Wednesday 31 May 2023

त्रिमूर्ति की फिलोसॉफी से "पहलवान मसले" को समझा जाना चाहिए!

ब्रह्मा-विष्णु-महेश: तीनों का बौद्धिकता व् बुद्धि में 33.33% हिस्सा है| जब-जब यह हिस्सा इन तीनों में से एक ने भी अपनी तरफ ज्यादा खींचा या एक ने भी अपने हिस्से का योगदान छोड़ा तो समाज में अव्यवस्था बढ़ी व् आज भारत उसी दौर से गुजर रहा है कि बेटियां यौन उत्पीड़न के केसों में भी न्याय नहीं ले पा रही हैं| 


अब समाज का कौनसा तबका ब्रह्मा को रिप्रेजेंट करता है या उसके खाते का माना जाता है व् कौनसा विष्णु व् महेश का; यह समाज खुद जानता भी है व् तय भी कर सकता है| फ़िलहाल तो ऐसा लगता है कि समाज को चलाने की बुद्धि-विवेक का सारा ठेका एक या दो हिस्सों ने अपनी तरफ सरका लिया है व् तीसरे को नकार दिया है या तीसरा हिस्सा खुद ही इन्हीं को अपने हिस्से के भी बुद्धि के फैसले देने का जिम्मा छोड़ बैठा है| जब तक यह अव्यवस्था कायम रहेगी; यह कशमकस बनी रहेगी| जिस दिन तीसरे ने अपना हिस्सा व् जिम्मा ले के चीजें ठीक करनी शुरू की, चाहे वह तांडव करके करे या ताड़ना से; उसी दिन पहलवान मसला हल हो जाएगा| 


शिवजी वाले खाते में जो जाने गए, उनकी समस्या एक और हो रखी है कि वो शिवजी वाली बुद्धि से दूर हटे दीखते हैं व् चीरहरण पर भी खामोश रहने वाले हिस्से में जा बैठे हैं; 28 मई को बेटियों के साथ जंतर-मंतर पर जो हुआ वह चीरहरण ही तो था| अब अगर यह चीरहरण की कथाएं आपको एक्शन लेने की बजाए; चुपचाप रहने की भीरुता आप में भरती हैं तो बेहतर है कि इन चीरहरण की कथाओं को सुनना व् आदर्श ज्ञान व् शिक्षा मानना भी बंद ही कर दो|  


विशेष: मैं त्रिमूर्ति की थ्योरी को एक फिलॉसोफी की तरह यहाँ पेश कर रहा हूँ, इन चरित्रों से इस बात को रखना इसलिए लाजिमी है कि जो इन्हीं उदाहरणों से समझते व् चलते हैं; उनको बात समझ आये| उनको बता रखा होगा त्रिमूर्ति में से दो ने कि तुम ज्यादा उग्र हुए तो धर्म की हानि हो जाएगी, यह हो जायेगा वह हो जायेगा। तो धर्म की हानि इससे ज्यादा क्या होगी कि बेटियों के चीरहरण हो रहे हैं? धर्मयुद्ध तुम तभी तो कहते हो लड़ने की जब पाप बढ़े? तो यह पाप नहीं बढ़ा हुआ है तो और क्या है? इसके तो शिवजी को त्रिमूर्ति वाला उसका किरदार निभाने को उठ खड़ा होना चाहिए व् पंचायतों के जरिए एकजुट हो, सरकार को सख्त संदेश देना चाहिए| अन्यथा फिर क्यों अपने आपको शिवजी की औलाद तो कभी उसकी जटाओं से निकले कहते-कहलवाते हो? 


जय यौधेय! - फूल मलिक

Tuesday 30 May 2023

मैं "दादा नगर खेड़ों/भैयों/भूमियों व् सर्वखाप पुरख यौधेयों/यौधेयाओं को साक्षी-हाजिर-नाजिर मान कर आज 30 मई 2023 को निम्नलिखित 7 आजीवन व्रत धारण करता हूँ!

