Tuesday 20 June 2023

किसान कौम फंडियों की चालों को तोड़ने में संघर्ष ज्यादा व् रिजल्ट कम क्यों ले पाती है?

कारण: फंडी के यहाँ किसान को उलझाए रखने, बर्बाद करने की जॉब पे 24*7 हॉर्स वाले डेडिकेटेड वर्कर्स बैठते हैं; बैकअप देने को ट्रेंड कैडर बैठा है| जबकि किसानों के यहाँ, 10-20% 24*7 हॉर्स वाले डेडिकेटेड को छोड़ के बाकी सब टाइम-पास चेहरा चमकाऊ या बीच के रास्ते बताऊ इन मंचों-धरनों पर ऐन उस वक्त कुकरमुत्तों की तरह उतपन्न हो जाते हैं; जब उस धरने-मसले का हल होना होता है| यही ही नहीं; किसानों में जाति के नाम से भी मेले-सेले करने वालों के मंचों पर यही फिट किये जाते हैं| आपको वही आदमी किसान आंदोलन की टॉप निर्णायक कमिटी में देखने को मिलेगा, वह किसी जाट-गुजर-यादव-राजपूत टाइप सभा में उस जाति के स्टेज के अनुसार उस जाति के हक दिलवाने, उस जाति का सीएम बनवाने आदि की बातें करता मिलेगा और फिर वही आपको ढोंग-पाखंड-आडंबर से जागरूक होने के लेक्चर भी देगा| मतलब क्या गजब के allrounder हैं; होंगे हर जगह पर हासिल किसी भी मसले का एक जगह का भी नहीं करवाएंगे|  


यानि यह लड़ाई डेडिकेटेड बनाम allrounder फिट करने वाले सौदे की है| यही हमारे समाजों की सबसे बड़ी समस्या हो चली है| इसको ही उस कहावत में कहा गया है कि "बाह्मण घणा खा के मरे व् जाट घणा ठा के मरे"| अरे, भाई समाज सेवा चाहते हो परन्तु अपनी क्षमता के अनुसार समाज से न्याय नहीं कर सकते; बस हर जगह तुम्हें ही दिखना है? कौनसी थ्योरी व् प्रैक्टिकल के अनुसार सही है यह चीज? जितना कर-करवा सकते हो उतने तक क्यों नहीं रहते? व् जहाँ तुम नहीं कर सकते, वहां समाज के नए टैलेंट खड़े करने में मदद करो| तुम्हारे सिस्टम से तुम्हारे पुरखों से सीख के आरएसएस; गोलवलकर, हेगडेवार तक सीख गए; बस एक तुम ही नहीं सीखे या सीखना नहीं चाहते| 


जय यौधेय! - फूल मलिक 

Sunday 18 June 2023

पिछले 150 सालों में खाप-खेड़ा-खेत किनशिप के समाजों का आध्यात्मिक सफर व् इसमें पड़े पड़ाव!

1) 1875 से पहले दादा नगर खेड़ों/भैयों/भूमियों का धर्म-वर्ण-जाति रहित धोक-ज्योत सिद्धांत ही इस किनशिप का सबसे बड़ा आध्यात्म था या गैर-वर्णवादी संतों की ही मान्यता थी| इसी वजह से ना यहाँ कभी देवदासियां पनपी, ना विधवा-आश्रम पनपे, ना सतिप्रथा रही व् ना ही प्रथमव्या व्रजसला लड़की को धर्म के नाम पर शुद्धिकरण को धर्माधिकारियों द्वारा उनके गैंगरेप हुए| 

2) यह कोशिशें हुई या इस किनशिप को जलील किया गया तो यह किनशिप बजाए वर्णवादियों के चंगुल में फंसने के इस्लाम या सिख धर्म अपनाना शुरू करने लगी| कैथल-करनाल तक जब सिख धर्म बढ़ता चला आया तो 1875 में इनको खाप-खेड़ा-खेत किनशिप के केंद्रबिंदु यानि दादा नगर खेड़ों के मूर्तीरहित-पुजारीरहित सिद्धांत पर आधारित मूर्ती-पूजा नहीं करने के सिद्धांत का आर्य-समाज लाया गया| इसके यहाँ इतना सुपरहिट होने की वजह ही यह थी कि इसका मूर्तिपूजा नहीं करने का सिद्धांत दादा नगर खेड़ों के मूर्तिपूजा नहीं करने के सिद्धांत से उठाया गया था; वरना महर्षि दयानन्द के किसी विशेष ज्ञान की वजह से यह फैलाना होता तो आर्यसमाज सबसे ज्यादा उनके गुजरात में फैलता| इसमें राम व् कृष्ण को कोई अवतार ना बता के महापुरुष बताते हुए, इन समाजों में इनकी एंट्री की शुरुवात हुई; व् सॉफ्ट-माइथोलॉजी उतारनी शुरू की गई; अवतार नहीं अपितु महापुरुष बता के| 

