जेटीसी ने झंडे गाड़ दिए कर दिए सबके ठाठ
अपने कल्चर के मूल्यांकन का अधिकार दूसरों को मत लेने दो अर्थात अपने आईडिया, अपनी सभ्यता और अपने कल्चर के खसम बनो, जमाई नहीं!
Friday, 14 November 2025
जेटीसी ने झंडे गाड़ दिए कर दिए सबके ठाठ
Wednesday, 12 November 2025
सीठणे
मामा की लड़की की शादी को दस साल ही हुए हैं। तब तक भी शादी का मतलब सिर्फ जीमने-जूठने तक नहीं होता था,शादी में शामिल होने वाले सभी रिश्तेदार, परिवार जब तक लड़की के फेरे और विदा नहीं हो जाती, तब तक वहीं डटे रहते थे। बहन और जीजा जी बड़े अफसर हैं, फिर भी मेरी और बहन की जिद्द थी कि पहले वाली शादियों की तरह अंगूठा फेरे लेंगे। यानि अंगूठे से जितना सरका जा सकता है सिर्फ उतना, बिल्कुल कीड़ी चाल। और उसने यही किया। हमारे यहाँ तब तक सीठणों का रिवाज था, माँ ने गाया-
हळवैं हळवैं चाल म्हारी लाडो
तनै हाँसेंगी सवेलड़ियां।
तावळी तावळी चाल बेस्सां का दिन छिपण न हो रह्या सै।
फेरों का माहौल बड़ा खूबसूरत होता था। हँसी-मजाक का वह रंग खत्म ही हो चुका।
शादी में फेरों की रस्म ही बेहद खास होती हैं और बाकि सब चोंचलों ने उसे ही हल्का कर दिया। फेरे देखने का चाव ना बारातियों को रहा और ना लड़की के रिश्तेदारों को। सबकुछ स्टेज तक सिमट गया। सारा धूम धड़ाका स्टेज तक रह गया । फेरों की रस्मों- गीतों, सीठणों का कोई महत्व नहीं रहा।
हम बचपन में बारात और फेरे देखने दूर तक जाते थे। फेरों पर वे सीठणे और लड़की का मामा गोदी उठाकर लाता तो गीत गाया जाता था....
गढ़ छोड़ रुक्मण बाहर आई.... फेरों पै फूल बखेरिए....
इतने सुंदर गीतों के बीच का आगमन अब खत्म हो चुका है। पता नहीं कोई मिस करता भी है या नहीं पर मेरे कानों में मेरी माँ, चाची, ताई,बुआ, मौसी, नानी, मामियों की आवाज गूंजती हैं।
सारे तो नहीं, कुछ सीठणे समेट कर लाई हूँ।
जोहड़ां पै आई काई दादा हो
समधी की भाजी लुगाई दादा हो
कन्या न दे परणां।
पीपळ म्हं बोल्या तीतर दादा हो
समधी का हाल्लै से भीतर दादा हो
कन्या नै दे परणा।
कैरां कै लाग्गे टींड दादा हो
समधी के फस गया लींड दादा हो
कन्या नैं दे परणा।
नीमां कै लाग्गी निंबोळी दादा हो
समधी की लुट गई न्योळी दादा हो
कन्या न दे परणा।
आंगण म्हं पड़या फरड़ा दादा हो
समधी का चाल्लै सै धरड़ा दादा हो
कन्या न दे परणा।
छोरियाँ नै कात्या सूत दादा हो
समधी का उंघै सै पूत दादा हो
कन्या नैं दे परणा।
बाहरणे कै आग्गै गाड्डी दादा हो
बंदड़ी सै बंदड़े तै ठाड्डी दादा हो
कन्या नैं दे परणा।
बाहरणे म्हं टंग रही कात्तर दादा हो
बंदड़ी सै बंदड़े तै चात्तर दादा हो
कन्या नैं दे परणा।
म्हारी छयान पै गोसा दादा हो
बंदड़ा सै बंदड़ी तै ओछा दादा हो
कन्या नैं दे परणा।
म्हारै चार बिलाईए थे दो गौरी दो सांवळे
एक बिलाईया खेत गया जिज्जै कै मुंह नै छेत गया
एक बिलाईया ऊत गया, जीजै कै मुंह म्ह मूत गया
