Monday, 14 July 2025

हरियाणा की 10 विधानसभा सीट: जहां जाट निर्दलीय प्रत्याशियों के कारण जीती हुई बाजी हार गई कांग्रेस!

हरियाणा विधानसभा 2024 का परिणाम आए साल भर होने को आया है। फिर भी कांग्रेस की अप्रत्याशित हार और भाजपा की आश्चर्यचकित कर देने वाली जीत के आकलन निरंतर जारी हैं। दरअसल चुनाव एक बहुस्तरीय प्रक्रिया होती है, जिसकी बहुत सारी परतें होती हैं। समय और विश्लेषण करने की प्रक्रिया में ये परतें धीरे-धीरे खुलने लगती हैं और स्पष्ट होती जाती हैं। इन परतों को समझना सभी दलों एवं विश्लेषकों के लिए इसलिए भी जरूरी होता है ताकि भविष्य में बेहतर एवं सटीक राजनीतिक आकलन किया जा सके।

इसी कड़ी में आज हरियाणा की उन 10 विधानसभाओं का आकलन किया जा रहा है जो 10 जाट निर्दलीय प्रत्याशियों के कारण कांग्रेस हार गई।

  1. बाढड़ा विधानसभा में भाजपा के उमेद पातुवास को 58605 (41.1%), कांग्रेस  के सोमवीर सांगवान को 50809 (35.9%), निर्दलीय सोमवीर घसोला को 26730 (18.5%) वोट मिले। भाजपा के उमेद पातुवास ने कांग्रेस के सोमवीर सांगवान को 7585 वोटों से शिकस्त दी।
  2. बहादुरगढ़ विधानसभा में निर्दलीय राजेश जून को 73191 (46%), भाजपा के दिनेश कौशिक को 31192 (19.6%), कांग्रेस को 28955 (18.2%) वोट मिले। आजाद प्रत्याशी राजेश जून ने भाजपा प्रत्याशी दिनेश कौशिक को 41999 वोट से शिकस्त दी।
  3. दादरी विधानसभा में भाजपा के सुनील सांगवान को 65568 (46.1%), कांग्रेस की मनीषा सांगवान को 63611 (44.7%), निर्दलीय अजित सिंह को 3369 (2.8%) वोट मिले हैं। भाजपा के सुनील सांगवान ने कांग्रेस प्रत्याशी मनीषा को 1957 वोट से पराजित किया।
  4. गन्नौर विधानसभा में निर्दलीय देवेंद्र कादियान को 77248 (54.8%), कांग्रेस के कुलदीप शर्मा को 42039 (29.8%), भाजपा के देवेंद्र कौशिक 17605 (12.5%) वोट मिले हैं। निर्दलीय देवेंद्र ने कांग्रेस के कुलदीप को 35209 वोट करारी शिकस्त दी।
  5. गोहाना विधानसभा में भाजपा के अरविंद शर्मा को 57055 (43.6%), कांग्रेस को 46626 (35.7%), निर्दलीय हर्ष छिक्कारा को 14761 (11.3%), राजवीर दहिया को 8824 (6.8%) वोट मिले। भाजपा के अरविंद शर्मा ने कांग्रेस के जगबीर मलिक को 10429 वोट से जीत हासिल की।
  6. महेंद्रगढ़ विधानसभा में भाजपा के कंवर सिंह को 63036 (40.6%), कांग्रेस के राव दान सिंह को 60388 (38.9%), निर्दलीय संदीप सिंह को 20834 (13.4%) वोट मिले हैं। भाजपा के कंवर सिंह ने कांग्रेस के राव दान सिंह को कड़े मुकाबले में 2648 वोट से हराकर जीत दर्ज की।
  7. सफीदों विधानसभा में भाजपा के रामकुमार गौतम को 58983 (40.2%), कांग्रेस के सुभाष गंगोली को 54946 (37.8%), निर्दलीय जगबीर देशवाल को 20114 (13.7%) वोट मिले हैं। भाजपा रामकुमार गौतम ने कांग्रेस के सुभाष को 4037 वोटों से हराया।
  8. समालखा विधानसभा में भाजपा के मनमोहन भड़ाना ने 81293 (48.4%), कांग्रेस के धर्मसिंह छौक्कर ने 61978 (36.9%), निर्दलीय रविन्द्र मच्छरौली ने 21132 (12.6%) वोट मिले हैं। भाजपा के मनमोहन भड़ाना ने कांग्रेस के धर्मसिंह को 19315 वोट से करारी शिकस्त दी।
  9. उचाना कलां विधानसभा में भाजपा के देवेंद्र अत्री को 48968 (29.5%), कांग्रेस के बृजेन्द्र सिंह को 48936 (29.48%), निर्दलीय वीरेंद्र घोघड़िया को 31456 (19%) वोट मिले हैं। भाजपा के देवेंद्र ने कांग्रेस के बृजेन्द्र को 32 वोट से कड़े मुकाबले में हराया।
  10. रानियां विधानसभा में इनेलो के अर्जुन चौटाला को 43914 (30.4%), कांग्रेस के सर्वमित्र कम्बोज को 39723 (27.5%), निर्दलीय रणजीत सिंह को 36401 (25.2%) वोट मिले हैं। इनेलो के अर्जुन सिंह ने कांग्रेस के सर्वमित्र कम्बोज को 4191 वोट से हराया !

वो तीन केस जिन्होंने चौधरी छोटूराम की जिंदगी बदल दी!

पहला: राजपूत विधवा का

दूसरा: ब्राहम्ण किसान का

तीसरा: गोहाना की बूढी औरत का


चौ० साहब रोहतक में वकालत करते थे। उस समय अदालतें कर्जों की वसूली के दावों से भरी पड़ी थीं। आये दिन सामान की कुर्की, जमीनों की मुसताजरी और जायदादों की निलामी होती थी। कलानौर के एक साहूकार महाजन ने एक राजपूत विधवा के खिलाफ कर्जे की डिगरी हासिल कर ली। उसका मकान कुर्क हो गया, जज ने कुर्की का हुकम मन्सूख करने से इन्कार कर दिया क्योंकि "कानून ऐसा था।"


दूसरा दावा में एक ब्राह्मण किसान की जमीन कुर्क हुई, निलाम हो गई। चौधरी साहब ब्राह्मण के वकील थे। वह उसकी जमीन नहीं बचा सके क्योंकि "कानून ऐसा था।"


एक तीसरा दावा ग्राम गांवड़ी तहसील गोहाना की एक बुढ़िया के खिलाफ था। साहूकार ने तीन हजार रुपये की डिगरी कराली। इजरा दायर कर दी। बुढ़िया का सामान कुर्क कर लिया गया। यहां तक कि उसकी हाथ से पीसने वाली चक्की में पड़ा हुआ आटा भी नहीं छोड़ा। चौ. साहब ने कुर्की तुड़वाने के लिए डिस्ट्रिक्ट जज की अदालत में अपील की।


स्वर्गीय बाबू नानकचन्द जैन, प्रसिद्ध दीवानी के वकील, ने मुझे यह घटना बताई थी। कानून उस समय बड़ा स्पष्ट था, जो ऋणी के विरुद्ध और ऋणदाता के हक में था। अतः ऋण अदा न करने की हालत में ऋणी की अवस्था और वेसरोसमानी को कोई वजन नहीं मिलता था। अदालतों में जज अधिकतर शहरी बिरादरियों के ही होते थे। उनका झुकाव स्वाभाविक तौर पर ऋणदाताओं के हक में होता था। अतः वे नैतिकता और न्याय के नाम पर अपनी स्वेच्छा (discretion) का प्रयोग ऋणी के हक में नहीं करते थे।


बहस सुनकर जज साहब ने कहा—

"चौ० साहब! कानून आपकी मदद नहीं करता, मैं क्या करूं।"


चौ० साहब ने सामाजिक न्याय और आचार-व्यवहार पर भी अपील की, परन्तु जवाब वही था—

"चौ० साहब! मैं कानून से बंधा हुआ हूं, मजबूर हूं।"


इस पर चौधरी छोटूराम के दिल पर गहरी ठेस लगी। उन्होंने दावे का लिफाफा जज साहब की मेज पर रख दिया और यह कहकर बाहर निकल गए—

"बहुत अच्छा जज साहब! आपके हाथ जिस कानून से बंधे हुए हैं, मैं आज से उस कानून के विरुद्ध विद्रोह करूंगा। अब इस कानून को ही बदलना है।"


चौ० साहब ने वकालत छोड़ दी और कानून को बदलने की धुन में जुट गए। हालांकि इसका खामियाजा से ये हुआ कि उनको हिंदू विरोधी कहकर बदनाम किया जाने लगा और कुछ तो उनको छोटूखान ही बताने लगे। 


सूरजमल सांगवान, किसान संघर्ष व विद्रोह


#ChaudharyChhotuRam


 


Saturday, 12 July 2025

सांगवानों के बारे में दुष्प्रचार!

