जाट का ही जिक्र क्यों?: फरवरी 2016 वाले 35 बनाम 1 ने समझाया कि जाट ऐसी
क्या बला है जो इस 35 में बाकी सब थे या धक्के से लपेटे गए थे परन्तु 1 में
सिर्फ जाट था परन्तु क्यों था? जिस गैर-जाट को इस लेख के शीर्षक से आपत्ति
हो वह इस सवाल का जवाब ढूंढ के दे दे कि 35 बनाम 1 में, 1 तू क्यों नहीं
था; जाट ही क्यों था?
संदेश: अगर तुम अपने पुरखों की भांति धर्म
में अपना मार्किट शेयर पुरखों वाली चौधर व् अणख के साथ बरकार नहीं रखोगे
जाटो, तो तुम्हें यूँ ही पीटने-घेरने-मारने-दबाने की कोशिशें तुम्हारे ही
धर्म वाले बार-बार करने आएंगे, जैसे फरवरी 2016 में 35 बनाम 1 के बहाने आये
थे| इंतज़ार मत करना कि कोई मुस्लिम या ईसाई या कोई अन्य धर्मी तुम्हें
मारने आने वाला है, ना-ना उससे पहले तो तुम्हें यह स्वधर्मी ही मारेंगे,
उसमें भी खासकर से 35 में जो भी टूल रहे हैं| ये वाकई 35 हैं भी या 35 का
चोला ओढ़े चले आ रहे हैं| "कुणबाघाणी" क्या होती है सुनी होगी? बाकि समझदार
हो|
खैर, आगे बढ़ते हैं| उत्तरी भारत में धर्म की मार्किट में किसी
एक जाति-वर्ण-वर्ग की मोनोपॉली नहीं चली, सीधे-सीधे दखल से तो कभी चली ही
नहीं और शायद ऐसा कभी होवे भी नहीं अगर जाट ने फरवरी 2016 से अपना सही सबक
ले लिया है तो| और मानवता-समाजवाद को जिन्दा रखना है और खुद भी इज्जत से
जिन्दा रहना है तो असल तो 36 बिरादरी जाट के साथ मिलके अन्यथा जाट तो जरूर
से जरूर अपने पुरखों का धर्म की मार्किट में उसका शेयर व् होल्डिंग बरकरार
करे, रखे| कैसे और कौनसा धर्म मार्किट का शेयर व् होल्डिंग?
उठाने
के तो माइथोलॉजी वालों के जमानों से उठा सकता हूँ परन्तु इतने पीछे 90%
गपोड़ें मिलती हैं| आईये फ़िलहाल मात्र 1469 से 1839 व् 1839 से 1875, फिर
1875 से 1945, 1945 से 1986, 1986 से 2000, 2000 से 2016 व् 2016 से आज और
आज से आगे यानि भविष्य में जाट धार्मिक मार्किट में इसका शेयर कैसे बरकरार
रह सकेगा|
सन 1469 से 1839: वह वक्त जब सबसे ज्यादा फंडी के फंडवाद
से तंग आ कर जाट ने सनातन धर्म विंग से खुद को ऑफिशियली अलग किया|
ऑफिशियली अपनाया तो कभी था ही नहीं| भक्त जरा नोट करें यहां, किसी मुस्लिम
या ईसाई ने नहीं छिंटकवाया था; फंडियों की बकचोदियों ने छिंटकवाया था जाटों
को इनसे| उससे पहले इनको अपनाया भी नहीं था तो ऐसे ऑफिशियली दुत्कारा भी
नहीं था| भक्त यह भी नोट करें और बुलंदी देखिए सिख धर्म की व् इस धर्म में
जाट का मार्किट शेयर व् होल्डिंग देखिए, अणख देखिए| मेरे ख्याल से बाकी सब
धर्मों के जाटों से ज्यादा है| मार्किट शेयर व् होल्डिंग की बात अगर करूँ
तो जाट को यह सबसे ज्यादा सिखिज्म में है, फिर मुस्लिम धर्म में, फिर
बुद्धिज्म में, फिर रही तो आर्य-समाज में (आज के दिन यह स्टेक रिस्क पे रखा
है और इसी से उद्वेलित यह लेख है) व् इसके बाद किसी अन्य में| सनातन विंग
में तुम्हारा स्टेक ना कभी था न कभी होगा, मानों या ना मानों; इनके लिए तुम
दुग्ध देती उस गाय से ज्यादा कुछ औकात के नहीं जिसको चारा भी यह खुद डालना
चाहते हैं| यानी तुम्हारी धरती-फसल-प्रॉपर्टी सब इनको इनके कण्ट्रोल में
चाहिए, कहने मात्र को नाम तुम्हारा, परन्तु उसका पूरा आउटपुट इनका|
तुम्हारे लिए छोड़ा जायेगा तो बस गाय के चारे जितना| हजम नहीं होती ना? वक्त
के साथ हो जाएगी, अगर अभी भी नहीं सुधरे तो, खासकर शहरी व् इलीट
जाट;क्योंकि गाम वाले 90% तुमको फॉलो करते हैं| खैर आगे बढ़ते हैं, सन 1839
में महाराजा रणजीत सिंह के राज में सिख धर्म अपनी बुलंदी की इतनी प्रकाष्ठा
पर था कि बाकी का जाट भी सिखिज्म में जाने लगा| कैथल-थानेसर-करनाल (3 क का
कॉम्बिनेशन बनाकर कुरुक्षेत्र भी लिखना चाहता था परन्तु उस वक्त
कुरुक्षेत्र नाम का कोई शहर था ही नहीं, यह बना ही 1947 में है वह भी उस
वक्त जब पाकिस्तान से आये शरणार्थी भाईयों के थानेसर के बगल में लगे कैंप
