अपने कल्चर के मूल्यांकन का अधिकार दूसरों को मत लेने दो अर्थात अपने आईडिया, अपनी सभ्यता और अपने कल्चर के खसम बनो, जमाई नहीं!
Wednesday, 27 January 2021
ओबीसी व् एससी/एसटी के मन से फंडी का डाला द्वेष निकालते रहना व् सीधे तौर पर डाइलॉगिंग रखना, जाट यह दो काम निरंतर करता रहे तो इनके बीच से फंडी खत्म:
Friday, 22 January 2021
माणसो को तरस चुकी गामों की परस-चौपाल-चुपाड़ों में किसान आंदोलन की बदौलत लौटा "सीरी-साझी" कल्चर का सैलाब!
रामायण-महाभारत, ये कथा, फलां पुराण की मनघढ़ंत माईथोलोजियों से भरे परिवार तोड़क व् हद से ज्यादा मैं-का-बहम-भरक टीवी सीरियलों व् काल्पनिक साहित्य पढ़-पढ़ बंद हो चले लोगों के दिमाग खोल दिए इस किसान आंदोलन ने|
यह महज किसान आंदोलन नहीं, अपितु मैनेजमेंट, प्लानिंग, स्ट्रेटेजी व् कोऑपरेशन के अध्यायों की पूरी किताब है!
कहते हैं कि दूध का जला छाज को भी फूंक-फूंक कर पीता है, जून 1984 व् फरवरी 2016 में फंडवाद व् वर्णवाद की सड़ांध मारती धधकती ज्वाला झेल चुके क्रमश: पंजाबी व् हरयाणवी किसान की वर्तमान किसान आंदोलन में भागीदारी कुछ इसी लाइन पर नजर आती है| यूथ-मेच्योर-वृद्ध किसान सचेत है, होश में है, फंडी जैसे धूर्त दुश्मन की हर चाल से वाकिफ व् अनुभवी है| जिसके लिए तमाम किसान जत्थेबंदियों को बारम्बार सलाम है|
Sunday, 17 January 2021
किसान आंदोलन के जरिये पंजाब व् यूपी में भी 35 बनाम 1 टाइप की खाई खोदना चाह रहे फंडियों की पार्टी व् संघठन!
2022 में पंजाब व् यूपी विधानसभा चुनावों को देखते हुए फंडियों की पार्टी व् संघठन चाहते हैं कि किसान आंदोलन जल्दी खत्म ना हो ताकि 2014 का जाट बनाम नॉन-जाट यूपी में व् सिख बनाम नॉन-सिख व् सिखों में जट्ट सिख बनाम नॉन-जट्ट सिख को वोट कैश करने के लिए आजमाया जा सके| यह चाहते हैं कि यह आंदोलन तब तक खींचा जाए जब तक इस आंदोलन में सिरकत करने वाली सबसे बड़ी कम्युनिटी यानि जाट-जट्ट को जिद्दी-दबंग दिखा के यह पंजाब व् यूपी के हर ओबीसी-दलित-स्वर्ण के कानों में अपना जहर फूंक, उनको इनको वोट देने को कन्विंस ना कर लेवें|
फंडी लोग, ओबीसी व् एससी/एसटी जातियों में किसान आंदोलन को सिर्फ "जाट-आंदोलन पार्ट 2" बता कर करवा रहे दुष्प्रचार!
किसान आंदोलन में शामिल हर शख्स अपने-अपने गाम स्तर पर इस बात का संज्ञान लेवे कि फंडी आपके ही खेत-काम-कल्चर की साथी जातियों में इस बात को किस स्तर तक ले जा रहे हैं| हालाँकि वैसे तो यह बिरादरियां भी अपना-पराया परखने में हर लिहाज से सक्षम हैं परन्तु फिर भी फंडी के जहर की काट को काटने के लिए, फंडी की बिगोई बात के स्तर के अनुसार आप इन भ्रांतियों को ऐसे दूर करें/करवाएं:
Tuesday, 12 January 2021
फंडी का नश्लवादी सामंतवाद व् आपका मानवतावादी उदारवाद!