ये बात मुझ से बार बार पुछी जाती है कि क्या सांगवान राजपूतों से बने हैं? ये सवाल कोई तीन चार साल पहले मुझ से एक गैर जाट राज्य सभा सांसद ने भी पूछा था। उन्होंने तो न सिर्फ पूछा बल्कि स्वयं कह भी दिया था कि सांगवान राजपूतों से बने हैं। पहली बात तो यह कि मैं स्पष्ट कर दूँ कि कुछ सांगवान अपने को सांगा भी लिखते हैं, जिस कारण कुछ लोगों द्वारा एक भ्रम कि स्थिति पैदा करने की कोशिश की जाती है कि सांगवान का राणा सांगा से संबंध है। लेकिन यह कोरी गप है, सांगवान का राजपूत राजा राणा सांगा से निकट का भी संबंध नहीं था। सांगवान गोत की उत्पत्ति 14 वीं शताब्दी में चौधरी संग्राम सिंह से हुई है। जिनकी मृत्यु लगभग सन 1340 में हुई थी। चौधरी संग्राम सिंह के पिता राव नैन सिंह और उनके बुजुर्ग राजस्थान के सारसू जांगल क्षेत्र से उठकर, घूमते फिरते यहाँ वर्तमान स्थान चरखी, पैंतावास और मानकावास के बीच में नैनसर तालाब के स्थान पर आए थे (पाठकों की जानकारी के लिए बता दूँ कि राव उपाधि थी, जोकि आगे चलकर जाटों का गोत भी बना। इस गोत के गाँव भिवानी में मालवास , हिसार में, राजस्थान के जिला झुञ्झुणु का गाँव घरड़ाना तथा उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में इस गोत के कई गाँव हैं। सबकी जानकारी के लिए बता दूँ कि सीडीएस विपिन रावत का जो हेलिकॉप्टर क्रैश हुआ था, उसके को-पायलट कुलदीप राव इसी घरड़ाना गाँव से थे।)। इस तालाब को वर्तमान में नरसन कहा जाता है। नैनसर (नरसन) तालाब का नाम चौधरी संग्राम सिंह के पिता राव नैन सिंह के नाम पर पड़ा था। क्योंकि राव नैन सिंह की मृत्यु इसी स्थान पर हुई थी। यहाँ बाढ़ आने के कारण यह पूरा परिवार यहाँ से उठकर असावरी की पहाड़ी पर चला गया था। वहाँ से बाद में खेड़ी बूरा नामक स्थान पर आकर बस गया। इसी स्थान पर चौधरी संग्राम सिंह उर्फ दादा सांगू की यादगार बनाई हुई है, जिसे सांगू धाम के नाम से जाना जाता है। सांगवानों का संक्षेप इतिहास झोझु गाँव के सेवानृवित जेई श्री राजकुमार सांगवान ने भी लिखा है। इस इतिहास को मैं लिखने वाला था, नौकरी के दौरान में मैंने काफी जानकारियाँ जुटा भी ली थी, परंतु पैंतावास खुर्द के कैप्टन रतिराम ने कहा कि इस इतिहास को वह लिखेंगे, तो फिर मैंने मेरा इरादा टाल दिया। हालांकि, वह सभी जानकारियाँ जी मैंने जुटाई थी वह अभी भी मेरे पास रजिस्टर में हैं। 


सांगवानों की राजपूत जाति से निकास की बात तो छोड़िए, मैं दावे से लिख रहा हूँ कि आजतक इस देश में कोई भी एक जाट, अहीर या गुर्जर इस राजपूत जाति से नहीं बना है। राजपूत भी जाति नहीं थी, यह पहले एक संघ था, जोकि कई जातियों से बना था। जिसके इतिहास में प्रमाण हैं। इस पूरी कहानी का मर्म माउंट आबू पर्वत पर अग्निकुंड से जुड़ा है। फिर भी आप इस इतिहास के बारे में और जानना चाहते हैं तो आप पाकिस्तान के विख्यात इतिहासकार राजा अलीहसन चौहान द्वारा लिखी पुस्तक “A Short History Of Gujjars” पढ़ सकते हैं। जिसका यमुनानगर के गुर्जरों ने “गुर्जरों का संक्षिप्त इतिहास” नाम से हिन्दी में अनुवाद करवाया है। जिसका पता इस प्रकार है – गुर्जर एकता परिषद, देवधर, यमुनानगर, हरियाणा (135021)। जहां तक सांगवान की या अन्य किसी भी जाट गोत की राजपूत से निकासी की बात है तो उसको हम आंकड़ों से भी समझ सकते हैं। सन 1881 की जनगणना अनुसार राजस्थान में जाटों की जनसंख्या लगभग दस लाख थी, जबकि राजपूत जाति की जनसंख्या लगभग छह लाख थी। संयुक्त पंजाब (पाकिस्तान का पंजाब, भारत का पंजाब , हरियाणा और हिमाचल), जिसे जाटों का गढ़ माना जाता था, यहाँ जाटों (मुस्लिम+सिक्ख+हिन्दू) की जनसंख्या लगभग पैंसठ लाख थी, तो राजपूतों (मुस्लिम+हिन्दू+सिक्ख) की जनसंख्या लगभग तेईस लाख थी। दोनों ही प्रान्तों में राजपूत या तो जाटों की जनसख्या के आधे थे या आधे से कम! अब सोचने वाली बात यह है कि हिन्दू धर्म या जिसे आजकल सनातन धर्म भी कहने लगे हैं, उसकी वर्ण व्यवस्था अनुसार राजपूत को इस व्यवस्था में ब्राह्मण में बाद ऊंचा दर्जा प्राप्त था, क्षत्रिय कहलाते थे, राजपूत अर्थात राज करने वाले; तो व्यवस्था में प्राप्त ऊंचे दर्जे को कौन छोड़ना चाहेगा और वह भी इतने बड़े पैमाने पर? हर कोई ज़िंदगी में प्रमोशन चाहता है, न कि डिमोशन! जाटों के विरुद्ध यह दुष्प्रचार हजार सालों से किया जा रहा है और इसका कारण है कि जाटों ने ब्राह्मण धर्म की बनाई हुई व्यवस्था को कभी स्वीकार नहीं किया, और आज भी इसे पूर्णतया स्वीकार नहीं किया हुआ है। यही कारण है कि आज भी जब भी मौका मिलता है तो इनकी मीडिया जाटों के विरुद्ध षड्यंत्र शुरू कर देती है, समाज में जहर घोलने के लिए जाट-गैर जाट जैसी घृणित नीति अपनाई जाती है। 


भारतीय इतिहास बड़ी ही पक्षपात की दृष्टि से लिखा गया है। अंग्रेजों ने इस इतिहास के साथ न्याय किया है। भारतीय इतिहास में दो बहुत बड़ी दुर्घटनाएँ हैं, जिनको आमतौर पर भारतीय इतिहासकारों ने छूना भी नहीं चाहा। जानते हुए भी इन दोनों दुर्घटनाओं को बड़ी चालाकी से नजरंदाज कर दिया गया। जबकि ये दोनों ही दुर्घटनाएँ भारतीय इतिहास का बहुत बड़ा “टर्निंग पॉइंट” हैं। पहली दुर्घटना है, सम्राट अशोक के पौत्र महाराजा बृहदृथ कि एक बहुत बड़े षड्यंत्र के तहत उनके ही साले और सेनापति पुष्यमित्र शुंग ब्राह्मण द्वारा धोखे से हत्या। दूसरी दुर्घटना है, सिंघ के आलौर साम्राज्य के महाराजा सिहासी राय (मोर) कि उनके ही एक मंत्री और सलाहकार चच नाम के ब्राह्मण द्वारा धोखे से हत्या। महाराजा बृहद्र्थ की हत्या दुनियाभर में सबसे बड़ा धार्मिक षड्यंत्र था। जिसमें बौद्ध धर्म को खत्म करके ब्राह्मण धर्म को स्थापित करवाया गया था। याद रहे उस समय कोई भी हिन्दू धर्म नाम का कोई धर्म नहीं था। इन दोनों षडयंत्रों तथा ऐसे दुष्प्रचारों के बारे में, कि ये क्यों किए गए, मेरी आने वाली पुस्तक “जाटों को मलेच्छ और दलित क्यों कहा गया?” में विस्तार से लिखुंगा। 


इसके ईलावा मैं एक भ्रम और दूर कर दूँ। सांगवान और श्योराण गोत को लेकर मैं कई लोगों से सुन चुका हूँ कि सांगू और श्योरा दोनों भाई थे। पता नहीं लोग छोटी से बात पर भी अपना दिमाग इस्तेमाल क्यों नहीं करते हैं? एक बड़ा ही छोटा सा तर्क है कि चौधरी संगाम सिंह (दादा सांगू) की तीन शादियाँ हुई थी। पहली शादी श्योरण गोत के प्रधान गाँव सिद्धनवा में हुई थी। अन्य दो शादियाँ अहलावत गोत के डिघल गाँव मे हुई थी। अब एक छोटी सी सोचने वाली बात है कि जब सांगू की पहली शादी श्योराण के सिद्धनवा में हुई थी, तो क्या सांगू ने अपनी बहन से शादी की थी? यह कतई संभव नहीं है। तो ऐसे बेतुके भ्रम ना फैलाया करें।  


 ~सरदार हवासिंह सांगवान (पूर्व कमांडैंट, सीआरपीएफ़)

Friday, 4 July 2025

Dulla Bhatti - दुल्ला भट्टी

 Dulla Bhatti (दुल्ला भट्टी)—the iconic rebel of Punjab who fought against the Mughals—is widely accepted in historical and folk traditions as a Jat, and not a Rajput. Let’s explore the historical, textual, and folk evidence to support this claim and also examine why Rajputs try to claim him.

