Thursday, 15 September 2016

दो विषम मान्यताओं का मिश्रण बनाया गया था "सत्यार्थ-प्रकाश"!

दयानंद ऋषि ने सत्यार्थ प्रकाश में एक बहुत बड़ी चालाकी खेली थी|

1) एक तरफ तो जाटू-सभ्यता की मान्यताओं को डॉक्यूमेंट किया, जैसे कि जाटों की "मूर्तिपूजा विरोधी" मान्यता को प्रमुख आधार बनाया| परन्तु दूसरी तरफ उसी में पुराण-ग्रन्थ इत्यादि की "मूर्ती-पूजा" को मानने वाली माइथोलॉजी भी घुसा दी|
2) एक तरफ जाटू-सभ्यता की एक गौत से बाहर ब्याह व् माता-पिता की उपस्थिति के बिना प्रेम-विवाह तक नहीं करने की कही, परन्तु दूसरी तरफ हर आर्यसमाजी मन्दिर बिना माता-पिता की उपस्थिति के मनुवादी परम्परा वाले प्रेम-विवाही फेरे पढ़ देते हैं|
3) सत्यार्थ प्रकाश में जाट को "जाट जी" व् "जाट-देवता" कह के जाट की स्तुति करी, परन्तु दूसरी तरफ उसी स्तुति की आड़ में जाट को चुपके से मनुवादी चतुर-वर्णव्यवस्था भी इसी पुस्तक के जरिये चिपका दी|

और जाटों ने देखो इससे क्या सीखा?
1) मूर्तिपूजा के विरोधी से मूर्तिपूजा करने लगे| क्या आर्य-समाज का अंत उद्देश्य जाट को मूर्तिपूजा विरोधी से मूर्तिपूजा प्रेमी बनाना तो नहीं था? यदि नहीं था तो क्या वजह है कि जाट मूर्तिपूजा में घुसता चला जा रहा है?
2) आर्यसमाज मन्दिरों की मनमानी पर सत्यार्थ प्रकाश का हवाला देते हुए भी रोक लगवाने हेतु जाट कोई कदम नहीं उठा पाए?
3) "जाट-देवता" और "जाट-जी" के चरित्र को छोड़कर शुद्ध मनुवादी व्यवस्था में रमते चले गए और इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि मनुवादी ही दलितों-गरीबों पर जाटों द्वारा मनुवादी रवैया अपनाने पर मीडिया में इनकी सबसे ज्यादा बैंड बजाते हैं| यानि जाट मनुवाद को आगे बढ़ा रहे हैं परन्तु फिर भी जाट को दलित का दुश्मन दिखाने हेतु, मनुवादी ही जाट के जुल्म को "सत्यार्थ-प्रकाश" के जरिये जाट में घुसेड़ी मनुवादी मानसिकता का परिणाम बताने की बजाये इसको जाट की मानसिकता बता के उछालते हैं|
तो ऐसे में हल क्या हो?


ऋषि दयानंद को जाटू-सभ्यता की शुद्ध मान्यताओं को डॉक्यूमेंट करने हेतु धन्यवाद देते हुए, इस मिश्रण को अलग-अलग करना चाहिए| सत्यार्थ-प्रकाश में जो जाटों के यहां से लिया गया था उसको ले के आगे बढ़ें और जो मनुवादियों का इसमें मिश्रित कर दिया गया था, वो मनुवादियों को वापिस लौटा देवें| और ऐसा करना इसलिए अत्यंत आवश्यक है क्योंकि जाट को इस लेख के "और जाटों ने देखो इससे क्या सीखा?" भाग के बिंदु 3 से अपने आपको सॉफ्ट-टारगेट होने से बचाना है|

जब दयानंद ऋषि ने जाटू-सभ्यता के यह पहलु डॉक्यूमेंट किये, उससे पहले जाटों के यहां एकछत्र "खाप-परम्परा" की "यौद्धेय-सभ्यता" चलती थी; जिसमें वर्ण व् जातिवाद का कोई स्थान नहीं था| इसीलिए तो खाप इतिहास दलित-ओबीसी-जाट-गुज्जर-यादव-राजपूत-मुस्लिम-सिख चाहे किसी भी समुदाय का सूरमा यौद्धेय/यौद्धेया रहा/रही हो; बिना लाग-लपेट के बराबरी से लिखा और गाया है| मनुवाद व् आरएसएस की तरह थोड़े ही होता था खाप-परम्परा में कि सिर्फ 2-3 जाती-समुदाय के हीरो लोगों को ही गाएंगे, उन्हीं की जयंती व् मरण दिवस मनाएंगे|

इसलिए आर्य-समाज को इतने तक लाभकारी-अलाभकारी जैसा भी साथ देने हेतु धन्यवाद देते हुए, आगे बढ़ें और शुद्ध खाप-परम्परा के जातिवाद और वर्णवाद रहित "खापदवारे" (गुरुद्वारों की तर्ज पर) बनाने हेतु जाट व् साथी कौमें अग्रसर होवें| अन्यथा मनुवाद तो आपको तब तक छोड़ेगा नहीं जब तक आपको वास्तव के चांडाल, अछूत व् अस्पृश्य नहीं बना देंगे| अभी आज जो हरयाणा में जाट बनाम नॉन-जाट के जरिये चल रहा है यह तो आपको आर्थिक आधार से कंगाल व् संसाधन रहित बनाने के उस प्लान का हिस्सा मात्र है जिसकी आखिरी मंजिल आपको चांडाल, अछूत व् अस्पृश्य बनाना है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

जेनयू में बापसा की जीत से हरयाणा के उन कम्युनिस्टों को अपनी आँखें जरूर खोलनी चाहियें!

