1960-1970 के दशक में रूस और अमेरिका में अंतरिक्ष में वर्चस्व को लेकर भयंकर जंग छिड़ी हुई थी कि - कौन चांद पर पहले अपना ' राकेट ' उतारेगा और अंतरिक्ष में अपना वर्चस्व स्थापित करेगा . उस वक्त भविष्य की संभावनाएं अंतरिक्ष में ढूंढी जा रही थी .
उस
वक्त भी भारत का आदमी तो दूसरों के ' राकेट ' में लदकर अंतरिक्ष में गया था . हम अपना खुद का कुछ नहीं कर पाए थे . अब जब दूसरे देशों ने मंगल ग्रह तथा दूसरे ग्रहों की यात्राएं शुरू कर दी हैं तो हम अब ' चांद-चांद ' खेल रहे हैं .
लेकिन
अब लड़ाई अंतरिक्ष की बजाए भविष्य की Technology को लेकर जमीन पर छिड़ गई है . अब इसमें अमेरिका को चुनौती देने के लिए रूस की बजाए चीन ने वो जगह ले ली है . दोनों देशों को अच्छी तरह से पता है कि - भविष्य की Technology ( Artificial Intelligence ) है और उस पर जिसका भी कब्जा होगा तो भविष्य में पूरी दुनिया में दबदबा भी उसी देश का होगा .
इस
भविष्य की लड़ाई में खुद को खुद ही ' विश्व गुरु ' का तमगा देने वाला भारत आज ' नां तीन में है और नां तेरह ' में है . हमने 2014 के बाद भविष्य की यात्राएं करनी छोड़ दी हैं . अब हमनें Reverse ' पीछे ' की यात्राएं करनी शुरू कर दी हैं . जो लोग, जो समाज और जो देश कुछ नहीं कर पाते, आप ध्यान देना - वो ' अध्यात्म ' के नाम पर भूतकाल की बातें और यात्राएं करना शुरू कर देते हैं . ऐसे देशों की युवा पीढ़ियों का भविष्य अंधकारमय होता है .
आज
अभी ' गूगल ' पर एक खबर पढ़ रहा था तो उसके अनुसार भारत की 62 Universities इलाहाबाद जाकर ' कुंभ ' मेले पर Research कर रही हैं . अब आप लोग अपनी आगे आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को लेकर सोच सकते हैं कि - वो क्या बनेंगी - ? आपको अपने बच्चों को भविष्य बचाना होगा .
उसके
लिए आपको कठोर निर्णय लेने पड़ेंगे . अगर आपके बच्चे 10+2 में पढ़ रहे हैं या पढ़ चुके हैं तो आप उन्हें आगे की पढ़ाई बाहर से करवाना चाहते हैं लेकिन पश्चिमी के देशों में पढ़ाई मंहगी होने के कारण आप उन्हें वहां नहीं भेज पा रहे हैं तो आप Technical पढ़ाई के लिए चीन की किसी भी बढ़िया Engeneering University का चुनाव कर सकते हैं . जहां तक मुझे पता है, युरोपीयन देशों और अमेरिका से चीन में Engeneering की अंग्रेजी में भी पढ़ाई करना बहुत ज्यादा सस्ता है .
दूसरे
अगर आप का बच्चा या आप चीनी भाषा ' मन्दारिन ' सीख लेते हैं तो फिर वहां पढ़ाई का खर्चा नाममात्र का है बल्कि उसको चीन की सरकार एक अच्छी-खासी Scholarship भी देती है . ये देश की लकीरें नेताओं ने अपने स्वार्थ के लिए खींच रखी है ताकि आम आदमी को बेवकूफ बना कर और उसका देश के नाम पर भावनात्मक शोषण करके उस पर निर्बाध रूप से राज किया जा सके . बीजेपी के हर नेता का बच्चा अपने सुखद भविष्य के लिए इंग्लैंड और अमेरिका की युनिवर्सिटीओं में पढ़ रहा है . क्योंकि इनके पास पैसों की कमी नहीं है . भारत के विदेश मंत्री के बेटे ने तो अमेरिकी नागरिकता तक ले रखी है .
तो
आपको भी यह अधिकार है कि - आप भी अगर अपने बच्चे को या खुद मंहगी होने के चलते इंग्लैंड और अमेरिका की युनिवर्सिटीओं में नहीं पढ़ या पढ़ा सकते तो कम से कम खर्चे में अपने पड़ोसी देश चीन में उन्हें भेजकर सस्ते में उन्हें उच्च शिक्षा तो दिलवा ही सकते हैं . आगे जमाना उच्च शिक्षा का है और वो भी Technology के क्षेत्र का है . इसलिए अपने अच्छे भविष्य के लिए हमें कोई भी निर्णय लेने में हिचकिचाहट नहीं दिखानी चाहिए .
नाहर सिंह
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