3) फिर कालिकारंजन कानूनगो व् ठाकुर देशराज जैसे जाट इतिहासकार; शिवजी की जटाओं से जाटों के पैदा होने का कांसेप्ट ले आते हैं; बीसवीं सदी की शुरुवात में|  

4) 1987 तक खेड़े व् शिवाले यहाँ सबसे बड़े रहे; तब 1987 में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया व् टीवी माइथोलॉजी के अंधाधुंध प्रसार में वरदान साबित हुआ व् रामानंद सागर की रामायण व् बीआर चोपड़ा की महाभारत आई| व् लोग इनमें काल्पनिक कहानियों में अपने वंश तक ढूंढने व् जोड़ें लगे| यही वह दौर था जब धर्म-कर्म में आर्य समाज व् खेड़ों के जरिए किसी एक जाति की मोनोपॉली नहीं अपितु हर जाति में शास्त्री थे| जाट जैसी जातियों में आज जो 40-50 साल से ऊपर की उम्र के हैं, इनके 70% के ब्याह-फेरे इनके ही घर-कुनबे के बड़े दादा-ताऊ शास्त्री यानि जाट के ही करवाए हुए हैं व् ऐसे ही अन्य जातियों में| 

5) फिर आई 2014 में तथाकथित वर्णवादियों की सरकार व् इन्होनें सबसे पहला जो काण्ड किया वह यह धर्म-कर्म की मोनोपोली बनाने हेतु "फरवरी 2016 करवाया" जिससे 35 बनाम 1 हुआ व् तमाम किसान-ओबीसी जातियों के कर्म-कांडी शास्त्री वर्ग को मानसिक रूप से डराया व् साइड करवाने की मुहीम चली| जो अब तक लगातार जारी है व् इस हद तक जा चुकी है कि अगर यह लोग जल्द सत्ता से बाहर ना किये गए तो "सविंधान" हटा के "मनुवाद" घोषित रूप से लागू किये जाने को तैयार समझो| 


जय यौधेय! - फूल मलिक

Saturday 10 June 2023

सरजोड़ के संकट से जूझते खाप चौधरी!

 जितने भी खाप-चौधरी बीजेपी-आरएसएस में हैं; इन्हें देख ऐसा अहसास आता है कि जैसे अंग्रेज, राजाओं-नवाबों को पेंशन दे के साइड में बिठा के उनकी सत्ता-राज्य का सारा कण्ट्रोल अपने हाथ में ले लेते थे; ऐसे ही इन चौधरियों की चौधर अपने हाथ ले, इनकी खापों में कोई वैसा कार्य होने ही नहीं दिया जा रहा; जिनके लिए इन चौधरियों के दादे-पड़दादे समाज में जाने गए| और इस संकट की सबसे बड़ी बानगी है पहलवान बेटियों का मसला| बहु-बेटी व् पगड़ी की इज्जत खाप-सिस्टम के लिए वह बॉर्डर लाइन रही है कि जिसके क्रॉस होने पे यही खापें, रियासतों-की-रियासतें मलियामेट करने के लिए जानी गई| बेटी की इज्जत क्रॉस होने पे मलियामेट का सबसे बड़ा उदाहरण आता है कलानौर रियासत का| व् पगड़ी की इज्जत उछालने पर मलियामेट करने का सबसे बड़ा उदाहरण आता है लजवाणा काण्ड का, जो कि जिंद रियासत खा गया था, पटियाला रियासत की ताकत जिसने पंगु कर दी थी| 


