Sunday, 5 April 2015

दिल्ली के सिर पै बसै हरयाणा!

खुद्दारी हरयाणा स्टाईल ... By: जाट कवि -कर्नल  मेहर सिंह दहिया,  शौर्यचक्र 

दिल्ली के सिर पै बसै हरयाणा,
आप बोवै, आप खा, बेरा जी मनै ना दे दाणा|

जगह म्हारी घणी खास सै,
बड़यां की मेहनत और प्रयास सै| 
बैरी का आड़ै हुया नाश सै,
ना चाल्या इसतैं कोए धिंगताणा||
दिल्ली के सिर पै बसै हरयाणा|

महारी धरती का कोए तोल नहीं सै, 
दरया दिली का कोए मोल नहीं सै|
हिस्साब मैं कोए रोल नहीं सै,
जाण्या सदा ले कै लोटाना||
दिल्ली के सिर पै बसै हरयाणा|

मेहमान का मान बड़ा सै,
बण हनुमान यू सदा लड़ै सै|
गैर के रफड़े मैँ जरूर पड़ै सै,
मोल भले  कुछ  पड़ै चुकाना||
दिल्ली के सिर पै बसै हरयाणा|

तोल पिछाण कै यो हाथ मिलावै,
दुश्मन नै यू धूल चटावै| 
बोद्दे कै सदा साहरा लावै,
बोल इसके पै कति मत जाणा|| 
दिल्ली के सिर पै बसै हरयाणा|

के दिखै सै सादा भोला,
पहले टकरे मैं पादे रोला|
तर्क मैं इसनै हर कोए झिकोला,
आवै खूब बातां मैं बतलाना||
दिल्ली के सिर पै बसै हरयाणा|

बिना वजह मत इसनै छेड़िए,
करया हमला जाऊँ भेडीए|
छुडा पेंडा तुरत नमेड़िए,
वरना महंगा पड़ै इसतैं भिड़ जाणा||
दिल्ली के सिर पै बसै हरयाणा|

हर माणस मैं पावै कविताई,
शिक्षा बेशक यहाँ देर से आई|
अनपढ़ भी करै अगवाही,
देख पंचों का ज्ञान पुराणा||
दिल्ली के सिर पै बसै हरयाणा|

दिल्ली की हमनै मरोड़ काढ़ दी,
जी चाहा जब टाड्ड दी|
पकड़ नाड़ सही झाड़ दी,
नहीं होण दें मां माम निमाणा||
दिल्ली के सिर पै बसै हरयाणा|

कर्नल मेहर सिंह की बात सही सै,
समझनिया नै खूब लहि सै|
वफादार इस बरगा कोई नहीं सै,
पर मुंह इसको कति नहीं लाना||
दिल्ली के सिर पै बसै हरयाणा|

सवैंधानिक अधिकारों की डील नहीं हुआ करती मोदी जी!

सवैंधानिक अधिकारों की डील नहीं हुआ करती मोदी जी, जो आप जाटों को आरक्षण देने के बदले उनसे कन्या-भ्रूण हत्या रोकने की मांग बैठे| यह मांगनी या अपील करनी ही थी तो जब पानीपत, हरियाणा में 22 जनवरी 2015 को "बेटी-बचाओ, बेटी-पढ़ाओ" योजना लांच की, वहाँ क्यों नहीं सारी खापों के साथ-साथ हर जाति-धर्मों की सामाजिक व् धार्मिक संस्थाएं भी बुला ली थी? वहाँ देते यह सन्देश!

प्रधानमंत्री निवास में बुला के यह कहना और फिर इसका पूरे देश में प्रचार करते घूमना तो ऐसे हो गया जैसे अडानी को 5000-7000 करोड़ का मुआवजा देने से पहले यह कहना कि जाओ पहले खेत में हल जोत के आओ फिर गैस प्लांट के लिए मुआवजा मिलेगा|

जनाब लैंड बिल के जरिये हमारी जमीनों को ले हमें पशोपेश में डाला हुआ है, जाट आरक्षण बारे सरकार की तरफ से 17 मार्च 2015 को कोर्ट में ठीक से पैरवी ना होने की वजह से हजारों जाट युवाओं की रोजी पर तलवार आन लटकी है, आपकी सरकार आने के बाद से फसलों के दाम ऐसे गिरे कि जाट समेत तमाम किसान जातियों से आत्महत्याओं की खबरें और उनकी करूणा-क्रंदन कानों में राद घोल रही हैं; अब ले-दे के यह एक बची-खुची जाट की इज्जत-शोहरत-गौरव का (जाने या अनजाने) तो झुलूस मत निकालिये|

और नहीं तो मुज़फ्फरनगर में जाटों ने ही जिस सिद्द्त से आपकी संस्था आर.एस.एस. के धार्मिक एजेंडा को परवान चढ़ाया था, उसी की लिहाज कर लीजिये| अरे आर.एस.एस. में कोई जाट-बंधू हो तो मनाओ पीएम साहब को कि इतना भी हाथ-पैर-मुंह धो के क्या पीछे पड़ना एक जाति के; क्या आर.एस.एस. ने सिखाया नहीं मोदी साहब को कि "हिन्दू धर्म में एकता और बराबरी लानी और रखनी है?"

मान्यवर आपको बताना चाहूंगा कि देश का सबसे गौरवशाली इतिहास लिए हुए हैं हम जाट, कृपया कहीं तो हमारी समता और मर्यादा छोड़ दीजिये?

