Tuesday, 16 May 2017

जमींदार जागरूकता के 30 सूत्र!

ताकि लोकतान्त्रिक सामाजिकता बची रहे!

(01) जमींदार एक हों।
(02) दादा खेड़ा (उर्फ़ दादा भैया, ग्राम खेड़ा) को अपना नायक मानें।
(03) छोटे छोटे संगठनों के जमींदार कोष बनें।
(04) कोष से गरीब जमींदारों की मदद हो।
(05) जमींदार कोई न कोई तकनीक सीखें।
(06) जमींदार अधिकारी, नेता, उद्योगपति कानून के अंदर जमींदार की मदद को प्राथमिकता दें।
(07) ढोंग-मूढ़मढ़िता-पाखंड बढ़ाने वाली चीजों से जमींदार का पतन हुआ है, इसलिए इनको बढ़ावा देने की अपेक्षा इनके सामने स्कूल-कॉलेज-चौपाल-परस खड़ी करें|
(08) पढ़े लिखे जमींदार, ढोंग-पाखंड की समस्त थ्योरियों को ध्वस्त करें।
(09) अस्पृश्यता बिलकुल न रखें, समाज को वर्ण व् जाति में बांटने वालों से उचित दूरी बना कर चलें।
(10) जमींदार व् जमींदार का वंशज होने पर गर्व करें।
(11) सभी जमींदार अपने नाम में अपना गौत गर्व से लिखें।
(12) जमींदार, जमींदार की निंदा कभी न करे। यदि कोई करता है, तो तार्किक विरोध करें।
(13) "जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी" नियम के तहत 100% आरक्षण लागू करवाने हेतु मिलकर आंदोलन चलाएं।
(14) जहाँ भी दादा खेड़ा, बेमाता, खाप जैसी जमींदारों की तमाम लोकतान्त्रिक प्रणालियों का विरोध या आलोचना हो तो तार्किक व् तुलनात्मक मुकाबला करें।
(15) अपनी मान-मान्यताओं व् खाप यौद्धेयों का अपमान बिलकुल सहन न करें।
(16) सर छोटूराम व् अन्य तमाम जमींदारों के मसीहाई नेताओं के जमींदारों के कल्याण हेतु बनाये कानूनों को अपना गौरव ग्रंथ मानें व बच्चों को अवश्य पढ़ाएं। ऐसे तमाम कानूनों को एक पुस्तक का रूप दे के, उस पुस्तक को "जमींदार-सहिंता" के नाम से अपने पास रखें|
(17) इतिहास के जमींदार नायकों व् खाप यौद्धेयों पर शोध पूर्ण लेख व् पुस्तकें लिखी जाएँ।
(18) जमींदार पहले बनें, कोई भी धर्मी बाद में! शहरी जमींदार वंशजों को भी इस बात के तमाम महत्व बताएं!
(19) अगर किसी भी धर्म-जाति के नाम पर बनी कोई संस्था, जमींदार जमात का भला नहीं करती है तो उसको त्याग दें| और अपना जमींदारी सिद्धांत अपनाएँ।
(20) सभी जमींदार प्रतिदिन दादा खेड़ा व् चौपाल की ओर जाएँ व् इनकी इमारतों को बनाये रखने, मरम्मत व नवनिर्माण हेतु यथाशक्ति दान करें।
(21) संगठित होकर रहें| किसी जमींदार पर संकट आने पर मिलकर मुकाबला करें।
(22) प्राचीन व आधुनिक शिक्षा प्राप्त करें।
(23) कैरियर पर अधिक ध्यान दें। जमींदारी से संबंधित तमाम व्यापारों में उतरिये!
(24) जीविका के लिए जो भी काम मिले, दादा खेड़ा का नाम लेकर करें।
(25) जमींदार-पुरखों में आस्था रखें!
(26) नित्यकर्म मे स्वाध्याय को सम्मिलित कीजिये!
(27) नारी का सम्मान व् यथासम्भव बराबरी के लिये संकल्पित होईये! आसपास का माहौल नारी को भयमुक्त जीवन देने वाला बनाईये!
(28) जमींदार किसी भी हालत मे हो उसका सम्मान एवं उसकी उन्नति के लिये प्रयास कीजिये!
(29) जमींदार के दुश्मन वर्गों से जमीन व् फसल बचाने के यथोचित सक्रिय (Proactive) मार्ग अपना कर चलिए!
(30) जमींदार एक जाति-वर्ण रहित सोशल थ्योरी है, इसको किसी भी प्रकार की सामन्तवादिता से बचा के चलिए!


जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Saturday, 13 May 2017

यह कैसे भूमंडल के विजेता हैं जो भारत से बाहर राम-कृष्ण-परशुराम का नाम लेने से भी हिचकिचाते हैं?

मोदी ने लंदन में अपने अभिभाषण में भारत को "राम या कृष्ण" की बजाये "बुद्ध" का देश बोला, मैंने उसको अ ब स द वजहें दे के स्वीकार कर लिया; परन्तु श्रीलंका में भी भारत को "बुद्ध" का ही देश बोला, क्यों भाई "राम का देश" बोलने में रावण से डर लगा क्या? रावण का डर था तो कृष्ण का बोल देते, परन्तु यह क्या जहाँ जाते हैं "बुद्ध" का देश? जबकि घर में बुद्ध को मानने वालों को आरएसएस अपना सबसे बड़ा दुश्मन बताती है?

