अपना-अपना राग' की तर्ज पर टुकड़ों में सड़कों पे बैठ के क्या गिनीज-बुक-ऑफ़-वर्ल्ड-रिकॉर्ड में विश्व के सबसे लम्बे धरने के तौर पर नाम दर्ज कराना चाहते हो? रहम करो किसानों पर व् हाथ मारो अपनी अक्ल को| 


और फिर भी अक्ल को हाथ नहीं मार रहे तो पक्का मानों, आप खुद या आपको जो बहका के वहां बैठाया है; वह बीजेपी-संघ के इशारे पर ही यह सब कर-करवा रहा है| और उसका उद्देश्य है आपके जरिए बड़े SKM समेत सभी किसानों को यह संदेश देना है कि कितने ही धरने कर लो, हम नहीं सुनने वाले; बल्कि तुम्हे धुल-धर्षित कर तुम्हारी औकात में ला देंगे; वही औकात जिससे किन्हीं जमानों सर छोटूराम जैसे निकाल गए थे| यानि इन टुकड़ों में इधर-उधर बैठ के, बिना सरजोड़ किए जो हो रहा है; यह आंदोलन नहीं कहा जा सकता; यह तो संघ व् बीजेपी के इशारे पे किसानों में अव्वल दर्जे की हताशा-निराशा भरना चल रहा है| 


सीधा सा सवाल है, अगर किसानों के लिए इतना दर्द है तो सभी यूनियनों के साथ बैठ के सरजोड़ क्यों नहीं करते? एक कदम पीछे रह के क्यों नहीं चलते; लीडरी चाहिए ही किसलिए? और नहीं तो सर छोटूराम से ही सीख ले लो; उस आदमी के बनाए कानूनों को बचाने, उस जैसे हक़-अधिकार के लिए सड़कों पे आए हो तो; उससे यह भी सीख लो कि वह कभी लीडरी में नहीं चला; एक कदम पीछे चला; कभी प्रीमियर नहीं बना; बल्कि रेवेन्यू मिनिस्टर रहा; कभी यूनियनिस्ट पार्टी का एक छत्र लीडर नहीं कहलवाया; बल्कि समूह बना के चला| बताओ कब वह यूनाइटेड पंजाब का प्रीमियर था, कब फ्रंट पे था वह; सेकंड-इन-लीड रहा व् तब भी वो सारे कानून बना गया, जो उसको बनाने थे| यह लीडरी का कीड़ा वक्त रहते छोड़ दो; क्योंकि काम करने की नियत रखते हो किसान के लिए तो वह तो सर छोटूराम की तरह एक कदम पीछे रहते हुए भी कर जाओगे; अन्यथा यूँ ही संदेह की दृष्टि से देखे जाओगे; यूँ ही किसान-कौम की ऊर्जा-संसाधन-इंसान खपवाओगे| 


EGO-ETHO-PATHO तीन चीजें होती हैं, जो एक सम्पूर्ण लीडर बनाती हैं| सिर्फ अकेले EGO पे सवार हो लीडरी चाहने वाले; इतिहास की कौनसी गर्द की सबसे निचली तह में जा के दफन होते हैं; योगदान के नाम पर उनको खुद इतिहास तक याद नहीं रखा करता| अकेले EGO पे चलने वाले को ही बीजेपी-संघ जैसे तुम्हारे विरोधी सबसे पहले आ के दोबच्ते हैं व् या तो दबा देते हैं या अपना प्यादा बना लेते हैं| ऐसे में याद रखे जाओगे तो सिर्फ EGO के सर चढ़ भटकन में टूरने वालों की तरह| EGO से हट के जैसे ही ETHO व् PATHO पर भी विचार के आओगे तो समझ आएगा कि सभी से सरजोड़ बिन राह कितनी दुष्कर है|  


जय यौधेय! - फूल मलिक

Monday, 2 December 2024

जिस कलानौर रियासत में कौला-पूजन होता था, उसमें ना तब ना आज एक भी जाट-बाहुल्य का गाम नहीं आता!

आज तक यही प्रचार होता रहा है कि कलानौर का नवाब जो भी नई नवेली हिंदू दुल्हन आती थी उसको अपने पति से पहले नवाब के पास जाना पड़ता था, जिसको कौला पूजना कहते थे| वहीं सो-कॉल्ड फंडियों के महिमामंडन में रजवाड़ों बारे यहां पर भी सभी बिरादरियों को अपने साथ बदनाम करने की कोशिश, जबकि सच्चाई यह है कि कलानौर के नवाब के नीचे एक भी जाट-बाहुल्य कहिए या जाट-खेड़े का गाम नहीं आता था, जो जो गांव आते थे नवाब के नीचे वो सभी राजपूत बाहुल्य गाम थे, जो कि आज भी हैं| 


आजादी से पहले, यहां कलानौर का नवाब मुस्लिम पंवार गौत्री रान्घड होता था और इसके नीचे लगभग 70 से 80 गांव थे जो सभी हिंदू-मुस्लिम राजपूतों-रांघड़ों के थे| आजादी के बाद बहुत सारे (40 के करीब) मुस्लिम राजपूतों के गांव पाकिस्तान चले गए थे, जो बचे वो फ़ैल के आज यहां पर तीस छोटे-बड़े गांव राजपूतों के पवार गोत्र के अभी भी हैं जिनके प्रधान ठाकुर रामेश्वर सिंह पवार हैं| कलानौर गोंद सावन तपा का और खरक कैलेगा के 28 से ज्यादा गांव के प्रधान ठाकुर महेंद्र सिंह पवार हैं| इनके गाँवों की लिस्ट नीचे देखें:


कलानोर तपा बोन्द सावड तपा पर्धान ठाकुर रामेश्वर सिंह पन्वार के नीचे आने वाले कलानोर के गाँव निम्लिखित हैं - बोन्द, छोटी बोन्द, रन्कोली, साजुर्वास, सावड, साक्रोड, रानिला, हिन्दोल, मान्हेरु, माल्पोश, निमडी, अचिना, मिर्च, कमोद, बडाला, कायला, लाम्बा, सोप, अजित्पुरा, छोटी चान्ग, मिश्रि, उण, कोल्हावास, नागल आदि| 


खरक केलन्गा तपा प्रधान ठाकुर महेंद्र सिंह पवार के नीचे आने वाले गांव निम्नलिखित है - खड़क, बड़ी, कैलेंडर, फुल पूरा, रेवाड़ी, बड़ी रेवाड़ी, छोटी सीसर ढाणी, हरसुख, खरक, छोटी नौरंगाबाद, कलानौर, काहनूर, लिंगाणा, लहाली, बनियानी, अव्वल अल्लाह, मसूदपुर, पटवा पूर्व, तैमूर पुर, सैंपल वगैरा|


जाटों का इन गाँवों से हो कर गुजरना जरूर होता था और उसी से किस्सा जुड़ा है कलानौर रियासत तोड़ने का| जब दादीराणी समाकौर का ढोला इस रियासत के रास्तों से होते हुए गुजरा था तो नवाब के सैनिक गलती से ढोला रोक बैठे व् फिर जो जाट खापों के किया वह आज "कलानौर रियासत ही तोड़ देने" के इतिहास के नाम से दर्ज है| 


जब ढोला रोका गया तो दादीराणी समाकौर ने विरोध किया व् वहां से निकल सीधी बाप से जा बोली कि, "थमनें जाटों के ब्याही सूं या किसी और के?" तो बाप ने बेशक निसंदेह यही कहा कि, "जाट के"| तो बोली, "कलनौरियाँ कौन हुआ फिर मेरा ढोला रुकवानिया?" और फिर मलिक खाप बैठी, फैसला हुआ सर्वखाप बुलाई जाए व् कलानौर को तोडा जाए| सर्वखाप हुई, मलिक-हुड्डा-बुधवार-सांगवान व् और भी बहुत खापों के चौधरी पहुंचे| इसमें मलिकों के भाणजे गाम बुटाना से दादावीर ढोला सांगवान भी पहुंचे| 