1) हम नहीं होते तो 1025 A.D. में महमूद गजनवी से सोमनाथ मंदिर का खजाना कौन दादावीर जी महाराज बाला जाट और उनकी खाप आर्मी छीन के वापिस देश में रखती? (जिसके लिए हमें प्रोमिला थापर जैसी लेखकों से लुटेरे होने के खिताब मिले हैं, अब प्रोमिला जी क्या जानें कि लुटेरों को लूटने वाले लुटेरे नहीं, कौम-देश के रहनुमा हुआ करते हैं, .....खैर)|
2) हम नहीं होते 1206 A.D. में तो कौन दादावीर जी महाराज रामलाल खोखर अपनी खाप सेना ले महाराजा पृथ्वीराज चौहान के कातिल मुहम्मद गौरी को सिंध के मैदानों में मार, देश की इज्जत का बदला लेते?
3) हम नहीं होते तो आमेर की जोधा को ब्याहने वाले बादशाह अकबर तक तो कैसे कौन "35 जाट खाप" की बेटी "धर्मकौर" पे दिल आने और उसका हाथ मांगने पर उसको बेटी देने से मना करने की हिमाकत करता और अकबर मन-मसोस के चुपचाप बैठ जाता?
4) हम नहीं होते तो 1669 A.D. में कौन दादावीर जी महाराज वीरवर गोकुला सिंह अपनी खाप आर्मी के साथ ब्राह्मणों तक पे जजिया कर लगाने वाले औरंगजेब के खिलाफ विश्व के भयानकतम युद्धों में शुमार तिलपत के युद्धों के मैदान सजा पहली विद्रोह की चिंगारी फूंकते?
5) हम नहीं होते तो 1804 A.D. में इस देश में भरतपुर (रोहतक-दिल्ली से ले के जयपुर-अलीगढ़ तक फैली हुई) जैसी देश की एक इकलौती ऐसी रियासत कौन खड़ी करता जिसको अंग्रेज कभी नहीं जीत पाये और उन्हीं अंग्रेजों से जिनके राज में कभी सूरज नहीं छिपा करते थे "ट्रीटी ऑफ़ फ्रेंडशिप एंड इक्वलिटी" हम जाटों ने साइन करवाई; मान्यवर, उनके साम्राज्यों के सूरज के घोड़ों को हम जाटों ने ही लगाम लगाई थी|
6) हम नहीं होते तो कौन महाराजा रणजीत सिंह (1780-1839 A.D.) होते जिनसे अफ़ग़ानिस्तान से ले के धुर बंगाल की खाड़ी तक अंग्रेज से ले मुसलमान तक कांपते थे और जीते जी कभी जीत नहीं सके|
7) हम नहीं होते तो मुग़ल साम्राज्य के अंतिम बादशाह बहादुरशाह जफ़र किनकी खापों को 1857 A.D. की क्रांति की लीड लेने के लिए आधिकारिक पत्र लिख आग्रह करते?
8) जनाब ऐसा चबूतरा जिस पर मुग़लों के तीन-तीन (रजिया सुल्तान - 1237 A.D. में, सिकंदर लोधी - 1490 A.D. में, बाबर - 1528 A.D. में) बादशाहों ने शीश नवाएँ और धन्यवाद दिए, वो इस देश में जाटों की सर्वखाप सोरम मुख्यालय का ही है| संज्ञान रहे मान्यवर, हमारी खापों के अलावा कोई ऐसा हिन्दू धार्मिक या सामाजिक दर नहीं इस देश में, जिसपे मुग़ल तीन-तीन बार शीश नवां के गुजरे हों|

जनाब यह तो कुछ मोटे-मोटे ऐसे तथ्य बताये हैं जो सिर्फ और सिर्फ हम जाटों के नाम दर्ज हैं, एक-एक लिखने बैठूं तो लेखनी अंतहीन हो जाये|

आपसे इतनी सी विनती है कि आपको आरक्षण देना है या ना देना है वो आपकी मर्जी परन्तु यह कन्या-भ्रूण हत्या रोकने के पाठ पढ़ाने हैं तो या तो पूरे देश को पढ़ाइये वरना हमें बख्श दीजिये| और दूसरी बात अगर आपको इतना ही लगता है कि सिर्फ जाट ही कन्या-भ्रूण हत्या करते हैं तो फिर क्यों नहीं आप इसके जातिगत आधार के आधिकारिक आंकड़े देश के सामने रख देते? डर लगता है ना जनाब, क्योंकि यह आप भी जानते हो कि शहरी जातियों की सेक्स रेश्यो देश में सबसे गई गुजरी है| अब आप तो यहां भी पक्षपात करते हैं, जिनको यह पाठ पढ़ाने चाहिए, उनको तो पढ़ाते नहीं और भोले-भाले अकेले जाट इसके लिए चुन लिए|

जनाब आप जरा आंकड़े उठा के देख लीजिये धुर 1901 से ले के आजतक हरियाणा में सिर्फ तीन ही बार सेक्स रेश्यो डाउन गई है, एक बार 1947 में जब पाकिस्तानी शरणार्थी भारत आये, दूसरी बार तब जब पंजाब से 1984 के आतंकवाद के चलते लोग पलायन करके हरियाणा के जीटी रोड पर बसे और तीसरी बार अब जब बिहार-बंगाल-आसाम का बासिन्दा बिना परिवारों के यहां रोजगार करने आ रहा है| जिससे इनके मर्द लोग तो हरियाणा में काउंट हो रहे हैं और औरत पीछे के राज्यों में, जो कि पहले से ही इस मुद्दे से जूझ रहे राज्य की इस रेश्यो को और डाउन कर देती है| इसलिए जनाब या तो यह सीख सबको दीजिये अन्यथा जाने या अनजाने से यह 'मनुवाद' मत फैलाइये समाज में|

क्योंकि जनाब आपने दिल्ली में जाट डेलीगेशन को बंद कमरों में कही सो कही, इसको सारे देश में गाते हुए घूमने में आप कौनसी जाट कौम की इज्जत को चार-चाँद लगा रहे हैं| इस बात को लेकर जिस तरह के आपके तेवर लग रहे हैं, उससे तो यही लग रहा है कि आप इसको अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी कहीं उदाहरण बना के बोलने ना लग जाएँ| जनाब इतना रहम कीजियेगा विश्व की सर्वोत्तम नस्लों में आने वाली, वैभवशाली, गौरवशाली और कभी-कभी धर्म के अस्तित्व को बचाने जैसी जरूरत पड़ने पर आपके ही आर.एस.एस. जैसे संगठनों और धर्मगुरुओं द्वारा हिन्दू धर्मरक्षक पुकारी जाने वाली इस जाट कौम पर|

