Thursday 18 April 2024

एक रयात के ब्यछड़ण तैं, दो पक्षी क्यैल हो लिए - अंजणा का मुँह देखें मंत्री, बारहा साल हो लिए!

वही 12 साल हो लिए आज निडाना हाइट्स की वेबसाइट को बने हुए, इस लिंक से विजिट करें साइट पर - www.nidanaheights.com

 

सूर्यकवि दादा फौजी जाट मैहर सिंह जी की यह रागणी याद आई, जब पीछे मुड़ के देखा कि निडाना हाइट्स की वेबसाइट को बने तो आज 19 अप्रैल 2024 को पूरे बारहा साल हो लिए| वेबसाइट का लिंक व् उस साल मुख्य मीडिया अखबारों व् पत्रिकाओं द्वारा कवर की गई इस वेबसाइट की न्यूज़-स्टोरीज सलंगित कर रहा हूँ| मई-जुलाई 2012 में इसको सबसे पहले मीडिया कवरेज देने वाले, भाई रवि हसीजा (दैनिक जागरण के प्रथम पृष्ठ पर), भाई नरेंद्र कुंडू आज समाज के हरयाणा पेज पर व् मैडम मोनिका गोयल, Samvad Magazine, Department of Public Relations, Govt. of Haryana में स्टोरी पब्लिश करने पर, इनके प्रति gratitude आज भी कायम है; तीनों की कॉपी सलंगित हैं| 


19 अप्रैल 2012 से ले 2020 तक वेबसाइट को निरंतर अपडेट करते रहे, परन्तु फिर यूनियनिस्ट मिशन (2015) को खड़ा करने से होते हुए, निडाना में हमारी लाइब्रेरी टीम बनने से लाइब्रेरी (2018) स्थापित करते हुए, उज़मा बैठक (2020) आ गई और सिलसिला शुरू हुआ, पहले से रिसर्च व् पुरख-दर्शन से अर्जित ज्ञान के आधार पर 1600 पन्नों जितनी लिखित सामग्री (PDF टाइप के डाक्यूमेंट्स अलग) लिए निडाना हाइट्स वेबसाइट के तथ्यों को साथ-साथ review व् rectify करने का| हालाँकि review व् rectify का काम एक पुस्तक के रूप में लगभग पूरा भी हुआ पड़ा है, इसके PDF के हिंदी-इंग्लिश वर्जन जारी भी हो चुके हैं परन्तु व्यक्तिगत व् प्रोफेशनल व्यस्तताओं के चलते, इस पुस्तक को पब्लिश करने व् निडाना हाइट्स को इसके हिसाब से अपडेट करने का 2020 के बाद से अवसर ही नहीं लग सका| 


पिछले 4 साल से बिना किसी अपडेट के चलते हुए भी वेबसाइट अब एक ऐसी ब्रांड बन चुकी है कि विगत सवा दो सालों में 4 लाख 52 हजार बार गूगल सर्च में लोगों के सामने आई है व् औसतन पहले 10 पेजों में रैंक करती रही है (आंकड़ों का स्क्रीनशॉट सलंगित है)| इन विगत सवा दो सालों में "दादा नगर खेड़ा" "हरयाणवी कल्चर", "haryanvi language words", "100 sentences in haryanvi", "haryanvi words", "dhanana", "malik caste in haryana", "haryanvi language sentences", "dada kheda ka itihas", "haryanvi slangs", "dujana caste", "haryanvi sentences", "खाप" आदि ऐसे कीवर्ड्स हैं जिनपे टॉप सर्च में रहती है, इन कीवर्ड्स का चार्ट भी सलंगित है| 


यह वेबसाइट, 12 सालों से आज तक मात्र एक ऐसी वेबसाइट का गौरव लिए चल रही है जो हिंदी, अंग्रेजी के साथ-साथ हरयाणवी वर्जन की बनी वेबसाइट है| आशा है कि जल्द वक्त आएगा जब इसको नए शोध से निकल के आये ज्यादा दुरुस्त तथ्यों के साथ अपडेट किया जाएगा| 


जय यौधेय! - फूल मलिक








मुस्लिम युनिवर्सिटी से फ्री की कोचिंग ले के 8 हिन्दू IAS बन गए!

मुस्लिम युनिवर्सिटी से फ्री की कोचिंग ले के 8 हिन्दू IAS बन गए, कोई ऐसी ही खबर किसी हिन्दू शिक्षा संस्थान की दिखाओ भाई; स्टेटस पे लगानी थी:


इस लिस्ट को देखिए, यह Jamia Millia Islamia University की Free IAE/IPS Residential Coaching Academy Center for Coaching and Career Planning के UPSC-2024 के नतीजों की है| कोई फीस नहीं लेते, बिल्कुल फ्री कोचिंग करवाते हैं व् 31 IAS सेलेक्ट हुए हैं इस बार इनके यहाँ से| ख़ास बात यह है कि इन 31 में 8 हिन्दू हैं| 


जरा तुलना कीजिए, ऐसे ही आपके धर्म के नाम पे चलने वाली तमाम यूनिवर्सिटियों की, शायद कहीं कोई मिल जाए इस तरीके से देश का भविष्य तैयार करती हुई| और नहीं तो धर्म के नाम पे सबसे बड़ी जानी जाने वाली बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में ही देख लीजिए क्या हो रहा है? 


