Sunday, 5 April 2015

दिल्ली के सिर पै बसै हरयाणा!

खुद्दारी हरयाणा स्टाईल ... By: जाट कवि -कर्नल  मेहर सिंह दहिया,  शौर्यचक्र 

दिल्ली के सिर पै बसै हरयाणा,
आप बोवै, आप खा, बेरा जी मनै ना दे दाणा|

जगह म्हारी घणी खास सै,
बड़यां की मेहनत और प्रयास सै| 
बैरी का आड़ै हुया नाश सै,
ना चाल्या इसतैं कोए धिंगताणा||
दिल्ली के सिर पै बसै हरयाणा|

महारी धरती का कोए तोल नहीं सै, 
दरया दिली का कोए मोल नहीं सै|
हिस्साब मैं कोए रोल नहीं सै,
जाण्या सदा ले कै लोटाना||
दिल्ली के सिर पै बसै हरयाणा|

मेहमान का मान बड़ा सै,
बण हनुमान यू सदा लड़ै सै|
गैर के रफड़े मैँ जरूर पड़ै सै,
मोल भले  कुछ  पड़ै चुकाना||
दिल्ली के सिर पै बसै हरयाणा|

तोल पिछाण कै यो हाथ मिलावै,
दुश्मन नै यू धूल चटावै| 
बोद्दे कै सदा साहरा लावै,
बोल इसके पै कति मत जाणा|| 
दिल्ली के सिर पै बसै हरयाणा|

के दिखै सै सादा भोला,
पहले टकरे मैं पादे रोला|
तर्क मैं इसनै हर कोए झिकोला,
आवै खूब बातां मैं बतलाना||
दिल्ली के सिर पै बसै हरयाणा|

बिना वजह मत इसनै छेड़िए,
करया हमला जाऊँ भेडीए|
छुडा पेंडा तुरत नमेड़िए,
वरना महंगा पड़ै इसतैं भिड़ जाणा||
दिल्ली के सिर पै बसै हरयाणा|

हर माणस मैं पावै कविताई,
शिक्षा बेशक यहाँ देर से आई|
अनपढ़ भी करै अगवाही,
देख पंचों का ज्ञान पुराणा||
दिल्ली के सिर पै बसै हरयाणा|

दिल्ली की हमनै मरोड़ काढ़ दी,
जी चाहा जब टाड्ड दी|
पकड़ नाड़ सही झाड़ दी,
नहीं होण दें मां माम निमाणा||
दिल्ली के सिर पै बसै हरयाणा|

कर्नल मेहर सिंह की बात सही सै,
समझनिया नै खूब लहि सै|
वफादार इस बरगा कोई नहीं सै,
पर मुंह इसको कति नहीं लाना||
दिल्ली के सिर पै बसै हरयाणा|

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