Thursday 1 October 2015

एक धर्म विश्व पे कितना और कहाँ तक राज करेगा यह इसपे निर्भर करता है कि अपने धर्म के सबसे नीचे पायदान पे बैठे इंसान के लिए वह कितना करता है!


मुझे क्रिश्चियन्स की यह बात बहुत पसंद है कि वो किसी से डरा-धमका, जादू-टोना या चमत्कार के नाम पर दान-दक्षिणा नहीं लेते या कहो पैसे नहीं हड़पते| अपितु साफ स्पष्ट बता के लेते हैं कि इसको कम्युनिटी के कार्यों में प्रयोग किया जायेगा| और यह लोग वास्तव में करते हैं भी हैं, दान आये हुए पैसे से गरीब तक के लिए सुविधाएँ खड़ी करते हैं| और यही कारण है कि इस धर्म में सबसे कम भिखारी होते हैं, सबसे कम गुरबत और भुखमरी होती है| क्रिश्चियन में जितने भी थोड़े-बहुत भिखारी होते हैं इनकी एक और खासियत होती है वो चर्च के आगे कभी भीख नहीं मांगेंगे, अपितु मार्किट में जा के मांगेंगे|

जबकि हमारे हिन्दू धर्म में सबसे निचले तबके को तो अछूत दलित-शूद्र बना के ऐसे रख छोड़ा जाता है कि उसको इन सुविधाओं के लायक तक नहीं समझा जाता, दरअसल इंसान भी नहीं समझा जाता|

कम से कम मैंने तो आज तक यूरोप में यह चीज कहीं नहीं देखी| असल में चर्च से बाहर और ज्यादा इनका दूसरा धार्मिक स्थान कहो या अड्डा कहो, होता ही नहीं| जबकि हमारे यहां मंदिर के अंदर से काम ना चले तो सतसंग के पंडाल लगा लो, डेरे खोल लो, माता की चौकियां सजा लो| मतलब हिन्दू धर्म इस धक्काशाही वाली तर्ज पर काम करता है कि अगर आप चल के मंदिर नहीं आये तो हम भगवान को ही आपकी गली-मोहल्ले तक ले आएंगे, और कभी जगराते तो कभी आरती कर-कर के आपके कान भी फोड़ेंगे और आपकी जेबें भी लूटेंगे|

यहां तक कि इंसान की हैसियत देख के दान-दक्षिणा जो कि कायदे से एक आदमी की अपनी मर्जी से देने की चीज होती है, वो भी फिक्स होती है| जो जितना बड़ा हैसियत वाला उससे उतनी ज्यादा वसूली|

"मेक इन इंडिया" वालों की सरकार है, जब हर चीज को बनाने के लिए विदेशियों को बुला रहे हो तो अपने धर्म के लोगों के प्रति धर्म का कर्तव्य सिर्फ लेना ही नहीं अपितु उस लिए हुए से धर्म के जरूरतमंद और गरीब तबके के लिए कुछ करना भी होता है इसकी ट्रेनिंग भी दिलवा लो|

कसम से समाज में गरीबी-गुरबत और भिखारी मिटाने का ठेका सिर्फ सरकार-समाज का नहीं होता है अपितु धर्म का भी होता है|

विशेष: यह पोस्ट एक धर्म अपने धर्म के अंदर क्या करता है उस पर है, इस पर नहीं कि एक धर्म दूसरे धर्म के बारे क्या सोचता है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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