Friday, 11 March 2016

व्यापारिक हो या कृषि-संबंधी, सबके नुकसान संबंधित सर्वे, मुवावजे और भुगतान एक ही पैटर्न पर होने चाहियें!


हाल-ही में हुए हरयाणा दंगों में हुए व्यापारिक नुकसान बारे हो रहे सर्वे, मुवावजे और इनके आवंटन के तरीकों से देश की तमाम किसान यूनियनों, संगठनों एवं किसानों द्वारा भी उनके नुकसानों की भी ऐसे ही भरपाई बारे आवाज उठानी और मांग करनी चाहिए| जैसे:

1) आज हरयाणा कैबिनेट मिनिस्टर कविता जैन ने लोकल बॉडीज डिपार्टमेंट्स की मीटिंग ली, जिसमें हरयाणा दंगों में शहरों में हुए नुकसान के सर्वे के लिए समिति बनाई गई है| इसमें रोचक बात यह है कि इसमें हर शहर से एक मेंबर मार्किट एसोसिएशन का लिया गया है ताकि व्यापारियों को ज्यादा मुवावजा दिलवाया जा सके| इससे पहले किसानों की फसलों के कभी बाढ़, कभी बारिश, कभी सूखा तो कभी बीमारी के चलते नुकसान के कितने ही सर्वे हुए, परन्तु कभी नहीं सुनने-देखने में आया कि ऐसे सर्वे वाली कमेटियों में कोई किसान यूनियन या संघटनों का सदस्य भी रहा हो| तो अब से किसानों की हर संस्था-संगठन को इस पर भविष्य के लिए सतर्क भी रहना चाहिए और इसकी मांग उठानी चाहिए कि जब-जब किसानों का नुकसान हो तो उनका भी सर्वे इसी तर्ज पर हो|
 

2) व्यापारियों का नुकसान हुआ तो 25% मुवावजा राशि एडवांस में जारी कर दी गई, परन्तु जब किसानों के नुकसान होते हैं तो एडवांस तो दूर, वक्त पे मुवावजा ही मिल जाये तो गनीमत है| इसलिए किसान संगठनों को इस पर भी संज्ञान लेना चाहिए और ऐसा ही कानून या प्रावधान किसानों के लिए हो कि भविष्य में नुकसान होते ही 25% मुवावजा राशि तुरंत जारी हो जाए|

3) सुना है एमएलए लोगों की एक महीने की तनख्वाह इन दंगों के लिए ली जा रही है या एमएलए लोगों ने खुद दी है| किसान संगठनों को चाहिए कि ऐसी ही दरियादिली यह लोग तब भी दिखावें जब किसान का नुकसान होवे|

4) जितनी तीव्रता और कम समय कहिये या जिस भी समयावधि में यह कार्य इस बार हो रहे हैं, इसको नोट करना चाहिए और इसी तरीके की संवेदनशीलता और तीव्रता से किसानों के मामले में कार्यवाही होनी चाहिए|
आज सरकार ने सफेद मक्खी से पीड़ित किसानों के लिये 972 करोड़ रूपये का पैकेज घोषित किया है, इसको इन ऊपर बताये तरीकों की तर्ज दिलवाने हेतु आवाज उठाने का प्रैक्टिकल बनाया जा सकता है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

मैं भाईचारे की माँ हूँ, गोदी से बच्चा कैसे छीन ले जाने दूँ!

पहली कक्षा से ले के अंत तक मेरी पूरी पढाई शहर में हुई, परन्तु जब भी छुट्टियों में गाँव जाता था तो वहाँ सिर्फ मेरा घर नहीं अपितु पूरी 36 बिरादरी के घर-लोग मेरे होते थे| आज जब बीजेपी वालों की गंदी राजनीति के चलते कहीं पैंतीस बनाम एक तो कहीं जाट बनाम नॉन-जाट छिड़ा हुआ है, ऐसे में यह यादें सर चढ़ के बोल रही हैं| और कह रही हैं क्या यूँ बैठे-बिठाए ही यह राजनेता तुम्हारे भाईचारे को ऐसे छीन ले जायेंगे, जैसे एक माँ की गोदी से बच्चा? आईये जरा बताऊँ आपको, मेरे हरयाणे की भाईचारे की परिभाषा दिखलाऊं आपको:
 
1) दादी रिशाले की डूमणी : जब अपनी मधुर वाणी में आल्हों-छंद-टेक के रूप में एक साँस में मलिक गठवाला जाटों (लेखक मलिक गठवाला जाट है) का 'यो घासीराम का पोता' की टेक लगा के इतिहास बखाया करती तो तन-मन का रोम-रोम पुलकित हो उठता था| दादी जी जब तक जीयी सिर्फ मेरी निडाना नगरी (हिंदी में गाँव) ही नहीं अपितु मलिक जाटों के सोनीपत से ले रोहतक-हिसार तक के गाँवों में बेपनाह इज्जत पाती रही और वो भी बावजूद मुस्लिम धर्म की होने के|
 
2) दादा मोजी बनिया का परिवार (general): हमारे घर के बिलकुल सामने घर है| सब सीतापुर व् दिल्ली शिफ्ट हो चुके हैं| परन्तु जब भी गाँव आना होता है तो खाना-पीना-सोना सब हमारे घर पे होता है| अपने घर की जिम्मेदारी भी हमपे छोड़ी हुई है| हर ब्याह-शादी, दुःख-सुख में आना-जाना आज भी जारी है|
 
3) ताऊ रामचन्द्र छिम्बी (राजपूत - obc): जींद की पुरानी कचहरी के बगल वाली मार्किट में एक बनिए की कपड़ों की दुकान के स्थाई टेलर| एक बार दादी ने इनके बारे बताया तो मोह इतना बना रहा कि जब भी उधर जाता तो उस दुकान पे इनको देखने और मिलने जरूर जाता| शायद गाँव की संस्कृति और गरिमा का ही मोह था जो उधर खींच के ले जाता था| गाँव में इनके परिवार से आज भी वही आत्मीयता है| बचपन में इनके घर अक्सर दादी भेजती रहती थी| रामचन्द्र ताऊ मेरे लिए गांव के चंद उन पुरुषों में हैं जो हरयाणवी संस्कृति के धोतक माने जाते हैं|
 
4) ताऊ मेषरा ऐहड़ी (कश्यप राजपूत – sc/st): मेरे पिता जी के साथ इनका अक्सर कम्पटीशन रहता था कि कौन ज्यादा काम करता है (हरयाणा में बिहार-बंगाल का सामंतवाद ढूंढने वाले लेफ्टिस्ट भी ध्यान देवें इस बात पे)| हमारे यहां सीरी रहे (हरयाणवी में सीरी यानी काम में पार्टनर, हिंदी व् गैर-हरयाणवी लोगों की भाषा में नौकर)। इनके बच्चे भी सीरी रहे| ताई के तो कहने ही क्या| इतनी आत्मीयता में भरी औरत, बस एक बार इनके घर के आगे से गुजर जाओ, आपसे पहले खुद ही 'आइये रे मेरा बेटा फूल' की झोली देते हुए बुला लेंगी| बैठा के आवभगत करना और घर-गाँव-गुहांड की बताना| ताई खुद भी हंसोकड़ी हैं और इनके हंसी-मिजाज के किस्से भी बहुत मशहूर हैं पूरे निडाना में|
 
5) दादा जल्ले लुहार (हिन्दू -obc): गाँव में जब छुट्टियों में जाता था तो पिता जी अक्सर इनके पास खेती के औजारों को धार लगवाने या मरम्मत के लिए गए औजार लाने भेजा करते थे| इनकी पत्नी यानि दादी जी घर के सदस्य से भी बढ़कर आवभगत करती थी|
 
6) दादा नवाब लुहार (मुस्लिम): इनकी बूढी माँ होती थी, जब भी इनके घर की तरफ जाता तो मुझे बुला के अक्सर गोदी में बैठा के लाड करती थी| इनके घर में चारपाई की बड़ी चद्दर से बना हुआ बड़ा सा पंखा होता था, जिसको टूलने में मुझे बड़ा मजा आता था|
 