जो बंगाल-बिहार की मनुवादी सोच वाला कम्युनिज्म हरयाणा में चलाने की नाकाम कोशिश करते रहे हैं और बाल्टियों में चून मांगने तक की पहचान बनाने से ज्यादा कुछ नहीं कर पाए|

मनुवादी चाशनी में डूबा लेफ्ट आपको जो दिखाता आ रहा है उसको तो सर छोटूराम एक शताब्दी पहले ही उखाड़ के जा चुके| आखिर क्यों नहीं लेफ्ट के आकाओं ने कभी सर छोटूराम की लिगेसी को उठाने दिया, क्योंकि सर छोटूराम जाट थे| और उनकी आइडियोलॉजी का मूल ही मनुवाद की जड़ों पे चोट करना था, जो भारतीय लेफ्ट विंग पर कब्ज़ा जमाये मनुवादी कभी होने नहीं देना चाहते थे|

समय रहते पुनर्विचार कीजिये अपनी स्ट्रेटेजी पर, वर्ना अभी तो लेफ्ट आइडियोलॉजी की स्टूडेंट विंग में "बापसा" बना है, आने वाले वक्त में पोलिटिकल विंग में भी बनेगा|

इसीलिए मैं मनुवादी-लेफ्ट नहीं, छोटूरामवादी हूँ; मैं कम्युनिस्ट नहीं, यूनियनिस्ट हूँ|

हरयाणा से फ्यूडलिज्म का खात्मा बरकरार रखना है तो सर छोटूराम को उठाये रखना ही होगा|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

HPSC की जनरल केटेगरी में 50% सिलेक्शन होने पर भी जाट जनसँख्या के अनुपात से 12% कम सिलेक्शन!

हरयाणा में General Category नौकरी हैं 53% (20% SC/ST + 27% OBC),


जाटों की जनसँख्या 33% (Jat, Jatt, Jutt),


33% कुल जनरल के 53% का हुआ 62%?

फिर भी राजकुमार सैनी किलकी मार रहा है कि हरयाणा HPSC की जनरल केटेगरी में 50% जाटों का सिलेक्शन हुआ है? जनाब यह तो जाटों की जनसख्या के अनुपात से 12% कम हुआ?

जाटों को इस सच्चाई से अपनी कौम को अवगत करवाना चाहिए, ताकि कहीं कौम किसी बहम में ना बैठ जाए| अवगत करवाना चाहिए कि 50% के बावजूद भी जाटों की जनसँख्या के बराबर सिलेक्शन तो अब भी नहीं हुआ, फिर भी 12% कम रह गया है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

मुस्लिम तुम्हें मार देंगे, मुस्लिम तुम्हें खा जाएंगे, मुस्लिम तुम्हें दबा देंगे ...

आखिर कौन हैं यह लोग, जो आपको मुस्लिमों का भय दिखाते हैं?

1) यह उन्हीं लोगों के वंशज हैं जिनके पुरखों ने मुस्लिमों के दरबारों में मंत्री-सन्तरी बनके गुलामीकाल में भी खूब मलाइयां खाई|  

2) कल को एक पल के लिए मुस्लिमों ने हमला कर भी दिया तो यह वही लोग हैं जो सबसे पहले आपके पीछे आ के छुपेंगे|

3) यह वही लोग हैं जिनको भय खुद लगता है परन्तु उस भय को "राष्ट्रवाद" का नाम देकर आप पर थोंप देते हैं| और आप बनके अंधभक्त, उठा के इनके झंडे गलियों-चौराहों में गले फाड़ते फिरते हैं और यह चैन से अपने घरों में बैठ के आपकी मूर्खता पर हंस रहे होते हैं|
4) यह वही लोग हैं जिनके पुरखों का मुस्लिम भय आपके पुरखों ने निकाला| जो इतिहास जानता है वो बखूबी जानता है कि कौनसा भय और कैसे निकाला|
5) नहीं कुरान ऐसा कहता कि जो मुस्लिम ना हो उसको जीने का हक नहीं; अरे तो ऐसा तो आपकी रामायण और मनुस्मृति भी कहती है कि दलित-ओबीसी को शास्त्रार्थ करने का कोई हक़ नहीं? वो ऐसा करता है तो उसकी जिह्वा कटवा दो, कानों में खोलता हुआ तेल-मोम डलवा दो| महर्षि सम्भूक को राम द्वारा सिर्फ शास्त्रार्थ करने के जुर्म में इन द्वारा मरवाये जाने का सबसे बड़ा उदाहरण आपके सामने है; तो इनका कितना पुन्जड उखाड़ लिया आपने आजतक?


अन्तोत्गत्वा इनके इंजेक्ट किये इस ख्याली भय को तिलांजलि दे दो, सब ठीक हो जायेगा| अपने पुरखों के गौरवशाली जौहरों को याद करो, जब उनको कोई नहीं डरा पाया तो आप क्यों डर रहे हो? वैसे भी ऐसे भय की वो चिंता करे जो समर्थ ना हो, आप समर्थ होते हुए भी इनके भय में पड़ के भयभीत होने का स्वांग करते अच्छे नहीं लगते|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

वक्त का तकाजा है कि जाट को फ़िलहाल आंतरिक भाईचारे पर ध्यान देना चाहिए!

"भाईचारा" नाम की क़्वालिटी ने जाटों के बाकी सारे गुण ऐसे ढाँप दिए हैं जैसे माइथोलोजी की पुस्तक रामायण के चरित्र हनुमान को अपने "भक्ति" के गुण की अति के कारण बाकी सब गुणों और ताकतों की भूल पड़ गई थी| जाटों को इस वक्त चाहिए काल्पनिक चरित्र जाम्बवन्त जैसा वास्तविक किरदार; वास्तिक कैसा जो सर छोटूराम की आइडियोलॉजी का जाटों में वापिस संचार कर सके|

अति हर चीज की बुरी होती है, फिर वो भाईचारा हो या भक्ति| बैलेंस बना के रखना जरूरी होता है| भाईचारा चाहिए परन्तु बाहरी भाईचारे से पहले भीतरी भाईचारे को वापिस लाना होगा| और वैसे भी जब तक आर. के. सैनी, अश्वनी चोपड़ा, मनीष ग्रोवर आदि जैसे बाहरी भाईचारे की खुद ही धज्जियाँ उड़ाते फिर रहे हैं तो वक्त की पुकार है कि जाट अपने यहां के भीतरी भाईचारे पर ध्यान देवे| इनसे भाईचारा संभालने की अति हो चुकी है, जाट जितना कर सकता था कर चुका है; अब अपने भीतरी की ओर लौटना चाहिए| हो सकता है तब तक इनको भी अक्ल लग जाए और यह वापिस लौट आएं|

अति हर चीज की बुरी होती है, "भक्ति" की अति अंधभक्त बना देती है तो बाह्य भाईचारे की अति आपको सॉफ्ट-टारगेट बना देती है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

आओ समझें कि अंधभक्त असल में है क्या!

हमारे देश में राष्ट्रभक्ति और अंधभक्ति के नाम पर एक अजीब ड्रामा चल रहा है; ऐसे लोग आ के वो भी उनको माइनॉरिटी का भय दिखाते हैं जिनके पुरखों ने इन भय दिखाने वालों के भय दूर करे थे| और ताज्जुब की बात है कि भय निकालने वालों के सपूत इनके डरावे के झांसे में आ भी रहे हैं|

मैं एक जाट हूँ, मुझे किसी दूसरे धर्म वाला डरा सकता है क्या? परन्तु बहुत से तो जाट भी इनकी बातों में आ के डर का स्वांग कर रहे हैं| और इसी स्वांग की कीमत है जो जाटों ने फरवरी जाट आंदोलन पर हुए गोलीकांड के माध्यम से चुकाई|

मत स्वांग करो और मत भूलो कि यह जो तुम्हें माइनॉरिटी का भय दिखाते हैं, अगर बाई-चांस एक पल को माइनॉरिटी ने अटैक भी कर दिया तो कल को सबसे पहले तुम्हारे पीछे आ के यही छुपेंगे|

मेरी दादी एक किस्सा सुनाती थी कि एक बार दो जाट और एक बनिया, काली-घनी-बरसाती-अँधेरी रात में एक गाँव से दूसरे गाँव कच्चे रास्तों से पैदल जा रहे थे| जाट का कदम लम्बा होता है तो थोड़ी ही देर में दोनों जाट बनिए से काफी आगे निकल गए| बनिए को डर लगा तो सोचा इनको सच्चाई बताऊंगा कि मुझे डर लग रहा है तो यह मेरी हंसी उड़ाएंगे, तो बनिए ने आवाज लगाई, "आ भाई चौधरियो, दिखे तुम में से किसी को भय लगता हो तो एक मेरे आगे हो लो और एक मेरे पीछे!" जाट समझ गए कि भाई को भय लग रहा है, तीनों मित्र थे तो जाट बोले कि भाई तुझे भय लग रहा है तो साफ़ बोल ना; आ जा हमारे बीच|

तो यह माइनॉरिटी तुम्हें खा जाएगी, मार देगी का असल भय लगता तो इनको है, परन्तु ऊपर दादी के बताये किस्से वाले स्टाइल में "राष्ट्रवाद का नाम दे के" यह इसको ट्रांसफर कर देते हैं औरों पे| और इन औरों की जोरों पे चल रही एक केटेगरी का नाम है "अंधभक्त"। यह बावली-बूच भ्रम में टूल रहे होते हैं कि हम राष्ट्रहित में काम कर रहे हैं, जबकि यह सिर्फ भय दिखाने वालों का भय ढो रहे होते हैं|

और यही है इनकी आपको "लुगाई किसी की, उठाई किसी ने, पूंछ जलवाई किसी ने" स्टाइल वाली बेकार की जिम्मेदारियों में उलझा के खुद निष्कण्टक मौज मारते रहने की नीति|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

सर छोटूराम जी ने दिया था ताऊ देवीलाल को उनकी लिगेसी संभालने का अवसर, परन्तु उस वक्त ताऊ इसको भांपने से चूक गए!