यह फर्क होता है, शिक्षा स्थलों को शिक्षा स्थल रहने देने व् उनको नश्लीय-धार्मिक नफरत-हेय-घृणा के अड्डे बनने देने में| और जैसा माहौल इन्होनें धर्म के नाम पे आज बना दिया है, कोई कल्पना भी कर सकता है किसी हिन्दू यूनिवर्सिटी में इस तरह की कोचिंग से 8 मुस्लिम IAS यूँ-फ्री-फंड में बनने दिए जाने की? खैर, इस तरह सफल बनाने के लिए मुस्लिम तक बात तो छोड़ो, यह हिन्दू लड़के-लड़कियों को क्या बना रहे हैं, इतना ही झाँक के देख लिया जाए; तो 80% माँ-बाप इस तरह की तमाम युनिवेर्सिटी-कॉलेज-स्कूलों में अपने बच्चे पढ़ाना भी पसंद नहीं करेंगे| 


कभी ऐसा दौर हरयाणा-यूपी-दिल्ली-पंजाब-उत्तरी राजस्थान में हिन्दू-मुस्लिम-सिख फौजियों-उदारवादी जमींदारों के चंदों से चलने वाले तमाम "जाट शिक्षण संस्थानों" का भी होता था; आज कहाँ खड़े हैं सिंहावलोकन का विषय है| व् क्यों इस दुर्गत में आन फंसे हैं वह भी देखने की बात है| यह अपने माँ-बाप के पैसों व् मेहनत से यानि व्यक्तिगत प्रयासों की सफलता हासिल करने वाले बच्चों की लिस्ट को समाज की सफलता के नाम पे दिखा के खुश होने वाले, जरा समझें इस मर्म को; क्या थे पुरखों के सामूहिक जतन के सिस्टम-तंत्र थारे व् थमने उनको कहाँ से कहाँ पहुंचा दिया?


जय यौधेय! - फूल मलिक




Wednesday 17 April 2024

ऐन चुनावों के वक्त "अमर सिंह चमकीला" फिल्म की आड़ ले कर जातिवाद की खाई को चौड़ी कर वोटों में भुनाने का षड़यंत्र हर पंजाबी-हरयाणवी को समझना चाहिए!

पंजाबी-हरयाणवी इसलिए क्योंकि सबसे ज्यादा असर इस फिल्म का इसी एरिया में होना है| तो आखिर क्या ऐसा नैरेटिव खड़ा करना कि "चमकीला की हत्या इसलिए हुई कि वह दलित थे" मात्र संयोग है? नहीं एक भरापूरा प्रयोग है, इन इलाकों में नासमझ व् कोरी भावनाओं पर चलने वाले लोगों को बाँट के उनके वोट खाने का; अन्यथा जिसमें अक्ल होगी वह इन नीचे दिए तथ्यों पर जरूर विचरेगा:  


चमकीला की हत्या 8 मार्च 1988 को हुई - वह दलित थे।

लेकिन उसी साल ..... 

23 मार्च 1988 को पंजाबी के प्रमुख क्रांतिकारी कवि अवतार सिंह पाश की हत्या हुई - वे जट्ट थे। 

6 दिसंबर 1988 को पंजाबी फिल्मों के मशहूर एक्टर-निर्माता-निर्देशक वरिंदर (धर्मेंद्र के भाई) की हत्या हुई थी - वे भी जाति से जट्ट थे।

 

तो अगर चमकीला की हत्या दलित होने के कारण की गई थी तो अवतार सिंह पाश और वरिंदर क्यों गोलियों के शिकार बनाए गए थे?


चमकीला बेशक दलित थे पर मकबूल सबसे ज्यादा जट्टों-जाटों में थे। उनके तकरीबन तकरीबन सारे अखाड़ों के आयोजक जट्ट-जाट बिरादरी के लोग होते थे।

एक और बात.. पंजाबियों में बहुत ज्यादा आदर और सम्मान पाने वाले पुराने दौर के सबसे बड़े गायक माननीय लाल चंद यमला जट्ट जी भी दलित जाति के थे - चमार वर्ग से थे। राज गायक की उपाधि से नवाजे गए पंजाब के महान गायक हंसराज हंस  भी दलित हैँ। हनी सिंह, दलेर मेहँदी व् मीका भी दलित हैं। कौन सुनता है इनको सबसे ज्यादा जाट व् जट्ट ही ना? 


तो कब जाएगी तुम्हारी यह कुढ़ाळी ब्याण, कुत्ते दुम तुम कभी सीधे मत होना! 