1. Evidence from Ain-i-Akbari (by Abul Fazl)
Primary Persian Source: Ain-i-Akbari, written by Akbar’s court historian Abul Fazl, makes references to Dulla’s father Farid Bhatti (or Farid Bhati) and refers to the Bhatti clan as Jats in the Punjab region.
In Ain-i-Akbari's Zat (clan) listings, many Jat clans are mentioned including Bhatti as a Jat tribe in Punjab. It does not classify Bhattis as Rajputs in that region.
In fact, Dulla’s rebellion was against Akbar’s revenue system (zabt), which hurt the Jat peasantry of Punjab. His actions were typical of Jat resistance, not feudal Rajput loyalty to Mughals.
2. The Bhatti Clan: Jat or Rajput?
The Bhatti clan is originally Jat, and like many others (Chauhans, Panwars, Solankis), a branch of Bhattis Rajputized later—especially after settling in Jaisalmer (Rajasthan). This is where some Bhattis adopted Rajput identity to gain political advantage under the Delhi Sultanate and Mughals.
But in Punjab, especially Sandal Bar (Lyallpur/Faisalabad, Lahore, etc.), the Bhatti clan retained its Jat identity.
> Rajputs often claim Bhatti warriors like Dulla after their popularity to build caste pride, but historical and social records show Dulla Bhatti was a Jat of Punjab.
3. Folk Evidence and Ballads (Punjab Lok-Kahani)
Dulla Bhatti is remembered in Punjabi folklore as a rebel Jat hero, not a Rajput.
Songs during Lohri festival like:
> “Sundriye Mundriye hoye, Dulla Bhatti wala hoye...”
These ballads describe Dulla as a peasant leader, who saved Punjabi girls from being taken by Mughal officers, married them off like a guardian, and fought taxation. This resonates with Jat traditions of honor and rebellion, not Rajput courtly behavior.
Folk Lineages in Punjab (Oral Tradition):
Villages in Punjab trace Dulla’s ancestry as Jat Bhatti, and not Rajput.
His family was rural, agricultural, not princely or aristocratic.
4. Why Rajputs Try to Claim Him
Rajputs often appropriate popular figures for caste pride—especially warlike rebels. Since Dulla Bhatti is a heroic figure, Rajput communities tried to assimilate him into their fold.
However, unlike Rajput Rajas who allied with Mughals, Dulla fought the Mughal emperor Akbar, which is not a trait associated with Rajput conduct of that time.
5. Scholarly Views & Historians
Khushwant Singh, Irfan Habib, and Prof. Ganda Singh (Punjabi historians) all treat Dulla Bhatti as a Jat, and connect his rebellion with Jat uprisings of Punjab against imperial authority.
Historian G.N. Sharma in “Social Life in Medieval India” lists Bhattis as prominent Jat clans in Punjab.
Summary Table:
Category Evidence
Clan Name
Bhatti (aka Bhati)
Historical Identity
Listed as Jat clan in Ain-i-Akbari
Geography Sandal Bar,
Punjab – Jat-dominated region
Role Rebel,
folk-hero,
peasant leader – typical of Jats
Rajput Claim? Retrospective appropriation due to his popularity
Folk Evidence Lohri songs,
ballads — call him Dulla Bhatti Jat
Conclusion:
Dulla Bhatti was a Jat, not a Rajput.
His lineage (Bhatti clan), the Persian text Ain-i-Akbari, his rebellion against Mughals, agrarian roots, and Punjabi folklore all confirm his Jat identity.
Rajput claims are later caste-based appropriations with no historical basis in Mughal records or folk traditions.

By: Sanjay Maan

Thursday, 19 June 2025

Understanding the people's history of Haryana region and Western Uttar Pradesh around Delhi!

Understanding the people's history of Haryana region  and Western Uttar Pradesh around Delhi, in general and  the  new awakening movement in our community in particular, with the  introduction of Arya Samaj in this area. Incidentally my period of research is from 1857 to 1947. My village  Kadipur is situated near the western bank of Jamuna river in North East District of NCT Delhi. You must be aware that before Delhi was declared capital of India in 1911 Delhi was one of the District of the Punjab comprising of Delhi, Sonepat and Ballabhagarh Tehsils. My family had marital relations in the districts  of Delhi, Rohtak and Meerut, Muzaffarnagar, Bulandshahar. My great grandfather Chaudhary jyasi Ram was the sole proprietor  and Lumbadar of Kadipur. Under the Land Settlement of Delhi District in 1880 he was appointed Zaildar of Alipur Zail comprising of 37 mostly Khadar villages. My grandfather Chaudhary Bhim Singh had Darshan of Sawami Dayanand Saraswati in 1877 at time Delhi Darbar (Assemblage) along with his father and one of the early pioneers of Arya  Samaj  in this region during the first two decades of the twentieth century.  Chaudhary Bhim Singh was the Wazier (President) of the Panchayat Azam (Panchayat the Great) held in village Barauna (Kheda of Dahiya), district Rohtak on 7 March 1911. During this period Mr. E. Joseph was the Deputy Commissioner of Rohtak, who was a fluent speaker of Haryanvi dialect because before becoming DC of Rohtak he was the Settlement Commissioner of that district. When Jat kaum vehemently insisted to hold the historic Panchayat, the then Punjab Government promulgated Prevention of Seditious Meeting Act 1907 in Rohtak district on 13 June 1910 to ban/regulate, this biggest congregation after the revolt of 1857 in Northern India. Chaudhary Bhim Singh and his equally leading friends, later on relatives such as Chaudhary Matu Ram and Dr. Ramji Lal Sanghi, Chaudhary Ramnarain Bhigan and Chaudhary Ganga Ram Gadhi Kundal were the primary Arya Samaj followers of this region in organising  in Shehri Khanda  Panchayat in December's 1906 against Pauraniks. He along with his elder brother Zaildar Tek Chand, his Samdhi Rai Bahadur Chaudhary Raghunath Singh Mitrau, Chaudhary Kali Ram Mangolpur Kalan (all from Delhi district) and Dr. Ramji Lal  Sanghi & Chaudhary Peeru Singh Matindu were founder member of the  All India Jat kshtriya Mahaasabha established in March 1907 in famous Nauchandi Mela at Meerut. These people organised Panchayat in various villages for the propagation of Savdeshi movement in Delhi district.  Arya Samaji Jats were also instrumental in the establishment of Jat Schools at Rohtak, Lakhavti, Badaut, Narela, Kheda Gadhi and Sangaria. Jat Boarding Houses were founded at Agra, Muzaffarnagar, Pilani, Bulandshahar, Gwalior etc. Researched on revolt (Bagawat) by the nativ Officers and Sepoys of 10 Jat Paltan in 1908 in Calcutta and many Jat newspapers since 1890's and Shekhavati movement. Chaudhary Tika Ram Mandaura keenly assisted Chaudhary Bhim Singh Kadipur in the establishment of Vedik Sanskrit Jat High School Kheda Gadhi in Delhi Province. Chaudhary Rijak Ram, Chaudhary khem Lal Rathi and Dr. Sarup Singh and Headmaster Dalel Singh were the alumni of this School. 

वर्णवादियों के माईबाप वक्त व् राज के हिसाब से कैसे बदलते हैं!

1 - मुग़लकाल में: भविष्य पुराण है या कौनसा है वो जिसमें अकबर को विष्णु का अवतार लिख दिया था वर्णवादियों ने!

2 - अंग्रेज काल में: बालगंगाधर तिलक ने इनका ओरिजिन आर्यनों से जोड़ते हुए, इनके वर्ग को ब्रिटिश DNA वाला बताया करते थे!

3 - संघिकाल में: हाल फ़िलहाल में वर्णवादि खुद को इजराइली खून से जोड़ते दिख रहे हैं, कई बार ऐसी खबरें इनकी तरफ से आपने आजकल पढ़ी भी होंगी!


अब जब इजराइल-ईरान युद्ध छिड़ा हुआ है और अगर इसमें दूसरा पक्ष भारी पड़ गया तो ......... खालिस्थान आप खुद भर लीजिए!