सीख लो लोगो इनसे कुछ कि दुश्मन का नाम ले के भी कैसे पब्लिसिटी की रोटियां सेंकी जा सकती हैं| कैसे दुश्मन की खूबी को अपने फायदे के लिए बेचा जाता है| दुश्मन से साम्प्रदायिक दुश्मनी निभाते हैं, परन्तु जहां दुश्मन की रेपुटेशन से आर्थिक या रेप्युटेशनल लाभ दिखे तो उसी दुश्मन को अपना बताने से परहेज नहीं करते| आखिरकार यही यथार्थ है आर्थिक लाभ व् रेपुटेशन का|

परन्तु मुझे अफ़सोस तो यह है कि हजारों वर्ष पुराने राम-कृष्ण को यह इतना भी बड़ा नहीं मानते कि यह बुद्ध की जगह उनका नाम ले के यही आर्थिक लाभ व् रेपुटेशन कमा सकें? क्या इनके नाम आगे ना करना इनकी हीन भावना तो नहीं? यह कैसे भूमंडल के विजेता होने के दावे करते रहते हैं इतिहास में, जबकि यह राम-कृष्ण या परशुराम का नाम भारत से बाहर लेने से भी हिचकिचाते हैं?

वैसे "बुद्ध" के अलावा भारत को किसी दूसरे अन्य व्यक्ति का देश कहने की मोदी हिम्मत कर पाए हैं तो वह हैं मुरसान रियासत के जाट नरेश राजा महेंद्र प्रताप जी| जब मोदी अफ़ग़ानिस्तान संसद का उद्घाटन करने गए थे तो राजा जी का नाम बड़े गर्व से लिए थे|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

मुलायम सिंह यादव को जाटों से उनकी नफरत ले डूबी!

आईये समझें कैसे?

मुलायम सिंह यादव पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को ना सिर्फ अपना राजनैतिक गुरु मानते हैं अपितु खुद को चौधरी साहब का उत्तराधिकारी भी बताते हैं|

परन्तु चौधरी साहब के दिए राजनैतिक मूलमंत्र मजगर यानी म-अजगर + दलित + पिछड़ा ( मजगर यानी मुस्लिम-अहीर-जाट-गुज्जर-राजपूत व् दलित) से इन्होनें आते ही ज को अलग करने की राजनीति खेली| और इसकी शुरुवात इन्होनें रक्षामंत्री रहते हुए "जाट-रेजिमेण्ट के कैडर में छेड़छाड़ करके कर दी थी| 2013 के मुज़फ्फरनगर दंगे तो अपने ही गुरु के मूलमंत्र वाले मजगर से म व् ज को फाड़ने की इन्होनें "अपने ही पैरों पे कुल्हाड़ी मारने वाली" प्रकाष्ठा ही कर दी थी|

भले ही बीजेपी ने यह लालच दे के यह दंगा करवाया था कि इससे जो धुर्वीकरण होगा उसका मुस्लिम वोट तुम ले लेना और हिन्दू वोट हम ले लेंगे| और हो गई इनके साथ "ना माया मिली ना राम वाली"| बीजेपी तो ऐसा काला कोयला है कि जिसके साथ दलाली में हाथ काले होवें ही होवें; हरयाणा में इनेलो और ताऊ देवीलाल व् चौधरी बंसीलाल के साथ क्या-क्या करती आई है बीजेपी उससे भी रिफरेन्स नहीं ली|

इनेलो वालो सावधान पब्लिकली ना सही, परन्तु अंदर खाते बीजेपी से क्या गलबहियाँ पा के चल रहे हो; हमको सब खबर है| अब भी दूर हट जाओ इनसे, वरना यह तुमको "कुत्ते को मार, बंजारा जैसे रोया था" उस तरिके से रोने लायक भी नहीं छोड़ेंगे| याद रखना, 1999-2004 वाली सरकार में इनेलों ने जो बीजेपी की वाट लगाई थी, उसको भूले नहीं हैं यह लोग; मौका मिलते ही गच्चा खा जाने वाला झटका देंगे, सो इनसे जरा सम्भल के|

खैर, आगे बढ़ते हैं| मुज़फ्फरनगर दंगे वाले झांसे में पड़ने से पहले अगर मुलायम की जगह लालू यादव होते तो जैसे बिहार में रथयात्रा के दौरान अडवाणी को जेल में डाल दिए थे, ऐसे बीजेपी के इस ऑफर को ठंडे बस्ते में डाल देते और मुज़फ्फरनगर में लालू यादव चिड़िया को भी पर नहीं मारने देते|

यहां यह याद रखें कि मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि जाटों ने इनको वोट नहीं दिए तो यह हारे; नहीं अपितु ज के बाद ग व् र भी इनसे टूट गया| और 2017 चुनाव में तो यह म को भी एक नहीं रख पाए| यानि खुद की पोलिटिकल स्ट्रेटेजी से जो a bad carpenter quarrels with own tools टाइप में इन्होनें खटबढ़ शुरू की थी, अंत में वही मुलायम सिंह यादव की राजनीति को लील गई|

और यही वजह है कि दंगों की डील से शुरू हुई दास्तां, अब पुरजोर डिमांड वाले स्टाइल में सहारनपुर-मेरठ में लाइव चल रही है| वो भी हिन्दू या मुस्लिम के बीच नहीं, बल्कि सतयुगी टाइप वाले हिन्दू स्वर्ण व् हिन्दू दलित के बीच|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

राह पनघट की अब इतनी सहज नहीं है गौरी!

पिछले हफ्ते भाजपा दफ्तर की एक वीडियो हाथ लगी थी, जिसमें ओबीसी के लोगों को राजपूतों से यह कह के जोड़ने का अभियान अभी से चलाया जा रहा है कि "देखो तुमको ओबीसी आरक्षण देने वाले प्रधानमंत्री वीपी सिंह एक राजपूत थे"|

और इधर इनेलो इतना तक कैश नहीं करवा पा रही है कि उस राजपूत प्रधानमंत्री के लिए कुर्सी को छोड़ अजगर धर्म निभाने वाला एक जाट यानि ताऊ देवीलाल थे| इन्होनें सर्वसमत्ति से सांसद-दल का नेता व् प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद भी, कुर्सी वीपी सिंह की ओर सरका दी थी| इनेलो वालो जाग जाओ और अपनी शक्तियों को पहचान लो|

और यह ओबीसी आरक्षण देने पीछे भी बड़ी रोचक कहानी है, पूरी पढ़नी है तो मेरा यह लेख पढ़िए कि कैसे इस ओबीसी आरक्षण की घोषणा ताऊ देवीलाल करने वाले थे, परन्तु मंडी-फंडी ने ताऊ जी से पहले वीपी सिंह जी से करवा दी| लेख - http://www.nidanaheights.com/choupalhn-ajgr-split.html

जाटों को यह बात भी आमजन में किसी तरह कैश करवानी होगी कि जिस मंडल कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर ओबीसी आरक्षण लागू हुआ था, उस मंडल कमीशन का गठन करने वाले पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह भी एक जाट ही थे| अगर कैश नहीं भी करवा पाओ, तो प्रतिद्व्न्दी राजनीति उसको अपने हित में कैश ना करवा ले (जो कि कोशिशों में लगी हुई है) इससे बचने के लिए आमजन में फैलाये तो जरूर रखनी होगी| और इस पॉइंट को तो हरयाणा में जो पार्टी चाहे कैश कर सकती है|

वरना राह पनघट की अब इतनी सहज नहीं है गौरी|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Friday, 12 May 2017

सिद्धू गोत्र के जाट महाराजा रणजीत सिंह को सांसी राय की उपाधि क्यों मिली?

सांसी एक शराब निकालकर बेचने वाली जाती होती है,पंजाब और राजस्थान में बहोत बड़ी संख्या में है,अब सवाल ये उठता है कि सिद्धू गोत्र के जाट महाराजा रणजीत सिंह को सांसी राय की उपाधि क्यों मिली??कहीं उन्हें साहसी राय तो नही कहा गया??चलिये इतिहास में चलते है,17वी सदी में सूबाई राजा जिन्हें चौधरी कहा जाता था वो मुगलो को गद्दी से उतारने के लिए उत्सुक हो रहे थे उन्हें अपनी रियासत आज़ाद चाहिए थी ना कि टैक्स दे मुगलो को,सारा जाट एरिया इन चौधरियो के अंडर था, ओर एक चौधरी राजा को छोड़ कर सभी जाट थे,इन चौधराहट जागीरों को sikkhism से जोड़ने के लिए इन्हें मिसल कहा जाने लगा,उन दिनों पंजाब के सारे जाट सिख धर्म अपना चुके थे,पंजाब जो आज का पाकिस्तानी पंजाब और हरयाणा ओर हिमाचल ओर उत्तरी राजस्थान और जम्मू के क्षेत्र थे इनमे 12 सिख मिसल राज कर रही थी 12 में से सिर्फ 1 सांसी थे और बाकी 11 जाट थे,ये सारे चौधरी पंजाब पर हुकूमत करने के लिए आपस मे लड़ रहे थे,सांसी चुप चाप अपनी ताकत और अपना क्षेत्र बढ़ा रहे थे,पर इनसे गलती ये हुई कि इन्होंने जाट मिसल के क्षेत्र पर हमला कर दिया,कमजोर जाट मिसल की समझ मे आ गया कि बात काबू से बाहर हो गयी वो अपने से 10 गुना बड़ी फौज जिसमे 90% जाट्ट ओर 10% सांसी हो और जिन्हें मुगल पैसे देते हो उनको हराया नही जा सकता,तो ऐसे में इस मिसल के चौधरी ने सिद्धूओ से मदद मांगी क्योंकि इन्होंने सिद्धूओ को लड़की ब्याही हुई थी,उत्तरी पंजाब में दोनों फौज टकराई और सिद्धू और गिल इतनी बहादुरी से लड़े की क्षेत्र में एक भी सांसी को ज़िंदा नही छोड़ा,गिल गोत इतनी बहादुरी से लड़ा की उन्हें देख कर लोग शेर गिल कहने लगे,इनके 120 के जत्थे ने 1400 सांसी मार दिए,लड़ाई खत्म हुई तो इस लड़ाई से जीत कर आये हुए गिल जाट परीवारों को शेर गिल कहा जाने लगा और सिद्धूओ को सांसी राय, महाराजा रणजीत सिंह को सांसी राय इसलिए कहा गया कि इन्होंने पूरी तरह सांसियो को हराकर उनपर राज किया अपने बाप दादाओ की तरह,पर समय के साथ सांसी राय उपाधि छोटी हो कर सांसी रह गयी,आज सांसी जाटो का गोत्र है पर ये है वो सिद्धू जाट्ट ही जिन्होंने सांसियो को खत्म किया था,आज ऐसे बहोत गोत्र है जाटो के जो उपाधि है पर छोटे हो गए जैसे jatt rana से घट कर सिर्फ राणा रह गया,मलिक-ऐ-राजपूत से घट कर मलिक रह गया,अहीर रावत से घट कर रावत रह गया,इन उपाधियों में दूसरी जाति का नाम सिर्फ इसलिए है कि जाटो ने उन जातियो को हराया था ना कि ये जाट उन जातियो से बने है

