Friday, 28 February 2025

Why Sir Chhoturam get Jats recruited in Jat Regiment for Britishers?

 Fandi स्पोंसर्ड एक "बर्बादीकिसान" ग्रुप "खाप-खेड़ा-खेत कल्चर-किनशिप" के महापुरुषों को शौर्यहीन करने पर लगा हुआ है व् इसी कड़ी में उन्होंने निशाना बना रखा है सर छोटूराम को| फैलाते फिर रहे हैं कि क्यों सर छोटूराम ने अंग्रेजों के लिए जाटों को उनकी फ़ौज में भर्ती करवाया था? व् इसी बिंदु का ओहड्डा ले के वह सर छोटूराम को अंग्रेजों का पिट्ठू बरगलाते फिर रहे हैं| 


इनको यह सलंगित वीडियो भेजें, इसमें प्रख्यात दार्शनिक डॉक्टर हिम्मत सिंह सिन्हा जी बता रहे हैं कि क्यों सर छोटूराम ने ऐसा किया था| डॉक्टर सिन्हा के अनुसार सर छोटूराम ने अगत भांप ली थी कि अगर अंग्रेजों की बजाए हिटलर का साथ दिया गया तो अंग्रेज जाएंगे व् नाजी यहाँ आ जाएंगे| जबकि अंग्रेजों की हालत वैसे ही पतली हुई पड़ी थी, उन दिनों|


वह तो शुक्र है कि हिटलर मारा गया, वरना इस बात से कौन इंकार कर देगा कि ऐसा नहीं हो सकता था अगर हिटलर जिन्दा रहता व् वह जीत भी जाता तो; इंडिया पर वह अपना कब्जा जमाता? 


इस बात से नेता जी सुभाषचंद्र बोस के निर्णय पर बात करना बनता है कि क्या फिर नेता जी सही थे, जो हिटलर का साथ दे रहे थे; या वह हिटलर को सिर्फ इस्तेमाल कर रहे थे; अंग्रेजों व् नाजियों की लड़ाई का फायदा उठा कर? खैर, ना तो उस वक्त नेता जी ही बचे व् हिटलर भी आत्महत्या कर गया; अन्यथा दोनों जिन्दा होते तो संभावना थी कि सर छोटूराम वाली बात ज्यादा सच साबित होती| 


Jai Yaudheya! - Phool Malik




और इस तरह ज़ेलेन्स्की, ट्रम्प व् वांस दोनों से दबा नहीं व् नहीं की मिनरल डील साइन!

यूक्रेन वाले ज़ेलेन्स्की के साथ ट्रम्प का पेंचा उसी मैटर पे फंसा है जिसपे अन्धभक्ताधिराज मोदी के साथ फंसा था| मोदी भी पहले इलेक्शन कैंपेन कर आया व् बाद में वहां गए-गवाए को ट्रम्प ने बुलाया लास्ट इलेक्शन के दौरान तो मिलने भी नहीं गया| यही ज़ेलेन्स्की ने किया, कमला हैरिस की इलेक्शन कैंपेन करके आया था पेंसिलवेनिया में सितंबर में| 


परन्तु मोदी व् ज़ेलेन्स्की में दिन रात का फर्क है; मोदी जहाँ चुपचाप जहाँ कहा वहां साइन कर आया व् ना ही ट्रम्प उसको ओवल हाउस (वाइट हाउस) के गेट पर लेने आया था, बल्कि उसकी एक कर्मचारी मात्र आई थी; ना मोदी को बुलाया गया था, बल्कि मोदी खुद अपॉइंटमेंट ले के गया था| 


जबकि ज़ेलेन्स्की को ट्रम्प ने बुलाया भी, गेट तक खुद लेने भी आया; भीतर अच्छी गर्मागर्म बहस हुई; खूब ज़ेलेन्स्की को दबाने की कोशिश की ट्रम्प व् वांस दोनों ने; परन्तु दबा नहीं ज़ेलेन्स्की व् ना ही मिनरल्स डील पे साइन किए| हार बेशक जाए बंदा, परन्तु दुनिया व् इतिहास उसको हार के भी जीता हुआ ही बताएगी; क्योंकि ट्रम्प व् वांस दोनों ने हाँगा लगा लिया वो भी अपने घर में बैठा के; परन्तु बंदा डील साइन नहीं करके आया!


