It is about recognizing the consumer power of a farmer by a farmer!
असल तो पूरे देश में, लेकिन फिर भी अगर पंजाब (22 जिले) - हरियाणा (21 जिले) - पश्चिमी उत्तरप्रदेश (करीब 30 जिले) - राजस्थान (33 जिले) व् दिल्ली (9 जिले) यानी कुल 115 जिलों में भी किसान
1) दो महीने के लिए नया ट्रेक्टर खरीदना बंद कर दे तो (करीब 200 से 500 ट्रेक्टर उत्तरी भारत के हर जिले में बिकते हैं), औसतन 300 भी ले लो तो 115 जिलों में 2 महीने में कुल 34500ट्रेक्टर बिकेंगे| औसतन एक नया ट्रेक्टर आता है 4 लाख का, यानी 400000 * 34500 = INR 13800000000 यानी 13 अरब 80 करोड़ का अकेला नुक्सान तो अकेले ट्रेक्टर ना खरीदने से हो जायेगा उद्योपतियों को| और इन दो महीनों में किसान का कुछ बिगड़ना नहीं|
ऐसे ही सोचिये अगर कृषि के ट्रेक्टर के अतिरिक्त बाकी के कृषि उपक्रम भी दो महीने नहीं खरीदे तो अकेले खेती उपक्रम खरीदने के बायकाट से इन उद्योगपतियों को इतना नुकसान होगा कि इनकी बैलेंस सीटें इम्बैलेंस कर जाएँगी और जो यह मुफ्त में किसान की जमीन पर उसकी मर्जी के बिना नजर गढ़ाए बैठे हैं, इनकी नजरें इनकी बैलेंस सीटों में ही उलझ के रह जाएँगी| और इनकी अक्ल ठिकाने आ जाएँगी कि जिसको तुम लूटने की सोचे बैठे हो, उसने सिर्फ दो महीने भी तुमसे सामान नहीं खरीदा तो कहाँ से कहाँ होवोगे तुम| इसलिए इस ग्लोबलाइजेशन (globalization) के जमाने में किसान रुपी कंस्यूमर (consumer) अपनी इस कंस्यूमर पावर (consumer power) को पहचाने और इसका इन व्यापारियों को भी अहसास करवा दे कि कहाँ तुम सरकारों पे दबाव दे के हमें कुचलने पे तुले हो, हम अपनी पे आये तो घर-बैठे-बिठाए ही तुम्हें कुचल देंगे|
2) और ऐसे ही दो महीने के लिए अगर सिर्फ किसान अकेला भी कोई कार-एसयूवी (SUV)-मोटरसाइकिल भी खरीदना बंद कर दे तो आप सब अंदाजा लगा लीजिये कि इन लोगों को दो महीने में कितना बड़ा नुक्सान उठाना पड़ जायेगा|
3) और ऐसे ही दो महीने के लिए अगर सिर्फ किसान अकेला भी कोई वाशिंग मशीन-फ्रिज-कूलर-पंखा यानी घर में काम आने वाली तमाम तरह की मशीनें ना खरीदें तो और किस-किस की मार्किट बैठेगी|
4) और ऐसे ही दो महीने के लिए अगर सिर्फ किसान अकेला भी कोई ज्वैलरी-कपडा-लत्ता-बर्तन ना खरीदे तो इन दो महीनों में और किस-किस के पेटों के पानी हिलेंगे और कितने अरबों-करोड़ों के घाटे व्यापारियों को होंगे|
यहां सिर्फ खाने-पीने के सामान की चीजों के बायकाट को बाहर रख रहा हूँ, क्योंकि हम किसान होते हैं, समाज के पालनहारी हैं हम और अगर खाने-पीने की चीजों का भी बायकाट कर देंगे तो कहीं ऐसा ना हो जाए कि किसी व्यापारी के घर में बच्चे बिना दूध-फल-सब्जी के तरसें| इसलिए एक किसान की इंसानियत को कायम रखते हुए अगर किसान खाने-पीने की चीजों को छोड़ के बाकी तमाम सामान का दो महीने भी खरीदने से बहिष्कार कर देवें तो यही व्यापारी जो आज सरकार पर "भूमि अधिग्रहण" के लिए ऐसा जालिम बिल बनवाने को तुले हैं, खुद ही अपने-आप इसको वापिस करवाने को कहेंगे और किसान का उसके घर बैठे-बैठे निशाना सध जायेगा| यानी लाठी भी नहीं टूटेगी और सांप मरे-का-मरा|