Source: https://www.facebook.com/permalink.php?story_fbid=1631784090182951&id=1070908336270532&pnref=story 

Tuesday, 9 May 2017

अंग्रेजों के लिए काल बन गया था बख्तावर जाट!

गुड़गांव, यहां पर आजादी का एक ऐसा महानायक भी पैदा भी हुआ है जो अंग्रेजी सेना और अधिकारियों के लिए काल बन गया था। देश की खातिर उन्होंने अपने पूरे परिवार को कुर्बान कर दिया। हालांकि उन्हें अंग्रेजी हुकूमत ने फांसी पर लटका दिया था।

गांव झाड़सा के रहने वाले झाड़सा 360 के वर्तमान प्रधान महेंद्र सिंह ठाकरान के छोटे भाई राकेश सिंह ठाकरान ने कल मुलाकात के दौरान मुझे काफी जानकारी दी । उनके मुताबिक बख्तावर सिंह ठाकरान झाड़सा 360 के चौधरी थे। उस समय इस चौधरी को राजस्व अधिकारी का दर्जा प्राप्त था। झाड़सा कमिश्नरी थी।


चौधरी बख्तावर शुरू से ही अंग्रेजी हुकूमत की जड़ काटने में लगा था। 1857 के संग्राम के दौरान शहीद राजा नाहरसिंह वल्लभगढ़ की मार से डरकर दिल्ली से जब कुछ अंग्रेज अफसर भागकर गुड़गांव में छुपने आए तो बख्तावर सिंह ने करीब ढाई सौ अंग्रेजी सैनिकों और अधिकारियों को बंधक बना लिया। बख्तावर सिंह ने उन्हें वे तमाम यातनाएं दीं जो अंग्रेजी हुकूमत भारतीयों को देती थी। उसने सभी को मार गिराया।


संग्राम की आग जब ठंडी हुई तो अंग्रेजों ने बख्तावर सिंह को बंदी बना लिया। इससे पूर्व ही बख्तावर ने अपने परिवार को कहीं भेज दिया था, जो आज तक नहीं लौटे हैं। अंग्रेजी हुकूमत ने अंग्रेजी अधिकारियों को मारने के जुर्म में बख्तावर सिंह को आज जहां राजीव चौक बना हुआ है वहाँ पर फांसी पर लटका दिया था। बख्तावर के शव को भी अंग्रजों ने वहीं छोड़ दिया था। इस्लामपुर के ग्रामीणों ने उनका अंतिम संस्कार किया था।


जब इस घटना को गुलामी के परिप्रेक्ष्य में देखते हैं कि बख्तावर सिंह अकेला ऐसा शख्स था जो सही मायने में इस क्षेत्र से आजादी का महानायक कहलाने लायक हैं।


बख्तावर सिंह को स्वतंत्रता के बाद सरकार ने पूरा सम्मान नही दिया। उनके नाम से बने 3 यादगारों को क्रमश: नेहरू चोंक ,इंदिरा चोंक और राजीव चोंक करने की बहुत बड़ी सरकारी कोशिस चली पर झाड़सा ओर इस्माइलपुर के ठाकरान जाटों ने लाठी जेली कुल्हाड़े ओर भाले लेकर सड़क पर बैठ गए । ग्रामीण जाटों ने तत्कालीन कांग्रेस सरकार के पिछवाडे पर झाड़ झाड़ कर जूते मारे ।


पर कहते है जनता ही असली सरकार होती है फिर भी तमाम विरोध के चलते एक स्थल को सरकार राजीव चोंक बनाने में सफल रही । जबकि ग्रामीणों के निरन्तर प्रदर्शन के चलते नेहरू चोंक वाली जगह को ठाकरान जाटों ने नेताजी सुभाष चौक बनवाकर ही दम लिया। इंदिरा चोंक कैंसल होकर वापस बख्तावरसिंह चोंक बनाया गया ।
इन्ही दो गावों झाड़सा ओर इस्माइलपुर के जाटों के हथियारो समेत किये गए विरोध के चलते उनके नाम से शहर में आज चौक है, सड़क है और झाड़सा गांव में चारों और उनके नाम अत्याधुनिक गेट बनवाए गए हैं।


सिर्फ झाड़सा 360 या गुड़गांव जिले ही नही चौधरी बख्तावरसिंह पर पूरी जाट नश्ल को गौरव है । असली इतिहास की खोज की कोशिसकर्ता आपका भाई रणधीर देशवाल


# जाट_गजट_पत्रिका

महाराजाधिराज सूरजमल महान पर कवि बलवीर घिंटाला जी की अद्भुत कविता!