शायद कल्चर का फर्क है यह; मोदी जहाँ एक फंडी-वर्णवादी कल्चर से आता है; जिसका अंत आप में दब्बूपन व् भीरुता का आना होता ही होता है; वहीँ उक्रेन का कल्चर एक दम विपरीत है| शायद उक्रेन के आसपास से ही खाप-खेड़ा-खेत कल्चर-किनशिप को मानने वाले समाजों जैसे की जाट का ओरिजिन बताया जाता है; इसके ऊपर ही तो है सीथियन रीजन; जहाँ से जाट का उदगम बताया जाता है; शायद उक्रेन भी इसका पार्ट ही हो| 


यही वो एथिकल गट्स हैं जिनको फंडियों से बचा के आगे अगली पीढ़ियों में बढ़ाने की बातें हम करते हैं| पिछले दस-ग्यारह सालों से खापलैंड व् मिसललैंड पर वर्णवादी फंडी लॉबी और क्या कर रही है, कभी 35 बनाम 1 तो कभी अग्निवीर तो कभी किसान आंदोलनों को दबाने या तोड़ने की कोशिशों के जरिए; परन्तु शाबाशी है इन खापों व् खालसा वालों की, कि मंदा तुर रहे हैं; परन्तु टूर रहे हैं; लेकिन इन फंडियों के आगे सरेंडर नहीं कर रहे| उम्मीद है कि हम इस डेमोक्रेटिक व् रिपब्लिकन बेबाकपन को ऐसे ही कायम रख के अगली पीढ़ियों दे पाएंगे| 


जय यौधेय! - फूल मलिक


https://www.youtube.com/watch?v=3YyaYuBsJQ0

Monday, 24 February 2025

'छावा' : हिंदुओं की 'हीनता बोध' पर नमक मलने की कहानी!

 14 फरवरी को विकी कौशल अभिनीत फिल्म 'छावा' महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और गोवा में टैक्स फ्री हो चुकी है। फिल्म की 'सफलता' और चर्चा के कारण लोग शिवाजी के बेटे संभा जी के बारे में और ज्यादा जानने के लिए उत्सुक हो रहे हैं। उनका पहला पड़ाव Wikipedia है।

संभाजी के बारे में Wikipedia में शुरू में ही जो जानकारी दी गई है वह फिल्म के 'नैरेटिव' में सेंध लगा कर उसे तहस नहस कर देती है।
Wikipedia कहता है कि एक बार शिवाजी ने ही अपने बेटे संभा जी को कैद कर लिया था क्योंकि उसने किसी ब्राह्मण महिला की अस्मत से खिलवाड़ किया था। बाद में शिवाजी की कैद से भागकर वह मुगलों से जा मिला। और दिलेर खान के नेतृत्व में शिवाजी के खिलाफ ही लड़ाई छेड़ दी। (लिंक कमेंट बॉक्स में)
अंततः 19 फरवरी को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री फडणवीस ने Wikipedia को नोटिस भिजवाई और इस 'आपत्तिजनक' हिस्से को हटाने को कहा।
यह इसका एक उदाहरण है कि फासीवादी दौर में पहले कहानी या नैरेटिव तैयार किया जाता है, फिर उसके हिसाब से इतिहास की मरम्मत की जाती है।
फिल्म के अंतिम दृश्य में औरंगजेब संभा जी से कहता है कि धर्म परिर्वतन कर लो और हमारे साथ आ जाओ। जवाब में संभा जी कहता है कि तुम मेरे साथ आ जाओ और इसके लिए तुम्हे अपना धर्म भी नहीं बदलना पड़ेगा। (पिक्चर हाल में तालियों की गड़गड़ाहट)
अब इस तथ्य से उन्हें क्या लेना देना कि औरंगजेब के दरबार में सबसे ज्यादा हिंदू थे। औरंगजेब का वित्त विभाग राजा रघुनाथ संभाल रहे थे और उनकी सेना की कमान जय सिंह और जसवंत सिंह संभाल रहे थे। दूसरी ओर संभाजी के पिता छत्रपति शिवा जी की सेना में करीब 60 हजार मुस्लिम थे जिनकी कमान इब्राहीम खान के हाथ में थी।
जिस तरह से सिगरेट की डिब्बी पर 'धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है' लिखा रहता है, उसी तरह इस बेहद गलीच सांप्रदायिक फिल्म में संभा जी से एक लाइन कहलवा दिया गया है कि हमारा संघर्ष किसी धर्म विशेष से नहीं है। लेकिन पूरी फिल्म में जो जहर उगला गया है वह हमारे विशेषकर हिंदुओं के मानसिक स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा है, बिल्कुल किसी कैंसर की तरह है।
इसलिए इसे महज 'प्रोपेगंडा फिल्म' कहकर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यह BJP/RSS के हिंदुत्व फासीवाद प्रोजेक्ट के तहत बनाई गई फिल्म है। 'हिंदुओं' पर इसके खतरनाक असर को इसी तथ्य से समझा जा सकता है कि फिल्म देखने के बाद दिल्ली में कई नौजवानों ने अकबर, बाबर, हुमायूं रोड के चिन्हों पर पेशाब किया और नारे लगाए। इनके दिलों में मुस्लिमों के प्रति कितनी नफ़रत होगी, आप समझ सकते हैं।
फिल्म के अंत में आधे घंटे सिर्फ संभाजी के टार्चर का ग्राफिक चित्रण किया गया है, जिसका एक मात्र उद्देश्य हिंदुओं की 'हीनता बोध' के ज़ख्म पर नमक मलना और हिंदुओं की कृत्रिम नफरत को मुस्लिमों की तरफ मोड़ना है। फिल्म में सचमुच में संभा जी की चोटों पर नमक मला जाता है। फिर पर्दे पर संभा जी की आंख निकालना और जीभ काटना। उफ्फ...
आश्चर्य है कि इसके बाद भी इसे A सर्टिफिकेट न देकर U/A सर्टिफिकेट दिया गया है। पिक्चर हाल से निकलते हुए मैने देखा कि परिवारों के साथ 3-4 साल तक के बच्चे भी हैं। इनके कोमल दिलों दिमाग पर क्या असर हो रहा होगा। किस तरह की नफरत लिए हुए ये बड़े होंगे?
फिल्म की शुरुआत में एक युद्ध के बीच मुस्लिम बच्चे को संभा जी द्वारा बचाकर उसकी मां को सौंपना और फिल्म के अंत में औरंगजेब की सेना द्वारा एक हिन्दू बच्ची को आग में जला कर मार देना, और पर्दे पर उसका ग्राफिक चित्रण बीजेपी के 'ओपन एजेंडे' को पूरा करने के लिए ही है।
ऐसी फिल्मों की महिला पात्र महज पुरुष के 'इगो' को सहलाने के लिए ही होती हैं। इसलिए उनकी चर्चा ही यहां बेमानी है।
विक्की कौशल के अभिनय की बहुत प्रशंसा हो रही है। लेकिन ऐसी नफरत भरी लाउड फिल्म में एक्टिंग की नहीं बल्कि ओवर एक्टिंग की जरूरत होती है। और विक्की कौशल ने यह काम बखूबी किया है।
अब वे बॉलीवुड के नए 'हिंदू हृदय सम्राट' हैं, मनुवादी फासीवादी सांस्कृतिक फैक्ट्री का एक नया उत्पाद.....

