Saturday, 13 May 2017

मुलायम सिंह यादव को जाटों से उनकी नफरत ले डूबी!

आईये समझें कैसे?

मुलायम सिंह यादव पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को ना सिर्फ अपना राजनैतिक गुरु मानते हैं अपितु खुद को चौधरी साहब का उत्तराधिकारी भी बताते हैं|

परन्तु चौधरी साहब के दिए राजनैतिक मूलमंत्र मजगर यानी म-अजगर + दलित + पिछड़ा ( मजगर यानी मुस्लिम-अहीर-जाट-गुज्जर-राजपूत व् दलित) से इन्होनें आते ही ज को अलग करने की राजनीति खेली| और इसकी शुरुवात इन्होनें रक्षामंत्री रहते हुए "जाट-रेजिमेण्ट के कैडर में छेड़छाड़ करके कर दी थी| 2013 के मुज़फ्फरनगर दंगे तो अपने ही गुरु के मूलमंत्र वाले मजगर से म व् ज को फाड़ने की इन्होनें "अपने ही पैरों पे कुल्हाड़ी मारने वाली" प्रकाष्ठा ही कर दी थी|

भले ही बीजेपी ने यह लालच दे के यह दंगा करवाया था कि इससे जो धुर्वीकरण होगा उसका मुस्लिम वोट तुम ले लेना और हिन्दू वोट हम ले लेंगे| और हो गई इनके साथ "ना माया मिली ना राम वाली"| बीजेपी तो ऐसा काला कोयला है कि जिसके साथ दलाली में हाथ काले होवें ही होवें; हरयाणा में इनेलो और ताऊ देवीलाल व् चौधरी बंसीलाल के साथ क्या-क्या करती आई है बीजेपी उससे भी रिफरेन्स नहीं ली|

इनेलो वालो सावधान पब्लिकली ना सही, परन्तु अंदर खाते बीजेपी से क्या गलबहियाँ पा के चल रहे हो; हमको सब खबर है| अब भी दूर हट जाओ इनसे, वरना यह तुमको "कुत्ते को मार, बंजारा जैसे रोया था" उस तरिके से रोने लायक भी नहीं छोड़ेंगे| याद रखना, 1999-2004 वाली सरकार में इनेलों ने जो बीजेपी की वाट लगाई थी, उसको भूले नहीं हैं यह लोग; मौका मिलते ही गच्चा खा जाने वाला झटका देंगे, सो इनसे जरा सम्भल के|

खैर, आगे बढ़ते हैं| मुज़फ्फरनगर दंगे वाले झांसे में पड़ने से पहले अगर मुलायम की जगह लालू यादव होते तो जैसे बिहार में रथयात्रा के दौरान अडवाणी को जेल में डाल दिए थे, ऐसे बीजेपी के इस ऑफर को ठंडे बस्ते में डाल देते और मुज़फ्फरनगर में लालू यादव चिड़िया को भी पर नहीं मारने देते|

यहां यह याद रखें कि मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि जाटों ने इनको वोट नहीं दिए तो यह हारे; नहीं अपितु ज के बाद ग व् र भी इनसे टूट गया| और 2017 चुनाव में तो यह म को भी एक नहीं रख पाए| यानि खुद की पोलिटिकल स्ट्रेटेजी से जो a bad carpenter quarrels with own tools टाइप में इन्होनें खटबढ़ शुरू की थी, अंत में वही मुलायम सिंह यादव की राजनीति को लील गई|

और यही वजह है कि दंगों की डील से शुरू हुई दास्तां, अब पुरजोर डिमांड वाले स्टाइल में सहारनपुर-मेरठ में लाइव चल रही है| वो भी हिन्दू या मुस्लिम के बीच नहीं, बल्कि सतयुगी टाइप वाले हिन्दू स्वर्ण व् हिन्दू दलित के बीच|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

राह पनघट की अब इतनी सहज नहीं है गौरी!

पिछले हफ्ते भाजपा दफ्तर की एक वीडियो हाथ लगी थी, जिसमें ओबीसी के लोगों को राजपूतों से यह कह के जोड़ने का अभियान अभी से चलाया जा रहा है कि "देखो तुमको ओबीसी आरक्षण देने वाले प्रधानमंत्री वीपी सिंह एक राजपूत थे"|

और इधर इनेलो इतना तक कैश नहीं करवा पा रही है कि उस राजपूत प्रधानमंत्री के लिए कुर्सी को छोड़ अजगर धर्म निभाने वाला एक जाट यानि ताऊ देवीलाल थे| इन्होनें सर्वसमत्ति से सांसद-दल का नेता व् प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद भी, कुर्सी वीपी सिंह की ओर सरका दी थी| इनेलो वालो जाग जाओ और अपनी शक्तियों को पहचान लो|

और यह ओबीसी आरक्षण देने पीछे भी बड़ी रोचक कहानी है, पूरी पढ़नी है तो मेरा यह लेख पढ़िए कि कैसे इस ओबीसी आरक्षण की घोषणा ताऊ देवीलाल करने वाले थे, परन्तु मंडी-फंडी ने ताऊ जी से पहले वीपी सिंह जी से करवा दी| लेख - http://www.nidanaheights.com/choupalhn-ajgr-split.html