एक बिलाईया ऊँघै था जीजै कै मुंह नै चूंघै था।
बंदड़े की बेबे रंग भरी जी, खड़ी बुरज कै जी ओंट
गादड़ चुंबे ले गया जी कोए लोबां पड़गी पेट
ए बड़वे ज्यान के जी रा।
पैंटां लाए माँग कैं जीजा हो, बुरसट ल्याए जी चोर
घड़ियां मेरे बीर की चलदे की ल्यांगे खोस
ए जीजा ज्यान ले जी रा।
चार चखूंटा चौंतरा जीजा हो, चौंतरे पै बैठा जी मोर
मोर बिचारा के करै, तेरी बेल न लेगे चोर
ओ जा कैं टोह लियो जीजा हो।
दो खरबूजे रस के भरे जीजा हो, उनकी रांधू जी खीर
आज्या जीजा जीम ले, तेरै खोंसड़े मारूं तीन
हे जीजा जान के प्यारे जी।
कोरा घड़वा नीर का जीजा हो, उसका ठंडा नीर
ब्याहे- ब्याहे पी लियो, थारा रांड्यां का ना सीर
हे बुरा मत मानियो जी।
मूळी बरगा उजळा जीजा हो, गाजर बरगा जी लाल
कुत्यां बरगा भौंकणा जी, थारी गधड़यां बरगी चाल
हे बुरा मत मानियो जीजा हो।
पैंटा के पहरणा जीजा हो, टांग भचीड़ी जां, हो जी रा हो
थाम धोती बांधो पान की थारे कच्छे चमकदे जां, हो जीजा लाडले जी हो।
जैसा थारा रंग हो जीजा हो, वैसी ए उड़द की जी दाळ
दाळ हो तो धो लिए, तेरा रंग ना धोया जा
हो जीजा लाडला हो।
सुनीता करोथवाल
Tuesday, 11 November 2025
औरंगज़ेब के शासनकाल में बृज क्षेत्र के जाटों द्वारा किये गये विद्रोह का मूल कारण औरंगज़ेब की कृषि नीतियाँ थीं!
सिंथिया टैलबॉट और इरफ़ान हबीब दोनों इस मत पर सहमत हैं कि औरंगज़ेब के शासनकाल में बृज क्षेत्र के जाटों द्वारा किये गये विद्रोह का मूल कारण औरंगज़ेब की कृषि नीतियाँ थीं, न कि उसकी धार्मिक नीतियाँ। वे आगे यह तर्क प्रस्तुत करते हैं कि मुग़ल काल तक जाटों का हिन्दूकरण ही नहीं हुआ था, अतः यह कथन सर्वथा भ्रामक होगा कि जाट औरंगज़ेब द्वारा हिन्दुओं के दमन के विरुद्ध उठ खड़े हुए, जैसा कि सर यदुनाथ सरकार ने दावा किया था।
परन्तु भरतपुर रियासत की स्थापना के पश्चात् जाटों का द्रुत गति से हिन्दूकरण प्रारम्भ हुआ। भरतपुर रियासत के राजाओं ने मथुरा के मन्दिरों, ब्राह्मणों एवं वैष्णवों को संरक्षण प्रदान करना आरम्भ किया तथा स्वयं को हिन्दू धर्म एवं हिन्दू समाज का हितैषी प्रमाणित करने का प्रयास किया। इतना ही नहीं, उन्होंने बयाना क्षेत्र के पुराने सामन्तों की वंशावलियाँ भी अंगीकार कर लीं और स्वयं को श्रीकृष्ण अथवा लक्ष्मण का वंशज घोषित करने लगे।
चूँकि ब्रिटिश काल के आरम्भ तक पंजाब क्षेत्र के जाटों का हिन्दूकरण अत्यन्त सीमित था, अतः वे 1881 की जनगणना के पश्चात् तीव्र गति से मुस्लिम और ईसाई बनने लगे। 1881 से 1921 के मध्य, मात्र चालीस वर्षों में, पंजाब के 80% से अधिक जाट मुस्लिम और सिख बन गये। अब ऐसा प्रतीत होने लगा कि यह प्रवृत्ति हरियाणा और जाँगल क्षेत्रों में भी विस्तारित होगी। इसी परिप्रेक्ष्य में आर्य समाज ने इस प्रवृत्ति को रोकने का सुनियोजित प्रयास आरम्भ किया।
आर्य समाज ने हरियाणा और जाँगल क्षेत्रों के जाटों को यह विश्वास दिलाया कि वे ही आर्यों की वास्तविक सन्तान हैं तथा वैदिक धर्म को पुनर्जीवित करना उनका धार्मिक कर्तव्य है। जाटों में प्रचलित 'लेविरेट विवाह' (देवर विवाह) प्रथा को वैदिक परम्परा की निरन्तरता के रूप में प्रस्तुत किया गया। इसके अतिरिक्त, आर्य समाज ने जाटों को वैदिक क्षत्रिय घोषित किया, यद्यपि आर्य समाज जन्म पर आधारित वर्ण व्यवस्था का खण्डन भी करता रहा।
अतः जब 1921 की जनगणना प्रारम्भ हुई, तो जाट राजाओं, सामन्तों और नेताओं ने जाटों को जनगणना प्रतिवेदन में क्षत्रिय वर्ण में सम्मिलित कराने हेतु व्यापक लामबन्दी आरम्भ की। इसी क्रम में जाटों ने वर्ष 1925 में पुष्कर में एक विशाल सम्मेलन आयोजित किया। इस सम्मेलन को आर्य समाज और हिन्दू महासभा, दोनों ने अपना संरक्षण प्रदान किया, ताकि जाटों का उपयोग उत्तर-पश्चिम भारत के मुसलमानों के विरुद्ध किया जा सके।
रॉबर्ट स्टर्न अपनी पुस्तक The Cat and the Lion में लिखते हैं कि राजपूताना क्षेत्र के जाटों की आर्थिक स्थिति राजपूतों के समकक्ष थी। वे शेखावाटी आन्दोलन पर लिखते हैं कि आर्थिक कारणों की आड़ में इस आन्दोलन का वास्तविक उद्देश्य हिन्दू समाज के भीतर जाटों द्वारा अपनी स्थिति को राजपूतों के समकक्ष स्थापित करना था। इस आन्दोलन को पटियाला, फ़रीदकोट, नाभा, जींद, भरतपुर आदि रियासतों के राजाओं तथा पंजाब एवं उत्तर प्रदेश के जाट जागीरदारों का समर्थन प्राप्त था।
इस प्रकार 1950 तक आते-आते हिन्दू समाज के भीतर जाटों की सामाजिक स्थिति राजपूतों के समकक्ष मानी जाने लगी। 1950 के पश्चात् जाटों ने कॉंग्रेस शासन का पर्याप्त लाभ उठाया और अपनी राजनीतिक स्थिति सुदृढ़ की। हरित क्रान्ति के पश्चात् जाटों की आर्थिक स्थिति में भी उल्लेखनीय सुधार हुआ। अब जाट नेता पुराने राजपूत सामन्तों की भाँति व्यवहार करने लगे। यही कारण था कि मण्डल आयोग ने जाटों को सामान्य वर्ग में सम्मिलित किया।
परन्तु 1998 में भैरों सिंह शेखावत ने जाटों को कॉंग्रेस से पृथक् करने के उद्देश्य से अपने जाट समर्थकों को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण की माँग करने हेतु तैयार किया, जिसका नेतृत्व राजस्थान के पूर्व पुलिस महानिदेशक ज्ञान प्रकाश पिलानिया को सौंपा गया। अगले ही वर्ष केन्द्र की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने राजस्थान के जाटों को ओबीसी आरक्षण प्रदान कर दिया। इस आरक्षण आन्दोलन के दौरान जो जाट नेता उभरे, वे सभी भारतीय जनता पार्टी से प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ने लगे तथा जाटों को कॉंग्रेस पार्टी के प्रति उत्तेजित करने लगे।
शिवत्व बेनीवाल
Tuesday, 4 November 2025
बहुत से गैर जाट एक काल्पनिक कहानी बताते हैं की अकबर और जहांगीर ने पंजाब में जाट लड़कियों से शादी की और बदले में ज़मीन दी