भूमिका: मैंने मेरे अगले इंडिया दौरे पर मेरे गाम के "दादा नगर खेड़े बड़े बीर" पर उसको साक्षी करके जो खुद को "खाप-खेड़ा-खेत किनशिप (असल-नश्ल-फसल)" के नाम दान करने का कार्यक्रम बना रखा था; आज 30 मई 2023 को ही उसकी अनौपचारिक घोषणा करता हूँ; औपचारिक घोषणा जब भी इंडिया का अगला दौरा होगा तब करूंगा|
घोषणा की वजह: "खाप-खेड़ा-खेत" के दर्शनशास्त्र, मनोविज्ञान व् कल्चर में "बेटी का सम्मान" ऐसा सम्मान है जिस पर सिवाए न्याय के दूसरी कोई चीज कभी खाप-खेड़ा-खेत किनशिप के इतिहास, दर्शनशास्त्र व् मनोविज्ञान में देखने को नहीं मिलती| इस कल्चर-किनशिप में पलते-बड़े होते हुए तो यह चीज देखी ही, साथ ही इस किनशिप का इतिहास भी इन्हीं तथ्यों की गवाही देता है| न्याय की जब बात आती है तो बेटियों का मुद्दा ऐसा रहा है कि अगर खापों को इसके लिए रियासतों की रियासतें, राजाओं के राज भी धूलधरसित करने पड़े तो किए गए| चोरी, डकैती, पैसे के लेनदेन, जमीन-जायदाद जैसे तमाम झगड़े-मसले एक तरफ व् बहु-बेटी के सम्मान की नाजुकता व् गंभीरता एक तरफ| चोरी-डकैती-जमीन-जायदाद में खापों ने बेशक 2-4 ऊपर नीचे करके फैसले करवा दिए हों परन्तु "बेटियों के सम्मान" पर सिवाए न्याय के कभी कोई फैसला करके नहीं उठी| और आज 30 मई 2023 को इसी कल्चर-किनशिप से आने वाली पहलवान बेटियां, किस तरह से अमेरिका के महान बॉक्सर मोहम्मद अली (कैसियस क्ले) की भांति मेडल्स नदी में बहाने तक की नौबत तक आ पहुंची; यही वह नाजुक वक्त है जब हमने अगर हमारी पुरख किनशिप की वर्तमान अवस्था में आई खामियों पर विचार कर इनको दुरुस्त करने हेतु कोई कदम नहीं उठाए तो यह चीजें उस भयावह रूप तक जा सकती हैं कि जिसका रास्ता आगे खापलैंड पर देवदासी प्रथा, सति प्रथा, प्रथमव्या व्रजसला नाबालिगा का शुद्धिकरण के नाम पर गैंगरेप और विधवा आश्रमों की झड़ी लगने के दौर में प्रवेश कर जाएगा| और इन चीजों का खापलैंड पर ऐतिहासिक तौर पर नहीं होना हमारी किनशिप का सबसे बड़ा मानवीय-सभ्य हासिल रहा है| यह हासिल अगली पीढ़ियों तक ज्यों-का-त्यों पहुंचे उसके लिए अब "हद होने तक" वाला वक्त आ पहुंचा है, व् इसमें मैं आज घोषित तौर पर खुद को अर्पित करता हूँ|
घोषणा: मैं "दादा नगर खेड़ों/भैयों/भूमियों (जो गाम गेल गाम के प्रथम पुरखों द्वारा गाम की स्थापना के वक्त गाम की फिरनी में किसी मूर्ती रहित, प्रतिनिधि रहित, 100% औरत की धोक-ज्योत की अगुवाई में स्थापित किया होता है) व् सर्वखाप पुरख यौधेयों/यौधेयाओं को साक्षी-हाजिर-नाजिर मान कर मेरी पुरख किनशिप "खाप-खेड़ा-खेत" के संवर्धन हेतु निम्नलिखित आजीवन व्रत धारता हूँ:
1) मैं, खाप-खेड़ा-खेत किनशिप के शुद्धतम रूप को अनवरत-आजीवन सिंचित-स्थापित-प्रोत्साहित-प्रचारित रखूंगा|
2) मैं, कभी भी मेरी किनशिप से बाहर-भीतर ऐसे व्यक्ति/समूह को कोई दान-दप्पा नहीं दूंगा जो उस दान से मेरी ही जड़ें खोदने के कार्यों के लिए जाना गया है या ऐसा होने का मुझे लेशमात्र भी अंदेशा है या उस दान से उसको मुझपर ही 35 बनाम 1 तरह के षड्यंत्र रचने का संबल अर्जित होता हो या मुझसे दान लेने हेतु मुझे कोई भय-लालच-द्वेष-क्लेश-कर्तव्य आदि दिखाता-करता है| मैं, मेरे निहित अथवा अर्जित दान-दप्पे लायक पैसे को मेरी किनशिप के कार्यों में मेरी देखरेख में लगाने-लगवाने की व्यक्तिगत जिम्मेदारी वहन करता हूँ|