लेख का सार यही है कि किसान अपने आपको लाचार-बेबस ना समझे, इस ग्लोबलाइजेशन के जमाने में अपनी कंस्यूमर पावर को पहचाने| इस बिल को वापिस करवाने के लिए उसकी यह कंस्यूमर पावर ही काफी है; ना कोई रेल रोकने की जरूरत ना रोड जाम करने की, ना दिल्ली घेरने की जरूरत ना जेल भरने या जाने की|
प्रवर्तिगार से यही अरदास है कि हमारे तमाम तरह के किसान संगठनों, पार्टियों में उनकी इस कंस्यूमर पावर की ताकत को पहचानने की नजर डाल दे बस, बाकी सारा काम तो घर बैठे ही हो जायेगा; क्योंकि जब कोई किसान ग्राहक दो महीने के लिए सामान खरीदने ही नहीं जायेगा तो बड़े-बड़े कॉर्पोरेट (corporate) सीईओ (CEO) से ले के डायरेक्टर्स (directors), मैनेजर्स (managers) और सेल्समेन (salemen) तक की नौकरियां हिलने के साथ-साथ बैलेंस सीटें हिलेंगी तो कौन किसानों से पंगा लेने का जोखिम लेगा?
अपील: किसान का युवा बेटा-बेटी अपने तमाम किसान नेताओं, शुभचिंतकों और परिवारों के बड़ों को इस पावर बारे समझाएं और इसपे एक-जुट होने का आह्वान करें| साथ ही सोशल मीडिया पे इसको इतना बड़ा आंदोलन बनाये कि सोशल मीडिया पर बैठी व्यापारी और सरकारी लोगों को उनके इन अन्यायकारी क़दमों पर दोबारा सोचना भी पड़े और इस आर्डिनेंस को वापिस लेने के तमाम कारणों का भी इनको अहसास हो जाए|
पगड़ी संभाल ओये, दुश्मन पहचान ओये! - फूल मलिक
असल तो पूरे देश में, लेकिन फिर भी अगर पंजाब (22 जिले) - हरियाणा (21 जिले) - पश्चिमी उत्तरप्रदेश (करीब 30 जिले) - राजस्थान (33 जिले) व् दिल्ली (9 जिले) यानी कुल 115 जिलों में भी किसान
1) दो महीने के लिए नया ट्रेक्टर खरीदना बंद कर दे तो (करीब 200 से 500 ट्रेक्टर उत्तरी भारत के हर जिले में बिकते हैं), औसतन 300 भी ले लो तो 115 जिलों में 2 महीने में कुल 34500ट्रेक्टर बिकेंगे| औसतन एक नया ट्रेक्टर आता है 4 लाख का, यानी 400000 * 34500 = INR 13800000000 यानी 13 अरब 80 करोड़ का अकेला नुक्सान तो अकेले ट्रेक्टर ना खरीदने से हो जायेगा उद्योपतियों को| और इन दो महीनों में किसान का कुछ बिगड़ना नहीं|
ऐसे ही सोचिये अगर कृषि के ट्रेक्टर के अतिरिक्त बाकी के कृषि उपक्रम भी दो महीने नहीं खरीदे तो अकेले खेती उपक्रम खरीदने के बायकाट से इन उद्योगपतियों को इतना नुकसान होगा कि इनकी बैलेंस सीटें इम्बैलेंस कर जाएँगी और जो यह मुफ्त में किसान की जमीन पर उसकी मर्जी के बिना नजर गढ़ाए बैठे हैं, इनकी नजरें इनकी बैलेंस सीटों में ही उलझ के रह जाएँगी| और इनकी अक्ल ठिकाने आ जाएँगी कि जिसको तुम लूटने की सोचे बैठे हो, उसने सिर्फ दो महीने भी तुमसे सामान नहीं खरीदा तो कहाँ से कहाँ होवोगे तुम| इसलिए इस ग्लोबलाइजेशन (globalization) के जमाने में किसान रुपी कंस्यूमर (consumer) अपनी इस कंस्यूमर पावर (consumer power) को पहचाने और इसका इन व्यापारियों को भी अहसास करवा दे कि कहाँ तुम सरकारों पे दबाव दे के हमें कुचलने पे तुले हो, हम अपनी पे आये तो घर-बैठे-बिठाए ही तुम्हें कुचल देंगे|