फंडी का नश्लवादी सामंतवाद: फंडी की सबसे बड़ी ताकत होती है उसका अति-घनिष्ठ आंतरिक लोकतंत्र व् उतनी ही घनिष्ट नफरत के साथ दूसरों के आंतरिक लोकतंत्र को तहस-नहस करने के प्रोपगैण्डे| किसानी की भाषा में समझो तो कुछ यूँ कि ऐसा किसान जो आवारा जानवरों से अपने खेत की तो जबरदस्त बाड़ करता ही है साथ-की-साथ यह भी सुनिश्चित करता है कि पड़ोसी के खेत में आवारा जानवर पक्के घुसाए जाएँ| अब क्योंकि खेत का ऐसा पड़ोसी हुआ तो नुकसान तुरंत दिख जाता है व् ऐसे पड़ोसी किसान को रोका जाता है| ऐसे ही यह जो धर्म-कर्म-राष्ट्रवाद के नाम पर फंडी होते हैं इनको देखना शुरू कर लीजिये, बस अगले ही दिन सारी ही तो समस्या खत्म|
Wednesday, 6 January 2021
किसानों-मजदूरों पर जुल्म ढाने वालों को "काले अंग्रेज" ना कहिये, ऐसे narratives ठीक रखिये और यह जो हैं वो कहिये यानि "वर्णवादी फंडी"!
क्योंकि यह जो मानसिकता 3 कृषि बिलों के तहत अपने ही धर्म-देश के किसानों-मजदूरों पर जुल्म ढाह रही है यह वर्णवाद की फिलोसॉफी की वह घोर नश्लवादी थ्योरी है जो पहले दोनों (आप व् फंडी) का एक धर्म उछालती है और फिर आपको आर्थिक-मानसिक-शारीरिक हर प्रकार से गुलाम बनाती है| वर्ना ऐसा क्या सितम कि जहाँ हर अमेरिका-जापान-इंग्लैंड-फ्रांस आदि जैसे विकसित देश उनके यहाँ कॉर्पोरेट खेती होते हुए भी अगर किसान को MSP टाइप का कुछ नहीं दे पाते हैं तो इंडिया की तुलना में 500 से ले 734 गुणा ज्यादा तक सब्सिडियां दे, किसानों के नुकसान की भरपाई करती हैं| इंडिया में 1 रुपया सब्सिडी के ऐवज में अमेरिका में 734 रूपये मिलते हैं किसान को एक वित्-वर्ष में|
और यह अपने तथाकथित ग्रंथ-पुराण-पोथों में यह लिखने वाले कि, "स्वर्ण को चाहिए कि शूद्र का कमाया बलात हर ले" बलात हर ले और तब भी वह किसी दंड-पाप या अमानवता का भागी नहीं| सोचिये आप कैसे घोर अमानवतावादी लोगों को धर्म के नाम पर सर पर बैठाये हुए हैं| इन वर्णवादी फंडियों को सर से नीचे पटकना शुरू कीजिये, बराबर खड़ा करना तक बंद कीजिये; तब यह सरकार ज्यादा जल्दी झुकेगी|
विशेष: वर्णवादी फंडी किसी भी जाति-समुदाय में हो सकता है, इसलिए इसको किसी जाति-वर्ग-वर्ण विशेष से जोड़ के ना देखा जाए|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
Monday, 4 January 2021
हरयाणवी कभी मंदिर के भीतर की भाषा क्यों नहीं हुई?
ईसाई धर्म, भारत में अंग्रेजी में सब कुछ - लिटरेचर-प्रार्थना-संगीत सब|
सिख धर्म, भारत में पंजाबी में सब कुछ - लिटरेचर-प्रार्थना-संगीत सब|
इस्लाम धर्म, भारत में उर्दू में सब कुछ - लिटरेचर-प्रार्थना-संगीत सब|
परन्तु हिन्दू धर्म में भारत में:
लिटरेचर संस्कृत में, 99% को पढ़नी-लिखनी-बोलनी ही नहीं आती|
मंदिर के अंदर प्रार्थना हिंदी में, वो भी 99% बॉलीवुड की फ़िल्मी वाली आरतियां|
सड़कों पे चौकी वाली प्रार्थना - हरयाणवी संगीत में, माता का जगराता टाइप| कूल्हे मटकाने व् पागलों की तरह गात हिलाने के अलावा इनमें कुछ हासिल होता हो तो?
यानि कितनी ही झक मार लो, हरयाणवी कभी मंदिर के भीतर की भाषा नहीं हुई, क्यों? जबकि दान-चंदा इनको सुबह-शाम चाहिए? एक तो गलती खुद तुम्हारी, उसपे बदनीयत इनकी; जो हरयाणवी सिर्फ सड़कछाप चौकियों की भाषा मात्र बन के रहती जा रही है तो ऐसे में इसके प्रति आदर-सद्भाव-प्रेम कहाँ से बनेगा?
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
Sunday, 3 January 2021
सुनी है फरवरी महीने में हरयाणा के सभी गामों में फंडी आ रहे हैं एक भव्य धर्मघर के नाम पर चंदा मांगने?