बच रही थी जागीरें जब, बहु बेटियों के डोलों से,
तब एक सूरज निकला, ब्रज भौम के शोलों से|

था विध्वंश - था प्रलय वो, था जीता-जागता प्रचंड तूफां,
तुर्कों के बनाये साम्राज्य का, मिटा दिया नामो निशां|

बात है सन् 1748 की, जब मचा बागरु में हाहाकार,
7 रजपूती सेनाओं का, अकेला सूरज कर गया नरसंहार|

इस युद्ध ने इतिहास को, उत्तर भारत का नवयौद्धा दिया,
मुगल पेशवाओं का कलेजा, अकेले सूरज ने हिला दिया|

पेशवा मुगल रजपूतों ने, मिलकर मौर्चा एक बनाया,
मगर छोटी-गढी कुम्हेर तक को, यह जीत न पाया|

घमंड में भाऊ कह गया, नहीं चाहिए जाटों की ताकत,
पेशवाओं की दुर्दशा बता रहा, तृतीय समर ये पानीपत|

अब्दाली की सेना ने जब, पेशवाओं को औकात बताई,
महारानी किशोरी ने ही तब, ले शरण में इनकी जान बचाई|

दंभ था लाल किले को खुद पे, कहलाता आगरे का गौरव था,
सूरज ने उसकी नींव हीला दी, जाटों की ताकत का वैभव था|

हारा नहीं कभी रण में, ना कभी धोके से वार किया,
दुश्मन की हर चालों को, हंसते हंसते ही बिगाड़ दिया|

खेमकरण की गढी पर, बना कर लोहागढ ऊंचा नाम किया,
सुजान नहर लाके उसने, कृषकों को जीवनदान दिया|

ना केवल बलशाली था, बल्कि विधा का ज्ञानी था,
गर्व था जाटवंश के होने का, न घमंडी न अभिमानी था|

56 वसंत की आयु में भी, वह शेरों से खुला भिड़ जाता था,
जंगी मैदानों में तलवारों से, वैरी मस्तक उड़ा जाता था|

अमर हो गया जाटों का सूरज, दे गया गौरवगान हमें,
कर गया इतिहास उज्ज्वल, दे गया इक अभिमान हमें|

'तेजाभक्त बलवीर' तुम्हें वंदन करे, करे नमन चरणों में तेरे,
सदा वैभवशाली तेरा शौर्य रहे, सदा विराजो ह्रदय में मेरे|

बल्लभगढ़ का बलरामपुर होता है तो फिर झाँसी का भी काशी या कुछ ऐसा ही कर दो?

बल्ल्भगढ़ 1857 के राजा नाहर सिंह से जुड़ा है और झाँसी का 1857 की ही रानी लक्ष्मीबाई से|

अब जब 1857 की यादगार मिटाने ही लगे हो तो ढंग से मिटाते हैं| वर्ना तो बलराम को सम्मान देने हेतु, आसपास गाँव-शहर और भी बहुत थे, किसी और का रख लिया होता बलरामपुर नाम? और क्या तथ्य हैं इनके पास कि यह बलरामपुर ही होता था? जिस नगर को बसाया ही 3-4 सदी पहले गया हो, उसका हजारों साल के माइथोलॉजी के चरित्र से यूँ ही बैठे बिठाये मेल बिठा दोगे क्या?

कोई धर्म और नहीं विश्व में ऐसा जिसने अपने भगवानों के नाम से नगरों के नाम रखे हों| ना हमने कोई अल्लाहपुर या अल्लाहगढ सुना| ना कोई यशुपुर या यशुगढ़ सुना| बस इनके ही पता नहीं कैसे अजीब चोंचले हैं| फिर भी बनाने हैं नगर भगवानों के नाम से तो बनाओ, परन्तु कम से कम इतिहास के महापुरुषों के पर्याय बन चुके नगर-खेड़े-गाँवों के नामों से तो छेड़छाड़ मत करो|

मेरे जैसा तो कोई मुख्यमंत्री बन गया तो इन सब नामों को वापिस ज्यों-के-त्यों पलटेगा और ऐसा कानून भी बनाएगा कि ऐतिहासिक महापुरुषों के धोतक बन चुके नगरों-गाँवों के नाम नहीं बदले जायेंगे| माइथोलॉजी के चरित्रों के लिए मंदिर बना के दिए हैं समाज ने इनको, क्या वो कम हैं?

जमींदारों सम्भल जाओ अब भी, इनकी ऐसी-ऐस हरकतें काफी होनी चाहिए आपको यह समझने के लिए कि यह तुम्हें हिन्दू मानते ही नहीं; तो क्यों लिपटे पड़े हो इनसे? इस हिन्दू नाम की अफीम से बाहर आओ| बिना शर्त बिना मिनिमम कॉमन एजेंडा के इनके साथ नहीं निभने वाली| क्या राजा नाहर सिंह हिन्दू नहीं थे, जो एक काल्पनिक हिन्दू को सम्मान देने हेतु, वास्तविक हिन्दू का अपमान किया जा रहा है? कोई नी, काठ की हांडी कितनी और बार चढ़ाओगे?

यह किसी भी सूरत में धर्म नहीं है, सिर्फ-और-सिर्फ 5-10% माइनॉरिटी की 80-90% मेजोरिटी पर राज करने की राजनीति है|

यह तो वही बात हो गई, हम सिर्फ तुम्हारी पैदा करी फसल ही अपनी मर्जी के नखरों और दामों पर नहीं उठाएंगे अपितु तुम्हारे महापुरुषों के बनाये इतिहास पे भी अपनी मर्जी का ठप्पा लगाएंगे| मेरे ख्याल से यह मनमर्जी और हठधर्मिता की अतिश्योक्ति हो रही है|

इनको कहो कोई कि यह बेढंगी रीत ना डालें यह; वरना कल को सरकारें दूसरों की भी आनी हैं और जिद्द पे आये तो हर गली-चौराहे पे जेळी गाड़ देंगे और ऊपर से लिख देंगे "जमींदार-महकमा"|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

खापोलोजी व् भक्तवाद में तुलनात्मक अंतर!


अंतर 1:
खापोलोजी घर-कुनबे-बिरादरी को हर दुःख-झगड़े सुलझा के मनमुटाव भुला के समरसता से रहने का नाम है| इसीलिए मुझे यह छोटी सी घरेलू बातों पर युद्ध के मैदान सजा लेने की सामाजिक वास्तविकता से दूर की काल्पनिक कहानियां कभी आकर्षित नहीं करती|
जबकि फेंकुलोजी यानि भक्तवाद घर-कुनबे-बिरादरी में छोटी सी भी मानवीय सोच की भिन्नता को भुना के "राइ का पहाड़ बना के" यही जीवन है टाइप जीवन-दर्शन करवा के, भाई को भाई से भिड़ा के रखने और अपनी रोजी चलाने का नाम है|
अंतर 2:
खाप एक बार फैसला करने बैठ जाए तो 99% केसों में दोनों पक्षों को मिला के ही उठती है|
भक्तवादी जहां घुस जाए, 99% केसों में दोनों के मसले को और पेचीदा बना के उठते हैं|
अंतर 3:
खाप द्वारा 99% सलूशन देने की सबसे बड़ी वजह यह है कि इन लोगों ने आजीवन समाज के बीच बिताया होता है, समाज कैसे चलते हैं व् चलाने होते हैं; इसके भलीभांति अनुभवी होते हैं|
भक्तवाद द्वारा 99% मसले पेचीदा करने के पीछे बड़ी वजह यह है कि इन्होनें जिंदगी का अधिकतर वक्त अवसाद, एकांत, जंगल या अलख जगाने में गुजारा होता है|
अंतर 4:
खाप वाले अधिकतर वो होते हैं जो आजीविका के लिए स्वावलम्बी होते हैं|
भक्तवाद वाले आजीविका के मामले में परजीवी होते हैं|
अंतर 5:
क्योंकि खाप वाले आजीविका के मामले में स्वावलम्बी होते हैं, इसलिए यह तुरंत और निशुल्क न्याय करते हैं, केवल सामाजिकता को बचाये रखने के लिए|
क्योंकि 99% भक्तवादी आजीविका के मामले में परजीवी होते हैं, इसलिए यह प्रवचन सुनाने की फीस लेते हैं, और झगड़ों को तारीख-पे-तारीख की भांति लटकाते हैं या अपने सगे भाई के घर से दूरी बनाने की बात कहते हैं; ताकि उससे इनकी आजीविका निरंतर चलती रहे| फिर बेशक झगड़े आधारहीन ही क्यों ना हों, परन्तु यह उनको सुलझवाते नहीं; दोनों तरफ के परिवारों को अलगाव पर डाल देते हैं|

अनुरोध: और क्योंकि खाप वालों में यह स्वछंदता उनकी आर्थिक स्वावलम्बिता के चलते बनी होती है, इसलिए खापोलॉजी व् समकक्ष थ्योरियों में यकीन रखने वालों को चाहिए कि भक्तवाद से दूर रहें और अपनी आर्थिक आज़ादी को कैसे कायम व् निरंतर स्वतंत्र रखें इसपे कार्य करें| आप भक्तवाद के आगे झुक गए या आत्मसमर्पण कर दिया तो याद रखिये, यह आपसे ही आपकी कमाई छीन के आपको उसी के मोहताज बना देंगे; यह इस हद तक के बहमी लोग होते हैं|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

जब ब्राह्मणों ने यह सलंगित कटिंग वाली खबर पढ़ी होगी, तो उन्होंने क्या किया होगा?

हरयाणा में जाट बनाम नॉन-जाट, वेस्ट यूपी में चौधरी चरण सिंह जी के सम्मान पर हाथ डालने की जुर्रत, पंजाब-हरयाणा व् तमाम भारत में सरदार भगत सिंह के नाम से एयरपोर्ट बदलने की गुफ्तगू छेड़ने की हिमाकत व् 1857 की क्रांति के धोतक राजा नाहर सिंह की रियासत का नाम बदलने से कोफ़्त और क्रोधित महसूस कर रहा जाट, जमींदार व् इन ऊपर नामित हुए नेताओं-नायकों से दिल से जुड़ा हर अन्य जातियों-ब्रादरियों का इंसान; 2012 की इस खबर की कटिंग को पढ़े और सोचे, क्या ब्राह्मणों ने जब यह कटिंग पढ़ी होगी तो कम खून खोला होगा उनका? लेकिन सब अंदर दबा के रखा और सही वक्त का ना सिर्फ इंतज़ार किया वरन उसको जल्द-से-जल्द लाने की तैयारी भी करते रहे|

इसलिए सोशल मीडिया पर विरोध दर्ज करें, परन्तु उसके अतिरेक में पड़ के आगे की तैयारी करने से विमुख न होवें| और आगे की तैयारी ऐसी हो कि यह पीछे वाली कमियां जिसमें ना हों| अच्छे-बुरे-अवांछित वक्त उन्हीं पे आते हैं, जिनको समाज-दुनिया कुछ मानती हो; आज यह जाट बनाम नॉन-जाट है तो यह स्थाई नहीं है| जिसने भी यह बनाया है, वह हीनभावना से ग्रसित है, उसको जाट सबसे उच्च लगते हैं; और खुद से भी, तो इसलिए बेवजह खौफजदा है वो| लेकिन यह उच्चता और पक्की हो, उसके लिए इन वर्तमान हालातों को उसका आधार बना के आगे बढ़ना होगा|

तो इस जाट बनाम नॉन-जाट को एक उत्सव की तरह जियो और एक छालें मार के बहती मदमस्त नदी की भांति अपने किनारों में बहते हुए अलख जगाते हुए आगे बढ़ो|

उद्घोषणा: मैं इस सलंगित कटिंग वाली खबर की पुष्टि नहीं करता, हो सकता है मीडिया की शरारत रही हो, परन्तु वर्तमान हालातों के चलते जाट-जमींदार जैसे समाज का युवा (नहीं जायेगा, यह जाट का जींस है, परन्तु फिर भी संभावना को ही मिटा दिया जाए तो अति-उत्तम) गलत राह ना पकड़ ले, अलगाव या अवसाद में न चला जाए; इसलिए सिर्फ-और-सिर्फ एक मोटिवेशनल रिफरेन्स की भांति प्रयोग कर रहा हूँ|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक


बाहुबली-2 रिव्यु!

जैसे जब बाहुबली-1 आई थी तो मैंने साफ़ कहा था कि क्या जरूरत थी फिल्म को एक काल्पनिक कथानक देने की जबकि हमारे पास सन 1748 की जयपुर राजगद्दी को ले हुई बागरु की लड़ाई की, इस फिल्म की स्क्रिप्ट में हूबहू फिट बैठती वास्तविक पठकथा उपलब्ध है तो?

सनद रहे बागरु की लड़ाई जयपुर राजा ईश्वरी सिंह व् उनके छोटे भाई माधो सिंह के मध्य जयपुर की गद्दी हथियाने बारे हुई थी| जिसमें ईश्वरी सिंह पक्ष में मात्र 20 हजार सेना (10 हजार कुशवाहा राजपूत व् 10 हजार भरतपुर-ब्रज की जाट सेना) थी व् माधो सिंह के पक्ष में 3 लाख 30 हजार सेना (7 राजपूत रजवाड़ों की सेनाएं, मुग़ल सेना व् पूना के ब्राह्मण पेशवाओं की मराठा सेना) लड़ी थी| तीन दिन के आंधी-अंधड़-तूफानों-बरसातों से भरे इस युद्ध में भरतपुर राजकुमार सूरजमल के नेतृत्व में जुटी व् लड़ी मात्र 20 हजार की सेना ने 3 लाख 30 हजार की जुगलबंदी सेना को परास्त कर दिया था| इस प्रकार एक जाट राजा ने अपनी साथी राजपूत राजा की गद्दी बचाई थी|

आज जब बाहुबली 2 देखी तो फिल्म बहुत पसंद आई, परन्तु अबकी बार का प्लाट भी वही काल्पनिक| एक राजमाता को केंद्रीय भूमिका में रखने वाली इस फिल्म को देखते ही अहसास हुआ कि यह कहानी भरतपुर की राजमाता महारानी किशोरीबाई के इर्द-गिर्द बनाकर, इसको वास्तविकता का आधार दिया जा सकता था|
सनद रहे यह वही राजमाता हैं, जिन्होनें अपने सुपुत्र भारतेन्दु महाराजा जवाहर सिंह को हड़का कर दिल्ली जीतने के लिए प्रेरित किया था| और अपनी माता व् राजमाता के मार्गदर्शन में महाराजा जवाहर सिंह ने जो दिल्ली पर चढ़ाई कर वहाँ बैठे अहमदशाह अब्दाली के मनोनीत शासकों की ना सिर्फ ईंट-से-ईंट बजाई, बल्कि चित्तोड़ की रानी पद्मावती के वक्त से अल्लाउद्दीन खिलजी द्वारा वहाँ का उखाड़ कर लाया जो अष्टधातु दरवाजा दिल्ली लालकिले में लगा था, उसको भी जाट उखाड़कर भरतपुर ले गए थे| दिल्ली में जाट एक महीना जम के बैठे रहे, तब उनके वहाँ से हटने का और कोई रास्ता नहीं दिख मुग़ल अपनी राजकुमारी भारतेन्दु से ब्याहने का न्योता देते हैं, तो भारतेन्दु महाराजा जवाहर सिंह ने वह ऑफर अपने फ्रेंच सेनापति साथी, कैप्टेन समरू की ओर मोड़ दिया था| दिल्ली की यह जीत इतिहास में "जाटगर्दी" के नाम से दर्ज है| और ऐसे ऐतिहासिक किस्सों की वजह से ही दिल्ली को जाटों की बहु भी कहा जाता रहा है|

