Thursday 15 September 2016

आओ समझें कि अंधभक्त असल में है क्या!

हमारे देश में राष्ट्रभक्ति और अंधभक्ति के नाम पर एक अजीब ड्रामा चल रहा है; ऐसे लोग आ के वो भी उनको माइनॉरिटी का भय दिखाते हैं जिनके पुरखों ने इन भय दिखाने वालों के भय दूर करे थे| और ताज्जुब की बात है कि भय निकालने वालों के सपूत इनके डरावे के झांसे में आ भी रहे हैं|

मैं एक जाट हूँ, मुझे किसी दूसरे धर्म वाला डरा सकता है क्या? परन्तु बहुत से तो जाट भी इनकी बातों में आ के डर का स्वांग कर रहे हैं| और इसी स्वांग की कीमत है जो जाटों ने फरवरी जाट आंदोलन पर हुए गोलीकांड के माध्यम से चुकाई|

मत स्वांग करो और मत भूलो कि यह जो तुम्हें माइनॉरिटी का भय दिखाते हैं, अगर बाई-चांस एक पल को माइनॉरिटी ने अटैक भी कर दिया तो कल को सबसे पहले तुम्हारे पीछे आ के यही छुपेंगे|

मेरी दादी एक किस्सा सुनाती थी कि एक बार दो जाट और एक बनिया, काली-घनी-बरसाती-अँधेरी रात में एक गाँव से दूसरे गाँव कच्चे रास्तों से पैदल जा रहे थे| जाट का कदम लम्बा होता है तो थोड़ी ही देर में दोनों जाट बनिए से काफी आगे निकल गए| बनिए को डर लगा तो सोचा इनको सच्चाई बताऊंगा कि मुझे डर लग रहा है तो यह मेरी हंसी उड़ाएंगे, तो बनिए ने आवाज लगाई, "आ भाई चौधरियो, दिखे तुम में से किसी को भय लगता हो तो एक मेरे आगे हो लो और एक मेरे पीछे!" जाट समझ गए कि भाई को भय लग रहा है, तीनों मित्र थे तो जाट बोले कि भाई तुझे भय लग रहा है तो साफ़ बोल ना; आ जा हमारे बीच|

तो यह माइनॉरिटी तुम्हें खा जाएगी, मार देगी का असल भय लगता तो इनको है, परन्तु ऊपर दादी के बताये किस्से वाले स्टाइल में "राष्ट्रवाद का नाम दे के" यह इसको ट्रांसफर कर देते हैं औरों पे| और इन औरों की जोरों पे चल रही एक केटेगरी का नाम है "अंधभक्त"। यह बावली-बूच भ्रम में टूल रहे होते हैं कि हम राष्ट्रहित में काम कर रहे हैं, जबकि यह सिर्फ भय दिखाने वालों का भय ढो रहे होते हैं|

और यही है इनकी आपको "लुगाई किसी की, उठाई किसी ने, पूंछ जलवाई किसी ने" स्टाइल वाली बेकार की जिम्मेदारियों में उलझा के खुद निष्कण्टक मौज मारते रहने की नीति|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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