चुड़ी पहरावण खातर घर घर, आया करती मणियारी।
चिमटा पलटा बेचया करती, ना रही गाडिया लुहारी।।
बीण बजाकर सांपों को जो, गाळ मं नचाया करते।
वो सपेले लुप्त हुए, संग खत्म हुई सांप की पिटारी।।
कांगी सुई डोरा तागड़ी आली, गुवारणी इब ना आती।
पोडर सुर्खी लाली के संग, बेचया करती चोटी कारी।।
भजनी आया करदे गाम मं, दमड़ दमड़ बजै था ढोल।
रागिनी की जब टेक चढै थी, लाग्या करती किलकारी।।
बजा डूगडूगी बांसूरी पै, नई नई धून सुणाया करता।
खेल दिखावणिया जादू का, इब ना आता कोये मदारी।।
रस्सी पै चालणिये नट बी, इब कोय दिखाई ना देता।
हल की फाली ऊपर बच्चा, पड़ जाता था जान पै भारी।।
लोक संपर्क विभाग से भी, नाटककार आया करते।
खूब हंसाया करदे सबनै, लगा चुटकुलों की तरकारी।।
कबिसर बी जब आया करते, गा गाकर करते बड़ाई।
पिछले घर से जो बी मिला, दोनों गाते थे बारी बारी।।
कुलड़ी, झाकरा और मटका, जब आहवे से उतर जाते।
भरके टोकरे में सबको, घर घर बांटया करती कुम्हारी।।
सुनील जाखड़ इब टेम बदल गया, आधुनिक सब हो गये।
के के चीज खत्म हुई गाम तैं, मनै खोल बता दी सारी।
सुनील जाखड़ पूर्व सरपंच लडायन की लेखनी से
No comments:
Post a Comment