2) और ऐसे ही दो महीने के लिए अगर सिर्फ किसान अकेला भी कोई कार-एसयूवी (SUV)-मोटरसाइकिल भी खरीदना बंद कर दे तो आप सब अंदाजा लगा लीजिये कि इन लोगों को दो महीने में कितना बड़ा नुक्सान उठाना पड़ जायेगा|
3) और ऐसे ही दो महीने के लिए अगर सिर्फ किसान अकेला भी कोई वाशिंग मशीन-फ्रिज-कूलर-पंखा यानी घर में काम आने वाली तमाम तरह की मशीनें ना खरीदें तो और किस-किस की मार्किट बैठेगी|
4) और ऐसे ही दो महीने के लिए अगर सिर्फ किसान अकेला भी कोई ज्वैलरी-कपडा-लत्ता-बर्तन ना खरीदे तो इन दो महीनों में और किस-किस के पेटों के पानी हिलेंगे और कितने अरबों-करोड़ों के घाटे व्यापारियों को होंगे|
यहां सिर्फ खाने-पीने के सामान की चीजों के बायकाट को बाहर रख रहा हूँ, क्योंकि हम किसान होते हैं, समाज के पालनहारी हैं हम और अगर खाने-पीने की चीजों का भी बायकाट कर देंगे तो कहीं ऐसा ना हो जाए कि किसी व्यापारी के घर में बच्चे बिना दूध-फल-सब्जी के तरसें| इसलिए एक किसान की इंसानियत को कायम रखते हुए अगर किसान खाने-पीने की चीजों को छोड़ के बाकी तमाम सामान का दो महीने भी खरीदने से बहिष्कार कर देवें तो यही व्यापारी जो आज सरकार पर "भूमि अधिग्रहण" के लिए ऐसा जालिम बिल बनवाने को तुले हैं, खुद ही अपने-आप इसको वापिस करवाने को कहेंगे और किसान का उसके घर बैठे-बैठे निशाना सध जायेगा| यानी लाठी भी नहीं टूटेगी और सांप मरे-का-मरा|
लेख का सार यही है कि किसान अपने आपको लाचार-बेबस ना समझे, इस ग्लोबलाइजेशन के जमाने में अपनी कंस्यूमर पावर को पहचाने| इस बिल को वापिस करवाने के लिए उसकी यह कंस्यूमर पावर ही काफी है; ना कोई रेल रोकने की जरूरत ना रोड जाम करने की, ना दिल्ली घेरने की जरूरत ना जेल भरने या जाने की|
प्रवर्तिगार से यही अरदास है कि हमारे तमाम तरह के किसान संगठनों, पार्टियों में उनकी इस कंस्यूमर पावर की ताकत को पहचानने की नजर डाल दे बस, बाकी सारा काम तो घर बैठे ही हो जायेगा; क्योंकि जब कोई किसान ग्राहक दो महीने के लिए सामान खरीदने ही नहीं जायेगा तो बड़े-बड़े कॉर्पोरेट (corporate) सीईओ (CEO) से ले के डायरेक्टर्स (directors), मैनेजर्स (managers) और सेल्समेन (salemen) तक की नौकरियां हिलने के साथ-साथ बैलेंस सीटें हिलेंगी तो कौन किसानों से पंगा लेने का जोखिम लेगा?
अपील: किसान का युवा बेटा-बेटी अपने तमाम किसान नेताओं, शुभचिंतकों और परिवारों के बड़ों को इस पावर बारे समझाएं और इसपे एक-जुट होने का आह्वान करें| साथ ही सोशल मीडिया पे इसको इतना बड़ा आंदोलन बनाये कि सोशल मीडिया पर बैठी व्यापारी और सरकारी लोगों को उनके इन अन्यायकारी क़दमों पर दोबारा सोचना भी पड़े और इस आर्डिनेंस को वापिस लेने के तमाम कारणों का भी इनको अहसास हो जाए|
पगड़ी संभाल ओये, दुश्मन पहचान ओये! - फूल मलिक
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