इन तीन किस्सों के अलावा फंडियों का ऐसा ही किसी से चिपकने का किस्सा जाटों के मामले में लिखा था, जो कि सत्यार्थ प्रकाश में है, जिसमें लिखा गया है कि 'सारी दुनिया जाट जी जैसी पाखंडमुक्त हो जाए, तो पंडे-पुजारी भूखे मर जाएं' - हालाँकि जाट होते कौन हैं किसी को भूखा मारने वाले; परन्तु फिर भी ऐसा कह के चिपके थे जाट से| 


और मौका मिलते ही वही अकबर वाले भी व् जाटों वाले भी कैसे नंबर वन दुश्मन बनाए हुए हैं पिछले 12 साल उठा कर देख लीजिए! और इसी थ्योरी में इनकी कमजोरी छुपी हुई है, जो पकड़ ले वह इनके पार है!


Wednesday, 11 June 2025

खाप लैंड के लगभग हर गांव में दादा खेड़ा मिलेगा!

खाप लैंड के लगभग हर गांव में दादा खेड़ा मिलेगा जो कि उस गांव की मुढ्ढी गाडने वाले यानी कि गांव को बसाने वाले हमारे पूर्वज तथा अभी तक हमारे जितने भी पूर्वज हुए हैं वो सब मृत्यु के बाद दादा खेड़ा में समाहित हो जाते हैं उन सबका सामुहिक स्वरूप होता है । शुरू से ही इसका स्वरूप बहुत साधारण रहा है । इसमें सफेद रंग होता है और सफेद ही इस पे चादरा चढ़ता है । इस के अलावा इस पर ना तो कोई घंटी लगी होती है , ना कोई दान पात्र होता है, ना इस पर कोई चढ़ावा चढ़ाया जाता है और न ही इसकी फेरी लगाई जाती है जो कि इसको मंदिरों से अलग दिखाती है। सभी जाति धर्म कि औरतें बिना किसी भेद भाव के रविवार के दिन इस पर धोक लगाती हैं या फिर जिसके घर में भैंस या गाय ब्या जाती है या कोई दुधारू पशु लेकर आता है तो एक कुल्ली में थोड़ा सा दुध इस पर चढ़ाती हैं । यही इसका वास्तविक स्वरूप है जिसको हमारे पूर्वज ऐसे का ऐसे ही बरकरार रखे हुए थे जिसका मकसद था कि हम सब फालतू के पाखंडों से दूर रहें और अपने कामों में लगे रहें । 

लेकिन पिछले कुछ वर्षों में लगभग हर गांव में दादा खेड़ा के नाम पर कमेटी बन गई हैं जो कि या तो अज्ञानता वश या किसी के गुप्त एजेंडे के चक्कर में फंसकर दादा खेड़ा के जिर्णोद्धार के नाम पर उसके वास्तविक स्वरूप को बदलने पर तुले हुए हैं और अगर इनको रोका या समझाया नहीं गया तो ये कुछ दिन में दादा खेड़ा को मंदिर बना के ही छोड़ेंगे। पहले उसपे घंटी लगाएंगे, फिर उसकी फेरी लगवानी शुरू करेंगे और फिर उसको उंचा करने के नाम पर उसके उपर ही मंदिर बनवा देंगे। दिल्ली में कयी जगह ऐसा हो चुका है । 

इसलिए समय रहते सचेत हो जाओ और ये देखो कि आपके गांव में दादा खेड़ा के स्वरूप में क्या बदलाव किए जा रहे हैं । मैं तो ऐसे भोले भाले लोगों से यही कहना चाहता हूं कि हमारे पुरखे बेवकूफ नहीं थे जो वो आजतक उसको वैसे का वैसा ही स्वरूप बरकरार रखे हुए हैं। लगभग हर गांव में दादा खेड़ा के नाम पर बनी हुई कमेटियों से अपील है कि अगर आपको गांव कि और दादा खेड़े कि जिर्णोद्धार कि  थोड़ी सी भी चिंता है तो आप जो भी पैसे दादा खेड़ा के नाम पर इकट्ठा करो उससे दादा खेड़ा के नाम पर गांव में एक लाईब्रेरी बनवा दो और बच्चों को सुविधा उपलब्ध करवा दो और उन्हीं में से कुछ पैसे से प्रसाद के तौर पर खीर बनवाकर खिला दो फिर देखो गांव और दादा खेड़ा कैसे खुश हो जाएंगे। ये मेरे निजी विचार हैं और हो सकता है मैं ग़लत हूं। जिस भी गांव के लोग मुझसे जुड़े हैं वो इस पर ध्यान जरूर रखना।

धन्यवाद। - Post by Wazir Singh Dhull

Wednesday, 4 June 2025

पंजाब यूनिवर्सिटी नाम पर विवाद!

कुछ दिन पूर्व अध्यक्ष अनुराग दलाल ने पंजाब यूनिवर्सिटी का नाम बदलने का प्रस्ताव डाला था उसके बाद विरोध होने से से ये प्रस्ताव वापिस भी ले लिया था । सुनने में आ रहा है नाम बदलने का समर्थन दीपेंद्र हुड्डा ने भी किया था , पता नहीं ये बात सत्य है या नही । पर मैं हैरान हूं अनुराग दलाल की नॉलेज पर की अध्यक्ष तो बन गए पर अपनी ही यूनिवर्सिटी के इतिहास के बारे में नही पता ।

पंजाब यूनिवर्सिटी की स्थापना चंडीगढ़ में नही हुई थी और जब स्थापना हुई थी उस वक़्त चंडीगढ़ नाम का कोई शहर था ही और ना ही ये राजधानी थी । पंजाब यूनिवर्सिटी कि स्थापना 1882 में पंजाब की राजधानी लाहौर में हुई थी और ये भारत की बहुत बड़ी यूनिवर्सिटी थी । 1947 में जब पंजाब का बटवारा हुआ तो जिस तरह हर चीज का बटवारा हुआ उसी तरह शिक्षण संस्थानों का भी बटवारा हुआ , सभी रिकॉर्ड बांटे गए । बटवारे के ठीक बाद पंजाब यूनिवर्सिटी जो लौहार से आधी बंट कर आई थी वो सोलन में शिफ्ट की गई और जब पंजाब की राजधानी के रूप में चंडीगढ़ को बसाया गया तो पंजाब यूनिवर्सिटी को चंडीगढ़ शिफ्ट किया गया।
खाली पंजाब यूनिवर्सिटी बंटवारे के बाद शिफ्ट नही हुई बल्कि और भी कई शिक्षण संस्थान शिफ्ट हुए । आप ने करनाल और दिल्ली का दयाल सिंह कॉलेज का नाम सुना ही होगा ?? ये सरदार दयाल सिंह मजीठिया दुवारा शिक्षा के लिए लिये गए कार्यो की विरासत है । दयाल सिंह कॉलेज की स्थापना भी 1910 के आसपास लाहौर में हुई थी और बटवारे के बाद जो ईधर विरासत आई उसी में ये दयाल सिंह कॉलज भी शिफ्ट हुआ था । जलन्धर का लायलपुर खालसा कॉलेज का नाम तकरीबन हर युवक ने सुना ही हुआ है । अब ये हैं तो जलंधर में पर इस मे कभी सोचा नाम मे लायलपुर क्यू है ? लायलपुर शहर 1947 में पाकिस्तान के हिस्से आया था जिसका नाम बदल कर फैसलाबाद कर दिया था । इसी लायलपुर मे खालसा स्कूल की शुरुआत हुई थी और जिसे बाद में अपग्रेड कर के खालसा कॉलेज लायलपुर बना दिया गया था । इसे भी 1947 के बाद जालंधर शिफ्ट किया गया था ।
राजनेताओं को सोचना चाहिए की राजनीति जैसे मर्जी कर लो मगर किसी चीज का नाम बदल कर आप उसका अस्तित्व मिटाने का घोर पाप कर रहे हो । अब ये नाम शुरुआत से ही है इन्ही बदला जाना ठीक वैसे ही है जैसे हम अपने बाप दादा का नाम बदल रहे है । आजकल के बच्चे पढ़ते तो कम है राजनीति के चक्कर ये बाते करने लगते है ।

Palvinder Khaira

Tuesday, 27 May 2025

कोथ मसले में शुक्राई नाथ के पीछे हटने के पीछे की असल वजह!