पहली तो बात फंडी क्यों?: सवा महीने से कड़ाके की ठंड में लाखों-लाख किसान सड़कों पे बैठा है, 60 से ज्यादा जान गँवा चुके; ऐसे में उनके साथ संवेदना होने की बजाए इनको अभी भी चंदे की ही पड़ी है; इसलिए यह फंडी हैं| एक तो गुरुद्वारे-मस्जिदों की भांति किसानों का साथ नहीं दे रहे उसपे इतना भी नहीं कि जब तक किसान आंदोलनरत है, तब तक उनके सम्मान में इस चंदा प्रोग्राम को स्थगित ही रखो?
बचो सृष्टि पर श्राप नाम के इस कोढ़ 'फंडी' से!
लेख का उद्देश्य: आईये जानें फंडी क्या है, कौन है?
Monday, 28 December 2020
पंडित जी आप समझे नहीं और उसपे भी एक और नासमझी कर रहे हो!
गुरूद्वारे-मस्जिदों ने किसान आंदोलन में जब सर्वधर्म के लोगों के लिए लंगर-दावत लगाए तो चौधरी राकेश टिकैत को भी महसूस तो हुआ ही होगा (जब हम जैसे आम लोगों को हुआ तो उनको क्यों नहीं हुआ होगा?) कि गुरुद्वारे व् मस्जिदों द्वारा ऐसी उदारता व् मानवता दिखाने पर जैसे क्रमश: सिख व् मुस्लिम का आम जनमानस इतरा रहा होगा, गौरवान्वित महसूस कर रहा होगा तो मैं भी अपने वालों को यह गौरव दिलवाने से पीछे क्यों हटूं? जैसे सिखों-मुस्लिमों के लंगर-दावत का चर्चा UNO, WTO, UNSECO से ले अमेरिका-यूरोप-ऑस्ट्रेलिया तक इन धर्मों की उच्चता की दुदुम्भी बजी हुई है तो हिन्दुओं की भी क्यों ना बजे? यही सोच के तो अपने पंडित/पुजारियों को फटकार लगाई होगी या नहीं?
Friday, 25 December 2020
यह खुद को ऊँचा व् श्रेष्ठ समझने की मरोड़ उनको दिखाना!
टिकैत साहब की मंदिरों को फटकार, गुरद्वारे व् खापद्वारे!
हमारी उदारवादी जमींदारा फिलोसोफी के लोग जो शुरू दिन से "खापद्वारे" बनाने की वकालत करते आ रहे हैं, गुरुद्वारों की तर्ज पर; माननीय राकेश टिकैत जी का कल का ब्यान उसकी महत्वता को दर्शाता है| अगर टिकैत साहब की कॉल के बाद भी मंदिरों वाले नहीं सुधरते हैं और आंदोलनरत किसानों की सेवा हेतु अपने खजाने व् सेवायें नहीं खोलते हैं तो सर्वखाप के इतिहास में जो वीर यौद्धेयों-यौद्धेयाओं की कुर्बानियों व् वीरताओं की लम्बी सूची है उस पर बानियाँ बनवा के, संगीतबद्ध करवा के गुरुद्वारों की तर्ज पर खापद्वारों के जरिए अपना शुद्ध उदारवादी जमींदारे का "सीरी-साझी कल्चर व् दादा नगर खेड़ों के आध्यात्म" वाला उन्मुक्त सिस्टम शुरू कर लेना चाहिए| वैसे मंदिरों में खाप यौद्धेय-यौद्धेयाओं की बानियाँ कभी सुनने को मिलती भी नहीं, जब देखो फ़िल्मी आरतियां चलती हैं वह भी हिंदी में, संस्कृत में भी नहीं| और अगर गुरूद्वारे खापों के यौद्धेयों-यौद्धेयाओं की वीर गाथाओं-बानियों को अपनी बानियों-गाथाओं में स्थान देवें तो सिख धर्म में जाने से बेहतर विकल्प कोई है ही नहीं| इससे हमारे 15वीं शताब्दी (सिख धर्म की स्थापना की सदी) से पहले का इतिहास भी जिन्दा रहेगा, पुरखे साथ रहेंगे, उनका एकमुश्त आशीर्वाद साथ रहेगा तो सिखिज्म और भरपूर फैले-फलेगा और हमारा इन फंडियों से पिंड छुटेगा| हाँ, अगर टिकैत साहब की कॉल के बाद भी यह फंडी नहीं सुधरते हैं तो चलिए करें कुछ इस ऊपर लिखे जैसा| जय यौद्धेय! - फूल मलिक