वैसे तो बाहुबली-1 भी ऑस्कर में जाने लायक थी, परन्तु क्यों नहीं गई पता नहीं| बाहुबली-2 जाएगी या नहीं यह भी पता नहीं| परन्तु अगर वास्तविकता की जगह काल्पनिक पटकथा होना, इनका ऑस्कर में नहीं जाने की वजह बनता है तो यही कहूंगा कि इन लोगों को यह ऊपर बताई दो वास्तविक कहानियों पर अगली ऐसी ट्राई करनी चाहिए| क्योंकि यह दोनों घटनायें ना सिर्फ भारत अपितु अंग्रेज-अरब-अफ़ग़ान-फ्रेंच सबकी आँखों देखी हैं|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

एक बार एक "पहुँचा हुआ जाट" सतसंग में चला गया!

वहाँ गीता-पाठ हो रहा था| परन्तु प्रवचन वाले बाबा को पता नहीं था कि आज जाट से वाद-विवाद प्रतियोगिया होवेगी उसकी, बेचारा!

प्रवचन वाला बाबा छूटते ही बोला: भक्तजनों, अब कुछ समय के लिए सांसारिक दुःख-दर्द-मोहमाया-तर्क-वितर्क सब भूलकर अपने आपको मुझे समर्पित कर दो|

जाट बोला: बाबा अगर तर्क-वितर्क आपको समर्पित कर दिए तो बुद्धि क्या ग्रहण करेगी, यह कैसे आंकूंगा?

बाबा: वत्स, धर्म में तर्क-वितर्क नहीं किये जाते, खुद को भगवान को समर्पित किया जाता है|

जाट: पर बाबा, आप तो आपको समर्पित करने की कह रहे, यहाँ भगवान किधर है?

बाबा: वत्स, हम ही तो आपको भगवान से मिलाएंगे| परन्तु उसके लिए तुम्हें कंप्यूटर की भांति अपने दिमाग को फॉर्मेट मारना होगा|

जाट: फॉर्मेट मारना होगा का क्या मतलब बाबा?

बाबा: बेटा जैसे हम किसी भी कंप्यूटर को फॉर्मेट मारते हैं तो उसका पुराना डाटा डिलीट करके, उसमें नया डालते हैं, ऐसे ही आप अपनी बुद्धि से पुराना सब-कुछ डिलीट कर दीजिये|

जाट: परन्तु बाबा, इससे तो मेरे माँ-बाप व् स्कूल-कालेज में मिले गुरुवों की शिक्षा डिलीट हो जाएगी? आप जैसे लोग ही कहते हैं ना कि माँ-बाप और गुरु जो सिखावें उसको ताउम्र शिरोधार्य रखें?

बाबा: तुम जाट हो क्या, जो इतने तर्क-वितर्क करते हो?

जाट: हाँ, बाबा जाट ही हूँ|

बाबा: तो भाई पहले क्यों नहीं बोला; जो "पहुँचा हुआ जाट" हो गया वो तो हमारा भी बाप हो गया| हम तो खुद जाट को देख के तर्क करना सीखते हैं, प्रभु आप कहाँ आ गए हमारी परीक्षा लेने?

जाट: बाबा, यह सब छोड़ो; यह बताओ इंसान कोई मशीन है क्या, जो आप उसके दिमाग को अपने अनुसार फॉर्मेट मारोगे? और आपको कम्प्यूटर्स को इतना ही फॉर्मेट मारने का शौक है तो कोई सॉफ्टवेयर इंजीनियर की जॉब क्यों नहीं कर लेते?

बाबा: बच्चा, क्यों रोजी- रोटी पे लात मारते हो; कहो तो मैं आज ही नौकरी डॉट कॉम पे जॉब अप्लाई कर दूंगा| अब आज-आज की आज्ञा हो तो प्रवचन पूरे कर लूँ?

जाट: ना बाबा, आज तो आप अपना सीवी अपडेट करो; प्रवचन तो आज जाट देवेगा|

और जाट प्रवचन यही है कि अपनी तार्किक बुद्धि को कभी मत छोडो, किसी बाबा को गिरवी मर धरो| बिना छल-कपट के जियो और जीने दो|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

ईवीएम (EVM) मशीन से छेड़छाड़ का लाइव डेमो!


झाड़ू के निशान पर पड़े 10 वोटों में से 8 वोट कमल के निशान को कैसे चढ़ गए, समझने के लिए वीडियो को शुरू से अंत तक पूरा देखें| कुछ भी कहो आज आम आदमी पार्टी वालों ने जो किया है, इसने दिल छू लिया|

वीवीपैट (VVPAT) की मशीनों से भी गड़बड़ी सम्भव है, इसलिए इसका सिर्फ एक ही हल है और वो है "बैलेट पेपर" वाली वोटिंग वापिस लाओ|

2019 का चुनाव अगर वीवीपैट के भरोसे छोड़ दिया तो भी गड़बड़ की जाएगी; इसलिए आवाज उठे कि ना ईवीएम ना वीवीपैट, वोटिंग सिर्फ बैलेट पेपर से| बैलेट पेपर से ही वोटिंग फ्रांस में होती, यही इंग्लैंड में|

https://www.youtube.com/watch?v=9RpUJJbr-8I

जय यौद्धेय! - फूल मलिक