Friday, 7 February 2025

सातवीं सदी से तो हम देखते-पढ़ते-सुनते आ रहे हैं कि अंतत: "इंडिया में पाई जाने वाली फंडी पॉलिटिक्स" का हश्र यही होता है जैसा "ट्रम्प ने मोदी व् बीजेपी पॉलिटिक्स" के साथ किया है!

Chronological आर्डर में समझिए:

1) चच-दाहिर ने धोखे से एक किसानी कौम से आने वाले राजा को सत्ता से हटाकर सत्ता हथियाई; तो मुहम्मद बिन कासिम चढ़ आया व् उस राजा को इतनी बुरी तरह से हराया कि उसकी बेटी तक को बंधी बना के ले गया| सुनते हैं कि मुस्लिम इतिहासकारों ने उस वक्त में किसी ने उनके इस हमले या कृत्य का विरोध कर मुस्लिम सेना के सिंध के मैदानों में 5 हजार सैनिक मारे तो वह खापों वाले जाट बताए जाते हैं| फंडी ही कहते हैं कि श्राप नाम की कोई बला होती है, लग जाए तो मलियामेट कर देती है, किसानी कौम को सताने का श्राप झेला; क्योंकि उस वक्त के इतिहासकार यह भी लिखते हैं कि चच व् दाहिर जाटों से इतने डरते थे कि उन्होंने जाटों का हथियार ले के चलना व् घोड़ों पर चलना दोनों बंद कर रखे थे|


2) सन 1025 में गज़नी गुजरातियों का सोमनाथ लूट के ले गया व् सभी फंडियों को ठीक ऐसे ही संताप लग गया था, जैसे अभी मोदी व् बीजेपी को ट्रम्प के कृत्यों से लगा हुआ है; काटो तो खून नहीं| जबकि जब तक हमला ना हुआ था तो घस्से इतने बड़े कि सेना सोमनाथ में घुसते ही अंधी हो जाएगी| इतिहासकार बताते हैं कि उस ग़ज़नी को सिंध-पंजाब के जाटों ने ही लूटा था; सर जयप्रकाश घुसकानी की लिखी "कौन कह था जाट लुटेरे" वाली रागणी में इस बात का जिक्र भी है| यानि फंडी सत्ता फिर चित्त हुई| 