कोथ मसले में छुपे रूप से घुसाया गया फंडी विचारधारा से आने वाले महंत शुक्राई नाथ का भाग खड़ा होना कहो या अपनी जिद्द रुपी हथियार को डाल देना कहो (भले महामंडलेश्वर बाळकनाथ समझौते की जितनी मानवकारी वजहें बताते रहें वीडियो पे आ कर मीडिया के आगे); परन्तु असली वजह जो निकल कर आई, वह जाट व् इसके मित्र समाजों के लिए एक बहुत सीरियस संदेश भी है व् आत्मबल को बढ़ा के सही दिशा में सरजोड़ कर धर्म के नाम पर जमीन-जायदाद के लालचियों से अपनी नस्लों की वैचारिक बाड़ करने का आत्मविश्वास भी देती है| 


जैसा कि सभी को पता ही है, गाम कोथ-कलां 'दादा काळा पीर' की गद्दी 'गुरु गोरखनाथ' फिलोसॉफी की गद्दी है; जो ना ही तो मूर्ती-पूजा करते हैं व् ना ही वर्णव्यवस्था को मानते होते| ऐसे में इनमें यह वर्णवादी व्यवस्था वाला लोभ-लालच क्यों समा जाता है इसकी असली वजह कल पता लगी; जब इस मसले में तह तक जुड़े कुछ लोगों से फ़ोन पर बात की| 


सबसे पहले तो इस मसले में शुक्राई नाथ द्वारा अपने हाथ वापिस खींच इस गद्दी को छोड़ देने की वजह जानें| वजह रही इस गद्दी के आसपास के वर्णवादी विचार वाले मूर्तिपूजा आधारित धर्मकेंद्रों में इस मसले के जरूरत से ज्यादा लम्बा होते जाना व् बढ़ता चले जाने से पनपा संशय व् भय| खासतौर से भनभौरी वालों को भय सताने लग गया था कि तीन महीने हो गए ना जाट काबू आ रहे, ना दब रहे व् ना ही जाट मान रहे; जबकि इस मसले से जुड़े दोनों तरफ के काफी लोगों को साम-दाम-दंड-भेद के जरिए तोड़ने-डराने आदि की तमाम कोशिशें की जा चुकी हैं व् सभी नाकाम हो रही हैं| ऐसे में इनको भय सताने लगा कि कहीं कोई अनहोनी हो गई व् जाटों ने यहाँ से शुक्राईनाथ को खदेड़ने की मुहीम छेड़ दी तो नंबर कल को तुम्हारा भी लगेगा| व् ऐसे ही कोथ के इर्दगिर्द जितने भी इस तरह के प्रमुख धर्मकेंद्रों वाले बैठे हैं; सभी में यह मंत्रणा व् संशय गया| सबसे ज्यादा चिंता इनको यह सता रही थी कि अगर एक बार जाट समाज उग्र हो गया तो फिर सर्वसमाज के औरतों-बच्चों में तुम्हारा जो भी भय कहो या प्रभाव वह सब खत्म होते देर नहीं लगेगी व् जाटू विचारधारा बढ़ निकलेगी|  


और निर्धारित हुआ कि तुम चले तो थे इस मठ की आड़ में 'गोरखनाथियों को हथियार व् ढाल बना' अपना एजेंडा लागू करने कि अगर कोथ वाला कामयाब होता है तो फिर हम वर्णवादी भी तैयारी बैठाएंगे भनभौरी आदि की जमीनें अपने नाम करने के लिए; परन्तु फ़िलहाल के लिए तो लगता है काँप गए यह सभी| 


तो फिर तय हुआ कि अपनी इज्जत बचाने को खुद ही उलटे भी हटो व् मीडिया को बुला के यह स्क्रिप्ट पढ़ दो कि हमने किसी पंचायत या किसी सामाजिक समूह आदि ने नहीं, बल्कि अपनी स्वचेतना से यह फैसला लिया है| 


बहुत दिनों बाद उस कहावत को आंशिक रूप से साबित होते हुए देखा जिसमें कहा गया है कि, "जाट, रोटी भी खुवावेगा तो गळ म्ह ज्योड़ा (रस्सा) गेर कैं"| निसंदेह इस मानसिक जीत के बाद, और भी कहीं जहाँ ऐसी कोशिशें हो रही होंगी, वह कुंध भी पड़ेंगी व् समाज की वैचारिक स्वछंदता कायम रह सकेगी| ऐसे किस्से विश्वास जगाते हैं कि समाज थोड़ा सा भी सरजोड़ करके अपनी कटिबद्धता दिखा दे तो फंडी-फलहरी इतने भर से ठिठक जाते हैं| 


जय हो कोथ वालों की, कोथ के बारह तपे व् खाप की!

Thursday, 24 April 2025

'धर्म पूछा, जाति नहीं" की बकवाद काटने वाले जवाब देवें!

मैं इसकी निंदा करता हूं कि अगर पहलगाम, कश्मीर में वाकई धर्म पूछकर गोली मारी गई हैं तो; परन्तु यह सत्य नहीं क्योंकि तीन मुस्लिम भी इस हमले में मारे गए हैं; फिर भी इस मुद्दे को "धर्म पूछने" का मुद्दा बना के "जाति नहीं पूछी" की बकवाद फैलाने वाले जरा इस बात की भी घोर निंदा करते हुए, इसको खत्म करने की तरफ कोई एक्शन लेंगे/लिवाएँगे कि :-


1. जहां जाति पूछ कर गोली मार दी जाति हैं।

2. जाति पूछकर ही बारात पीट दी जाति हैं।

3. जाति पूछकर ही रैप कर दिया जाता है।

4. जाति पूछकर ही सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाता है। 

5. जाति पूछकर ही दाखिले किए जाते है।

6. जाति पूछकर ही इंटरव्यू में बाहर कर दिए जाते है। 

7. जाति पूछकर ही खटिया पर बैठने दिया जाता है।

8. जाति पूछकर ही घोड़ी से उतारकर मार दिया जाता है। 

9. जाति पूछकर ही अन्याय किया जाता है।

10. जाति पूछकर ही न्याय किया जाता है।

11. जाति पूछकर ही प्रमोशन ओर डिमोशन होते है।

12. जाति पूछकर ही पुलिस स्टेशनों में धाराएं बढ़ा दी जाती है।

13. जाति पूछकर ही राजनीति चमकाई जाती है।

14. जातीय शोषण पूछकर ही जहां बयान दिए जाते हैं।

15. जाति पूछकर ही न्यायालय में फैसले पलट दिए जाते हैं।

16. जाति पूछकर ही पड़ोस में मकान नहीं खरीदने दिए जाते हैं।

17. जाति पूछते ही तय हो जाता है उसे जानवर समझें या इंसान।

18. जाति पूछकर ही पानी पिलाएं या नहीं।

19. जाति पूछकर ही मंदिर में आने दे या नहीं।

20. जाति देखकर ही मीडिया तय करती हैं मुद्दा उठाएं या दबाएं 

21. जाति पूछकर ही मकान तुड़वा दिए जाते है।

22. जाति पूछकर ही जमीनों पर कब्जे कर लिए जाते हैं।

23. जाति पूछकर ही नक्सली घोषित कर मरवा दिए जाते हैं 

24. जाति पूछकर ही वोट लिए जाते है दिए जाते है।

25. यहां तक कि मर जाने के बाद भी जाति पूछकर अंतिम संस्कार नहीं होने दिए जाते हैं।


और इनमें से आधे से ज्यादा पॉइंट्स तो लीगल सिस्टम में हो रहे हैं, ना कि समाज की गलियों में| और नहीं तो लीगल सिस्टम से इसको बाहर करना तो तुम्हारे हाथ की बात है; क्या करोगे ऐसा? अगर नहीं तो बंद करो अपना यह ड्रामा! 


इस विषय पर सुनिए दादा ओमप्रकाश जी धनखड़, प्रधान धनखड़ खाप व् प्रवक्ता सर्वखाप का संदेश:




Sunday, 13 April 2025

पहले अर्थ पीटना था,ताड़ना अब शिक्षा हो गई!

 शब्दों का षड्यंत्र: इतिहास की सबसे बड़ी साजिश?


मनुवादी ग्रंथों की परीक्षा हो गई

पहले अर्थ पीटना था,ताड़ना अब शिक्षा हो गई


गोरखपुर के छापा खाने के पोद्दार की फट गई हैं

अम्बेडकर वादियों के ज्ञान से नाक कट गई है



आजकल रामचरितमानस को लेकर विवाद गर्माया हुआ है—विशेष रूप से एक शब्द: “ताड़ना”।

1953 में गीता प्रेस, गोरखपुर के अनुवादक हनुमान प्रसाद पोद्दार ने “ढोल, गँवार, शूद्र, पशु, नारी सकल ताड़ना के अधिकारी” में ‘ताड़ना’ का अर्थ दंड (punishment) बताया था—और यह आप खुद उस संस्करण में देख सकते हैं।


मगर हाल के वर्षों में उसी शब्द का अर्थ बदलकर शिक्षा (discipline/learning) कर दिया गया है।


सोचिए—

* अनुवादक वही

* प्रकाशन वही

* किताब वही


फिर अर्थ क्यों बदला गया?

क्या ये सामान्य गलती है या सुनियोजित षड्यंत्र?


“शब्दों का अर्थ बदल देना इतिहास बदल देने जैसा होता है।”


भारत में सदियों से शूद्रों और स्त्रियों को ग्रंथ पढ़ने का अधिकार नहीं था।

जब पढ़ने का अधिकार नहीं था, तो सवाल उठता है—धार्मिक ग्रंथ किसने लिखे? किसने अर्थ निर्धारित किए?