मान्यवर, एक तो आप और ऊपर से आपकी बात पे एक की दो बना के लिखने वाला यह मीडिया| जरा देखिये तो सही जनाब आपकी बात का क्या बतंगड़ बना के पेश कर रहे हैं यह लोग| और नहीं तो कम से कम इतना ही कन्फर्म कर दिया कीजिये कि आप जो बात कहें वो मीडिया के माध्यम से समाज में ज्यों-की-त्यों जाए| नीचे दिए लिंक की रिपोर्टिंग पढ़ के कोई यह संदेश नहीं लेगा जो शायद आपने शुद्ध नीयत से दिया होगा| सभी इस लेख से यही लेंगे कि जाट-कौम तो पूरे देश में एक-अकेली ही ऐसी है जो बेटियों की हत्यारी है|

और जहां तक बात खापों की है तो देश के अंदर सबसे बड़ी मुहीम अगर कन्या-भ्रूण हत्या के खिलाफ कोई छेड़े हुए है तो वो सिर्फ खापें ही हैं| ना मालूम हो तो 2012 में बीबीपुर की सर्वखाप पंचायत से हुए इसके आगाज से ले के आजतक की रिपोर्ट्स पढ़ लीजिये| वो अलग बात है कि आपके सामने उस दिन डेलीगेशन का कोई भी खाप या जाट चौधरी भावावेश आपको यह जानकारी देना भान में ना रख पाया होगा|

सर्वविदित है कि आदिकाल से हरियाणा युद्धों और विस्थापनों की धरती रही है, जिसकी वजह से यहां सेक्स रेश्यो हमेशा डांवाडोल रही| अब हम संभाल रहे हैं, और सिर्फ जाट ही नहीं सारे खापलैंड के बाशिंदे इसको ले के सजग हैं| और ऐसे में आप अगर सिर्फ एक जाति को चिन्हित करेंगे तो निश्चय ही इससे जाति के आत्मबल पर सकारात्मक नहीं नकारात्मक प्रभाव जायेगा| जाट एक पल को इसको सकारात्मक तौर पर ले भी लें तो बाकी के समाज और देश-विश्व में जहां तक आपकी यह बात जाएगी वो इसको जाट समाज पे सकारात्मक शायद ही लें, जैसे कि यह इंडियन एक्सप्रेस वाले मीडिया ने किया|

हाल-ही के आंकड़ों से पता चला है कि आपके गुजरात में सेक्स रेश्यो डाउन जा रही है, तो वहाँ इसको सुधारने हेतु जाटों की भांति किसी एक जाति को मत पकड़ लीजियेगा, क्योंकि यह पौराणिक चरित्र शिवशंकर जी की भांति जहर पीना भी सिर्फ जाट ही जानते हैं मान्यवर, सब नहीं झेल पाएंगे ऐसी छांट के निशानदेही|

क्या जनाब मुझ जैसे हर वक्त हर जाति-धर्म को साथ ले के चलने की बात करने वाले को भी आज आपके रूख ने जातिगत स्पष्टीकरण किस्म का नोट लिखने पर विवश कर दिया| एक हिसाब से आपको धन्यवाद भी देना चाहूंगा मान्यवर, क्योंकि आपके बहाने ही सही, मुझे हम जाटों के गौरवशाली इतिहास और वैभवी विरासत की यादें ताजा हो आई; जो मेरे अंदर एक नई ताजगी और स्फूर्ति का आभास जगाये जा रही हैं| इसके लिए आपका धन्यवाद! - फूल मलिक

http://indianexpress.com/article/india/india-others/promise-to-end-female-foeticide-if-you-want-quota-narendra-modi-told-jats/

Wednesday, 1 April 2015

सुरेश रैना-प्रियंका चौधरी का विवाह और इससे "खाप-जिहाद" का कनेक्शन:


दोनों में कोई कनेक्शन नहीं|

इस मुद्दे के दो पहलू हैं; एक वो जो जाट युवा सोशल मीडिया पे "खाप-जिहाद" के नाम से इस मुद्दे पर चर्चा कर रहा है और एक नव-भारत टाइम्स के पत्रकार जैसा मीडिया वर्ग का जो "रैना का ब्याहः कहां गई खाप पंचायत?" जैसे शीर्षकों से इस विवाह के बहाने भी खापों को कटघरे में ही खड़े करने की अपनी आदत से लाचार है|

पहला बिंदु, "खाप-जिहाद" है क्या? कुछ नादान कहूँ या भावुक जाट युवा, रैना और चौधरी की शादी में "खाप-जिहाद" का एंगल देख रहे हैं, जो उनकी नादानी के सिवाय कुछ नहीं हो सकता| "खाप-जिहाद" अंतर्जातीय विवाह नहीं है, अपितु "खाप-जिहाद" है:

1) मीडिया और एंटी-खाप ताकतों द्वारा खापों को हर स्तर पर तुच्छ करके दिखाना,
2) इनकी आलोचना करके इनमें विश्वास रखने वालों का मनोबल तोड़ना और
3) देश में हजारों-हजार गैर-सवैंधानिक धर्म, धर्मस्थलों-संस्थाओं और अन्य मान-मान्यताओं के होते हुए भी सिर्फ और सिर्फ खापों को ही मीडिया-कानून द्वारा हर जगह पे असवैंधानिक व् गैर-कानूनी बतला कर इनको मानने वालों में भय और अविश्वास का माहौल पैदा करना| यह है "खाप-जिहाद"। और यह लोग यह सब इस बात के बावजूद करते हैं कि भारत के "कस्टमरी लॉ (Customary Law)" के तहत खापें हमारे सविंधान का हिस्सा हैं|