अगस्त, 1944 में सर छोटूराम व् अलखपुरा से चौधरी लाजपत राय, चौटाला गाँव में ताऊ देवीलाल और उनके बड़े भाई साहिबरामजी को कांग्रेस छोड़ उनकी यूनियनिस्ट पार्टी उर्फ़ जमींदारा लीग में शामिल करने पहुंचे थे; परन्तु ताऊ ने सादर इंकार कर दिया था|

सर छोटूराम जो बात ताऊ जी को 1944 में समझाना चाह रहे थे, वो समझते-समझते ताऊ जी को 1971 आ गया, जब उन्होंने कांग्रेस छोड़ी|

शायद विधाता ही नहीं चाहता था, वर्ना अगर ताऊ ने सर छोटूराम जी की समय रहते सुन ली होती तो क्या पता यूनियनिस्ट पार्टी उर्फ़ जमींदारा लीग को इसका उत्तराधिकारी आसानी से प्राप्त हो जाता| और जो कार्य सर छोटूराम के जाने के बाद अधूरे छूट गए व् खासकर यूनाइटेड पंजाब और देश के टुकड़े हो गए, यह भी ना हुए होते|

हालाँकि कांग्रेस से अलग होने के बाद ताऊ जी ने किसानों-दलितों के लिए बहुत सारे कार्य किये, लुटेरों को ताक पर रखते हुए कमेरों के लिए बहुत सारे कानून व् योजनाएं बनवाई और देश के राष्ट्रीय ताऊ कहलाये|

जय यौधेय! - फूल मलिक

Tuesday, 6 September 2016

मुझे यह जाति और वर्ण की बातें करना कब से आ गया?

LKG से 3rd standard तक डेस्क मिले, फिर चौथी से सातवीं तक तप्पड़ पर बैठते थे| आठवीं में जा के फिर डेस्क मिले| एक डेस्क पे तीन बैठते थे| आठवीं-नौवीं-दसवीं तीनों क्लासों में, मैं एक जाट, एक दोस्त सुनार, दूसरा दोस्त चमार हम तीनों तीन साल एक डेस्क पर बैठे| कितनी ही बार ना सिर्फ इन दोनों के घर बल्कि कभी बनिए दोस्तों के घर, कभी अरोड़ा/खत्री दोस्तों के घर, कभी ब्राह्मण दोस्तों के घर, आंटीज ने बड़े प्यार से खाने खिलाये; कभी यह नहीं सोचा कि मैं ऊँची जाति के यहां खा रहा हूँ या नीची जाति के यहां; कभी अहसास ही नहीं हुआ कि सवर्ण-दलित, एससी/एसटी/ओबीसी, छूत-अछूत, ऊंच-नीच, गरीब-पिछड़ा क्या होता है|

यहां तक कि मेरे घर में काम करने वाले सीरियों (हरयाणा से बाहर वालों की भाषा में नौकर, हमारी हरयाणवी संस्कृति में नौकर को पार्टनर यानि सीरी बोलते हैं, you know the working culture of google, उन्होंने हमारे यहां से ही adopt किया है) जो कि अक्सर दलित जातियां जैसे कि धानक-चमार-हेड़ी (कश्यप राजपूत) व् इनके अलावा रोड़ आदि होते थे और आज भी हैं; उनके घरों में जा-जा के भी खूब खाने खाये| घर-कारोबार के औजार कभी खातियों के यहां तो कभी मुस्लिम लुहारों के यहां, मिटटी के बर्तन कभी मुस्लिम कुम्हारों के यहां, गाँव में बड़ी ही आदरणीय डूमणी (मिरासन) दादी सुरजे की माँ होती थी, उनके यहां बनने वाली सिलबट्टे की चटनी का स्वाद तो जैसे आज भी जिह्वा पे धरा है; सब कुछ तो इतना विहंगम, मनमोहक, बलिहारी होता था|

परन्तु जब से मोदी ने पीएम कैंडिडेट के भाषण देने शुरू किये, जैसे सब कुछ ढकता सा चला गया| मित्रों मैं पिछड़ा हूँ, मैं चाय बेच के बड़ा हुआ हूँ, मित्रों मैं वंचित वर्ग से आता हूँ; कान पका डाले और जातिवाद और वर्णवाद के जहर का प्र्थमया शरीर में संचार सा होता दिखा| फिर लगा कि अपनी लाचारी और गरीबी बता रहा है, कोई बात नहीं|

पर फिर आये यह हरयाणा की सत्ता में| पिछले दो साल से बीजेपी और आरएसएस ने ऐसा जाट बनाम नॉन-जाट और 35 बनाम 1 चलाया; कि यह भी अहसास हो गया कि मैं जाट भी हूँ, जाट| भाई हुआ होगा आपका आर्थिक या किसी और तरीके का "सबका साथ, सबका विकास" वाला विकास, मेरा तो सिर्फ इतना विकास हुआ कि मोदी-बीजेपी-आरएसएस ने मिलके ठीक वैसे ही मेरी सोई हुई आइडेंटिटी "जाट" को ठीक उसी तरीके से याद दिला दिया, जैसे माइथोलॉजी की पुस्तक यानि काल्पनिक शक्ति से लिखी गई रचना रामायण के चरित्र जाम्बवन्त, हनुमान को समुन्दर पार करने के वक्त उनको उनकी सोई हुई शक्तियों बारे बताते हैं|

मुझे ज्यादा पता नहीं है कि मुझे इस मेरी "जाट" आइडेंटिटी के साथ क्या करना है, परन्तु फिर भी कोशिश यही कर रहा हूँ कि अपने उसी स्टाइल में मगन रहूँ, जैसे इन जातिवाद और वर्णवाद से ग्रसित मानसकिता वालों की सरकार आने से पहले रहता था|

और मित्रो रहना भी इसी तरीके से, इन मोदी-बीजेपी-आरएसएस के आपको आइसोलेट करने के मनसूबों को मत कामयाब होने देना| फिर भले ही इस नए बदले परिवेश में बेशक कोई राजकुमार सैनी आपको रावण बोले, भले कोई अश्वनी अरोड़ा आपके खिलाफ 35 बिरादरी को लामबंद करता फिरे, भले कोई मोदी आप पर दूसरा जलियावालां काण्ड (फरवरी माह का जाटों पे हुआ गोलीकांड) करवाये, भले कोई खट्टर हरयाणवियों को कन्धे से नीचे मजबूत और ऊपर कमजोर बताये (वैसे यह खट्टर महाशय ने हरयाणवियों की कन्धे से नीचे की मजबूती का टेस्ट कब किया, नामालूम)।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

दादी कहती थी कि गीता व्यवहारिक बात नहीं करती, इन मोडडों का क्या है यह तो ठाल्ली बैठे कुछ भी लिखते हैं!

एक-आध बार जब किसी बनिए की दूकान पर ग्राहकों को लुभाने के लिए लगे पोस्टरों से गीता का कोई श्लोक पढ़ के आता था और चाव से घर में सुनाता था तो दादी डाँटते हुए कहती थी कि घरों के मसले समझा-बुझा-सुलह करके दबाये जाते हैं, उनपर महाभारत नहीं रचाये जाते| यानी अगर घर के मसले इतने बड़े होने लगें जितने गीता ने दिखाए हैं तो शायद ही कोई घर साबुत बचे| हम जाट-जमींदार हैं, हर दूसरे घर में जमीन-जायदाद के झगड़े होते हैं तो क्या इसका मतलब हमें यही काम रह गया है कि गीता की मान के कुरुक्षेत्र रचाते फिरेंगे? या हमारी पंचायतों की बजाये इन ठाल्ली-निकम्मे और नकारा मोडडों से न्याय करवाते फिरेंगे?

दादी कहती थी कि जिस दिन जाट-जमींदारों के यहां जमीनों जैसे मसले भी युद्धों से हल होने लगे तो बस लिए हमारे गाँव-नगर-खेड़े| दूर रहो इन अतिरेक से भरी किताबों से| हमारे यहां ऐसे झगड़े बढ़ाये नहीं अपितु घटाए जाते हैं| कोई किसी की बहु-बेटी को छेड़ दे या तंज कस दे तो पंचायत उसको गधे पे बैठा के काला मुंह करके पूरे गांव में घुमाती है| हो गई थी जो दुर्योधन-दुशासन से द्रोपदी को छेड़ने और गन्दा बोलने की गलती तो क्यों नहीं उठा के गधे पे घुमा दिया था दोनों को; मामला वहीँ की वहीँ दब जाता|

मैं दादी का ऐसा ताबड़तोड़ न्याय करने वाला जवाब सुनके सन्न और अवाक् रह गया था, कि क्या ऐसा भी हो सकता है| तो दादी कहती है कि यही तो अतिरेक दिखाया गया है गीता में, राह लगती बात करी नहीं; बेवजह राई का पहाड़ बना के कहानी पाथ दी|

दादी की यह लाइन उस दिन से आजतक शिक्षा बनके मेरे साथ चल रही है और तब से गीता-रामायण-महाभारत (आरएसएस के स्कूल में था पहली से दसवीं तक) को मैंने पढ़ा जरूर, परन्तु सिर्फ माइथोलॉजी मान के, वास्तविकता नहीं|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

आज उन टीचर्स को याद कर लूँ जरा जिनके साथ मेरी जूतम-पजारी हुई!

सिर्फ किस्से बताऊंगा, नाम टीचर के रेस्पेक्ट के चलते गुप्त ही रखूँगा!

1) आठवीं क्लास में ड्राइंग के मास्टर जी से लफड़ा हो गया|
2) नौवीं में सामाजिक के मास्टर जी से अकबर की मृत्यु की तारीख पे लफड़ा हो गया| वो 1604 में हुई पे अटक रहा और मैं 1605 बताता रहा| गुस्सा आया उसको सुना दी तो क्लास से नाम काट के बाहर कर दिया|
3) नौवीं क्लास के इंचार्ज से लफड़ा हुआ तो उसने नाम काट के क्लास से चलता कर दिया|
4) नौवीं क्लास में ही स्कूल के मन्दिर के आगे सामाजिक वाले ने फिर लफड़ा किया तो रगड़ना पड़ा, मंदिर में ही| ऐसे टीचर्स पर मेरा हाथ उठ जाता था जो सिलेबस का कुछ जानते नहीं थे और मंदिर के आगे चले आते थे यह सिखाने की मूर्ती को हाथ कैसे जोड़ने हैं और कैसे झुकना है| मेरी आदत नहीं थी मूर्ती को हाथ जोड़ने की, बस हाय-हेल्लो स्टाइल में हाथ मारता हुआ निकल जाता था; उस दिन इन जनाब ने पकड़ लिया तो लफड़ा हो गया| मखा आ तुझे मैं बताता हूँ, अकबर की मौत कब हुई तक तो तुझे पता नहीं, सिखाएगा मुझे कि पूजा कैसे करते हैं|
5) दसवीं क्लास में कंप्यूटर वाले को कंप्यूटर का बढ़िया सा ड्राइंग डिजाईन बना के दिया, उन्होंने उसको लिया किसी और कार्य के लिए, प्रयोग कहीं और किया तो उनसे दो-चार हो गई|
6) दसवीं क्लास के आखिरी दिन पीटीआई के पास कम्प्यूटर वाले ने शिकायत कर दी, तो करार चमाट खाया, क्योंकि वो रिश्ते में फूफा लगते थे, .......... उस दिन हमारा फुल क्लास का हाफ-डे बंक मारने का प्लान था, सब चौपट हो गया|
7) ग्यारहवीं में स्कूल की ब्लैक-लिस्ट में शामिल हो के नाम रोशन किया| इस वजह से दो बार नाम कटे परन्तु ऐसी वापसी मारी कि स्कूल का मोस्ट सिंसियर स्टूडेंट का अवार्ड ले मरा|
8) बीएससी फर्स्ट ईयर में एक मैथ के प्रोफेसर से लफड़ा हुआ तो प्रोफेसर साहब से पूरे तीन साल के लिए मंडावली कर ली, उसके बाद उनके साथ सब सेट रहा|
9) फ्रेशर्स को वेलकम पार्टी देने बारे फिजिक्स के प्रोफेसर से लफड़ा हुआ तो मसला उनकी ओप्पोसिशन झेल के निबटाना पड़ा|
10) एमबीए में एक प्रोफेसर ने कल्चरल एक्टिविटीज के रिजल्ट्स में लफड़ा किया तो जूनियर्स ने उससे पढ़ने से ही मना कर दिया| यह प्रेम होता था मेरे जूनियर्स का मेरे प्रति| उस प्रोफेसर की या तो "कटी ऊँगली" तक पे मूतने जैसी इज्जत थी या फिर कॉलेज प्रेजिडेंट के सामने ही हड़का दिया|

ऐसा नहीं है कि सिर्फ कड़वे ही एक्सपीरियंस रहे, अगर यह 10 कड़वे रहे तो कम-से-कम 100 अति-सुहाने भी रहे| इतने यादगार रहे कि आज भी वो टीचर्स दिलो-दिमाग पर राज करते हैं| जैसे कि एलकेजी के श्रीराम अत्रि जी, तीसरी कक्षा के दीनदयाल जी, पांचवीं क्लास के चन्द्रभान जी, और छटी से दसवीं तक में तो कई सारे एक तो खुद ड्राइंग टीचर जिनसे आठवीं में लफड़ा हुआ, हिंदी के रघुमहेन्द्र बंसल जी, संस्कृत के विवेक गर्ग जी|

ग्यारहवीं-बारहवीं के स्कूल में 95% मैडम थी तो लगभग हर मैडम से अच्छी बनी, जिनकी वजह से ब्लैक लिस्ट हुआ उनका भी फिर फेवरेट बना| ग्रेजुएशन में जो प्रोफेस्सोर्स ने विरोध किया उन्होंने खुद रोल-नंबर्स ढूंढ-ढूंढ के प्रैक्टिकल्स में नंबर लगवाए, जैसे कि फिजिक्स के प्रोफेसर जगबीर ढुल जी, हमारे आर्ट एंड कल्चरल टीम के इंचार्ज रोशनलाल जी ने तो बिना मांगे थिएटर और कल्चरल फील्ड में कार्य के लिए मेरिट सर्टिफिकेट ही हाथ में थमा दिया था| एमबीए के वक्त की नीति राणा मैडम ने तो फ्रांस में बैठे-बिठाये बैच का मोस्ट क्रिएटिव एंड इनोवेटिव स्टूडेंट अवार्ड दिलवा दिया था| इधर फ्रांस में भी कई प्रोफेस्सोर्स आजतक भी टच में हैं और जब चाहे मदद देते और लेते रहते हैं|

वो शरारतों वाले किस्से पॉइंट बना के इसलिए लिखे, क्योंकि इंडियन डीएनए को अच्छे से जानता हूँ, अधिकतर की रुचि उन्हीं को पढ़ने में रहेगी|

इसके अलावा इन्टरनेट और रिश्तेदारों का व्यहार भी सबसे बड़ा टीचर रहा| माँ-बाप तो फिर होते ही अल्टीमेट गुरु हैं|

तो यह थी मैं और मेरी जिंदगी के गुरुवों की एक झलक|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

सपना चौधरी, समझें कि किस वजह से लोग आपके साथ नहीं खड़े दिखे!

यह एक साइकोलॉजी की बात है|

सपना चौधरी ने जो जातीय आधारित रागनी गा के गलती की थी उसके लिए वो माफ़ी मांग चुकी थी, ज्यादा प्रेशर होता तो वो थाने में भी उपस्थित हो जाती| परन्तु जहर खाने तक की नौबत जरूर उस नोट की वजह से आई होगी, जिसमें उनके बारे ऐसी बातें थी जो कोई भी इंसान खुद तो कम-से-कम कहेगा नहीं| और वह बातें झूठी भी इसलिए सिद्ध होती हैं क्योंकि उस नोट वाले दावों के चरित्र पर चलने वाला कलाकार लगातार 4 साल तक मनोरंजन जगत पर ऐसे एकछत्र राज नहीं कर सकता, जैसे सपना हरयाणवी म्यूजिक व् डांस इंडस्ट्री में तहलका मचाये हुए थी| हरयाणवी कलाकारों को चाहिए कि वह फूहड़ता से ज्यादा अच्छे सिनेमा को बढ़ावा देवें|
ए, बी, सी ग्रेड फिल्म/प्रस्तुति हर कला इंडस्ट्री का हिस्सा होते आये हैं, फिर चाहे वो बॉलीवुड हो, हॉलीवुड या हरयाणा का हैरीवुड| बॉलीवुड और हॉलीवुड की सलफता बी या सी ग्रेड फ़िल्में नहीं अपितु ए ग्रेड फ़िल्में हैं; और इसी तरफ हैरीवुड को ज्यादा ध्यान देना चाहिए|

कारण बताता हूँ कि ऐसा क्यों होना चाहिए, क्योंकि सपना चौधरी ने अधिकतर बी या सी ग्रेड डांस व् पेरफॉर्मन्सेस दे के पैसा तो कमा लिया था परन्तु पब्लिक के वो सेंटीमेंट्स नहीं कमा पाई जैसे जब अमिताभ बच्चन को कुली फिल्म के वक्त चोट लगी थी तो सारा देश उनके लिए दुआओं में खड़ा हो गया था| बस यही वजह रही कि इस कठिन वक़्त में सपना को उसका साथ देने वाले कम मिले| इसलिए कहीं-ना-कहीं बैलेंस जरूरी है|
इसीलिए कहा जाता है कि आनन्-फानन वाले काम करके आप पैसा तो कमा लोगे, परन्तु अगर आपको लोगों के सेंटीमेंट्स पर कब्ज़ा करना है तो ए ग्रेड के कार्य करने भी जरूरी हैं| क्योंकि अगर अमिताभ अकेले सिर्फ बी या सी ग्रेड अफेयर्स में ही रहते तो वो पब्लिक सेंटीमेंट्स कैच नहीं कर पाते| जी, हाँ अमिताभ बच्चन जितने अफेयर्स शायद ही किसी हीरो या हेरोइन के रहें हों, यहां तक कि उनको नेहरू का DNA तक बोला जाता है; परन्तु अन्तोत्गत्वा पब्लिक सेंटीमेंट्स को भी वो अच्छे से पकड़ पाए|

हमारा भोला समाज है, बाल्मीकि भी डाकू से ऋषि बने तो स्वीकार कर लेता है| मैं यह तो नहीं कहूंगा की सपना में कोई दोष है; परन्तु जिस हताशा से वो गुजर रही हैं; उससे निकलना चाहेंगी तो निसन्देह पब्लिक फिर से स्वीकारेगी| परन्तु सिर्फ पैसा कमाने वाली स्वीकार्यता चाहिए या सेंटीमेंट्स जीतने वाली, यह सपना खुद तय करके आवें|

Note: Thanks for sending this note to Sapna Chaudhary, if anyone can!

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

ताजा-ताजा आये HPSC के नतीजों पर कुछ नामचीनों की अनुमानित मनोस्थिति!

1) राजकुमार सैनी, कुरुक्षेत्र एमपी, बीजेपी - टॉपर तीनों जाट, कुल General Category पास का 70% पास जाट बता रहे हैं| यहां भी न्याय नहीं, पिछड़ों को न्याय दिलवाने के लिए नई पार्टी ही अंतिम विकल्प है| मुझे तो खामखा ही जाटों की भृकुटि पे बैठा रखा है|


2) 35 बनाम 1 की मति वाले - इनसे तो हुड्डा और चौटाला ही अच्छे थे, कम से कम सबसे ज्यादा हमारे बच्चों को पास करवा के लगाते तो थे|


3) कैप्टन अजय यादव - बिना आरक्षण ही टोटल General Category में 70% जाट HPSC पास कर गए, जो होता आरक्षण तो यह आगे किसको आने देते?


4) अश्वनी चोपड़ा, करनाल एमपी, बीजेपी - मैं वैसे ही थोड़े कह रहा था कि जाट दबा लेंगे सबको, 35 बिरादरी जाटों के खिलाफ लामबन्द हो जाओ|

5) एम.एल. खट्टर, CM Haryana - लगता है मेरे द्वारा हरयाणवियों को कन्धे से नीचे मजबूत और ऊपर कमजोर कहने को, जाटों ने सबसे ज्यादा अपनी अनख पे ले लिया; गजब का आत्म-सम्मान है|


6) प्रवीण तोगड़िया - टोटल General Category में 70% जाट उत्तीर्ण; यानि इतने जाट असफ़रों के होने से अब जाट की बेटी सबसे ज्यादा सुरक्षित, जाट की बेटी सुरक्षित तो हिन्दू की बेटी सुरक्षित| सही है जितने ज्यादा जाट अफसर होंगे, उतनी हिंदुओं की बेटियां सुरक्षित होंगी| क्योंकि जाट की ही बेटी सुरक्षित नहीं तो किसी भी हिन्दू की नहीं|


7) मोहन भागवत - लगता है इन सबका जोइनिंग से पहले आरएसएस कैंप लगवाना होगा| पर कोई फायदा नहीं, जाट हैं ये; इनके तो कैंप क्या पूरी कैंपेन भी इनपे चला दूँ तो काबू नहीं (मेरा मतलब कन्विंस नहीं होने के) आने के; खामखा मेरे सीक्रेट्स सीख के, मेरी और वाट लगा देंगे|

On serious note: ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है; हरयाणा HPSC में जाट इसी तरह से परीक्षाएं उत्तीर्ण करते रहे हैं लगभग इसी अनुपात में| जो लोग जनगणना के जातिगत आंकड़े सार्वजनिक नहीं करते, उन्होंने इतनी बड़ी नौकरी के जातिगत आंकड़े भी बता दिए; दाल में कुछ नहीं, बहुत कुछ काला है| देखने वाली बात यह रहेगी कि इन General Category 70% में से कितनों की कहाँ-कैसी प्लेसमेंट होने वाली हैं| और राजकुमार सैनी जैसों को इसके जरिये अब यह क्या नया बम थमाने वाले हैं जाट के खिलाफ|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

कुछ लोग युद्ध लाये, हम बुद्ध लाये! - पीएम मोदी वियतनाम में!

मोदी महाशय, बुद्ध धर्म को बचाने के चक्कर में ही तो गठवाला जाट आज मलिक कहलाते हैं| किस्सा सुनना चाहेंगे पूरा? दूसरा बुद्ध इतने ही अच्छे लगते हैं तो देश के दलित जो बुद्ध को मानते हैं उनसे हिन्दू महासभाओं का 36 का आंकड़ा क्यों रहता है?

अब जरा थोड़ा विस्तार से: आपकी विचारधारा की हकीकत बता दूँ कि बुद्ध को भारत का हो के भी भारत में नहीं फैलने दिया गया; हरयाणा में तो इतना बड़ा नरसंहार (युद्ध) हुआ था कि आज भी किसी के यहां नुक्सान हो जाने पर लोक-कहावतें चलती हैं कि "मार दिया मठ", "हो गया मठ", "कर दिया मठ"। उस नर संहार की मानिद इतनी गहरी थी कि बुद्ध तपस्या में लीन निहत्थे जाटों को मारने के सिलसिले जब बढ़ते ही गए और अंतहीन प्रतीत हुए तो तब जा के जाटों ने अपनी भृकुटि खोली थी और मुंहतोड़ जवाब दे के लगाम लगाई गई थी|

जाने-माने इतिहासकार डॉक्टर के. सी. यादव की पुस्तक "हिस्ट्री ऑफ़ हरयाणा" में लिखा है कि कैसे मात्र 9 हजार गठवाले जाटों ने (क्योंकि इनके निशाने पर मुख्यत: गठवाले जाट ही थे) समस्त जाट-समाज का जिम्मा अपने ऊपर लेते हुए व् अपने भाईयों की रक्षा हेतु, इन आज बुद्ध के प्रति प्रेम दिखाने वालों की उस वक्त बुद्ध बने और तपस्या में लीन जाटों को मारने के लिए भेजी गई 1 लाख सेना को मात्र 1500 जाट खोते हुए काट दिया था और तब कहीं जा के इनके बुद्ध मठ व् बुद्धों को मारने के सिलसिले थमे थे| और यही वो वाकया है जब अरब के खलीफा को जाटों के इस शौर्य का पता चला तो गठवाला जाटों को "मलिक" की उपाधि ऑफर की| मुझे कहने की जरूरत नहीं कि अरब में मलिक का मतलब मालिक होता है और सर्वश्रेष्ठ उपाधि होती है; जिसको फिर गठवालों ने बराबरी के स्टेटस के साथ स्वीकार किया| इसीलिए मलिकों को अक्सर "मलिक साहब' भी कहा जाता है|

नौटंकी और भांडों को भी पीछे छोड़ दिया आपने तो| पीएम महोदय और नहीं तो जा के बालाजी जैसे मन्दिरों की मूर्तियां देख लो; बुद्ध की मूर्तियों को बालाजी का रूप दिया हुआ है| मंदिर तोड़ने वालों से भी खतरनाक खून की होली खेलने (मठ तोड़ने वाले) वालों में हैं आप की विचारधारा वाले|

फिर भी बुद्ध के बिना आपका काम नहीं चलता, कभी लन्दन में भारत को बुद्ध का देश बताते हैं तो आज वियतनाम में भी| वैसे बताने को तो बुद्ध को विष्णु का नौवां अवतार भी लिखे हुए हैं विष्णु-पुराण में? परन्तु बुद्ध को मानने वाले दलितों पर कैसे अत्याचार और कैसी हेय दृष्टि से देखते हैं; हर कोई वाकिफ है इससे| हो सके तो पहले अपने देश में इस बात को दुरुस्त कीजिये; वर्ना आपका यह अव्वल दर्जे का काइयाँपन विदेशी भी समझते हैं, भ्रम में ना रहें| यह विदेश-निति में चाणक्य जैसी मूलचूक गलतियाँ ना करें; वर्ना क्या वजह रही कि चाणक्य के साथ ही उनकी नीतियां भी मृतप्राय हो गई थी? उनके बाद किसी राजा ने उन (चाणक्य की) नीतियों को नहीं चलाया?

जय यौद्धेय! - फूल मलिक