बिल्कुल—ब्राह्मणों ने। और वही आज इन शब्दों के अर्थों को अपने हिसाब से पलटते हैं।


इतिहास गवाह है—

* सम्राट अशोक के शिलालेखों को भी सदियों तक भीम की गदा बताया गया।

* जब 1837 में जेम्स प्रिंसेप ने उसे पढ़ा, तब असली इतिहास सामने आया कि अशोक बौद्ध सम्राट थे।

* उन्होंने ‘देवानं पिय’ लिखा था, जिसका अर्थ ‘देवों का प्रिय’ बताया गया।

लेकिन जब ब्राह्मणवादियों ने इसे अपनी डिक्शनरी में दर्ज किया—तो अर्थ बदल दिया:

मूर्ख, बकरा, जड़ (Stupid, Dumb, Animal-like)।


क्या कोई राजा खुद को मूर्ख कहेगा?

क्या सम्राट अशोक या समुद्रगुप्त जैसे राजा स्वयं को बकरा कहेंगे?


इसका सीधा मतलब है—

संस्कृत डिक्शनरी बाद में बनी। जब तक सम्राट “देवानं पिय” लिखवा रहे थे, तब तक संस्कृत मुख्यधारा की भाषा नहीं थी।

असल भाषा पाली या प्राकृत थी, न कि संस्कृत।


बाद में इतिहास को तोड़ा-मरोड़ा गया:

* सम्राट अशोक को शिवभक्त बना दिया गया। 

* बौद्ध आचार्य पराशर को ब्राह्मण ऋषि कहकर गोत्र दे दिया गया।

* पाणिनि के 1000 सूत्रों को 4000 करार दे दिया गया।


ये सब क्यों हुआ?

क्योंकि ज्ञान और शब्दों की सत्ता जिनके पास होती है, इतिहास वही तय करते हैं।


अब सवाल आपसे:

* क्या इतिहास के ये फर्जीवाड़े उजागर नहीं होने चाहिए?

* क्या जिन्होंने यह सब किया, उन्हें माफ़ी नहीं मांगनी चाहिए?


जैसे पोप ने माफ़ी मांगी,

क्या भारत के शब्द माफिया कभी माफ़ी मांगेंगे?


और अंत में:

‘ताड़ना’ का मतलब क्या है?

* तुलसीदास ने रामचरितमानस अवधि भाषा में लिखी थी।

* शब्द सागर (सं. हरगोविंद तिवारी, भोला नाथ तिवारी) के अनुसार—

ताड़ना = मारना, दंड देना, घुड़की देना।


संस्कृत डिक्शनरी भी यही कहती है:

“ताड़ना” = पीटना, दंड देना (punishment, beating)


तो फिर, शिक्षा कहां से आ गया?

जाट कौम 2025 वर्ष का कैंलेंडर!

 जाट बलवान जय भगवान

 जाट कौम 2025 वर्ष का कैंलेंडर

 1 Jan वीर गोकुला जाट (हगा गोत्र) बलिदान दिवस

 6 Jan सूबेदार छोटूराम श्योराण पुण्यतिथि

 9 Jan राजा नाहर सिंह तेवतिया बलिदान दिवस

 9 Jan चौधरी छोटूराम ओहल्याण पुण्यतिथि

 9 Jan डॉ सरूप सिंह हुड्डा जयंती

 10 Jan शूटर दादी चंद्रो तोमर जयंती

 13 Jan चौधरी दौलतराम सारण जयंती

 14 Jan राजा खेमकरण सोगरिया जयंती

 15 Jan चौधरी दल सिंह ढुल जयंती

 15 Jan शहीद मेजर अमित देशवाल जयंती

 15 Jan शहीद कैप्टन पवन कुमार खटकड़ जयंती

 17 Jan किसान केसरी बलदेव राम मिर्धा (राहड़़ गोत्र) जयंती

 20 Jan आजाद कवि चौधरी मुंशीराम पुनिया जांडली पुण्यतिथि

 21 Jan चौधरी दल सिंह ढुल पुण्यतिथि

 20 Jan चौधरी रामनारायण जिंदा (मायला गोत्र) जयंती

 21 Jan श्री नरेंद्र बल्हारा जयंती

 26 Jan शहीद बाबा दीप सिंह संधू जयंती

 29 Jan लोक देवता वीर तेजाजी (धौलिया गोत्र) जयंती

 (अंग्रेजी कैंलेंडर के अनुसार 29 जनवरी भारतीय कैंलेंडर के अनुसार माघ शुक्ल चतुर्दशी को जोकि 2025 के वर्ष में 11 फरवरी को‌ है)

 29 Jan रामनिवास मिर्धा (राहड़़ गोत्र) पुण्यतिथि

 30 Jan मेवात विजय दिवस


 2 Feb शहीद करणीराम मील जयंती

 2 Feb महाराजा जगदेव पंवार जयंती (भारतीय कैंलेंडर के अनुसार प्रतिवर्ष बसंत पंचमी को)

 3 Feb बलराम जाखड़ पुण्यतिथि

 6 Feb कर्नल गुरबख्श सिंह ढिल्लों पुण्यतिथि

 6 Feb प्रताप सिंह कैरों (ढिल्लों गोत्र) पुण्यतिथि

 9 Feb चौधरी महेंद्र पाल सिंह बल्हारा जयंती (पूर्व प्रधानमंत्री फिजी देश)

 10 Feb जरनैल सरदार शाम सिंह अटारीवाला बलिदान दिवस

 11 Feb बाबा शाहमल सिंह तोमर जयंती

 12 Feb महाराजा सलकपाल तोमर (भारतीय कैंलेंडर के अनुसार प्रतिवर्ष माघ शुक्ल पूर्णिमा को)

 12 Feb राणा उदय भानु सिंह बमरौलिया जयंती

 12 Feb चौधरी अजित तेवतिया जयंती

 13 Feb महाराजा सूरजमल सिनसिनवार जयंती

 13 Feb शहीद फ्लाइंग ऑफिसर पंकज कुमार नांदल जयंती

 15 Feb स्वतंत्रता सेनानी अमर शहीद कवि जाट मेहर सिंह दहिया जयंती

 15 Feb ठाकुर देशराज सोगरवार जयंती (इतिहासकार)

 16 Feb परसराम सिंह मदेरणा पुण्यतिथि

 17 Feb लोठू सिंह निठरवाल बलिदान दिवस

 19 Feb भरतपुर स्थापना दिवस

 19 Feb चौधरी घासीराम मलिक जयंती

 20 Feb क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी कुलबीर सिंह संधू जयंती

 21 Feb राजा मानसिंह सिनसिनवार बलिदान दिवस

 21 Feb शहीद कैप्टन पवन कुमार खटकड़ बलिदान दिवस

 23 Feb सरदार अजित सिंह संधू जयंती

 24 Feb भगत फूल सिंह मलिक जयंती


 जाट आरक्षण (2016) में शहीद

 19 Feb राहुल दांगी

 20 Feb अर्जुन जाखड़, संदीप जाखड़, अजय मलिक, प्रदीप राणा, प्रदीप कोडान, जयदीप नांदल, कृष्ण फौगाट,

 प्रदीप राठी, रविन्द्र नांदल

 21 Feb जयवीर देशवाल, रामचन्द्र लोहचब, सुमित दहिया

 22 Feb राजेश खोखर, संदीप बजाड़,‌ दिलबाग खत्री, संदीप पहल, संजीव दहिया


 5 Mar कैप्टन नीरा आर्य जयंती (धामा गौत्र)

 6 Mar शहीद सन्दीप कड़वासरा बलिदान दिवस (जाट आरक्षण)

 11 Mar दिल्ली फतेह दिवस

 12 Mar शहीद चौधरी ताराचन्द सहारण आईपीएस एसपी बलिदान दिवस

 14 Mar अकाली बाबा फूला सिंह सराओ बलिदान दिवस

 15 Mar सरदार रायसल खोखर ने 1206 में मोहम्मद गोरी को मारा

 15 Mar चौधरी रामदान डऊकिया जयंती

 15 Mar साहिब सिंह लाकड़ा जयंती (दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री)

 18 Mar स्वतंत्रता सेनानी अमर शहीद कवि जाट मेहर सिंह दहिया बलिदान दिवस

 18 Mar कर्नल गुरबख्श सिंह ढिल्लों जयंती

 19 Mar भीम सिंह दहिया जयंती (इतिहासकार)

 21 Mar चौधरी हरलाल सिंह दुल्हड़ पुण्यतिथि

 23 Mar शहीद-ए-आज़म भगत सिंह संधु बलिदान दिवस

 23 Mar सरदार हरकिशन सिंह सुरजीत बसेरा जयंती

 24 Mar शहीद पायलट शैफाली चौधरी बलिदान दिवस

 (लौर गौत्र)

 26 Mar आजाद कवि चौधरी मुंशीराम पुनिया जांडली जयंती

 28 Mar चौधरी बंसीलाल लेघा पुण्यतिथि

 29 Mar तेजिंदर सिंह मान (बब्बू मान) जन्मदिन


 2 April शहीद कवि फौजी जाट मेहर सिंह की पत्नी श्रीमती प्रेमकौर की पुण्यतिथि

 6 April महाराजा हाथी सिंह तोमर जयंती (अंग्रेजी कैंलेंडर के अनुसार 6 अप्रैल भारतीय कैंलेंडर के अनुसार चैत्र शुक्ल अष्टमी को जोकि 2025 के वर्ष में 6 अप्रैल को‌ है)

 6 April राजा नाहर सिंह तेवतिया जयंती

 6 April चौधरी देवीलाल सिहाग पुण्यतिथि

 7 April चौधरी सेठ छाजूराम लाम्बा पुण्यतिथि

 8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह संधु अपने साथियों के साथ सेंट्रल असेंबली में पहुंचे और सेंट्रल असेंबली में बम फेंका व इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाए जिससे पुरे देश में आजादी की चिंगारी की क्रांति फैल गई थी।

 10 April राय बहादुर चौधरी अमर सिंह सिरोही जयंती

 13 अप्रैल शहीद मेजर अमित देशवाल बलिदान दिवस

 13 April अंतरराष्ट्रीय जाट दिवस

 15 April एयर चीफ मार्शल अर्जन सिंह औलख जयंती

 17 April ठाकुर देशराज सोगरवार पुण्यतिथि (इतिहासकार)

 17 April कृषि वैज्ञानिक डा रामधन सिंह हुड्डा पुण्यतिथि

 21 April हरियाणवी कलाकार दरियाव सिंह मलिक पुण्यतिथि (राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित)

 25 April सरदार प्रकाश सिंह बादल ढिल्लों पुण्यतिथि

 28 April सरदार हरि सिंह नलवा उप्पल जयंती

 29 April राजा महेंद्र प्रताप सिंह ठेंनुआ पुण्यतिथि

 30 APRil सरदार हरि सिंह नलवा उप्पल बलिदान दिवस

 30 APRil शूटर दादी चंद्रो तोमर पुण्यतिथि


 1 May चौधरी निहाल सिंह तक्षक जयंती

 1 May कृषि वैज्ञानिक डॉ रामधन सिंह हुड्डा जयंती

 4 May चूरू स्थापना दिवस संस्थापक जाट राजा चूहरु नैन

 5 May महाराजा जस्सा सिंह संधू रामगढ़िया जयंती

 5 May परमवीर चक्र विजेता कर्नल होशियार सिंह दहिया जयंती

 5 May शहीद कैप्टन सुनील खोखर जयंती

 6 May चौधरी अजीत सिंह तेवतिया पुण्यतिथि

 9 May काबुल विजय दिवस

 10 May दिल्ली विजय दिवस

 10 May चौधरी कुंभाराम आर्य जयंती (सुंडा गोत्र)

 12 May शहीद लांस नायक सरदार सिंह तहलान जयंती

 13 May शहीद करणीराम मील बलिदान दिवस

 13 May शहीद रामदेव सिंह गिल बलिदान दिवस

 13 May भीम सिंह दहिया पुण्यतिथि (इतिहासकार)

 15 May बाबा महेंद्र सिंह टिकैत पुण्यतिथि (बालियान गोत्र)

 16 May कुंवर नटवर सिंह भगौर जयंती

 17 May सूबेदार छोटूराम श्योराण जयंती

 20 May डॉ. जगजीत सिंह राठी जयंती

 24 May शहीद करतार सिंह सराभा जयंती (ग्रेवाल गोत्र)

 25 May बलवीर सिंह सीनियर पुण्यतिथि (दोसांझ‌ गोत्र)

 29 May चौधरी चरण सिंह तेवतिया पुण्यतिथि

 29 May शुभदीप सिंह सिद्धू (सिद्धू मुस्सेआला) पुण्यतिथि


 1 June पंजाब माता विद्यावती कौर पुण्यतिथि

 1 June चौधरी बहादुर सिंह भोबिया पुण्यतिथि

 1 June शहीद कैप्टन पृथ्वी सिंह डागर जयंती

 2 June चौधरी चेतीलाल नौहवार जयंती

 3 June चौधरी भजनलाल मांझू पुण्यतिथि

 6 June सम्राट हर्षवर्धन बैंस जयंती

 6 June शहीद चौधरी ताराचन्द सहारण आईपीएस एसपी जयंती

 9 June सरदार बाज सिंह बल बलिदान दिवस

 11 June शुभदीप सिंह सिद्धू (सिद्धू मूस्सेआला) जयंती

 12 June आगरा विजय दिवस

 15 June राजा देवी सिंह गोदारा बलिदान दिवस

 15 June चौधरी लोठु सिंह निठरवाल जयंती

 17 June राय बहादुर चौधरी अमर सिंह सिरोही पुण्यतिथि

 19 June कर्नल महाराजा सर जगजीत सिंह साहिब बहादुर (आहलूवालिया गोत्र) पुण्यतिथि

 21 June एयर मार्शल अमरजीत सिंह चहल पुण्यतिथि

 27 June शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह पुण्यतिथि

 28 June शहीद चौधरी उदमीराम सरोहा बलिदान दिवस

 29 June सरदार बलदेव सिंह चोकर पुण्यतिथि

 29 June मास्टर चंदगीराम पहलवान कालीरामण

 पुण्यतिथि

 30 June साहिब सिंह लाकड़ा पुण्यतिथि (दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री)


 1 July तारू सिंह संधू बलिदान दिवस

 2 July चौधरी दौलतराम सारण पुण्यतिथि

 3 July दिगेन्द्र कुमार परस्वाल जन्मदिवस

 4 July ठाकुर राजाराम जाट सिनसिनवार बलिदान दिवस

 4 July ठाकुर रामकी चाहर जाट बलिदान दिवस

 8 July महाराज श्री सवाई बृजेंद्र सिंह सिनसिनवार पुण्यतिथि

 8 July शहीद कैप्टन सज्जन सिंह मलिक बलिदान दिवस

 11 July सरदार बलदेव सिंह चोकर जयंती

 12 July दारा सिंह रंधावा पुण्यतिथि

 12 July डॉ. जगजीत सिंह राठी पुण्यतिथि

 17 July फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों जयंती

 17 July एडमिरल सुनील लाम्बा जन्मदिवस

 18 July बाबा शाहमल सिंह तोमर बलिदान दिवस

 19 July शहीद लेफ्टिनेंट रविन्द्र छिकारा बलिदान दिवस

 20 July महाराजा अनंगपाल तोमर जयंती

 21 July खरताराम जाखड़ पुण्यतिथि

 22 July शहीद लेफ्टिनेंट जसमेल सिंह खोखर जयंती

 22 July शहीद फ्लाइट लेफ्टिनेंट दिपिका श्योराण बलिदान दिवस

 22 July शहीद फ्लाइंग ऑफिसर पंकज कुमार नांदल बलिदान दिवस

 23 July परसराम सिंह मदेरणा जयंती

 25 July भगत शिरोमणि कर्माबाई जाट समाधी दिवस

 26 July कैप्टन नीरा आर्य पुण्यतिथि (धामा गौत्र)

 27 July हरफूल जाट जुलानी बलिदान दिवस (श्योराण गोत्र)

 30 July चौधरी शीशराम ओला जयंती

 31 July मोहम्मद रफी (भट्टी गोत्र) पुण्यतिथि


 1 Aug‌ सरदार हरकिशन सिंह सुरजीत बसेरा पुण्यतिथि

 2 Aug किसान केसरी बलदेव राम मिर्धा (राहड़़ गोत्र) पुण्यतिथि

 4 Aug डॉ सरूप सिंह हुड्डा पुण्यतिथि

 6 Aug शहीद लेफ्टिनेंट रविन्द्र छिकारा जयंती

 7 Aug महाराजा जवाहर सिंह सिनसिनवार बलिदान दिवस

 10 Aug नसीब सिंह कुंडू उर्फ़ रूंडा पुण्यतिथि

 10 Aug कुंवर नटवर सिंह भगौर पुण्यतिथि

 14 Aug भगत फूल सिंह मलिक पुण्यतिथि

 14 Aug कैप्टन बॉक्सर हवा सिंह श्योराण पुण्यतिथि

 15 Aug सरदार अजीत सिंह संधू पुण्यतिथि

 20 Aug भक्त शिरोमणि कर्माबाई डूडी जाट जयंती

 20 Aug शहीद पायलट शैफाली चौधरी जयंती (लौर गौत्र)

 22 Aug क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी कुलबीर सिंह संधू पुण्यतिथि

 23 Aug बलराम जाखड़ जयंती

 24 Aug रामनिवास मिर्धा (राहड़़ गोत्र) जयंती

 26 Aug चौधरी बंसीलाल लेघा जयंती

 28 Aug लोक देवता वीर तेजाजी (धौलिया गोत्र)

 वीरगति

 28 Aug चौधरी सचिन तालियान पुण्यतिथि

 28 Aug चौधरी गौरव तोमर पुण्यतिथि

 30 Aug बाबा नाथूराम मिर्धा (राहड़़ गोत्र) पुण्यतिथि


 5 Sep चौधरी मोहर सिंह निर्वाल बलिदान दिवस

 6 Sep महाराजा दलीप सिंह संधवालिया जयंती

 8 Sep बाबा बुद्ध जी रंधावा पुण्यतिथि

 9 Sep जाट आरक्षण नायक राहुल दांगी जयंती

 11 Sep कैप्टन पृथ्वी सिंह डागर बलिदान दिवस

 12 Sep सारागढ़ी विजय दिवस 21 जट्ट सिख

 12 Sep खेजड़ली बलिदान दिवस अमृता देवी बेनीवाल बिश्नोई

 13 Sep स्वामी केशवानंद ढाका पुण्यतिथि

 13 Sep जाट आरक्षण नायक सुनील श्योराण बलिदान दिवस

 14 Sep चौधरी भींयाराम सिहाग जयंती

 16 Sep एयर चीफ मार्शल अर्जन सिंह औलख पुण्यतिथि

 19 Sep शहीद मेजर अनूप सिंह गहलोत जयंती

 20 Sep महाराजा चूड़ामन सिंह सिनसिनवार पुण्यतिथि

 20 Sep चौधरी घासीराम नैन पुण्यतिथि

 22 Sep डोगराई विजय दिवस (जाट रेजीमेंट)

 25 Sep चौधरी देवीलाल सिहाग जयंती

 28 Sep शहीद-ए-आज़म भगत सिंह संधू जयंती

 30 Sep चौधरी गुल्लाराम बेन्दा जयंती


 1 oct प्रताप सिंह कैरों (ढिल्लों गोत्र) जयंती

 4 oct भरतपुर नरेश महाराजा किशन सिंह सिनसिनवार जयंती

 6 oct वीर पुष्कर सिंह पाखरिया (कुंतल तोमर) बलिदान दिवस (भारतीय कैंलेंडर के अनुसार प्रतिवर्ष शरद पूर्णिमा को)

 6 oct बाबा बुद्ध जी रंधावा जयंती

 6 oct तारू सिंह संधू जयंती

 6 oct चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत (बाल्याण गोत्र) जयंती

 6 Oct चौधरी भजनलाल मांझू जयंती

 8 Oct चौधरी निहाल सिंह तक्षक पुण्यतिथि

 10 oct चौधरी भींयाराम सिहाग पुण्यतिथि

 12 oct अमर शहीद बख्तावर सिंह ठाकरान बलिदान दिवस

 12 oct चौधरी गुल्लाराम बेन्दा पुण्यतिथि

 16 Oct चौधरी घासीराम मलिक पुण्यतिथि

 20 oct चौधरी नाथूराम मिर्धा (राहड गोत्र) जयंती

 20 Oct शहीद लांस नायक सरदार सिंह तहलान बलिदान दिवस

 22 oct महाराजा दलीप सिंह संधवालिया पुण्यतिथि

 22 Oct राणा उदय भानु सिंह बमरौलिया पुण्यतिथि

 24 oct चौधरी रामदान डऊकिया पुण्यतिथि

 26 oct चौधरी कुंभाराम आर्य (सुंडा गोत्र) पुण्यतिथि

 26 oct चौधरी रामनारायण जिंदा (मायला गोत्र) पुण्यतिथि


 5 Nov वीर पुष्कर सिंह पाखरिया (कुंतल तोमर) बलिदान दिवस (भारतीय कैंलेंडर के अनुसार प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा को)

 9 Nov मास्टर चंदगीराम पहलवान कालीरामण जयंती

 13 Nov शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह (संधवालिया गोत्र) जयंती

 13 Nov शहीद बाबा दीप सिंह संधू बलिदान दिवस

 16 Nov शहीद करतार सिंह सराभा (ग्रेवाल गोत्र) बलिदान दिवस

 19 Nov दारा सिंह रंधावा जयंती

 20 Nov जाट रेजीमेंट स्थापना दिवस

 24 Nov चौधरी छोटूराम ओहल्याण जयंती

 24 Nov कर्नल महाराजा सर जगजीत सिंह साहिब बहादुर (आहलूवालिया गोत्र) जयंती

 25 Nov शहीद कैप्टन सज्जन सिंह मलिक जयंती

 27 Nov ब्रिगेडियर होशियार सिंह राठी बलिदान दिवस

 28 Nov सेठ चौधरी छाजूराम लाम्बा जयंती

 29 Nov स्वतंत्रता सेनानी अमर शहीद कवि जाट मेहर सिंह दहिया INA में भर्ती

 29 Nov महाराजा बलराम सिंह तेवतिया बलिदान दिवस

 30 Nov महाराजा बच्चू सिंह (गिर्राज शरण सिंह सिनसिनवार) जयंती


 1 Dec राजा महेंद्र प्रताप सिंह ठेंनुआ जयंती

 1 Dec महाराजा श्री सवाई बृजेंद्र सिनसिनवार जयंती

 2 Dec कैप्टन ईशर सिंह संधू पुण्यतिथि

 4 Dec शहीद मेजर अनूप सिंह गहलोत बलिदान दिवस

 5 Dec राजा मानसिंह सिंह सिनसिनवार जयंती

 5 Dec कर्नल पृथ्वी सिंह गिल पुण्यतिथि

 6 Dec परमवीर चक्र विजेता कर्नल होशियार सिंह दहिया पुण्यतिथि

 8 Dec सरदार प्रकाश सिंह बादल ढिल्लों जयंती

 11 Dec कर्नल पृथ्वी सिंह गिल जयंती

 12 Dec शहीद लेफ्टिनेंट जसमेल सिंह खोखर बलिदान दिवस

 14 Dec शहीद फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों बलिदान दिवस

 14 Dec शहीद फ्लाइट लेफ्टिनेंट दिपिका श्योराण जयंती

 15 Dec चौधरी शीशराम ओला पुण्यतिथि

 16 Dec शहीद ब्रिगेडियर होशियार सिंह राठी जयंती

 16 Dec कैप्टन बॉक्सर हवा सिंह श्योराण जयंती

 23 Dec चौधरी चरण सिंह तेवतिया जयंती

 24 Dec मोहम्मद रफी (भट्टी गोत्र) जयंती

 25 Dec महाराजा सूरजमल सिनसिनवार बलिदान दिवस

 25 Dec एयर मार्शल अमरजीत सिंह चहल जयंती

 26 Dec चौधरी सिकंदर हयात खान (चीमा गोत्र) पुण्यतिथि

 30 Dec कैप्टन ईशर सिंह संधू जयंती

 31 Dec बलवीर सिंह सीनियर जयंती (दोसांझ‌ गोत्र)

 Calender Post credit:- @sagar_khokhar_2000

विशेष नोट:- कैलेंडर में दिए गए जिस भी नाम के साथ भारतीय कैलेंडर के अनुसार लिखा हुआ है उनकी तारीख हर साल बदल जाएगी।


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Tuesday, 25 March 2025

कुंडली मिलान, नाड़ी-दोष ढोंग है, भरम मात्र है; अपने बच्चों की शादी हेतु इसको प्रयोग ना करें - ब्राह्मण सभा, NCR

 इतने दिन दुसरों का बेवकूफ बनाने इन लोगों (क्योंकि जब अपनों पर इसके दुष्प्रभाव पड़े तो बोले, अन्यथा धंधा इसी से आ रहा है/था; इसलिए ऐसे दोगले रवैये को ही फंडीपन कहा जाता है व् ऐसा रवैया रखने वालों को ही पुरखों ने फंडी कहा है; व् यह हर जाति में हो सकते हैं, फ़िलहाल उदाहरण उनका है, जिनकी यह वीडियो है; हालाँकि यह जागरूक लोग लगते हैं, परन्तु यह फंड फैलाने में इन्हीं के भाई-बंधु अग्रणी मिलते हैं) को जब ख़ुद के फैलाए अंधविश्वास और पाखंड का दुष्प्रभाव अपने समाज के युवक-युवतियों पर दिखने लगा तो अपनी सभा में खुद कबूल किया कि कुंडली, पत्रिका या मंगली, कुछ नहीं होता। इधर जागरूक लोग फंडियो के फैलाए अंधविश्वास और पाखंड का विरोध करते है,तो किसान कमेरे वर्गों के फंडियो के मानसिक गुलाम बने चरण वंदक जागरूक करने वालों के साथ बत्तमजी करते है। अब तो आपको अंधविश्वास और पाखंड में डालने वाले खुद ही इसको अस्वीकार कर अपने बच्चों की शादी करने हेतु इन चीजों को नहीं मानने को कह रहे हैं तो आप क्यों नहीं करते ऐसा?