7) काका लीला कुम्हार (मुस्लिम): बचपन में इनकी दुकान मेरे घर के बिलकुल सामने होती थी, खेलता-खेलता गली में निकल आता तो अपनी सगी औलाद की भांति, इनकी अपनी दुकान पे कम और मुझ पर ज्यादा नजर रहती थी कि कहीं कोई व्हीकल या जानवर लड़के को नुकसान ना कर जाए| बड़ा हुआ तो इनके घर स्वत: अक्सर चला जाता था| इनकी अम्मा यानी मेरी दादी और इनकी धर्मपत्नी यानी मेरी काकी, खूब अच्छे से खिलाती पिलाती थी| बहुत बार तो जैसे बच्चा अपने घर में बिना किसी से पूछे रसोई से रोटी उठा के खा लेता है, सीधा इनकी रसोई में घुस जाता और खुद ही उठा के खा लेता| बहुतों बार जब भी काका आक पे पकने के लिए बर्तन चढ़ाते थे तो साथ लग के चढ़वाता था|
 
8) ताऊ पृथ्वी कुम्हार (मुस्लिम): लीला काका के ही बड़े भाई, आज भी गाँव के सबसे व्यस्तम चौराहे पर, मेरे घर के सामने दुकान है इनकी| बचपन से मेरे घर का खुला खाता चलता है|
 
9) ताऊ पाल्ले नाई (obc): पिता की भांति सख्त आदमी, नारियल के जैसे| यह दादा-पिता जी की हेयर-ड्रेसिंग करते आये और इनकी पत्नी यानि ताई जी दादी-बुआ-माँ की| बाकी नाईयों से बिलकुल भिन्न, कभी सर नहीं चढ़ाया, परन्तु जायज बात पे पीठ थपथपाई और गलत पे धमकाया भी|
 
10) दादा कलिया कुम्हार (हिंदू - obc): हमारे घर के कुम्हार| इनका और इनकी पत्नी का जोड़ा, आज भी गाँव के सुंदरतम जोड़ों में गिना जाता है| जब भी इनके घर जाना होता तो हमेशा अपनों-सी-आवभगत मिलती|
 
11) दादा जिले ब्राह्मण (general): हमारे खेतों के पड़ोसी| खेतों में जाटों के बाद किसी के साथ सबसे ज्यादा काम में हाथ बंटवाया तो इनके साथ|
 
12) दादा छोटू तेल्ली (मुस्लिम): गाँव के सबसे शालीन, मृदुल भाषी बुजुर्ग| घर पे अक्सर आते| घर-खेत-घेर सबकी रखवाली करते| गाँव की प्राचीन बातें और इतिहास बहुत जानते थे| जब यह घर आते थे, तो मैं अक्सर सारे काम छोड़ के इनके पास बैठ जाता और गाँव की संस्कृति और इतिहास की बातें खोद-खोद के सुनता रहता|
 
13) ताऊ लख्मी झिम्मर (sc/st): हमारे गाँव का सबसे पुराना तेल का कारखाना, उन्नसवीं सदी की मशीनें हैं आज भी इनकी चक्की में| जितना इनका हम से लगाव, उससे कहीं ज्यादा इनके बच्चों का| हमारे यहां अक्सर जब भी बिहारी मजदूर आते हैं तो इन्हीं की चक्की से आटा पिसवाया जाता है| घर में जब चक्की खराब हो जाती है तो इन्हीं के यहां जाता है| सरसों का तेल निकलवाना तो भी| मेरी आदत है इंवेस्टिगेट करने की, जब भी इनकी चक्की पे गया, पूरी वर्कशॉप में ऐसे छानबीन करते घूमता हूँ जैसे मेरे घर की चक्की हो|
 
14) दादा भीमा खाती (obc): मेरे दादा जी के सबसे पुराने और गूढ़ साथियों में एक| हमारे घर के लकड़ी के काम से ले के मकान बनाने तक के सबसे ज्यादा कार्य इन्होनें और इनके बेटे दादा रमेश ने किये हैं| जब भी इनके घर जाना हुआ, दादी ने कभी भी बैठा के बातें करना नहीं छोड़ी| मेरे दादा जी कैसे बारातों में हमारे 'गाम-गोत-गुहांड' संस्कृति के तहत जिस गांव में बारात गई, वहाँ हमारे गाँव की 36 बिरादरी की बेटियों की मान करने सबसे आगे होते थे, सब कुछ इत्मीनान से बताया करते थे| मेरे पिताजी हमें कभी डांट लगाते और दादा जी देखते होते तो मेरे पिता जी को भी फटकारने से पीछे नहीं हटते थे, इतना हक़ और दखल होता था दादा का हमारी पारिवारिक जिंदगी में|
 
15) दादा रामकरण खाती (obc): बच्चों से लाड करने के मामले में, यह वाले दादा तो आज भी बड़े नहीं हुए हैं| क्या मैं और क्या अब मेरे भतीजे-भांजी देखते ही दूर से ऐसे आवाज लगाएंगे कि 'आईये छोटे साहब, क्या हाल हैं; खूब कुप्पा हो गया हमारा साहब!'| गली में से निकलते हों और बालकनी में हम में से कोई खड़ा हो तो इनको देख के हमें भी जोश चढ़ता और देखते ही नमस्ते करते| और यह गली में तब तक ऊँची आवाजों से हमसे बतलाते चले जाते, जब तक कि आँखों से ओझल नहीं हो जाते|
 
16) काका इंद्रा ऐहड़ी (कश्यप राजपूत – sc/st): ऐहड़ियों में दूसरे ऐसे व्यक्ति जो सबसे ज्यादा सीरी रहे हमारे यहां| वैध जी के कई सारे देशी नुश्खे भी जानते होते थे| काकी के तो कहने ही क्या| व्यवहार की शालीनता और अपनापन, आज भी यूँ का यूँ याद है| इनके घर बैठे हों, ऊपर से कोई हवाई जहाज निकल जाए तो कह उठती कि एक दिन फूल भी इन्हीं में उड़ेगा| आज सोचता हूँ कि कहीं ना कहीं काकी की दुआओं का भी हाथ है मुझे विदेश तक पहुंचाने में|
 
17) राजपाल ऐहड़ी (कश्यप राजपूत – sc/st): शायद पांच साल सीरी रहा| ऊत मानस, नाते में भाई लगता है तो मेरा जो जी करे कहूँ| खेत के काम में परफेक्ट, हंसी-मखौल में अव्वल और शरारतें करने में उस्ताद| जब ज्यादा काइयाँपने पे उतरता तो इसको तो मैं अक्सर कह दिया करता, मखा मालिक तू सै कि मैं| तो फिर कहता भाई आप्पाँ तो सीरी-साझी यानि पार्टनर हैं| मखा हैं, पर तेरी रग-रग मैं जानू, जब तक ना दबाऊं, तूने सीधा चलना नहीं होता| ऐसा हंसी-मखोल की नोक-झोंक भरा रिश्ता| आज भी गाँव जाऊं, सामने टकरा जाए तो बन्दे की मिलने और बात करने की आत्मीयता दिल छू जाती है|
 
18) दादा भुण्डा चमार (sc): "अनुराधा बेनीवाल को फूल मलिक का जवाब" वाले मेरे लेख में बताया था कि मेरे गाँव में चमारों की 50-60 साल पुरानी जाटों को टक्कर देती दो हवेलियां खड़ी हैं, उनमें से एक इन्हीं दादा की है| मेरे घर में मेरी देखत में सबसे ज्यादा सीरी रहे हैं| वो कहावत है ना कि "चमार आधा जाट होता है|" वो ऐसे ही चमारों बारे बनी है| नंबर एक नसेड़ी माणस, दारू पीने लग जाए तो तीन-तीन महीने काम पे ना आये| इनमें सबसे बड़ी क्वालिटी होती थी जानवरों को अच्छे से संभालने की| इनकी ब्रांड वैल्यू यह है कि जिसके घर यह सीरी लग गए, समझो उस घर की गाय-भैंसे दो महीने में ही मोटी हो जाएँगी| मेरे लिए सबसे डेडिकेटेड आदमी| पिता-दादी से किसी वजह से रूठ जाएँ तो भी मेरे कहने पे हरदम तैयार| स्वर्गीय दादा जी के मोस्ट-फेवरेट सीरियों में होते थे| इनकी पत्नी और माँ की आत्मीयता आज भी हृदय में लिए चलता हूँ|
 