3) मैं, चार प्रकार की राजनीतियों यानि धर्म-राजनीति, सत्ता राजनीति, सामाजिक राजनीति व् आर्थिक राजनीति में इनके भीतरी-बाहरी सब पहलुओं पर मेरी किनशिप की सम्मानजनक भागीदारी व् उपस्तिथि जहाँ नहीं होगी, वहां सहमति-सहयोग नहीं दूंगा|
4) जिस प्रकार अच्छी फसल हेतु आवारा जानवरों से उसकी बाड़ जरूरी होती है, ठीक उसी प्रकार अपने असल (पुरख दर्शनशास्त्र व् मनोविज्ञान) व् नश्ल की भी दो पैरों रुपी आवारा जानवर यानि किसी भी जनसमूह में पाए जाने वाले फंडी-फलहरी से बाड़ करनी होती है| बिना किसी से राग-द्वेष-क्लेश पाले दूसरों से इसका आदर-सम्मान अथवा स्पष्टता स्थापित करते/करवाते हुए मैं इसकी सुनिश्चितता हेतु अनवरत कार्य करूँगा, व् इसको आगे बढ़ाऊंगा|
5) मैं किसी भी प्रकार के जातिवाद, वर्णवाद, धर्मवाद, नश्लवाद की अंधता से खुद को दूर रखूंगा व् इन सबसे ऊपर जरूरी मानवता को रखूँगा; परन्तु साथ ही मानवता के नाम पर अपनी किनशिप का गला घोंटने-घुंटवाने की अवस्था आने से पहले ही उसको नहीं आने देने के सर्व इंतजाम एक दूरदर्शी की भांति करके रखूँगा| मैं, नश्लीय गौरव व् आध्यात्मिक गौरव को व्यक्तिगत रखते हुए कभी भी इनको नफरत-हेय-तुलना आदि की वजह नहीं बनने दूंगा|
6) मैं मेरी किनशिप से एंटी अथवा अनजान व्यक्ति/समूह से प्रोफेशनल रिश्ते तक सिमित रहूँगा; दूसरों के कल्चर-किनशिप का हर वैधानिक मान-सम्मान करते हुए, मेरी किनशिप-कल्चर को अपने चित में हमेशा सर्वोपरि रखूंगा| अनजान या एंटी लोगों के बीच चित में सर्वोपरि व् अपनी किनशिप के लोगों के बीच अपनी किनशिप का अनवरत प्रचारक रहूँगा|
7) मैं मेरी किनशिप के बुद्धिवान-विवेकवान व् बुद्धिविहीन-विवेकहीन दोनों का बराबरी से सम्मान करूँगा व् दोनों को मानवीय पहलुओं समेत मेरी किनशिप में परिभाषित हर अपनापन बराबरी से दूंगा| व् मैं इस बात की क्रियान्विनयता मेरी किनशिप के ग्रामीण-शहरी-NRI हर स्तर पर बराबरी से करूंगा, उनकी अमीरी-गरीबी-हैसियत आदि पर समरूप रहते हुए करूँगा| व् यह सिद्धांत, इसी बराबरी से हर उस व्यक्ति/समूह के प्रति रखूंगा जो मेरी किनशिप से बाहर का भी होगा परन्तु मेरी किनशिप का आदर करने वाला व् उसको बराबर की अहमियत देने वाला होगा|
मुझे ऊपरलिखित बिंदुओं पर अपनी किनशिप की बाड़ करने/रखने तक सिमित रहना है व् इसके क्रियान्वयन हेतु मैं किसी भी प्रकार के राग-द्वेष-क्लेश-हेय आदि से दूर रहूँगा|
फ़िलहाल यही अनौपचारिक घोषणाएं करके, इन व्रतों को खुद पर धारण कर रहा हूँ| हो सकता है जिस दिन इनकी औपचारिक घोषणा करूँगा उस दिन इनमें और भी बिंदु शामिल हों|
उद्घोषणा: इस ऊपर लिखित व्रत-धारण पर नकारात्मक-सकारात्मक दोनों तरह की बातें सुनने को मिल सकती हैं| पॉजिटिव क्रिटिसिज्म का स्वागत रहेगा; नेगेटिव क्रिटिसिज्म करने वाले डेड-स्याणे यह सोच के तो क्रिटिसिज्म करें नहीं कि वह किसी के भी दिमाग की दही कर सकते हैं| ऐसे "दिमाग की दही करने वालों के दिमाग का यहाँ तसल्लीबख्श गोबर किया जाता है"| दही तो कोई खा ले, उसकी लस्सी बना ले, घी बना ले परन्तु गोबर का क्या करोगे जो ना खाने का ना बगाने का| और जिसको हो शौक अपने दिमाग का गोबर करवाने का, वह कर ले इस पोस्ट का नेगेटिव क्रिटिसिज्म; जो ना ऐसा महसूस हो तो कि कित भींत म्ह टक्कर मारुं सूं|
जय यौधेय! - फूल मलिक