का नाम रखा गया था "कुरुक्षेत्र", जैसे रोहतक में "गाँधी कैंप", हिसार में
"पटेल कैंप" ऐसे)|
1839 से 1875: कैथल-थानेसर-करनाल तक सिखिज्म
फैलता चला तो सनातनियों को चिंता हुई कि जाट हमारे लिए सबसे दुधारू गाय है,
अगर यह चली गई तो हम किसके सहारे खाएंगे? यह चिंतन भी हरयाणा वाले
सनातनियों ने नहीं किया था, यह तो भोले खुद ही 90% नारनौंद एमएलए गौतम जी
की जुबान वाले किसान हैं| यह चिंतन हुआ महाराष्ट्र व् गुजरात के सनातनियों
को| 1870 में टीम बनाई गई कि रिसर्च करो जाट को कैसे मनाया जाए व् कैसे
रोके रखा जाए| जिम्मा मिला महर्षि दयानन्द व् टीम को| पांच साल की रिसर्च
करके पुणे में 96 लोगों की कमेटी को रिपोर्ट दी गई कि जाट सबसे ज्यादा व्
सर्वोत्तम दर्जे पर "दादा नगर खेड़ों" को पूजता है, जिनमें ना वह मर्द
पुजारी बिठाता ना औरत पर प्रतिबंध लगाता, बल्कि धोक-ज्योत की लीडरशिप ही
औरत को दे रखी है| तो इन खेड़ों से आधार बना "मूर्ती पूजा करने वालों ने"
सिर्फ जाट को रोकने व् मनाने हेतु "मूर्ती पूजा रहित आर्य-समाज" स्थापित
किया, जिसमें यह क्रेडिट भी छुपा दिया गया कि "मूर्ती-पूजा नहीं करने" का
सिद्धांत कहाँ से लिया? साथ ही आर्य-समाज की गीता यानि "सत्यार्थ-प्रकाश"
के ग्यारहवें सम्मुल्लास में "जाट जी" व् "जाट देवता" बोल के जाट की स्तुति
की गई व् तब जा के आज का जो जाट इनके साथ है, वह यहीं रहा| भक्त बने जाट
यह बात नोट कर लें कि उनके पुरखे 1875 में भी यहाँ रहे थे तो "मूर्ती पूजा
नहीं करने" को सर्वोच्च मान्यता व् प्रचार मिलने पर| भले ही मूर्ती पूजा
नहीं करने की रुट यानि जड़ यानि दादे खेड़े इनमें छुपा दिए गए थे परन्तु इतना
तो जाट का ओरिजिनल शेयर व् होल्डिंग रखी गई कि जाटों के "मूर्ती पूजा"
नहीं करने के सिद्धांत के साथ सनातनियों ने एडजस्ट किया| बताता चलूँ कि
विशाल हरयाणा की धरती पर दादा खेड़े के पर्यावाची हैं "दादा भैया", "बाबा
भूमिया", "गाम खेड़ा", "भूमिया खेड़ा", "जठेरा" आदि-आदि| और यही वह शेयर और
होल्डिंग है जो आज स्टेक पर है व् मुझे उद्वेलित किये हुए है| आजकल
माइथोलॉजी के धार्मिक सीरियल्स देख के इतने धार्मिक हुए पड़े हो शायद, तो
सोचा वास्तवतिक धर्म भी दिखा दूँ तो और ज्यादा भावुक हो जाओ, नहीं?
1875 से 1945 (आर्य-समाज का दो विंग्स में बुलंदी फेज, एक DAV फेज व्
दूसरा गुरुकुल फेज), 1945 से 1986 (आर्य-समाज का मेच्योर फेज, 1986 से 2000
(टीवी के जरिये माइथोलॉजी की एंट्री व् जाट-खाप-हरयाणा पर लेफ्ट विंग्स,
एनजीओज, नेशनल मीडिया के जरिये सनातनियों की सॉफ्ट व् स्ट्रैट टार्गेटिंग),
2000 से 2016 (गाम-गाम गेल कहीं वैसे ही तो कहीं दादे नगर खेड़ों को ही
मूर्ती-पूजा रहित की बजाये मूर्ती-पूजा सहित में कन्वर्ट किये जाने के
प्रोपगेंडे, साथ ही आर्य-समाज के गुरुकुल-मठों में सनातनियों की सेंधमारी
व् इन सब प्रयासों का अल्टीमेट लिटमस टेस्ट यानि 35 बनाम 1 का फरवरी 2016
दंगा) व् 2016 के बाद जाट समाज के बच्चों को वाजिब गैर-वाजिब जेल यातनाएं
(सब 1984 के बाद जैसे सिखों के साथ हुआ था, वैसा)|
और अब इससे आगे
क्या?: अगर इस लेख को ढंग से पढ़ लिया हो तो आगे है अपने पुरखों की उस अणख
पर वापिस लौटना जिसकी वजह से "जाट जी" व् "जाट देवता" लिख के सनातनी आपके
साथ ख़ुशी-ख़ुशी एडजस्ट होने को राजी हुए थे या कहिये मजबूर हुए थे| और उस
लौटने का का आधार-बिंदु है ""धोक-ज्योत में 100% औरत की लीडरशिप वाले
मर्द-पुजारी से रहित, मूर्ती से रहित अपने "दादा नगर खेड़े""| अन्यथा,
अन्यथा तो वही बात "दुधारू गाय" बनने का शौक चढ़ा है तो चलते जाओ बावळे हुए|
फिर तुम्हारा कोई रूखाळी नहीं, "दादा नगर खेड़ा", "दादा भैया", "बाबा
भूमिया", "गाम खेड़ा", "भूमिया खेड़ा", "जठेरा" कोई भी नहीं, कोई रूखाळी नहीं
तुम्हारा|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक