Tuesday 8 December 2020

मैं वो वाला जाट हूँ जो पूर्णिमा की खीर धाणक को खिलाता है, बाखे वाली माँ की ज्योत का चढ़ावा कुम्हार देता है!

मैं वो वाला जाट हूँ जो खुद व् उसके पुरखे धोक-ज्योत-सम्मान में दलित-ओबीसी-ब्राह्मण सबको बराबर रखते आए हैं| तो फिर यह मेरे ही ऊपर 35 बनाम 1 का क्लेशी कौन है?

एक नादाँ ने तर्क किया कि धर्म-कर्म-काण्ड आदि का आधिकारिक-पात्र तो वही विशेष है, इसमें दलित-ओबीसी को उसके बराबर कैसे बैठा दें?
मखा अपने पुरखों की स्थापना भूल गए लगते हो? आओ तुम्हें तुम्हारे ही गाम का निष्पक्ष धोक-ज्योत दिखाऊं:
1) मेरे घर में हर पूर्णिमा को खीर बनती है, जिसमें से स्पेशल एक थाली दलित समाज की धाणक बिरादरी के लिए निकाली जाती है| मेरे कुणबे-ठोळे में तो पीढ़ी-दर-पीढ़ी ऐसा लगभग हर घर में होते देखा है और शायद होता हो पान्ने व् पूरे गाम में भी|
2) मेरे गाम में "मीठे चावल" के साथ बाखे पे मूर्ती-रहित एक माता की सालाना धोक-ज्योत लगती है; उसका पूरा चढ़ावा मेरे गाम में ओबीसी में आने वाली कुम्हार बिरादरी ले कर जाती है| जो साफ़-बढ़िया चढ़ावा होता है, खुद खाते हैं और जो मिक्स हो जाता है वह अपने गधों को खिलाते आये हैं|
3) ऐसे ही कनागत के वक्त एक थाली गाम के बाह्मण की निकाली जाती है|
4) जाट-जमींदार बाहुल्य गाम में क्या हिन्दू, क्या मुसलमान; सब सबसे बड़ी धोक-ज्योत-मान्यता अपने पुरख धाम "दादा नगर खेड़े बड़े बीरों" की करते हैं; बिना स्वर्ण-शूद्र जैसी किसी रुकावट वाली तख्ती के करते हैं|
फिर उसको कहा कि अब यह बताओ कौन हैं यह जो जाट जैसी इतनी व्यापक मानवीय नैतिकता की श्रेष्ठ मूल्यों वाली जाति को कभी 35 बनाम 1 तो कभी जाट बनाम नॉन-जाट के नाम पर घेरता है? और कौन इनको घिरवाने का दोषी है?
बोला कौन?
माखा तेरे जैसे तथाकथित आस्तिक धार्मिक परन्तु मंदबुद्धि; जो खामखा धर्म की मोनोपॉली किसी विशेष को मान रहे हो या सौंप रहे हो| जब पुरखों ने ही दलित-ओबीसी-ब्राह्मण का धार्मिक सम्मान करते वक्त कोई पक्षपात नहीं किया तो तुम्हें कौन घूँटी पिला गया इसकी?
यह बातें नोट करवाओ, अपने-अपने गाम-घरों में ढूंढ के अपने समाज के दलित-ओबीसी को, वरना एक तरफ फंडी तुमको 35 बनाम 1 में घिरा के मरवाता रहेगा और दूसरी तरफ तुम जिन ओबीसी-दलितों को पीढ़ियों से खीर-चढ़ावे में बराबरी दे कर, ब्राह्मण के बराबर करते आए हो; वह तुमसे बिदके चलते रहेंगे|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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