1 - जिसमें औरतों-बच्चों को गाइडलाइन्स दी जाती थी|
अपने कल्चर के मूल्यांकन का अधिकार दूसरों को मत लेने दो अर्थात अपने आईडिया, अपनी सभ्यता और अपने कल्चर के खसम बनो, जमाई नहीं!
Monday, 11 September 2023
जैसे आजकल RWA में rules and regulations पर monthly मीटिंग्स होती हैं; ऐसे ही खापलैंड के हर गाम के ठोलों के "बगड़" यानि RWA में बगड़-ठोले के बड़े बूढ़े monthly अथवा तिमाही counseling मीटिंग्स लिया करते थे!
Thursday, 7 September 2023
आरएसएस का लाठी खेल!
आरएसएस, जोकि शहरियों का संगठन माना जाता रहा है। वह अलग बात है कि अब पिछले दस बीस सालों से इसमें देहाती भी दिखने लगे हैं। इसकी शाखाओं में हम सभी ने देखा है कि वहां स्वयंसेवकों को लाठी चलाना सिखाया जाता है। दरअसल इस लाठी वाले खेल का इतिहास आरएसएस की स्थापना से भी पैंसठ सत्तर साल पहले, यानी 1860 के दशक में बंगाल में शुरू हुए हिन्दू मेला से शुरू हुआ था और उस समय इसे नाम दिया गया लाठी खेला। इसके पीछे का इतिहास बड़ा ही रोचक है। और इसके पीछे के इतिहास को जानेंगे तो समझ आ जायेगा कि आज भी ये संघ वाले लाठी खेल को क्यों जारी रखे हुए हैं।
Wednesday, 6 September 2023
सामाजिक न्याय व् दक्षिण और उत्तरी भारत!
बाबा अम्बेडकर, महात्मा ज्योतिबा फूले व् पेरियार रामास्वामी जी; जिस काल में दक्षिण भारत में "सामाजिक-न्याय" यानि छूत-अछूत, स्वर्ण-शूद्र की लड़ाई लड़ रहे थे, उसी काल में पश्चिमोत्तर भारत - यूनाइटेड पंजाब) में सर छोटूराम "आर्थिक-न्याय" की लड़ाई लड़ रहे थे| और आर्थिक-न्याय की लड़ाई सामाजिक-न्याय के बाद आती है| और पश्चिमोत्तर भारत में समाजिक-न्याय को हद-गुजरने से आगे का अन्याय यानि छूत-अछूत, स्वर्ण-शूद्र इसलिए नहीं बनने दिए क्योंकि यहाँ मिसल व् खाप सिस्टम रहा है| जो आज के दिन भी आरएसएस जैसे समूहों के तथाकथित धार्मिक संगठनों को मेवात दंगे उकसाने में पैर मारने तक से रोक देता है; सोचें कि उस वक्त यह सिस्टम कितना मजबूत रहा होगा; कि सर छोटूराम जैसे हुतात्मा सीधा आर्थिक-लड़ाई लड़ रहे थे|
परन्तु अब वक्त चिंता का आ रहा है, यही चलता रहा तो आर्थिक तो छोडो, सामाजिक लड़ाई लड़ने लायक सोच-क्षमता-संसाधन आरएसएस के फंडियों ने यहाँ नहीं छोड़ने हैं; परन्तु लोग हैं कि पाखंड की अफ़ीम में डूबे ही जा रहे हैं| एक ऐसी धरती, जिसने ना कभी साउथ इंडिया की सामाजिक न्याय की लड़ाई झेलनी पड़ी और ना ही यूरोप की 'ब्लैक प्लेग' व् फ़्रांसिसी क्रांति टाइप की सामाजिक न्याय की क्रांतियां झेलनी पड़ी; वह पश्चिमोत्तर भारत अब उसी खतरे के मुहाने पर है; अगर सही-सही "मुंह-थोबने" इन फंडी-पाखंडियों के नहीं हुए तो|
जय यौधेय! - फूल मलिक
Friday, 1 September 2023
उत्तर-पश्चिमी भारत व् बाकी के भारत की "सामाजिक न्याय की लड़ाई" अलग प्रकार व् स्तर की रही हैं!
इसको कुछ यूँ समझें:
1) क्या वजह है कि वर्णवाद, छूत-अछूत की लड़ाई लड़ने वाले राष्ट्रीय महानायक साउथ इंडिया से आते हैं? जैसे कि महात्मा ज्योतिबा फूले, बाबा आम्बेडकर व् पेरियार स्वामी जी| क्यों नहीं यह लड़ाई लड़ने वाला इनके स्तर का कोई लीडर नार्थ इंडिया या कहें कि उत्तर-पश्चिमी भारत से हुआ? इनका साउथ इंडिया से होना, व् ऐतिहासिक दस्तावेजों के रिकार्ड्स भी इस बात को स्थापित व् सत्यापित करते हैं कि चाहे "गले में हांडी व् कमर पर झाड़ू लटका के चलने के अत्याचार रहे हों या बाबा आंबेडकर को तालाब से पानी नहीं पीने देने के या महात्मा ज्योतिबा फूले जी द्वारा शिक्षा के अलख जगाने पे उन पर व् उनकी पत्नी पर गोबर-कीचड़ फेंकने के मामले हों; यह साउथ इंडिया में उच्च स्तर के थे; माने की प्रकाष्ठा की अति होने वाले स्तर के थे|
2) उत्तर-पश्चिमी भारत से हुआ तो सर छोटूराम हुए, जिन्होनें सामाजिक न्याय की अपेक्षा आर्थिक न्याय की लड़ाई ज्यादा लड़ी| यानि यहाँ सामाजिक न्याय की समस्या इतनी बड़ी नहीं थी, शायद खापों की व्यवस्था पहले से ही समानांतर में होने के चलते? जो थी भी तो फंडियों के बहकावे में आने वाले कुछ लोगों के चलते थी, वरना यहाँ के मूल में यह समस्या नहीं रही कही जा सकती है| इसका मजन "मेवात दंगों में खापों के स्टैंड" से भी समझा जा सकता है कि यह लोग जुल्म-की व्यापकता व् अति को कतई बर्दास्त नहीं करते, इसीलिए तो मेवात में खापें, मुस्लिमों के साथ खड़ी हुई|
3) क्यों दलित-ओबीसी भाईयों को वर्णवाद, छूत-अछूत की लड़ाई लड़ने वाले महानायकों में कोई उत्तर-पश्चिम भारत से महात्मा ज्योतिबा फूले, बाबा आम्बेडकर व् पेरियार स्वामी जी जितना बड़ा चेहरा नहीं मिलता? आप जिस किसी भी छूत-अछूत, वर्णवाद विरोधी कार्यक्रम के पोस्टर देखें; उनमें मुख्यत; इन्हीं तीन महानायकों के चेहरे मिलते हैं|
जय यौधेय! - फूल मलिक
Jat and their religious philosophy
मेरी पिछली पोस्ट पर चौधरी भाई ने कॉमेंट किया कि सनातनियों में भी धर्म के प्रति जागरूकता बढ़ी है इसलिए बड़े बूढ़ों को ये सब नया लगता है।
Tuesday, 29 August 2023
हरयाणवी भाषा की दस बोलियां व् उनके क्षेत्र!
Saturday, 26 August 2023
How Jat became Rod!
जाट एक पशुपालक और किसान कबीला था । भारत से ही ये कबीला मध्य एशिया तक गया और फिर कालांतर में वापिस सिंध होते हुए हरियाणा राजस्थान पंजाब उत्तर प्रदेश में आबाद हो गया। इस कबीले की खुद की सत्ता होती थी खाप पंचायत के रुप में और खाप मुखिया ही कबीले के सिद्धांत बनाते थे और जो कबीले के नियम तोडता था उन्हें कबीले से निकाल देते थे ठीक ऐसे ही इस कबीले के मुखिया ने उल्टा चलने के कारण कुछ जाटों को इस कबीले से अलग कर दिया और वा जाट छंटे हुए दबंग होते थे जो दुसरे गांव के लोगो को पीटकर आ जाते थे कभी उनका पशुधन छीन लेते थे जब ये बातें वो गांव वाले खाप मुखिया को बताते थे तो कबीले का मुखिया उनको जात से बेदखल कर देता था ठीक ऐसे ही एक जाटों का बदमाश ग्रुप मोहम्मद गोरी के समय उसके सेनिको को लूट खसोट करने लगा ये सिलसिला लंबे समय तक चलता रहा मगर गोरी के वापिस चले जाने के बाद उसके उत्तराधिकारी कुतुबुद्दीन ऐबक के शासनकाल में भी दिल्ली में ये लूट खसोट जारी रही जिसकी सजा बेगुनाह जाटों को भी मिलने लगी और वो बदमाश छंटे हुए मुस्टंडे जाट मोज उडाते रहे एक दिन जाट कबीले के मुखिया ने पंचायत करके उन जाटों को गांव से निकाल दिया और जाटों को चेतावनी दे दी कोई भी जाट उनसे शादी नहीं करेगा जिन जाटों को खाप पंचायत के मुखिया ने निकाला था उनमें ज्यादातर मेहला सांगवान तुरान खोखर जाटों की संख्या ज्यादा थी और इसके बाद ये जाटों के गांव छोड़कर करनाल कुरुक्षेत्र के जंगलों की तरफ आकर रहने लगे ये जाट लोग मेहनती और निडर थे और खूब दबंगाई करते थे , मुस्लिम रांगडो से इनका छतीस का आंकड़ा था सो इन्होंने ढाक जंगलों को काटकर उपजाउ बनाया और जाटों से अलग होने के बाद रोड़ बनकर रहने लगे । यही वो समय था जब पहली बार रोड़ जाति अस्तित्व में आई थी । ये करीबन 800-900 वर्ष पुरानी बात होगी और ये जाट आपस में ही शादी करने लगे इन बागी हुए जाटों ने कभी दुसरी जाति के लोगों को अपने में नहीं मिलाया और ना कभी अपनी लड़कियां मुगल शासको को डोले के रुप में दी । आज के समय में वो तमाम बागी जाट करनाल कुरुक्षेत्र की जमीन पर रोड़ जाति के रुप में रहते हैं । आज भी रोड़ जाति के बड़े बुजुर्ग कहते मिल जाते हैं जब उनसे कोई पूछता है कि रोड़ कोनसी जाति है तो वो बस एक ही जवाब देते हैं गर्व से हम जाटों जेसे है । रोड़ो ने कभी नहीं कहा कि वो गुर्जरों जेसे है राजपूतो जैसे है हमेशा जाटों जैसे ही बताया इसका लाजिक भी यही था बुजुर्ग पीढ़ी दर पीढी बताते आए थे की हम पहले जाट ही थे मगर हमें किन्हीं कारणों से अलग कर दिया गया था । रोड़ जाति का एक भी ऐसा त्यौहार नहीं है जो देशवाली जाटों से ना मिलता हो । और जो सांगवान गोत्र के जाट बागी हुए थे वो कोल गांव में रहते हैं
खापों की सरंचना व् नामों को ले कर युवा पीढ़ी को सावधान होने की जरूरत है!
वैसे तो पहले भी परन्तु किसान आंदोलन के बाद और अब मेवात में खापों ने जिस तरह से धार्मिक हिंसा का पार्ट बनने से अपने आपको पीछे खींचा है व् मानवीय धरातल पर न्याय का पक्ष लेते हुए मुस्लिम भाईयों के साथ जा खड़ी हुई हैं; उससे अब संघ की नजर खापों में खाप-अभिमान के नाम पर हर गौत के नाम से खापें खड़ी करवाने की धुन सवार हो चुकी है; वहां भी जहाँ क्षेत्रीय नाम के आधार पर खापें सदियों से मौजूद हैं, जैसे कि सतरोळ खाप, महम चौबीसी खाप, बिनैण खाप आदि| हमारे खाप चौधरियों व् चौधराणियों के पास संघ के लोगों की फोन-कॉल आ रही हैं कि हम फलां गौत की खाप बना रहे हैं, व् आपको इसका स्टेट या नेशनल प्रेजिडेंट बनाना चाहते हैं व् बला-बला|
किसान आंदोलन व् मेवात के दो मुद्दों ने इनके स्वघोषित ब्रह्माण्ड के ज्ञानी से ले ब्रह्माण्ड को बार-बार क्षत्रियों से खाली करने के घस्सों की पोल पट चुकी है, क्योंकि आपकी-हमारी ताकत के बिना यह मेवात से अपनी चप्पल तक वापिस नहीं ला सकते| बस चाहते हैं कि इनकी टर्र-टर्र चलती जबान से लोग इनके स्वघोषित ज्ञानी होने व् वीर होने का लोहा मान लें व् इनको मसीहा मान लें; सर्वेसर्वा मान लें| जबकि वास्तव में सर्वेसर्वा व् सर्वसमाज-सर्वधर्म में इंसानियत जो पोषित रखने वाली थ्योरी पहले भी व् आज भी जो साबित हुई है वह तो खाप-खेड़ा-खेत की है| यह तो इस थ्योरी तक को कुतरने वाली दीमक मात्र हैं|
तो ऐसे में खापों से जुड़े तमाम जातियों-धर्मों के लोगों से अनुरोध है कि इस पर अपनी युवा पीढ़ी को जरूर चेताएं व् कोई भी नई खाप बनाने-बनवाने से पहले एक तो यह सोचें कि अगर इनके बहकावे में आ के आप आज अनजाने में कोई नई खाप ईजाद करते हैं तो इसका मतलब आप यह मानते या जानते ही नहीं कि आपकी खाप सदियों पहले से है, व् फलां नाम से है या फिर आप जानबूझ के इनके एजेंडा में खेल रहे हैं|
ऐसे में हर जागरूक युवा, अपने-अपने बुजुर्गों के पास बैठे व् अपनी खाप के नाम व् इतिहास से खुद के साथ-साथ तमाम युवा-वर्ग को अवगत करवावे| व् दूसरा अगर गौत-गाम के नाम से कोई संगठन बनाना भी है तो उसको उसी नाम से चलाएं व् व्यक्तिगत रख के चलाएं; संघियों के उकसावे पे इस कम्पटीशन में ना उतरें कि जब फलां गौत के नाम से खाप है तो हमारी भी गौत की खाप हो, जबकि आपके गौत की खाप सदियों से क्षेत्र के नाम से है, जैसे कि ऊपर उदाहरण दिए| व् जो खापें गौत के नाम से हैं, उनके ऐतिहासिक कारण रहे हैं, उनको जानें|
और अब हमें इस राह पर आना होगा कि जब देखो यह फंडी काँट-छाँट-बाँट के अजेंडे समाज में बोने पे लगे ही रहते हैं तो इनके यह पैंतरे इन पर ही कैसे लागू किए जाएँ; क्योंकि इनकी गेल जब तक "जैसे को तैसा" नहीं करोगे, इनकी समझ नहीं आएगी कि यहाँ और भी बसते हैं व् यह आपकी शर्म-लिहाज को इस लाइन पर ले के चलते रहेंगे कि, आगला शर्मांदा भीतर बड़ गया, बेशर्म जाने मेरे तें डर गया"|
जय यौधेय! - फूल मलिक
Monday, 14 August 2023
गोविंद पंसारे ने "शिवाजी कौन थे, Who was Shivaji" नामक किताब के माध्यम से शिवाजी के राजा बनने व राज्याभिषेक आदि के बारे में विस्तार से लिखा है।
डागर पाल, रावत पाल, सहरावत पाल, चौहान पाल, तेवतिया पाल के चौधरियों को बारम्बार सलूट!
कल की धर्मान्धता में अंधे लोगों की पंचायत से अपने आपको अलग रख के; आपने पाल-खाप की निष्पक्ष छवि व् परिभाषा को बरकरार रखने का जो संदेश दिया है; यह पीढ़ियों-सदियों युगयुगान्तर इतिहास में दर्ज हो गया है| पूर्वाग्रह से ग्रसित भीड़ का जमावड़ा, कभी कोई पंचायत हो ही नहीं सकती व् खाप/पाल पंचायत का तो दूर-दूर तक मतलब ही नहीं| पूर्वाग्रह में सिर्फ कटटरता के म्वादी खड़दू-खाड़े होते हैं; जो जाहिल-गंवार जानवर टाइप मूढ़मति लोग करते हैं|
इनसे दूर रह कर, आपने अपने आपके सभ्य व् सामाजिक होने का जो परिचय दिया है; इसके लिए आपको बारम्बार सलूट है! आपके इन फैसलों की गूँज देशों-विदेशों धरती के हर कोने तक जा रही है| हम आपके बाहर बैठे वंश इसको फैला रहे हैं| आपकी कीर्ति-आभा यूँ ही नभायमान रखी जाएगी; आप ऐसे ही हमारा मार्ग प्रसस्त रखें!
विशेष: पाल व् खाप पर्यायवाची शब्द हैं जो एक ही तरह ही सामाजिक संस्था के है; इनकी umbrella body सर्वधर्म सर्वजातीय सर्वखाप है!
जय यौधेय! - फूल मलिक
Saturday, 12 August 2023
एक बार में तथाकथित निर्मात्री सभा के दो दिन के सत्र में गया हुआ था!
तो वहाँ पर मौजूद आचार्य ने बताया कि शिवाजी के राज्याभिषेक के लिए पंडों को लाखों अशर्फियां रिश्वत के तौर पर दी थी। (शिवाजी को यह अशर्फियां क्यों देनी पड़ी इसका कारण था। शिवाजी की माँ का मानना था कि यदि शिवाजी बिना राज्याभिषेक के गद्दी पर बैठेगा तो उसके द्वारा युद्ध में की गई हत्याओं का पाप उसे लगेगा। अगर वह राज्याभिषेक के बाद गद्दी पर बैठेगा तो राजा के रुप में उसके द्वारा युद्ध में मारे गए लोगों की हत्या का पाप उसे नहीं लगेगा इसलिए शिवाजी की माँ ने शिवाजी पर राज्याभिषेक के लिए दबाव बनाया लेकिन शिवाजी के शूद्र होने के कारण कोई पंडा राज्याभिषेक को तैयार नहीं हुआ और अंत में शिवाजी को लाखों अशर्फियां देकर राज्याभिषेक करवाना पड़ा।) शिवाजी के बाद आचार्य सीधा औरंगजेब पर आया और कहा कि औरंगजेब हर रोज हिंदुओं के सवा मन जनेऊ तोड़कर खाना खाता था। आचार्य के इतना कहते है कि मैने प्रश्न पूछने के लिए हाथ उठाया। इससे पहले भी मैने कई सवाल पूछ लिए थे जिससे आचार्य घबराया हुआ था। मेरे हाथ उठाते ही आचार्य ने कहा कि सवा मन तो कहने की बात है औरंगजेब सवा किलो जनेऊ तोड़कर भोजन करता था। मैने फिर भी अपना हाथ खड़ा रखा। अब आचार्य के पास मेरे सवाल को सुनने के अलावा कोई विकल्प नहीं था और वह सवा किलो से नीचे भी नहीं आ सकता था क्योंकि इससे नीचे तो फिर औरंगजेब को क्रूर साबित करना बड़ा मुश्किल काम हो जाता। आचार्य ने कहा कि हाँ भाई, बताओ। मैने कहा कि अभी आपने कहा कि शिवाजी को राज्याभिषेक करवाने के लिए लाखों अशर्फियां रिश्वत के तौर पर देनी पड़ी थी। जब शिवाजी जैसे महान व ताकतवर व्यक्ति को भी राज्याभिषेक के लिए सिर्फ इस कारण लाखों अशर्फियां देनी पड़ी क्योंकि वो शूद्र था तो आम आदमी का क्या हाल होगा? उनके पास तो इतनी रकम नहीं होती थी। शूद्रों को जनेऊँ धारण करने का अधिकार नहीं था और दो जनेऊधारी थे उनका औरंगजेब के साथ तालमेल था जिस कारण धर्म के नाम पर लगने वाला उनका जजिया कर भी औरंगजेब ने माफ किया हुआ था तो फिर जनेऊ टूटे किसके? आचार्य के पास कोई जवाब नहीं था तो आचार्य ने कहा कि तुम्हे कौन लेकर आया है? मैने जैसे ही उस भाई का नाम लिया तो वो दौड़कर आया और मेरे घुटने को हाथ लगाकर बोला कि तू चुप हो जा, सैशन खत्म होने के बाद आपका आचार्य के साथ आधा घंटा का सवाल जवाब का सैशन रख देंगे। मैने कहा कि यह सैशन खत्म होते ही भागेगा देख लेना। जैसे तैसे मैं मान गया। मैं बैठ गया। आचार्य को तो घुम फिरकर फिर मुस्लमानों पर आना था। आचार्य ने जैसे ही बोला कि हमें मुस्लमानों से खतरा है तो मैने फिर हाथ उठाया । अब तो आचार्य के गात में बाकि नहीं रही लेकिन विकल्प भी कोई नहीं था । सत्र में आए बाकि लोगों में बेइज्जती होती यदि सवाल नहीं पूछने देता । आचार्य ने कहा कि हाँ भाई, बोलो । मैने कहा कि कौन से मुस्लमान से खतरा है ? आचार्य बोला कि क्या मतबल है? मैने कहा कि कौन से मुस्लमानों से खतरा है? जाट मुस्लिम ले,राजपूत मुस्लिम से,गुर्जर मुस्लिम से,सैनी मुस्लिम से, लुहार,तेली,नाई,कुम्हार,ब्राह्मण, बनिया कौन से मुस्लमान से खतरा है ? आचार्य मेरी बात को समझ चुका था कि मैं बात कहाँ घुमाना चाहता हूँ इसलिए उसने बिना उत्तर दिए मुझे बैठने के लिए कहा । मैं बैठ गया । दो दिन में सत्र खत्म हुआ तो उन्होने सभी को फीडबैक का फार्म दिया जो मुझे भी मिला । मैने उस फीडबैक में जो लिखा उसको पढ़कर मुझे फिर बुलाया गया और पूछा कि आपने ये क्या लिख दिया ? मैने कहा कि जो मुझे लगा वो मैने लिख दिया । उसके बाद मैं अपने घर आ गया और आज तक मुझे तथाकथित निर्मात्री सभा के किसी सत्र का न्यौता नहीं मिला । - राजेश कुमार
Thursday, 10 August 2023
मेवात दंगों में फंडियों का साथ नहीं देने पर, अब जाट समाज को इस बात पर घेरा जा रहा है कि "क्या तुम हिन्दू या सनातनी नहीं हो?"
जवाब: 1875 में आर्य-समाज इसलिए लाया गया था क्योंकि जाट, फंडियों के आज ही तरह के तंज-लांछन-टार्गेटिंग से परेशान हो कर सिखी व् इस्लाम में जा रहा था (1881 से 1931 के जाट की धार्मिक जनसंख्या के आंकड़े उठा के देख सकते हैं) तो फंडियों को अहसास हुआ कि तुम वाकई में ज्यादा ज्यादतियां कर रहे हो, सुधरो व् जाट को मनाओ| तब जाट को मनाने के लिए 1870 से 1875 तक यह अध्ययन किया गया कि जाट को कैसे मनाया जाए| इसके लिए जाट के आध्यात्म व् धार्मिक मतों पर खापलैंड पर करवाई गई रिसर्च में पाया गया कि जाट एकमुश्त "दादा नगर खेड़ों/भैयों/भूमियों" को धोकता है, जो कि मूर्तिपूजा नहीं करने के सिद्धांत पर आधारित हैं; औरत को धोक-ज्योत में लीड देने के आधार पर आधारित है|
तब इसी मूर्ती-पूजा नहीं करने के सिद्धांत को आधार बना कर 1875 में "आर्य-समाज" उतारा जाता है, जिसके साथ सत्यार्थ प्रकाश का ग्रंथ आता है इसके ग्यारहवें समुल्लास में जाट की "जाट जी" व् "जाट देवता" कहते-लिखते हुए स्तुति करते हुए| तब जाट को लगा कि "जी" कह के तमीज से बोलने लगे हैं तो मतलब इनको अक्ल आ गई है, सो इनके साथ रह सकते हैं|
बस, हमारे धर्म बारे यही अक्ल अब ले लो तुम्हारे पुरखों वाली; अन्यथा टकराव रहेंगे व् अपनी मूढ़मति में इन टकरावों को इतना मत बढ़ाते चले जाना कि उस वक्त तो "जाट जी" व् "जाट देवता" कहते-गाते आये थे तो जाट रुक गया था; परन्तु अबकी बार वाला जाट, इससे भी नहीं रुकेगा; चाहे बेशक फिर कितने ही, "सारा संसार जाट जी जैसा हो जाए तो धरती पर पंडे-पाखंडी भूखे मरने लगें" के हवाले देते रहना| याद रखो, तुम्हारे पुरखों की इस लाइन को "भूखे मरने लगें" तक के हवाले दे के रोके थे जाट तुमने? वैसे तो जाट होता कौन है किसी को भूखा मारने वाला; परन्तु यह हालत थी, तुम्हारे जैसों की तब, जो आज मेवात पे जाट की स्वछंदता को नहीं समझते हुए; उससे फिर पूछने लगे हो कि "जाट हिन्दू नहीं है क्या"?
अरे, तुम जाट की छोडो, तुम्ह खुद हिन्दू कब से हुए, यही बता दो? जरा जाओ और देखो कि 1893 की शिकागो,अमेरिका (विवेकानंद भाषण से प्रसिद्ध) की अंतर्राष्ट्रीय धर्म संसद के वक्त तक तुम खुद को कौनसा धर्म कहते थे? उस वक्त तक भी हिन्दू या सनातनी नहीं हो तुम? तो कब व् कैसे बन गए तुम हिन्दू या सनातनी; जो हमसे पूछ रहे हो कि "तुम हिन्दू या सनातनी नहीं हो क्या"?
घणे सर पर मत मूतो, भारी खता खाओगे; ज्यूँ कुत्ते को मार बंजारा रोया था, वह वाली खता|
जय यौधेय! - फूल मलिक
Monday, 24 July 2023
अगर कोर्ट व् WFI कानूनों पे ट्रायल दे के जाने वाले व् बिना ट्रायल दे के जाने वाले दोनों सही ठहरते हैं तो दोनों को डंके की चोट पर सही ठहराओ, बजाए डिफेंसिव हो सफाई देने लगने के!
पहलवान मुद्दे पर हम उन चीजों के लिए बहस ना ही करें तो बेहतर, जो कोर्ट व् कुश्ती फेडरेशन के नियम निर्धारित कर रहे हैं| अगर कोर्ट व् WFI उनको बिना ट्रायल खेलने के नियम रखती है तो उन नियमों को आगे करो; उन दो के लिए जो बिना ट्रायल खेलने जा रहे हैं व् जो एक ट्रायल दे के जाना चाहती है, उसको उसके लिए प्रोत्साहित करो|
यह सोशल ब्रांडिंग व् मार्केटिंग के ये फंडे हैं, इनको समझिये व् अगर कानूनी व् एडमिनिस्ट्रेटिव नियमों में आपके दोनों तरह के पहलवान फिट बैठ रहे हैं तो दोनों सराहिए| कम से कम यह उन फंडियों की तरह तो नहीं कर रहे जो अपने लोगों के उन गलतों तक को सही ठहराने लग जाते हैं वरन जुलूस तक उनके समर्थन में निकालते हैं, जो कानून की भाषा में बलात्कार है, आगजनी है, जान से मारने की धमकी है| फिर उदाहरण में क्या सेंगर, क्या गोधरा काण्ड के 12 अपराधी छोड़ने व् क्या बृजभूषण का मसला| आप लोग तो उन बातों पे अपने खिलाडियों को गलत-सही ठहराने पे लगे हो, जिनको कोर्ट व् खुद WFI के कानून वैध देते हैं; तो जब कानूनी वैध हैं दोनों मामले, तो उनका हवाला दे के दोनों को सराहे व् प्रोत्साहित किये रखें|
अन्यथा इतने पानी-पाड़ न्याय करने चले हो तो योगेश्वर दत्त के करवा लो ओलिंपिक व् CWG के मेडल्स वापस, ऐसी बिना ट्रायल दिए खेलने जाने पे आपत्ति जता के न्यायकारी बन रहे हो तो; क्योंकि सबके सामने खुल के आ चुकी अब तो कि वह कितनी बार बिना ट्रायल्स दिए गया है| या फिर सुशिल कुमार को निर्दोष घोषित करवाओ, जिसने यही बात कही थी कि 2016 में ट्रायल दे के जाए जो जाए, परन्तु बीजेपी ने अपनी जाट बनाम यादव पॉलिटिक्स खेलने व् सुशिल कुमार कहीं लगातार तीन जीत में व् तीसरी में गोल्ड ना ले आये व् तीन ओलिंपिक मेडल्स आने पे उसको "भारत रत्न" ना देना पड़ जाए सचिन तेंदुलकर की तरह; इसलिए नर सिंह यादव की बलि चढ़वाई वो अलग व् सुशिल को "भारत-रत्न" तक पहुँचने से रोका वह अलग व् इन दोनों समुदायों में राड़ लगवाई वह अलग|
यह अधिक से ज्यादा उदारवादी व् भावुकता ही आपको ऐसे सिस्टम में सर्वाइव नहीं करने दे रही| हाँ, वह दो खिलाडी बिना ट्रायल अगर कोई कोर्ट या WFI का कानून तोड़ के या उसका नाजायज एक तरफा फायदा ले के बिना ट्रायल जा रहे हैं तो बेशक उनको गलत बोलो| अन्यथा दोनों मामलों को सपोर्ट करो| और जिनको खाज हो, उनके आगे डेनफेन्सिव होने की बजाए कोर्ट-WFI नियम अड़ाओ| अन्यथा WFI के नियम बदले जाने की आवाज उठाओ|
जय यौधेय! - फूल मलिक