19) काका धीरा चमार (sc): दादा भुण्डा के साथ अक्सर ये ही जोड़ी में सीरी रहते थे| दोनों कम से कम छ-सात साल एक साथ सीरी रहे| इनकी अक्सर बड़े भाई से भिड़ंत होती थी और वो भी कौनसे वाली| मान लो पिता जी खेत से चले गए और बड़ा भाई खेत में है तो वो अक्सर ट्रेक्टर को छेड़ेगा, तो यह कहेंगे कि 'तेरा बाब्बू मेरे भरोसे छोड़ के गया है, किममें तोड़-फोड़ ना कर दिए इसमें|' और बड़ा भाई इनसे उलझता कि मुझे क्या समझ नहीं है| और ऐसी ही छोटी-छोटी नोंक-झोंक, परन्तु काका के दिमाग में अपने साझी के नुकसान की चिंता|
 
20) काका धर्मबीर चमार (sc): जब मैं बारहवीं करता था तो ये बीए करते थे, अक्सर मजदूरी पर आते थे| मैं इनकी शिक्षा के प्रति लगन से बहुत प्रभावित था| बड़े अच्छे मित्र थे और यकीं है कि आज भी हैं|
 
21) काका सुरेश चमार (sc): आज के दिन गाँव के सरपंच हैं| मेरी माँ के फेवरेट| सबसे ज्यादा छोटी मजदूरी पर यही आते रहे हैं| घर-खेत में मजदूरी के अलावा, रख-रखाव और सुरक्षा की अपनों जैसी चिंता| इनके पिताजी तो देखते ही गले लगा लिया करते थे| दिखा नहीं कि आइये रे मेरे फूल पोता| और फिर गांव-गलिहार की नई-पुरानी बातें बताने लग जाते|
 
22) दादा चंदन चमार (sc): बचपन में हमारे घर के आगे अपनी जूती गांठने की स्टाल लगाया करते थे| लंच करने घर जाते तो सारा सामान समेट के हमारे घर रख जाते (रात को तो रखना होता ही था)| इनको छोटे बच्चों को चुहिया की आवाज निकाल के उससे डराने का बड़ा शौक होता था| सयाने और शातिर दोनों के लिए फेमस थे|
 
23) काका महेंद्र धाणक (sc): यह और इनके पिताजी दादा किदारा धाणक, पूरे परिवार के साथ सीरी-साझी का रिश्ता रहा| हमेशा अपनी औलाद की भांति व्यवहार मिला| दादी-काकी सब बड़ी ही आत्मीयता से बोलती और मान देती|
 
24) दादा दयानंद धाणक (sc): अभी जब 2014 में इंडिया गया था तो इनके पास बैठ के पूरे गाँव के इतिहास के अनखुले, अनुसने पन्ने लिख के लाया था| मेरे पिता-दादा के साथ मेरे व्यवहार को भी खूब सराहा| जब तक बैठा रहा, 15-20 लोग मेरे इर्दगिर्द रहे| उठ के जाने का टाइम हुआ तो मैंने ही चाय के लिए कहा| कहने लगे कि बिलकुल अपने पिता पे गया है| उस आदमी (मेरे पिता जी) ने भी दलित के हाथ की चाय पीने से, दलितों के बच्चे गोद में ले के खिलाने से कभी परहेज नहीं किया| मुझसे माफ़ी के लहजे में बोले कि भाई आप विदेश में रहते हो तो हमें लगा कि कहाँ हमारे घर की चाय पिओगे| उस चाय का स्वाद आज भी साथ है|
 
25) आटा चक्की वाला काका संजय बनिया (general): खूब मोटा और हमेशा आटे की चक्की के चून में सफेद हुआ रहना, यही पहली तस्वीर उभरती है, जब इनके बारे दिमाग में आया तो| खड्डे वाले बनिए बोलते थे इनको, आज जींद शिफ्ट हो चुके| परन्तु घर औरतों का व्यवहार आज भी यूँ का यूँ जारी है|
 
26) दादा हांडा सुनार (obc): गाँव का सबसे खड़कू आदमी| बच्चे डरते थे इनसे| सुनार की दूकान के साथ-साथ टायर-पंचर की दुकान भी चलाते थे| मेरी अक्सर साइकिल में हवा भरने पे इनसे लड़ाई होती थी| परन्तु लड़-झगड़ के फिर खुद ही भर देते थे| और घुरकी देते कि तू तो बालक है, तेरे से क्या अड़ूं, तेरे बाबू को भेजियो फिर देखता हूँ| और इतनी हंसी आती कि पेट फट जाते|

बाकी मैं (लेखक) खुद जाट हूँ तो जाटू संस्कृति की मिलनसारिता और मधुरिमा का उधर वाला पक्ष भी लिखने लगूंगा तो फिर कहानी अंतहीन लम्बी हो जाएगी|
तो अरे ओ नादानों, समाज को कभी धर्म तो कभी जाति में तोड़ के राज करने की कुमंशा रखने वालो, तुम्हें क्या लगता है तुम माँ की गोदी से बच्चा छीनोगे और हम यूँ बैठे-बिठाए ही छीन ले जाने देंगे? इतनी कमजोर नहीं हमारी संस्कृति, यह हरयाणा है, होश करो|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Wednesday, 9 March 2016

Haryana prima-facie needs these laws to tackle current scenario in the state!


  1. Social Jury System: To fight caste, class and varna hegemony in society
  2. Anti-trust law for Society: e.g. The Sherman Antitrust Act prohibits monopolies and restraint of trade. Same the society needs to tackle derogatory conspiracies like Jat versus non-Jat or so called 35 versus 1 biradari.
  3. Prevention of Psychological Atrocities Law: A law which prohibits use of caste/religion words by media, politicians and religious reps alike SC/ST Act, to further nail them from illegal, impartial and derogatory media trials and mental tortures.
Note: If these laws already exist in our constitution then public needs to be sensitive and aware enough to force the system to get these acts in practice.

Jai Yauddhey! - Phool Kumar Malik

"जाट चैंबर ऑफ़ कॉमर्स" और "पैसा तुम्हारा, जमीन हमारी"!

जाट आरक्षण एजिटेसन से और इस पर स्टेट से लेकर सेंटर तक की सरकारों ने जाट को दबाव में लेने हेतु जो षड्यंत्र पर षड्यंत्रों की झड़ी लगाई, उससे जो अगला कदम जाट समाज के लिए सर्वोत्तम हो सकता है वो इस लेख का शीर्षक हैं|

'फिक्की' (Federation of Indian Chambers of Commerce & Industry) और 'डिक्की' (Dalit Indian Chamber of Commerce & Industry) की तर्ज पर अब वक्त आ गया है कि सर्वधर्म का जाट 'जिक्की' (Jat Indian Chamber of Commerce & Industry) बनाये|

'फिक्की' जहां सरकारी संस्था है, वहीँ 'डिक्की' दलित समाज के उधमियों की अपनी स्वायत संस्था है| 'डिक्की' के मोटे तौर पर जो काम सामने आये हैं वो हैं दलित वर्ग के मेधावी छात्रों और व्यापार के इच्छुक लोगों को न्यूनतम इंटरेस्ट पर पैसा मुहैया करवाना व् इसके साथ ही व्यापार में नए-नए उतरे दलित व्यापारियों को व्यापार संबंधी लीगल व् कारोबारी कंसल्टेशन और सहायता उपलब्ध करवाना| 'डिक्की' के बारे यहां तक सुना है कि यह लोग दलित एंटरप्रिन्योर को जीरो इंटरेस्ट पे फाइनेंस और फ्री लीगल और कारोबारी कंसल्टेशन और हेल्प मुहैया करवाते हैं| 'डिक्की' को मुख्यत: दलित उधमी व् समाज ही अपने दान-चंदे से चलाते हैं और आज के दिन यह 3000 करोड़ रूपये से ज्यादा का संगठन है|

अब समय आ गया है कि जाट भी इन माता-वाताओं की चौकियों-जगरातों-जागरणों में पैसा फूंकने की बजाये इस दिशा में अपने पैसे और बौद्धिक तंत्र को मोड़ें| साथ ही अभी तक जो जाट संस्थाएं व् सभाएं ज्यादातर सामाजिक सरोकारों और प्रोपकारों पर ही ध्यान व् धन देती आई हैं वो भी 'जिक्की' बनाने हेतु एकजुट होकर एक 'मिनिमम कॉमन एजेंडा' (minimum common agenda) के तहत अपनी आने वाली पीढ़ी या वर्तमान पीढ़ी के मेधावी व् व्यापारिक प्रतिभा के बच्चों-वयस्कों के लिए अग्रसर हों|

इसके साथ ही हरयाणा-एनसीआर में व्यापारिक गतिविधियों की वजह से अप्रत्याशित गति से बदलते कारोबारी व् रोजगारी स्वरूपों में खुद को व् अपनी आने वाली पीढ़ियों को ढालने हेतु, मात्र पैसे के ऐवज में अपनी जमीनें प्राइवेट व्यापारियों को ना थमावें| अगर कोई आता है तो उसको 'पैसा तुम्हारा, जमीन हमारी, मिलके करें, विकास में साझेदारी!' फार्मूला के तहत साझे में कारोबार करने का ऑफर दें| बल्कि मुनासिब हो तो जाट समाज खुद भी सरकारों को सरकार की "सबका साथ, सबका विकास" पालिसी के तहत यह फार्मूला सुझा सकता है| परन्तु सीधी सी बात है जमीन रहेगी जाट की मल्कियत में क्योंकि जमीनें, किसी का दान में दिया मंदिर नहीं, वरन आपके पुरखों ने पीढ़ियों-पे-पीढ़ियां गला के हाड़तोड़ मेहनत से बंजर व् पथरीली धरती को समतल व् हराभरा बनाया था| पीढ़ी-दर-पीढ़ी आपके पुरखों-बाप-दादाओं ने ईमानदारी से मुचलके-टैक्स-दरखास भरी हैं इसके लिए; इसलिए अपनी धरती पर अपनी पूरी रॉयल्टी से अपना हक जताएं|

हालाँकि जाट आंदोलन की वजह से अन्य समाजों के साथ-साथ जाट समाज को सबसे ज्यादा जान-माल की हानि हुई है परन्तु इससे एक अच्छी बात निकल कर यह सामने आई है कि जाट एकजुट हो के चलें तो सरकार तक को अपनी मांग मनवा सकते हैं| इसलिए इस सकारात्मक पक्ष की ताकत को समझते हुए व् जाट आरक्षण पर हो रही सरकार की गतिविधियों पर नजर रखते हुए, पूरा समाज अब इन दो बिन्दुओं पर मंथन करे, ताकि आरक्षण का मसला सुलझते ही, सीधा इन मुद्दों पर कोई ऐसी ढील ना रहे कि फिर से 23-24 साल यानी पूरी एक पीढ़ी यूँ ही निकल जाए और फिर कोई ऐसा ही आंदोलन करना पड़े|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Monday, 7 March 2016

अनुराधा बेनीवाल को जाटों को फटकारने बारे फूल मलिक का जवाब!

इस छोरी के विचार और पोलिटिकल एफिलिएशन (political affiliation) जानने के बाद इसी निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि यह लड़की पी.के. फिल्म की भांति रॉंग कनेक्शन (wrong connection) की पोलिटिकल मिस्सकन्नेक्शन (political misconnection) का नतीजा है। जैसे तपते रेगिस्तान में मींह की बूँद की आस में मुंह बाए आदमी के मुंह में पानी की बूँद तो आई नहीं, परन्तु कोई कव्वा बीट कर गया और उसके लिए यह छोरी कोसने मंड री है जाटों को।

मैं कुछ और भाईयों की भांति ना ही तो इसके व्यक्तिगत जीवन पर कोई टिप्पणी करूँगा, क्योंकि इसने पब्लिक डोमेन (public domain) में बात करी है तो उसी लाइन पे चलूँगा। ना मैं और भाईयों की भांति भाह्ण, बेबे, दीदी, जीजी जैसे वर्ड्स (words) के साथ इसको सर पे बैठाऊंगा, क्योंकि मेरी जाटू संस्कृति के अनुसार पांच प्रकार की बहनों में से यह किसी में भी फिट नहीं बैठती। पांच कौनसी? गाम-गोत-गुहांड-सगी-धर्म। यानि गाम की मेरे यह नहीं, गोत की मेरे यह नहीं, गुहांड की मेरे यह नहीं, सगी बहन मेरी यह नहीं, और इसको धर्म की बहन कहूँ, ऐसा महान इसने काम नहीं कर रखा और ना ही जाटों पे 'तेल पिए हुए काट्ड़े की भांति बुरकाने' का काम करके, इसने छटा ऑप्शन दोस्ती वाला कार्य किया।

हाँ, हो सकता है मेरे इस उत्तर को पढ़ के यह मुझे दुश्मन बनाने जरूर भागे। या आदत से मजबूर अपनी मुंहफट शैली में मुझे कोसने जरूर चले कि देख्या थारे पै एक छोरी बोलती कोणी देखी जांदी, थामनैं एक छोरी बोल पड़ी या बात-ए कोनी सुहाई, एंड बला-बला (and bla-bla)।

इस पर मैं शुरू से ही यह बिंदु स्पष्ट करता हुआ चलूँगा कि मेरी आपकी बोली या आपकी शैली से कोई कटुता नहीं| कुछ है जिसपे आपको ले के बोलना है तो उस आइडियोलॉजी के सॉफ्टवेयर पर जो एक पोलिटिकल मिस्सकन्नेक्शन के तहत आपमें बचपन से फिट किया गया है। और इसी पे मेरे लेख का फोकस है।

वैसे भी कुछ दिनों पहले इस छोरी की पाथी (हिंदी में लिखी) हुई किताब "आज़ादी मेरा ब्रांड" पे टिप्पणी करने बारे मेरे पास कई दोस्तों की अपील आई थी परन्तु मैंने मना कर दिया था। एकाध ने ज्यादा जोर दिया तो उस किताब के रिव्यु देखे और उससे संबंधित इस छोरी की फेसबुक वाल पे पोस्ट्स देखे, तो भी मैंने यह कहते हुए मना कर दिया कि मखा क्यों बावले हो रे सो, छोरी स्टूडेंट लाइफ में बस-कॉलेज में हुई ईव-टीजिंग (eve-teasing) और छेड़खानी के उलाहने दे रही है, देने दो। मखा ऐसे-ऐसे मुद्दे भी पब्लिक में चर्चा हेतु आने चाहियें। और रही बात जो या छोरी न्यू कह रही है अक हरयाणे में पब्लिक में तो बेबे कह्वेंगे और एकांत मिलते ही पिछवाड़े पे हाथ मारण के बहाने टोहवैंगे, तो इसपे भी मैंने यह कह दिया था कि यह हर सोसाइटी की बीमारी है, भावुक मत होवो, यह मत सोचो कि यह तुम्हारी ही सोसाइटी की समस्या है, अपितु यह हर सोसाइटी की समस्या है।

परन्तु इब जो इसने किया वो किया इसके दिमाग के सॉफ्टवेयर में गड़बड़ वजह से। पता किया तो पाया कि यह छोरी लेफ्ट-आइडियोलॉजी के परिवेश से है। जहाँ हरयाणवी लेफ्ट-विंग के गुरु हैं बंगाल-बिहार की सामंतवादी सोच की बंगाली-बिहारी ब्राह्मण-ठाकुर लॉबी।

बस सारी गड़बड़ इसमें छुपी है। एक लाइन में कहूँ तो यें लेफ्ट वाले कदे हरयाणा में यही नहीं समझ पाये कि तुम यहां से कौनसा सामंतवाद मिटाना चाहते हो| क्योंकि बंगाली-बिहारी आइडियोलॉजी के ब्राह्मण लेफ्टिस्ट जिस तरह का सामंतवाद इनको दिखाते रहे, उसको तो सर छोटूराम लगभग एक सदी पहले हरयाणा से उखाड़ के जा चुके। क्योंकि यह सामंतवाद बंगाल-बिहार में अभी भी बाकी है तो यह लोग इन हरयाणवी लेफ्टिस्टों को यही दिखाते आ रहे हैं और यही है, यह पोलिटिकल मिस्सकन्नेक्शन; जिसकी वजह से लेफ्ट वाले हरयाणा में गलियों में बाल्टियों में चून मांगने के किरदार से ख़ास ज्यादा कभी कुछ कर ही नहीं पाये। अब चलेंगे बंगाली-बिहारी ब्राह्मण सामंतवादी सोच से तो, इनको एक जाट छोटूराम थोड़े ही नजर आएगा।

अब इस आइडियोलॉजीकली रॉंग कनेक्शन से क्या होता है कि बिहारी-बंगाली ब्राह्मण लेफ्टिस्ट जाटों को हरयाणा में बिहार-बंगाल के ब्राह्मण-ठाकुर के बराबर दिखाते हैं कि देखो जी जैसे उधर ब्राह्मण-ठाकुर दलित-मजदूर पर जो अत्याचार करते हैं वही हरयाणा में जाट करते हैं। और यही वो सॉफ्टवेयर है जो इस छोरी में फिट हो रखा है, यह सोचती है कि जाट तो हरयाणा के बिहारी-बंगाली स्टाइल वाले ब्राह्मण हैं, ठाकुर हैं। इसीलिए यह बोली कि थाहमें की बावले थे, थाहमें के सोच नहीं सको थे। थांनैं लाहौर कोनी फूंका, आपणा घर फूंक्या सै। कोई भड़कावे था तो थाहमें क्यों भड़के? इब थारै कूण फैक्ट्री लाण आवैगा एंड बला-बला।

यहां दो धाराओं में लेख को आगे बढ़ाऊंगा। एक तो छोरी न्यू बता, जै कोई तैने बस में छेड्या करदा तो के जुल्म होग्या था जो तैने पूरी किताब-ए पाथ कें धरदी उन मुद्द्यां पै? तू के बावळी थी? ऊँ तो तू इतनी क्रन्तिकारी बनै अक जाटों का औढ़ा ले के हरयाणा की इन बुराइयों पर लोगों को बोलने हेतु प्रेरित करै अर दूसरी तरफ तू जाट्टां नैं उनके अधिकार की आवाज भी ना उठाने दे रही? के बात छोरी, तूने जाटों को 'फॉर गारंटीड' ले रखा है क्या, कि मेरे ब्ट्यो थामनैं न्यूं बळ भी बासुंगी अर न्यूं बळ भी? अगर तूने सर छोटूराम को पढ़ा होता तो जानती होती कि लाहौर जाटों के लिए कितने सम्मान की जगह है, जाट क्यों सर छोटूराम की कर्मस्थली में आग लगाएंगे, पहाड़ी बुच्छी?

दूसरी बात, छोरी अपणे दिमाग के सॉफ्टवेयर को या तो रेक्टीफाई कर ले या पूरा सिस्टम रिप्लेस कर ले। क्योंकि बंगाल-बिहार का ब्राह्मण-ठाकुर सामंतवाद हरयाणा में नहीं और ना ही तू बिहार बंगाल स्टाइल वाली हरयाणा की ब्राह्मण या ठाकुर है। वो कैसे वो ऐसे:

बिहार-बंगाल का सामंतवाद बनाम हरयाणा का सीरी-साझीवाद:

1) बिहार-बंगाल में आज भी ब्राह्मण-ठाकुर खेत के किनारे खड़ा हो के मजदूर से कार्य करवाता है, जबकि तेरे हरयाणा का जाट अपने सीरी के साथ लग के खेतों में काम करता है।

2) बिहार-बंगाल में 'नौकर-मालिक' का रिश्ता है, जबकि हरयाणा में 'सीरी-साझी' यानी पार्टनर का। जानती है ना गूगल जैसी कंपनी भी जाटों के वर्किंग कल्चर पे चलती है, उसमें भी एम्प्लोयी को एम्प्लोयी नहीं बल्कि पार्टनर कहते हैं?

3) बिहार-बंगाल में ब्राह्मण-ठाकुर के जुल्म की वजह से वहाँ महादलित भी हैं। जबकि हरयाणा में सिर्फ दलित और वो भी ऐसी हैसियत और स्वछँदता के कि साला किसी की बेफाल्तू में दाब ना मानते।

4) बिहार-बंगाल के सामंतवाद से तंग हो के वहाँ के दलित हरयाणा-पंजाब में रोजगार ढूंढने और करने आते हैं। एक आर्ट फिल्म है 'दामुल' वा देख लिए फर्दर डिटेल्स के लिए।

5) बिहार-बंगाल में कोई दलित ढंग के मकान की सोच भी ना सकता, जबकि दो चमारों की जाटों को टक्कर देती पचास-साठ साल पहले बनी दो हवेलियां तो मेरे गाँव निडाना, जिला जींद हरयाणा में आज भी खड़ी हैं। और ऐसी ही कहानी लगभग हर हरयाणवी गाँव की है।

6) बिहार-बंगाल का ब्राह्मण-ठाकुर आज भी बेगार करवाता है वहाँ दलित-महादलित से। जबकि तेरे हरयाणा का अधिकतर जाट बाकायदा बनिए की बही के जरिये लिखित के सालाना कॉन्ट्रैक्ट के जरिये सीरी रखता आया है और आजकल तो कच्ची रजिस्ट्री पर भी रखने लगे हैं।

7) बिहार-बंगाल में जहां दलित-महादलित ब्राह्मण-ठाकुर के आसपास भी फटकने की नहीं सोच सकता, हरयाणा में खेत में जाट दलित के साथ बैठ के खाता आया है और बहुत से एक ही थाली में खाते हैं। इब इसपै तू न्यूं बरडान्दी होई ना चढ़ जाईये, अक फेर घर में थाली न्यारी क्यूँ हो सै सीरी की। इसका कारण यही है कि तेरी माँ तेरे ताऊ-चाचा की झूठी थाली तीज-त्यौहार को छोड़ के रोज-रोज ना मांज सकती। हाँ जाट-किसान इतने अमीर होंदे कोनी अक घर में कासण मांजन ताहीं नौकर राखदे हों। बड़ै सै किमैं बुत में अक नी?

तो सबसे पहले यह बंगाल-बिहार की ब्राह्मण लेफ्ट आइडियोलॉजी का सॉफ्टवेयर अपने दिमाग से डिलीट मार दे कि तू हरयाणा की ब्राह्मण है। दूसरा हरयाणा के लेफ्ट वालों को बोल कि जहां से सर छोटूराम जी काम अधूरा छोड़ गए थे, उससे आगे काम को उठावें। बंगाली-बिहारी ब्राह्मणों की आइडियोलॉजी की चापलूसी में एक जाट सर छोटूराम की कहीं बेहतर और कारगर आइडियोलॉजी को ना ठुकरावें या नजरअंदाज करें। और गारंटी देता हूँ आज लेफ्ट वाले सर छोटूराम को उठा लेवें, अगर अगले पांच-दस साल के भीतर-भीतर हरयाणा में सरकार ना बना जावें तो।

इन थोड़े से बिन्दुओं पर विचार कर लिए अर ना तो बावली-ख्यल्लो, न्यू-ए "काटड़ा और जाटड़ा अपने को ही मारे" वाली केटेगरी में गिनी जाया करेगी, इतिहास में। और घणी चौड़ी मत ना होईये इस बात पे अक तेरे को इतने अवार्ड मिले, फलाने बड्डे अवार्ड मिले अक धकडे बड्डे अवार्ड मिले; क्योंकि यह अवार्ड्स की वो केटेगरी है जिसको एक सोसाइटी के लिए नेगेटिव तो एक के लिए पॉजिटिव लिटरेचर बोलते हैं, सैचुरेटेड, न्यूट्रल या इम्पार्सियल लिटरेचर नहीं।

Special: I have tried to write this note mapping your sattire of writing, especially its Haryanvi part. Hope you won't create a new nuissance out of it uselessly and would talk to the point.

Note: I shall also try to send this note to this girl, even then thanks a lot for sending it to her on my behalf.

Author: Phool Kumar Malik

712 ईस्वी का इतिहास आज 2016 में फिर से जाटों और ब्राह्मणों के बीच दोहराया जा रहा है!


निचोड़: हरयाणा का जाट बनाम नॉन-जाट कहो या पैंतीस बनाम एक बिरादरी कहो, यह सिवाय मनुवाद बनाम जाटवाद की लड़ाई के कुछ और है ही नहीं| यह सैनी वैगेरह तो सिर्फ मोहरे हैं|

आज जो ब्राह्मण संचालित आरएसएस और बीजेपी हरयाणा में जाटों के खिलाफ कर रहा है, यही 712 ईस्वी में हुए ब्राह्मण राजा दाहिर ने तब के बुद्ध धर्मी जाटों व् दलितों के साथ किया था| तब उससे तंग आकर जाटों ने इस्लाम अपना लिया था| और ब्राह्मणों का जाटों के खिलाफ यही रवैया देश की गुलामी का कारण बना|

महमूद ग़ज़नी के इतिहासकार अलबेरूनी लिखते हैं कि, "Mahmood Ghazni looted Somnath Temple in 1024 A.D. And in Sindh, Jats looted him back and recovered the booty of Somnath. These Jats were Muslims and got converted to this faith in 712 A.D. not by Muhammad Bin Quasim but Raja Dahir, a Brahmin who oppressed the peace loving Budhist Jats in their own majority, where more than 90% were Jats. Last 17th attack of Mahmood Ghazni on India was not to loot but punish the Jats."

ब्राह्मणों ने मुग़ल और अंग्रेजों के एक हजार वर्षों के गुलामी काल से कुछ नहीं सीखा, वही ढाक के तीन पात| पहले ब्राह्मण, जाट कौम के साथ जैसे आज हरयाणा में पैंतीस बनाम एक बिरादरी का अखाडा सजाया हुआ है, ऐसे अलगाव पैदा करके जाटों को रूष्ट करते हैं और जब इनसे अकेले स्थिति नहीं संभाली जाती तो फिर विदेशियों के आगे सर्रेंडर करते रहे हैं| और फिर इनकी नाकामयाबी को जाटों को ही धोना पड़ता रहा है| जैसे जब ब्राह्मण हर तरह से ग़ज़नी के आगे असहाय हो गए तो सोमनाथ की लूट को अंत में जाटों ने ग़ज़नी से छीन देश से बाहर जाने से रोका|

मेरे ख्याल से जाट अंग्रेजों से नई-नई मिली आज़ादी के उत्साह में और सर छोटूराम की अनुपस्थिति में यह भूल ही गए थे कि अभी सिर्फ मुग़ल और अंग्रेज से आज़ादी पाई है, इनके आने से पहले जिससे लड़ाई चलती थी, उस मनुवाद से आज़ादी पाना तो अभी बाकी ही था| खैर देर आयद, दुरुस्त आयद; अब जाट को दलित से मिलकर मनुवाद से आज़ादी के बिगुल को सहारा और समर्थन देना होगा| आना तो ओबीसी को भी इस लड़ाई में जाट और दलित के साथ था, परन्तु अभी शायद ब्राह्मण द्वारा उसको जाट से नफरत की पिलाई घूंटी का असर जाते-जाते वक्त लगे| भगवान करे कि ओबीसी पर से इस घूंटी का असर जल्दी उतरे और जाट-दलित के साथ मनुवाद से आज़ादी की लड़ाई में जल्दी आन जुड़े|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

बहन मायावती जी के जाट-आरक्षण को समर्थन के जवाब में जाटों ने उठाया जाट-दलित-मुस्लिम एकता का बीड़ा!


कुछ-एक दलित बुद्धिजीवी अतिरेक में आ के यह कहते देखे जा रहे हैं कि जाट इससे पहले कहाँ थे, अभी क्यों इनको दलित-जाट एकता की याद आई| जाट-दलित भाईचारे को आगे बढ़ाने हेतु जाट आरक्षण को समर्थन दे के, बहन मायवती ने जो सीधी लाइन रख दी है, ऐसे लोग उससे अलग दिखने की नादानी भरी गलती कर रहे हैं| ऐसे भाईयों को इतिहास के हवाले से दो-चार चीजें बताना चाहूंगा:

1) 1398 में सर्वखाप हरयाणा ने तैमूरलंग के खिलाफ विजयी जंग लड़ी थी, इसके दो उपसेनापतियों में एक दादावीर धूला भंगी जी थे| आजतक जाट-बाहुल्य सर्वखाप के अलावा किसी राजा का इतिहास नहीं, जिसने एक दलित को इतनी बड़ी जिम्मेदारी के लायक समझा हो| मेरे पास ऐसे ही अन्य दलित यौद्धेयों की सूची है जो खापों में बिना किसी पक्षपात के सम्मान से अपना किरदार अदा करते रहे|

2) मुझे नाम याद नहीं है, परन्तु भरतपुर के महाराजा सूरजमल के खजांची एक दलित हुए हैं| पूरे भारत के इतिहास में कोई ऐसा राजा नहीं, जिसके बारे यह सुनने को आता हो कि उसने किसी दलित को खचांजी जैसी उच्तम पदवी पर बैठाया हो|

3) सर छोटूराम और बाबा साहेब आंबेडकर की जोड़ी ने उस वक्त के संयुंक्त पंजाब में जाट-दलित भाईचारे को स्थापित किया था| ऐसे कानून जो बाबा साहेब बाकी के देश में आज़ादी के बाद लागू कर पाये, सर छोटूराम सयुंक्त पंजाब में आज़ादी से पहले लागू कर गए थे और इसीलिए दलितों ने उनको 'दीनबंधु सर छोटूराम' का नाम दिया था| यह दुर्भाग्य रहा कि मंडी-फंडी ताकतों द्वारा एक साजिस के तहत इन दोनों महापुरुषों को लेखों-फिल्मों में अलग-अलग दिखाया गया| वर्ना आज भी वो सरकारी दस्तावेज मौजूद हैं जब साइमन कमीशन का स्वागत करने वालों में यह दोनों हुतात्मा सबसे अग्रणी थे और एक थे|

4) वजह जो भी रही हो, परन्तु पीछे के कुछ सालों में बहन मायावती जी की हरयाणा में कई ऐसी रैलियां हुई जिनमें उनके मुंह से यह बुलवाया गया कि वो हरयाणा में नॉन-जाट सीएम का समर्थन करती हैं या ऐसा चाहती हैं| तो ऐसे में अभी तक वो माहौल बन ही नहीं पाया था कि जाट दलितों के समर्थन में खुलकर आ पाते|

और अब मायावती जी द्वारा जाट-आरक्षण को खुलकर समर्थन देने से, ऐसा सम्भव हुआ है तो जाट आगे बढ़े हैं| और जाटों ने ठाना है कि अब जाट-दलित-मुस्लिम एकता आ के रहेगी| तो ऐसे भाई, जरा इन ऐतिहासिक परिपेक्ष्यों को मद्देनजर रखते हुए अपनी बात रखेंगे तो मुझे उम्मीद है कि वो ऐसा उलाहना नहीं दे पाएंगे|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Wednesday, 2 March 2016

जाट कौम को "जाटरात्रे" मनाने बारे एक सुझाव!