जाटों को यह बात भी आमजन में किसी तरह कैश करवानी होगी कि जिस मंडल कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर ओबीसी आरक्षण लागू हुआ था, उस मंडल कमीशन का गठन करने वाले पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह भी एक जाट ही थे| अगर कैश नहीं भी करवा पाओ, तो प्रतिद्व्न्दी राजनीति उसको अपने हित में कैश ना करवा ले (जो कि कोशिशों में लगी हुई है) इससे बचने के लिए आमजन में फैलाये तो जरूर रखनी होगी| और इस पॉइंट को तो हरयाणा में जो पार्टी चाहे कैश कर सकती है|

वरना राह पनघट की अब इतनी सहज नहीं है गौरी|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Friday, 12 May 2017

सिद्धू गोत्र के जाट महाराजा रणजीत सिंह को सांसी राय की उपाधि क्यों मिली?

सांसी एक शराब निकालकर बेचने वाली जाती होती है,पंजाब और राजस्थान में बहोत बड़ी संख्या में है,अब सवाल ये उठता है कि सिद्धू गोत्र के जाट महाराजा रणजीत सिंह को सांसी राय की उपाधि क्यों मिली??कहीं उन्हें साहसी राय तो नही कहा गया??चलिये इतिहास में चलते है,17वी सदी में सूबाई राजा जिन्हें चौधरी कहा जाता था वो मुगलो को गद्दी से उतारने के लिए उत्सुक हो रहे थे उन्हें अपनी रियासत आज़ाद चाहिए थी ना कि टैक्स दे मुगलो को,सारा जाट एरिया इन चौधरियो के अंडर था, ओर एक चौधरी राजा को छोड़ कर सभी जाट थे,इन चौधराहट जागीरों को sikkhism से जोड़ने के लिए इन्हें मिसल कहा जाने लगा,उन दिनों पंजाब के सारे जाट सिख धर्म अपना चुके थे,पंजाब जो आज का पाकिस्तानी पंजाब और हरयाणा ओर हिमाचल ओर उत्तरी राजस्थान और जम्मू के क्षेत्र थे इनमे 12 सिख मिसल राज कर रही थी 12 में से सिर्फ 1 सांसी थे और बाकी 11 जाट थे,ये सारे चौधरी पंजाब पर हुकूमत करने के लिए आपस मे लड़ रहे थे,सांसी चुप चाप अपनी ताकत और अपना क्षेत्र बढ़ा रहे थे,पर इनसे गलती ये हुई कि इन्होंने जाट मिसल के क्षेत्र पर हमला कर दिया,कमजोर जाट मिसल की समझ मे आ गया कि बात काबू से बाहर हो गयी वो अपने से 10 गुना बड़ी फौज जिसमे 90% जाट्ट ओर 10% सांसी हो और जिन्हें मुगल पैसे देते हो उनको हराया नही जा सकता,तो ऐसे में इस मिसल के चौधरी ने सिद्धूओ से मदद मांगी क्योंकि इन्होंने सिद्धूओ को लड़की ब्याही हुई थी,उत्तरी पंजाब में दोनों फौज टकराई और सिद्धू और गिल इतनी बहादुरी से लड़े की क्षेत्र में एक भी सांसी को ज़िंदा नही छोड़ा,गिल गोत इतनी बहादुरी से लड़ा की उन्हें देख कर लोग शेर गिल कहने लगे,इनके 120 के जत्थे ने 1400 सांसी मार दिए,लड़ाई खत्म हुई तो इस लड़ाई से जीत कर आये हुए गिल जाट परीवारों को शेर गिल कहा जाने लगा और सिद्धूओ को सांसी राय, महाराजा रणजीत सिंह को सांसी राय इसलिए कहा गया कि इन्होंने पूरी तरह सांसियो को हराकर उनपर राज किया अपने बाप दादाओ की तरह,पर समय के साथ सांसी राय उपाधि छोटी हो कर सांसी रह गयी,आज सांसी जाटो का गोत्र है पर ये है वो सिद्धू जाट्ट ही जिन्होंने सांसियो को खत्म किया था,आज ऐसे बहोत गोत्र है जाटो के जो उपाधि है पर छोटे हो गए जैसे jatt rana से घट कर सिर्फ राणा रह गया,मलिक-ऐ-राजपूत से घट कर मलिक रह गया,अहीर रावत से घट कर रावत रह गया,इन उपाधियों में दूसरी जाति का नाम सिर्फ इसलिए है कि जाटो ने उन जातियो को हराया था ना कि ये जाट उन जातियो से बने है

Source: https://www.facebook.com/permalink.php?story_fbid=1631784090182951&id=1070908336270532&pnref=story 

Tuesday, 9 May 2017

अंग्रेजों के लिए काल बन गया था बख्तावर जाट!

गुड़गांव, यहां पर आजादी का एक ऐसा महानायक भी पैदा भी हुआ है जो अंग्रेजी सेना और अधिकारियों के लिए काल बन गया था। देश की खातिर उन्होंने अपने पूरे परिवार को कुर्बान कर दिया। हालांकि उन्हें अंग्रेजी हुकूमत ने फांसी पर लटका दिया था।

गांव झाड़सा के रहने वाले झाड़सा 360 के वर्तमान प्रधान महेंद्र सिंह ठाकरान के छोटे भाई राकेश सिंह ठाकरान ने कल मुलाकात के दौरान मुझे काफी जानकारी दी । उनके मुताबिक बख्तावर सिंह ठाकरान झाड़सा 360 के चौधरी थे। उस समय इस चौधरी को राजस्व अधिकारी का दर्जा प्राप्त था। झाड़सा कमिश्नरी थी।


चौधरी बख्तावर शुरू से ही अंग्रेजी हुकूमत की जड़ काटने में लगा था। 1857 के संग्राम के दौरान शहीद राजा नाहरसिंह वल्लभगढ़ की मार से डरकर दिल्ली से जब कुछ अंग्रेज अफसर भागकर गुड़गांव में छुपने आए तो बख्तावर सिंह ने करीब ढाई सौ अंग्रेजी सैनिकों और अधिकारियों को बंधक बना लिया। बख्तावर सिंह ने उन्हें वे तमाम यातनाएं दीं जो अंग्रेजी हुकूमत भारतीयों को देती थी। उसने सभी को मार गिराया।


संग्राम की आग जब ठंडी हुई तो अंग्रेजों ने बख्तावर सिंह को बंदी बना लिया। इससे पूर्व ही बख्तावर ने अपने परिवार को कहीं भेज दिया था, जो आज तक नहीं लौटे हैं। अंग्रेजी हुकूमत ने अंग्रेजी अधिकारियों को मारने के जुर्म में बख्तावर सिंह को आज जहां राजीव चौक बना हुआ है वहाँ पर फांसी पर लटका दिया था। बख्तावर के शव को भी अंग्रजों ने वहीं छोड़ दिया था। इस्लामपुर के ग्रामीणों ने उनका अंतिम संस्कार किया था।


जब इस घटना को गुलामी के परिप्रेक्ष्य में देखते हैं कि बख्तावर सिंह अकेला ऐसा शख्स था जो सही मायने में इस क्षेत्र से आजादी का महानायक कहलाने लायक हैं।


बख्तावर सिंह को स्वतंत्रता के बाद सरकार ने पूरा सम्मान नही दिया। उनके नाम से बने 3 यादगारों को क्रमश: नेहरू चोंक ,इंदिरा चोंक और राजीव चोंक करने की बहुत बड़ी सरकारी कोशिस चली पर झाड़सा ओर इस्माइलपुर के ठाकरान जाटों ने लाठी जेली कुल्हाड़े ओर भाले लेकर सड़क पर बैठ गए । ग्रामीण जाटों ने तत्कालीन कांग्रेस सरकार के पिछवाडे पर झाड़ झाड़ कर जूते मारे ।


पर कहते है जनता ही असली सरकार होती है फिर भी तमाम विरोध के चलते एक स्थल को सरकार राजीव चोंक बनाने में सफल रही । जबकि ग्रामीणों के निरन्तर प्रदर्शन के चलते नेहरू चोंक वाली जगह को ठाकरान जाटों ने नेताजी सुभाष चौक बनवाकर ही दम लिया। इंदिरा चोंक कैंसल होकर वापस बख्तावरसिंह चोंक बनाया गया ।
इन्ही दो गावों झाड़सा ओर इस्माइलपुर के जाटों के हथियारो समेत किये गए विरोध के चलते उनके नाम से शहर में आज चौक है, सड़क है और झाड़सा गांव में चारों और उनके नाम अत्याधुनिक गेट बनवाए गए हैं।


सिर्फ झाड़सा 360 या गुड़गांव जिले ही नही चौधरी बख्तावरसिंह पर पूरी जाट नश्ल को गौरव है । असली इतिहास की खोज की कोशिसकर्ता आपका भाई रणधीर देशवाल


# जाट_गजट_पत्रिका

महाराजाधिराज सूरजमल महान पर कवि बलवीर घिंटाला जी की अद्भुत कविता!

बच रही थी जागीरें जब, बहु बेटियों के डोलों से,
तब एक सूरज निकला, ब्रज भौम के शोलों से|

था विध्वंश - था प्रलय वो, था जीता-जागता प्रचंड तूफां,
तुर्कों के बनाये साम्राज्य का, मिटा दिया नामो निशां|

बात है सन् 1748 की, जब मचा बागरु में हाहाकार,
7 रजपूती सेनाओं का, अकेला सूरज कर गया नरसंहार|

इस युद्ध ने इतिहास को, उत्तर भारत का नवयौद्धा दिया,
मुगल पेशवाओं का कलेजा, अकेले सूरज ने हिला दिया|

पेशवा मुगल रजपूतों ने, मिलकर मौर्चा एक बनाया,
मगर छोटी-गढी कुम्हेर तक को, यह जीत न पाया|

घमंड में भाऊ कह गया, नहीं चाहिए जाटों की ताकत,
पेशवाओं की दुर्दशा बता रहा, तृतीय समर ये पानीपत|

