Saturday 26 August 2023

खापों की सरंचना व् नामों को ले कर युवा पीढ़ी को सावधान होने की जरूरत है!

वैसे तो पहले भी परन्तु किसान आंदोलन के बाद और अब मेवात में खापों ने जिस तरह से धार्मिक हिंसा का पार्ट बनने से अपने आपको पीछे खींचा है व् मानवीय धरातल पर न्याय का पक्ष लेते हुए मुस्लिम भाईयों के साथ जा खड़ी हुई हैं; उससे अब संघ की नजर खापों में खाप-अभिमान के नाम पर हर गौत के नाम से खापें खड़ी करवाने की धुन सवार हो चुकी है; वहां भी जहाँ क्षेत्रीय नाम के आधार पर खापें सदियों से मौजूद हैं, जैसे कि सतरोळ खाप, महम चौबीसी खाप, बिनैण खाप आदि| हमारे खाप चौधरियों व् चौधराणियों के पास संघ के लोगों की फोन-कॉल आ रही हैं कि हम फलां गौत की खाप बना रहे हैं, व् आपको इसका स्टेट या नेशनल प्रेजिडेंट बनाना चाहते हैं व् बला-बला|


किसान आंदोलन व् मेवात के दो मुद्दों ने इनके स्वघोषित ब्रह्माण्ड के ज्ञानी से ले ब्रह्माण्ड को बार-बार क्षत्रियों से खाली करने के घस्सों की पोल पट चुकी है, क्योंकि आपकी-हमारी ताकत के बिना यह मेवात से अपनी चप्पल तक वापिस नहीं ला सकते| बस चाहते हैं कि इनकी टर्र-टर्र चलती जबान से लोग इनके स्वघोषित ज्ञानी होने व् वीर होने का लोहा मान लें व् इनको मसीहा मान लें; सर्वेसर्वा मान लें| जबकि वास्तव में सर्वेसर्वा व् सर्वसमाज-सर्वधर्म में इंसानियत जो पोषित रखने वाली थ्योरी पहले भी व् आज भी जो साबित हुई है वह तो खाप-खेड़ा-खेत की है| यह तो इस थ्योरी तक को कुतरने वाली दीमक मात्र हैं|

तो ऐसे में खापों से जुड़े तमाम जातियों-धर्मों के लोगों से अनुरोध है कि इस पर अपनी युवा पीढ़ी को जरूर चेताएं व् कोई भी नई खाप बनाने-बनवाने से पहले एक तो यह सोचें कि अगर इनके बहकावे में आ के आप आज अनजाने में कोई नई खाप ईजाद करते हैं तो इसका मतलब आप यह मानते या जानते ही नहीं कि आपकी खाप सदियों पहले से है, व् फलां नाम से है या फिर आप जानबूझ के इनके एजेंडा में खेल रहे हैं|

ऐसे में हर जागरूक युवा, अपने-अपने बुजुर्गों के पास बैठे व् अपनी खाप के नाम व् इतिहास से खुद के साथ-साथ तमाम युवा-वर्ग को अवगत करवावे| व् दूसरा अगर गौत-गाम के नाम से कोई संगठन बनाना भी है तो उसको उसी नाम से चलाएं व् व्यक्तिगत रख के चलाएं; संघियों के उकसावे पे इस कम्पटीशन में ना उतरें कि जब फलां गौत के नाम से खाप है तो हमारी भी गौत की खाप हो, जबकि आपके गौत की खाप सदियों से क्षेत्र के नाम से है, जैसे कि ऊपर उदाहरण दिए| व् जो खापें गौत के नाम से हैं, उनके ऐतिहासिक कारण रहे हैं, उनको जानें|

और अब हमें इस राह पर आना होगा कि जब देखो यह फंडी काँट-छाँट-बाँट के अजेंडे समाज में बोने पे लगे ही रहते हैं तो इनके यह पैंतरे इन पर ही कैसे लागू किए जाएँ; क्योंकि इनकी गेल जब तक "जैसे को तैसा" नहीं करोगे, इनकी समझ नहीं आएगी कि यहाँ और भी बसते हैं व् यह आपकी शर्म-लिहाज को इस लाइन पर ले के चलते रहेंगे कि, आगला शर्मांदा भीतर बड़ गया, बेशर्म जाने मेरे तें डर गया"|

जय यौधेय! - फूल मलिक

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