Sunday 14 May 2023

कर्नाटक में जैसे लंगायत समुदाय है वैसे ही हरयाणा में आर्यसमाज समुदाय है!

 कर्नाटक में लिंगायत ठीक वैसे ही मठ-स्कूल चलाते हैं जैसे हरयाणा में आर्य समाजियों द्वारा मठ, गुरुकुल, डीएवी सीरीज चलित हैं| 


कर्नाटक का लिंगायत समुदाय 1990 के बाद वापिस कांग्रेस को लौटा है; वजह जानते हैं? 


वजह है वहां पिछले 5 साल में, बीजेपी ने सभी लिंगायत मठ-स्कूल-संस्थाओं में एक तो बीजेपी-आरएसएस के कारिंदे घुसा दिए थे व् दूसरा इन संस्थाओं को कोई भी सरकारी फंड देने से पहले उस फंड से 30% राशि की कटौती की जाती थी| इससे लिंगायत ख़ासा नाराज हुए बीजेपी से व् नतीजा आपके सामने है| 


अब हरयाणा में भी यही हुआ है, पिछले ही महीनों में यहाँ भी आर्य-समाज के पुराने कटटर वोटर्स के वोट काट के संघी समर्थित लोग आर्य समाज की तमाम संस्थाओं में घुसा दिए हैं| पिछले कई सालों से इन संस्थाओं के चुनाव नहीं होने दिए हैं व् एडमिनिस्ट्रेशन के जरिये इनके तमाम संसाधनों की लूट मचा रखी है| बाकी तो जो वजहें हैं सो हैं ही जैसे कि किसान-मजदूरों-व्यापारियों की; परन्तु आशा है कि स्थानीय लोगों के दान-जमीन से बने यह मठ-शिक्षण संस्थानों पर कब्जा व् इनसे धन उगाही की संघियों की इस गुंडई पर अब हरयाणा भी लगाम लगाएगा| 


जय यौधेय! - फूल मलिक  

Saturday 13 May 2023

खाप-खेड़ा-खेत एक जातिविहीन व् वर्णविहीन ही नहीं धर्मविहीन सिस्टम है!

मैं यह बात अक्सर कहता आया हूँ; आज इसका लाइव-प्रमाण भी देख लीजिये| कल बवाना में जंतर-मंतर पर धरना दे रहे पहलवानों के लिए खाप पंचायत हुई थी जिसमें कि चौधरी मोहम्मद आरिफ, गाम हौजराणी दिल्ली प्रधान लाडो-सराय खाप तपा ने भाग लिया; देखें सलंगित वीडियो में उनका इंटरव्यू| ऐसे ही गुड़गाम्मा-मेवात में भी कई मुस्लिम खाप व् तपें हैं| 


और यही कांसेप्ट दादा नगर खेड़ों/भैयों/भूमियों का है; जिनको सिर्फ एक जाति ही नहीं अपितु तमाम वर्णों समेत गाम में बसने वाले तमाम धर्म के लोग एकमुश्त एकराय से धोकते आए हैं| 


विशेष: फंडी, इस जाति-वर्ण-धर्म रहित सिस्टम पर अपना कब्जा जमाने को इसको विभिन्न पोथियों से जोड़ते पाए जाते हैं| इनका काम ही यह है| अब ताजा उदाहरण देख लो, आर्य-समाज संस्थाओं पर कब्जा करने का| कुछ हफ्ते पहले ही आर्य-समाज की पुराने वोटर्स को लिस्ट से हटा के; फंडियों ने अपने भर दिए हैं व् कब्ज़ा करके बैठ गए हैं| उम्मीद है कि जल्द ही यह सरकार बदलेगी व् पुराने व् कटटर आर्यसमाजी इन फंडियों को आर्य समाज के गुरुकुलों-मठों-गौशालाओं से निकाल बाहर करेंगे| 


जय यौधेय! - फूल मलिक 


वीडियो सोर्स: https://www.youtube.com/watch?v=_mqkcg8b5hY

हरफूल जाट जुलानी वाले का एक किस्सा, जो सामाजिक भाई- चारे की अदभुत मिसाल है:

 दो तीन दिन पहले मैं गांव गया तो, ताऊ जी ने, हरफूल जाट जुलानी वाले का एक किस्सा सुनाया, जो सामाजिक भाई- चारे की अदभुत मिसाल है।

हुआ यूं की, हरफूल जाट एक अहीरों के गांव से हो कर गुजर रहे थे की, उन्होंने देखा की गांव के बहुत सारे लड़कों के सिर पर पट्टी बंधी हुई थी।
हरफूल ने घोड़ी रोक कर, गली में जा रही एक बुजुर्ग महिला से पूछा की, क्या मामला है। बुजुर्ग महिला ने बताया की, गांव के खेतों में एक डेरा रुका हुआ है, जिसमें बहुत सारी महिला और पुरुषों के साथ-साथ पशु भी है।
ये लोग कई दिन से खेत उजाड़ रहे हैं। मानते नहीं है, इसलिए लड़ाई हो गई।
गांव के सभी लोग इकट्ठे हो कर गए, तो उन पर कुत्ते छोड़ दिए और लाठियां बरसाई। ऐसा वो कई बार चुके है, और कोई रास्ता दिखाई नहीं देता।
हरफूल बोले: मेरे कहने से एक बार फिर कोशिश करो, अबकी बार मैं तुम्हारा साथ दूंगा।
पंचायत बुला कर, पूरी ताकत के साथ दोबारा जाने का फैंसला किया। हरफूल अपनी बंदूक को लेकर साथ- साथ हो लिए।
जैसे ही डेरा वालों ने उन यादव लोगों पर हमला किया, तो हरफूल ने एक दम से आगे बढ़ कर, उनके कुत्तों को मार दिया, और डेरा प्रमुख की भी हत्या कर दी।
महिला ने हरफूल को धर्म का बेटा बना लिया।
कहते हैं की, हरफूल पर जब पहला केस दर्ज हुआ तो, उसकी सगाई हो चुकी थी। उसके बाद हरफूल अपनी होने वाली पत्नी को उस अहीर महिला के घर लाया। वहां उससे गुपचुप शादी की, और हरफूल, अपनी पत्नी के साथ उस महिला के पास ही रहने लगे। अहीर बाहुल्य गांव वालों ने इस बात को हमेशा के लिए राज ही रखा।
Dr Mahipal Gill
Jat कॉलेज रोहतक

Thursday 11 May 2023

पहलवान सुशील कुमार व् पहलवान नर सिंह यादव मसले पर एक खाप-पंचायत बुलाई जानी चाहिए!

क्योंकि कोर्ट तो इस देश में सिर्फ फैसले सुनाते हैं, वह न्याय नहीं करते व् ना न्याय के बाद दोनों पक्षों के आपस में दिल-साफ़ करके उनको गले लगवाते| जबकि खाप-पंचायत की परम्परा ही यह है कि वह न्याय करके, दोनों पक्षों को गले भी लगवाती है| 


होनी चाहिए, एक पंचायत इस मसले पर ताकि घिनौनी राजनीती द्वारा इस मसले के चलते जाट व् यादव समुदायों में डाली खाई पाटी जा सके| 


दोनों तरफ के 'रियो ओलिंपिक घटना' के पूरे सबूत दोनों साइड्स ले के आवें व् पंचायत बैठ के दोनों को देखे| मेरा मानना है कि दोनों एक-दूसरे के प्रति साफ़ निकलेंगे व् दोषी मिलेगा बृजभूषण जैसा कोई षड्यंत्रकारी| क्योंकि वाडा की ड्रग्स वाली रिपोर्ट में यह साफ़ निकल के आया हुआ है कि नर सिंह "डोपिंग टेस्ट" में "खाने में मिला के दी गई" दवाई के चलते फ़ैल नहीं हुआ अपितु इंजेक्शंस से लम्बे वक्त तक ली जाने वाली ड्रग के चलते फ़ैल हुआ| 


यह करना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि दोनों कम्युनिटी एक ही कल्चर-किनशिप से निकलती हैं| 


जय यौधेय! - फूल मलिक 

Thursday 4 May 2023

बेबे गीता-बबीता के नाम संदेश!

आएं बेबे गीता, बागेश्वर धाम सरकार की पोस्ट में बस इतना-ए-जादू था ए, अक तू म्हारी लाडो अपने फील्ड यानि कुश्ती स्पोर्ट्स की शंकराचार्य अर तू आज जंतरमंतर पर भी ना जाण दी; बावजूद तू खुद एक पुलिस अधिकारी होने के, ए?