बहुत हुआ यह किसी के नवरात्रों पे तो किसी के फलाने-धकड़े रात्रों पे कूल्हे मटकाना और गले फाड़ना| आओ सारी जाट-बिरादरी अब से हर साल 19-20-21-22 फ़रवरी को "जाटरात्रे" के रूप में मनाना शुरू कर देवें| इन चारों दिनों पे जो गतिविधियाँ की जावें वो कुछ इस प्रकार हो सकती हैं:

1) चार-के-चार दिन किसी भी प्रकार की कोई दुकानदारी कोई शॉपिंग-ओप्पिंग नहीं की जाएगी|
2) बल्कि हमारे घर के बने सामानों के साथ ही "जाटरात्रे" मनाये जायेंगे| चाहे जो भी सामान इन रात्रों को मनाने में लगे वो शुद्ध रूप से जाट के घर का होगा, जाट और जाटणियों का बनाया हुआ होगा|
3) इन चारों तारीखों पर नाटक लेखन व् मंचन किये जायेंगे कि कैसे किधर सरकार व् अन्य विरोधियों ने हमारे बालकों पर गोलियां चलवाई और किस बहादुरी से हमारे बालक डट के लड़े, इन पर स्क्रिप्ट बना के इन चार दिनों में से एक दिन इन पर थिएटर मंचन होंगे|
4) एक दिन हमारी खापों, राजाओं और आम जाटों में जितने भी ऐतिहासिक महापुरुष और शहीद हुए हैं और जितनी भी ऐतिहासिक लड़ाइयां हुई हैं, उनपे पूरी जाटलैंड पे ऐसे ही नाटक-मंचन और बाणियां रची और गाई जाएँ|
5) एक दिन शुद्ध जाटू सभ्यता के विभिन्न सामाजिक-सामरिक-आर्थिक पहलुओं पर इसी प्रकार नाटक-मंचन होंगे|
6) और आखिरी दिन देश की एकता और अखंडता को बनाये और बढ़ाये रखने बारे जाट समाज के योगदान और
देश के भविष्य में आगे क्या और कैसे योगदान जाट समाज देगा इसपे कन्फेरेन्सेस और डिबेट्स होंगी|

इस प्रस्तावना पर अपने विचार जरूर देवें|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक - यूनियनिस्ट मिशन

Tuesday, 1 March 2016

तुम्हारा टैलेंट, टैलेंट, बाकियों का टैलेंट साइलेंट, माय फुट!

ये टैलेंट-टैलेंट चिल्लाने वाले अपने पारम्परिक पेशे से बाहर निकल के एक बार अपने टैलेंट को फ़ौज-पुलिस और खेती में भी आजमावें; ना अगर डेड गज लम्बी जीभ घुटनों पर जा के धरी जावे तो कहना| तुम्हारा टैलेंट, टैलेंट, बाकियों का टैलेंट साइलेंट, माय फुट!

खाम्खा में टैलेंट शब्द के पीछे अपनी कमजोरी मत छुपाओ| मल्टीटैलेंटेड तो किसान-कमेरा होता है जिसको खेत में अड़ा लो या फ़ौज में, व्यापार में अड़ा लो या एडमिनिस्ट्रेशन में; हर जगह तुम से बेहतर और ज्यादा ईमानदार परफॉरमेंस देता है| और देखी है तुम्हारे टैलेंट की परफॉरमेंस भी, इस देश के 90% से ज्यादा घोटाले-घपले-भ्रष्टाचार, और जहां देखो वहाँ भाई-भतीजावाद सब तुम्हारे नाम, यही है क्या तुम्हारा टैलेंट?

तुम अपने पारम्परिक पेशों की सेफ्टी चाहते हो इसीलिए टैलेंट-टैलेंट की आड़ में अपनी कमजोरी छुपाते हो और रिजर्वेशन का विरोध करते हो| क्योंकि तुम्हारे पारम्परिक काम के बाहर कुछ करना तुम्हारे बस का ही नहीं| वर्ना तो आज तुम भी फ़ौज-पुलिस या खेती के लिए रिजर्वेशन मांग रहे होते|

जाट समाज से सविनय निवेदन: जाट बिरादरी, आपके बालकों पर गोली चलवाने वालों को खून मत देना| हर जाट युवा से अपील है कि बहुत सारे खून के कैंप लगेंगे, कोई भी इनमें खून देने ना जावे| पहले गोली से मरवाये म्हारे बालक और अब इनको खून भी चाहिए हमारा| सिर्फ और सिर्फ फ़ौज और अपने घायल भाईयों के लिए ही अपना खून दान कीजिये, बाकी सबके आगे ऐसे ही दरवाजे बंद कर दीजियेगा जैसे झज्जर में ओपी धनखड़ के आगे बंद कर दिए थे|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Sunday, 28 February 2016

प्रेरणा के बोल बदलो, जमात बदलो!

"खेती में कुछ नहीं रहा, नौकरी के लिए पढ़ो!"

शहरी और ग्रामीण जाट में अंतर पैदा करने वाली यह ऐसी पंक्ति है जो जाट को बदलनी होगी, इसकी जगह बच्चों को कहो कि

’हर क्षेत्र में जाट कौम का वर्चस्व कायम करना है, इसलिए पढ़ो!

ऐसा क्यों जरूरी है: खेती में कुछ नहीं रहा वाला तर्क दे के पढ़ने के लिए प्रेरित करने वाला तर्क सिमित प्रेरणा और पहुंच वाला है| इसमें वो दूरदर्शी प्रेरणा नहीं जिससे कि शहर में गया जाट, पैसा कमाने से आगे बढ़ के अपनी कौम के वर्चस्व, वैभव हेतु भी कुछ हट के करे, जैसे कि पीछे मुड़ के अपने ग्रामीण जाटों आर्थिक-सामाजिक-शैक्षणिक मसलों की सुध ले| उन्हें लगने लगता है कि माता-पिता, दादा-दादी ने नौकरी और पैसे के लिए ही तो प्रेरित किया था, वो हासिल हो ही गया, सो बैठो आराम से घर में| 90% शहरी जाट की यही कहानी है|

दूसरा यह तर्क अलगाव पैदा करने वाला है, जो कि एक श्राप की भांति भी साबित होता है| एक कहावत है कि कोई भी कार्य छोटा नहीं होता, इसलिए कृषि का कार्य महज इसलिए छोटा या कुछ नहीं रहा वाला कैसे हो सकता है कि किसान को फसलों के भाव नहीं मिलते? निसंदेह अगर ग्रामीण जाट कहो या किसान कहो, वो अपने बच्चों को वर्चस्व के लिए पढ़ने के कहेगा तो कभी न कभी सलफता की सीढ़ी पे चढ़े शहरी जाट को, अपने पुरखे की वर्चस्व वाली बात याद आएगी और वह कोशिश करेगा कि मैं कुछ ऐसा करूँ कि गाँव में बैठे मेरी कौम के ग्रामीण भाईयों को उनकी फसलों के उचित दाम मिल सकें या कृषि दवाइयाँ वगैरह उत्तम व् सही दाम में मिल सकें, आदि-आदि| लेकिन क्योंकि आपको खेती से अलग ही यह कह के किया गया था कि इस कृषि में कुछ नहीं रहा तो किसी भी शहरी जाट में इसके लिए कुछ करने का जज्बा बनने की बजाये, अलगाव पैदा हो जाता है|