जय यौधेय! - फूल मलिक

Sunday 14 April 2024

आंधी चढ़ी, अंधोड़े आए

 रापट रोड़ भंभूळे आए।

गोळ मोळ घूम्मै जणू फिरकी
झाड़ सुधां ले सूळे आए।
गोस्से उडे, उडी थेपड़ी
रेतम-रेत सबेरे आए।
टिब्बा ठाकैं कड़ कै उपर
बादळ काळे भूरे आए।
किते चुप, किते मारैं दे कैं
दिन बैसाख के पूरे आए।
ओळे बरसैं, बरसै पाणी
ले अंबर कुए झेरे आए।
किसकै रोकैं रुक्या राम यो
बादळ जणू गभेरे आए।
चलै थ्रेशर आँख मींच कैं
लामणियाँ के रेळे आए।
बाळ तै उल्टा हाळी चाल्लै
सोळे हो दिन ओळे आए।
हाल्लै शीशम, टूटैं डाळे
खड़े नाज पै ढोरे आए।
बिन ठाए चलैं भरोटी
फोल्ले- फोल्ले पूळे आए।
खड़ी फसल म्हं दिया पसारा
गिंहुआ नै डडमेड़े आए।
एक झोकैं म्हं दिया बगा कैं
बख्त ये धूळम धूळे आए।
रणी गिंहू की सिर धर कैं
गाळ गळी म्हं तूड़े आए।
आंगे- बांगे उड़े कागले
दिन धोळै अंधेरे आए।
रुळदी फिरदी हांडैं टटीहरी
टेम ये तातै सीळे आए।
माणष डरजै, छुलै काळजा
बर्बादी के मेळे आए।

Author: Sunita Karonthwal

Saturday 13 April 2024

आज सविंधान दिवस पर बाबा साहेब आंबेडकर जी को नमन करते हुए, 2024 लोकसभा चुनावों बारे कुछ चेतावनियां!

पहले इलाज: नीचे 3 बिंदुओं में फंडियों द्वारा की गई "कान-फुंकाई" के "कान-झड़ाई" इलाज बता रहा हूँ; जिसको भी संविधान की फिक्र है, वह यह अपने-अपने घरों-गली-मोहल्लों में जरूर करे| 


क्योंकि यह जो आज का सविंधान दिवस मना रहे हो, खुशियां आदान-प्रदान कर रहे हो, कहीं यह आखिरी बार तो नहीं; क्योंकि तीसरी बार इनको और बना दिया और पता लगा अगली साल सविंधान ही नहीं छोड़ा (वैसे छुपे रूप से अभी भी कुछ छोड़ नहीं रखा, सविंधान में), आज जैसी खुशियां मनाने को? इसलिए एक जो सबसे जरूरी चीज है, ध्यान में लानी व् analyse करनी है, वह समझें नीचे के तीन बिंदुओं से:


1 - यह जो उत्तर-पश्चिमी भारत में किसान, सत्तारूढ़ वालों की रैलियों का विरोध कर रहे हैं; सत्तारूढ़ वाले आपको इनको एक जाति विशेष वाले बता के आपके "कान में फूंक मार रहे होंगे" कि इनका तो काम ही है हमारा विरोध करना| मात्र इतना मान के इनसे छिंटक के मत बैठना; क्योंकि यह तो अपना फर्ज पूरा कर रहे हैं आपको चेताने का, क्योंकि मसला सिर्फ खेती-किसानी जितना नहीं है; कल को जब सविंधान से ले आरक्षण, नौकरियों से ले लेबर अधिकार सब पर रन्दा फेरेंगे ये (जो कि छुपे रूप से तो काफी हद तक फिर भी चुका है, बस औपचारिक घोषणा के रूप में पर्दे से बाहर आना बाकी बचा हुआ है) तो फिर याद करते हुए हाथ मलने के अलावां कुछ नहीं बचेगा कि किसान तो सही कर रहे थे, हम ही नहीं उठे| किसान तो सही प्रेरणा दे रहे थे कि अभी वक्त है विरोध करो, परन्तु हमने ही सत्ता वालों की कान-फुंकाई मानी| 


2 - अगर अभी भी तथाकथित "इस बनाम उस" यानि "35 बनाम 1" टाइप वाली "कान-फुंकाई" में ही बहना है तो जरा सम्भल के| जरा सोच के देखें कि इस 1 में ऐसा क्या है जो इनकी बुराई करने वालों को हमें प्राइवेट में आ के इनसे डराने की जरूरत पड़ती है? व् जिस बात को ले के यह हमें 1 से डराते हैं उसको यह पब्लिकली क्यों नहीं बोल सकते; तो क्या यह खुद 1 से डरते हैं परन्तु उस खुद के डर को निकालने का जरिया हमें बनाते हैं? या जो हमें ऐसे प्राइवेट में एक से छुपा के चुगली के जरिए बताया जा रहा है वह सच है ही नहीं, व् उसको एक ने सुन जान लिया तो इनके इस तथाकथित अपनेपन की पोल-पट्टी खुल जाएगी; क्योंकि धरातलीय सच्चाई इससे बिलकुल भिन्न है? ऐसे बुराई कहें या चुगली कहें या कान-फुंकाई कहें, यह तो उसी की जाती है ना जिससे करने वाले को ही "inferiority complex" हो? इनको यह complex है तो रहने दो, आपको 1 से कोई शिकायत है तो सामने आ के कह सकते हो| बुजुर्गों से सुनते थे कि जिसकी पीठ पीछे आलोचना होती हो, कान-फुंकाई होती हो; उसमें कोई ना कोई गुण होता है, जो चुगली करने वाला चाह कर भी हासिल नहीं कर सकता, तो कान-फुंकाई करने लगता है| तो बचें इससे व् अपने समाज को बचावें; क्योंकि ऐसा ना हो कि बाद में पता लगे कि जिस एक बारे कान-फुंकाई की जा रही थी, उसका तो आपकी लाइफ में उस बंजारे वाले कुत्ते वाला महत्व था (तो था ही अगर ज्यादा नहीं), जिसको मार के बंजारा बाद में रोया था| तो इनकी इस चुगली में आ के अपने इस एक को खुद ही मत देना; वरना बाद में पछताने के अलावा कुछ ना मिलेगा| 