आएं बेबे बबीता, आएं तेरै वैं तब्लीगी-जमात आळयां नैं कोसदी होई की पोस्ट भी कीमें काम ना कर री ए आपणी पहलवान बाहण-भाई-बैणोंईयां ताहिं न्याय दुवाण म्ह ए बेबे? जिंदगी का सिद्धांत तो थम (हरयाणवी में 'थम' सिंगल 'तू' व् सिंगल के लिए आदर स्वरूप 'आप' दोनों के लिए प्रयोग होता है; आड़े 'आप' आळा थम सै बेबे) उसे दिन भटक गई थी बेबे, जय्ब "दंगल" बरगी मूवी बणा थमनें वर्ल्ड-फेमस करणीए की जमात बाबत उल्ट-सुलट लिखी| 


पर गलती आपणे समाज की भी सै उरै; जो हर पहलवान को अपनी "खाप-खेड़े-खेत की किनशिप" ट्रांसफर करने का कोई रिवाज ना बना राख्या; नहीं तो थम भी कित इन सर छोटूराम की टर्म आळे फंडियां के हाथां न्यू खिलौना बनती ए!


याहे कहाणी आदरणीय गवर्नर सत्यपाल मलिक जी गेल बनी; बावजूद इन फंडियों को अपनी जिंदगी के 25 साल देने के| पर मलिक साहब तो इब उस राह पै आ लिए सें अक सुणां सां के इहसा काम बांधण लाग रे सें अक फंडी रोवेंगे उनका अपमान करण के पल नैं| अर खाप-खेड़े-खेत का सर्वसमाज उनकी गेल सै; अर गेल तो थारै भी सां बेबे| 


हालाँकि ये हैके टळ सकें थे या थम इन्नें ज्वाइन ना करदी तो होंदे ए ना; पर फेर भी थारे पै इस ऊपर लिखे मलाल की गेल गर्व घणा से बेबे| गर्व न्यू सै अक थम बख्त रहते इन्नें समझ गई सो; अर जंतर-मंतर पर धरणा देणे आळे आपणे पहलवानां गेल गीता बेबे थम तो घाट-तैं-घाट लीक्ड कैं चाली| बबीता भी देखो वारी-सवेरी लिकड़ आवै तो इनमें तैं| 


बाकी बेबे, म्हारे बरगयां कै दर्द तो भोत सै, पर हम भी लाग रे सां काम पै; इन सारी समस्याओं की जड़ म्हारी किनशिप नैं खड्या करने पै| 


जुग-जुग जियो म्हारी भाण!


जय यौधेय! - फूल मलिक 

Tuesday 2 May 2023

जंतर-मंतर पर पहलवान बनाम बृजभूषण जो धरना है; इसका आइडियोलॉजीकल, फिलोसॉफीकल अंतर क्या है?

 1 - यह सामंती वर्णवाद बनाम उदारवादी खापवाद की लड़ाई है| 

2 - यह स्वर्ण-शूद्र बनाम सीरी-साझी कल्चर की लड़ाई है| 

3 - यह अधिनायकवाद बनाम लोकतान्त्रिक-गणतांत्रिक खेड़ावाद है|

4 - यह अनैतिक पूंजीवाद बनाम नैतिक पूंजीवाद है| 

5 - यह orthodox बनाम protestant मसला है|

6 - यह मूर्तिपूजक बनाम निराकार पुरखपूजक लड़ाई है| 

7 - यह बहमवाद बनाम यथार्थवाद लड़ाई है| 


निचोड़ यह है कि यह जितने भी "खाप-खेड़ा-खेत" थ्योरी से आने वाले लोग, इन सामंतियों वर्णवादियों के कल्चरल-स्पिरिचुअल स्तर पर भी गलबहियां हुए पड़े हैं; यह अपना इंटेल्लेक्ट ही नहीं पहचानते| प्रोफेशनल-पावर पोलिटिकल फ्रंट पे इनसे मिलके काम करना, अलायन्स करना समझ आता है; परन्तु जब तक अपने कल्चरल-स्पिरिचुअल फ्रंट को समझ के इसपे अपना स्वछंद स्टैंड नहीं रखेंगे; यूँ ही इनके जवान-किसान-पहलवान-मजदूर-कर्मचारी-व्यापारी सब परेशान रहेगा| 


जय यौधेय! - फूल मलिक