बहुत से गैर जाट एक काल्पनिक कहानी बताते हैं की अकबर और जहांगीर ने पंजाब में जाट लड़कियों से शादी की और बदले में ज़मीन दी।ओर बिना किसी रिसर्च ओर काबिलियत के लिखे गए आंकड़ों को साझा करते है।
वैसे तो मैं लिखित इतिहास को मनगढ़ंत ही मानता हूं क्योंकि यह लगभग पूरी तरह लेखक की पसंदगी पर डिपेंड करता है। DNA की लड़ियां इतिहास को संशोधित कर रही है। फिर भी ऑथेंटिक रिसर्च करने वालो का डेटा ओर उनकी काबिलियत साझा कर रहा हूं।जिस से मेरे अपने लोग इसकी वेल्यू को समझे।
हॉरेस आर्थर रोज़ (सहयोगी एडवर्ड डगलस मैक्लैगन)की किताब A Glossary of the Tribes and Castes of the Punjab and North‑West Frontier Province में इसे बिना सर पैर मनघडंत बताया है।
Horace Arthur Rose (1867–1933)
ब्रिटिश सिविल सर्वेंट और एथ्नोलॉजिस्ट (Ethnologist) थे।
उन्होंने भारत में Punjab Civil Service में कार्य किया।
वे District Officer और बाद में Superintendent of Ethnography for Punjab के पद पर रहे।
ब्रिटिश सरकार ने उन्हें पंजाब और उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत (North-West Frontier Province) की जातियों, जनजातियों और समुदायों का वर्गीकरण करने का काम सौंपा था। इसी अध्ययन के आधार पर यह महान ग्रंथ तैयार हुआ।
उन्होंने Sir Denzil Ibbetson और Edward Maclagan के साथ मिलकर यह पुस्तक संकलित की।
यह पुस्तक 1911 में प्रकाशित हुई थी (तीन खंडों में)।
Edward Douglas Maclagan (1864–1952)
वे एक ब्रिटिश प्रशासक और इतिहासकार थे।उन्होंने Indian Civil Service (ICS) में काम किया।बाद में वे Governor of the Punjab (1919–1924) बने।
उन्होंने भारतीय समाज की जनगणना (Census of India) के कार्य में भी योगदान दिया।इस पुस्तक में उन्होंने प्रशासनिक और सांख्यिकीय आंकड़ों के संकलन में सहयोग किया।
यह पुस्तक भारत की जातियों (Castes) और जनजातियों (Tribes) पर ब्रिटिश राज के दौरान की सबसे महत्वपूर्ण और विस्तृत कृति है।
इसमें पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, दिल्ली और उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत (अब पाकिस्तान का खैबर पख्तूनख्वा क्षेत्र) के समुदायों का विस्तृत वर्णन है।
इसमें निम्न शामिल हैं:
प्रत्येक जाति/जनजाति की उत्पत्ति
उनके सामाजिक और आर्थिक कार्य
सांस्कृतिक परंपराएं, रीति-रिवाज, पहनावा
धार्मिक मान्यताएं और लोककथाएं
19वीं–20वीं सदी के प्रारंभिक सामाजिक ढांचे का विवरण
वास्तविक जट्ट - Dinesh Behniwal
Thursday, 30 October 2025
जाटों ने सिंध और पश्चिमी पंजाब से उत्तर की ओर आकर
इतिहासकार David E. Ludden के अनुसार, जाटों ने सिंध और पश्चिमी पंजाब से उत्तर की ओर आकर, 11वीं से 16वीं शताब्दी में सूखे स्थानों को खेती योग्य बनाया और कृषिप्रधान जमीन पर अपना कब्ज़ा बनाया।