3 - यह आपको एक वालों के सीएम के दौर गिनवाते हैं, उनमें जो कमियां रही होंगी, वह गिनवाते हैं| तो भाई सिर्फ इसी एक तरफा एनालिसिस पे चल के निर्णय कर लोगे? तुलना नहीं करोगे, बाकियों से? उनसे जो 75 साल की आज़ादी काल में न्यूनतम 50 साल तो पीएम रहे? अलग-अलग राज्यों में सीएम रहे? कभी करके देखना, इस एक वालों ने ही सबसे ज्यादा एससी-एसटी-ओबीसी के भले के काम किए मिलेंगे व् ऐसे ऐतिहासिक काम किए मिलेंगे कि सपरे आएँगे आपको| सबसे बड़ा एक काम तो हरयाणा-पंजाब के परिवेश में बता भी देता हूँ, सर छोटूराम की राजनीति के जमाने से तुलना करना कि चाहे खाली जमीनें आवंटित करने का काम रहा हो, या खाली प्लाट बांटने का, या परस-चौपाल बनाने का; अगर दलित-ओबीसी समाजों के लिए इस एक वाली बिरादरी से आने सीएमओं ने सबसे ज्यादा ना किए हों व् बाकियों ने इनकी तुलना में नगण्य किए हों तो समझ जाना कि किस स्तर की "कान-फुंकाई" की जा रही है आपकी| रोटी-कपड़ा-मकान, में रोटी कमाने के लिए जमीन व् रहने के मकान चाहिए; यह जो आपको 5 किलो राशन वाले हैं, इनसे पूछना जरा, आपके मकान-खेती के लिए कितनी जमीनें आपको आवंटित करी इन्होनें पिछले दस सालों में? तब आप सही तुलना कर पाओगे कि सिर्फ 5 किलो राशन में टरकाने वाले सही या वह सही जो 5 किलो राशन तो देते ही थे, अपितु साथ में साथ 100-100 गज के प्लाट, सर छोटूराम व् सरदार प्रताप सिंह कैरों जैसे तो खाली पड़ी जमीनें भी आवंटित कर देते थे| होंगी बुराईयाँ एक वालों में भी परन्तु क्या उनके जितनी, जो इस एक के लिए आपके कान में फूंक के जाते हैं; ना एक के आगे यह बातें कहने जितनी सच्चाई इनकी इन कान-फुंकाई की बातों में व् ना यह एक जितने पाक-साफ़| पाक-साफ़ हैं तो क्यों नहीं पब्लिक डिबेट में चैलेंज दे लेते एक को एक की इन्हीं तथाकथित बुराइयों पे, जो इनको एक से छुपा के आपके कान में फूंकनी पड़ती हैं? 


इसलिए, निकलो बाहर इस फंडियों की कान-फुंकाई से; सवाल करो इनसे, और पूछो कि इन बातों में सच्चाई है तो क्यों नहीं पब्लिक में बोल के एक को चैलेंज करते व् जवाब मांगते? हमें क्यों कान में कहने चले आते हो यह बातें? अन्यथा यह तीसरी बार आए और  समझो, आपके हाथ से सविंधान-आरक्षण सब गया| उन बाबा आंबेडकर का दिया सविंधान जिसके लिए आज का दिन मना रहे हो, खुशियां आदान-प्रदान कर रहे हो| 


जय यौधेय! - फूल मलिक

Friday 12 April 2024

पंजाबी सिनेमा भूत-भूतनियों के कांसेप्ट की चपेट में इतना पहले कभी ना था, जितना आजकल चल रहा है!

पंजाबी फिल्मों में आजकल भूत-भूतनियों के कांसेप्ट की जैसे बाढ़ सी आई हुई है; हर दूसरी फिल्म में यह सब्जेक्ट जरूर है| फंडी फाइनेंसिंग है इसके पीछे, 'पिछले दरवाजे से लोगों के दिमागों में शक-शुबाह डलवा के लोगों को भरम की लाइन पे ले आने की'| ताकि जो नहीं भी मानते हों, वह भी imagery-memory में इन्हीं चीजों के relfection देखते रहें| उससे फिर जो-जो भरम में आएगा, यह उसको अपनी अंटी में लेते जाएंगे; यही तरीके हैं इनके आपसे लड़ाई लड़ने के| ड्रग्स बेइंतहा उतरवा दो, शिवजी जैसे गॉड को नशेड़ी-सुल्फेडी बना-बढ़ा दो, भूत-भूतनियों के किस्से फिल्मों में बढ़वा दो; आदि-आदि| जबकि हमारे यहाँ कल्चर यह रहा है कि किसी को ऐसे सपने या भरम भी होते हैं तो उसको वह भुलवाने की कोशिशें की जाती हैं| 