और फिर इसके ऊपर लेप लगाते हैं मंडी-फंडी के गुर्गे, कभी धर्म के नाम पर, कभी पाखंड के नाम पर, कभी श्रेष्ठता के नाम पर, कभी धनाढ्यता के नाम पर| और शहर के भोले जाट, अपना ढेर सारा पैसा इनके फंडों के जरिये इनके पेट में उतारते रहते हैं| जबकि अगर इनको गाँव से निकलते वक्त पुरखों ने यह प्रेरणा पकड़ाई होती कि तुम्हें नौकरी-पैसा इसलिए कमाना है ताकि साधन-सम्पन्न होने के बाद अपनी कौम के वर्चस्व के लिए योगदान दे सको तो यह लोग अवश्य अपने ग्रामीण जाटों से वापिस जुड़ने की सोचते|

हालाँकि हाल में हुए जाट-आरक्षण आंदोलन ने ग्रामीण और शहरी जाट को निसंदेह नजदीक ला दिया है| परन्तु इस नजदीकी के और अच्छे नतीजे हासिल करने के लिए जरूरी है कि जड़ों से निकलते वक्त प्रेरणा स्वरूप दी जाने वाली, "खेती में कुछ नहीं रहा, नौकरी के लिए पढ़ो!" पंक्ति की बजाये, "हर क्षेत्र में हमारी कौम का वर्चस्व कायम करना है, इसलिए पढ़ो!" दी जावे|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

 

हरयाणा के अधिकतर और खासकर बड़े प्राइवेट स्कूलों में दी जा रही है 'मनुवाद' पद्द्ति पे शिक्षा!

अपने बच्चों को बड़े प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने वाले जरा चौंक जाएँ और चेक करें कि आपका बच्चा उसकी क्लास के कौनसे सेक्शन में है क्योंकि इन स्कूलों में एक क्लास के तहत सेक्शन बनाने के यह पैमाने सामने निकल के आ रहे हैं:

1) ब्राह्मण-बनिया-अरोड़ा/खत्री का बच्चा ऐसे स्कूलों के "A" सेक्शन में पढ़ाया जा रहा है और उनके लिए अलग से टीचर आता है जिसको 20 हजार या इससे ऊपर की सैलरी दी जाती है|
 

2) जाट-राजपूत-बिश्नोई-रोड़ व् अन्य किसानी जातियों के बच्चे "B" सेक्शन में पढ़ाये जा रहे हैं और इनको पढ़ाने वाले टीचर्स को 7-10 हजार सैलरी दी जा रही है|

3) ओबीसी, एससी/एसटी है के बच्चे को 'C' सेक्शन में पढ़ाया जा रहा है और टीचर को सैलरी दी जा रही है 5-7 हजार रूपये|

मेरे को इस व्यवस्था के कई भुग्तभोगियों ने यह बातें बताई हैं जिसके बाद से मैं हरयाणा के तमाम जिलों से इन बातों पर जानकारी जुटाने में जुटा हुआ हूँ और हो सका तो जल्द ही ऐसे स्कूलों की लिस्ट आपके समक्ष लाऊंगा| तब तक आप भी पता करवाइये कि अगर आपके बच्चे भी इन जैसे स्कूलों में पढ़ते हैं तो कहीं उनको भी इसी पैटर्न पर तो नहीं पढ़ाया जा रहा है| और आप भरम में जी रहे हों कि हम तो अपने बच्चे को फलां-फलां प्राइवेट स्कूल में इतनी महँगी फीस पे पढ़ा रहे हैं|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Friday, 26 February 2016

आओ यौद्धेयो, तुम्हें सुनाएँ वीरता जाट-महान की!

आओ यौद्धेयो, तुम्हें सुनाएँ वीरता जाट-महान की,
एक मोर्चे गुंडों की ब्रिगेड, दूसरे पे पुलिस-फ़ौज जवान थी!

तीसरा मोर्चा आंदोलन संभाले, चौथा आगजनी के फाले निकाले,
जाटों ने खूब नचा-नचा के, मंडी-फंडी गिरोह पस्त-थका डाले!

आंदोलन से बढ़के यह रणभेरी दुश्मन ने जाट पे टेरी थी,
बेईमान-उघाडों के जबड़ों पे जाट ने भी घुसंड जोर की धरदेरी थी!

लूट मचाने उत-लफंगे, चढ़-चढ करते रहे दंगे,
जाट टस से मस ना हुए, लाठी-गोली और चले डंडे!

कहीं किसी की ब्रिगेड थी तो कहीं थे कच्छों के फंडे,
देख के लच्छन जब जाट चढ़ा तो कर दिए सबके होश ठंडे!

सेंटर की बुड्ढी सी मार दी, दिल्ली की रोक पानी की धार दी,
तब जा के खट्टर से सेंटर में राजनाथ ने हरयाणे की पतवार ली!

वेस्ट यूपी में जब गया करंट, अक म्हारे भइयां पै आजमा रे स्टंट!
ठा चक्का जाम यूपी का बिठा के, चौधरियों ने थमा दिए वारंट!

आग ठंडी एक पड़ी थी, पर आगे एंटी-जाट मीडिया की फ़ौज खड़ी थी,
दिनरात सियार कूकते रहे, जाटों की शाख पे फेरन को बजरी-रोड़ी सी!

तीन दिन कांच के बल होए रहे, गैंगरेप जाट ने करे झूठी बात बिगोये रहे,
इनके पज्ज पाड़ने को जाटों के बालक भी सोशल-मीडिया आर्मी बन डटे रहे!

'फुल्ले भगत' न्यू बता गया, हर जाट के छोरे नैं दादा छोटूराम पा गया,
जाट्टां कै दुश्मन पिराण में आ गया, इब हो ज्या कौम का उजला आग्गा!

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Wednesday, 24 February 2016

Castewise Government Officers Figures of Haryana State!


(It's all about control on power & resources)

Research in tabular form: Please see the attachment

Findings of this research:
  1. It is Brahmin-Baniya-Arora-Khatri who are sitting on Jat-Bishnoi-Ror-Tyagi-Rajput, OBC, SC/ST job share and not the Jats. They see giving reservation to Jats and allies as a threat to extra to their population job share grabbed by them. Thus to divert the attention of Jats & allies, OBC and SC/ST from real issue they planted Rajkumar Saini, who would also fulfill their purpose of demolishing reservation from scrap at India level.
  2. It is must that Jats and allies get minimum 20% SBC reservation in Haryana state a minimum or reasonable extra quota in OBC in Haryana to ease their demand further at center.
  3. Saini should understand the capability of Jats (it is asserted by Sharad Yadav too) that if Jats and allies join OBC, all together can then demand for job share (govt. and private both at center) as per population ratio.
  4. So that people won't catch the real issue along with giving threat to Jats, they have put point of Landholding in Saini's mouth who utters that as Jats are a landlord community so why they need reseravtion; here Jats need to be little stern and/or affirm and should answer Saini that why he doesn't say that more than 95% income of temples (excluding income tax and/or charges to govt.) goes under direct control of Brahmin community; around 3/4th of business in india is in hands of Baniya, Arora and Khatri, so why these people need govt. job share more than their population ratio? Jats must not be polite on this point as it is a direct threat to their existence and morale to further take Jats under psychological pressure even upto extent of sidelining Jat as 1 vs. 35 communities, so such threats should be replied affirmly.
  5. Rajkumar Saini says Jats should raise voice for all and not just for them; answer to this should be; first who raises voice for Jats that Jats should raise voice for them? Who called upon Jats to raise voice for them? Jats always supported reservation of other communities like in 2013 along with Jats (Hindu-Sikh-Muslim-Bishnoi), Ror and Tyagi also got it and after few days Brahmin-Baniya-Arora-Khatri along with Rajputs also got it under EWS.
  6. This data is of A and B grade jobs, it may happen that Saini or persons behind him may would intend to remind job shares in C and D grade level after reading this analysis; in such situation an affirm reply of Jats and allies should be, 'we don't mind Brahmin-Baniya-Arora-Khatri filling their share under these categories.'
  7. Overview of this study says that Jats are dangerously lagged behind.
Jai Yauddhey! - Jai Sir Chhoturam! - Phool Kumar Malik - Unionist Mission