Friday 16 August 2019

भारत में शिक्षा-स्वास्थ्य को लेकर ग्राउंड जीरो वाले भारतीय तो क्या 90% एनआरआई इंडियंस तक सेंसिटिव नहीं जबकि!


कोई गोरा ना पढ़ ले इसलिए हिंदी में लिख रहा हूँ| सोचा अमेरिका-यूरोप वाली शिक्षा-स्वास्थ्य की सुविधाएँ भी ग्राउंड जीरो पर पहुँचें इस बारे भी बतला लेना चाहिए| वरना पीढ़ियां पेट-भर ठहराएंगी तुमको-हमको|

यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि कभी शिक्षा-स्वास्थ्य पर वर्ल्ड इंडेक्स उठा के देखो तो ऐसे-ऐसे कंट्री हमसे ऊपर हैं कि देख के शर्म आ जाए, तुमको-हमको| नहीं यकीन हो तो WTO व् UNSC की रिपोर्ट्स निकाल के पढ़िए|

खैर, इस विषय पर लेख लिखने का मन इसलिए हुआ कि आजकल इंडिया में डॉक्टर्स की सिक्योरिटी पर एक कानून लाये जाने बारे चर्चा हो रही है जिसमें अगर डॉक्टर से मारपीट की तो 10 साल के लिए अंदर जाओगे|

सरकार कानून ला रही है कि डॉक्टर्स से मारपीट की तो 10 साल की सजा तो सरकार जी अगला कानून क्या होगा आपका कि बैंक-जनता के पैसे लूटने वाले मोदी-माल्या-चौकसियों को गाली भी दी तो 10 साल की सजा?

यार पूंजीवाद तो अमरीका-यूरोप में भी है परन्तु किसी को खुल्ला सांड छूटने जैसी आज़ादी देने वाले कानून तो यहाँ भी नहीं| मतलब एक ऐसे माहौल में जहाँ लगभग हर दूसरा इंसान डॉक्टर्स की फीस की मनमर्जी, इलाज में लापरवाही का भुक्तभोगी है वहाँ डॉक्टर्स को ऐसा कानून और बना देना यानि इनको खुल्ला सांड बना देना| यह तो कुछ-कुछ उस रूढ़िवादी वर्णवाद जैसा हो गया कि डॉक्टर की लापरवाही से कोई मरीज का केस बिगड़ गया या मर गया तो बस खामोश रहो, विरोध या आक्रोश अंदर-ही-अंदर पी जाओ| क्या हम कभी इस वर्णवादी, गोबर से भी सड़ी विश्व की सबसे अमानवीय व्यवस्था से उभर भी पाएंगे या कोशिश भी करेंगे?

अरे छोडो यार, ग्राउंड जीरो पर बैठे इंडियंस तो क्या ही कोशिश करेंगे यहाँ तो 90% एनआरआई जो अमेरिका-यूरोप में बैठे हैं यही इस गोबर साइकोलॉजी को नहीं छोड़ पाते| और वह भी वर्ल्ड की बेस्ट हेल्थ एंड एजुकेशन सिस्टम्स में रहते हुए| उदाहरण के तौर पर फ्रांस की बताता हूँ| यहीं का हेल्थ सिस्टम अमेरिका तक में कॉपी हुआ है|

यहाँ एजुकेशन का मतलब है इंसान का उतना ही ज्यादा ह्यूमन ग्राउंड्स पर सेंसिटिव होना, जिम्मेदार होना जितना ज्यादा वह एडुकेटेड है; खासकर अपने देश-कौम की जनता के प्रति या अपने देश में रहने-बसने वालों के प्रति कहिये| जबकि हमारे यहाँ का वर्णवाद इसका बिलकुल विपरीत है, हमारे यहाँ एडुकेटेड होना मतलब सोसाइटी का बटेऊ/जमाई कहलाने जैसा होना, सोसाइटी पर एडुकेटेड होने का अहसान धर हर चीज पर "बाप का राज" टाइप की मेंटालिटी रखना|