इस मामले में ईसाईयों का 31 अक्टूबर वाला Halloween का दिन, यानि भूत-भूतनियों का दिन सही तरीका है; लोगों के भीतर से ऐसी भ्रांतियों से संबंधित imagery-memory को खेल-खेल में साफ़ करने-करवाने का| हालाँकि फ़िल्में इस विषय पर हॉलीवुड भी बनाता है; परन्तु 100 में कोई 1| पंजाबी सिनेमा में ऐसी फ़िल्में पहले विरली ही दिखती थी, परन्तु आज के दिन जो बाढ़ आई हुई है, यह चिंता का विषय होनी चाहिए; पंजाबी समुदाय समेत, हर उस के लिए जो पंजाबी सिनेमा देखता है| बॉलीवुड की हालत इस मामले में सबसे ज्यादा खस्ता रही है, यह सिर्फ फिल्म ही नहीं वरन टीवी सेरिअल्स तक में यह कांसेप्ट बढ़ा-चढ़ा के दिखाते हैं| हरयाणवी यूट्यूबर्स भी आजकल इस विषय पर काफी कंटेंट निकाल रहे हैं; हर किसी की वीडियो सीरीज में यह सम्मिलित है, कोई हरयाणवी फिल्म मेकर, युट्यूबर इससे अछूता नहीं; मैं इसको इन पर बॉलीवुड व् फंडियों का डायरेक्ट कनेक्शन होंगे, कारण मानता रहा हूँ| परन्तु पंजाबी सिनेमा को क्या हुआ है, वहां तो दस गुरुओं का सिस्टम है; जो भूत-भूतनियों से लगभग दूर ही समझा जाता है| 


जय यौधेय! - फूल मलिक

Monday 8 April 2024

Charisma of 1938's Mortgaged Land Recovery Act in 2024, solved a matter of 125 years old!

86 साल पहले, सन् 1938 में सर छोटूराम ने पंजाब में किसानों के हित के लिए जो कानून बनाए थे, उन कानूनों को संयुक्त पंजाब के इतिहास के सुनहरे कानूनों के रूप में याद किया जाता है। उन चार कानूनों में से एक ”कृषि उत्पाद मंडी अधिनियम - 1938" को बचाने के लिए किसानों ने अभी एक साल तक आंदोलन चलाया ही था। उसी दौरान एक और कानून बनाया थे ”पंजाब बंधक भूमि बहाली अधिनियम - 1938”, जिसकी बुनियाद पर कुरुक्षेत्र जिले के माजरी कला और ठोल के एक किसान परिवार को 125 साल पहले गिरवी रखी गई जमीन वापिस मिली। 


वरिष्ठ आईएएस अधिकारी खेमका ने 1938 में सर छोटूराम द्वारा पेश किए गए एक कानून (पंजाब बंधक भूमि बहाली अधिनियम, 1938) का भी हवाला दिया। खेमका ने कहा, "यह ध्यान में रखना चाहिए कि 1938 का अधिनियम भूमि मालिकों को बंधक भूमि पर कब्ज़ा वापस दिलाने और किसानों को सूदखोरी से राहत प्रदान करने के लिए एक लाभकारी कृषि कानून है।" 


सर छोटू राम द्वारा पेश किए गए कानून के बाद, किसानों को अपनी गिरवी रखी गई भूमि की बहाली के लिए केवल जिला कलेक्टर को एक आवेदन प्रस्तुत करना था। वर्तमान मामले में भी, मूल भूमि मालिक (बीरू) के उत्तराधिकारियों ने अक्टूबर 2018 में कलेक्टर (पेहोवा एसडीएम) के समक्ष भूमि की बहाली के लिए एक याचिका दायर की थी।


News brief by: Rakesh Sangwan




Saturday 6 April 2024

गुडगांव गजेटियर –1910

हिंदू–मुला –सिख जाटों में शादियां होती थी। यानी कि जाटों में आपसी धार्मिक छुआछूत इतनी नहीं थी!

1870 के बाद ये प्रोपगैंडा जोरों से चलाया गया कि तलवार के बल पर मुस्लिम बनाए गए!
भाटों अनुसार जाटों के नो लाख गोत? यानी कि भाटो को जाटों की कोई ज्यादा जानकारी नहीं थी, नॉर्थ वेस्ट में जट बहुत बड़ा समाज था तो इन्होंने अंदाजे से गप्प पेल दी? और दूसरा ये कि इससे ये भी अंदाजा लगता है कि भाट जाटों के संपर्क में ज्यादा पुराने नहीं हैं।

By: Rakesh Sangwan



Wednesday 27 March 2024

खेड़े के गौत की सूचिता - एक micro-management है पुरखों का; हर समूह को अपने ध्वज का गणराज्य होने का गौरव देने का|

 यानि निडाना खेड़ा है मलिक गौत के जाट का, या गर्ग गौत के बनिया का, या "रंगा" गौत के रविदासी का या "भारद्वाज गौत " के बाह्मण का तो यह इनको इस बात का गौरव लेने-देने के लिए है कि कहीं तुम्हारा खुद का भी नाम है| और यही वजह है कि खापलैंड पे लगभग हर गौत का खेड़ा मिलता ही मिलता है| 


micro-management इसलिए कि आज वाले जहाँ जातीय-समरसता तक रखने में लटोपीन हुए जाते हैं, म्हारे बूढ़े उससे भी एक कदम भीतर यानि जाति के भीतर गौत तक कैसे शांत रख के बसाने हैं; उस तक का सिस्टम बांधे हुए थे| इसीलिए गौत इतना संजीदा विषय रहता है हमारे लिए| आखिर कौन नहीं चाहेगा कि ऐसा सिस्टम हो जिसमें उसको जितना सम्भव हो उतने micro स्तर तक बराबर के मान-सम्मान से देखा-बरता जाए? 