अब्दाली की सेना ने जब, पेशवाओं को औकात बताई,
महारानी किशोरी ने ही तब, ले शरण में इनकी जान बचाई|

दंभ था लाल किले को खुद पे, कहलाता आगरे का गौरव था,
सूरज ने उसकी नींव हीला दी, जाटों की ताकत का वैभव था|

हारा नहीं कभी रण में, ना कभी धोके से वार किया,
दुश्मन की हर चालों को, हंसते हंसते ही बिगाड़ दिया|

खेमकरण की गढी पर, बना कर लोहागढ ऊंचा नाम किया,
सुजान नहर लाके उसने, कृषकों को जीवनदान दिया|

ना केवल बलशाली था, बल्कि विधा का ज्ञानी था,
गर्व था जाटवंश के होने का, न घमंडी न अभिमानी था|

56 वसंत की आयु में भी, वह शेरों से खुला भिड़ जाता था,
जंगी मैदानों में तलवारों से, वैरी मस्तक उड़ा जाता था|

अमर हो गया जाटों का सूरज, दे गया गौरवगान हमें,
कर गया इतिहास उज्ज्वल, दे गया इक अभिमान हमें|

'तेजाभक्त बलवीर' तुम्हें वंदन करे, करे नमन चरणों में तेरे,
सदा वैभवशाली तेरा शौर्य रहे, सदा विराजो ह्रदय में मेरे|

बल्लभगढ़ का बलरामपुर होता है तो फिर झाँसी का भी काशी या कुछ ऐसा ही कर दो?

बल्ल्भगढ़ 1857 के राजा नाहर सिंह से जुड़ा है और झाँसी का 1857 की ही रानी लक्ष्मीबाई से|

अब जब 1857 की यादगार मिटाने ही लगे हो तो ढंग से मिटाते हैं| वर्ना तो बलराम को सम्मान देने हेतु, आसपास गाँव-शहर और भी बहुत थे, किसी और का रख लिया होता बलरामपुर नाम? और क्या तथ्य हैं इनके पास कि यह बलरामपुर ही होता था? जिस नगर को बसाया ही 3-4 सदी पहले गया हो, उसका हजारों साल के माइथोलॉजी के चरित्र से यूँ ही बैठे बिठाये मेल बिठा दोगे क्या?

कोई धर्म और नहीं विश्व में ऐसा जिसने अपने भगवानों के नाम से नगरों के नाम रखे हों| ना हमने कोई अल्लाहपुर या अल्लाहगढ सुना| ना कोई यशुपुर या यशुगढ़ सुना| बस इनके ही पता नहीं कैसे अजीब चोंचले हैं| फिर भी बनाने हैं नगर भगवानों के नाम से तो बनाओ, परन्तु कम से कम इतिहास के महापुरुषों के पर्याय बन चुके नगर-खेड़े-गाँवों के नामों से तो छेड़छाड़ मत करो|

मेरे जैसा तो कोई मुख्यमंत्री बन गया तो इन सब नामों को वापिस ज्यों-के-त्यों पलटेगा और ऐसा कानून भी बनाएगा कि ऐतिहासिक महापुरुषों के धोतक बन चुके नगरों-गाँवों के नाम नहीं बदले जायेंगे| माइथोलॉजी के चरित्रों के लिए मंदिर बना के दिए हैं समाज ने इनको, क्या वो कम हैं?

जमींदारों सम्भल जाओ अब भी, इनकी ऐसी-ऐस हरकतें काफी होनी चाहिए आपको यह समझने के लिए कि यह तुम्हें हिन्दू मानते ही नहीं; तो क्यों लिपटे पड़े हो इनसे? इस हिन्दू नाम की अफीम से बाहर आओ| बिना शर्त बिना मिनिमम कॉमन एजेंडा के इनके साथ नहीं निभने वाली| क्या राजा नाहर सिंह हिन्दू नहीं थे, जो एक काल्पनिक हिन्दू को सम्मान देने हेतु, वास्तविक हिन्दू का अपमान किया जा रहा है? कोई नी, काठ की हांडी कितनी और बार चढ़ाओगे?

यह किसी भी सूरत में धर्म नहीं है, सिर्फ-और-सिर्फ 5-10% माइनॉरिटी की 80-90% मेजोरिटी पर राज करने की राजनीति है|

यह तो वही बात हो गई, हम सिर्फ तुम्हारी पैदा करी फसल ही अपनी मर्जी के नखरों और दामों पर नहीं उठाएंगे अपितु तुम्हारे महापुरुषों के बनाये इतिहास पे भी अपनी मर्जी का ठप्पा लगाएंगे| मेरे ख्याल से यह मनमर्जी और हठधर्मिता की अतिश्योक्ति हो रही है|

इनको कहो कोई कि यह बेढंगी रीत ना डालें यह; वरना कल को सरकारें दूसरों की भी आनी हैं और जिद्द पे आये तो हर गली-चौराहे पे जेळी गाड़ देंगे और ऊपर से लिख देंगे "जमींदार-महकमा"|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

खापोलोजी व् भक्तवाद में तुलनात्मक अंतर!


