Tuesday 23 June 2015

औरत के अधिकार कुचले तो तालिबान और जो अन्य मानवताओं (मर्द-औरत दोनों) के भी अधिकार कुचले वो क्या?


बुद्ध-धर्म की थ्योरी खोज, स्वछँदता और आधुनिकता से परिपूर्ण दिमाग पैदा करती है, इसका जीता-जागता उदाहरण हैं जापान, सिंगापुर, कोरिया और चीन आदि| जो टेक्नोलॉजी वांछित और शांतिप्रिय दिमाग इनके पास है वो हमारे पास आने में दशकों लगेंगे और तब दशकों बाद वो दशकों आगे होंगे| क्योंकि हम आज भी जाति-रंगभेद-नश्लवाद-छूत-अछूत में उलझ के समाज के मानव-संसाधन का ना सिर्फ यथोचित प्रयोग नहीं कर पाते हैं अपितु उसको इससे वंचित भी रखने वाली सामाजिक व् धार्मिक व्यवस्था में जीते हैं| और दशकों बाद भी हमारी यही कहानी रहती नजर आती है; अगर हमने इस व्यवस्था को नहीं तोड़ा अथवा बदला तो| हाँ मैं शत-प्रतिशत गारंटी लेते हुए नहीं लिख रहा क्योंकि चमकते हुए चाँद में भी दाग बताते हैं परन्तु इतना जरूर कहूँगा कि बुद्ध धर्म सर्वोत्तम सोच के मानव पैदा करने वाला धर्म है|

वह धर्म हो ही नहीं सकता जो आज इक्सवीं सदी में आकर भी किसी को सिर्फ इस बात पे कलम ना उठाने की वकालत करता हो कि वो उनके अनुसार अछूत है, इसलिए उसको ऐसा अधिकार नहीं है| वह धर्म हो ही नहीं सकता जो आज इक्सवीं सदी में आकर भी ऐसी बातों से लिखी पुस्तकों-सोचों में सुधार नहीं करता हो और इनको अविरल बहने दिए जाने पे आमादा हो| ऐसी मानसिकता विश्व की सबसे घातक मानसिकता है| यह धर्म ना हो कर एक कबीलाई जाति की भांति सिर्फ अपनी पहचान ना खो जाए इस डर से खुद के लिए खड़ा किया हुआ सुरक्षा कवच है|

अथवा फिर इसको मानने वालों में दोष है, जो इसके प्रतिउत्तर में अपनी खुद की सोच नहीं खड़ी करते| इन्हीं की भांति अपनी सोच के इर्दगिर्द सुरक्षा-कवच नहीं बनाते|
ऐसी मानसिकता सिर्फ चोरी-चकारी-चाकरी-छीना-झपटी (आज की भाषा में कॉपी-कट-पेस्ट) की मानसिकता के दिमाग पैदा कर सकती है|

सोचो अगर सिर्फ औरत के हक पे लगाम लगने से कोई सोच तालिबानी कहलाती है तो वह सोच क्या कहलाएगी जो औरत के साथ-साथ रंग-नश्ल विशेष के मानव को भी उसके अधिकारों से वंचित रखती हो (जिसमें कि औरत के साथ-साथ मर्द भी आ जाता है)? या उसको अलगाव यानी आइसोलेशन में बाँध देने पर आमादा हो? दुर्भाग्य है परन्तु हम यही सोच, धर्म और आर्दश समाज के नाम पर ढो रहे हैं|

इसको समर्थन देकर उनके सुरक्षा कवच को मजबूत करने के सिवाय कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता| यह विश्व की मानव-गुलामी की थ्योरी की सबसे भयावह और न्यूनतम दर्जे की थ्योरी है| जो इसको बनाने वाले को जितना पोषित करती है, इसका अनुसरण करने वाले अथवा इसको शीश झुकाने वाले को उतना ही शोषित और दूषित|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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