भूल हुई जो पश्चाताप की, वो शब्द सुनाये देते हैं।
जिनका नहीं कसूर, उन्हें क्यों लोग बुराई देते हैं।।
उस पंचवटी पे लक्ष्मण ने सरुपण की नाक उड़ाई क्यों ॥
रावण पै दिया दोष लगा, कि राम की सिया चुरायी क्यों॥...
भई बहन की इज्जत लूटे किसी की, वो कर ले सहन बुराई क्यों।
न्याय और अन्याय विचारो, ली राम ने मोल लडाई क्यों ॥
कुकर्म करने वालों को भी लोग भलाई देते है।
जिनका नहीं कसूर, उन्हें क्यों लोग बुराई देते हैं।
दुर्योधन को द्रोपदी जो, अन्धे का अँधा ना कहती|
केस खींचे, लगी लात गात में, सर पे रंदा ना सहती||
जेठ के आगे बहु की आँखें, क्या शर्मिंदा ना रहती।
रच दिया महाभारत बोलों ने, यूँ खून की नदियां ना बहती ।
उन जुआ खेलने वालों को भी धर्म-दुहाई देते हैं|
जिनका नहीं कसूर, उन्हें क्यों लोग बुराई देते हैं।
शक्ितसिंह जा मिला अकबर से, ये बातें चुपचाप की थी ।
मानसिंह भी मिलने आया, ये तो घडियां मित्र-मिलाप थी||
घर आये का किया निरादर, भूल अपने आप की थी।
सर में दर्द बताया गलती यो महाराणा प्रताप की थी||
जख्म के ऊपर फोवे जहर के नहीं दिखाई देते हैं।
जिनका नहीं कसूर, उन्हें क्यों लोग बुराई देते हैं।
पृथ्वीराज संयोगिता (उसकी भतीजी) को, जो जबरन जा उठाता ना।
सपने में भी सलाऊदीन को, जयचन्द यहाँ बुलाता ना|
होकर के पथभ्रष्ट कमठ गुरु, अपना दरस गिराता ना।
गजनी का सुल्तान यहाँ से, बच के जिन्दा जाता ना।
ऋषि विचारक चाल ऐसी घर लुटे लुटाई देते है।
जिनका नहीं कसूर, उन्हें क्यों लोग बुराई देते हैं।
भूल हुई जो पश्चाताप की, वो शब्द सुनाये देते हैं।
जिनका नहीं कसूर, उन्हें क्यों लोग बुराई देते हैं।।
जिनका नहीं कसूर, उन्हें क्यों लोग बुराई देते हैं।।
उस पंचवटी पे लक्ष्मण ने सरुपण की नाक उड़ाई क्यों ॥
रावण पै दिया दोष लगा, कि राम की सिया चुरायी क्यों॥...
भई बहन की इज्जत लूटे किसी की, वो कर ले सहन बुराई क्यों।
न्याय और अन्याय विचारो, ली राम ने मोल लडाई क्यों ॥
कुकर्म करने वालों को भी लोग भलाई देते है।
जिनका नहीं कसूर, उन्हें क्यों लोग बुराई देते हैं।
दुर्योधन को द्रोपदी जो, अन्धे का अँधा ना कहती|
केस खींचे, लगी लात गात में, सर पे रंदा ना सहती||
जेठ के आगे बहु की आँखें, क्या शर्मिंदा ना रहती।
रच दिया महाभारत बोलों ने, यूँ खून की नदियां ना बहती ।
उन जुआ खेलने वालों को भी धर्म-दुहाई देते हैं|
जिनका नहीं कसूर, उन्हें क्यों लोग बुराई देते हैं।
शक्ितसिंह जा मिला अकबर से, ये बातें चुपचाप की थी ।
मानसिंह भी मिलने आया, ये तो घडियां मित्र-मिलाप थी||
घर आये का किया निरादर, भूल अपने आप की थी।
सर में दर्द बताया गलती यो महाराणा प्रताप की थी||
जख्म के ऊपर फोवे जहर के नहीं दिखाई देते हैं।
जिनका नहीं कसूर, उन्हें क्यों लोग बुराई देते हैं।
पृथ्वीराज संयोगिता (उसकी भतीजी) को, जो जबरन जा उठाता ना।
सपने में भी सलाऊदीन को, जयचन्द यहाँ बुलाता ना|
होकर के पथभ्रष्ट कमठ गुरु, अपना दरस गिराता ना।
गजनी का सुल्तान यहाँ से, बच के जिन्दा जाता ना।
ऋषि विचारक चाल ऐसी घर लुटे लुटाई देते है।
जिनका नहीं कसूर, उन्हें क्यों लोग बुराई देते हैं।
भूल हुई जो पश्चाताप की, वो शब्द सुनाये देते हैं।
जिनका नहीं कसूर, उन्हें क्यों लोग बुराई देते हैं।।
1 comment:
Kosinder khadana ji ne bohut achha Gaya h ese
Post a Comment