हर खाप ने अपने-अपने गाम के अखाडों से रातों-रात पहलवानी दस्ते बुलाए व् हो गई खाप-आर्मी खड़ी| जा टेकी कलानौर तले खाप की गढ़ी; जिसको आज के दिन "गढ़ी मुरादपुर टेकना" गाम के नाम से जाना जाता है; इसमें गढ़ी यानि खाप की बैरक लगी थी यहाँ, मुरादपुर यानि कलानौर को तोड़ने की मुराद पूरी हुई यहाँ व् टेकना यानी खाप आर्मी की टिकी थी यहाँ आ के| 


सभी बखूबी लड़े, परन्तु मलिकों के भानजे दादा ढोला का पराक्रम से अविरल हो के निखरा व् सबसे ज्यादा रांघड़ काटे| बताते हैं कि इसी बात पे जिद्द लगी कि किसने ज्यादा काटे व् इसी जिदा-जिद्दी में वो आपस में ठन गए व् आमने-सामने की या घात लगा के जैसे हुई; इसमें दादा ढोला वीरगति को प्राप्त हुए| अनजाने में हुई इस घटना इल्जाम आया मलिकों पे कि भानजा मरवा दिया, अपने ही बुलावे पे करे सफल युद्ध में| गठवाला खाप बैठी व् निर्धारित हुआ कि क्योंकि भानजे का शौर्य व् बलिदान सबसे बड़ा था तो इस जगह जहाँ विजय प्राप्त हुई, यहाँ सांगवान गौत का खेड़ा बसाया जाए व् गठवाले का इस खेड़े साथ भाईचारे का रिश्ता रहेगा; यानि ब्याह-वाणे नहीं होंगे| तब से "कलानौर रियासत विजय" की पताका के रूप में आज भी बसता है "गढ़ी मुरादपुर टेकना"| 


कलानौर विजय में कुछ और भी बातें हुई जैसे कलानौर का सिरमौर निशाँ व् तख्त आज भी हुड्डा सर्वखाप हेडक्वार्टर सांघी की परस में लगा हुआ है; जो कि निशानी स्वरूप हुड्डा ले गए थे| 


और दादीराणी समाकौर मलिक को धर्म बहन मानते हुए, आज भी गाम सुनारिया के बुधवार जाटों और मोखरा के मलिक जाटो के बीच शादियां नही होती। व् ऐसी ही और भी ऐतिहासिक रीतें, व् बुलंदियां "down fall of Kalanaur" से जुडी हुई हैं| 


अत: कौला पूजन ना जाटों में कभी हुआ और ना होने दिया| किसी ने चाहा तो इल्जाम-ए-कलानौर तसदीक हुआ|


ऐसा ही एक किस्सा पंजाब के फ़िरोज़पुर जिले की खाप का है; जब अकबर ने एक जाट की छोरी से ब्याह करना चाहा; प्रस्ताव भी भेजा परन्तु खाप ने इंकार कर दिया तो अकबर हमला करने को उतारू हुआ| परन्तु अकबर के सलाहकारों ने समझा दिया कि कहीं भी पंगा लेना परन्तु खाप से नहीं व् अकबर के काफिले को खाली हाथ खामोश लौट जाना पड़ा| 


मुस्लिमों में भी यह हिन्दू से मुस्लिम बने रांघड़ों में बताया जाता है, अन्यत्र मुस्लिम में नहीं| यह रांघड़ भी इसको हिन्दू में मिलने वाले "देवदासी" से ही ले गए बताये गए; यहीं इस बुराई की जड़ में भी फंडी सिस्टम ही है| क्योंकि "चोर चोरी से जा, हेराफेरी से नहीं" यानि आदतें वही, बस धर्म बदल लिया तो रूप बदल लिया|


जय यौधेय! - फूल मलिक