अंतर-जातीय विवाह खापों का मुद्दा ना कभी इतिहास में था और ना आज है: दूसरा नवभारत-टाइम्स के पत्रकार महोदय जैसे बंधु सुनें कि खापों और जाटों में प्रेम-विवाह अथवा अंतर-जातीय विवाह ना जाटों का और ना ही खापों का कभी भी सार्वजनिक मुद्दा नहीं रहा, यह हमेशा से व्यक्तिगत पसंद-नापसंद और दोनों तरफ के परिवारों की अपनी सूझ-समझ का मामला रहा है| कुछ ऐतिहासिक व वर्तमान उदाहरणों के साथ मेरी इस बात की पुष्टि करता हुआ चलूँगा:

1) 1355 में तैमूरलंग की सेना को 40 किलोमीटर तक दौड़ा-दौड़ा कर मारने वाली व् चुगताई वंश के चार बड़े सरदारों को अकेले वीरगति देने वाली और उसी सेना के सेनापति मामूर को अढ़ाई घंटे तक मल्ल्युद्ध में छका के मारने वाली खाप-यौद्धेया “दादीराणी भागीरथी देवी जी महाराणी” ने एक जाटणी होते हुए भी बाकायदा उद्घोषणा करके पंजाब के महा-तेजस्वी “दादावीर रणधीर गुर्जर” से प्रेम-विवाह किया था|
 2) उसी काल में खाप-यौद्धेया “दादीराणी महादेवी गुर्जर” वीरांगना ने “दादावीर बलराम जी” नाम के जाट योद्धेय से स्वयंवर किया|
3) खाप-यौद्धेया वीरांगना “महावीरी रवे की लड़की” ने अपने समान दुर्दांत योद्धेय “दादावीर भद्रचन्द सैनी जी” से विवाह किया|
4) एक राजपूत जाति की खाप-यौद्धेया लड़की ने दादावीर कोली जाट वीर योद्धेय से विवाह किया|
5) इसी प्रकार भंगी कुल की तथा ब्राह्मण कुल की कन्याओं ने भी अपनी मनपसंद वीरों से स्वयंवर किये|
और यह सब विवाह बाकयदा खापों के सानिध्य में हंसी-ख़ुशी हुए थे|

और पत्रकार महोदय हालाँकि मैं किसी अपवाद से इंकार नहीं करता परन्तु आप जो बात कह रहे हैं कि खापों का जोर सिर्फ गरीबों पर चलता यह भी सत्य नहीं| खाप कोई धर्म या धार्मिक-स्थल नहीं हैं कि किसी को जाति-वर्ण के नाम पर प्रवेश निषेध की तख्ती लगा के रखते हों| देखिये कुछ आज के आधुनिक उदाहरणों के जरिये:

1) मेरी निडाना नगरी (मीडिया की भाषा में गाँव) जिला जींद हरियाणा में हमारे यहां एक छोटी जोत के जाट दादा ने एक बाल्मीकि (चूड़ा) जाति की लड़की (हमारी दादी) से विवाह किया| और आज उस परिवार की तीसरी पीढ़ी भी ठाठ से बसती है निडाना में| और वो भी बिना किसी ऊँच-नीच या छूत-छात के भेदभाव के|
2) अभी चार-पांच साल पहले ही गाँव का एक डूम जाति का लड़का एक हिन्दू ब्राह्मण की लड़की को ब्याह लाया तो गाँव के ब्राह्मण जाटों को हस्तक्षेप करने को बोले, तो गाँव के जाटों ने इसको दो परिवारों की सहमति का व्यक्तिगत मामला बताते हुए हस्तक्षेप से साफ़ मना कर दिया और वो जोड़ा भी आज गाँव में ही सुख से बसता है|
3) प्रेम-विवाह तो जाटों के यहां हर तीसरे घर में होते आये हैं| आज के दिन खुद मेरे परिवार-रिश्तेदारी में 6 जोड़े ऐसे हैं जिन्होनें प्रेम-विवाह किया हुआ है| एक जोड़े के तो आज पोता-पोती भी ब्याहने लायक हो गए हैं; और प्रेम-विवाह होने के बावजूद भी इस जोड़े का मर्द उनके गाँव का सरपंच तक बना| व्यक्तिगत मामला होने की वजह से नाम सार्वजनिक नहीं करता; पर किसी को वक्तिगत रूप से ज्यादा जानकारी चाहिए तो मुझे मैसेज या ईमेल कर सकता है|
4) अभी हाल ही में हरियाणा की बड़ी और विख्यात खापों में शामिल "सतरोल खाप" का किसी भी जाती में विवाह करने की खाप की तरफ से छूट का ऐतिहासिक फैसला तो आपने जरूर सुना होगा ना पत्रकार महोदय, परन्तु जब आपने मन ही खापों पे जहर उगलने का बना रखा हो तो कोई क्या कर ले आपका| एक बात और जोड़ दूँ, खाप के इस फैसले से सबसे ज्यादा आपत्ति समाज में धर्म को संचित करने वाली व् खुद को स्वघोषित अगदी मानने वाली जाति को ही हुई थी|

खापों की सिर्फ और सिर्फ सगोतीय विवाहों पर आपत्ति है क्योंकि वो हमारे समाज और सरंचना की रीढ़ की हड्डी वाली कस्टमरी लॉ (Customary Law) है, जो कि खुद भारतीय कानून की 'कस्टमरी लॉ" केटेगरी के तहत आरक्षित है|

हाँ अब शायद आप लोगों पर इन गैर-जिम्मेदाराना लेखों और प्रचारों के विरुद्ध खापों को कानूनी राय जरूर ले लेनी चाहिए|

खैर मीडिया ने तो इतनी आसानी से बाज आना भी नहीं है, परन्तु जाट युवा की जागरूकता और इन चीजों पर चर्चा करने की टीस को देखकर मुझे ख़ुशी हुई, "खाप-जिहाद" का गलत स्वरूप ले कर ही सही पर आप लोग इस पर चर्चा कर रहे हैं| उम्मीद है कि मेरा यह लेख आपकी "खाप-जिहाद" की परिभाषा को लेकर जो राय है उसको सही परिपेक्ष्य में समझने में मदद करेगा|

एक और बात अगर "अंतर्जातीय-विवाहों" पर कुछ जाट-युवाओं को इस वजह से ज्यादा परहेज कि इससे जातिगत नश्ल खराब होती है तो वो पहले इस पर सोचें कि यह जो "बिहार-बंगाल-असम" से बहुएं आ रही हैं वो ज्यादा नश्ल खराब करेंगी या स्थानीय हरियाणा में अंतर्जातीय विवाह जो हो रहे हैं वो ज्यादा? और इस मामले कुछ रोकना ही चाहते हो तो पहले यह गैर-हरियाणवी नश्ल के हरियाणवी नश्ल से ब्याह को कैसे रोका जाए, इसपे सोचो|

अंत में सुरेश रैना और प्रियंका चौधरी को उनके प्रेम-विवाह की असीम शुभकामनाएं| - फूल मलिक

Link to "रैना का ब्याहः कहां गई खाप पंचायत?" article:
http://blogs.navbharattimes.indiatimes.com/delhi-junction/entry/suresh-raina-s-wedding-and-khap-panchayat

मेरे लिए मुग़ल के हरम में और हिन्दू के मंदिर में कोई फर्क नहीं!

मेरे लिए मुग़ल के हरम में और हिन्दू के मंदिर में कोई फर्क नहीं, लड़कियां दोनों के गृभगृह में जाती रही हैं, एक के यहां रक्कासा बन के तो एक के यहां देवदासी बनके|

खापलैंड पर रहने वाले लोगों को मंदिरों की इस क्रूरता का आभास इसलिए नहीं है क्योंकि यहां जाट और खाप रही हैं, वरना दक्षिण-पूर्व भारत की तरह आज खापलैंड पर भी बड़े-बड़े मंदिर होते और उनमें देवदासियां पल रही होती|

और क्योंकि एक जाट और खापधारा का वंशज होने के कारण, मैं धर्म की अति के इस क्रूर चेहरे को अच्छी तरह से समझने और परखने की काबिलियत रखता हूँ, इसीलिए अंधभक्त बनने से बचा हुआ हूँ| इसीलिए अगर आपको अपने पुरखों की मेहनत से कल और आज की देवदासी रहित हमारी इस खापलैंड धरा को आने वाले कल में भी स्वाभिमान के साथ कायम रखना है तो अपनी स्वछंद बुद्धि और विवेक से समाज की हर चीज को परखें, नापें-तोलें और उसकी योग्यतानुसार ही उसको अपने दिल-दिमाग-घर-परिवार और समाज में स्थान देवें| अपने बुजुर्गों का यह सकारात्मक इतिहास याद रखें और किसी भी चीज की इतनी अति ना होने देवें कि कल को हमारे पुरखे ही हमसे शर्मिंदा हों|

और जो खापलैंड के दलित जाटों को अपने लिए सबसे बुरा बताते हैं वो पहले एक बार दक्षिण-पूर्व भारत के मंदिरों की इस काली सच्चाई को देख आवें, जो आज कानून बनने के बाद भी छिपे-पर्दे में देवदासियों को पाल रहे हैं जिनमें 90% देवदासियां दलितों की बेटियां ही होती हैं और फिर वापिस आकर खापलैंड पर देखें| निसंदेह जो स्थिति आपकी आज है उससे बेहतर के आप हकदार हैं, परन्तु जब उधर घूम के देख के आओगे तो स्वत: ही कहोगे कि बाकी के भारत से तो खापलैंड का दलित सबसे मजबूत स्थिति में है| और इसका कारण सिर्फ एक ही है और वो है जाट और इसकी खाप प्रणाली, जिसने इन बकवासों से अपने समाज को बचाने के लिए सैंकड़ों युद्ध, उजड़ने और विरोध झेले हैं| और आज का जाट भी जरा अपने बुजुर्गों के बलिदानों से सींची इस धरा को आने वाले कल में क्या बनाना चाहता है, इस पर विचार करे और कम से कम अंधभक्ति से तो जरूर बचे| - फूल मलिक

Saturday, 28 March 2015

जाट आरक्षण रद्द होने से मंडी-फंडी सीधे-सीधे यह निशाने साध रहा है!


1) इनकी दशकों से मन में दबी आरक्षण को टोटली ख़त्म करने की मंशा को हवा और पंख मिल रहे हैं, वो कैसे देखो दूसरे पॉइंट में|

2) एक भाई ने लेख लिखा "Many Undeserving, Why Target Jats?", यह लेख और कोई उद्देश्य हासिल करे ना करे परन्तु जाटों को भड़काने वाला जरूर है, जिसकी कि जाट को वाकई जरूरत नहीं है|

 3) राव इंदरजीत के बाद अब कुरुक्षेत्र के एमपी भी कह रहे हैं कि जाटों को आरक्षण नहीं मिलना चाहिए, यानी ओबीसी की जातियां स्वत: ही मंडी-फंडी का ओबीसी जातियों में फूट बढ़ाने की मंशा को साध रही हैं| जबकि इनको सोचना तो यह चाहिए कि कहीं जाटों के बाद अब अगला निशाना तुम होवो रिजर्वेशन से बाहर निकाले जाने का| लेकिन यह नादान चेतने और चेताने की बजाय अभी भी उलझे पड़े हैं वोट पॉलिटिक्स में|

 4) जाट को दबाने-कुचलने और कंगाल बनाने का इनका सर्वोपरि उद्देश्य तो खैर फसलों के कम दाम, यूरिया किल्लत, लैंड बिल (नुकसान बाकी किसान जातियों का भी हुआ इससे) और जाट आरक्षण रद्द के जरिये काफी लम्बा खींच ही लाये हैं यह लोग, अब तो इंतज़ार इसका है कि "What next"?

कौन कहता है कि "बांटों और राज करो" अंग्रेज भारत ले के आये थे, अरे खुद अंग्रेजों ने हमारे मंडी-फंडी से सीखा था| ना यकीन हो तो मनुस्मृति के काल से उठा के आजतक का इतिहास उघाड़ लो|

IBN Khabar Shame On You!


Friday, 27 March 2015

तेरा कोई दोष नहीं, ओ नारी अनुष्का शर्मा!

तेरा कोई दोष नहीं, ओ नारी अनुष्का शर्मा,
यह भारत है इसने औरत को सदा ही भरमा,

इश्क करने चली सरूपण-खां तो नाक कटी,
सीता ने लांघी लक्ष्मण रेखा तो गई हरी|
जुआ खेले युधिष्टर, चीर द्रोपदी की फ़टी,
जुआ खेले नल बेचे सौदे में सती दमयंती||
बलात्कार इंद्र करे, अहिल्या को पत्थर का दिया बना|
यह भारत है इसने औरत को सदा ही भरमा|

आरएसएस कहती खेल अंग्रेजों का, आज भी क्यों ढोवें,
पर गुलामी जाती नहीं, जब तक दिमाग को ना धोवें|
विराट ने जुआ छोड़ क्रिकेट की तरफ तरक्की कर ली,
पर इसमें भी हारे तो राष्ट्रीय पनौती बोल तू धर ली||
ऑस्ट्रेलिया की धरती पे, तेरा बन्दर दिया बना|
यह भारत है इसने औरत को सदा ही भरमा|

तेरा कोई दोष नहीं, यह भारत है ना कि इंग्लैण्ड,
तेजपाल हो, आशाराम हो या भागवत का बैंड|
दोष इंडिया को ही देंगे, भारत अनटोल्ड स्टैंड,
दामिनी हो, कामिनी हो, तोलें सबको एक ट्रेंड ||
कभी कपड़े कभी मोबाइल, देवें तुझपे जाम बिठा|
यह भारत है इसने औरत को सदा ही भरमा|

पर बैलेंस तो तुझे भी कहीं ना कहीं धरना पड़ेगा,
विश्वामित्र का तप मेनका ने तोड़ा, कौन ना कहेगा?
क्या कहें जीवन और प्यार की हैं इतनी ही कठिन राही,
'फुल्ले भगत' नहीं समझ पाया, तू कौनसी खेली-खाई||
तुझको पनौती कहने के विरुद्ध, मैं लिखूं कलम उठा|
यह भारत है इसने औरत को सदा ही भरमा|

तेरा कोई दोष नहीं, ओ नारी अनुष्का शर्मा,
यह भारत है इसने औरत को सदा ही भरमा|

Author: Phool Malik

संघ में जाट मान-मान्यताओं, सभ्यता-संस्कृति का क्या स्थान?

संघी बने जाटों से मेरे कुछ सवाल!

कृपया इसको अन्यथा ना लेवें, दिल साफ़ है, दिमाग साफ़ है, सिर्फ मेरी उत्सुकता हेतु यह सवाल हैं:

A) जाट धर्म की 19 मान्यताओं {1. दादा खेड़ा (पर्यायवाची - बाबा जठेरा, बाबा भूमिया, दादा बड़ा बीर, दादा नगर खेड़ा, दादा बैया, दादा भैया, ग्राम खेड़ा आदि) को सबसे बड़ा देवता मानना, 2. घंटी की जगह थाली बजाना, 3. देवदासी विरोधी होना, 4. विधवा विवाह समर्थक होना, 5. सती-प्रथा विरोधी होना, 6. तलाक के बाद औरत को पहले पति से जीवन-यापन दिलवाना, 7. खाप सोशल इंजीनियरिंग सिस्टम, 8. जाटों का अपना मोर-ध्वज होना, 9. जाटों द्वारा हवेलियों पर मोरनी चढ़ाने की प्रथा (अब लुप्तप्राय), 10. जाटों में यौद्धा की जगह यौद्धेय होना, 11. अपनी अलग से जाटू (हरियाणवी) भाषा (पंजाबी और हिंदी के साथ-साथ) होना, 12. मूर्ती-पूजा के विरोधी होना, 13. स्व-गोत में विवाह की अनुमति नहीं होना, 14. गाम-गोत-गुहांड वाली संस्कृति होना, 15. मालिक-नौकर की जगह सीरी-साझी की सभ्यता होना, 16. किसी भी प्रकार की पशुबलि-नरबलि विरोधी होना, 17. सैद्धांतिक तौर पर शाकाहारी होना, 18. मठ से संबंधित कहावतें होना, 19. खेड़े के गोत को गाँव में प्राथमिकता होना} का संघियों के यहां क्या बखान और स्थान है?

B) इन 19 शुद्ध जाट मान्यताओं का कितने संघियों को पता है और वो इनको उनके तंत्र में कितना स्थान देते हैं? वह इनके संवर्धन और प्रचार बारे क्या सोचते हैं?

C) जाट महापुरुषों, महावीरांगनाओं, यौद्धेय/यौद्धेयाओं, राजा-महाराजाओं, स्वंत्रता सेनानियों, समाजसेवकों का संघ के साहित्य में क्या और कितना जिक्र आता है? कौनसे-कौनसे मौकों पर इनमें से किसी को भी याद किया जाता है और क्या सम्मान दिया जाता है?

D) जाट संस्कृति को बचाये और बनाये रखने के लिए संघ के पास क्या एजेंडा है?

E) धर्म के नाम पर कुर्बान होने वाले उदाहरणत: मुज़फ्फरनगर के दंगों में फंसे जाटों को छुड़वाने के लिए संघ क्या प्रयास कर रहा है? धर्म के नाम पर बलि देने वालों के पुनर्वास की संघ के पास क्या नीति है?

F) आपकी कितनी और किस स्तर की भागीदारी संघ में है, खैर यह सवाल तो इतना महत्वपूर्ण नहीं परन्तु फिर भी कोई रौशनी डालना चाहे तो इसपे भी डालें|

गैर-जाट संघी भी चाहे तो मेरे इन सवालों के जवाब दे सकता है| देखते हैं कौन संघी इन बातों के आशानुरूप जवाब दे पाता है|

बाकी गैर-संघी यानी मेरे जैसे जाट इस डिबेट में संयम और सौहार्द बनाएं रखें, ताकि एक शांतिपूर्ण और मैत्री माहौल में इन लोगों को हमारे इन बिन्दुओं पर सुना जा सके|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Tuesday, 24 March 2015

टैलेंट बनाम आरक्षण!