वह पुरखे ऐसा शायद इसलिए कर पाए, क्योंकि वह थे कि ब्रह्म-विष्णु-महेश में महेश हम ही हैं; वही महेश जिसका काम होता है ब्रह्मा व् विष्णु के बिगाड़े हुए हो को आर्डर में लाना| इसीलिए तो खापलैंड पे आध्यात्म के नाम पर सबसे ज्यादा या तो दादा खेड़े पाए गए या पाए गए शिवाले| शायद खाप वाले यह भूल गए हैं कि ब्रह्मा-विष्णु-महेश तीनों का 33.33% बुद्धि का हिस्सा जोड़ के ही 100% त्रिमूर्ति का कांसेप्ट बनाया गया है| अगर इसमें सारी बुद्धि एक में ही होती समाज-धर्म को चलाने की तो यह त्रिमूर्ति ना होती| संदेश साफ़ है कि जब त्रिमूर्ति बनाने वाले ने खुद इसमें तीन रखे; व् ना ब्रह्मा को 100% माना, ना विष्णु को व् ना शिवजी को| और आज जो धर्म के मिथ्या व् गैर-जरूरी प्रचार के चलते जो धर्म के नाम पर भीरु बनने का संकट आन खड़ा हुआ है; जिससे शायद बीजेपी-आरएसएस में गए चौधरियों को कोई फंडी कान में फूक रहा होगा कि तुम मत भड़कना वरना धर्म की हानि हो जाएगी; तो ऐसे चौधरी समझ लें कि यह धर्म की हानि नहीं अपितु इस त्रिमूर्ति में एक तुम यानि महेश को, चुप बैठा के महेश की बुद्धि का हिस्सा भी बाकी दो को चढ़ाया जा रहा है| व् आप यह सब जाने-अनजाने में होते देख रहे हो| क्या किसी जांबवंत को बुला के लाएं थारी शक्तियां तुम्हें याद दिलाने के लिए? जरूरत हो तो बता दो, करें कुछ कोशिश? 


वरना क्यों नहीं टीवी-सोशल मीडिया से ले प्रिंट मीडिया हर जगह जब यह देख रहे हो कि बृजभूषण कैसे पहलवान गवाहों को तोड़-तुड़वा रहा है तो क्या आप स्वत: संज्ञान नहीं ले सकते इन खबरों का? क्या आपको आभाष नहीं हो रहा कि यह होता रहा व् अंत तक हो गया तो इसके बाद यह समाज बेटियों-बहुओं के लिए कितना असुरक्षित हो जायेगा? या फिर हाथ ही खड़े कर दो कि हम से नहीं हो रहा; तो समाज कोई और रास्ता देख ले? अन्यथा तो यूँ चल के तो आप लोग अपने पुरखों की आन में बट्टा ना लगवा बैठो? बट्टा, इस खापलैंड पे आज तक जो नहीं था वह शुरू होने का, क्या शुरू होने का; देवदासी, विधवा विवाह निषेध व् आश्रमों में भेजना शुरू, प्रथमव्या व्रजसला स्त्री का धार्मिक शुद्धिकरण के नाम पर गैंगरेप व् सति प्रथा? यह सब क्रेडिट है आपके पुरखों के नाम; व् आप अब इस मुहाने पे आन खड़े हो| या तो शिवजी के अपने रूप में आ के ब्रह्मा-विष्णु की फैलाई सामाजिक अव्यवस्था को सरजोड़ के ठीक कर लो; वरना बट्टा लगवाने को तैयार रहो| 


कॉपी की हुई पोस्ट|   

Friday 2 June 2023

हे री रोवै मत ना भाहण म्येरी, आज त्यरे हिमाती आगे!

 हे री रोवै मत ना भाहण म्येरी, आज त्यरे हिमाती आगे,

और सुण कैं बात त्यरी खेत म्ह, छोड़ दरांती आगे!


सारी बात सहन कर ल्यूं, तेरे आसूँ हों बरदास नहीं,

जब तक बदला ना ले ल्यूं, मनैं सुख के आवैं सांस नहीं!

हे धर ली ज्यान हथेळी पै अब, जीणा होता रास नहीं,

मरते तक ज्यान चली ज्या, पर देखूं तुझै उदास नहीं!!

अभी जिन्दा हूँ मैं लाश नहीं, हम बण कैं हाथी आगे!

हे री रोवै मत ना भाहण म्येरी, आज त्यरे हिमाती आगे,

और सुण कैं बात त्यरी खेत म्ह, छोड़ दरांती आगे!


बापू आळे भाहण तेरे मैं, करकै लाड दिखा द्यूंगा,

दुनियां देख दंग हो ज्या ऐसी, करकें राड़ दिखा द्यूंगा!

बृजभूषण की त्यरे चरणों म्ह, झुकती नाड दिखा द्यूंगा,

गर ऐसा ना हुआ तो, उसके बिखरे हाड़ दिखा द्यूंगा!!

इन्नें करकै रॉड दिखा द्यूंगा, होये मन की काढ़ दिखा द्यूंगा; हम सच्चे साथी आगे!  

हे री रोवै मत ना भाहण म्येरी, आज त्यरे हिमाती आगे,

और सुण कैं बात त्यरी खेत म्ह, छोड़ दरांती आगे!


रागनी रचयिता व् गायक: चौधरी महेंद्र सिंह, मोहिददीनपुर उत्तर प्रदेश