Monday 19 October 2015

और ऐसे एक कंधे से ऊपर मजबूत बयानबहादुर ने बिहार में भाजपा की लुटिया डूबने के कगार तक पहुंचा दी!

कंधे से ऊपर या नीचे मजबूत और कमजोर की चर्चा, उसका अवरोध-गतिरोध अभी थमा भी नहीं था कि एक हरयाणा के नाम से जाने-जानी वाली खापलैंड के उद्भव व् वैभव वाली स्टेट के मुखिया ने अपनी कंधे से ऊपर की मजबूती का नायाब नमूना पेश करते हुए आज के भारत की राजधानी व् प्राचीन विशाल हरयाणा के जिगर दिल्ली के तले बैठे-बैठे ही हजार कोस दूर पाटलीपुत्र उर्फ़ पटना में बीजेपी की लुटिया लगभग डूबाने के कगार पर भेज दी है। अगर यूँ कहूँ कि आने वाली नौ नवंबर को उस डुबाई की आधिकारिक घोषणा हो जावे तो अचरज ना मानियेगा।

इतने भर से पाठक यह तो समझ ही गए होंगे कि यह करिश्मा किसी और ने नहीं अपितु हमारे अपने जाने-पहचाने चिर-परिचित कंधे से ऊपर मजबूत श्रीमान मनोहरलाल खट्टर ने करके दिखाया है।

मैं इतना बड़ा लेखक नहीं, हस्ती नहीं कि कोई मेरी इस विवेचना को गंभीरता से लेवे, परन्तु जिस हद तक मैंने भारत की राजनीति और उसमें भी जातिय जहर की जादूगरी देखी, समझी और परखी है उससे स्पष्ट तौर पर हमारे आदरणीय कंधे से ऊपर मजबूत बयानबहादुर जी ने वो कारनामा कर दिखाया है कि अगर इसके नतीजे वही आये जो आज के दिन बिहार के हालात बता रहे हैं तो यह जनाब बीजेपी और आरएसएस दोनों के उस डर को साकार करने वाले हैं जिसमें बीजेपी अपनी आगे की दिशा निर्धारण का एक पैमाना लिए बैठी है। और पैमाना यह है कि बीजेपी व् आमजन यह सोच रहे हैं कि अगर बीजेपी बिहार में हार गई तो इनका 2014 की जीत का हनीमून जो दिल्ली की हार से पहले ही फीका पड़ चुका था वो तो बिहार की हार से पूर्णत: खत्म हो ही जायेगा, साथ ही राष्ट्रवाद और हिन्दुवाद नामी चुनावी जिन्न या तो देश में ऐसा फटेगा कि कहीं गृहयुद्ध ही ना हो जावे या फिर यह बीजेपी को त्यागना ही ना पड़ जावे। गृहयुद्ध इसलिए क्योंकि बीजेपी और आरएसएस के लोगों का जिस तरह का तारतम्य और हार को बर्दाश्त करने के प्रति सहिषुणता का जो स्तर अभी तक देखने को मिला है उसके चलते इस संभावित हार को बीजेपी के कार्यकर्त्ता और शायद आरएसएस भी संभाल ना पावे| मोदी साहब तो खैर अब लगभग मनमोहन मोड में इन्होनें भेज ही दिए हैं। धन्य हो खट्टर-बाणी, खुब्बाखाणी या कहूँ खसमांखाणी!

कुल मिलाकर कंधे से ऊपर मजबूती के इन ग्लोबल सिंबल उर्फ़ खट्टर साहब ने बीजेपी और आरएसएस को ऐसे बारूद के ढेर पर जा बैठाया है कि हारे तो या तो गृहयुद्ध या राष्ट्रवाद-हिन्दुवाद का त्याग। हाँ भूले से जीत भी गए तो सम्पूर्ण बहुमत तक तो शायद ही पहुँच पाएं।

मैं यह दावे निराधार ही नहीं कर रहा हूँ, इसके कुछ पहलु हैं जो यूँ भभक रहे हैं जैसे ईंट-भट्टे में लाल अग्नि के ललाट सी लाल ईंटें, कि कहीं भी गिरे भुनना जरूर है कम से कम जलना तो पक्का है।

हमारे (क्योंकि मैं हरयाणा का हूँ और यह हमारे मुखिया जी) कँधे से ऊपर की मजबूती के ब्रांड अम्बेसडर साहब शायद यह भूल गए थे कि वहाँ लालू यादव से चतुर-लम्पट बैठे हैं, जो आपके बयान को ना सिर्फ ऐसे लपकेंगे जैसे साँप पे नेवला वरन इसका ढंका पूरे बिहार में इस जोर से पिटवाएंगे कि अभी तक जिस मुसलमान को धार्मिक-भाई होने की वजह से ओवैसी में फायदा दिख रहा था वो भी लालू-नितीश के पाले में आन गिरेंगे। और स्थिति यहां तक भी पहुंच सकती है कि बाद में यह कंधे से ऊपर के स्वघोषित अक्लवान ऐसे महसूस करेंगे जैसे "चौबे जी चले छब्बे बनने और दुबे बनके लौटे।"

