Friday, 25 September 2015

जाटों में कितनी समाई, समरसता और अपनापन है उसका उदहारण है "हरयाणा के शहीदी दिवस" की तारीख!


अभी विगत 23 सितम्बर को पूरे हरयाणा में हरयाणा का शहीदी दिवस मनाया गया। इस तारीख का हरयाणा के शेर रेवाड़ी के रणबांकुरे राव तुलाराम जी से सीधा-सीधा संबंध है। 23 सितम्बर 1863 को उन्होंने देशहित में अपना बलिदान दिया था।

अब बताता हूँ कि मैं इस तारीख का जिक्र इतने ख़ास तरीके से क्यों करना चाहता हूँ। वजह है दिन-भर-दिन हिन्दू अरोड़ा/खत्रियों द्वारा स्थानीय हरयाणवी समाज में जाट बनाम नॉन-जाट के जहर को आगे से आगे बढ़ावा देना। तो ऐसी ताकतों को बताना चाहूंगा कि यह जाटों की बाहुल्यता के साथ-साथ तमाम हरयाणवियों का हरयाणा है जिनके नाम पर तुम बाकी के नॉन-जाट के आगे जाट को सिर्फ विलेन बना के परोस रहे हो जबकि यहां जाट भी राव तुलाराम जी के ही दिन को सम्पूर्ण हरयाणा के शहीदी दिवस की तौर पर बड़े सहर्ष से मानते और मनाते हैं।

इसी धरती पर अंग्रेजों से संधि हेतु सफेद झंडे उठवा देने वाला राजा नहर सिंह (एक जाट) सा सिंह-सूरमा हुआ, इसी धरती पर अमर गौरक्षक हरफूल जाट जुलानी वाले हुए, इसी धरती पर कालजयी लजवाना कांड के पुरोधा दादावीर भूरा सिंह दलाल और निंघाईया सिंह दलाल हुए। इसी धरती पर सर्वप्रथम व् ममहममद गौरी के तुरंत बाद मुग़लों की गुलामी के विरोध की रणभेरी फूंकने वाले दादावीर जाटवान जी गठवाला महाराज हुए। इसी धरती पर चुगताई मुग़लों के छक्के छुड़ा देने वाली दादीराणी भागीरथी महारानी जाटणी हुई। इसी धरती पर कलानौर का कौल तोड़ने की प्रेरणा व अमरज्योति दादीराणी समकौर गठवाली हुई। इसी धरती पर तैमूर की छाती पे चढ़ उसकी छाती में भाला घोंपने वाले दादावीर हरवीर सिंह गुलिया जी हुए। इसी धरती पर हाँसी की लाल सड़क को अपने खून से लाल कर देने वाले रोहणात् के जाट योद्धा हुए। और ऐसे ही अनगिनत जाट व् अन्य समाजों के योद्धा हुए। और इसी धरती पर ब्राह्मण-सैनी-छिम्बी-खाति तक को बिना जातीय द्वेष के किसानी स्टेटस दिलवाने वाले सर छोटूराम हुए।

परन्तु फिर भी सब हरयाणवी जातियों और नश्लों का एक शहीदी दिवस राव तुलाराम जी के शहीदी दिवस के दिन मनाया जाता है। और हम तमाम जाटों को इस बात पर गर्व है।

विशेष: जाट योद्धाओं के नाम इसलिए गिनवाने पड़े कि इस जाट बनाम नॉन-जाट के जहर से जल रहे हरयाणा में कल को कहीं यह एंटी-जाट लोग कोई और नया सगुफा ना छेड़ देवें। अब वक्त आ गया है कि हर जाट इनकी अनगिनत गज लम्बी होती जा रही जुबान पे इंची-टेप और कैंची ले के बैठ जावें। इन्होनें तो वो नेवा कर रखा है कि "अगला शर्मांदा भीतर बढ़ गया और बेशर्म जाने मेरे से डर गया!"

जय यौद्धेय! - जय हरयाणा! जय हरयाणवी! - फूल मलिक

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