पूंजीवाद अमेरिका-यूरोप में भी है परन्तु यहाँ का सिस्टम फेसबुक वाले जुकरबर्ग तक को कोर्ट के कठघरे में खींच लाता है जब बात पब्लिक की प्राइवेसी व् असिमता (dignity) की आती है| ऐसे नहीं कि कितने ही मोदी-माल्या-चौकसी बैंक-जनता के पैसे पर हाथ फेर, जनता की असिमता को ठेंगा दिखाएं परन्तु सरकार-सिस्टम उनका कुछ ना बिगाड़ पाए|

खैर बात फ्रांस के हेल्थ सिस्टम की: 0 से 25 साल तक हर प्रकार का इलाज फ्री (स्कूल के बाद वाले बच्चों पर 200 यूरो सालाना हेल्थ बीमा चार्ज), 26 से 55 साल तक हर प्रकार के इलाज की न्यूनतम 70 से 100% कॉस्ट सरकार भरेगी (इलाज-इलाज पर निर्भर है कि 70% या 100%), बाकी 30% का आपको इंसोरेंस लेना होगा, 55 साल से ऊपर जाते ही फिर इलाज फ्री|

डॉक्टर्स की फीस फिक्स है यूरो 25 डॉक्टर से एक मीटिंग के; चाहे आप सिंपल बीमार पड़ने से ले कैंसर-किडनी-पथरी जिस चीज का इलाज करवाओ, हर डॉक्टर पर सरकार की नकेल है; कोई भी इस फिक्स अमाउंट से ज्यादा चार्ज नहीं कर सकता चाहे 2 साल के अनुभव वाला डॉक्टर हो या 20 साल के अनुभव वाला| मेडिकल स्टोर्स पर बिना डॉक्टर की रिसीप्ट के आप सिर्फ ओटीसी मेडिसिन्स ही ले सकते हो वह भी तब जब आपकी मेडिकल स्टोर वाले से जानकारी हो जाए, अनजान स्टोर वाला आपको ओटीसी भी बड़ी मशक्क्त यानि 70 तरह के सवाल-जवाब के बाद देगा या नहीं ही देगा| झाड़-फूंक-टूना-टोटका-गृह-नक्षत्र देख-बता कर इलाज करने वाले तो यहाँ नाम सुनने तक को भी नहीं मिलते|

यही सिस्टम एजुकेशन का है, एजुकेशन में तो सरकार ने मोबाइल फ़ोन्स का इस्तेमाल तक बंद कर रखा है; वही इस्तेमाल जिसको कभी इंडिया में कोई सामाजिक संस्थाएँ बंद कर देती हैं तो सब तालिबान-तालिबान चिल्लाने लगते हैं| अरे जिन इंडियंस के खुद के बच्चे फ्रांस के मोबाइल यूज़ बंद स्कूलों में पढ़ते हैं, वह तक तालिबानी फैसला कह कर कोसते देखे हैं| किसी में इतनी सेंसिटिविटी नहीं कि अगर उस सामाजिक संस्था का बच्चों के फोन बंद करने का सलीका गलत है तो उनको सही सलीका सुझा सके, क्योंकि फैसला तो सही है| जब फ्रांस में सही है तो इंडिया में कैसे गलत हो जायेगा? परन्तु नहीं, सामाजिक सौहार्द और मेलजोल के नाम पर बस इतने ही सेंसिटिव हैं लोग कि चिल्ला लेंगे परन्तु किसी को फ़ोन करके यह नहीं बोलेंगे कि इस फैसले का टेक्स्ट चेंज करवाना चाहिए|

अब लेख हिंदी में लिखा है तो किसी गोरे के पढ़ लेने का तो भय है नहीं सिवाए अगर कोई इसका ट्रांसलेट मार के पढ़ने तक की जेहमत उठाये तो| दरअसल पेटभर कल्चर है यह वर्णवादी व्यवस्था वाला, जब तक इसको तिलांजलि नहीं दी जाएगी, तब तक ग्राउंड जीरो वाला इंडियन तो क्या 90% एनआरआई इंडियन तक भी ह्यूमन सेंसिटिव नहीं हो सकता|

बिना डॉक्टर्स की फीस व् इलाज में लापरवाहियों बारे सख्त कानून यथास्थान होने के साथ-साथ उनकी इम्प्लीमेंटेशन के ऐसे कानून लाने का पुरजोर विरोध होना चाहिए| यह सीधा-सीधा घिसा-पिटा वर्णवाद, लोगों की छाती पर बिठाने का नया खोल है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

No comments: