Thursday 1 October 2015

गाय और भैंस के दूध के गुणों और स्वभाव को लेकर हरयाणवी समाज में परख आधारित प्रचलित लोकोक्तियाँ व् विचार!

1) "गोरखनाथ का पिछोका, गौका देखे ना मसोहका!" - यानी सांड की वासना कामान्धता के स्तर की होती है, जब चढ़ती है तो वह ना तो गाय देखता है और ना ही भैंस! जो सामने हो उसी पे चढ़ जाता है| जबकि भैंसा किसी भी सूरत में गाय पे नहीं चढ़ेगा यानी वह वासना के वक्त भी अपने होश नहीं खोता और वह उसको सहन कर जाता है| कहने की जरूरत नहीं कि हर दूसरा साधु-मोड्डा-बाबा अवैध संबंधों में लिप्त क्यों पाया जाता है या चेलियों को क्यों पालता या इर्द-गिर्द रखता है|

2) "लोभ लाग्या बणिया, चूंदे लाग्या गौका, रुकें-तो रुकें ना तो चाले-ए-जां!" - चूंदे यानी आपकी खेती खाने की आदत पड़ा हुआ सांड, खेत से सिर्फ पेट भर के बाहर निकल जाए ऐसा नहीं है अपितु वो पेट भरने के बाद उसको उजाड़नी शुरू कर देता है| जबकि भैंसा यानि सरकारी झोटा पेटभर चर के खेत से बाहर निकल जाता है या पानी के जोहड़-तालाब में लेटने चला जाता है या किसी पेड़ के नीचे बैठ के सुस्ताने लगता है|

3) "घामड़ गाय का बाछ्डू, कलिहारी का पूत, तीनूं चीज रलै नहीं, जुणसा लोगड़ का सूत|" - यानि धूप में आवारा घूमने वाली गाय का बछड़ा कभी सामान्य नहीं होता, वो माँ की ही लाइन पे चलता है, सामान्य जानवरों से अलग व्यवहार करता है|

4) "दो लड़ते हुए झोटों (भैंसों) को छुड़वाना आसान परन्तु दो लड़ते हुए सांडों को छुड़वाना मुहाल!" - दो लड़ते हुए झोटों को आसानी से अलग करवाया जा सकता है| जबकि सांड लड़ेंगे तो इस स्तर तक कि उनको छुड़वाना ऊँट को रेल में चढाने जितना कठिन होता है, छुड़वा भी दिया तो फिर बार-बार आ के भिड़ते रहेंगे|

5) भैंसों के झुण्ड पे कोई अटैक करे तो सारी एकजुट हो जाती हैं, जबकि गाय के झुण्ड पे अटैक हुआ तो वो तितर-बितर हो जाता है| गौका ग्रुप में रहना नहीं जानता जबकि मसोहका शांति और मुसीबत दोनों वक्त एक साथ रहता है|

6) "शेर का मनपसंद भोजन गाय है भैंस नहीं!": क्योंकि अटैक के वक्त तितर-बितर हो जाने से शेर के लिए एक गाय को मारना आसान रहता है जबकि भैंसों के झुण्ड तो क्या एक अकेली भैंस पे भी अटैक करने से शेर डरता है|

7) "ऊँटनी के दूध पे आठ मलाई, भैंस के दूध पे चार मलाई और गाय के दूध पे एक मलाई आती है": इसलिए छोटे बच्चे को पिलाने के लिए जहां गाय के दूध में सिर्फ आधा हिस्से का ही पानी डालने से काम चल जाता है, वहीँ भैंस का पिलाने के लिए तीन-चौथाई तक पानी डालना पड़ता है| छ महीने से एक साल तक के बच्चे की पाचनशक्ति भी इतनी ताकतवर नहीं होती है इसलिए उसे इस उम्र में भैंस का दूध हजम नहीं हो पाता, दस्त लग जाते हैं| और क्योंकि गाय का दूध पतला होता है इसलिए यह बच्चों को जल्दी पच जाता है|

8) "जिसके घर काली, उसके घर दिवाली!": यानि इकोनोमिक लिहाज से एक भैंस ज्यादा फायदा पहुँचाती है|

9) "अड़ी और फंसी हुई जगहों पर झोटा ज्यादा कारगर होता है": उदाहरण के तौर पर पश्चिमी यूपी में गन्ने के ट्राले कीचड़ भरे खेतों से निकालने हेतु झोटे प्रयोग किये जाते हैं बैल नहीं|

10) "बैल को हल व् गाड़ी में जोड़ने के लिए उसको ऊना करना पड़ता है जबकि झोटे के मामले में इसकी जरूरत नहीं पड़ती!" - गौके की कामान्धता की वजह से उससे काम लेने हेतु उसको सेक्स से दूर रखने हेतु उसकी वीर्य नली कुंद करनी पड़ती है| यानी बैल एक वक्त में एक ही काम कर सकता है या तो सांड बना के बच्चे पैदा करवा लो या फिर ऊना बना के हल-गाड़ी में जोड़ लो| जबकि झोटा दोनों काम एक साथ बिना किसी अवरोध के मैनेज कर लेता है| वैसे तो गाय यानि बैल भिन्न-भिन्न रंगों के होते हैं जैसे कि काले-सफ़ेद-नीले-पीले परन्तु हल में जोड़ने हेतु सिर्फ और सिर्फ सफ़ेद रंग के बछड़े को ही बैल बनाया जाता है क्योंकि सफ़ेद रंग सूर्य की किरणों को परिवर्तित करता रहता है जिससे बैल का शरीर गर्म नहीं हो पाता और वो धूप में भी हल में चलता रहता है| और यही वजह है कि झोटों को हल में नहीं जोड़ा जाता, बैल को जोड़ा जाता है।

विशेष: मुझे पता है इस लेख को पढ़ के भक्तों को चुरणे लड़ेंगे परन्तु मैंने न्यूट्रल हो के यह बातें लिखी हैं| इसके एक भी तथ्य में कोई त्रुटि मिलती है तो ना सिर्फ उसके लिए क्षमा प्रार्थी होऊंगा अपितु तुरंत प्रभाव से उसको ठीक भी करूँगा| मैं सिर्फ उन खाली गाय की रक्षा करने और उसको पालने की वकालत करने वाले परन्तु खुद कभी गाय ना पालने वाले घुन्नों से कहीं ज्यादा गौ-भक्त हूँ| मेरे परिवार और गाँव दोनों का आर्य-समाजी विचारधारा का होने की वजह से जब से होश संभाला है तब से मेरे घर से नियमित गौशालाओं में अनाज और तूड़े की भरी ट्रॉलियां जाती रही हैं| खुद मैं जब भी घर आता हूँ तो गायों को गौशाला में गुड़ खिला के आता हूँ| लेकिन साथ ही आवारा व् खेतों को उजाड़ने वाली गायों को गाँव-गली-खेत से बाहर भी छोड़ के आता रहा हूँ| और मुझे यह सब करने की प्रेरणा हेतु किसी घुन्ने, भगत या अंधभक्त के प्रवचन की जरूरत नहीं है| इसलिए इस पोस्ट पे अपनी अक्ल की पिटारी खोलते वक्त और कमेंट करते वक्त सेंसिबल कमेंट करें, ज्यादा कणछें (झिंगा-ला-ला हूँ-हूँ ना करें) नहीं क्योंकि अपनी सेहत पे इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला| परन्तु हाँ जिनको ज्ञान लेना है, और गाय और भैंस की अनलॉजिकल (analogical) नॉलेज लेनी हो उनके लिए इस पोस्ट में सब कुछ है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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