क्या ही मुकाबला करेंगे यह आज तथाकथित एकता-बराबरी लाने के नाम पे जाति तक मिटा देने का राग अलापने वाले| ये म्हारे पुरखे इनके फूफे, जाति तो छोडो, गौत तक की micro-management करते थे व् ख़ुशी-ख़ुशी रहते थे, अपने-अपने खेड़ों में, अपने-अपने गौत के साथ


Jai Yaudheya! - Phool Malik

Tuesday 26 March 2024

दोहलीदार, बूटीमार, भोंडेमार और मुकरारीदार भूमि अधिनियम 2010 पर मुहर लगाने के लिए हाईकोर्ट का आभार!

 प्रेस विज्ञप्ति


सिर्फ चेहरे बदलने में लगी बीजेपी, सरकार बदलने के मिशन पर चल रही कांग्रेस- हुड्डा


दोहलीदार, बूटीमार, भोंडेमार और मुकरारीदार भूमि अधिनियम 2010 पर मुहर लगाने के लिए हाईकोर्ट का आभार- हुड्डा 

2010 के कानून से ब्राह्मण, ओबीसी व एससी समाज को मिला जमीनों का मालिकाना हक- हुड्डा 


रोहतक, 26 मार्चः बीजेपी ने पहले अपने मुख्यमंत्री का चेहरा बदला और अब लोकसभा के पांच सांसदों का चेहरा बदल डाला। यानी भाजपा सिर्फ चेहरे बदलने में लगी हुई है जबकि, कांग्रेस और हरियाणा की जनता सरकार बदलने के मिशन पर सफलतापूर्वक आगे बढ़ रही है। ये कहना है पूर्व मुख्यमंत्री व नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा का। हुड्डा रोहतक में पत्रकार वार्ता को संबोधित कर रहे थे।


इस मौके पर उन्होंने माननीय उच्च न्यायालय का आभार व्यक्त किया और हरियाणा के ब्राह्मण, ओबीसी व एससी समाज को बधाई दी। क्योंकि, उच्च न्यायालय ने कांग्रेस सरकार द्वारा बनाए गए भूमि सुधार कानून को मान्यता दी है। हाईकोर्ट ने इसे पूरी तरह संवैधानिक करार देते हुए इसकी सराहना भी की है। 

 

दरअसल, बरसों पहले हरियाणा के अलग-अलग गांवों में अन्य स्थान से आकर कई वर्ग बस गए थे। उन वर्गों को पंचायतों व अन्य किसी ने जमीन दान में दी थी। इन वर्गों को दोहलीदार, बूटीमार, भोंडेमार और मुकरारीदार कहा जाता है। इनमें ब्राह्मण, पुरोहित, पुजारी, जांगड़ा ब्राह्मण, नाई, प्रजापत, लोहार, वाल्मिकी, धानक, गोस्वामी, स्वामी, बड़बुजा, धोबी, तेली अन्य कारीगर आदि वर्गों के लोग शामिल थे। बरसों से उस जमीन पर रहने, बसने व खेती करने के बावजूद इन वर्गों को जमीन का मालिकाना हक नहीं मिल पाया था। इसलिए, ना वो इस जमीन को आगे बेच सकते थे और ना ही किसी तरह का लोन ले सकते थे। इन तमाम वर्गों को मालिकाना हक दिलवाने के लिए कांग्रेस सरकार ने भूमि अधिनियम 2010 लागू किया था। 


लेकिन, 2018 में बीजेपी सरकार ने उस कानून को निरस्त कर दिया। कांग्रेस ने इस मुद्दे को बार-बार विधानसभा में भी उठाया। लेकिन बहुमत के जोर पर बीजेपी ने 2010 के कानून में संशोधन करके लाभार्थियों से जमीन वापिस लेने का कानून पास कर दिया। बीजेपी ने लाभार्थियों से जमीन खाली करवाने की कार्रवाई भी शुरू कर दी। इसके बाद ये पूरा मामला कोर्ट पहुंच गया। 


अब माननीय न्यायालय ने ना सिर्फ हमारी सरकार द्वारा बनाए गए कानून को वैधानिक करार दिया है बल्कि इसकी प्रशंसा भी की है। हुड्डा ने न्यायालय के निर्णय पर खुशी का इजहार किया और प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनने पर सर्वसमाज के हित में कार्य करने की प्रतिबद्धता भी जताई। 


पत्रकारों से बातचीत में राजकुमार सैनी को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में हुड्डा ने कहा कि 32 दलों द्वारा दिल्ली में एआईसीसी ऑफिस जाकर इंडिया गठबंधन को बाहर से समर्थन देने की पेशकश की गई है। जहां तक हरियाणा का विषय है, लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी या उसके प्रमुख राजकुमार सैनी का कांग्रेस में शामिल होने का सवाल ही नहीं है। क्योंकि, ना तो वो कांग्रेस में शामिल हुए, ना ही कांग्रेस के सदस्य बने। इसलिए किसी गैर-कांग्रेसी नेता के कांग्रेस पार्टी से चुनाव लड़ने की बात कोरी अफवाह है। कांग्रेस 36 बिरादरी की पार्टी है और वो कभी जात-पात की राजनीति नहीं करती। कांग्रेस में जात-पात और जातिवादी मानसिकता की कोई जगह नहीं है।


