इतनी गंभीर ना होती कि देश वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स की 159 देशों की सूची में 140 पे नंबर पर आया| इस बारे विगत वर्षों के आंकड़े भी लगे हाथ देख लीजिये:
अपने कल्चर के मूल्यांकन का अधिकार दूसरों को मत लेने दो अर्थात अपने आईडिया, अपनी सभ्यता और अपने कल्चर के खसम बनो, जमाई नहीं!
Friday, 30 April 2021
"पैंडा छोड़" की जगह "आतंकवादी" कह देते बड्डे-बड़ेरे तो आज समस्या इतनी गंभीर ना होती!
"दादा नगर खेड़ा" के लोकगीत व् स्तुतिगानों बारे!
पांच बताशे पना का जोड़ा, ले खेड़े पै जाईयो जी,
Thursday, 29 April 2021
हरयाणवी-पंजाबी-हिंदी में राम शब्द के अर्थ!
Wednesday, 28 April 2021
कोरोना को भगाने हेतु यह जितने भी ऐसा कहने वाले हैं!
5 बार फलाना मंत्रोचार करो,
जब तक अपनी औरतों और फंडियों के बीच तार्किकता की बाड़ नहीं करोगे, फंडी को नहीं हरा सकते!
मैं इस नोट का लेखक, जाट-जमींदार है मेरा पिछोका; मेरे नानके के यहाँ "काकी भल्ले की बाह्मणी" रसोई का रोटी-टूका करने व् बर्तन-भांडा मांजने आती थी| मेरे दादा जब मेरी माँ को देखने गए थे तो इन काकी ने खाना बनाया था व् दादा ने खाना खा कर नाना को काकी के खाने की तारीफ करते हुए कहा था कि, "चौधरी, मिश्राणी खाना तो सुवाद बनावै सै"| यहाँ यह बात मैं उन काकी के खाने की तारीफ़ हेतु लिखी है व् समाज को यह बताने के लिए लिखी है कि सामाजिक-समरसता का बैलेंस मत बिगाड़ो, किन्हीं विशेषों को अति-विशेष बना के या समझ के; कोई इसको अन्यथा ना ले| और ले तो ले, सच्चाई लिखी है किसी फंडी की तरह फंड नहीं रचे| जब इतना भिग्न समाज में मच चुका है तो यह सच्चाइयां सामने लानी जरूरी हो चुकी हैं| खासकर उन घमंडी व् नखरैल लोगों के लिए जो बना के वर्णवादी व्यवस्था समाज को ऊंचे-नीचे वर्णों में बांटने को आमादा हुए फिरते हैं| इन नीचों की बेशर्मी की हद देखो कि जिनके यहाँ यह चीजें कहने को रही हैं वह इन बातों को तवज्जो नहीं देते परन्तु जिनके यहाँ कभी थी ही नहीं, जमीनें तक दानों में पाई हैं वह समाज को वर्ण-व्यवस्था समझाते हैं|
Saturday, 24 April 2021
सरदार चौधरी कमांडेंट हवा सिंह सांगवान जी - 21वीं सदी में खापलैंड पर सिखिज्म की लहर के प्रणेता!
Thursday, 22 April 2021
सैद्धांतिक बात कहूंगा - पिछले हफ्ते जिस नेता ने मोदी को किसानों के लिए खत लिखा था!
उनको यह वैश्विक सत्यता दरकिनार नहीं करनी चाहिए कि, "किसी के गहणे धरा इंसान, कदे मालिकों के फैसले ना करवाया करता, कि वो आपको इतनी तवज्जो देगा कि आपके लिखे खतों के अनुसार व् समय रहते एक्शन लेगा| और आपने तो ऐसा राजा गले डाल लिया कि ताउम्र उसकी चौखट पे क़ुरबानी-पे-क़ुरबानी भी चढ़ाते रहोगे तो भी उसकी नजरों में इस लायक तक नहीं बन पाओगे कि क़यामत के वक्त वह तुम्हारे जनाजे पर "नजर-ए-मेहरबानी" तक फरमाने भी झांक जाए|
Saturday, 17 April 2021
समाज के इतिहासकारों से अनुरोध!
हमारे आध्यात्म व् कल्चर में किसी भी कार्यक्रम का आगाज व् समापन "बोल नगर खेड़े की जय" उद्घोष से होता आया है और युगों-युगों से होता आया है| सिंधु सभ्यता व् हड़प्पा सभ्यता हमारी रही है के पर्याप्त सबूत मिलते हैं आर्कियोलॉजिकल भी व् लिखित भी[ सिंधु व् हड़प्पा खुदाई की साइट्स पर बसासत के लेआउट हमारे पुरखों की अद्भुत नगर-गाम बसाने की कला की धाती हैं| कुछ लोग इनको आज वाले शहरियों मात्र की सिद्ध करने पर लगे हुए हैं जो कि वह बहुत भयंकर भूल कर रहे हैं|
Thursday, 15 April 2021
कोई गरीब-गुरबा घर-संसारी मर्द-औरत इस लामणी के सीजन थारे खलिहान आ जावे तो खाली झोली मत जाने देना!
कोई गरीब-गुरबा घर-संसारी मर्द-औरत, इस लामनी के सीजन आपके खेत में गेहूं कटाई के बाद खाली पड़े खेत से "बालें" चुगने आवे तो उसको दुत्कारना मत, चाहे वो किसी जाति-बिरादरी का हो| मैंने कोई फुल-टाइम खेती तो नहीं की जिंदगी में परन्तु स्टूडेंट-लाइफ में हर सीजन की छुट्टियां खेतों में काम करते हुए ही कटती थी| आठवीं क्लास से ले फ्रांस आने तक गेहूं निकालते वक्त ट्रेक्टर पर अक्सर ड्यूटी हम तीनों भाईयों में से ही कोई से की लगती थी| दोनों भाईयों की ड्यूटी होती तब तो ऐसा होता ही था परन्तु जिस दिन मेरी ड्यूटी लगती थी तो ख़ास निशानी होती थी खलिहान में आ "अनाज का झलकारा लगवाने वालों" को कि आज तो "फत्तन का बीचला पोता सै कढ़ाई पै", चालो|
Tuesday, 13 April 2021
किसान जरा सरकार की 'फसलों की पेमेंट उनके खातों में सीधी डालने' की क्षणिक ख़ुशी देने वाली काईयां चाल को समझें!
अडानी-अम्बानी जैसे हर छोटे से ले बड़े व्यापारी के सर पर लगभग हर वक्त इतना कर्जा व् लोन होते हैं कि अगर बैंक इनके कंपनी खातों से यह कर्जे अगली पेमेंट पड़ते ही सीधे काटने लग जाएँ तो इनके अपने कर्मचारियों को तनख्वाह देने को इनमें से किसी विरले के पास पैसे ही बचें और यह रोड पर आ जाएँ| इनके मामले में कानून यह है कि इनकी मर्जी जाने बिना बैंक इनके खातों से पैसे नहीं काट सकते|
Monday, 12 April 2021
धर्म वह जो आपके काबू का हो, वह नहीं जिसके आप काबू हो जाएँ!
ईसाईयत में 4 त्यौहार खेती से संबंधित मनाए जाते हैं|
मुझे यह लाइन सबसे वाहियात लगती है कि, "दुनिया में क्या ले के आए, और क्या ले के जाना"?
ऐसे बदबुद्धियों को बताया करो कि, "माँ-बाप-खानदान-जाति-कौम-धर्म-देश" का नाम व् रूतबा ले के आया/आई" व् जाते वक्त "अपने कर्मों के जरिये कमाए अच्छे-बुरे नाम-रुतबे-बुलंदी ले के जाऊंगा/जाउंगी"| ऐसी बुलंदियां जो सिर्फ मेरे नाम से रहती दुनिया तक जानी जाएँगी, चाहे वो देशभक्ति के जरिये कमाऊं, धन/व्यापार जोड़ के कमाऊं, डॉन बन के कमाऊं या समाज सुधारक बन के कमाऊं|
Tuesday, 30 March 2021
21 अप्रैल को सिख धर्म में जा रहे एक जाट व् एक फंडी का वार्तालाप!
फंडी (अपना प्रतीकात्मक घड़ियाली अटूट प्रेम दिखाते हुए): जजमान, थम हमनें छोड़ जाओगे तो हम तो भूखे मर जाएंगे?