जैसे किसान के उत्पाद का दाम निर्धारित करने का आरक्षण व्यापारी जाति के पास है, जैसे किसान की भक्ति को हाईजैक करके लेबलिंग करने का आरक्षण पुजारी जाति के पास है, क्या ठीक वैसे ही व्यापारी के उत्पाद का दाम भी किसान को निर्धारित करने का आरक्षण नहीं होना चाहिए और पुजारी के दान का हिसाब-किताब करने का आरक्षण भी किसान-कमेरे को नहीं होना चाहिए?

अरे इतने सारे जाति पर आधारित आरक्षण पहले से लिए बैठे हो, और एक मात्र नौकरियों के आरक्षण पे रोते हो? नहीं शायद सही कहते हो, ...अब इस जाती आधारित आरक्षण को खत्म कर ही देना चाहिए, तो चलो पहले खत्म करो यह दोनों आरक्षण जो कि बाकी के तमाम आरक्षणों की जड़ हैं|

यह उन महानुभावों के लिए है जो यह कहते हैं कि जिसको जो काम आता है, उसको वही करना चाहिए|

अरे किसान को नहीं चाहिए व्यापारी के उत्पादों का दाम निर्धारित करने का आरक्षण या पुजारी के दान का हिसाब-किताब रखने का आरक्षण, किसान को उसके उत्पाद का दाम निर्धारित करने का आरक्षण दे दो, फिर हो जाने दो नौकरियों का आरक्षण खत्म, कोई परवाह नहीं|

अन्यथा नौकरियों में जातिगत अथवा किसी भी प्रकार का आरक्षण खत्म करने पे बोलने वाले, पहले अपना गिरेबान झांकें|

यह "तुम्हारा टैलेंट, टैलेंट, बाकियों का टैलेंट गोबर" वाली मत करो| जानते हैं नौकरियों में जैसा टैलेंट चलता है, 90% डोनेसन पे डिग्री ले, बाद में सिफारस और भाई-भतीजावाद के जरिये लगे हुए होते हैं|

और फिर आपको नौकरियों में ही आरक्षण खत्म क्यों चाहिए, आप खेतों में हल चलाने के लिए आरक्षण क्यों नहीं मांगते? आप लोग बोलो ना कि हमें भी हल चलाना है, इसलिए हमें हल चलाने का आरक्षण दो| तब पता लगे टैलेंट के दम का तो|

Monday, 23 March 2015

जातीय और वर्णीय सेकुलरिज्म!

हिन्दू होते हुए जो मुस्लिम के लिए बोले, वो तो हो गया 'धार्मिक सेक्युलर'; और सिर्फ हिन्दू और हिन्दुइस्म की बात करने वाला हो गया 'तथाकथित राष्ट्रवादी'|

तो ऐसे ही हिन्दू की जाति या वर्ण का होते हुए जो अपने लिए बोलने से पहले बाकी की 35 कौमों या 4 वर्णों की बात करे वो भी तो 'जातीय या वर्णीय सेक्युलर' होना चाहिए ना; और जो सिर्फ अपनी और अपनी जाति की बात करे वो ही शुद्ध रूप से राष्ट्रवादी होना चाहिए, नहीं?

जैसे 'धार्मिक सेक्युलरलिस्म' है ऐसे ही 'जातीय और वर्णीय सेकुलरिज्म' है; फर्क सिर्फ इतना है कि वो धर्म के लेवल का है और यह जाति और वर्ण के लेवल का| इसलिए आज से अपने लिए बोलने से पहले बाकियों के लिए बोलने वाले 'जातीय और वर्णीय सेकुलरिज्म' को भी अब खत्म कर देना चाहिए| और सिर्फ उन नश्लों से सेकुलरिज्म बढ़ाना चाहिए जो आपको अपना समझती हों और जो आपके लिए कारोबारी तौर पर व् विचारात्मक तौर पर समकक्ष हों| इस अंधे 'जातीय और वर्णीय सेकुलरिज्म' को अब तिलांजलि हो| अब जमाना आ गया है सेकुलरिज्म के नाम पर धर्म के बाद इस 'जातीय और वर्णीय सेकुलरिज्म' के कीड़ों की भी केटेगरी डिफाइन करने का, और इनको तिलांजलि देने का|

जाट-दलित व् अल्पसंख्यकों के एक होने का दौर!


जाट पहले कट्टर बौद्ध थे। सम्राट कनिष्क और सम्राट हर्षवर्धन जाट थे और बहुत ही प्रसिद्ध बौद्ध सम्राट थे। लेकिन, फंडियों ने इन बौद्ध सम्राटों को अलग अलग षड्यंत्र करके नष्ट कर दिया। और इसी विखंडन का जोर था कि हरियाणा में तो आज भी "मार दिया मठ", "हो गया मठ", "कर दिया मठ" जैसी विनाश की धोतक कहावतें चलती हैं|

फंडियों को पता है कि जाट लोग प्राचीन बौद्ध है और तुम्हारे फंडों में कभी नहीं आएंगे| इसलिए फंडी लोग जाट आरक्षण के कट्टर विरोधी हैं। जाट अपना प्राचीन इतिहास भूले बैठे हैं और धूर्त फंडियों के बहकावे में आकर खुद को उच्चवर्णीय समझने की गफलत में डाले जा रहे हैं, जबकि वास्तविकता यह है कि हम इनकी बनाई किसी भी प्रकार की वर्ण-व्यवस्था और जाति-व्यस्था में आते ही नहीं हैं|

इनके बहकाये हुए जाट अपने काम-काज से ले के दुःख-सुख के साथी दलित भाईयों से द्वेष रखने लगे हैं और कहीं-कहीं तो उन पर अन्याय-अत्याचार कर रहे हैं। इनका फैलाया यह जहर इतना व्यापक है कि दलित भी जाट से द्वेष रखते हुए पाये जाने लगे हैं, जिसको कि तुरंत प्रभाव से खत्म करने के प्रयास होने चाहिए|

अगर हमें अपना विकास करना है तो पहले फंडियों के धार्मिक बंधनों में से बाहर आना पडेगा और दलित व धार्मिक अल्पसंख्याकों ( SC/ST/SBC/other OBC and converted minorities) के साथ एक COMMON FRONT बनाना होगा। ताकि मंडी और फंडी हमारी फूट के चलते हमारे जो अधिकार-साधन-सम्पदा-सम्पत्ति दबाये बैठे हैं, उनको इनसे लिया जा सके|

Sunday, 22 March 2015

जाट आरक्षण रद्द होने के बाद अगला कौन?


