Saturday 4 April 2020

हम दलित सीरी को भी काका-दादा-ताऊ के नेग से बोलने वाले लोग रहे हैं!

"शूद्र-स्वर्ण, छूत-अछूत और ऊंच-नीच का भेदभाव मुस्लिमों के आने के बाद इंडिया में फैला, वरना इस से पहले हमारे धर्म-कल्चर में ऐसी दूषिता नहीं थी" - पिछले 6 साल से भक्तगणों ने इनके आकाओं के आदेश पर यह सोशल मीडिया कैंपेन खूब चलाई| "औरत के मान-सम्मान सर्वोच्च थे" - इस बारे भी बहुत कैंपेन देखी गई| इन दोनों कैंपेन को धो देंगे व् इनके असर को उत्तर-कात्तर कर देंगे, आजकल टीवी पर दिखाए जा रहे प्रथम संस्करण वाले धार्मिक टीवी सीरियल्स| प्रथम संस्करण इसलिए, क्योंकि इनमें शूद्र-स्वर्ण का घहटा और औरत पर सम्पूर्ण मर्दवाद का बखान अधिकतम रूप में है| भय है कि कहीं दलित आंदोलन इन टीवी सीरियल्स को आधार मान, अपने मूवमेंट्स में और तेजी पकड़ें व् देश में शूद्र-स्वर्ण की खाई पटने की बजाए कोरोना के बाद और ज्यादा बढ़ी देखने को मिले| ऐसा क्यों, किसलिए, इसपे इन सीरियल्स के उदाहरण समेत एक पोस्ट निकालूंगा, फुरसत में| अन्यथा जो इनको देख रहे होंगे, वह हर एपिसोड के साथ समझते जाएंगे कि यह सीरियल्स दलित मूवमेंट व् फेमिनिज्म को घटाएंगे या बढ़ाएंगे| फ़िलहाल इतना ही कहूंगा कि उदारवादी जमींदारी के परिवेश वाले लोग, खामखा अपनी पूँछ बीच में ना देवें क्योंकि वर्णवाद, शूद्र-स्वर्ण हमारे पुरखों की थ्योरी नहीं रही है| हम दलित सीरी को भी काका-दादा-ताऊ के नेग से बोलने वाले लोग रहे हैं, हाँ कुछ 5-10% जो वर्णवादी प्रभाव में होते हैं उनको छोड़कर| दलितों को अच्छे से देखने समझने दो कि उनके साथ भेदभाव करने वाले उदारवादी जमींदार लोग नहीं अपितु वो हैं जो इन सीरियल्स में दिखाए जा रहे हैं| मैं इन सीरीयल्स की तमाम वर्णवादी चीजों से खुद को दूर करता हूँ, मेरे पुरखों, मेरे कल्चर को दूर करता हूँ| बाकी इन सीरियल्स की अच्छी बातों को मैं अंगीकार करता हूँ| 

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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