प्रदेश में बढ़ते अपराध पर टिप्पणी करते हुए भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि प्रदेश के सामने आज यह सबसे विकराल समस्या है। अपराधी बेखौफ वारदातों को अंजाम दे रहे हैं और आमजन डर के साये में जी रहा है। ऐसा लगता है कि प्रदेश में सरकार नाम की कोई चीज नहीं है। रेलवे रोड पर दो दुकानों को तोड़े जाने के मसले पर भी हुड्डा ने अधिकारियों को निष्पक्ष रहने की नसीहत देते हुए कानूनी कार्रवाई की मांग की। उन्होंने कहा कि रात को 3 बजे कुछ लोगों ने दुकानों को तोड़ डाला, जो कि पूरी तरह गैर-कानूनी है।

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Saturday 23 March 2024

NRI जाटों को विदेशों में फंडियों यानि आरएसएस से जुड़ने का फंडियों द्वारा इन जाटों को दिया जाने वाला हास्यास्पद तर्क!

कई NRI जाट साथियों से बातें होती हैं तो बताते हैं कि फंडी यानि आरएसएस वाले हमें आ के कहते हैं कि देखो बेशक हमारे-तुम्हारे लाख मतभेद व् मनभेद हैं परन्तु अंत में तुमको ईसाई हों, सिख हों या मुस्लिम; सभी जोड़ के तो हम से ही देखते हैं? जब दंगे होंगे या कुछ भी उल्टा होगा तो तुम भी उतने ही इनके अटैक पे रहोगे, जितने कि हम| इसलिए बेहतर है मिलके साथ रहा जाए| यही NRI जाट साथी इनके ऐसे तर्कों पे हँसते हुए बताते हैं कि यह इतना सब कहेंगे परन्तु 

 इनके साथ रहने के आपसी give and take, जाटों को यह कभी नहीं बताते; बल्कि अपना भय और छुपा जाते हैं, हमें ऐसी बेतुकी बातों के तर्क दे के|


इसपे एक NRI जाट साथी ने तो इनकी इस एप्रोच को ठीक उस ऐतिहासिक कल्चरल चुटकुले से जोड़ के बताया मुझे, जो हम बचपन में बहुत सुनते-सुनाते थे| सुनते-सुनाते थे कि एक बार काली अँधेरी तूफानी रात में दो जाट व् एक बनिया, कहीं से गमिणे हो आने की बाट चलते आ रहे थे| बिजलियाँ कड़क रही थी, कच्चे रास्ते थे, झाड़-बोझड़े गमे के दोनों तरफ; इससे बनिये का हिया व् जिया बैठा जाए| परन्तु उसको अपना भय भी जाटों को नहीं दिखाना था, वरना वो उसको डरपोक बोल के उसकी हंसी उड़ाते| तो बनिए ने कहा, "ऐड भाई, दिखे मैंने तो डर लगता नहीं; हड थमनें लागता हो तो एक मेरे आगे हो लो और एक मेरे पाछै"| 


बल्या, इन्नें तो आडै विदेशों में आ के भी यह बाण नहीं छोड़ी; इनको जाटों का साथ भी चाहिए, परन्तु सच्चाई बता के साथ नहीं लेंगे| ऊपर से सितम यह कि यह यूँ सोचते हैं कि हम जाट, इनके इस डर को पकड़ नहीं पाते हैं| अरे भाई जब इतना ही अपना मानते हो तो फिर "give and take" पे क्यों नहीं एकता करते हो? तुम इंडियन मीडिया द्वारा जाट-खाप-हरयाणा की मीडिया-ट्रायल्स रुकवाने; किसानों को MSP दिलवाने, अग्निवीर हटवा के रेगुलर फ़ौज शैड्यूल लगवाने व् पहलवान बेटियों को न्याय दिलवा दो, बीजेपी-आरएसएस को बोल के; हम बदले में तुम्हें सुरक्षा भी देंगे व् तुम्हें खुद के साथ यह दो जाट व् एक बनिया वाले चुटकुला वाली करने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी| 


जय यौधेय! - फूल मलिक   

Friday 23 February 2024

21वीं सदी में खट्टर-मोदी की "रोष-प्रकट हेतु सड़कों पर ट्रैक्टर नहीं ले के चलने" की बात!

21वीं सदी में खट्टर-मोदी की "रोष-प्रकट हेतु सड़कों पर ट्रैक्टर नहीं ले के चलने" की बात बनाम 7वीं सदी के दाहिर-चच द्वारा "जाटों पर हथियार रखने व् घोड़ों पर चलने" का प्रतिबंध दिखाता है कि इन लोगों की मानसिक मंदबुद्धि आज भी उस 7वीं सदी की हीनभावना से पार नहीं पा सकी है:


सातवीं-आठवीं सदी में दो बाप-बेटा राजा हुए, चच व् दाहिर| उन्होंने धोखे से हथियाए अल्पकालिक राज (क्योंकि दाहिर, कासिम से लड़ाई में मारा गया था, फिर कासिम को जाटों ने कूटा था) को निष्कंटक बनाने हेतु, सबसे डेमोक्रेटिक परन्तु सबसे लड़ाकू सामाजिक समूह यानि जाट जाति पर कोई भी हथियार ले कर चलना व् घोड़ों पर चलना, दोनों पर प्रतिबंध लगा दिया था| शायद उसको खामखा के सपने आते थे, कि जाट आते ही होंगे किसी भी वक्त घोड़ों पर सवार हो तेरा राज छीनने| जबकि कोई सच्ची नियत से इनसे पेश आए तो इन जितना डेमोक्रेटिक कोई नहीं| 


