फंडियों की अक्ल ठिकाने लगाने का वही टशन व् अणख थी चौधरी ओमप्रकाश चौटाला में जो सर छोटूराम में थी!
2013 में रोहिणी कोर्ट में पेशी पे नहीं जाने का ऑप्शन था चौधरी ओमप्रकाश चौटाला जी के पास| पर पता नहीं किसने सलाह दी कि आगे इलेक्शन हैं जेल चले जाओगे तो वोटों की सिम्पथी मिलेगी| कहाँ 'ग्रीन-ब्रिगेड' वाला दबंग, अपनी इसी दबंगई पर कायम रहते हुए उस दिन कोर्ट न जाते तो सजा नहीं होनी थी व् 2014 में इलेक्शन जीत के या तो एकल दम पे सीएम बनते या अलायन्स में भी बनते तो सबसे बड़ी पार्टी के रूप में खुद ही सीएम बनते|
खैर, बात करते हैं उनकी सर छोटूराम जैसी अणख व् टशन की| जहाँ ताऊ देवीलाल को हरयाणा में बीजेपी की एंट्री करवाने बारे दोषी माना जाता है, जो कि सच भी है; वहीँ चौधरी ओमप्रकाश चौटाला को उसी बीजेपी को ठिकाने लगाने के लिए जाना जाएगा| ऐसा करके उन्होंने बीजेपी से 1990 में उनके पिता ताऊ देवीलाल जी के साथ बीजेपी द्वारा किए गए धोखे का बदला लिया था साल 1999 से ले 2005 तक जब उनकी सरकार रही तब|
ठिकाने भी लगाया दो तरीके से: एक तो 2000 में जब इनेलो ने बीजेपी के साथ अलायन्स में चुनाव लड़े तो 60-30 के फार्मूला पर चुनाव हुआ| चौटाला साहब ने जिन 30 सीट पर बीजेपी के कैंडिडेट थे, हर एक पर अपने डमी उतारे व् बीजेपी के 24 उम्मीदवारों को तो वहीँ इलेक्शन में ही धूल चटवाई| अभी बीजेपी जो सूत्र सबसे ज्यादा प्रयोग में ला के हरयाणा में तीसरी बार आई है, वह यही चौधरी ओमप्रकाश चौटाला से सीखा हुआ सूत्र था, डमी कहें या बागी उम्मीदवार खड़े करवाने का; जिसको कांग्रेस जानते-बूझते हुए भी अपनी आपसी कलह में फंसे होने के चलते टैकल ही नहीं कर पाई| और उसके बाद फिर जो रगड़ा एक-एक को पकड़ के वह अपने आप में इतिहास है; इसमें क्या रामबिलास शर्मा थे, क्या मनोहरलाल खट्टर व् क्या नरेंद्र मोदी; सबको ठिकाने लगाया हरयाणा में| नरेंद्र मोदी को तो दबड़का के चलती गाडी से ही नीचे उतार दिया था|
और इनकी भाषण देने की अविरल कला, भाषण की शैली व् भाषण में विषय की तीव्रता के तो विपक्षी भी इतने कायल थे कि आज भी इनकी भाषण शैली को देश के टॉप 1 प्रतिशत नेताओं की श्रेणी में रखा जाता है| 2014 के इलेक्शन में आप से तीन बार मुलाकात हुई, तीनो मुलकातें आजीवन जेहन में रहेंगी!
मेरा मानना है कि राजनीति में एक बार आपको जो छवि बन जाए, आप उससे हट कर दूसरा कोई एक्सपेरिमेंट करने चलते हैं तो फिर गाडी पटरी पर इतनी आसानी से नहीं आती: भले 'ग्रीन-ब्रिगेड' वाली, 'दबंगई' वाली छवि झूठी थी या सच्ची थी; उसको त्याग सहानुभूति वाली राजनीति की परिपाटी चढ़ने के चक्र में उस दिन रोहिणी कोर्ट ना गए होते तो; आज उनकी राजनीति कुछ और ही बुलंदी छू रही होती व् हरयाणा की यह दशा ना होती; जिससे हरयाणा आज गुजार रखा है बीजेपी ने| 'ग्रीन-ब्रिगेड' वाली, 'दबंगई' इन दोनों छवियों से खुद की छेड़छाड़ या इसमें बदलाव करना अपने मूल रूप को बदलने जैसा था; बदलाव जरूरी होते हैं, परन्तु आप बीज की सरंचना ही छेड़ बैठोगे तो भटकन बनेगी ही बनेगी|
आज उनके निधन की दुखद बेला पर प्रार्थना है कि दादे नगर खेड़े चौधरी ओमप्रकाश चौटाला जी को उनकी शरण में लेवें व् उनका यह टशन व् अणख रहती दुनिया तक याद की जाए!
जय यौधेय! - फूल मलिक
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