3) 1193 में आया मोहम्मद घोरी, फंडियों की व् उनकी सत्ता की क्या हालत करके गया; सभी को मालूम है| यहाँ भी खापों-जाटों के दादा रायसाल खोखर ने ही उसको मारा बताते हैं| कोई फंडियों को ऐसे ही संताप लगा हुआ था, जैसे आज ट्रम्प के आगे मोदी-बीजेपी को लगा हुआ है| 


4) 1398 में तैमूर लंग चढ़ा आया था, बहुतेरे फंडी मोहम्मद बिन तुगलक के दरबारी बन उनके आगे अपनी कूटनीतियों की शेखियां बघार-बघार धन बटोरते थे; परन्तु जब असली तूफ़ान सर चढ़ा आया तो रोका उसको भी फिर से जाट राजा देवराज जी की बुलाई खाप पंचायत से गठित हुई सेना ने; जिससे कि उसके सेनापति दादा योगराज गुज्जर व् तैमूर को भाला मार घायल कर भागने को मजबूर करने वाले दादा हरवीर सिंह गुलिया जी जाने जाते हैं| 


5) बीच में ऐसे ही पांच-दस और छोटे-बड़े किस्सों से आगे बढ़ते हुए अब आते हैं सीधा पानीपत के तीसरे युद्ध पर| दम्भ व् वर्णवादी अहंकार में चूर पेशवे चढ़ आए पानीपत में अहमद शाह अब्दाली को ललकारने| जाट महाराजा सूरजमल को जीतने पे 'दिल्ली देनी मंजूर नहीं थी इनको' अपितु उनका उपहास व् अट्टाहस उड़ा के पानीपत जीतने चढ़े थे; 8 घंटों में पेशवा सदाशिव राव भाऊ (इसी के अपभृंश से हरयाणवी औरतों ने हाऊ शब्द बनाया था) पानीपत में घुटनों बैठ रोया था; रोया था उस पल को जिस पल को जब जाट का अट्ठास किया था| इनकी यह सत्ता यहाँ दम तोड़ी| पछतावा कुछ यूँ उतारा था कि जाट सेना के सैनिक जो पेशवा सेना छोड़ने गए थे, उनसे अपनी बेटियां ब्याह उनको वहीँ बसाया व् इसी युद्ध से दो कहावते चली कि "जाट को सताया को ब्राह्मण भी पछताया" व् "बिन जाटों किसने पानीपत जीते"| 


6) फिर से छोड़ दो बीच के कई फ़साने (ज्यादा लम्बा हो जाएगा लेख), सीधे आ जाओ किसान आंदोलन 2020-21 पर व् पहलवान आंदोलन 2023 पर| यहाँ भी इन्होनें उदारवादी किसानों की हर बेइज्जती व् तिरस्कार की हदें पार कर रखी हैं हुई हैं| क्योंकि इस किसान आंदोलन की सबसे बड़ी कौम जाट-जट्ट ही सेना में सबसे ज्यादा जाते हैं तो उसी चच-दाहिर की लाइन पे चलते हुए जनाब ने किसान आंदोलन का बदला "अग्निवीर" ला के लिया, कि इनको कम भर्ती करोगे तो सही रहेगा| अब ऐसे में ट्रम्प द्वारा इनके जबाड़े में हाथ फेर के देखना; सातवीं सदी से चली आ रही इनकी तथाकथित साम-दाम-दंड-भेद की दुर्गति ना तो और क्या है? श्राप-संताप तो नहीं लग रहा इनको अब फिर से?


कुछ नहीं बदला; वही पुनर्वृत हो रहा है, उदारवादी किसानी को दुर्गत कर, दम्भ में चढ़ते हैं व् होनी इनको फिर लपेटे लगा देती है| फंडी ही अक्सर श्राप-संताप आदि को मानते हैं तो यह कुत्ते की दुम की भांति और कितनी सदियां लगाएंगे खुद को सीधा करने में? कब समझेंगे कि तुम्हारी तथाकथित कूटनीति, राजनीति में जो यह manipulation व् polarisation का टेक्निकल लोचा है; इसको ठीक कर लो; वर्ण खुद को बर्बाद व् बदनाम रहोगे ही; साथ ही हम जैसों को भी लबेड़े रखोगे| 


चले हैं अंग्रेजों से राजनीति के दांव-पेंच लड़ाने; तुम सर छोटूराम थोड़े ही हो कि अंग्रेजों से गेहूं के दाम 6 रुपए से दस रुपए भी करवा ले व् 25 साल तक निष्कंटक यूनाइटेड पंजाब पे राज भी कर जाए| 


जय यौधेय! - फूल मलिक