जाट आरक्षण रद्द होना, ST/SC व् OBC के लिए जश्न मनाने का नहीं अपितु सचेत हो जाने का संकेत!

क्योंकि काफी पहले से आरक्षण के खिलाफ मंडी-फंडी जो विरोधी शुर अलापते आ रहे थे, अब 'जाट आरक्षण रद्द' होने को बेंचमार्क डिसिशन (benchmark decision) मान कर गुज्जर-यादव व् अन्य OBCs के आरक्षण के साथ-साथ दलितों के आरक्षण को भी ऐसे ही तर्क दिलवा के रद्द करवाने की कोशिश करेगा, ऐसे पूरे आसार बन गए हैं|
इसलिए आप लोग जाटों के आरक्षण रद्द होने की ख़ुशी मनाने से ज्यादा इस पर सोचिये कि मंडी-फंडी के निशाने पे आप में से अगला कौन?

और इस पर आगे बढ़ने से मंडी को रोकना है तो अब आप लोग इनसे आपके (खासकर किसानी जातियां) सदियों से आपकी फसलों व् उत्पादों के विक्रय दाम निर्धारित करने का आरक्षण जो यह लोग लिए बैठे हैं, इसको लेने की आवाज उठाना शुरू कीजिये|

और इस पर आगे बढ़ने से फंडी को रोकना है तो अब आप लोग इनसे मंदिरों में आपकी जाति के प्रतिशत के हिसाब से पुजारी-महंत बनने व् इसी प्रतिशत में मंदिरों की सम्पत्ति पर अपना आरक्षण मांगना शुरू कीजिये|
वरना कहीं ऐसा ना हो कि आप लोग जाटों का आरक्षण रद्द होने की ख़ुशी में डूबे रहो और कल को पता लगे आपमें से भी किसी का रद्द हो गया, और एक दिन पूरा आरक्षण ही खत्म हो गया|

और जिस प्रकार से जाट आरक्षण के रद्द होने की मंडी-फंडी (जिनको कि इससे कोई फायदा ही नहीं होना था) तक ख़ुशी मना रहा है, कहीं यह ख़ुशी आरक्षण को पूर्णत: खत्म करवाने के उनके मंसूबे की पहली चाल के सफल होने के आयोजन में ना हो, कि जाटों का रद्द करवा दिया तो बाकियों का चुटकियों में करवा देंगे, जाटों वाले केस को बेंचमार्क मानते हुए| इसलिए जाटों से बिखरा रहने की बजाय जुड़ने की सोचें|
 

Thursday, 19 March 2015

"किसानों को आज़ाद कराएं, मस्ती में हम मस्ताने"


(लैंड-बिल 2015 यानी गुलाम किसान)

सर पे कफ़न बाँध कैं आये, हम आज़ादी के दीवाने,
किसानों को आज़ाद कराएं, मस्ती में हम मस्ताने|


इंकलाब और जिंदाबाद का, मिलकेँ लगा रहे नारा,
हे भगवान कौण दिन होगा, जब हो राज-काज म्हारा|
जमीं हो अपणी, आसमान पर चमकै किसानों का तारा,
मेळे लगें चिताओं पै म्हारी, हँसता रहै किसान सारा||
मुर्दाबाद जुल्म हो थारा, यें डह ज्यांगे चौकी-थाणे|
किसानों को आज़ाद कराएं, मस्ती में हम मस्ताने|

सर देणे की हमें तमन्ना, देखेंगें महाघोर तेरा,
वक्त आणे दे, गूँज उठैगा, पाप रूप का शोर तेरा|
चेहरे पै काळस पुत री है, खुद है मन म चोर तेरा,
चढ़-चढ़ कैं कितने गिरगे, के सदा रहगा जोर तेरा||
रळै रेत म्ह बोर तेरा, यें शमा पै जळ ज्याँ परवाने|
किसानों को आज़ाद कराएं, मस्ती में हम मस्ताने|

वतन की इज्जत ऊंचीं हो हम इसकी आस करणीया हैं,
मंडी-फंडी हुकूमत की जड़ पाडेँ, दाहूँ नाश करणीया हैं|
किसान-कौम की आज़ादी की, हम दरखास करणीया हैं,
जीणे से ज्यादा मरणे का, हम अभ्यास करणीया हैं|
धरती-माँ के लाल हमें हैं, अपने फर्ज पुगाणे|
किसानों को आज़ाद कराएं, मस्ती में हम मस्ताने|

झूंम-झूंम कैं गाण लगे अब, नहीं हमें गुलाम करो,
नहीं किसान झुकै कभी भी, चाहे तुम कितणा त्रास करो|
न्यूं ही किसान चलता जावैगा, जुल्म को जालिम ख़ास करो,
'फुल्ले-भगत' टिल्ले म जा कैं, खूब जोर से अभ्यास करो||
फांसी द्यो या जन्म-कैद, लिए पहर केसरी अब बाणे|
किसानों को आज़ाद कराएं, मस्ती में हम मस्ताने|

सर पे कफ़न बाँध कैं आये, हम आज़ादी के दीवाने,
किसानों को आज़ाद कराएं, मस्ती में हम मस्ताने|

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