यह आरएसएस इनके कैडर को यह नहीं सिखाती क्या कि "अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी नहीं मारी जाया करती"? लगभग हर दूसरे अख़बार की कलम, बिहार के गलियारों से नदी-नारों तक इतना चर्चा तो बिहार में खुद नितीश-लालू और मोदी का नहीं, जितना ‘म्हारे आळे छोरे का हो रह्या सै’ यानि खटटर साहब के "बीफ वाले बयान पे मुस्लिमों को दी नसीहत" का हो रहा है।

पहले से ही बिहार के दो दौर के चुनावों में बीजेपी की बेचैनी इसी से साफ स्पष्ट झलक रही थी कि बीजेपी को वहाँ के पोस्टर्स पर राष्ट्रीय नेताओं की तस्वीरों से ज्यादा स्थानीय नेताओं की तस्वीरें उतारनी पड़ी। ऊपर से नितीश का "बाहरी बनाम बिहारी" का नारा, उसपे लालू तो जो बीजेपी को ऐ-लम्बा लठ लिए हाँक रहे थे सो हाँक ही रहे थे। लालू तो बस ताक में ही बैठे थे कि बैठे-बिठाये ये जा लपकाया खट्टर साहब ने विभीषण की तरह राम को रावण की नाभि भेदने का राज। पहले से ही चिंता में पड़ी बीजेपी की हालत "कोढ़ में खाज" वाली करके रख दी।

मोदी साहब, खट्टर साहब को पहले की तरह अपनी रसोई पकाने के लिए वापिस ही बुला लो तो बेहतर होगा वर्ना बाकी जनता का भेजा फ्राई करें या ना करें परन्तु सबसे पहले वो ही लोग इनसे उक्ता जायेंगे, जिन्होनें आपको कम से कम इन कंधे से ऊपर की मजबूती वाली ब्रांड को झेलने के लिए तो वोट नहीं दिए होंगे। क्या है कि अति हर बात की घातक होती है और आपके ही वोटरों की जुबानी खट्टर साहब तो ऐसी अति साबित हो रहे हैं जो खट-खट खाटी ढकार दिल देने वाली खटारा की तरह खटकते-खटकते आपके ही वोट खड्का-खडका के खाती जा रही है।

"सूं दादा खेड़े की!" अगर इनको जाटों को परेशान करने मात्र के लिए ही सीएमशिप दी हुई हो तो उसकी चिंता आप ना करें, क्योकि इससे तो आप उल्टा जाटों का ही भला कर रहे हो। ऐसे ज्ञानी-ध्यानी को सीएम बना के नॉन-जाट को यह अहसास दिलाने का कार्य कर रहे हो कि क्या वाकई में जाट इतने बुरे हैं या थे, जितने बता के कि हमसे वोट लिए गए। हरयाणा में फसलों से ले इंसानों तक के भाव इन्होनें छोड़े नहीं| जाटों तक पे इन्होनें "लठैत" होने के तीर छोड़ लिए| खुद को कंधे से ऊपर अक्ल वाला बताते-बताते हर्याणवियों को कंधे से ऊपर कमजोर तक यह बोल चुके (और यह बोलते हुए यह भी नहीं सोचा कि जिन्होनें बीजेपी को वोट दिए खासकर नॉन-जाटों ने, वो भी तो हरयाणवी ही हैं; नहीं शायद इनके लिए हरयाणवी का पर्यायवाची शायद सिर्फ जाट ही है। खैर जाटोफोबिया रोग ही ऐसा है, खट्टर साहब की गलती नहीं| वैसे धन्य हैं आपके वोटर भी जो आपको वोट भी देवें और आपके बयानबहादुरों से अपने ऊपर कंधे से ऊपर कमजोर होने का ठप्पा लगवा के भी खुश रहवें। वाकई में खुश हैं वो वोटर या सुगबुगाहटें पुरजोर है?), लड़कियों को छोटे कपड़े पहनने की बजाय नंगा ही घूम लेना चाहिए जैसे तीर भी यह छोड़ चुके और अब तो ऐसा तीर छोड़ा कि वो जा लपका राजनीति के ‘बाहरले-बिल्ले’ उर्फ़ लालू यादव ने और वो भी इतनी मजबूती से कि बीजेपी की लुटिया को शायद अब गौ-गंगा-गायत्री ही बचा पाएं या फिर कुछ करिश्मा कर पाई तो शायद मोदी-ब्रांड ही करे, बाकी कंधे से ऊपर मजबूत वाली ब्रांड तो फायर कर गई।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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