अब यही हाल मोदी-खटटर का है| ट्रेक्टर ना हो गए, 7वीं सदी वाले घोड़े हो गए; कि जो सड़कों पर ट्रैक्टर्स नहीं ला सकते| इतिहास मत दोहराओ अपितु  7वीं सदी से आज भी तुम में कायम अपनी इस हीनभावना से पार पाओ; वरना चच-दाहिर की भांति इस देश को ऐसे झंझाल में छोड़ जाओगे कि फिर "इन ट्रेक्टर वाले किसानों" पे ही आ के बात टिकेगी|


मोदी ना सही, खट्टर आप तो इतना रहम करो, अपनी इस स्टेट पे जहाँ तुमने मुसीबत पड़ी में 2-2 बार शरण पाई है; एक बार 1947 में व् दूसरी बार 1984 से 1992 तक वाले काल में| कोई समझाओ व् इन "स्वघोषित कंधे से ऊपर भारी अक्ल के बोझ में भोझ मरते" परन्तु इस ऊपर बताई ऐतिहासिक हीनभावना से ग्रस्त इंसानों को कि थोड़ी बहुत करुणा-मर्यादा बरतें| क्या यह "हरयाणा एक, हरयाणवी एक" के नारे का यही यथार्थ है जो कल खेड़ी-चौपटा में तुमने बरपवाया है या हरयाणा के बॉर्डर्स सील करके हमारे बड़े भाई पंजाब के किसानों पे बरपा रहे हो? आखिर रहेंगे तो यह भी यहीं ना, या इनको कोई अलग देश के मान लिए हो? 


जय यौधेय! - फूल मलिक


Monday 19 February 2024

सिर्फ पंजाब हरियाणा वाले ही क्यों कर रहें हैं?

इस बात का जवाब समझने के लिए मजदूरी के रेट का उदाहरण ले लो। पुरबिए मजदूरी के लिए पंजाब हरियाणा में ही क्यों आते हैं? क्योंकि यहां मजदूरी 500-600₹ है तो वहां 300-400₹ है। पर उन लोगों ने कभी भी अपने राज्यों में इसके लिए आवाज नहीं उठाई। आवाज उठाने के लिए जागरूकता और हिम्मत चाहिए। एक और उदाहरण, हमारे भिवानी में मध्यप्रदेश के रीवा और उसके आसपास के जिलों से कुछ परिवार आए हुए हैं। मजदूरी करने नहीं, भीख मांगने। जब उनसे पूछा कि भीख क्यों मांगते हो, मजदूरी ही कर लो, और भीख ही मांगनी है तो अपने वही मांग लेते? तो उनका जवाब था कि बाऊ जी मजदूरी जितना तो भीख मांगने से ही मिल जाता है, और अपने वहां भीख मांगने में शर्म आती है क्योंकि वहां लोग जानते हैं, यहां कोई जानता नहीं, छह महीने यहां भीख मांगते हैं और उसके बाद वापिस छह महीने अपने गांव जा आते हैं। जबकि मध्यप्रदेश में पिछले पच्चीस साल से श्री राम के बच्चों की सरकार है और इन बेचारों की हिम्मत नहीं कि अपनी सरकार से आंख उठा कर सवाल कर लें। वैसे भी अगर इन्होने सवाल किया भी, तो इन पर वो पेशाब कर देंगे!? हरियाणा पंजाब में किसी की भी सरकार रही हो, यहां आंदोलन होते रहते हैं, यहां ये बहाना नहीं कि फलाने के ग्राफ से लोगों को दिक्कत है इसलिए आंदोलन हो रहा है। यहां किसी फलाने के ग्राफ से नहीं खुद के ग्राफ की फिक्र पहले है और इसी कारण ये राज्य बाकियों की तुलना में समृद्ध हैं। हरियाणा में बुढ़ापा पेंशन जितनी है एमपी, यूपी में उसकी आधी भी नहीं है। ये तो यहां श्री राम वाले इस पेंशन पर वादाखिलाफी कर गए वरना ये पांच हजार के आसपास होती। यूपी एमपी वालों ने तो इसके लिए भी कभी अपनी सरकार से सवाल तक नहीं किया। जो लड़ेगा वो ले रहेगा, वरना छुप छुप कर भीख मांगनी पड़ेगी। वैसे हरियाणा में भी आंदोलन एक जाति विशेष के क्षेत्र में ही होता है बाकी के तो फ्री में ही उसी का फायदा ले जाते हैं। बंसी लाल सरकार रही हो या चौटाला सरकार, बिजली बिलों को लेकर जाति विशेष वाले क्षेत्र के किसानों ने ही आंदोलन किए थे, बाद में उसका फायदा सभी को मिला। और आज हरियाणा में वह लोग भी कहते मिल जायेंगे कि इनको तो फलां सीएम से दिक्कत है। दिक्कत नहीं, इसे हिम्मत कहते हैं, जो अपनों के विरुद्ध भी खड़े होने की रखते हैं।

By: Rakesh Sangwan