Friday, 5 June 2020

उस जमाने के "खट्टर खान" से आज वाले "खट्टर" तक!

सर सिकंदर हयात खान खट्टर, यूनियनिस्ट पार्टी की तरफ से अविभाजित पंजाब के प्राइम-मिनिस्टर साहब का आज जन्मदिन है (5 June 1892)| दिवंगत प्राइम-मिनिस्टर साहब के जन्मदिन की आप सभी को शुभकामनायें|
ऐसे मसीहाई इंसानों को रहती दुनियाँ की कायनात तक हर वह जमींदार-मजदूर-व्यापारी याद करेगा जिनको अविभाजित पंजाब में 25 साल तक वह स्थाई राज व् कानून मिले जो आज तक भी भारत-पाकिस्तान के दोनों तरफ के पंजाब के लोगों के जीवन का शबब हैं| कहने की बात नहीं कि इन 25 सालों में यूनियनिस्ट पार्टी के कितने ही अन्य नामी-गिरामी प्राइम मिनिस्टर बने, परन्तु इन सब के दौर में जो एक नाम स्थाई तौर से सत्ता में जम के जमींदारों की जून संवारता रहा, वह था "खालिस-अलाही-आला-ए-पंजाबियत रहबर-ए-आजम दीनबंधु चौधरी सर छोटूराम ओहल्याण"| सलंगित फोटो दोनों हस्तियों की है|

"खट्टर" शब्द नोट किया खान साहब के नाम में? 'वाह', मुल्तान-पाकिस्तान की प्रसिद्ध खट्टर फेमिली के चिराग थे खान साहब| एक "खट्टर" वो थे और एक ... | क्या यह संगत का फर्क है कि वो खट्टर खान, एक चौधरी के साथ मिले तो जमींदारों को पुख्ता-तौर पर जमींदार शब्द पर जमा गए और एक यह वाले "खट्टर" हैं जो फंडियों के साथ मिल के जमींदार को उल्टा जमींदार से किसान बनाने को आतुर दीखते हैं? खटटरो और चौधरियो, पहले की तरह एक रह लो; चौधरी तो आज भी उसी लाइन पर हैं परन्तु आप किधर से किधर जा चुके, जरा देखो "खट्टर खान" से ले आज वाले "खट्टर" की जर्नी तक| आप एक रहो तो ना सितंबर 1947 होवे, ना जून 1984 और ना फरवरी 2016| जिन फंडियों के चक्करों में आप रहते हो इन्हीं की वजह से हमारी धरती को 1947, 1984 व् 2016 देखने पड़े हैं; मत पड़िये इनके चक्करों में| क्योंकि यह तो आपको-हमको लड़ा के फिर से साफ़ बच निकलते हैं| और हम-आप जब तक 30-35 साल में पीछे वाली खाई पाटते हैं जैसे 1947 से 1984 (37 साल), 1984 से 2016 (32 साल) तब तक यह कुछ ना कुछ और ऐसा करवा जाते हैं कि हम फिर अगले 30-35 साल यही खाई पाटने में खपा देते हैं| क्या यह सिलसिला बंद नहीं हो सकता? कहने की बात नहीं कि 1947, 1984 व् 2016 भुगता सर्वसमाज ने परन्तु सबसे ज्यादा व् बड़े स्तर के भुग्तभोगी खट्टर व् चौधरी ही रहे, कि मैं झूठ बोल्या?

नोट: इन दोनों वर्गों को उनका इतिहास याद दिलवाने की इस पोस्ट को कोई जातिवाद का चश्मा मत पहनाना प्लीज| और हो सकता है यह अपील अनसुनी जाए, परन्तु कल मुझे यह संतुष्टि रहेगी कि मैंने ऐसी अपील की थी| दिल खुले रखिये, क्या पता इससे दिमाग भी मिल जाएँ|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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