अंतर 1:
खापोलोजी घर-कुनबे-बिरादरी को हर दुःख-झगड़े सुलझा के मनमुटाव भुला के समरसता से रहने का नाम है| इसीलिए मुझे यह छोटी सी घरेलू बातों पर युद्ध के मैदान सजा लेने की सामाजिक वास्तविकता से दूर की काल्पनिक कहानियां कभी आकर्षित नहीं करती|
जबकि फेंकुलोजी यानि भक्तवाद घर-कुनबे-बिरादरी में छोटी सी भी मानवीय सोच की भिन्नता को भुना के "राइ का पहाड़ बना के" यही जीवन है टाइप जीवन-दर्शन करवा के, भाई को भाई से भिड़ा के रखने और अपनी रोजी चलाने का नाम है|
अंतर 2:
खाप एक बार फैसला करने बैठ जाए तो 99% केसों में दोनों पक्षों को मिला के ही उठती है|
भक्तवादी जहां घुस जाए, 99% केसों में दोनों के मसले को और पेचीदा बना के उठते हैं|
अंतर 3:
खाप द्वारा 99% सलूशन देने की सबसे बड़ी वजह यह है कि इन लोगों ने आजीवन समाज के बीच बिताया होता है, समाज कैसे चलते हैं व् चलाने होते हैं; इसके भलीभांति अनुभवी होते हैं|
भक्तवाद द्वारा 99% मसले पेचीदा करने के पीछे बड़ी वजह यह है कि इन्होनें जिंदगी का अधिकतर वक्त अवसाद, एकांत, जंगल या अलख जगाने में गुजारा होता है|
अंतर 4:
खाप वाले अधिकतर वो होते हैं जो आजीविका के लिए स्वावलम्बी होते हैं|
भक्तवाद वाले आजीविका के मामले में परजीवी होते हैं|
अंतर 5:
क्योंकि खाप वाले आजीविका के मामले में स्वावलम्बी होते हैं, इसलिए यह तुरंत और निशुल्क न्याय करते हैं, केवल सामाजिकता को बचाये रखने के लिए|
क्योंकि 99% भक्तवादी आजीविका के मामले में परजीवी होते हैं, इसलिए यह प्रवचन सुनाने की फीस लेते हैं, और झगड़ों को तारीख-पे-तारीख की भांति लटकाते हैं या अपने सगे भाई के घर से दूरी बनाने की बात कहते हैं; ताकि उससे इनकी आजीविका निरंतर चलती रहे| फिर बेशक झगड़े आधारहीन ही क्यों ना हों, परन्तु यह उनको सुलझवाते नहीं; दोनों तरफ के परिवारों को अलगाव पर डाल देते हैं|

अनुरोध: और क्योंकि खाप वालों में यह स्वछंदता उनकी आर्थिक स्वावलम्बिता के चलते बनी होती है, इसलिए खापोलॉजी व् समकक्ष थ्योरियों में यकीन रखने वालों को चाहिए कि भक्तवाद से दूर रहें और अपनी आर्थिक आज़ादी को कैसे कायम व् निरंतर स्वतंत्र रखें इसपे कार्य करें| आप भक्तवाद के आगे झुक गए या आत्मसमर्पण कर दिया तो याद रखिये, यह आपसे ही आपकी कमाई छीन के आपको उसी के मोहताज बना देंगे; यह इस हद तक के बहमी लोग होते हैं|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

जब ब्राह्मणों ने यह सलंगित कटिंग वाली खबर पढ़ी होगी, तो उन्होंने क्या किया होगा?

हरयाणा में जाट बनाम नॉन-जाट, वेस्ट यूपी में चौधरी चरण सिंह जी के सम्मान पर हाथ डालने की जुर्रत, पंजाब-हरयाणा व् तमाम भारत में सरदार भगत सिंह के नाम से एयरपोर्ट बदलने की गुफ्तगू छेड़ने की हिमाकत व् 1857 की क्रांति के धोतक राजा नाहर सिंह की रियासत का नाम बदलने से कोफ़्त और क्रोधित महसूस कर रहा जाट, जमींदार व् इन ऊपर नामित हुए नेताओं-नायकों से दिल से जुड़ा हर अन्य जातियों-ब्रादरियों का इंसान; 2012 की इस खबर की कटिंग को पढ़े और सोचे, क्या ब्राह्मणों ने जब यह कटिंग पढ़ी होगी तो कम खून खोला होगा उनका? लेकिन सब अंदर दबा के रखा और सही वक्त का ना सिर्फ इंतज़ार किया वरन उसको जल्द-से-जल्द लाने की तैयारी भी करते रहे|

इसलिए सोशल मीडिया पर विरोध दर्ज करें, परन्तु उसके अतिरेक में पड़ के आगे की तैयारी करने से विमुख न होवें| और आगे की तैयारी ऐसी हो कि यह पीछे वाली कमियां जिसमें ना हों| अच्छे-बुरे-अवांछित वक्त उन्हीं पे आते हैं, जिनको समाज-दुनिया कुछ मानती हो; आज यह जाट बनाम नॉन-जाट है तो यह स्थाई नहीं है| जिसने भी यह बनाया है, वह हीनभावना से ग्रसित है, उसको जाट सबसे उच्च लगते हैं; और खुद से भी, तो इसलिए बेवजह खौफजदा है वो| लेकिन यह उच्चता और पक्की हो, उसके लिए इन वर्तमान हालातों को उसका आधार बना के आगे बढ़ना होगा|

तो इस जाट बनाम नॉन-जाट को एक उत्सव की तरह जियो और एक छालें मार के बहती मदमस्त नदी की भांति अपने किनारों में बहते हुए अलख जगाते हुए आगे बढ़ो|

उद्घोषणा: मैं इस सलंगित कटिंग वाली खबर की पुष्टि नहीं करता, हो सकता है मीडिया की शरारत रही हो, परन्तु वर्तमान हालातों के चलते जाट-जमींदार जैसे समाज का युवा (नहीं जायेगा, यह जाट का जींस है, परन्तु फिर भी संभावना को ही मिटा दिया जाए तो अति-उत्तम) गलत राह ना पकड़ ले, अलगाव या अवसाद में न चला जाए; इसलिए सिर्फ-और-सिर्फ एक मोटिवेशनल रिफरेन्स की भांति प्रयोग कर रहा हूँ|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक


बाहुबली-2 रिव्यु!

जैसे जब बाहुबली-1 आई थी तो मैंने साफ़ कहा था कि क्या जरूरत थी फिल्म को एक काल्पनिक कथानक देने की जबकि हमारे पास सन 1748 की जयपुर राजगद्दी को ले हुई बागरु की लड़ाई की, इस फिल्म की स्क्रिप्ट में हूबहू फिट बैठती वास्तविक पठकथा उपलब्ध है तो?

सनद रहे बागरु की लड़ाई जयपुर राजा ईश्वरी सिंह व् उनके छोटे भाई माधो सिंह के मध्य जयपुर की गद्दी हथियाने बारे हुई थी| जिसमें ईश्वरी सिंह पक्ष में मात्र 20 हजार सेना (10 हजार कुशवाहा राजपूत व् 10 हजार भरतपुर-ब्रज की जाट सेना) थी व् माधो सिंह के पक्ष में 3 लाख 30 हजार सेना (7 राजपूत रजवाड़ों की सेनाएं, मुग़ल सेना व् पूना के ब्राह्मण पेशवाओं की मराठा सेना) लड़ी थी| तीन दिन के आंधी-अंधड़-तूफानों-बरसातों से भरे इस युद्ध में भरतपुर राजकुमार सूरजमल के नेतृत्व में जुटी व् लड़ी मात्र 20 हजार की सेना ने 3 लाख 30 हजार की जुगलबंदी सेना को परास्त कर दिया था| इस प्रकार एक जाट राजा ने अपनी साथी राजपूत राजा की गद्दी बचाई थी|

आज जब बाहुबली 2 देखी तो फिल्म बहुत पसंद आई, परन्तु अबकी बार का प्लाट भी वही काल्पनिक| एक राजमाता को केंद्रीय भूमिका में रखने वाली इस फिल्म को देखते ही अहसास हुआ कि यह कहानी भरतपुर की राजमाता महारानी किशोरीबाई के इर्द-गिर्द बनाकर, इसको वास्तविकता का आधार दिया जा सकता था|
सनद रहे यह वही राजमाता हैं, जिन्होनें अपने सुपुत्र भारतेन्दु महाराजा जवाहर सिंह को हड़का कर दिल्ली जीतने के लिए प्रेरित किया था| और अपनी माता व् राजमाता के मार्गदर्शन में महाराजा जवाहर सिंह ने जो दिल्ली पर चढ़ाई कर वहाँ बैठे अहमदशाह अब्दाली के मनोनीत शासकों की ना सिर्फ ईंट-से-ईंट बजाई, बल्कि चित्तोड़ की रानी पद्मावती के वक्त से अल्लाउद्दीन खिलजी द्वारा वहाँ का उखाड़ कर लाया जो अष्टधातु दरवाजा दिल्ली लालकिले में लगा था, उसको भी जाट उखाड़कर भरतपुर ले गए थे| दिल्ली में जाट एक महीना जम के बैठे रहे, तब उनके वहाँ से हटने का और कोई रास्ता नहीं दिख मुग़ल अपनी राजकुमारी भारतेन्दु से ब्याहने का न्योता देते हैं, तो भारतेन्दु महाराजा जवाहर सिंह ने वह ऑफर अपने फ्रेंच सेनापति साथी, कैप्टेन समरू की ओर मोड़ दिया था| दिल्ली की यह जीत इतिहास में "जाटगर्दी" के नाम से दर्ज है| और ऐसे ऐतिहासिक किस्सों की वजह से ही दिल्ली को जाटों की बहु भी कहा जाता रहा है|

वैसे तो बाहुबली-1 भी ऑस्कर में जाने लायक थी, परन्तु क्यों नहीं गई पता नहीं| बाहुबली-2 जाएगी या नहीं यह भी पता नहीं| परन्तु अगर वास्तविकता की जगह काल्पनिक पटकथा होना, इनका ऑस्कर में नहीं जाने की वजह बनता है तो यही कहूंगा कि इन लोगों को यह ऊपर बताई दो वास्तविक कहानियों पर अगली ऐसी ट्राई करनी चाहिए| क्योंकि यह दोनों घटनायें ना सिर्फ भारत अपितु अंग्रेज-अरब-अफ़ग़ान-फ्रेंच सबकी आँखों देखी हैं|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

एक बार एक "पहुँचा हुआ जाट" सतसंग में चला गया!

वहाँ गीता-पाठ हो रहा था| परन्तु प्रवचन वाले बाबा को पता नहीं था कि आज जाट से वाद-विवाद प्रतियोगिया होवेगी उसकी, बेचारा!

प्रवचन वाला बाबा छूटते ही बोला: भक्तजनों, अब कुछ समय के लिए सांसारिक दुःख-दर्द-मोहमाया-तर्क-वितर्क सब भूलकर अपने आपको मुझे समर्पित कर दो|

जाट बोला: बाबा अगर तर्क-वितर्क आपको समर्पित कर दिए तो बुद्धि क्या ग्रहण करेगी, यह कैसे आंकूंगा?

बाबा: वत्स, धर्म में तर्क-वितर्क नहीं किये जाते, खुद को भगवान को समर्पित किया जाता है|

जाट: पर बाबा, आप तो आपको समर्पित करने की कह रहे, यहाँ भगवान किधर है?

बाबा: वत्स, हम ही तो आपको भगवान से मिलाएंगे| परन्तु उसके लिए तुम्हें कंप्यूटर की भांति अपने दिमाग को फॉर्मेट मारना होगा|

जाट: फॉर्मेट मारना होगा का क्या मतलब बाबा?

बाबा: बेटा जैसे हम किसी भी कंप्यूटर को फॉर्मेट मारते हैं तो उसका पुराना डाटा डिलीट करके, उसमें नया डालते हैं, ऐसे ही आप अपनी बुद्धि से पुराना सब-कुछ डिलीट कर दीजिये|

जाट: परन्तु बाबा, इससे तो मेरे माँ-बाप व् स्कूल-कालेज में मिले गुरुवों की शिक्षा डिलीट हो जाएगी? आप जैसे लोग ही कहते हैं ना कि माँ-बाप और गुरु जो सिखावें उसको ताउम्र शिरोधार्य रखें?

बाबा: तुम जाट हो क्या, जो इतने तर्क-वितर्क करते हो?

जाट: हाँ, बाबा जाट ही हूँ|

बाबा: तो भाई पहले क्यों नहीं बोला; जो "पहुँचा हुआ जाट" हो गया वो तो हमारा भी बाप हो गया| हम तो खुद जाट को देख के तर्क करना सीखते हैं, प्रभु आप कहाँ आ गए हमारी परीक्षा लेने?

जाट: बाबा, यह सब छोड़ो; यह बताओ इंसान कोई मशीन है क्या, जो आप उसके दिमाग को अपने अनुसार फॉर्मेट मारोगे? और आपको कम्प्यूटर्स को इतना ही फॉर्मेट मारने का शौक है तो कोई सॉफ्टवेयर इंजीनियर की जॉब क्यों नहीं कर लेते?

बाबा: बच्चा, क्यों रोजी- रोटी पे लात मारते हो; कहो तो मैं आज ही नौकरी डॉट कॉम पे जॉब अप्लाई कर दूंगा| अब आज-आज की आज्ञा हो तो प्रवचन पूरे कर लूँ?

जाट: ना बाबा, आज तो आप अपना सीवी अपडेट करो; प्रवचन तो आज जाट देवेगा|

और जाट प्रवचन यही है कि अपनी तार्किक बुद्धि को कभी मत छोडो, किसी बाबा को गिरवी मर धरो| बिना छल-कपट के जियो और जीने दो|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

ईवीएम (EVM) मशीन से छेड़छाड़ का लाइव डेमो!


झाड़ू के निशान पर पड़े 10 वोटों में से 8 वोट कमल के निशान को कैसे चढ़ गए, समझने के लिए वीडियो को शुरू से अंत तक पूरा देखें| कुछ भी कहो आज आम आदमी पार्टी वालों ने जो किया है, इसने दिल छू लिया|

वीवीपैट (VVPAT) की मशीनों से भी गड़बड़ी सम्भव है, इसलिए इसका सिर्फ एक ही हल है और वो है "बैलेट पेपर" वाली वोटिंग वापिस लाओ|

2019 का चुनाव अगर वीवीपैट के भरोसे छोड़ दिया तो भी गड़बड़ की जाएगी; इसलिए आवाज उठे कि ना ईवीएम ना वीवीपैट, वोटिंग सिर्फ बैलेट पेपर से| बैलेट पेपर से ही वोटिंग फ्रांस में होती, यही इंग्लैंड में|

https://www.youtube.com/watch?v=9RpUJJbr-8I

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Tuesday, 2 May 2017

भाजपा के वसूली भाईयों ने किया भ्रष्टाचार का नया कीर्तिमान स्थापित!

जबरन वसूली, वो भी जनता से नहीं बल्कि सरकारी अफसरों से|

सलंगित आदेश पत्र की कॉपी के मुख्य हिस्से में यह लिखा है:

{{{{ ...... माननीय मुख्यमंत्री - हरयाणा सरकार के निर्देशानुसार आपको सूचित कर रहा हूँ कि जिस दिन से हरयाणा सरकार में चेयरमैन अथवा अन्य किसी लाभ के पद को ग्रहण किया है और आपने विभाग से मासिक मानदेय लेना शुरू किया है, उस दिन से इस वेतन का 10 प्रतिशत प्रतिमाह एमएलए फ्लैट 51, सेक्टर 3, चंडीगढ़ भाजपा कार्यालय में जमा करवाना है| अकाउंट का विवरण निम्न प्रकार से है|
सधन्यवाद,
गुलशन भाटिया,
चेयरमैन
भाजपा कार्यालय
चंडीगढ़ ..... }}}}

पिछली सरकारों को किसी को "भ्रष्टाचार की नानी" तो किसी को "बाहुबली गुंडों की सरकार" कहने वाले इन लोगों को भी देख लो ज़रा| और हिम्मत तो देखो, बाकायदा लिखित आदेश जारी हो रहे हैं, वो भी दिन-दहाड़े सबको दिखा के; कोर्ट-कानून किसी का कोई मतलब ही नहीं छोड़ा|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

पत्र सोर्स: दीपकमल सहारण भाई साहब!

फंडी की भरमाई शाक्का/जौहर करती! जाटणी की जाई, बैरी के प्राण हरती!!

फंडी की भरमाई शाक्का/जौहर करती!
जाटणी की जाई, बैरी के प्राण हरती!!

इस कहानी को चरितार्थ करती जाट वीरांगना रानाबाई की शौर्यगाथा!

सम्राट् अकबर के शासनकाल में वीरांगना रानाबाई थी, जिसका जन्म संवत् 1600 (सन् 1543 ई०) में जोधपुर राज्यान्तर्गत परबतसर परगने में हरनामा (हरनावा) गांव के चौ० जालमसिंह धाना गोत्र के जाट के घर हुआ था। वह हरिभक्त थी। ईश्वर-सेवा और गौ-सेवा ही उसके लिए आनन्ददायक थी। उसने अपनी भीष्म प्रतिज्ञा आजीवन ब्रह्मचारिणी रहने की कर ली थी, इसलिए उसका विवाह नहीं हुआ।

हरनामा गांव के उत्तर में 2 कोस की दूरी पर गाछोलाव नामक विशाल तालाब के पास दिल्ली के सम्राट् अकबर का एक मुसलमान हाकिम 500 घुड़सवारों के साथ रहता था। वह हाकिम बड़ा अन्यायी तथा व्यभिचारी, दुष्ट प्रकृति का था। उसने रानाबाई के यौवन, रंग-रूप की प्रशंसा सुनकर रानाबाई से अपना विवाह करने की ठान ली। उसने चौ० जालमसिंह को अपने पास बुलाकर कहा कि “तुम अपनी बेटी रानाबाई को मुझे दे दो। मैं तुम्हें मुंहमांगा इनाम दूंगा।” चौ० जालमसिंह ने उस हाकिम को फ़टकारकर कहा कि - “मेरी लड़की किसी हिन्दू से ही विवाह नहीं करती तो मुसलमान के साथ विवाह करने का तो सवाल ही नहीं उठता।” हाकिम ने जालमसिंह को कैद कर लिया और स्वयं सेना लेकर रानाबाई को जबरदस्ती से लाने के लिए हरनामा गांव में पहुंचा और जालमसिंह का घर घेर लिया।

जब वह रानाबाई को पकड़ने के लिए उसके निकट गया तो वीरांगना रानाबाई अपनी तलवार लेकर उस म्लेच्छ पर सिंहनी की तरह झपटी और एक ही झटके से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। बाल ब्रह्मचारिणी रानाबाई सिंहनी की तरह गर्जना करती हुई मुग़ल सेना में घुस गई और अपनी तलवार से गाजर,मूली की तरह म्लेच्छों के सिर काट दिये। इस अकेली ने 500 मुगलों से युद्ध करके अधिकतर को मौत के घाट उतार दिया। थोड़े से ही भागकर अपने प्राण बचा सके। जाटों ने उनका पीछा किया और चौधरी जालमसिंह को कैद से छुड़ा लिया गया।
वीरांगना रानाबाई की इस अद्वितीय वीरता की कीर्ति सारे देश में फैल गई। वीरांगना रानाबाई के स्वर्गवास होने पर उसकी यादगार के लिए उनके अनुनाईयों ने उनका एक स्मारक बना दिया।

आधार लेख:
(1) जाट बन्धु मासिक समाचार पत्र आगरा, मुद्रक, प्रकाशक किशनसिंह फौजदार, अंक जुलाई, अगस्त, सितम्बर 1986, सती शिरोमणि रानाबाई, लेखक चौ० किशनाराम आर्य।
(2) जाट इतिहास, पृ० 606, लेखक ठा० देशराज
(3) जाट वीरों का इतिहास दलीप सिंह अहलाबत
 
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