इतने दिन दुसरों का बेवकूफ बनाने इन लोगों (क्योंकि जब अपनों पर इसके दुष्प्रभाव पड़े तो बोले, अन्यथा धंधा इसी से आ रहा है/था; इसलिए ऐसे दोगले रवैये को ही फंडीपन कहा जाता है व् ऐसा रवैया रखने वालों को ही पुरखों ने फंडी कहा है; व् यह हर जाति में हो सकते हैं, फ़िलहाल उदाहरण उनका है, जिनकी यह वीडियो है; हालाँकि यह जागरूक लोग लगते हैं, परन्तु यह फंड फैलाने में इन्हीं के भाई-बंधु अग्रणी मिलते हैं) को जब ख़ुद के फैलाए अंधविश्वास और पाखंड का दुष्प्रभाव अपने समाज के युवक-युवतियों पर दिखने लगा तो अपनी सभा में खुद कबूल किया कि कुंडली, पत्रिका या मंगली, कुछ नहीं होता। इधर जागरूक लोग फंडियो के फैलाए अंधविश्वास और पाखंड का विरोध करते है,तो किसान कमेरे वर्गों के फंडियो के मानसिक गुलाम बने चरण वंदक जागरूक करने वालों के साथ बत्तमजी करते है। अब तो आपको अंधविश्वास और पाखंड में डालने वाले खुद ही इसको अस्वीकार कर अपने बच्चों की शादी करने हेतु इन चीजों को नहीं मानने को कह रहे हैं तो आप क्यों नहीं करते ऐसा?
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